“दो दिन पहले हम सबने फ़ोटो लिए थे अपने मसल्स के. मेरे पास तो सिक्स पैक एब्स है, बिना एक्सरसाइज़ के, और शहबाज़ के बाइसेप्स देखिए!” युवा आदिल अपने सहकर्मी की ओर हंसते इशारा करते हैं.

मोहम्मद आदिल और शहबाज़ अंसारी मेरठ के जिम और फ़िटनेस इक्विपमेंट उद्योग में काम करते हैं, और एक दिन में उससे ज़्यादा वज़न उठा लेते हैं, जितना जिम जाने वाले एक सप्ताह में उठाते हैं. यह वज़न उठाना उनके लिए फ़िटनेस का कोई लक्ष्य पूरा करने जैसा नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में मुस्लिम परिवारों के युवाओं के लिए रोज़ी-रोटी है. दरअसल पश्चिमी यूपी का यह ज़िला खेल के सामान बनाने का केंद्र है.

उद्यमी मोहम्मद साक़िब कहते हैं, "अभी कुछ दिन पहले लड़के अपने बाइसेप्स और एब्स [पेट की मांसपेशियों] की तुलना के लिए फ़ोटो खींच रहे थे." साक़िब (30) सूरजकुंड रोड पर परिवार की ओर से किराए पर लिए जिम उपकरणों के शोरूम में काउंटर पर बैठे हैं. सूरजकुंड रोड पर एक किलोमीटर का इलाक़ा मेरठ में खेलों से जुड़े सामान के बाज़ार का केंद्र है.

वह आगे कहते हैं, “सामान्य सा डंबल इस्तेमाल करने वाले लोगों, जो घर संभालते हैं, से लेकर जिम के सैटअप तक, जो प्रोफ़ेशनल्स खिलाड़ी वाले यूज़ करते हैं, आजकल सबको जिम और फ़िटनेस इक्विपमेंट चाहिए."

जब हम बात कर रहे थे, उस बीच लोहे की छड़ों और पाइपों के अलावा होम जिम और लोहे की सलाखों जैसे तैयार माल से लदे हुए कई इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहन (स्थानीय लोग इन्हें मिनी मेट्रो कहते हैं) इस व्यस्त सड़क से गुज़रे. साक़िब शोरूम के कांच के दरवाज़े से इस आवाजाही देखते हुए कहते हैं, "जिम मशीन कई पार्ट्स में बनती है और फिर असेंबल की जाती है."

Left: Mohammad Saqib at their rented gym equipment showroom on Suraj Kund Road in Meerut city .
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Right: Uzaif Rajput, a helper in the showroom, demonstrating how a row machine is used
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बाएं: मेरठ में सूरजकुंड रोड पर मोहम्मद साक़िब का जिम उपकरणों का शोरूम, जो उन्होंने किराए पर लिया है. दाएं: शोरूम में सहायक के तौर पर कार्यरत उज़ैफ़ राजपूत दिखा रहे हैं कि रो मशीन कैसे इस्तेमाल की जाती है

लोहे के काम में मेरठ की केंद्रीय भूमिका नई नहीं है. साक़िब ने पारी को बताया, "शहर अपनी लोहे की कैंचियों के लिए दुनिया भर में मशहूर है." साल 2013 में क़रीब तीन सदी पुराने मेरठ के कैंची उद्योग को जीआई टैग मिला.

हालांकि, मेरठ में जिम उपकरणों के निर्माण का इतिहास ज़्यादा पुराना नहीं है, और 1990 के दशक की शुरुआत से शुरू होता है. साक़िब बताते हैं, "कुछ पंजाबी और कुछ लोकल फ़र्म वाले, जो मेरठ के स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में पहले से थे, उन्होंने इसकी शुरुआत की थी. लोहे के काम करने वाले कारीगर यहां थे ही, रॉ मैटीरियल जैसे रिसाइकिल किए हुए आयरन पाइप, रॉड, शीट जिससे जिम इक्विपमेंट तैयार होते हैं, वो भी आराम से शहर की लोहा मंडी [थोक के कच्चे माल का बाज़ार] में मिलते थे ."

ज़्यादातर लोहार और लोहे की ढलाई करने वाले मुसलमान हैं और उनके घरों की आय काफ़ी कम होती है. साक़िब कहते हैं, "ग़रीब परिवारों से होते हैं. परिवार का सबसे बड़ा बेटा तो बहुत कम उम्र में ही सीख जाता है. सैफ़ी/लोहार (अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी) उपजाति के सदस्यों को इस व्यवसाय में बेहद हुनरमंद माना जाता है.” साक़िब का परिवार अंसारी समुदाय से है, जो बुनकरों की एक मुस्लिम उपजाति है, जिसे राज्य में ओबीसी के रूप में दर्ज किया गया है.

साक़िब कहते हैं, ''कई यूनिट मिलेंगे आपको मुस्लिम मोहल्लों में जैसे इस्लामाबाद हो गया, ज़ाकिर हुसैन कॉलोनी, लिसाड़ी गेट और ज़ैदी फ़ार्म.'' मेरठ ज़िले में मुस्लिम आबादी क़रीब 34 फ़ीसदी है, जो राज्य में सातवीं सबसे बड़ी आबादी है (जनगणना 2011).

लोहे के कारीगरों की मुस्लिम प्रोफ़ाइल केवल मेरठ में ही नहीं है. भारत के मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति पर 2006 की रिपोर्ट ( सच्चर समिति की रिपोर्ट ) के अनुसार फ़ैब्रिकेटेड मैटल प्रोडक्ट्स उन तीन मेन्युफ़ैक्चरिंग क्षेत्रों हैं, जिनमें अपेक्षाकृत मुसलमान बड़ी तादाद में काम करते हैं.

Asim and Saqib in their factory at Tatina Sani. Not just Meerut city, but this entire district in western UP is a hub for sports goods’ production
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Asim and Saqib in their factory at Tatina Sani. Not just Meerut city, but this entire district in western UP is a hub for sports goods’ production
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ततीना सानी में अपनी फैक्ट्री में मौजूद आसिम और साक़िब. सिर्फ़ मेरठ शहर नहीं, बल्कि पश्चिमी यूपी का यह पूरा ज़िला खेलों के सामान का केंद्र है

साक़िब और उनके भाई मोहम्मद नाज़िम और मोहम्मद आसिम ने जब शहर की लोहा इंडस्ट्री में काम शुरू किया, तो दोनों की उम्र तीस के आसपास थी. साल 2000 के दशक की शुरुआत में जब वे छोटे ही थे, उनके पिता के थोक कपड़ा व्यवसाय को भारी नुक़सान पहुंचा था. इसलिए उन्होंने यह काम शुरू किया.

आसिम ने अहमद नगर इलाक़े में अपने घर पर डंबल प्लेट्स बनानी शुरू कीं, जबकि नाज़िम एक ऑटो पार्ट्स बनाने के कारोबार में जुट गए. साक़िब मैटल फ़ैब्रिकेशन कारखाने में कारीगर फ़ख़रुद्दीन अली सैफ़ी के सहायक बनकर काम करने लगे. साक़िब कहते हैं, "उन्होंने मुझे लोहे से अलग-अलग चीज़ें बनानी सिखाईं. लोहे को काटना, जोड़ना, मोड़ना और असेंबल करके जिम इक्विपमेंट, झूले, जाली गेट्स वगैरह बनाना सिखाया."

अब ये भाई ततीना सानी गांव में अपनी फ़िटनेस और जिम उपकरण बनाने की फ़ैक्ट्री चलाते हैं, जो शहर में उनके शोरूम से क़रीब नौ किलोमीटर दूर एक छोटी सी बस्ती है. मेरठ लोहे की कलाकृतियों के निर्माण का भी केंद्र है जैसे औज़ार, कैंचियां और लोहे का फर्नीचर ज़िले (जनगणना 2011) से निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुओं में से हैं.

साक़िब कहते हैं, “मेरठ में लोहे के काम करने वाले अनगिनत कुशल श्रमिक मुझसे ज़्यादा जानते हैं. पर यही है कि मैं श्रमिक से मालिक बन सका और और ज़्यादातर नहीं बन पाए अभी तक.”

उनका सफ़र एक अवसर की वजह से मुमकिन हो सका. भाइयों के बचाए पैसे से वह मास्टर इन कंप्यूटर्स एप्लिकेशन यानी एमसीए कर पाए. साक़िब कहते हैं, “नाज़िम और आसिफ़ भाई घबरा रहे थे. पर उनको विश्वास भी था कि मैंने जो सीखा है एमसीए करके, उससे हम अपना ख़ुद का बिज़नेस खोल सकेंगे जिम और फ़िटनेस इंडस्ट्री में.”

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Left: Metal pieces are cut, welded, buffed, finished, painted, powder-coated and packed in smaller parts which are later assembled and fitted together.
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Right : A band saw cutting machine used to slice solid iron cylindrical lengths into smaller weight plates
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बाएं: धातु के टुकड़े काटकर वेल्ड, बफ़, फ़िनिश, पेंट और फिर उन्हें पाउडर-कोट किया जाता है. इन्हें तब छोटे-छोटे हिस्सों में पैक किया जाता है जिन्हें बाद में इकट्ठा करके एक साथ फ़िट किया जाता है. दाएं: एक बैंड आरा काटने की मशीन का इस्तेमाल ठोस लोहे के बेलनाकार टुकड़ों को छोटे वज़न की प्लेटों में काटने के लिए किया जाता है

The factory workers dressed in colourful t-shirts operate electric machines that radiate sparks when brought in contact with metal
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रंग-बिरंगी टीशर्ट्स पहने फ़ैक्ट्री के कर्मचारी बिजली की मशीनें चला रहे हैं, जो धातु के संपर्क में आने पर चिंगारियां छोड़ती हैं

फ़ैक्ट्री में घूमते हुए साक़िब बताते जाते हैं, “जिम इक्विपमेंट बनाने के लिए लोहे के पार्ट्स काटकर, वैल्ड करके, बफ़िंग, फ़िनिशिंग, पेंटिंग, पाउडर कोटिंग और पैकिंग करते हैं. छोटे-छोटे पार्ट्स बाद में असेंबल किए जाते हैं, फ़िटिंग की जाती है. आप जैसे फ़ैक्ट्री आए, आपको पता नहीं चलेगा कि कौन सा पार्ट बन रहा है, क्योंकि आपने फ़िट किया हुआ फ़ैंसी सा इक्विपमेंट जिम में देखा होगा.”

वह जिन जिमों का ज़िक्र कर रहे हैं वह उस फ़ैक्ट्री से काफ़ी अलग होता है जिसमें हम मौजूद हैं. तीन दीवारों और ऊपर टिन शेड के छत वाली ततीना सानी की इस फ़ैक्ट्री को तीन हिस्सों में बांटा गया है - फ़ैब्रिकेशन एरिया, पेंटिंग एरिया और पैकिंग एरिया. खुले सिरे से कुछ हवा आ पाती है. गर्मी के लंबे महीनों में यह काफ़ी अहम होता है, जब तापमान 40 के आसपास और कभी-कभी 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है.

फ़ैक्ट्री में चलते हुए हमें ज़मीन पर पैर रखते हुए ख़ासा ध्यान रखना पड़ रहा है.

लोहे की 15 फ़ीट लंबी रॉड और पाइप, 400 किलो से अधिक के ठोस लोहे के बेलनाकार हिस्से, वज़न वाली प्लेटों को काटने के लिए इस्तेमाल होने वाली ठोस और सपाट धातु की चादरें, उत्पादन के अलग-अलग चरणों में इस्तेमाल होने वाली बिजली की बड़ी मशीनें और जिम उपकरण सभी फ़र्श पर पड़े हैं. उनके बीच एक संकरी, बगैर निशान वाला पगडंडी सा रास्ता है, और चूकने का मतलब है कि तेज़ धार से गहरे कटने का डर. यहां तक कि पैरों पर किसी भारी चीज़ के गिरने से हड्डी टूटने का भी जोखिम रहता है.

इन भूरे, धूसर और काले रंग के भारी-भरकम अचल सामानों के बीच एकमात्र गतिशीलता और चमक आती है कारीगरों से. रंगीन टी-शर्ट पहने वे बिजली की मशीनें चला रहे हैं जो धातुओं के संपर्क में आने पर चिंगारियां छोड़ती हैं.

Asif pushes the iron pipe along the empty floor on his left to place it on the cutting machine; he cuts (right) the 15 feet long iron pipe that will go into making the 8 station multi-gym
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Asif pushes the iron pipe along the empty floor on his left to place it on the cutting machine; he cuts (right) the 15 feet long iron pipe that will go into making the 8 station multi-gym
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आसिफ़ लोहे के पाइप को कटिंग मशीन पर रखने के लिए अपनी बायीं ओर के खाली फ़र्श पर धकेलते हैं. वह 15 फ़ीट लंबे लोहे के पाइप को (दाएं) काटते हैं जिससे 8 स्टेशन मल्टी-जिम के निर्माण में इस्तेमाल होगा

Left: Mohammad Naushad, the lathe machine technician at the factory, is in-charge of cutting and shaping the cut cylindrical iron and circular metal sheet pieces into varying weights.
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Right: At Naushad's station, several disc-shaped iron pieces stacked on top of one another based on their weight
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बाएं: कारखाने में खराद मशीन के कारीगर मोहम्मद नौशाद के ज़िम्मे कटे हुए बेलनाकार लोहे और गोलाकार धातु शीट के टुकड़ों को अलग-अलग वज़न में काटने और आकार देने का काम है. दाएं: नौशाद के वर्कस्टेशन पर डिस्क के आकार के कई लोहे के टुकड़े अपने वज़न के आधार पर एक दूसरे के ऊपर रखे हैं

यहां मोहम्मद आसिफ़ ततीना सानी के अकेले कारीगर हैं. दूसरे लोग मेरठ के आसपास के इलाक़ों से आते हैं. आसिफ़ (18) बताते हैं “मैं यहां क़रीब ढाई साल से काम कर रहा हूं, लेकिन यह मेरा पहला काम नहीं है. इससे पहले मैं दूसरी जिम मशीन फ़ैक्ट्री में काम करता था.” आसिफ़ लोहे के पाइप काटने के एक्सपर्ट हैं. अस्तव्यस्त पड़े ढेर से 15 फीट लंबे पाइप बाहर निकालकर वह उन्हें एक-एक करके पाइप-कटिंग मशीन पर रखने से पहले अपनी बाईं ओर खाली फ़र्श पर धकेलते हैं. जहां काटना है वहां निशान लगाने के लिए वह इंच टेप का इस्तेमाल करते हैं. उस जगह जिम उपकरण बनाने के लिए ज़रूरी लंबाई और डिज़ाइन के मुताबिक़ कट लगाना है.

आसिफ़ बता रहे हैं, “मेरे पिता जो ऑटो चलाते हैं वह उनका नहीं है. उनकी कमाई काफ़ी नहीं होती, तो मुझे जल्दी से जल्दी काम करना शुरू करना पड़ा.” वह हर महीने साढ़े छह हज़ार रुपए कमा लेते हैं.

फ़ैक्ट्री के दूसरे हिस्से में मोहम्मद नौशाद लोहे के एक ठोस सिलिंडर के आकार वाले टुकड़े को आरी मशीन से काट रहे हैं. नौशाद (32) भी यहां खराद मशीन पर काम करते हैं और आसिम के साथ 2006 से काम कर रहे हैं. वज़न के मुताबिक़ एक दूसरे के ऊपर रखे डिस्क के आकार वाले लोहे के कई टुकड़ों की ओर इशारा करते हुए नौशाद कहते हैं, “ये सारे फ़िटिंग के लिए अलग-अलग टाइप के जिम इक्विपमेंट में लगाए जाएंगे.” नौशाद 16 हज़ार रुपए तक कमा लेते हैं.

नौशाद के काम की जगह के बायीं ओर मोहम्मद आसिफ़ सैफ़ी (42), और आमिर अंसारी (27) बैठते हैं, जो आठ स्टेशन वाला मल्टी जिम लगा रहे हैं. यह उस खेप का हिस्सा है जिसे कुपवाड़ा में सेना के शिविर में पहुंचाया जाना है.

कंपनी के ग्राहकों में भारतीय सेना के श्रीनगर और कटरा (जम्मू और कश्मीर), अंबाला (हरियाणा), बीकानेर (राजस्थान) और शिलांग में मौजूद प्रतिष्ठान शामिल हैं और साक़िब के मुताबिक़ “निजी जिम सैटअप की सूची मणिपुर से केरल राज्य तक है. हम नेपाल और भूटान को भी निर्यात करते हैं.”

Left: Asif Saifi finalising the distance between two ends of the multi-gym based on the cable crossover exercise.
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Right: He uses an arc welder to work on the base of the multi-gym
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बाएं: आसिफ़ सैफ़ी केबल क्रॉसओवर अभ्यास के मुताबिक़ मल्टी-जिम के दो सिरों के बीच की दूरी को अंतिम रूप दे रहे हैं. दाएं: वह मल्टी-जिम के बेस पर काम करने के लिए एक आर्क वेल्डर का इस्तेमाल करते हैं

Amir uses a hand operated drilling machine (left) to make a hole into a plate that will be welded onto the multi-gym. Using an arc welder (right), he joins two metal pieces
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Amir uses a hand operated drilling machine (left) to make a hole into a plate that will be welded onto the multi-gym. Using an arc welder (right), he joins two metal pieces
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आमिर प्लेट में छेद करने के लिए हाथ से चलने वाली ड्रिलिंग मशीन (बाएं) इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे मल्टी-जिम पर वेल्डिंग से जोड़ा जाएगा. एक आर्क वेल्डर (दाएं) उपयोग करके वह दो धातु के टुकड़ों को जोड़ते हैं

दोनों आर्क वेल्डिंग विशेषज्ञ हैं और छोटे हिस्से बनाने के साथ-साथ बड़े उपकरण जोड़ने का काम भी करते हैं. ऑर्डर और बनाई गई मशीनों के आधार पर वे महीने में तक़रीबन 50-60,000 रुपए कमा लेते हैं.

आमिर कहते हैं, "आर्क वेल्डर के आगे एक पतला सा इलेक्ट्रोड लगता है जो मोटे लोहे को भी पिघला देता है. जब धातु के दो टुकड़ों को जोड़ा जाता है, तो इलेक्ट्रोड को हाथों से ही चलाना पड़ता है. इसके चलते यह काम आसान नहीं होता, और इस पर महारत हासिल करना मुश्किल हो जाता है.''

साक़िब उनकी तनख़्वाह के बारे में बताते हैं, “आमिर और आसिफ़ ठेके पर काम करते हैं. जिस काम में सबसे ज़्यादा कौशल चाहिए वो ठेके पर किए जाते हैं, न कि वो काम जो कम हुनर वाले हों. एक्सपर्ट की मांग ज़्यादा होती है और वह इस स्थिति में होते हैं कि मालिक से बेहतर तनख़्वाह मांग सकें.''

अचानक दुकान में रोशनी मद्धिम पड़ गई. लाइट चली गई थी; फ़ैक्ट्री के जेनरेटर चालू होने तक कुछ सेकंड के लिए काम रुक जाता है. जेनरेटर की आवाज़ और बिजली की मशीनों के शोर में अपनी बात कहने के लिए कर्मचारी अब ऊंची आवाज़ में चिल्ला रहे हैं.

अगले वर्कस्टेशन पर 21 साल के इबाद सलमानी मेटल इनर्ट गैस (एमआईजी) वेल्डर के ज़रिए जिम उपकरण के जोड़ मज़बूत कर रहे हैं. इबाद कहते हैं, "लोहा पिघल जाएगा अगर आपको पता नहीं कि मोटे और पतले टुकड़ों की कितने तापमान पर वेल्डिंग करनी है." वह महीने में 10,000 रुपए तक कमा लेते हैं.

धातु के टुकड़े पर काम करने के लिए नीचे झुके इबाद इस दौरान पैदा होने वाली चिंगारी से अपनी आंखों और बाहों को बचाने के लिए ढाल का उपयोग करते हैं. साक़िब कहते हैं, “सारे सुरक्षा उपकरण हैं हमारे पास. क्या सुरक्षित है और क्या नहीं, कारीगर अपने आराम और दिक़्क़त के हिसाब से परखते हैं और उनका इस्तेमाल करते हैं.''

Left: Ibad Salmani  uses a hand shield while strengthening the joints of gym equipment parts with a Metal Inert Gas (MIG) welder.
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Right: Babu Khan, 60, is the oldest karigar at the factory and performs the task of buffing, the final technical process
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बाएं: इबाद सलमानी मेटल इनर्ट गैस (एमआईजी) वेल्डर के ज़रिए जिम उपकरण के हिस्सों के जोड़ मज़बूत करते समय एक ढाल का उपयोग करते हैं. दाएं: 60 साल के बाबू ख़ान कारखाने के सबसे पुराने कारीगर हैं और बफ़िंग का काम करते हैं, जो आख़िरी तकनीकी प्रक्रिया है

आसिफ़ सैफ़ी कहते हैं, “उंगलियां जलती हैं. आयरन पाइप पैरों पर गिर जाते हैं. कट वगैरह तो आम बात है. बचपन से करते आ रहे हैं, आदत हो गई है. काम को छोड़ नहीं सकते.”

सबसे बुज़ुर्ग कारीगर बाबू ख़ान (60) अपने धड़ और पैरों को चिंगारी से बचाने के लिए अपनी बांहों को सूती कपड़े के टुकड़ों से ढकते हैं और अपनी कमर के चारों ओर एक बड़ा कपड़ा बांधते हैं. वह कहते हैं, ''पहले मैं लोहे के रॉड की वैल्डिंग करता था दूसरी फ़ैक्ट्री में. यहां पर बफ़िंग करता हूं.''

साक़िब जानकारी देते हैं कि "बफ़िंग से लोहे के ऊपर कटिंग और वैल्डिंग के जितने भी निशान हैं, सब बराबर हो जाते हैं. यह पूरी प्रक्रिया का आख़िरी तकनीकी काम है." बाबू को महीने में 10 हज़ार रुपए वेतन मिलता है.

जब सतह चिकनी हो जाती है, उसके बाद 45 साल के शाकिर अंसारी के ज़िम्मे उपकरण के हिस्सों के जोड़ ढकने के लिए बॉडी फ़िलर पुट्टी लगाना होता है और वह उन्हें रेगमाल से चिकना करते हैं. शाकिर, साक़िब के बहनोई हैं और छह साल से यहां काम कर रहे हैं. वह ठेके पर काम करते हैं और महीने में 50 हज़ार रुपए तक कमा लेते हैं. वह बताते हैं, “मेरा डीज़ल से चलने वाले ऑटो के लिए लोहे के नॉज़ल बनाने का कारोबार था. मगर कंप्रेस्ड नेचुरल गैस [सीएनजी] ऑटो के आने के बाद मेरा काम पूरी तरह चौपट हो गया.''

एक बार जब शाकिर उपकरण पर प्राइमर और पेंट लगाकर काम पूरा कर लेते हैं, तो इस पर मशीन से पाउडर-कोट किया जाता है. साक़िब कहते हैं, "वह इसे टिकाऊ बनाता है और ज़ंग नहीं लगने देता."

Left: Shakir Ansari applies body filler putty to cover gaps on the surface at the joints.
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Right: Sameer Abbasi (pink t-shirt) and Mohsin Qureshi pack individual parts of gym equipment
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बाएं: शाकिर अंसारी जोड़ों की सतह पर जगहों को भरने के लिए बॉडी फ़िलर पुट्टी लगा रहे हैं. दाएं: समीर अब्बासी (गुलाबी टी-शर्ट) और मोहसिन क़ुरैशी जिम उपकरणों के अलग-अलग हिस्से पैक कर रहे हैं

सभी नए बने उपकरण के हिस्सों को गेट के पास एक जगह पैक किया जाता है, जहां से उन्हें ट्रकों पर लादा जाता है. पैक करने और फ़िट करने वाले मोहम्मद आदिल, समीर अब्बासी, मोहसिन क़ुरैशी और शाहबाज़ अंसारी की टीम की उम्र 17-18 साल के बीच है और उनमें से हर कोई 6,500 रुपए महीने कमाता है.

सेना के जिम के लिए कुपवाड़ा जाने वाला ट्रक आ चुका है और वे इसे लोड करना शुरू करेंगे.

समीर कहते हैं, "जहां ऑर्डर ट्रक से जाता है, हम लोग ट्रेन से चले जाते हैं." वह आगे कहते हैं, "इस काम की वजह से पहाड़, सागर और रेगिस्तान सब देख लिए हैं."

अनुवाद: अजय शर्मा

Shruti Sharma

Shruti Sharma is a MMF-PARI fellow (2022-23). She is working towards a PhD on the social history of sports goods manufacturing in India, at the Centre for Studies in Social Sciences, Calcutta.

यांचे इतर लिखाण Shruti Sharma
Editor : Sarbajaya Bhattacharya

Sarbajaya Bhattacharya is a Senior Assistant Editor at PARI. She is an experienced Bangla translator. Based in Kolkata, she is interested in the history of the city and travel literature.

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Translator : Ajay Sharma

Ajay Sharma is an independent writer, editor, media producer and translator.

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