जैसे ही राजू डुमरगोईं तारपी (या तारपा) बजाना शुरू करते हैं, फूंक मारने से उनके गाल फूल जाते हैं. बांस और सूखी लौकी से बना पांच फीट लंबा यह वाद्ययंत्र तुरंत जीवंत हो उठता है और हवा के सहारे बुनी इस वाद्य की धुन गूंजने लगती है.

छत्तीसगढ़ के रायपुर के प्रदर्शनी मैदान में इस संगीतकार और उनके अनोखे वाद्ययंत्र ने हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचा. मौक़ा था राज्य सरकार द्वारा 27 से 29 दिसंबर, 2020 को आयोजित किए गए राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का.

संगीतकार राजू ने बताया कि वह दशहरे, नवरात्रि और अन्य त्योहारों के दौरान, महाराष्ट्र के पालघर के एक गांव मोखाड़ा गुनडाजापाड़ा में अपने घर पर तारपी बजाते हैं.

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अनुवाद: देवेश

Purusottam Thakur

पुरुषोत्तम ठाकूर २०१५ सालासाठीचे पारी फेलो असून ते पत्रकार आणि बोधपटकर्ते आहेत. सध्या ते अझीम प्रेमजी फौडेशनसोबत काम करत असून सामाजिक बदलांच्या कहाण्या लिहीत आहेत.

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देवेश एक कवी, पत्रकार, चित्रकर्ते आणि अनुवादक आहेत. ते पारीमध्ये हिंदी मजकूर आणि अनुवादांचं संपादन करतात.

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