वो मन एके लय अऊ दक्षता ले आगू बाढ़त रहिन - “रे रेला रे रेला रे रेला रे” माड़ी तक ले झक उज्जर लुगरा अऊ खोपा मं चमचमावत फुंदरी पहिर के, एक दुसर के हाथ ला धरे, एक घाव म तिन मोटियारीन मन गोंड मन के रेला गीत गावत रहिन.
थोर बखत होय नइ रहिस के मोटियारा मन घलो आके वो मन के संग मेंझर जाथें. वो मन घलो झक उज्जर धोती, पाखा मं रंग-बिरंगा, मोरपांखी खोपाय, गोड़ मं बंधाय घुंघरू लय मं बाजत रहिस. हाथ मं धरे मांदरी ला बजावत रेला गीत गावत रहीन. मोटियारा–मोटियारीन मन एक दुसर ला धरे रहिन जइसने माला पिरोय रथे अऊ जम्मो मन नाचत–गावत रहिन.
गोंड आदिवासी समाज के माई अऊ एर्र्रा मण्डली मं दू कोरी 3 झिन रहीन जेन में सबके उमर16 ले 30 बछर के रहिस, ये सबो मन छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला के केशकाल ब्लाक के बेदमारी गाँव ले आय रहिन.
राजधानी रइपुर ले 33 कोस दुरिहा बस्तर इलाका ले इहाँ आय बार येमन एक ठन गाड़ी में बइठके 100 कोस दुरिहा छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार-भाटपारा जिला के सोनाखान के आदिवासी राजा, वीर नारायण सिंह के बलिदान के सुरता मं भरैय्या मेला म आय रहीन.
बछर 2015 ले हर बछर सितम्बर के 10 ले 12 तारीख मं सरलग 3 दिन चलईया मेला मं देस भर के दुसर आदिवासी समाज के संगे संग छत्तीसगढ़ के नाचा मण्डली घलो आय रहिन.
दिसम्बर 1857 मं अंगरेज सरकार ह ओकर खिलाफ लड़इ करइय्या आदिवासी राजा वीर नारायण सिंह ला पकड़ के रइपुर के जय स्तम्भ चउक मं फांसी मं लटका दे रहिस. इहाँ के कहिनी मन मं राजा ला फांसी मं लटकाय के बाद ओकर लाश ला तोप के गोला ले उड़ा दिये के जिकर करे गे हे.
जेन जगा मं इ तिहार मनाय जाथे तेला राजाराव पाथर कहिथें.ये ला आदिवासी मन के देवस्थान कहे-माने जाथे. ये हा गोंड आदिवासी मन के एक पुश्तैनी देंवता आय. इहाँ तिन दिन तक ले नाच-गाना चलत रहिथे.
“रेला/रेलो ह हमर समाज ल एक कर देथे,” ये कहना आय सर्व आदिवासी जिला प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रेमलाल कुंजाम के. कुंजाम कहिथें, “जइसने माला मं फूल ला पिरोय जाथे तइसने एक–दुसर के हाथ ला धरके नाचथें एकर ले ताकत अऊ मन के उछाह हा बाढ़ जाथे.” कुंजाम बताथें, रेला गीत के लय अऊ ओकर बोल ह गोंडवाना संस्कृति (गोंड समाज के परम्परा) के प्रतिनिधित्व करथे. प्रेमलाल कहिथें - “ये गीत ले हम अपन नवा पीढ़ी ला हमर गोंडी संस्कृति के संदेश ला पहुंचाथन.”
बालोद जिला के बालोदगाहां गांव के दौलत मंडावी कथें, “रेला हा भगवान के गीत आय. हमर आदिवासी परम्परा मं माने जाथे के ये गीत हा देंवता मन के धियान ला अपन डहर बलाय बर गाये जाथे. अगर देह मं कोनो पीरा हे, समस्या हे, त रेला मं नाचे ले दूर हो जाथे. ये गीत ला आदिवासी समाज मं बर-बिहाव अऊ दुसर मउका मं घलो गाय जाथे.”
दिसंबर के वीर मेला मं रेला मंडली के सबले कम उमर के कक्षा 8 वीं पढ़इय्या सुखियारियन कावड़े कहिथे, “रेला मोला बहुत पसंद हे. ये ह हमर संस्कृति के एक भाग आय.” अपन मण्डली के संग ओकर उछाह देखत बनत रहिस काबर कि मण्डली के सेती ओला जगा–जगा जाय अऊ नाचे के मउका मिलिस.
बेदमारी गांव के मण्डली ह रेला गीत ले अपन शुरुवात करिस अऊ हुल्की मांडरी और कोलांग नृत्य करिस.
कॉलेज पढ़इय्या आदिवासी मोटियारा दिलीप कुरेती कहिथे, “हमर रित–रिवाज ला देखे जाय त हरेली मं मांडरी ला शुरू करे जाथे. ये तिहार तेन बख़त शुरू होते जेन बखत बीजा जामे ला धरथे अऊ खेत-खार,रुख–राइ मन ह हरियर हो जाथे, ये हा दिवारी तक मनाय जाथे.” ये बखत मं मांदर वाले पुरुस अऊ झांझ धरे माई लोगन मन एके संग नाचथें.
पूस कोलांग जलकल्ला महिना मं मनाय जाथे, ये हा (अगहन) दिसम्बर के आखिरी ले सुरु होते अऊ पूस महिना तक चलत रथे. मोटियार मन रेला गीत के लय मं नाचत गोंड समाज के तिर–तिखार के गाँव मं जाथें–ये हा ताकत ले भरे खिलाड़ी वाला नाच आय. जेकर डंडा ह धवई रुख के लकरी ले बनाय जाथे, तेकर संग नाचे जाथे.
बेदमारी मंडली के एक ठन सियान सोमारू कोर्रम कथे, “पूस कोलांग के बखत हमन दार–चउर धर के दुसर गाँव जाथन, जिहां बेरा बखत मं रान्ध के खाथन. रतिहा मं गाँव वाला मन खवाथें.”
तिहार अऊ नाच तभे ख़तम होथे, जब गाँव-गाँव घूमइय्या मण्डली अंजोर पाख पूस पुन्नी ले पहिली अपन गाँव लहुट आथे.
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू