गेल्या काही वर्षांमध्ये उत्तर प्रदेशाचा विचार केला तर दुष्काळ ही इथली सगळ्यात मोठी नैसर्गिक आपत्ती असल्याचं राज्याच्या आपत्ती व्यवस्थापन विभागानेच मान्य केलं आहे. हे राज्य देशाची भूक भागवणारं, धान्याचं मोठ्या प्रमाणावर उत्पादन करणारं राज्य आहे. इथले बरेच शेतकरी आजही कोरडवाहू शेती करतायत आणि त्यांचा प्रपंच याच पावसाच्या पाण्यावर अवलंबून असलेल्या शेतीवर चालतोय. त्यामुळे सातत्याने येणाऱ्या या उष्णतेच्या लाटा, भूगर्भातली पाण्याची खालावत चाललेली पातळी आणि अगदी तुटपुंजा पाऊस या सगळ्यामुळे परिस्थिती भयावह झाली आहे.

ज्याने दुष्काळाच्या झळा सोसल्या आहेत त्यालाच दुष्काळाची दाहकता समजू शकते. शहरात राहणाऱ्यांसाठी दुष्काळ ही केवळ एक बातमी ठरते. पण एकामागून एक अनेक वर्षं ज्या शेतकऱ्यांनी दुष्काळ सहन केलाय त्यांच्यासाठी तो यमराजासारखा आहे. सदैव, सर्वत्र असणारा. मृत्यूचा दूत. पावसाची वाट पाहता पाहता डोळ्याच्या काचा होतात, तहानलेली, भेगाळलेली जमीन आगीसारखी भाजत राहते. भुकेली, पाठपोट एक झालेली मुलं, गतप्राण झालेल्या गुरांच्या हाडांचे ढिगारे आणि पाण्यासाठी वणवण फिरणाऱ्या बाया हे या राज्यात सर्रास आढळणारं चित्र झालं आहे.

मध्य भारतातल्या दुष्काळाचा अनुभव या कवितेतून मी व्यक्त करतोय.

सैद मेराजुद्दिन यांच्या आवाजात कवितेचा हिंदी अनुवाद ऐका

प्रतिष्ठा पांड्या यांच्या आवाजात कवितेचा इंग्रजी अनुवाद ऐका

सूखा

रोज़ बरसता नैनों का जल
रोज़ उठा सरका देता हल
रूठ गए जब सूखे बादल
क्या जोते क्या बोवे पागल

सागर ताल बला से सूखे
हार न जीते प्यासे सूखे
दान दिया परसाद चढ़ाया
फिर काहे चौमासे सूखे

धूप ताप से बर गई धरती
अबके सूखे मर गई धरती
एक बाल ना एक कनूका
आग लगी परती की परती

भूखी आंखें मोटी मोटी
हाड़ से चिपकी सूखी बोटी
सूखी साखी उंगलियों में
सूखी चमड़ी सूखी रोटी

सूख गई है अमराई भी
सूख गई है अंगनाई भी
तीर सी लगती है छाती में
सूख गई है पुरवाई भी

गड्डे गिर्री डोरी सूखी
गगरी मटकी मोरी सूखी
पनघट पर क्या लेने जाए
इंतज़ार में गोरी सूखी

मावर लाली बिंदिया सूखी
धीरे धीरे निंदिया सूखी
आंचल में पलने वाली फिर
आशा चिंदिया चिंदिया सूखी

सूख चुके सब ज्वारों के तन
सूख चुके सब गायों के थन
काहे का घी कैसा मक्खन
सूख चुके सब हांडी बर्तन

फूलों के परखच्चे सूखे
पके नहीं फल कच्चे सूखे
जो बिरवान नहीं सूखे थे
सूखे अच्छे अच्छे सूखे

जातें, मेले, झांकी सूखी
दीवाली बैसाखी सूखी
चौथ मनी ना होली भीगी
चन्दन रोली राखी सूखी

बस कोयल की कूक न सूखी
घड़ी घड़ी की हूक न सूखी
सूखे चेहरे सूखे पंजर
लेकिन पेट की भूक न सूखी

दुष्काळ

डोळ्यांतल्या पाण्याला खंड नाही
नांगर नुसताच सरकवत राही
निर्जळ ढग रुसतात जेव्हा
काय नांगरायचं आणि पेरायचं तेव्हा?

समुद्र सुकले, तळी कोरडी पडली
दुष्काळानेच सगळ्यांची खोड मोडली
निवद दाखवला, दान केलं
प्रत्येकच नक्षत्र कोरडं का गेलं?

उन्हाच्या काहिलीत जमीन तापली
या दुष्काळात धरणीच कोपली
गवत ना पातं, कोरडं ठाक
आगीत व्हावं सगळंच खाक

नजर भेदून जाणारे भुकेले डोळे
हाडाला चिकटलेले मांसाचे गोळे
निस्तेज त्वचा आणि विझते श्वास
कोरड्या भाकरीचे कोरडे घास

आंब्याची राई जळून गेली
अंगणं देखील वाळून गेली
बाणाने भेदावी छाती, तशी
पूर्वेची हवा शुष्क झाली

कोरड्या कळश्या हंडे घागरी
रहाटाची दोरी सुकली
पाण्याला जाऊन मिळेल का पाणी?
वाट पाहून राणी थकली

गालावरची लाली विरली
कुंकू फिकुटलं, झोपही सरली
पदराआडच्या चांदोबाच्या
डोळ्यांमधली स्वप्ने विरली

बैलं खंगली, भुईला टेकली
गायी थकल्या पान्हा आटला
कुठलं दूध आन् कसलं लोणी
चरवी कोरडी, घडाही फुटला

फुलं मिटली, दळं सुकली
कच्ची फळं नाहीच पिकली
हिरवाई ल्यालेली झाडं
तीही हरली, नाही टिकली

यात्रा, जत्रा, मेळे विझले
दिवाळी, बैसाखी विसरून गेले
वटपौर्णिमा आली गेली
धुळवड पाण्यावाचून झाली

विरली नाही कोकिळेची साद
टिक टिक करणारा घड्याळाचा नाद
अस्थिपंजर शरीर तरीही
पोटातली भूक तशीच आबाद

Syed Merajuddin

ସଇଦ ମେରାଜୁଦ୍ଦିନ ଜଣେ କବି ଓ ଶିକ୍ଷକ। ସେ ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶର ଅଗରାରେ ରହନ୍ତି ଓ ଆଧାରଶିଳା ଶିକ୍ଷା ସମିତି ନାମକ ଅନୁଷ୍ଠାନର ଯୁଗ୍ମ ପ୍ରତିଷ୍ଠାତା ଓ ସମ୍ପାଦକ। ଏହି ଅନୁଷ୍ଠାନ ପକ୍ଷରୁ କୁନୋ ଜାତୀୟ ଅଭୟାରଣ୍ୟର ଦଳିତ ଓ ଆଦିବାସୀ ସମ୍ପ୍ରଦାୟର ବିସ୍ଥାପିତ ଶିଶୁମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଗୋଟିଏ ଉଚ୍ଚ ମାଧ୍ୟମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ ସ୍ଥାପନ ଓ ସଂଚାଳନ କରାଯାଉଛି। ସେ ସମ୍ପ୍ରତି କୁନୋ ଜାତୀୟ ଅଭୟାରଣ୍ୟର ସୀମା ନିକଟରେ ରହୁଛନ୍ତି।

ଏହାଙ୍କ ଲିଖିତ ଅନ୍ୟ ବିଷୟଗୁଡିକ Syed Merajuddin
Illustration : Manita Kumari Oraon

ମନିତା କୁମାରୀ ଓରାଓଁ ଝାଡ଼ଖଣ୍ଡରେ ରହୁଥିବା ଜଣେ କଳାକାର। ସେ ଆଦିବାସୀ ସମୁଦାୟ ପାଇଁ ସାମାଜିକ ଓ ସାଂସ୍କୃତିକ ଗୁରୁତ୍ୱ ବହନ କରୁଥିବା ପ୍ରସଙ୍ଗ ଉପରେ ମୂର୍ତ୍ତି ଓ ଚିତ୍ର ଆଙ୍କିଥାନ୍ତି ।

ଏହାଙ୍କ ଲିଖିତ ଅନ୍ୟ ବିଷୟଗୁଡିକ Manita Kumari Oraon
Editor : Pratishtha Pandya

ପ୍ରତିଷ୍ଠା ପାଣ୍ଡ୍ୟା ପରୀରେ କାର୍ଯ୍ୟରତ ଜଣେ ବରିଷ୍ଠ ସମ୍ପାଦିକା ଯେଉଁଠି ସେ ପରୀର ସୃଜନଶୀଳ ଲେଖା ବିଭାଗର ନେତୃତ୍ୱ ନେଇଥାନ୍ତି। ସେ ମଧ୍ୟ ପରୀ ଭାଷା ଦଳର ଜଣେ ସଦସ୍ୟ ଏବଂ ଗୁଜରାଟୀ ଭାଷାରେ କାହାଣୀ ଅନୁବାଦ କରିଥାନ୍ତି ଓ ଲେଖିଥାନ୍ତି। ସେ ଜଣେ କବି ଏବଂ ଗୁଜରାଟୀ ଓ ଇଂରାଜୀ ଭାଷାରେ ତାଙ୍କର କବିତା ପ୍ରକାଶ ପାଇଛି।

ଏହାଙ୍କ ଲିଖିତ ଅନ୍ୟ ବିଷୟଗୁଡିକ Pratishtha Pandya