महल के ऊपर शाही झंडा नए सुल्तान के दिल की तरह फड़फड़ा रहा था, जो उस दोपहर को अपने आलीशान बिस्तर पर आराम करने के लिए लेटा हुआ था। सत्ता में आने के बाद उसने सभी विद्रोहों को एक-एक करके कुचल दिया, और इस तरह एक राजवंश के निरंकुश शासन का अंत कर दिया था। उसे अपने शौर्य पर पूरा भरोसा था, इसीलिए युद्ध के मैदान में बिना कवच के जाता, अपनी नंगी छाती को पीटता हुआ, और शिकारी जानवरों की पूरी सेनाओं को लगभग अकेले ही मौत के घाट उतार दिया था। उसने सोचा कि ये तो केवल कीड़े हैं, लेकिन उसकी सोच के विपरीत इन पर क़ाबू पाना बहुत मुश्किल था। उसका दिमाग़ वास्तव में बहुत तेज़ था, जिसने हर बार उनके ख़तरे को कुचलने में उसकी मदद की थी। लेकिन दिसंबर की हवाएं क्रूर थीं।
इस समय जिस चीज़ की आवश्यकता थी, वह मेटारीज़ियम एनीसोपली का विशाल भंडार था। यह परजीवी कवक दुनिया भर की मिट्टी में स्वाभाविक रूप से उगता है और कीड़ों को नष्ट कर देता है। शीर्ष विशेषज्ञों की एक समिति ने घोषणा कर दी कि उन कीड़ों को मारने के लिए, जो उन्हें अंदर से खा रहे हैं, यह परजीवी कवक सस्ता, ज़्यादा प्रभावी और लंबे समय तक चलने वाला होगा। भंडारण की व्यवस्था पहले से ही अमीर सहयोगियों द्वारा कर दी गई थी। अब केवल एक चुनौती थी कि युवाओं का एक समूह तलाश किया जाए और इन जैविक कीटनाशकों से उन कीड़ों पर ज़ोरदार हमला किया जाए।
शाम हो चुकी थी, और वह थक गया था। वह चाहता था कि उसका दिमाग बस आराम करे, दौड़ना बंद कर दे। यह केवल विरोध करने वाली टिड्डियों का लगातार शोर ही नहीं था जो हवा पर क़ब्ज़ा करने और चीज़ों को इतना असहनीय बनाने के लिए आया था। कुछ और भी था, जो उसे भीतर से सता रहा था। क्या यह उसका अहंकार था? क्या वह वास्तव में डर गया था? या वह इस बारे में चिंतित था कि रात में क्या हो सकता है? क्या उसे यह आभास होने लगा था कि उसकी शक्तियां कमज़ोर होने वाली हैं? अपने आप से यह सवाल पीड़ादायक था। अपने दिमाग़ को इससे छुटकारा दिलाने के लिए उसने लापरवाही से खिड़की के बाहर देखा। काले क्षितिज पर अस्त होता सूर्य अशुभ लग रहा था।
टिड्डियों का झुंड
ये कौन सी टिड्डियां हैं?
कितना बड़ा है ये झुंड
आकाश को गेहूं जैसा सुनहरा बनातीं,
सल्तनत के ऊपर,
उम्मीद की लंबी सड़कों पर मार्च करतीं!
जो उड़ती हैं
कंटीले तारों के जाल से होकर
जिनके छोटे-छोटे सूंड
तोड़ देते हैं बैरिकेडों को
जो फलांग जाती हैं खाइयों को
फंसाने और दफ़नाने के लिए खोदी गई।
उनकी नाज़ुक छातियां
करती हैं सामना
पानी की बौछार का
प्रतीक्षा कर रही हैं वे
शीत लहरी में
धुंध वाली सर्दी की शामों को
खट्टी हो चुकी ओस की बूंदों की वह गंध
प्रतीक्षा कर रही हैं वे
सुबह के उजाले का
क्रांतिकारी अंगारे
चमक रहे हैं जिनकी आंखों में।
न तो ढोल की आवाज़
न ही पटाख़े
न ही नीम के पत्तों का धुआं
कर सकता है भयभीत या विचलित
टिड्डियों की इस भारी भीड़ को।
लंबी रात में
विरोध के बढ़ते गीत
उनके पंख के नीचे
हवा को उत्तेजित करते
बनाते हैं छोटे छेद
तिरपाल की चादरों में
जो बिछाई गई है सड़कों पर
और महलों की छतों पर
टिड्डियों के झुंड द्वारा
सल्तनत पर हमला करने से पहले।
ऑडियो: सुधनवा देशपांडे जन नाट्य मंच के एक अभिनेता और निर्देशक और लेफ्टवर्ड बुक्स के संपादक हैं।
हिंदी अनुवादः मोहम्मद क़मर तबरेज़