अंजन गाँव के तीर एक ठन देंवता धामी के डोंगरी, कतको भगवा अऊ उज्जर झंडा ले पटा गे हवय. उज्जर झंडा, प्रकृति के पूजा करेइय्या सरना आदिवासी समाज के आय. ये ह झारखंड के गुमला जिला के उरांव आदिवासी मन के झंडा आंय. भगवा झंडा त ऊ न हिंदू मन के आंय जेन मन 1995 मं डोंगरी के टिलिंग मं एक ठन हनुमान के मन्दिर बनवाय रहिन. वो मन के दावा हवय के ये ह हिंदू देंवता हनुमान के जनम के जगा आय.
बांस के गेट मं लगे दू ठन बड़े बैनर मं दू ठन समिति के नांव लिखे हवंय. वन विभाग अऊ अंजन गाँव के लोगन मन के मिलके चलेइय्या गुमला वन प्रबंधन मंडल (संयुक्त ग्राम वन प्रबंधन समिति). ये दूनों मिलके 2016 ले तिरथ के जगा अऊ गाड़ी घोड़ा रखे के देखरेख के जिम्मा संभालत हवय. साल 2019 मं स्थापित हिंदू मन के समिति अंजन धाम मन्दिर विकास समिति मन्दिर के देखेरेख करथे.
स्वागत द्वार के ठीक भीतरी हमर आगू दू ठन सीढ़ी बने हवंय, जेन ह ऊपर डहर जाथें. दूनों अलग अलग पूजा के जगा मं जाथें. एक ठन ह सीधा डोंगरी के टिलिंग मं बने हनुमान मन्दिर जाथे. दूसर सीढ़ी दू ठन गुफा कोती जाथे, जेन मं आदिवासी पाहन मन्दिर बने के पहिलीच ले पूजा करत आवत हवंय.
दू अलग-अलग पूजा के जगा के तीर, अलग अलग दान पेटी, दू अलग अलग देंवता के मनेइय्या लोगन मन के डहर ले अलग-अलग काम सेती रखे गे हवंय. एक ठन गुफा के आगू, एक ठन मन्दिर के भीतरी, तीसर दान पेटी दुवार मं हवय, जेन ह बजरंग दल के आय. ये दान पेटी के पइसा ले मंगलवार के दिन भंडारा सेती करे जाथे, जेन मं भगत- साधु संत के खाय के बेवस्था करे जाथे. अऊ अंजन गाँव के तीर, डोगरी के तरी मं एक ठन अऊ दान पेटी हवय, जेन मं जमा पइसा ह गाँव के आदिवासी मन के पूजा के समान धन परसाद बिसोय मं काम आथे.
“ये ह पूरा पूरी आदिवासी इलाका आय. अंजन गाँव मं पहिली कऊनो पंडित नई रहिस.” 42 बछर के पहिली के गाँव गाँव के मुखिर रंजय उरांव ये पूजा के जगा के बारे मं बतावत हवंय. वो ह कहिथें, “हालेच मं बनारस ले पंडित ये इलाका मं आय हवंय. इह के उरांव आदिवासी बछरों बछर ले प्रकृति देवी अंजनी के पूजा करत आवत हवंय, फेर हमन कभू नई जानत रहेन के अंजनी के नाता हनुमान ले रहिस.”
रंजय के मुताबिक, “पंडित मन आइन अऊ वो मन ये कहिनी बगरा दीन के अंजनी असल मं हनुमान के दाई आंय. अंजन ला हनुमान के जनम के जगा घोसित कर दे गीस अऊ येकर पहिली के कऊनो कुछु समझे सकतिस, पहाड़ी के ठीक ऊपर एक ठन हनुमान मन्दिर बन गे. अऊ वो जगा ला अंजन धाम घोसित कर दे गीस.”
वो मन बताथें के आदिवासी मन कभू मन्दिर के मांग नई करे रहिस ; ये ह सरकार के एक झिन अफसर के पहल ले होईस. तब झारखंड बिहार के हिस्सा होवत रहिस.
अंजन के हनुमान मंदिर के पंडित केदारनाथ पांडेय ह मन्दिर बनाय ले जुरे एक ठन मजेदार कहिनी बताथे. मन्दिर के देखरेख करेइय्या दू झिन पंडित परिवार मन ले एक के 46 बछर के केदारनाथ कहिथें, “मोर बबा मणिकनाथ पांडेय ला एक बेर सपना आइस के हनुमान के जनम ये डोंगरी के एक ठन गुफा मं होय हवय.”
वो ह कहिथे वो सपना के बाद ले ओकर बाबा ह डोंगरी मं जाय अऊ पूजा पाठ करे, रमायन पढ़े सुरु कर दीस. “अंजना ऋषि गौतम अऊ ओकर सुवारी अहल्या के बेटी रहिस, वो ह हमन ला कहिनी सुनाथे जेन ला वो हा अपन बबा ले सुने रहिस.” वोला सराप परे रहिस अऊ ये अंजना डोंगरी मं आय रहिस. ओकरे नांव ले ये जगा के नांव अंजना डोंगरी परिस.वो ह शिब के भक्तिन रहिस. एक दिन भगवान शिब ह ओकर आगू मंगतरी बन के आइस अऊ वो ला सराप ले मुक्त करे सेती ओकर कान मं मंतर फूँकिस. मंतर के ताकत सेती हनुमान के जनम ओकर गरभ ले नई, ओकर जांघ ले होय रहिस.
“वो बखत रघुनाथ सिंह गुमला के एसडीओ रहिन, अऊ मोर ददा के लंगोटिया संगवारी रहिन. वो दूनो ह मिलके फइसला करिन के डोंगरी उपर एक ठन हनुमान मन्दिर बने ला चाही. सुरु मं आदिवासी मं येकर विरोध करिन अऊ डोंगरी मं जाके बकरा बलि दीन. फेर आखिर मन्दिर बनाच दे गीस अऊ येला अंजन धाम घोसित कर दे गीस.” वो ह बेपरवाह होके जम्मो बात कहिथें.
अंजन गांव के नांव अंजनी दाई के नांव मं रखे गे हवय – आदिवासी मन के देवी, प्रकृति की एक ठन शक्ति, जेकर बारे मं गाँव के लोगन मन के मानना हवय के वो ह गाँव के तीर के डोंगरी मं बास करथे. सैकड़ों बछर ले वो मन गुफा देवी के सुमिरन करत आवत हवंय.
गाँव के बासिंदा 50 बछर के महेश्वर उरांव कहिथें, “बनेच बछर ले लोगन मन डोंगरी के पखना के पूजा करत रहिन. अऊ ये ह प्रकृति के पूजा रहिस. हनुमान जी के डोंगरी मं जनम ले के कहिनी बनेच बाद मं बगराय गीस.”
60 बछर के गाँव के मुखिया बिरसा उरांव ह अपन जिनगी मं हनुमान मन्दिर ला बनत देखे हवय. वो ह सफ्फा-सफ्फा कहिथें के आदिवासी प्रकृति के पूजा करथें, “आदिवासी हिंदू नो हें. अंजन गंब उरांव आदिवासी वाले गाँव आय अऊ उरांव आदिवासी सरना धरम ला मानथें. सरना धरम मं प्रकृति के पूजा करे जाथे- रुख, डोंगरी, नदिया, झरना सब्बो कुछु के. हमन प्रकृति के तऊन सब्बो जिनिस के पूजा करथन जेन ह हमर जिनगी ला बनाय रखे हवय.”
इहीच गाँव के 32 बछर के महतारी रमनी उरांव कहिथें के असल मं गाँव के लोगन मन सरना धरम के मनेइय्या आंय. ये ह पूरा पूरी प्रकृति के पूजा आय. “हमर लोगन मन आज घलो प्रकृति ले जुरे परब जइसने सरहुल [वसंतोत्सव] करम [ फसल लुवई के तिहार] बढ़ चढ़ के मनाथें. मन्दिर बने के पहिली हमन डोंगरी मं हनुमान के जनम के बात सुने नई रहेन. हमन डोंगरी के पूजा करत रहेन. डोंगरी के गुफा मं कुछेक पखना रहिस, हमन वोला पूजत रहें. बाद मं हनुमान जी के चर्चा होईस. मन्दिर बन गे. चरों डहर ले लोगन मन पूजा करे आय लगिन. तब कुछेक आदिवासी घलो उहाँ पूजा करे जाय लगिन.”
झारखंड के नामी उपन्यासकार अऊ कहिनीकार 63 बछर के रणेंद्र कुमार के मुताबिक, अंजन मं आदिवासी पूजा के जगा मनेक ठन हिंदू मन्दिर के कब्जा के कहिनी न त नवा आय अऊ न अचरज ले भरे. उदाहरन देवत, वो ह कहिथें, “कतको आदिवासी महतारी देवी मन ला सुरु मं वैदिक समाज के हिस्सा बना दे गे रहिस.”
“सुरु मं बौद्ध मन आदिवासी मन के महतारी देवी मन ला अपन कब्जा मं ले लीन अऊ बाद मं सब्बो हिंदू धरम के हिस्सा बन गें. छत्तीसगढ़ के तारा, वज्र डाकिनी, दंतेश्वरी जइसने देवी सब्बो आदिवासी मन के देवी रहिन.” वो ह कहिथें, “झूठा ढंग ले एको बरोबर बताके आदिवासी मन ला अब हिंदू धरम मं मिलाय जावत हवय.”
झारखंड में कुड़ुख भाषा के प्रोफ़ेसर डॉ. नारायण उरांव बतातें के जबरन सांस्कृतिक समावेशीकरण के काम आज घलो चलत हवय. वो ह कहिथें, “माटी के नान-नान पुतरा-पुतरी अऊ मड़ई, धरम के तिहार मनाय के खुल्ला जगा ह देवी मन्दिर मं बदल गे धन हिंदू मन बर मन्दिर बन गे.” अऊ मन्दिर बन जाय के बाद, ये जगा मं भगत मन के भीड़ लग जाथे. तब आदिवासी मन अपन धरम के कतको रिवाज ला माने नई सकंय.
वो ह कहिथें, “अक्सर वो मन मन्दिर मं जाय ला धरथें. रांची मं पहाड़ी मन्दिर, हरमू मंदिर, अरगोड़ा मंदिर, कांके मंदिर, मोरहाबादी मंदिर येकर उदाहरन आंय. आज घलो ये मन्दिर के बगल मं आदिवासी मन के पूजा पाठ के जगा के चिन्हा देखे जा सकथे. वो खुल्ला जगा जिहां आदिवासी मन समाज के तिहार अऊ पूजा-पाठ करत रहिन, जइसने जतरा धन मंडा जतरा, अब उहाँ दुर्गा पूजा धन मेला बजार लगत हवय. जइसने, रांची मं में अरगोड़ा के तीर के मैदान, जिहां उरांव-मुंडा लोगन मन पूजा-पाठ करत रहिन अऊ अपन तिहार मनावत रहिन.”
गुंजल इकिर मुंडा हमन ला रांची के तीर बुंडू मं एक ठन देवड़ी मंदिर के बारे मं घलो बताथें, जिहां पहिली कऊनो मन्दिर नई रहिस फेर ओकर रिस्तेदार पाहन के रूप मं लंबा बखत तक ले आदिवासी मन बर पूजा करत रहिन. “उहाँ सिरिफ एक ठन पखना रहिस अऊ बछरों बछर ले मुंडा आदिवासी पूजा करत रहिन. मन्दिर बने के बाद बनेच अकन हिंदू पूजा करे आय लगिन अऊ वो जगा मं अपन हक जताय लगिन. येकर बाद मामला ह अदालत मं चले गे अऊ अब अदालत के मुताबिक, दूनों मन के पूजा पाठ एके जगा होय लगे हवय. हफ्ता मं कुछेक दिन आदिवासी मं पाहन पूजा करथें अऊ दीगर दिन मं पंडित हिंदू मन बर पूजा करथें.”
डोंगरी मं दू अलग-अलग पूजा के जगा हवंय. आदिवासी पाहन पूजा दू ठन गुफा मं करथें अऊ डोगरी के टिलिंग मं बने हनुमान मन्दिर मं हिंदू पंडित पूजा करथें
वइसे, इहाँ हमन ला जऊन देखे ला मिलथे वो बात ओकर ले कहूँ बढ़के हवय.
गर कऊनो इतिहास के भीतर तक ले जाके देखथे, त ये पता चलथे के आदिवासी मन ला हिंदू समाज मं लाय के काम भारी गुपचुप ढंग ले चलत हवय. देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय अपन किताब लोकायत मं एक ठन बड़े सवाल उठाथें- गर 1874 मं वैदिक धरम मने इय्या मन के अबादी कुल अबादी के सिरिफ 10 फीसदी रहिस, त ये देह मं हिंदू बहुसंख्यक के दर्जा कइसने हासिल करत रहिन? येकर जुवाब जनगणना मं छिपे हो सकथे.
साल 1871 ले 1941 तक ले भारत के जनगणना ह आदिवासी मन के धरम के कतको नांव ले चिन्हारी करिस. जइसने के, आदिवासी, इंडिजिनस (मूल बासिंदा), एनिमिस्ट (जीववादी). फेर 1951 मं अजाद भारत के पहिली जनगणना ह सब्बो अलग-अलग किसिम के परंपरा ला ट्राइबल धरम नांव के नवा बरग मं मिला दीन. साल 1961 मं वोला घलो हटा दे गीस अऊ हिंदू, ईसाई, जैन, सिख, मुस्लिम अऊ बौद्ध के संग ‘दीगर’ कॉलम मं सामिल कर दे गीस.
येकरे कारन, साल 2011 के जनगणना के मुताबिक 0.7 फीसदी भारतीय मन अपन ला “दीगर धरम अऊ पन्थ” के तहत घोसित करिन, जेन ह आधिकारिक रूप ले देश मं बांटे गे अनुसूचित जनजाति मन के 8.6 के अबादी के अनुपात ले बनेच कमती हवय.
बनेच पहिली 1931 के जनगणना रपट मं भारत के जनगणना आयुक्त जे.एच. हटन आदिवासी धरम के तहत आंकड़ा ला लेके अपन चिंता ला जाहिर करथें. वो ह लिखथें, “जब कऊनो घलो मइनखे कऊनो मान्यता प्राप्त धरम के होय ले इंकार कर देथे, त वो ह बगेर कऊनो पूछताछ के हिंदू धरम मं सामिल करे के प्रवृत्ति बढ़ जाथे. ये बिचार के तरीका कुछु अइसने किसिम के आय : ये भूईन्य्या ला हिंदुस्तान कहे जाथे अऊ ये हिंदू मन के देश आय, अऊ इहाँ के बासिंदा सब्बो लोगन मन ला हिंदू होय ला चाही, जब तक ले वो मन तय करके कऊनो दीगर मान्यता प्राप्त धरम के दावा नई कर देंव.”
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“जनगणना मं हम आदिवासी अपन आप ला कहाँ दरज करबो?”
अंजन गांव के प्रमोद उरांव सवाल करत कहिथें, ''कॉलम खतम होगे हवय. हमर कतको लोगन मन जनगणना मं अपन आप ला हिंदू के रूप मं दरज करथें.फेर हमन हिंदू नई अन. जात बेवस्था हिंदू धरम के मूल मं हवय . फेर हमन अपन आप ला ये मं सामिल नई मानन.”
अंजन गांव के 40 बछर के प्रमोद सवाल करत कहिथें, “हमन प्रकृति के पूजा करे इय्या आंन. हमर दुनिया ला देखे के नजरिया जियादा खुल्ला अऊ सब्बो के माने के आय. ये मं कट्टरता के जगा नई ये. येकरे सेती, जब हमर कुछेक लोगन मन हिंदू धरम, इस्लाम धन ईसाई धरम मान लेथें, तब ले घलो हमन कभू धरम के नांव मं हतिया नई करन. गर हमर लोगन मन डोंगरी मं जाथें अऊ हनुमान के पूजा करथें, त हमन वो मन ला हिंदू नई कहन.”
अंजन गाँव के बिरसा उरांव कहिथें के “आदिवासी भारी नरम अऊ खुल्ला बिचार के हवंय. ओकर माने-गुने अऊ बिचार ला कऊनो माने ला चाहे त कऊनो बात नई. येला कऊनो घलो माने कऊनो उजर-आपत्ति नई ये. लोगन मन वोला मान सम्मान दिहीं. अब अंजन धाम मं कतको हिंदू हनुमान के पुज्जा करे आथें, मुसलमान घलो धाम दरसन करे आथें, सब्बो के सेती दरवाजा खुल्ला हवय. कतको आदिवासी अब डोंगरी के गुफा मं अऊ हनुमान मन्दिर दूनों के पूजा करथें. फेर वो मन अब ले घलो अपन आप ला आदिवासी मानथें. हिंदू नई.”
हनुमान पूजा के सवाल उलझन वाले आय.
ये गांव के महेश्वर उरांव बताथें, ''आदिवासी इहां राम अऊ लक्ष्मण के पूजा नई करेंव, फेर लोगन मन मानथें के हनुमान सवर्ण समाज के नई रहिस. वो ह आदिवासी समाज के रहिस. वो ला एक तरीका ले मइनखे के चेहरा दे के, संग मं जानवर कस दिखाके, सवर्ण समाज आदिवासी मन के खिल्ली उड़ावत रहिन, जइसने वो मन हनुमान के घलो खिल्ली उड़ाइन.”
रंजय उरांव के मुताबिक लोगन मन पंडित मन के बात ला येकरे सेती मान लीन काबर के आदिवासी मन बर हनुमान सवर्ण समाज के नई रहिस. वो ह कहिथें, “गर वो मन ले एक होय रतिस, त ओकर पूंछी नई होय रतिस. वो ला जानवर के रूप मं दिखाय गे हवय, काबर के वो ह आदिवासी आंय. अऊ येकरे सेती जब वो मन दावा करिन के अंजनी दाई के रिस्ता हनुमान ले रहिस, त ये इलाका के लोगन मन मान लीन.”
गाँव के 38 बछर के मुखिया करमी उरांव वो बखत ला सुरता करथें, जब सरा गाँव बछर मं एके बेर डोंगरी पूजा करे सेती जावत रहिस. वो ह कहिथें, “वो बखत उहना सिरिफ गुफा रहिस. लोगन मन उहाँ जावंय अऊ बरसात सेती सुमिरन करत रहिन. अभू घलो ये रिवाज ला मानत हवंय. अऊ देखव के हमर समाज के पूजा करे के बाद ये इलाका मं हमेसा कइसने पानी गिरथे.”
वो ह कहत जाथे, “ये बखत लोगन मन मन्दिर के परिक्रमा घलो करथें, काबर ये ह उहिच डोंगरी मं हवय. कुछेक आदिवासी मन्दिर के भीतरी मं जाके घलो पूजा करथें. हरेक उहाँ जाय सेती अजाद हवय जिहां वोला शांति मिलथे.”
गाँव के दीगर माईलोगन मन के घलो कहना हवय के वो मं अपन आप ला हिंदू नई मानंय. फेर ओकर मन के कुछेक लोगन मन मन्दिर मं जाके भगवान के पूजा घलो करथें. “जब कऊनो डोंगरी मं होथे, त वो ह घलो डोंगरी के हिस्सा हो जाथे. डोंगरी के पूजा करेइय्या लोगन मन हनुमान के कइसने अनदेखी कर सकथें? गर दू देंवता मिलके काम करथें, अऊ हमर बर सुग्घर बरसात लाथें, त ये मं काय नुकसान हवय?”
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू