“पंखा वाला (पवनचक्की), ब्लेड वाला (सौर संयंत्र) हमनी के ओरण पर कब्जा कर रहल बा,” सौंटा गांव के रहे वाला सुमेर सिंह भाटी बेचैन होके कहे लगले. एगो किसान आउर चरवाहा, सुमेर सिंह के घर जैसलमेर के देगराय ओरण से सटले बा.
ओरण पवित्र उपवन के कहल जाला आउर एह पर पूरा समाज के हक होखेला. ई सभे खातिर सुलभ होखेला. हर ओरण के एगो देवता होखेले जेकर पूजा आस-पास के गांव के लोग करेला. एकरा चारो ओरी के जमीन के उहंवा के समाज पहरेदारी करेला, केकरो एकर सीमा लांघे ना देवे. मतलब एह जमीन पर लागल पेड़ केहू ना काट सके. हां, जरूरत खातिर गाछ से टूट के भूइंया पर गिरल लकड़ी के जलावन खातिर ले जाइल जा सकेला. इहे ना, केहू इहंवा के जमीन पर भवन जइसन कवनो बिल्डिंग ना बना सके. ओरण में पड़े वाला पानी के पोखरा, चाहे तालाब पवित्र मानल जाला.
बाकिर सुमेर सिंह के कहनाम बा, “ऊ लोग (अक्षय ऊर्जा कंपनी) इहंवा के सदियन पुरान गाछ सभ काट देलक, घास आउर झाड़ी उखाड़ देले बा. लागत बा ओह लोग के केहू रोक वाला नइखे.”
सुमेर सिंह के गोस्सा में जैसलमेर के सैंकड़न गांवन के लोग, जिनकर ओरण पर अक्षय ऊर्जा कंपनी कब्जा कर लेले बा, के आक्रोश शामिल बा. सभे के कहनाम बा कि पछिला 15 बरिस में, इहंवा से बिजली बाहिर ले जाए खातिर एह जिला के हजारन हेक्टेयर जमीन के माइक्रोग्रिड आउर हाईटेंशन तार संगे पवनचक्की आ बाड़ वाला सौर संयंत्र के हवाले कर देहल गइल. एह सभ से इहंवा के पर्यावरण के गंभीर नुकसान पहुंच रहल बा. रोजी-रोटी खातिर एह जंगल पर निर्भर लोग संकट में आ गइल बा.
“जनावर सभ के चरे खातिर कवनो जगह ना बचल. घास त खत्म (मार्च में) होइए गइल, अब खाए खातिर बस केर आउर केजरी गाछ के पतई बचल बा. मवेशी के पर्याप्त भोजन नइखे मिलत. एहि से ऊ लोग के दूध भी कम होखत बा. पहिले जहंवा एक दिन में 5 लीटर दूध होखत रहे, अब 2 लीटर रह गइल बा,” चरवाहा जोरा राम बतइले.
अर्द्ध-शुष्क घास के मैदान वाला ओरण, समुदाय के कल्याण खातिर होखेला. एह घास के मैदान के आस-पास रहे वाला लोग के ओरण से चारा, पानी, भोजन आउर जलावन खातिर लकड़ी मिल जाला.
जोरा राम के कहनाम बा कुछ बरिस से उनकर ऊंट सभ जादे दुबर-पातर आउर कमजोर भइल जात बा. ऊ बतइले, “हमनी के ऊंट एक दिन में 50 गो अलग-अलग तरह के घास आउर पतई खा जात रहे.” भलही हाईटेंशन तार जमीन से 30 मीटर ऊपर से गुजरे, नीचे लागल पेड़-पौधा सभ एह तार से गुजरे वाला 750 मेगावाट के करंट चलते कांपत रहेला. आपन माथा झटकत जोरा राम जोर देत कहलन, “कल्पना करीं कि एगो ऊंट के बच्चा अइसने एगो पूरा पौधा आपन मुंह में डाल लेवे, त का होई.”
उनका आउर रासला पंचायत में रहे वाला उनकर भाई मसिंघा राम लगे 70 गो ऊंट बाड़न. जैसलमेर में चराई खातिर मैदान खोजे के चक्कर में ऊंटन के झुंड के रोज कोई 20 किमी से अधिका दूर चले के पड़ेला.
मसिंघा राम कहले, “देवाल ऊंच कर देहल गइल बा, (हाईटेंशन) तार आउर खंभा (पवन ऊर्जा) सभ से हमनी के चराई के इलाका भर गइल बा, हमनी के ऊंट के चरे खातिर जगह नइखे बचल. ऊंट सभ कबो कवनो गड्ढ़ा (खंभा खातिर खोदल) में गिर जाला, देह-हाथ छिला जाला. एकरा से ऊ लोग के इंफेक्शन भी होखत बा. ई सौर प्लेट सभ हमनी के कवनो काम के नइखे.”
राईका चरवाहा समुदाय से आवे वाला दुनो भाई लोग ऊंट पालन के काम करेला. बाकिर अब, “हमनी पेट भरे खातिर मजूरी करे पर मजबूर बानी,” काहे कि अब बेचे खातिर दूध पूरा ना पड़े. दोसरा तरह के काम भी आसानी से नइखे मिलत. ऊ लोग के कहनाम बा, “बेसी बढ़िया बा कि परिवार के एगो आदमी बाहिर जाके काम करे.” बकिया लोग चराई के आपन पुश्तैनी काम करत रहो.
खाली ऊंटे पाले वाला परेशान नइखे, सभे चरवाहा लोग के सामने एके तरह के समस्या बा.
भोर के दस बाजल चाहत बा.. कोई 50 किमी, चाहे एकरा से तनी कम दूरी पर चरवाहा नजमुद्दीन जैसलमेर जिला के गंगाराम ढाणी ओरण में घुसत बाड़न. उनकर 200 भेड़ आउर बकरी घास खातिर उछल-कूद मचइले बाड़ी.
नाटी गांव में रहे वाला मोटा-मोटी 55 बरिस के ई चरवाहा चारो ओरी नजर घुमावत बाड़े आउर कहत बाड़े, “अब इहंवा बस इहे ओरण बचल बा. चराई खातिर खुलल घास के मैदान अब एह इलाका में कहूं आउर ना देखाई देवे.” एगो अनुमान के हिसाब भेड़-बकरी खातिर चारा खरीदे में उनकरा एक साल में औसतन 2 लाख रुपइया के खरचा आवेला.
राजस्थान में साल 2019 के आकलन के हिसाब से मवेशी के गिनती 1.4 करोड़ बा. इहंवा बकरियन के गिनती सबले जादे (2.9 करोड़) बा, उहंई भेड़ 70 लाख आउर ऊंट बीस लाख बा. सभे खातिर सुलभ संसाधन के खत्म होखे से सभे मवेशी पर खराब असर पड़ल बा.
स्थिति अबही आउर नाजुक होखे वाला बा.
एगो अनुमान के हिसाब से राजस्थान आउर दोसर सात राज्य में 10,750 सर्किट किमी (सीकेएम) ट्रांसमिशन लाइन बिछावे के योजना बा. ई काम इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर स्कीम के दोसर चरण में होखी. एह योजना के आर्थिक मामलन के मंत्रिमंडल समिति (सीसीईए) ओरी से 6 जनवरी, 2022 के मंजूरी मिल चुकल बा. नयका आउर अक्षत ऊर्जा के केंद्रीय मंत्रालय (एमएनआरई) के 2021-2022 के सलाना रपट में एह बात के जिकिर कइल गइल बा.
बात खाली चराई वाला मैदान के खत्म होखे के बारे में नइखे. “आरई कंपनी जब लाइन बिछावे आवेला त सबले पहिले ऊ ओह इलाका के सभे गाछ काट देवेला. गाछ कटला से एकरा पर रहे वाला चिरई, कीड़ा-मकोड़ा, तितली, जीव-जंतु सभे समाप्त हो जाला. एकरा से पूरा पारिस्थितिक चक्र गड़बड़ा जाला. चिरई आउर कीट-पतंग के अंडा देवे के जगह भी नाश हो जाला,” स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता, पार्थ जगानी बतावत बाड़े.
सैंकड़न किमी लमहर बिजली के लाइन से हवा में रुकावट पैदा हो रहल बा. नतीजा ई बा कि हजारन के संख्या में चिरई सभ मरत बाड़ी. एह में राजस्थान के सरकारी चिरई जीआईबी के नाम भी बा. पढ़ीं: कवन खोतवा में लुकइलू तू, सोन चिरई
सौर प्लेट के आवे से इहंवा गरमी लगातार बढ़ रहल बा. भारत में गरम लहर बढ़ गइल बा, राजस्थान में रेगिस्तान के जलवायु के, सलाना तापमान बढ़ के 50 डिग्री सेल्सियस से भी जादे हो गइल बा. न्यूयॉर्क टाइम्स के जलवायु परिवर्तन से जुड़ल पोर्टल पर मौजूद जानकारी के हिसाब से अबही से 50 बरिस बाद जैसलमेर कैलेंडर में ‘बहुते जादे गरम दिन’ वाला एगो आउर महीना जुड़ जाई- ई 253 दिन से बढ़के 283 दिन हो जाई
डॉक्टर सुमित डूकिया के शब्द में सौर पैनल से निकले वाला गरमी से गाछ कटे से होखे वाला बरबादी कई गुना बढ़ गइल बा. डॉ. डूकिया एगो संरक्षण जीव वैज्ञानिक बाड़न. ऊ दशकन से ओरण सभ में आवे वाला बदलाव पर शोध कर रहल बाड़े. “शीशा के प्लेट के परावर्तन चलते इहंवा के तापमान आउर बढ़त चलल जात बा.” उनकरा हिसाब से अगिला पचास बरिस में तापमान 1 से 3 डिग्री बढ़े के आशंका बा, “बाकिर गरमी अबही तेजी से बढ़त बा. गरमी बढ़े से कीट-पतंग के स्थानीय प्रजाति, खास तौर से परागण खातिर जरूरी पतंगा तापमान बढ़े के चलते ओह इलाका के छोड़े के मजबूर बा.”
एह सभ के बावजूद, दिसंबर, 2021 में राजस्थान में छव गो आउर सोलर पार्क के मंजूरी मिल गइल. एमएनआरई के रिपोर्ट बतावत बा कि महामारी घरिया राजस्थान के अक्षत ऊर्जा (आरई) के क्षमता सबले जादे बढ़ल. साल 2021 के बस नौ महीना (मार्च से दिसंबर) में 4,245 मेगावाट ऊर्जा के उत्पादन भइल.
इहंवा के लोग एकरा एगो गुप्त कार्रवाई बतावेला: “लॉकडाउन घरिया जब पूरा दुनिया के कारोबार रुकल रहे, इहंवा काम चलत रहे,” स्थानीय कार्यकर्ता पार्थ के कहनाम बा. सोझे क्षितिज तक फइलल पवनचक्की के लाइन देखावत ऊ कहले, “देवीकोट से देगराय मंदिर तक जाए वाला ई 15 किमी लमहर रस्ता के दूनो ओरी, लॉकडाउन से पहिले कुछो ना रहे.”
ई सभ कइसे भइल, एकरा बारे में समझावत नारायण राम कहे लगले, “ऊ लोग पुलिस के लाठी संगे आइल, हमनी के इहंवा से भगइलस आउर फेरु आपन मरजी के करे लागल, गाछ काटल गइल, जमीन के चौरस कइल गइल.” ऊ रासला पंचायत में रहेले. अबही इहंवा देगराय माता मंदिर के लगे के इलाका से जुटल दोसर बूढ़ लोग संगे बइठल बाड़न. इहे मंदिर के देवी सभे ओरण के देखभाल करेली.
“हमनी ओरण के मंदिर जेका पूजनीय मानिले. हमनी के एह में गहिर आस्था बा. इहंवा हमनी के मवेशी चरेला. जंगली जनावर आउर चिरई सभ के इहे बसेरा बा. इहंवा के जलकुंड भी हमनी खातिर पूजनीय बा. एहि से ई हमनी खातिर देवी जइसन बाड़ी. ऊंट, बकरी, भेड़ सभे पानी खातिर इहंई आवेला,” ऊ कहले.
पारी रिपोर्टर जैसलमेर के जिला कलेक्टर के राय जाने के बहुते कोशिश कइली, बाकिर उनकरा से भेंट के समय ना मिल पाइल. एमएनआरई में आवे वाला सौर ऊर्जा राष्ट्रीय संस्थान से भी बात करे के कवनो सूरत ना निकलल. एमएनआरई से जब ईमेल से सवाल पूछल गइल, त रिपोर्ट के छपला तक ओकरो कवनो जवाब ना आइल.
राज्य विद्युत निगम के एगो स्थानीय अधिकार के हिसाब से एह बारे में बात करे खातिर ऊ अधिकृत नइखन. बाकिर अधिकारी ई जरूर बतलइन कि उनकरा कवनो पावर ग्रिड ओरी से कोई परियोजना, चाहे ओकर काम के रोके के संबंध में कवनो तरह के दिशा-निर्देश ना मिलल ह.
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आरई कंपनी बहुते आसानी से राजस्थान में घुस के जमीनन पर कब्जा कइलक. अइसन त औपनिवेशिक काल में देखल गइल रहे, जब वइसन सभे जमीन के ‘बंजर’ बतावल गइल रहे, जेकरा से राजस्व ना मिलत रहे. ओह घरिया भी आपन कदम के जायज ठहरावे खातिर इहे बहाना मारल गइल रहे. राजस्थान के ‘बंजर’ जमीन में अर्द्ध-शुष्क खुलल सवाना आउर घास के मैदान आवेला.
अनुभवी वैज्ञानिक आउर संरक्षणवादी लोग अइसे त, जमीन के एह तरह से गलत ‘श्रेणी में बांधे’ के सार्वजनिक रूप से विरोध कइलक. बाकिर भारत सरकार 2005 से प्रकाशित होखे वाला वेस्टलैंड एटलस में एह बारे में कवनो तरह के संशोधन करे के जरूरत ना समझलक. एह एटलस के पंचमा संस्करण छप चुकल बा, बाकिर ओकरा पूरा तरीका से अबही डाउनलोड ना कइल जा सकेला.
वेस्टलैंड एटलस 2015-16 के हिसाब से भारत के 17 प्रतिशत हिस्सा घास के मैदान बा. घास के मैदान, झाड़ी आउर कांटा वाला वन के क्षेत्र के ‘बंजर’ आउर ‘अनउपजाऊ जमीन’ के श्रेणी में रखल गइल बा.
“सूखल जमीन (शुष्क भूमि) संरक्षण, रोजी-रोटी के साधन आउर जैव विविधता के दृष्टि से उपयोगी बा, एह बात के भारत ना माने. एहि से अइसन जमीन पर्यावरण में बदलाव के, आउर ओकरा ना भरल जा सके वाला क्षति पहुंचावे के दृष्टि से एगो आसान जरिया बन जाला,” संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. अबी टी. वनक के कहनाम बा. डॉक्टर अबी घास के मैदान के एह तरीका के गलत वर्गीकरण के खिलाफ पछिला दू से जादे दशक से लड़ रहल बाड़न.
उनकर सवाल बा, “सौर संयंत्र त उहो जमीन के बंजर बना देवेला, जे पहिले से बंजर ना रहे. रउआ सोलर संयंत्र लगावे के चक्कर में एगो जिंदा पारिस्थितिक के हत्या कर देविला. बेशक एकरा से ऊर्जा के उत्पादन होखत बा, बाकिर का इहे हरित ऊर्जा बा?” उनकरा हिसाब से राजस्थान के 33 प्रतिशत जमीन खुलल प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र (ओएनई) के हिस्सा बा. ई कवनो तरह से बंजर जमीन नइखे, जइसन कि एकरा बतावल गइल बा.
नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के पर्यावरणविद एम.डी मधुसूदन संगे एके साथ लिखल गइल शोधपत्र में बतावल गइल, “भारत के 10 प्रतिशत जमीन पर ओएनई के कब्जा के बावजूद खाली 5 प्रतिशत जमीने एकर ‘प्रोटेक्टेड एरिया’ मतलब सुरक्षित क्षेत्र (पीए) में आवेला.” शोधपत्र के नाम बा, भारत के अर्द्धशुष्क सार्वजनिक प्राकृतिक पारिस्थितिकी-तंत्र क्षेत्र (पीए) आउर ओकर वितरण के मानचित्रण .
राजस्थान के इहे घास के मैदान चरवाहा लोग खातिर प्राण बा. एकरे बारे में चरवाहा जोरा राम के कहनाम बा, “सरकार हमनी के भविष्य के सत्यानाश कर रहल बा. हमनी के ऊंट ना बचिहन, त हमनी के वंश भी खत्म हो जाई.”
बात तब आउर बिगड़ गइल जब साल 1999 में, पहिले जेकर नाम बंजर क्षेत्र विकास विभाग रहे, के बदल के भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) कर देहल गइल.
वनक कहले, “सरकार के पर्यावरण आउर जमीन (लैंडस्केप) के बारे में समझ आउर सोच तकनीक पर आधारित बा. ऊ हर चीज के डिजाइन करे आउर समरूप बनावे के कोशिश कर रहल बा.” वनक अशोका ट्र्स्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड दी एनवायरनमेंट (एटीआरईई) में प्रोफेसर बानी. उनकरा हिसाब से, “स्थानीय पर्यावरण के ध्यान नइखे रखल जात. जमीन संगे आम लोग के का रिश्ता बा, ओकर अनदेखी हो रहल बा.”
सौंटा गांव के कमल कुंवर बतइले, “अब ओरण से केर सांगड़ी गायब हो गइल बा.” कोई 30 बरिस के कंवर बहुत जादे गोस्सा में बाड़न. स्थानीय केर लकड़ी के बिना सोचले-समझले जरावे से उनकर मनपसंद बेरी आउर फली सभ मिलल दुर्लभ हो गइल बा.
डीओएलआर के चलावल गइल अभियान में, “गांव-देहात में रोजगार के मौका बढ़ावे” जइसन कार्यक्रम शामिल कइल गइल. बाकिर भइल उलटा. आरई कंपनी के जमीन के अधिकार देवे, चारागाह के आम उपयोग पर रोक लगावे आउर गैर वनीय लकड़ी के उत्पाद (एनटीएफपी) के पहुंच से दूर कर देवे से अभियान के ठेस लागल.
कुंदन सिंह जैसलमेर के मोकला गांव में रहे वाला एगो पशुपालक बाड़न. पच्चीस बरिस के कुंदन के कहनाम बा कि उनकर गांव में कोई 30 गो परिवार होई. सभे कोई खेती आउर पशुपालन के काम करेला. अब ऊ लोग खातिर आपन मवेशी के चारा जुटावल भारी आफत हो गइल बा. “ऊ लोग (आरई कंपनी) मैदान के घेर के अहाता बना देले बा. हमनी के मवेशी सभ के घास चरे खातिर भीतरी ना जाए देवेला.”
जैसलमेर जिला के 87 प्रतिशत हिस्सा गांव में बसल बा. इहंवा रहे वाला लगभग 60 प्रतिशत लोग खेती-खलिहानी के काम करेला. ऊ लोग मवेशी भी रखले बा. सुमेर सिंह कहले, “इलाका में सभे के घर में मवेशी बा. हमहूं आपन मवेशी सभ के पेट भर के खिला ना पाइले.”
इहंवा के सभे जनावर जादे करके घास खा के जिएला. राजस्थान में 375 किसिम के घास पाइल जाला. ई सभ जानकारी साल 2014 के जून में छपल पैटर्न ऑफ प्लॉट स्पीसिज डाइवर्सिटी नाम के एगो शोधपत्र में मिल जाई. राजस्थान में होखे वाला घास बहुत कम बरसात में भी जिंदा आउर ताजा रहेला.
अइसे त जब आरई कंपनी इहंवा के भूमि पर कब्जा करे आइल, “इंहवा के माटी गड़बड़ा गइल. इहंवा जे पौधा के झाड़ी सभ बा, एक-एक झाड़ी केतना-केतना दशक पुरान बा. आउर पारिस्थितिक तंत्र भी सैंकड़न साल पुरान बा. रउआ एह सभे संगे छेड़छाड़ ना कर सकिले! ई सभ के हटा देवे से मरुस्थलीकरण के आउर बढ़ावा मिली,” वनक चिंतित होकर कहत बाड़न.
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट, 2021 के हिसाब से राजस्थान में 3.4 करोड़ हेक्टेयर जमीन बा. बाकिर एह में से मात्र 8 प्रतिशत जमीन ही वनक्षेत्र के रूप में पहिचानल गइल बा. असल बात ई बा कि जब उपग्रह से जानकारी जुटावल जाला, त खाली गाछ से ढंकल जमीन के ही ‘वनक्षेत्र’ मानल जाला.
राजस्थान के जंगल अनगिनत किसिम के घास से भरल बा. एह घास पर तरह-तरह के प्रजाति के जीव-जंतु आउर मवेशी लोग, जे अब लुप्त होखे के कगार पर बा, आश्रित रहेला. लेसर प्लोरिकन, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, इंडियन ग्रे वुल्फ, गोल्डन जैकाल, इंडियन फॉक्स, इंडियन गजेल, ब्लैकबक, स्ट्राइप्ड हाइना, कैरेकल, डेजर्ट कैट, इंडियन हेजहॉग आउर दोसरे कइएक तरह के प्रजाति के नाम लेवल जा सकेला जेकर गिनती तेजी से कम हो रहल बा. एकरा अलावा डेजर्ट मॉनिटर लिजार्ड आउर स्पाइनी-टेल्ड लिजार्ड जइसन प्रजाति के भी तत्काल संरक्षित करे के जरूरत बा.
संयुक्त राष्ट्र 2021-2030 के दशक के पारिस्थितिक तंत्र बहाली दशक के रूप में ऐलान कइले बा. एकरा हिसाब से, “पारिस्थितिक तंत्र के बचावे आउर बहाल करे से मतलब तेजी से खत्म हो रहल पारिस्थितिक तंत्र के बचावे में सहयोग कइल बा. अबले जे पारिस्थितिक तंत्र संयोग से बचल रह गइल बा, ओकरा बचावल भी खास मकसद बा.” आईयूसीएन के नेचर 2023 कार्यक्रम में ‘पारिस्थितिक तंत्र के बहाली’ एकर प्राथमिकता के सूची में सबले ऊपर रखल गइल बा.
भारत सरकार ‘घास के मैदान’ आउर ‘खुलल वन पारिस्थितिक’ के बचावे खातिर चीता के बिदेश से मंगवावत बा. जनवरी 2022 में 224 करोड़ के लागत वाला चीता आयात योजना के मुनादी कइल गइल रहे. अफसोस कि चीता के अपना के बचावे में बहुते मुस्किल आइल. बिदेस से आइल 20 में से 5 गो चीता के बचावल ना जा सकल. इहे ना, इहंवा पैदा भइल तीन गो चीता के बच्चा के भी नुकसान हो गइल.
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ओरण के मामला में साल 2018 में एगो नीमन खबर आइल रहे. ओह बरिस सर्वोच्च न्यायालय के एगो फैसला आइल. एह में कहल गइल, “सूखल (शुष्क) इलाका में बहुते कम हरियाली होखेला. एहि से घास के मैदान आउर ओह पारिस्थितिक तंत्र के वनक्षेत्र के दरजा मिले के चाहीं.”
बाकिर असलियत कुछो आउर बा. आरई कंपनी संगे दनादन अनुबंध कइल जा रहल बा. इहंवा के एगो सामाजिक कार्यकर्ता अमन सिंह बाड़े. ऊ एह वन के वैध मनवावे खातिर लड़ाई लड़ रहल बाड़न. अमन एह मामला में “हस्तक्षेप आउर निर्देश” के मांग कइले बाड़न आउर एह खातिर सर्वोच्च न्यायाल में आवेदन भी देले बाड़न. न्यायालय एकर जवाब में 13 जनवरी 2023 के एगो नोटिस जारी कइले बा आउर राजस्थान सरकार के कार्रवाई करे के कहले बा.
“सरकार लगे सभे ओरण के बारे में पर्याप्त जानकारी नइखे. राजस्व के कागज भी अपडेट नइखे. बहुते ओरण के त एह कागज में नामे नइखे. ऊ सभ पर कब्जा कइल जा चुकल बा,” सिंह बतइले. अमन सिंह कृषि अवाम पारिस्थितिकी विकास संगठन के संस्थापक बानी. संगठन सामूहिक जमीन, खास करके ओरण के फेरु से जिंदा करे के बीड़ा उठवले बा.
उनकर कहनाम बा कि सभे ओरण के ‘वन’ के दरजा दे के कानूनी रूप से सुरक्षित करे के चाहीं. तबे एकरा खनन, सौर आउर पवन संयंत्र, शहरीकरण आउर दोसर खतरा से बचावल जा सकेला. ऊ आपन बात के निचोड़ निकालत कहले, “जदि ओरण के राजस्व खातिर बंजर भूमि के श्रेणी में रहे देहल गइल, तब दोसरा मकसद से ओकरा आवंटित करे के खतरा मंडरात रही.”
राजस्थान सौर ऊर्जा नीति, 2019 दस्तावेज सौर ऊर्जा संयंत्र आउर कंपनी सभ के खेती जोग जमीन के, हदबंदी के सीमा से आगू जाके, अधिग्रहण करे के अधिकार देले बा. एकर नतीजा होई कि ओरण पर स्थानीय निवासी के परंपरागत दावेदारी पहिले से कमजोर हो जाई. आरई कंपनी आउर सरकार दुनो के एके मकसद बा. आउर अब भूमि रूपांतरण पर कवनो पाबंदी नइखे रह गइल.
“भारत के पर्यावरण से जुड़ल कानून हरित ऊर्जा के कवनो पड़ताल नइखे करत,” डॉ सुमित डूकिया कहले. उहां के वन्यजीव जैव वैज्ञानिक आउर नई दिल्ली के गुरु गोबिन्द सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर बानी. उनकर कहनाम बा, “बाकिर सरकारो के हाथ में कुछ नइखे, काहे कि कानून भी आरई के हक में बा.”
डूकिया आउर पार्थ आरई संयंत्र से भारी मात्रा में निकले वाला नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा के लेके चिंता में बाड़न. “आरई कंपनी के 30 बरिस खातिर ई पट्टा देहल गइल बा. बाकिर पवनचक्की आउर सोलर पैनल के उमिर 25 बरिस होखेला. एकरा के खत्म करी आउर ई काम कहंवा होई,” डूकिया के सवाल बा.
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“सिर सांठे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण (जदि जान देके भी एगो गाछ के बचावल जा सके, त ई सस्ता सौदा बा).” राधेश्याम बिश्नोई एगो स्थानीय कहावत कहत बाड़े “जेकरा से गाछ संगे हमनी के संबंध पता चलेला.” उहां के धोलिया के रहे वाला बानी आउर भादरिया ओरण लगे ही उनकर ठिकाना बा. बिश्नोई, ग्रेट इंडयन बस्टर्ड, जेकरा इलाका के लोग गोडवण कहेला, के बचावे खातिर उठे वाला एगो ऊंच आउर मजबूत आवाज बाड़े.
“कोई 300 बरिस होखत होई जब जोधपुर के राजा एगो किला बनावे के निर्णय लेले. ऊ आपन मंत्री के लगे के गांव खेतोलोई से लकड़ी लावे के आदेश देले. मंत्री आदेश के पालन कइले आउर सैनिक सभ के लकड़ी लावे भेजले. बाकिर जब सैनिक लोग उहंवा पहुंचल त बिश्नोई समुदाय के लोग गाछ के डाढ़ से चिपक गइल आउर काटे से रोक देलक. मंत्री मुनादी कइलन, ‘गाछ आउर एकरा डाढ़ से जेतना लोग चिपकल बा, सभे के काट द’.”
स्थानीय किंवदंती के हिसाब से अमृता देवी के अधीन सभे ग्रामीण लोग एक-एक गाछ के गोद लेलक. बाकिर सैनिक लोग कवनो परवाह ना कइलक आउर 363 लोग मारल गइल.
“पर्यावरण के बचावे खातिर आपन जान देवे के उहे जज्बा हमनी के भीतर आजो जिंदा बा,” ऊ कहले.
सुमेर सिंह के हिसाब से, “देगराय के 60,000 बीघा जमीन में फइलल ओरण में से 24,000 बीघा जमीन एगो मंदिर के ट्रस्ट के नाम बा. बाकि बचल 36,000 बीघा के सरकार साल 2004 में पवन ऊर्जा कंपनी के दे देलक. बाकिर हमनी एह खातिर लड़ाई लड़नी आउर आजो डटल बानी.”
उनकर कहनाम बा कि जैसलमेर में दोसरा जगह के छोट-छोट ओरण के वजूद बचावे के त सवाले नइखे पैदा होखत. बंजर जमीन के रूप में पहचान होखला चलते आरई कंपनी सभ ओरण के आसानी से आपन निशाना बना रहल बा.
“ई जमीन पथरीला लागत बा,” सौंटा में आपन खेत पर एक नजर घुमावत ऊ कहले. “बाकिर हमनी इहंवा सबसे उन्नत आउर पौष्टिक किसिम के बाजरा उगावेनी.” मोकला गांव के लगे के डोंगर पीर जी ओरण में केजरी, केर, जाल आउर बेर के छिटपुट गाछ बा. ई इहंवा के जनावर आउर इंसान दुनो खातिर जरूरी आहार बा. इहंवा के व्यंजन में जायका भी इहे सभ से आवेला.
‘बंजर जमीन’ जइसन जमीन के बंटवारा पर सुमेर सिंह के संदेह बा. “एह जमीन के इहंवा के भूमिहीन लोग के देके देखीं, जेकरा पास रोजी-रोटी के कवनो दोसर साधन नइखे. ई जमीन ओह लोग के हवाले कर दीहीं. ऊ लोग एह पर रागी आउर बाजरा उगाई, आउर अपना संगे दोसरो के पेट भरके देखाई.”
मांगीलाल के जैसलमेर आउर खेतोलोई के बीच हाईवे पर एगो छोट दोकान बा. ऊ कहले, “हमनी गरीब बानी हुजूर. जदि केहू हमनी के जमीन के बदले पइसा दीही, त कइसे मना कर सकिले?”
स्टोरी के रिपोर्टर एह रपट में सहायता करे खातिर बायोडाईवर्सिटी कोलैबरेटिव के सदस्य डॉ. रवि चेल्लम के आभार प्रकट करत बाड़ी.
अनुवाद: स्वर्ण कांता