शमीना बेगम, 22 बरिस, जम्मू कश्मीर के बांदीपुर जिला के वजीरिथल गांव के रहे वाला बाड़ी. ऊ आपन दोसर लरिका के पैदा होखे के बारे में बतावत बाड़ी, “ओह दिनवा जब हमर पानी के थइली (बच्चादानी के भीतर के थैली जेह में बच्चा रहेला) फूटल, हमरा बहुते जादे दरद होखे लागल. तीन दिन से बरफ गिरत रहे. जब अइसन होखेला, त बहुते दिन ले धूप ना निकलेसी, हमनी के सोलर पैनल डिस्चार्ज हो जाला.” वजीरिथल में धूप बहुते कम रहेला, चाहे कहीं कि कबो-कबो निकलेला. इहंवा के लोग बिजली खातिर सोलर ऊर्जा के ही सहारे बा.
शमीना बतावे लगली, “घर में अन्हार रहे, खाली एगो किरासन तेल (मिट्टी तेल) के ढिबरी जरत रहे. पड़ोसी लोग ओह दिन सांझ के आपन-आपन लैंप लेके आइल. अब कमरा में पांच गो लैंप जरत रहे. हमार माई केहूंगे करके रशीदा के पैदा होखे में हमार मदद कइली.”
वजीरिथल के गिनती, बडगाम ग्राम पंचायत में आवे वाला सबले सुन्दर गांव में से होखेला. श्रीनगर से शमीना के घर पहुंचे में 10 घंटा लागेला. रस्ता में गाड़ी के गुरेज घाटी से होकर जाए वाला राजदान दर्रा से गुजरे के होखेला. साढ़े चार घंटा ले हमनी उबड़-खाबड़ रस्ता आउर आधा दर्जन चौकी से होकर गुजरनी. आखिर में दस मिनट पइदल भी चले के पड़ल. शमीना इहंवा पहुंचे के इहे एगो रस्ता बा.
गांव नियंत्रण रेखा से कुछे मील दूर, गुरेज घाटी में बसल बा. इहंवा 24 गो परिवार बसल बा. शमीना के घर देवदार के लकड़ी से बनल बा. घर के गरम रखे खातिर (थर्मल इंसुलेशन) भीतर के देवाल पर माटी पोतल बा. घर के मुख्य दरवाजा याक के पुरान सींग से सजावल बा. कहूं-कहूं याक के असली सींग भी लागल रहे. कहूं लकड़ी से बनल आउर हरियर रंग से पोतल नकली सींग भी लटकत रहे. घर के मोटा-मोटी सभे खिड़की से सीमा पार सब कुछ देखल जा सकेला.
शमीना आपन घर के सोझे लकड़ी के ढेर पर बइठल सांझ के ढल रहल नरम-नरम धूप सेंकत बाड़ी. संगे उनकर दू गो लरिकन, दू बरिस के फरहाज आउर चार महीना के रशीदा (नाम बदलल बा) बाड़ी. ऊ कहली, “हमार माई रोज ताकीद करेली कि हमार जेका महतारी के आपन नयका लरिका संगे रोज भोरे, दुपहरिया आउर सांझ में धूप में बइठे के चाहीं.” अबही अगस्ते बा. घाटी बरफ में नइखे लिपटल. बाकिर, तबो मेघ छाइल रहेला, कबो-कबो बरखा भी पड़ेला. केतना-केतना दिन ले धूप के दरसन ना होखे. बिना बिजली के गुजारा करे के पड़ेला.
वजीरिथल के रहे वाला 29 बरिस के मोहम्मद अमीन कहले, “अबही दू बरिस पहिलहीं, 2020 में, हमनी के ब्लॉक ऑफिस से सोलर पैनल मिल रहे. पहिले त खाली बैटरी से चले वाला लाइट आउर लालटेन से काम चलावे के होखत रहे. सोलर पैनल आइल त लागल, सभ मुस्किल आसान हो गइल. बाकिर अब त इहो से कवनो खास फायदा नइखे मिलत.”
अमीन इहो बतइले, “बडगाम के दोसर गांवन सभ में जनरेटर से 7 घंटा बिजली मिलेला. इहंवा हमनी लगे 12 वोल्ट वाला बैटरी बा. ई बैटरी सोलर पैनल से चार्ज होखेला. एक बेर पूरा चार्ज भइला पर एकरा से जादे करके दू दिन ले घर के दू गो बल्ब जर सकेला आउर फोन चार्ज हो सकेला. माने ई कि जदि दू दिन से जादे बरखा भइल, चाहे बरफ गिरल आउर धूप ना निकलल, त हमनी अन्हार में पड़ल रहेम.”
इहंवा छव महीना बरफ गिरेला आउर खूब सरदी पड़ेला. एहि से लोग अक्टूबर आउर अप्रैल के बीच इहंवा से दोसरा जगह चल जाला. केहू 123 किमी दूर गांदरबल, चाहे केहू 108 किमी दूर श्रीनगर पलायन कर जाला. शमीना पड़ोसन आफरीन से बात भइल. उनकर बात सुनके अइसन लागल साक्षात आंख के सामने सरदी में गांव के हाल देखाई देत बा. आफरीन बतइली, “अक्टूबर में 15 दिन बीतला पर, चाहे महीना के आखिर में हमनी गांव छोड़े के सुरु कर दिहिला. नवंबर के बाद त इहंवा रहल बहुते दुश्वार हो जाएला.” ऊ हमार मुड़ी (सिर) ओरी इशारा करत कहली, “रउआ जहंवा ठाड़ बानी, ऊ इहंवा (माथा) ले बरफ में धंसल रहेला.”
मतलब साल के छव महीना घर से दूर कवनो नया जगह एगो अस्थायी घर, फेरु सरदी खत्म भइला पर लउटके घर. गांदरबल आ श्रीनगर में कुछ लोग आपन हित-कुटुम्ब के इहंवा रहेला आउर कुछ लोग छव महीना खातिर किराया पर घर ले लेवेला. शमीना अबही चटख लाल-भूरा (मैरून) रंग के फिरन पहिनले बाड़ी. ई एगो लंबा ऊनी पोशाक होखेला. एकरा कश्मीरी लोग सरदी में पहिनेला. “बरफ जब गिरे लागेला तब कुछुओ ना देखाई देवे. चारो ओरी खाली बरफे बरफ, 10 फीट ऊपर तक. जबले सरदी ना आवे, हमनी गांव से बाहर ना जाईं.”
शमीना के मरद गुलाम मूसा खान, 25 बरिस, दिहाड़ी मजूर हवें. सरदी में अक्सरहा उनकर बइठा-बइठी चलेला. शमीना बतावत बाड़ी, “हम जब वजीरिथल में होखिला, त ऊ बडगाम के लगे आउर कबो-कबो बांडीपुरा शहर में मजूरी करे जाएलन. उनकर काम जादे करके सड़क निर्माण परियोजना सभ में रहेला. बाकिर कबो-कबो उनकरा निर्माण स्थल पर भी काम मिल जाला. हां, बरसात में महीना में 5 से 6 दिन हाथ पर हाथ धर, बइठे के पड़ेला.” ऊ बतइली कि काम के हिसाब से गुलाम मूसा महीना के 10 हजार रुपइया कमा लेवेले.
ऊ कहली, “बाकिर जब हमनी गांदरबल चल जाएनी, त उहंवा ऑटो रिक्सा चलावे के काम करिले. ऊ किराए पर ऑटो रिक्सा उठावेलें आउर ले के श्रीनगर चल जाएलन. उहंवा सरदी में दूर-दूर से सैलानी लोग आवेला. बाकिर बचत ना हो पावेला.” गांदरबल में यातायात के सुविधा वजीरिथल से जादे नीमन बा.
शमीना कहली, “हमनी के बच्चा लोग उहंई (गांदरबल) रहे के चाहेला. उहंवा ओह लोग के तरह-तरह के पकवान खाए के मिलेला. कहूं बिजली के समस्या नइखे. बाकिर उहंवा हमनी के किराया लागेला. इहंवा (वजीरिथल) में जेतना समय रहिले, बचत करे के कोसिस करत रहिले.” गांदरबल में किराना के सामान लावे में पइसा खरचा होखेला. एह से उनकर बोझ आउर बढ़ जाएला. वजीरिथल में शमीना किचन गार्डन में कम से कम घर खातिर तरकारी त उगा लेवेली. आउर इहंवा आपन घर बा. गांदरबल में किराया के मकान लेहला पर महीना के 3,000 से 3,500 रुपइया खरचा करे के पड़ेला.
शमीना पारी के बतइली, “बेशक उहंवा के घर इहंवा जेतना फइल नइखे. बाकिर उहंवा के अस्पताल आउर सड़क नीमन बा. उहंवा सभे कुछ मिलेला, बाकिर पइसा खरचा करे के पड़ेला. हकीकत त ई बा कि हमनी के उहंवा घर नइखे.” एहि सभ खरचा आउर झंझट चलते उनकरा लॉकडाउन में वजीरिथल लउटे के पड़ल, ओह घरिया शमीना पहिल बेर मां बने वाला रहस, छव महीना हो गइल रहे.
शमीना हंसत बतावे लगली, “फरहाज हमार पेट में रहस. सतमा महीना चलत रहे. तब मार्च 2020 रहे आउर लॉकडाउन तुरंते भइल रहे. ऊ महामारी में पैदा भइल बा. अप्रिल के दोसर महीना में, हमनी एगो गाड़ी किराया पर उठइनी आउर आपन घर लउट अइनी. काहे कि बिना कमाई गांदरबल में रहल मुस्किल भइल जात रहे. किराया आउर खाना के खरचा पहिलहीं जइसन रहे.”
“ओह बखत सैलानी लोग के आइल बंद हो गइल रहे. घरवाला के कमाई खत्म रहे. हमार दवाई आउर किराना खातिर नाता-रिस्तेदार से करजा उठावे के पड़ल. अइसे त, हमनी सभ करजा चुका देले बानी. हमनी के मकान मालिक लगे आपन गाड़ी रहे. हमार हालत देखलन त, 1,000 रुपइया के किराया पर ऊ आपन गाड़ी हमनी के इस्तेमाल करे खातिर दे देलन. एह तरह से हमनी घर लउट पइनी.”
बाकिर वजीरिथल में खाली बिजलिए के समस्या नइखे, इहंवा के सड़क के हाल खस्ता बा. स्वास्थ्य देखभाल के सुविधा कम बा. वजीरिथल से पांच किमी दूरी पर एगो पीएचसी रहे. बाकिर उहंवा साधारण जचगी करावे लायक भी सुविधा नइखे. काहे कि उहंवा डॉक्टर, नर्स आउर दोसर स्वास्थ्यकर्मी लोग ना मिलेला. ई सभे पद खाली पड़ल बा.
वजीरिथल के एगो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता राजा बेगम, 54 बरिस, पूछतारी, “बडगाम के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में खाली एगो नर्स बाड़ी. ऊ अकेले जचगी कइसे करा पइहें? कइसनो इमरजेंसी होखे, बच्चा खराब हो गइल होखे, चाहे गरभ गिरावे के होखे, सभे मामला में गुरेज भागे के पड़ेला. आउर जदि कबो ऑपरेशन के जरूरत पड़ गइल, त श्रीनगर के ललद्यद अस्पताल जाए के पड़ेला. ई गुरेज से 125 किमी दूर पड़ेला. एतना खराब मौसम में उहंवा पहुंचे में 9 घंटा लाग जाला.”
शमीना के हिसाब से गुरेज के सीएचसी जाए के रस्ता बहुते खराब बा. शमीना 2020 में आपन गरभ के बात बतावत कहली, “अस्पताल जाए आवे में दुनो ओरी से दु घंटा लागेला. आउर अस्पताल (सीएची) में त पूछीं मत हमरा संगे का भइल…! उहंवा के त ई हाल रहे कि एगो साफ-सफाई करे वाली हमरा बच्चा जने में मदद कइली. जचगी घरिया कवनो डॉक्टर हमरा देखे तक ना आइल, आउर ना ही जचगी के बाद केहू मिलल.”
गुरेज में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) आउर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) दुनो जगहा पर लंबा बखत से सामान्य चिकित्सक (जनरल फिजिशियन), स्त्री रोग आउर बाल रोग विशेषत्र जइसन केतना जरूरी जरूरी पद खाली बा. राज्य के मीडिया में एकर बहुते चरचा बा. राजा बेगम के कहनाम बा कि पीएचसी पर खाली प्राथमिक उपचार आउर एक्स-रे के सुविधा मिलेला. एकरा अलावा, बाकिर कुछो के जरूरत होखे, त मरीजन के उहंवा से 32 किमी दूर गुरेज के सीएचसी जाए के कहल जाला.
बाकिर गुरेज के सीएचसी के हाल भी खस्ता बा. ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी के रिपोर्ट (सितंबर 2022 में सोशल मीडिया में जारी) के हिसाब से ब्लॉक में 11 चिकित्सा अधिकारी, 3 गो दांत के डॉक्टर, एगो सामान्य डॉक्टर, एगो बाल रोग आउर एगो स्त्री रोग विशेषज्ञ समेत 3 गो विशेषज्ञ के पद खाली हवे. ई रिपोर्ट नीति आयोग के हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट के खंडन करेला. रिपोर्ट में कहल गइल बा कि खाली पद भरे के प्रक्रिया में सुधार भइल बा.
आफरीन, 48 बरिस, शमीना के घर से कोई 5 से 6 किमी दूर रहेली. उनकर एगो अलगे कहानी बा. “मई 2016 में जब हमरा गुरेज के सीएचसी जाए के बेरा आइल, त हमार घरवाला के हमरा आपन पीठ पर लाद के गाड़ी तक ले जाए के पड़ल. हमरा लगे उहंवा से बस 300 मीटर दूर ठाड़ सुमो गाड़ी तक जाए के सुविधा ना रहे. सुमो हमनी किराया पर लेले रहीं. ई कोई पांच बरिस पहिले के बात बा. बाकिर हालत अबहियो जस के तस बा. अब त हमनी के दाई भी बूढ़ा चलली. ऊ अक्सरहा बेमार रहेली.”
आफरीन जवन दाई के बारे में जिकिर कर रहल बाड़ी ऊ शमीना के माई बाड़ी. शमीना एगो बूढ़ मेहरारू ओरी इशारा कइली. ऊ मेहरारू हमनी से 100 मीटर के दूरी पर आपन गोदी में एगो छोट लइका लेे गीत गावत रहस. शमीना कहली, “पहिल लरिका के पैदा होखे के बाद हम सोच लेले रहीं कि अब हम लरिका घरे पर पैदा करम. जब दोसरा बेरा जचगी के दरद सुरु भइल, ओह घरिया माई हमरा संगे ना रहती, त हम ना बचतीं. ऊ दाई बाड़ी. गांव के बहुते मेहरारू लोग के ऊ मदद कइले बाड़ी.”
शमीना के माई जानी बेगम, 71 बरिस, भूरा रंग के फिरन में आपन घरे के बाहिर बइठल बाड़ी. गांव के दोसर मेहरारू लोग जेका, उहो आपन माथा के दुपट्टा से ढकले बाड़ी. चेहरा पर जे झुर्री बा, ओकरा से उनकर तजुर्बा के पता चलत बा. ऊ कहली, “हम ई काम 35 बरिस से कर रहल बानी. सालो पहले, हमार माई जब जचगी करावे जास, त हमहूं उनकरा मदद खातिर संगे जाए लगनी. उनकरा काम करत देख, हमहूं सब कुछ सीखनी. दोसरा के मदद करे जुगत भइल बहुते बड़ बात बा.”
जानी आपन जिनगी में इहंवा धीरे-धीरे आवे वाला बदलाव के गवाह बाड़ी. बाकिर ऊ पर्याप्त नइखे. ऊ कहली, “आजकल त जचगी में जोखिम कम होखेला. मेहरारू लोग के आयरन के गोली आउर दोसर जरूरी पोषक आहार देवल जाला. बाकिर पहिले अइसन कंहवा रहे. हां, तनी बदलाव आइल बा, बाकिर अबहियो दोसर गांव जइसन इहंवा चीज ना बदलल बा. हमनी के लइकी लोग अब पढ़े लागल बा. बाकिर आजो स्वास्थ्य सुविधा तक हमनी के पहुंच नइखे. हमनी लगे अस्पताल त बा, बाकिर इमरजेंसी में उहंवा पहुंचे खातिर सड़क नइखे.”
जानी बतइली कि गुरेज के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बहुते दूर बा. उहंवा जाए के मतलब बा कि रउआ 5 किमी पइदल चले के पड़ी. एतना दूर चलला के बाद उहंवा जाए खातिर कवनो साधन मिल सकेला. हां, आधा किमी चलल पर कवनो प्राइवेट गाड़ी मिल जाई, पर एतना खरचा उठावे के कूबत होके के चाहीं.
जानी के कहनाम बा, “शमीना आपन दोसरा बच्चा घरिया अंतिम तीन महीना में बहुते कमजोर पड़ गइल रहस. आपन आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के मशविरा पर हमनी उनका अस्पताल ले जाए के सोचत रहीं. बाकिर हमार दामाद उहे घरिया काम खोजे दोसर शहर चल गइल रहस. इहंवा कवनो सवारी मिलल भारी मुस्किल के बात बा. जदि कवनो गाड़ी मिलियो जाई, त उहंवा तक ले जाए खातिर कवनो गरभ वाला मेहरारू के गोद में उठा के ले जाए के पड़ेला.”
जानी के जिकिर करत आफरीन तेज आवाज में कहली, “उनकरा जाए के बाद हमनी के गांव के मेहरारू लोग के का होई? हमनी केकरा भरोसे रहम?” संझा के चूल्हा-चौका के बखत बा. शमीना खाना बनावे के तइयारी करत बाड़ी. ऊ घर के बाहिर झाड़ी में अंडा खोजे लागत बाड़ी. ऊ कहली, “मुर्गियन सभ आपन अंडा छुपा देवेली. हमरा झोर वाला अंडा बनावे के बा. अंडा ना मिलल, त आज रात फेरु उहे राजमा-चाउर खाए के पड़ी. हमनी के गांव दूर से बहुते सुंदर लागेला. जंगल के बीच बनल मकान बहुते नीक लागेला. बाकिर लगे आके देखीं, त पता चली हमनी के जिनगी कइसन उजाड़ बा.”
पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट 'पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.
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अनुवाद: स्वर्ण कांता