ब्रह्मपुत्र में जलवायु परिवर्तन के जाल में फंसे शिल्पकार
सेप्पा, बाएर, दारकी, दुएर, दियार वैगरह कुछ उन बांस के स्वदेशी जालों (ट्रैप) के नाम हैं जिन्हें जलाल अली अपनी आजीविका के लिए बनाते हैं. लेकिन मानसून की दग़ाबाज़ी ने असम के अधिकांश जलाशयों को सुखा डाला है, और मछली पकड़ने वाले जालों की मांग में तेज़ गिरावट आई है. इसका सीधा असर इनकी बिक्री से होने वाली आमदनी पर पड़ा है
महीबुल हक़, असम के एक मल्टीमीडिया पत्रकार और शोधकर्ता हैं. वह साल 2023 के पारी-एमएमएफ़ फ़ेलो हैं.
Editor
Priti David
प्रीति डेविड, पारी की कार्यकारी संपादक हैं. वह मुख्यतः जंगलों, आदिवासियों और आजीविकाओं पर लिखती हैं. वह पारी के एजुकेशन सेक्शन का नेतृत्व भी करती हैं. वह स्कूलों और कॉलेजों के साथ जुड़कर, ग्रामीण इलाक़ों के मुद्दों को कक्षाओं और पाठ्यक्रम में जगह दिलाने की दिशा में काम करती हैं.
Translator
Prabhat Milind
प्रभात मिलिंद, शिक्षा: दिल्ली विश्विद्यालय से एम.ए. (इतिहास) की अधूरी पढाई, स्वतंत्र लेखक, अनुवादक और स्तंभकार, विभिन्न विधाओं पर अनुवाद की आठ पुस्तकें प्रकाशित और एक कविता संग्रह प्रकाशनाधीन.