“बीस बरीस पहिले, जब नाला कुल साफ़ रहे, पानी सीसा जइसन लउकत रहे. फेंकल पइसा (नदी के पेनी में) के उपरो से देखल जा सकत रहे. हमनी सीधे जमुना के पानी पी सकत रहनी जान,” मलाह रमन हलदर कहेलन. उ अपना बात के जोर देवे ला अपना हाथ के अंजुरी बना के गंदा पानी में डाल दहलें, फेर ओकरा के अपना मुंह ले ले अयिलेँ. हमनी के मुंह बनावत देख के, हंसत पानी के अपना अंगुरियन से गिर जाये दहलन.

आज के जमुना में प्लास्टिक, समान के उपर लपेटे वाला पन्नी, करकट, बहारन, अखबार, झार-झंखार, कंक्रीट के टुक्का, कपड़ा के चेथरी, कादो, जूठ-कूठ अनाज, दहत नरियर, जलकुंभी, आ कटने बहत जहर-माहुर, आ राजधानी दिल्ली के कई तरह के कचरा जैसे दिल्लिये के करिया तस्वीर लउकावेला.

जमुना के मात्र 22 किलोमीटर (मस्किल से 1.6 परतिसत) लमहर हिस्सा राष्ट्रीय राजधानी से हो के बहेला. बाकिर एतना छोटहन हिस्सा में जेतना करकट आ जहर आ के गिरेला, उ 1,376 किलोमीटर लहर इ नदी के कुल परदूसन के 80 परतिसत बा. एकरा के सकारत, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनबीटी) के निगरानी समिति के 2018 के रिपोर्ट में दिल्ली के नदी के ‘सीवर लाइन’ गोसित क दहल गईल. जमुना के पानी में आक्सीजन के भारी कमी के चलते बेसी मछरी मर जालीँ कुल.

पर (पछिला) साल, दिल्ली के नदी के दक्खिनी खंड के कालिंदी कुंज घाट प हजारन मछरी मुअल पावल गईली सन, आ नदी के दिल्ली वाला हिस्सा में दूसर पानी वाला जीव लमसम एगो घटना बन गईल बा.

प्रियांक हिरानी कहेलन, ”नदी के पारिस्थितिक तंत्र के जीयत रहे खातिर घुलित आक्सीजन (पानी में आक्सीजन के मात्रा) के स्तर 6 चाहे ओकरा से बेसी होखे के चाहीं. मछरी के जीये ला घुलित आक्सीजन के स्तर कम से कम 4-5 होखे के चाहीं. जमुना के दिल्ली वाला हिस्सा में, इ स्तर 0 से 0.4 के बीच में बा.” प्रियांक, शिकागो विश्वविद्यालय में टाटा सेंटर फार डेवलपमेंट के वाटर-टू-क्लाउड प्रोजेक्ट के निदेसक हवन. इ परियोजना सही समय में नदियन के परदूसन के स्तर दर्ज करेला.

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रमन हलदर (बीच में) कहेलन , ‘उंहा कौनो मछरी नईखे (कालिंदी कुंज घाट प), पहिले बहुत होत रहली सन. अब खाली दू-चार गो कैट फिश बांचल बाड़ी सन’

दिल्ली के पूरब-उत्तर के रामघाट के एगो घास वाला हिस्सा में मछरी पकड़े वाला जाल के लगे बइठल, 52 बरीस के हलदर आ उनकर दू गो संघतिया खूब मजा से बीड़ी पियता लोग. “हम तीन साल पहिले कालिंदी कुंजघाट से इंहवा आई रहनी. उहां कवनो मछरी नईखे, बहुत पहिले होत रहे. अब त दू–चार गो कैट फिश बांचल बाड़ी कुल. एहू में बहुत त गन्दा बाड़ी कुल आ एलर्जी, फुंसी, बोखार, आ दस्त के कारन बनली सन.” उ एगो हाथ के बीनल जाल के सझुरावत कहतारेँ, जौन दूर से एगो उज्जर घट्टा के टुक्का जइसन लउकता.

पानी के गहीरे रहे वाला दूसर जात से अलगे, कैट फिश पानी के सतह प तेरे आ सांस लेवे में सछम बा- आ एहिसे दूसर मछरियन से बेसी जीये ली सन. दिल्ली के समुद्री संरक्षणवादी दिव्या कर्नाड बतावेली कि इ पारिस्थितिकी तंत्र में सीकरी, जहरीला पानी में रहे वाली मछरी के खाए से अपना देह में जहरीला चीज के जमा क लेवे ले. “त इ समझे वाला बात बा कि कैटफिश, एगो मुर्दाखोर-मांसाहारी जीव- के खाए वाला लोग प एकर परभाव पड़ेला.”

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इ सब मुद्दा प कार करे वाला एगो बिना लाभ वाला समूह, रिसर्च कलेक्टिव के ओर से, दिल्ली से परकासित ‘औक्यूपेशन औफ़ द कोस्ट, द ब्लू इकॉनमी इं इण्डिया’ लेख के मोताबिक, भारत में लमसम 87 परतिसत मछरी पकड़े के अंदाजा 100 मीटर गहिरा पानी में होला. एमे से बेसी त देस के मलाह समुदाय के पहुँच में बा. इ खाली खाए-पिए के ही ना, बाकिर रोजदिना के जिनगी आ संस्कृतियो के बढ़ावेला.

नेशनल प्लेटफार्म फॉर स्माल स्केल फिश वर्कर्स (इनलैंड) (एनपीएसएसएफडब्ल्यूआई) के परमुख प्रदीप चटर्जी कहेलन, “अब रउआ मलाहन के छोट अर्थव्यवस्था के तुरतानी. उ सब जगह के मछरी के मांग के लगे के बजार में देला कुल, आ जदी रउआ ना मिलल, त रउआ दूर के कवनो जघ़े से मछरी ले आयें, दू बेर गाड़ी के उपयोग करें जौन मस्किल के बढावेला.” जमीन के पानी के ओर जाए के मतलब बा,” बेसी ताकत के उपयोग कईल, जेकर नतीजा पानी के आपन गति से छेड़-छाड़.”

उ एकर मतलब बतावेलन, “पानी के जर प एकर असर होई, आ नदी कुल दोहरा के भर ना पहिहें कुल. तब्बो एकरा के ठीक करे से नदी से  साफ़, पीये लायक पानी लेवे ला, पारम्परिक स्त्रोत से बेसी ताकत के जरुरत होई. ऐतरे, हमनी, प्रकृति आधारित अर्थव्यवस्था कुल के जबरदस्ती नास करतानी जान, आ मेहनत, भोजन आ उत्पादन के कार्पोरेट के चक्कर में डालतानी जन, जेमें उर्जा आ पूंजी लागेला. ए बीचे, नादियन के अब करकट फेंकेला इस्तेमाल कईल जाता.”

कल-कारखाना जब नदी में आपन करकट फेंकेला, त एकर पता सबसे पहिले मलाहन के लागेला. हरियाणा-दिल्ली सीमा प, जहां से जमुना राजधानी में ढूकतारी, पल्ला निवासी 45 बरीस के मंगल साहनी कहेलन, “हमनी बसना से बता सकेनी जान, आ जब मछरी कुल मूए लागेली.” साहनी, बिहार के शिवहर जिला में 15 जन वाला परिवार के पेट पोसे के ले के चिंता में बाड़न. “लोग हमनी के बारे में लिखता, बाकिर हमनी के जिनगी में कवनो सुधार नईखे भईल, बलुक इ त पहिलहूं से खराब हो गईल बा.” इ कह के उ हमनी के ख़ारिज क देतारन.

Palla, on the Haryana-Delhi border, where the Yamuna enters the capital
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When industries release effluents into the river, fisherfolk are the first to know. 'We can tell from the stench, and when the fish start dying', remarks 45-year-old Mangal Sahni, who lives at Palla, on the Haryana-Delhi border, where the Yamuna enters the capital
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कल-कारखान कुल जब नदी में आपन करकट फेंकेला, त एकर पता सबसे पहिले मलाहन के लागेला. हरियाणा-दिल्ली सीमा प, जहां से जमुना ढूकेली, पल्ला निवासी 45 बरीस के मंगल साहनी (बंवारी) कहेलन , ‘हमनी बसना से बता सकेनी , जब मछरी मुयेली कुल’

सेन्ट्रल मरीन फिशरीज इंस्टीटयूट के मानल जाव, त पारंपरिक रूप से मछरी पकड़े वाला समुदाय के 40 लाख लोग भारत के समुन्दर के कगरी पसरल बा लोग. ई लोग लमसम 8.4 लाख परिवार से बा. बाकिर एसे सायद 7-8 गुना लोग मछरी पकड़े के अर्थव्यवस्था से जुडल बा लोग चाहे ओही के भरोसे बा लोग. औरी, एनपीएसएसएफडब्ल्यूआई के चटर्जी कहेलन कि उ 40 लाख लोग देस के भीतरे के मलाह हो सकेला लोग. कई साल से, लखन लोग पूरा बेरा चाहे गोट्टा हो के कार करे जइसन मछरी पकड़े के कार छोड़ता लोग. चटर्जी कहेलन, “लमसम 60-70 परतिसत समुद्री मलाह लोग दोसर चीजन के ओर भागता लोग, काहे से कि समुदाय में गिरावट होता.”

बाकिर राजधानी में मलाह भईल एगो अजबे बात बा, एहीसे जमुना के दिल्ली वाला हिस्सा में केतना मलाह बा लोग एकर ना त कवनो रेकड़ बा ना कवनो परतिसत आंकड़ा बा. एकरे अलावे, साहनी जइसन कई गो परदेसी बा लोग, जेकर गिनती कईल औरियो मस्किल हो जाला. जीयत आ बांचल मलाह लोग एह पर जरूर एकमत बा लोग कि ओ लोग गिनती घट गईल बा. ‘लौंग लिव यमुना’ आन्दोलन के अगुआई करे वाला सेवानिवृत्त वनसेवा अधिकारी, मनोज मिश्रा के बुझाला कि आजादी से पहिले के हजारन पूरा तरह से मलाह लोग में से अब सौ से कम्मे बांचल बा लोग.

रिसर्च कलेक्टिव के सिद्धार्थ चक्रवर्ती कहेलन, “यमुना से मलाहन के गायब भईल ए बात के इशारा बा कि नदी मर गईल बा चाहे मरता. उ इ बात के चिन्हा बा कि अब का स्थिति बाटे. औरी जवन चलता, उ जलवायु संकट के औरी बढ़ावता, जेमे मनइ के कईल-धयिल के बहुत हाथ बा. एकर इहो मतलब ह कि पर्यावरण के फेर से जियावे वाला जैव विविधता अब खतम हो रहल बा. नतीजा में इ जीवन चक्र के परभावित कर रहल बा, इ हकीकत के देखत कि दुनिया के स्तर प कार्बन उत्सर्जन के 40 परतिसत महासागर कुल से सोखल जाला.”

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दिल्ली में 40 परतिसत सीवर कनेक्शन ना होखे के कारन, अनगिनत टन मइला आ बाउर चीज कुल सेप्टिक टैंक आ दूसर औरी जर कुली से, पानी में बहवा दहल जाला. एनजीटी के कहनाम बा कि 1,797 (गरमजुरवा) मोहल्लन  में से 20 परतिसत से भी कम में  सीवेज पाइप लाइन रहे, “घरेलू इलाकन में 51,837 गो उद्द्योग अबैध रूप से चल रहल बा, जेकर फेंकल चीज कुल सीधा नाला में गिरता आ आखिर में नदी में चल जाला.”

एबेरा के इ संकट के एगो नदी के मिरतु जइसन देखल जा सकेला, मनइ के कईल धयिल के पैमाना, पैटर्न, आ अर्थ शास्त्र से एकरा जुड़ाव के लिहाज से.

अब मछरी के कम हो गईला से मलाह लोग के आमदनियो तेजी से घटता. पहिले मछरी पकड़े से ओ लोग के ठीक ठाक कमाई हो जात रहे.माहिर मलाह लोग त कब्बो-कब्बो महीना में 50,000 रोपया ले कमा लेवे.

रामघाट प रहे वाला 42 बरीस के आनंद साहनी, जवानी में बिहार के मोतिहारी जिला से दिल्ली आईल रहलन. उ मेहराइल कहेलन, “हमार कमीनी 20 बरीस में आधा हो गईल बा. अब एक दिन में हमरा 100-200 रोपया मिलेला. हमरा आपन परिवार पोसे खातिर दूसर तरीका खोजे के परेला- मछरी के काम अब स्थायी नईखे रह गईल.”

लमसम 30-40 मलाह परिवार, चाहे मलाह आ नाव खेवे वाला समुदाय, जमुना के कम गन्दा जगह, रामघाट प रहेला लोग. उ लोग तनियक मछरी त अपना खाएला ध लेला लोग, बाकी के सोनिया बिहार, गोपालपुर, आ हनुमान चौक जइसन लगे के बाजारन में (मछरी के जात के हिसाब से) 50-200 रोपया किलो के हिसाब से बेच देला लोग.

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रामघाट प रहे वाला आनंद साहनी कहेलन , ’हमरा आपन परिवार पोसे खातिर दूसर तरीका खोजे के परेला- मछरी के कार अब स्थाई नईखे रह गईल’

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तिरुवनंतपुरम के पर्यावरण सलाहकार डाक्टर राधा गोपाल कहेली कि बरखा आ तापमान के उतार-चढाव के साथे जलवायु के संकंट जमुना के मस्किल औरी बढ़ावता. पानी के मातरा आ गुन से समझौता औरी जलवायु परिवर्तन के अनिश्चितता समस्या के औरी बढ़ा देता, जेसे पकड़ाए वाला मछरी के गुणवत्ता आ मातरा में भारी गिरावट आ रहल बा.

35 बरीस के सुनीता देवी कहेली, “गन्दा पानी के कारन मछरी कुल मर जाली, लोग आवेला आ कईसनो करकट फेंक के चल जाला, एघरी बिसेस रूप से प्लास्टिक.” उ बतावेली कि पूजा-पाठ के बेरा लोग रीन्हलो खाए के समान फेंक देला. जइसे पूरी, जलेबी, लड्डू, जेसे नदी में बसना बढ़ जाला. जब उनका से बात होत रहे त उनकर मरद नरेस साहनी ओ बेरा दिहाड़ी खोजे बहरा गईल रहलन.

अक्तूबर 2019 में, 100 से बेसी बरीस में पहिला बेर, दिल्ली में दुर्गा पूजा के बेरा मूर्ती बिसर्जन प रोक लगावल गईल. इ फैसला एनजीटी के ओ रिपोर्ट के बाद लहल गईल रहे कि ए तरे के कार-धार से नदी के बड़का पैमाना पर नोकसान हो रहल बा.

मुसलमान कुल 16वां औरी 17वां सताब्दी में दिल्ली के आपन साम्राज्य बनवले रहलें कुल. इ कहाउत के सांच करत कि सहर बनावे ला तीन गो चीज जरूरी होला, ‘दरिया, बादर, बादसाह’. ओ लोग के जल प्रणाली, जे एक तरह से कला के रूप मानल जात रहे, आज एगो इतिहास के खंडहर के रूप में मौजूद बा. अंग्रेज कुल 18 वां सताब्दी में पानी के खाली एगो साधन बूझलें, औरी जमुना से से दूरी बनावे ला नया दिल्ली के निरमान कईल लोग. बेरा बितला के साथे लोग के गिनती में अथाह बढ़ोतरी आ सहरीकरण हो गईल.

‘नैरेटिव्स औफ़ द एन्वायरमेंट औफ़ डेल्ही’ नाम के किताब (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज से परकासित) में पुरनिया लोग इयाद क के बतावेला कि कइसे 1940 से 1970 के बीच, दिल्ली के ओखला इलाका में मछरी पकड़ल, नाव खेवल, तैराकी, आ पिकनिक जिनगी के एगो हिस्सा होत रहे. इंहा ले कि गंगा के डाल्फिनो मछरी के ओखला बैराज से आगे के बहाव में देखल गईल रहे, जबकि नदी में पानी कम होखला प कछुआ कुल नदी के अरिया आ के घमावन ल सन.

आगरा के पर्यावरण के जानकार ब्रिज खंडेलवाल कहेलन, “यमुना के खतरनाक रूप से पतन भईल बा.” उत्तरखंड उच्च न्यायालय गंगा आ जमुना नदी के 2017 में जीयत नदी घोषित कईला के तुरंत बाद, खंडेलवाल अपना सहर में सरकारी अधिकारी लोग के खिलाफ ‘हत्या के परयास’ के मामला दर्ज करे के मांग कईलन. उनकर आरोप बा, उ लोग जमुना के धीरा (धीमा) जहर दे के मुआवत रहे लोग.

ए बीच, केंद्र सरकार देस भर में जलमार्ग के बंदरगाह से जोरेला सागर माला परियोजना सुरु कर रहल बा. बाकिर, “अगर बड़का सामान ढोए वाला जहाजन के नदी के अरिया वाला इलाकन में ले आईल जाता, त इ नदियन के फेर से परदूसित करी,” एनपीएसएसएफडब्ल्यूआई के चटर्जी चेतावेलन.

Pradip Chatterjee, head of the National Platform for Small Scale Fish Workers
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Siddharth Chakravarty, from the Delhi-based Research Collective, a non-profit group active on these issues
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बंवारी, नेशनल प्लेटफार्म फॉर स्मॉल फिश वर्कर्स (इनलैंड) के परमुख, प्रदीप चटर्जी. दहिने , इ सब मुद्दा प सक्रिय दिल्ली के एगो गैरलाभकारी समूह के रिसर्च कलेक्टिव के सिद्धार्थ चक्रवर्ती

Last year, thousands of fish were found dead at the Kalindi Kunj Ghat on the southern stretch of the Yamuna in Delhi
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पर साल दिल्ली के जमुना के दक्खिन ओर प कालिंदी कुंज घाट प हजारन मछरी कुल मुअल पावल गईलीं कुल

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हलदर अपना परिवार में मलाहन के अंतिम पीढ़ी हवन. उ पच्छिम बंगाल के मालदा के निवासी हवन, जे महीना में 15-20 दिन रामघाट पर रहेला आ बाकी दिन नोएडा में अपना 25 आ 27 बरीस के दू गो बेटा के साथे रहेलन. ओ लोग में से एगो मोबाईल ठीक करेलन आ दूसर अंडा के रोल आ मोमोज बेचेलन. “लईका लोग कहेला कि हमार रोजगार पुरान हो गईल बा. हमार छोटको भाई मलाह ह. इ त एगो परम्परा ह, बरखा होखे चाहे घाम, हमनी के ईहे कार आवेला. हम नईखी जानत कि कवनो औरी तरीका से हम कइसे गुजारा करेम.”

डाक्टर गोपालन पूछेली, “अब जबकि मछरी पकडे के जर सूख गईल बा, त उ लोग का करी? बहुत जरूरी रूप से, मछरी ओ लोग ला पोसाए के एगो जरिया बा. हमनी के ओ लोग के सामाजिक-पारिस्थितिक रूप से भी देखे के चाहीं, जे में आर्थिक पहलू भी सामिल होखे. जलवायु परिवर्तन में इ अलगे-अलगे चीज नईखे हो सकत, रउआ आय के अलगे ढंग आ परिस्थिति तंत्र के बिबीधता भी चाहीं.”

रिसर्च कलेक्टिव के चक्रवर्ती कहेलन कि ए बीचे, सरकार वैश्विक स्तर प जलवायु संकट प बतियावता. एह में निर्यात ला मछरी पोसे के नीति बनावे के खूब परयास हो रहल बा.

भारत 2017-18 में 4.8 बिलियन डालर दाम के झींगा के नियात कईले रहे. चक्रवर्ती कहेलन कि इ एगो बिदेसी किसिम के मछरी रहे- मैक्सिको के पानी के पैसिफिक व्हाइट झींगा. भारत इ अकेला संस्कृति में सामिल हो गईल बा, काहे से कि “अमेरिका में मैक्सिकन झींगा के खूब मांग बा.” हमनी के झींगा निर्यात के खाली 10 परतिसत हिस्सा ब्लैक टाईगर झीगा के बा, जेकरा के भारतीय पानी में आसानी से पकड़ लहल जाला. भारत जैव -विविधता से गर भेंट करता, जवन बदला में, जीउका के परभावित करता. “जो निर्यात के ओर जात नीति बनावल जाई, त इ महंगा होई आ अपना जगह के पोसे आ जरुरत के पूरा ना क पाई.”

अन्हार भवित (भविष्य) होखला के बादो, हलदर के अब्बो अपना गुन प गरब बा. मछरी पकड़े वाला नाव के दाम 10,000 रोपया आ जल के दाम 3,000-5,000 रोपया के बीच में बा, अइसन में उ हमनी के आपन फोम, माटी आ रस्सी से बीनल जाल देखवलन. ए जाल से उ 50-100 ले के मछरी एक दिन में पकड़ लेवे लन.

45 बरीस के राम परवेस एघरी बांस आ तागा के, एगो पिंजरा जइसन चीज के उपयोग करेलन, जेसे उ 1-2 किलो मछरी पकड़ सकेलन. उ बतावेलन, “हमनी एकरा के अपना गांव में बनावे के सिखले रहनी. दुनू ओर  (गेहू के) आटा के चारा लटका के पिंजरा के पानी में डालल जाला. कुछ घंटा के भीतरे, मछरी के एगो छोट जात, पुठी, फंस जाले.” साऊथ एशिया नेटवर्क औफ़ डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के साथे कार करे वाला एगो स्थानीय कारकर्ता, भीम सिंह रावत कहेलन कि पुठी इंहां के सबसे आम मछरी ह. “चिलवा आ बछुआ के गिनती अब बहुत कम हो गईल बा, जबकि बाम आ मल्ली लमसम बिलाइये गईल बा. मांगुर (कैटफिश) परदूसित हिस्सा में पावल जाले.”

'We are the protectors of Yamuna', declares Arun Sahni
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Ram Parvesh with his wife and daughter at Ram Ghat, speaks of the many nearly extinct fish varieties
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अरुण साहनी (बंवारी) कहेलन , ‘हमनी जमुना के रच्छक बानी , रामघाट प आपन मेहरारू आ बेटी के साथे राम परवेस (दहिने) मछरी के कई गो बिलाईल किसिम के बारे में बतावेलन

75 बरीस के अरुण साहनी मुस्कियात कहेलन, “हमनी जमुना के रच्छक हईं.” अरुण चालीस बरीस पहिले बैसाली जिला से आपन परिवार छोड़ के दिल्ली आइल रहलन. उ आपन दाबी धरेलन कि 1980-90 के बेरा में उ एक दिन में 50 किलो ले मछरी पकड़त रहलन. एह में रोहू, चिंगड़ी, शाऊल, आ मल्ली जइसन मछरी के जात रहत रहे. अब एक दिन में मुस्किल से 10 किलो आ बेसी से बेसी 20 किलो ले मछरी भेंटाला.

संजोग से, जमुना के पुरनका निसानी वाला पुल, जवन क़ुतुब मीनार से दोगुना उंच बा, जेकरा के रामघाट से देखल जा सकेला लमसम 1,518 करोड़ रोपया के लगत लगा के बनावल गईल रहे. दोसरा ओर, 1993 से अब तक ले जमुना के ‘सफाई’ में, बिना कवनो सफलता के 1,514 करोड़ रोपया से बेसी खर्चा कैल जा चुकल बा.

एनजीटी चेतवले बा, “...अधिकारी लोग के बिफलता नागरिक लोग के जिनगी आ स्वास्थ्य के परभावित कर रहल बा आ नदी के अस्तित्त्व के खतरा में डाल रहल बा, औरी गंगो नदी के परभावित कर रहल बा.”

डाक्टर गोपालन कहेली, “नीति के स्तर प समस्या ई बा कि जमुना कार्य योजना (जवन 1993 में बनावल गईल रहे) के खाली तकनीकी नजरिया से देखल जला, “नदी के एगो अकेले पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में देखले बिना. “नदी, जल लेवे के एगो खास कार्य प्रणाली होला. दिल्ली जमुना ला एगो जलग्रहण ह. रउआ जलग्रहण के साफ़ कईले बिना नदी के साफ नईखी क सकत.”

समुंदरी सरंक्षणविद् दिव्या कर्नाड कहेली कि मलाह हमनी के कोइला खदान के भेदिया हवें कुल. “हमनी कईसे इ ना देख पावेनी कि भारी धातु, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र टूटला के कारन बनेला? आ फेर इ ना देख पावेनी कि सबसे गन्दा नदी के लगे से भूजल निकलला के हमनी के मानसिक स्वास्थ्य प असर पड़ता? मलाह, जे एकर आर हवे लोग, ए संबंध के, आ एकर तुरंते के परभाव के देख रहल बा लोग.”

किरिन डूबला के ढेर देर बाद आपन जाल फेंके ला तईयार, हलदर मुस्कियालन, “हमरा ला निफिक्किर होखे वाला इ अंतिम छन ह.” उ कहेलन कि आखिरी जाल फेंके के सबसे नीमन बेरा राती के 9 बजे के लगे आ ओमे फंसल मछरी काढ़े के बेरा किरिन उगला प ह. ऐतरे “मरलो मछरी तजे रहेले कुल.”

पारी के जलवायु परिवर्तन प केन्द्रित राष्ट्रव्यापी रिपोर्टिंग के प्रोजेक्ट, यूएनडीपी समर्थित ओ पहल के एगो हिस्सा ह जेकरा में साधारण लोग आ ओ लोग के जिनगी के अनुभव से पर्यावरण में हो रहल ए सब फेरबदल के लिखल जाला.

ए लेख के परकासित करवावे के चाहतानी? त [email protected] के लिखीं आ ओकर एगो कॉपी [email protected] के भेज दीं.

अनुवाद: स्मिता वाजपेयी

Reporter : Shalini Singh

शालिनी सिंग काउंटरमीडिया ट्रस्टची संस्थापक विश्वस असून ही संस्था पारीचं काम पाहते. शालिनी दिल्लीस्थित पत्रकार असून पर्यावरण, लिंगभाव आणि सांस्कृतिक विषयांवर लेखन करते. २०१७-१८ साली ती हार्वर्ड विद्यापीठाची नेइमन फेलो होती.

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Editor : P. Sainath

पी. साईनाथ पीपल्स अर्काईव्ह ऑफ रुरल इंडिया - पारीचे संस्थापक संपादक आहेत. गेली अनेक दशकं त्यांनी ग्रामीण वार्ताहर म्हणून काम केलं आहे. 'एव्हरीबडी लव्ज अ गुड ड्राउट' (दुष्काळ आवडे सर्वांना) आणि 'द लास्ट हीरोजः फूट सोल्जर्स ऑफ इंडियन फ्रीडम' (अखेरचे शिलेदार: भारतीय स्वातंत्र्यलढ्याचं पायदळ) ही दोन लोकप्रिय पुस्तकं त्यांनी लिहिली आहेत.

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Series Editors : P. Sainath

पी. साईनाथ पीपल्स अर्काईव्ह ऑफ रुरल इंडिया - पारीचे संस्थापक संपादक आहेत. गेली अनेक दशकं त्यांनी ग्रामीण वार्ताहर म्हणून काम केलं आहे. 'एव्हरीबडी लव्ज अ गुड ड्राउट' (दुष्काळ आवडे सर्वांना) आणि 'द लास्ट हीरोजः फूट सोल्जर्स ऑफ इंडियन फ्रीडम' (अखेरचे शिलेदार: भारतीय स्वातंत्र्यलढ्याचं पायदळ) ही दोन लोकप्रिय पुस्तकं त्यांनी लिहिली आहेत.

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Series Editors : Sharmila Joshi

शर्मिला जोशी पारीच्या प्रमुख संपादक आहेत, लेखिका आहेत आणि त्या अधून मधून शिक्षिकेची भूमिकाही निभावतात.

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Translator : Smita Vajpayee

Smita Bajpayee is a writer from Narkatiyaganj, Bihar. She's also passionate about poetry and traveling.

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