दामोदर नदी के किनारे स्थित आमता शहर में मुख्य व्यवसाय के तौर पर खेती और मछली पकड़ने का काम किया जाता है. यहां की औरतें प्रति साड़ी की दर पर शिफॉन व जॉर्जेट साड़ियों पर काम करती हैं, और उन साड़ियों पर बारीक पत्थर जड़कर कलात्मक रूप देती हैं.

पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाक़ों के बहुत से घरों में औरतें इस काम से जुड़ी हैं; यह उनकी आय का एक ज़रिया बनता है, घर के ख़र्चों में भागीदारी का मौक़ा देता है, और आज़ादी का अहसास भी कराता है.

पश्चिम बंगाल की दुकानों में ये तैयार साड़ियां 2,000 रुपए तक की क़ीमतों में बिकती हैं, लेकिन इन्हें तैयार करने वाली औरतों को इसका एक हिस्सा ही मिलता है – यानी एक साड़ी के क़रीब 20 रुपए.

आमता में प्रति साड़ी की दर से काम करने वाली मौसमी पात्रा, सजावटी पत्थरों का इस्तेमाल करके साड़ियों को तैयार करती हैं

सिंचिता माजी ने यह वीडियो स्टोरी साल 2015-16 की पारी फ़ेलोशिप के तहत रिपोर्ट की थी.

अनुवाद: आशुतोष शर्मा

Sinchita Parbat

सिंचिता माजी पारीची व्हिडिओ समन्वयक आहे, ती एक मुक्त छायाचित्रकार आणि बोधपटनिर्माती आहे. सुमन पर्बत कोलकात्याचा ऑनशोअर पाइपलाइन अभियंता आहे, सध्या तो मुंबईत आहे. त्याने दुर्गापूर, पश्चिम बंगालच्या राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थेतून बी टेक पदवी प्राप्त केली आहे. तोदेखील मुक्त छायाचित्रकार आहे.

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Text Editor : Sharmila Joshi

शर्मिला जोशी पारीच्या प्रमुख संपादक आहेत, लेखिका आहेत आणि त्या अधून मधून शिक्षिकेची भूमिकाही निभावतात.

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Translator : Ashutosh Sharma

Ashutosh Sharma is an editor and writer. He studied Public Policy at St. Xavier’s College, Mumbai. His area of work includes subjects such as cultural writing, publishing, programme design and research.

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