सिद्दू गावड़े जब लरिकाई में स्कूल जाए के सोचे लगले, उनकर माई-बाबूजी उनकरा हाथ में 50 ठो भेड़ के पगहा धरा देलक. उनकर परिवार के आउर दोस्त सभे के उनकरा से इहे उम्मीद रहे कि ऊ स्कूल ना जाके, बाप-दादा जइसन चरवाही करिहन. आउर इहे भइल. ऊ कबो स्कूल के मुंह ना देख पइलन.

गावड़े धनगर समुदाय से बाड़न. एह समुदाय के लोग बकरी आउर भेड़ पालेला. महाराष्ट्र में ओह लोग के बंजारा जनजाति के रूप में पहचानल जाला. ऊ लोग साल के छव-छव महीना, चाहे एकरो से जादे बखत ले अपना घर से सैंकड़न किलोमीटर दूर मवेशी चरावत रहेला.

एक दिन गावड़े उत्तरी कर्नाटक के कारदगा गांव में आपन घर से इहे कोई सौ किलोमीटर दूर भेड़ चरावत रहस. चरावत-चरावत ऊ लगे के एगो दोसर चरवाहा के तागा से गोल-गोल छल्ला बनावत देखलन. “हमरा बहुते नीमन लागल.” ओह बूढ़ धनगर (चरवाहा) के इयाद करत ऊ बतावे लगलन कि कइसे ऊ उज्जर सूती तागा से बनल छल्ला के मदद से एगो जाली (गोल आकार के झोरा) तइयार करत रहस. झोरा (झोला) बीनत-बीनत तागा के रंग भी मटमैला, आउर फेरु भुअर पड़ गइल रहे.

संजोग से भइल एह भेंट छोट उमिर के गावड़े के जाली बनावे के लुर सीखे खातिर प्रेरित कइलक. ई लुर उनकरा संगे अगिला 74 बरिस ले आजो जिंदा बा.

जाली एगो सममितीय (सिमेट्रिकल) झोरा होखेला. सूती तागा से तइयार होखे वाला एह जाली के कान्हा से लटकावल जाला. “धनगर लोग जब लमहर यात्रा पर जाला, त एकरा जरूर आपन कान्हा पर लटका के निकलेला. एकरा में 10 गो भाकरी आ एगो जोड़ी कपड़ा आराम से समा जाला. केतना धनगर लोग त एह में पान, सुपाड़ी, तंबाकू आउर चूना भी लेके चलेला.”

जाली एगो खास आउर निश्चित माप के होखेला, एहि से एकरा बनावे खातिर खास तरह के कौशल के जरूरत पड़ेला. बाकिर अचरज के बात बा कि एकरा बनावे खातिर चरवाहा लोग कवनो मापनी काम में ना लावे. “ई एक बित्ता आउर चार अंगुर लमहर होखेला,” सिद्दू बतइलन. जाली एतना टिकाऊ होखेला कि 10 बरिस ले आराम से चल सकेला. “बस एकरा मूस सभ से आउर बरसात में भींजे से बचाईं.”

Siddu Gavade, a Dhangar shepherd, learnt to weave jalis by watching another, older Dhangar. These days Siddu spends time farming; he quit the ancestral occupation of rearing sheep and goats a while ago
PHOTO • Sanket Jain
Siddu Gavade, a Dhangar shepherd, learnt to weave jalis by watching another, older Dhangar. These days Siddu spends time farming; he quit the ancestral occupation of rearing sheep and goats a while ago
PHOTO • Sanket Jain

धनगर चरवाहा लोग जाली बनावे के लुर आपन बूढ़-पुरनिया से सीखले बा. आजकल सिद्दू के पूरा दिन खेत पर काम करे में बितेला. कुछ बखत से ऊ बकरी आउर भेड़ चरावे के आपन बाप-दादा के काम छोड़ देले बाड़न

Siddu shows how he measures the jali using his palm and four fingers (left); he doesn't need a measure to get the dimensions right. A bag (right) that has been chewed by rodents
PHOTO • Sanket Jain
Siddu shows how he measures the jali using his palm and four fingers (left); he doesn't need a measure to get the dimensions right. A bag (right) that has been chewed by rodents
PHOTO • Sanket Jain

सिद्दू आपन बित्ता आउर चार अंगुरी (बावां) से जाली के माप लेके देखावत बाड़न. सही आकार में बीने खातिर उनकरा कवनो मापनी के जरूरत ना पड़े. दहिना: एगो झोरा के मूस कुतर देले बा

कारदगा में आज एगो सिद्दुए बचल बाड़न, जिनका सूती तागा से जाली बनावे आवेला. ऊ कहले, “कन्नड़ में एकड़ा जालगी कहल जाला.” कारदगा महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर बसल बेलगावी जिला के चिकोड़ी (चाहे चिक्कोड़ी) तालुका लगे पड़ेला. गांव के आबादी लगभग 9,000 बा. इहंवा के लोग मराठी आ कन्नड़ दुनो भाषा बोलेला.

आपन लरिकाई में, सिद्दू सूती (सूती तागा) लाद के लावे वाला ट्रक के बाट जोहत रहस. ऊ बतावत बाड़न, “हवा जोर-जोर से बहे चलते, लगे से जा रहल ट्रक से तागा गिर-गिर जाए, आउर हम ओकरा उठा लेत रहीं.” छोट रहस, त ऊ तागा सभ से गिट्ठा (गांठ) बनावे के खेला खेलत रहस. “एकरा बनावे के लुर हम एगो बूढ़ म्हातारा धनगर के एकरा बनावत देख-देख के सीखनी.”

पहिले पहिले त सिद्दू खाली फंदे बनावे के सीख सकले. गिट्ठा बनावे के जब कोसिस कइलन, त अपने से ना आइल. ऊ कहले, “आखिर में हम आपन भेड़ आउर कुकुर संगे हजारन किमी के यात्रा कइनी, तब जा के ई मुस्किल विद्या सीख पइनी. असल कारीगरी एह में बा कि गोल-गोल फंदा सभ एक जइसन दूरी पर बनावल जाव. आउर जाली जबले पूरा तइयार होखे तबले ई अइसहीं बनल रहो.” आश्चर्य के बात बा कि कारीगर लोग एकरा बनावे खातिर कवनो तरह के सलाई-कांटा काम में ना लावे.

तागा पातर होखेला, एहि से ओकरा से गिट्ठा ठीक से ना बने. सिद्दू सबले पहिले तागा मोटा करे के काम करेलन. एकरा खातिर ऊ खास जुगत लगइलन. कवनो बड़ लच्छा से 20 फीट के लगभग एगो उज्जर तागा लेवेलन. ओकरा लकड़ी के एगो पुरान औजार से बांध देवेलन. एकरा तकली, चाहे मराठी में भिंगरी कहल जाला. तकली 25 सेमी लमहर होखेला आउर एकर एगो सिरा मशरूम जइसन आधा गोला होखेला. एकर दोसर सिरा नुकीला होखेला.

एकरा बाद ऊ 50 बरिस पुरान बबूल के लकड़ी से बनल तकली के आपन दहिना गोड़ पर रख के जोर से घुमावेलन. अब घूमत तकली के बिना रोकले ऊ एकरा आपन बावां हाथ से उठा के तागा के खींचे लागेलन. “तागा मोट करे के ई पुरान नुस्खा बा,” ऊ बतइलन. कोई 20 फीट के पातर तागा मोट करे में दू घंटा लाग जाला.

सिद्दू तागा के मोट करे के एह पुरान नुस्खा के अबहियो काम में लावेलन. काहेकि मोट तागा महंगा पड़ेला. “तीन पदराचा करावा लागतोय (तीन गो तागा मिला के एगो तागा बनेला).” दोसर बात ई बा कि गोड़ पर तकली धर के घुमावे के चलते उहंवा फूल जाला. “मग काय होतंय, दोन दिवस आराम करायचा (त एकरा से का हो जाई? बस दू दिन आराम करे के पड़ेला, आउर का),” ऊ हंसे लगलन.

Siddu uses cotton thread to make the jali . He wraps around 20 feet of thread around the wooden takli , which he rotates against his leg to effectively roll and thicken the thread. The repeated friction is abrasive and inflames the skin
PHOTO • Sanket Jain
Siddu uses cotton thread to make the jali . He wraps around 20 feet of thread around the wooden takli , which he rotates against his leg to effectively roll and thicken the thread. The repeated friction is abrasive and inflames the skin
PHOTO • Sanket Jain

सिद्दू सूती तागा से जाली बनावेलन. ऊ लकड़ी के तकली पर 20 फीट लमहर तागा पहिले लपेटेलन, एकरा बाद आपन गोड़ पर एकरा रख के नीचे से ऊपर घुमावेलन. अइसन करे से तागा मोट होखत जाला. बाकिर ई काम में लगातार दबाव पड़े से गोड़ के ओतना हिस्सा फूल जाला

There is a particular way to hold the takli and Siddu has mastered it over the years: 'In case it's not held properly, the thread doesn't become thick'
PHOTO • Sanket Jain

तकली एगो खास तरीका से पकड़ल जाला. एह में बरिसन के आपन अनुभव चलते सिद्दू के महारत हासिल हो गइल बा: ‘जदि रउआ एकरा सही से ना पकड़नी, त तागा मोटा ना हो पाई’

आजकल तकली भेंटाइल मुस्किल हो गइल बा, सिद्दू कहले, “नया बढ़ई लोग एकरा बनावे ना जाने.” 1970 के दशक के सुरु में सिद्दू एगो मिस्त्री से 50 रुपइया में तकली कीनले रहस. ओह घरिया ई रकम बहुते जादे रहे. तब नीमन किसिम के एक किलो चाउर बस एक रुपइया में मिल जात रहे.

जाली बनावे खातिर सिद्दू के मोटा-मोटी दू किलो सूती तागा कीने के पड़ेला. एकरा बाद तागा के मोटाई आउर भारीपन के हिसाब से एकरा से कइएक फीट लमहर तागा तइयार कइल जाला. कुछ बरिस पहिले ले ऊ नौ किमी दूर महाराष्ट्र के रेंदाल गांव से सूती तागा कीनत रहस. “अब त तागा हमनी के आपने गांव में मिल जाला. किसिम के हिसाब से एकर दाम 80 से 100 रुपइया किलो पड़ेला.” ऊ बतइलन कि 90 के दशक में इहे तागा बस 20 रुपइया किलो मिलत रहे आउर एहि भाव से ऊ दू किलो तागा खरीदत रहस.

उनकर कहनाम बा कि जाली बीने के काम पारंपरिक रूप से मरद लोग करेला. बाकिर उनक स्वर्गवासी घरवाली मायव्वा तागा मोट करे में जरूर उनकर मदद करत रहस. “ऊ बड़ी लुरगर रहस,” सिद्दू बतइलन. मायव्वा के किडनी खराब होखे से, ऊ साल 2016 में चल बसली. ऊ बतइलन, “उनकर इलाज सही ना भइल रहे. हमनी अस्थमा ठीक करावे गइल रहीं, बाकिर गलत दवाई के साइड इफेक्ट चलते उनकर किडनी खराब हो गइल.”

सिद्दू कहले, उनकर स्वर्गवासी घरवाली जइसन दोसरो मेहरारू लोग भेड़ के केस (बाल) काटे आउर ओकरा से ऊन निकाले में माहिर होखेला. धनगर लोग एह ऊन के सनगर लोग के दे देवेला. सनगर करघा (पिट लूम) पर ऊन से घोंगड़ी (ऊनी कंबल) तइयार करेला. पिट लूम गड्ढ़ा में लगावल एगो करघा होखेला. एकरा पर बुनकर लोग पैडल के मदद से बीने के काम करेला.

जरूरत आउर बखत के हिसाब से सिद्दू तागा के मोटाई तय करेलन. एकरा बाद अंगुरी से एकरा बीनल जाला. बीने के काम सबले मुस्किल होखेला. तागा के फंदा बना-बना के एगो खास तरीका से ओह में गिट्ठा लगावल जाला. एगो झोरा खातिर 25 फंदा वाला चेन बनावल जाला आउर फेरु ओकरा एक जइसन दूरी पर एक-दोसरा से जोड़ देवल जाला.

PHOTO • Sanket Jain
Right: Every knot Siddu makes is equal in size. Even a slight error means the jali won't look as good.
PHOTO • Sanket Jain

बावां: बबूल के लकड़ी से बनल तकली 50 बरिस पहिले जब खरीदाइल रहे, एकर दाम 50 किली गेहूं के बराबर रहे. आज तकली तइयार करे वाला कवनो कारीगर नइखे बचल. दहिना: सिद्दू के बनावल एक-एक गिट्ठा एक बराबर होखेला. एकरा में तनिको चूक भइल, कि जाली के सुंदरता खत्म हो जाई

“काम के सुरुआत कइल आउर गोल-गोल फंदा बनावल सबले मुस्किल होखेला.” ऊ बतइलन कि गांव के दू-तीन गो धनगर लोग जाली बनावे के काम जानेला, बाकिर “ऊ लोग गोल आकार के फंदा बनावे में मात खा जाला, आउर जाली बनावे खातिर इहे बनावल पहिल काम होखेला. एहि से, ऊ लोग अब ई काम त्याग देले बा.”

सिद्दू के गोल आकार के फंदा बनावे में 14 घंटा ले लाग जाला. “जदि तनिको चूक भइल, त फेरु से सुरु करे के पड़ी.” एगो जाली बनावे में कमो ना, त 20 दिन त लागिए जाला. सिद्दू रोज मोटा-मोटी तीन घंटा एह काम में लगावेलन. ऊ 60 घंटा में 300 फीट तागा बीन के तइयार कर लेवेलन, उनकर एक एक गिट्ठा सही नाप के होखेला. सिद्दू आजकल खेती-खलिहानी के काम में जादे ब्यस्त बाड़न. पछिला सत्तर बरिस में ऊ केतना धनगर लोग खातिर 100 से भी जादे जाली बना चुकल बाड़न. एह कारीगरी में मास्टरी हासिल करे खातिर ऊ अबले एकरा खातिर आपन 6,000 घंटा खरचा कर चुकल होखिहन.

सिद्दू के लोग प्यार से ‘पटकर म्हातारे’ (पगड़ी वाला बुजुर्ग) भी पुकारेला. ऊ रोज उज्जर पगड़ी बांधेलन.

एतना उमिरगर होखला के बादो, ऊ पछिला नौ बरिस से नामी वारी उत्सव के मउका पर विठोबा मंदिर तक पैदल यात्रा करेलन. मंदिर महाराष्ट्र के सोलापुर के फंडरपुर गांव में पड़ेला. उनकर गांव से कोई 350 किमी दूर बा. महाराष्ट्र आउर उत्तरी कर्नाटक के बहुते जिला में श्रद्धालु लोग आषाढ़ (जून/जुलाई) आ कार्तिक (दीवाली के बाद अक्टूबर/नवंबर) में टोली बनाके जाला. एह यात्रा में ऊ भक्ति गीत, अभंग आउर संत तुकाराम, ज्ञानेश्वर आ नामदेव के कविता गावत जाएलन.

“हम कवनो सवारी ना लीहीं. विठोबा आहे माइयासोबत. काहीहीं होत नाहीं (हम जानत बानी, विट्ठोबा हमरा साथे बाड़न, आउर हमरा कुछो ना होई),” ऊ कहले. एह यात्रा के पूरा करे में उनकरा 12 दिन लोगेला. यात्रा के दौरान जहां कहूं उनकरा ठहर के, विश्राम करे के मौका भेंटाला, ऊ आपन सूती तागा निकाल लेवेलन आउर फंदा तइयार करे लाग जालन.

सिद्दू के बाऊजी, स्वर्गवासी बालू भी जाली बनावे के काम करत रहस. अब चूंकि जाली बनावे वाला दोसर कवनो कारीगर नइखे बचल, त धनगर लोग कपड़ा के झोरा से काम चलावत बा. सिद्दू के कहनाम बा, “जाली बनावे में जेतना मिहनत, बखत आउर कउड़ी (पइसा) खरचा होखेला, ओह हिसाब से त लागेला कि अब एह कला के जिंदा रखल कठिन बा.” सूत खरीदे में उनकर कोई 200 रुपइया खरचा हो जाला. जबकि एगो जाली खातिर सिरिफ 250 से 300 रुपइया मिलेला. “काहीही उपयोग नाही (एकर कोई मतलब नइखे),” ऊ आपन मन के बात कहले.

'The most difficult part is starting and making the loops in a circular form,' says Siddu. Making these loops requires a lot of patience and focus
PHOTO • Sanket Jain
'The most difficult part is starting and making the loops in a circular form,' says Siddu. Making these loops requires a lot of patience and focus
PHOTO • Sanket Jain

‘एकरा सुरु कइल आउर गोल आकार के फंदा बनावल सबले कठिन काम बा,’ सिद्दू कहले. फंदा बनावे में बहुते धीरज आउर ध्यान लगावे के पड़ेला

Left: After spending over seven decades mastering the art, Siddu is renowned for making symmetrical jalis and ensuring every loop and knot is of the same size.
PHOTO • Sanket Jain
Right: He shows the beginning stages of making a jali and the final object.
PHOTO • Sanket Jain

बावां: एह कला में 70 दशक लगवला के बाद, सिद्दू के अब एकरा में महारत हासिल हो गइल बा. आज जाली बीने के काम में उनकर एगो पहचान बा. एक-एक फंदा लगावे आउर गिट्ठा बांधे में उनकर कवनो जाड़ नइखे. दहिना: जाली बनावे के सुरुआती काम आउर एगो तइयार जाली देखावत सिद्दू

सिद्दू के तीन गो लइका आ एगो लइकी बाड़ी. उनकर लइका मल्लप्पा (50) आउर कल्लप्पा (35) अब भेड़ चरावे ना जास. ऊ लोग आपन एक-एक एकड़ के खेत में खेती करेला. उहंई, बालू (45) खेती करेलन आउर संगे-संगे 50 गो भेड़न के झुंड संगे दूर-दूर ले यात्रा करेलन. कोई 30 बरिस के उनकर लइकी शाना के बियाह हो गइल बा, आउर ऊ घर संभारेली.

उनकर कवनो लरिका-फरिका एह कला में रुचि ना देखइलन. “शिकली बी नाहीत, त्यांना जमत बी नाही आणि त्यांनी डोस्कं पण घातलं नाही (ऊ लोग एकरा ना त कबो सीखल, ना सीखे के कवनो कोसिस कइलक),” ऊ एक सांस में कह गइलन. लोग उनकर काम बहुते ध्यान से देखेला, बाकिर सीखे खातिर केहू आगू ना आवे.

फंदा बनावल बहुते आसान लागेला, बाकिर अइसन बा ना. केतना बेड़ा सिद्दू के ई काम चलते बहुते तकलीफ से गुजरे के पड़ेला. “हाताला मुंग्या येतात (सूइया जइसन चुभत रहेला),” ऊ कहले. जाली के काम करत-करत उनकर पीठ में दरद रहे लालग बा, आउर आंख के भी परेसानी रहेला. कुछ बरिस पहिले उनकर दुनो आंख में मोतियाबिंद के ऑपरेशन हो चुकल बा. चश्मो लाग गइल बा. एहि चलते अब ऊ पहले जेतना फुरती से काम ना कर पावेलन. बाकिर एह कला के जिंदा रखे के उनकर जुनून अबले कायम बा.

साल 2022 के जनवरी में ग्रास एंड फोरेज में भारत के चारा उत्पादन पर एगो शोध पत्र छपल. एह शोध पत्र के हिसाब से देस में हरियर चारा के संगे-संगे मवेशी सभ के दाना-पानी आउर फसल के सूखल अवशेष के कमी हो गइल बा. एकरा से मवेशी सभ खातिर गंभीर चारा संकट पैदा हो गइल बा.

दोसर कइएक परेसानी संगे, चारा के अभाव होखे से गांव में अब कुछेक धनगर लोग बकरी आउर भेड़ पाले लागल बा. “पछिला 5-7 बरिस में हमनी के अनगिनत भेड़ आउर बकरी के नुकसान भइल बा. ई सभ किसान लोग के खर-पतवार आउर कीटनाशन दवाई के अंधाधुंध इस्तेमाल चलते भइल बा,” ऊ कहले. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के हिसाब से अकेला कर्नाटक के किसान लोग 2022-23 के बीच 1,669 मीट्रिक टन रसायनिक कीटनाशक के इस्तेमल कइलक साल 2018-19 में ई आंकड़ा 1,524 मीट्रिक टन रहे.

Left: Siddu's wife, the late Mayavva, had mastered the skill of shearing sheep and making woolen threads.
PHOTO • Sanket Jain
Right: Siddu spends time with his grandson in their house in Karadaga village, Belagavi.
PHOTO • Sanket Jain

बावां: सिद्दू के धरमपत्नी स्वर्गवासी मायव्वा भेड़ के रोवां काटे आउर ओकरा से ऊन बनावे में माहिर रहस. दहिना: सिद्दू, बेलगावी के कारदगा गांव के आपन घर में आपन पोता संगे

The shepherd proudly shows us the jali which took him about 60 hours to make.
PHOTO • Sanket Jain

बूढ़ चरवाहा हमनी के बहुते गर्व से आपन जाली देखवलन. एकरा बनावे में उनकरा 60 घंटा लाग गइल

उनकर मानल जाव, त भेड़-बकरी पोसल आउर चरावल बहुते महंग काम हो गइल बा. मवेशी सभ के इलाज में जवन खरचा आवेला ओकरा पर केकरो ध्यान ना जाए. “भेड़ आउर बकरी सभ बेर-बेर बेमार पड़ेला. एहि से हर साल ओह लोग के दवाई आउर सूइया पर कोई 20,000 रुपइया लाग जाला.”

उनकरा हिसाब से भेड़ के हर बरिस छव गो टीका लागल जरूरी होखेला. “भेड़ जिंदा रही, तबे हमनी पइसा कमा सकिले.” एकरा अलावे, एह इलाका के किसान लोग आपन एक-एक इंच जमीन पर ऊंख उगावेला. साल 2021-2022 के बीच, भारत में 500 मिलियन मीट्रिक टन से भी जादे ऊंख के उत्पादन भइल आउर ऊ दुनिया के सबले बड़ ऊंख उगावे आउर खपत करे वाला बन गइल.

सिद्दू कोई बीसेक बरिस पहिलहीं भेड़-बकरी पालल बंद कर देले रहस. ऊ 50 से भी जादे मवेशी के आपन लइका लोग के बीच बांट देले रहस. ऊ बतावत बाड़न कि बरसात में देरी चलते कइसे खेती करे में दिक्कत होखत रहे. “एहि बरिस जून से जुलाई के बीच पानी ना बरसे से हमार तीन एकड़ जमीन बेकार पड़ल रहल. पड़ोसी लोग के मदद से केहूंगे मूंगफली उगा पइनी.”

लू के आफत बढ़ला आउर बिना रुके पानी पड़ला चलते खेती-बारी में बहुते चुनौती हो गइल बा. “पहिले माई-बाप आपन लरिकन खातिर केतना भेड़-बकरी छोड़ के जात रहे कि ऊ लोग के भविष्य सुरक्षित रहो. बाकिर अब समय एतना बदल गइल बा कि केहू मुफत में भी अपना इहंवा मवेशी रखे के तइयार नइखे.”

संकेत जैन के गांव-देहात के कारीगर पर लिखल जा रहल कड़ी के हिस्सा, एह स्टोरी के मृणालिनी मुखर्जी फाउंडेशन के सहयोग से तइयार कइल गइल बा.

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Sanket Jain

ସାଙ୍କେତ ଜୈନ ମହାରାଷ୍ଟ୍ରର କୋହ୍ଲାପୁରରେ ଅବସ୍ଥାପିତ ଜଣେ ନିରପେକ୍ଷ ସାମ୍ବାଦିକ । ସେ ୨୦୨୨ର ଜଣେ ବରିଷ୍ଠ ପରୀ ସଦସ୍ୟ ଏବଂ ୨୦୧୯ର ଜଣେ ପରୀ ସଦସ୍ୟ ।

ଏହାଙ୍କ ଲିଖିତ ଅନ୍ୟ ବିଷୟଗୁଡିକ Sanket Jain
Photo Editor : Binaifer Bharucha

ବିନଇଫର୍ ଭାରୁକା ମୁମ୍ବାଇ ଅଞ୍ଚଳର ଜଣେ ସ୍ୱାଧୀନ ଫଟୋଗ୍ରାଫର, ଏବଂ ପରୀର ଫଟୋ ଏଡିଟର୍

ଏହାଙ୍କ ଲିଖିତ ଅନ୍ୟ ବିଷୟଗୁଡିକ ବିନାଇଫର୍ ଭାରୁଚ
Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

ଏହାଙ୍କ ଲିଖିତ ଅନ୍ୟ ବିଷୟଗୁଡିକ Swarn Kanta