गाजुवास गांव के ठीक बहरी, खेजरी (शमी) के गाछ के झुटपुट के छांह में भुईयां में बइठल बजरंग गोस्वामी कहेलन, “गरमी से हमार पीठ जर गईल बा. गरमी बढ़ता, खेत में उपज घटता,” इ कहत उ कटाई के बाद धइल बजरा के ढेर ओर देखे लगलें. एगो ऊंट लगे खड़ियाईल बा औरी राजस्थान के तारानगर तहसील में ओ 22 बिगहा खेत में सूखल घास खाता. एहि पर बजरंग आ उनकर मेहरारू राज कौर एगो बटाईदार खेतिहर के जइसन खेती करता लोग.
तारानगर के दख्खिन में सुजानगढ़ तहसील के गीता देवी नायक कहेली, “मूड़ी के ऊपर सुरुज गरम बा, गोड़ के नीचे बालू गरम बा.” गीता देवी, जौन कि एगो बिना जमीन के बिधवा मेहरारू हइ, भगवानी देवी चौधरी के परिवार के मालिकांव वाला खेत प मजूरी करेली. दुनु जनी अभिये, सांझ के लमसम 5 बजे गुडाबड़ी गांव में आपन कार (काम) खतम कईले बा लोग. भगवानी देवी कहतारी, “गरमिए गरमी परता आजकल.”
उत्तरी राजस्थान के चुरू जिला में, जहां गरमी के बेरा में बालू छनछनाला आ मई – जून के बेयार धधकल भट्टी नीयर बुझाला. गरमी कइसे बढले जाता- ए बारे में ईंहां बातचीत आम बा. ओ महीना में तापमान आसानी से 40 डिग्री के पार चल जाला. पिछलही महीना में, मई 2020 में, तापमान 50 डिग्री सेल्सियस पहुंच गईल रहे- आ 26 मई के त दुनिया के सबसे बेसी तापमान ईंहां रहे, जइसन कि समाचार रिपोर्ट सब में बतावल गईल.
पर साल, जब चुरू में तापमान आपन रिकॉर्ड तूर दहलस आ जून 2019 के सुरुआत में पारा 51 डिग्री सेल्सियस ले पहुंच गईल- जौन कि पानी के क्वथनांक (तापमान जे पर पानी खउलेला) के आधा से बेसी बा- त उहां के लोगन खातिर इ कवनो बड़का बात ना रहे. हरदयाल सिंह जी (75), जे एगो सेवा से छूटल स्कूली शिक्षक आ जमींदार हउंवें, गाजुवास गांव के आपन खटिया प ओठंगल कहलें, “हमरा इयाद बा, लमसम 30 बरीस पहिलहूं इ 50 डिग्री ले पहुँच गईल रहे.”
छह महीना बाद, दिसंबर -जनवरी ले, चुरू में तापमान सोंन्ना से नीचे देखल गईल, अइसन कई साल से होत रहल बा. औरी फ़रवरी 2020 में, भारत के मौसम बिभाग देखलस कि भारत के मैदानी इलाकन में सबसे कम तापमान, 4.1 डिग्री, चुरू के रहल.
तापमान के इ चक्कर से अलगे- माइनस 1 से 51 डिग्री सेल्सियस ले- जिला के लोग बेसी कर के खाली गरमी के लमहर बेरा के बात बतियावेला लोग. उ लोग ना त जून 2019 के 50 से बेसीई डिग्री के बात कहेला लोग ना पछिला महीना के 50 डिग्री के बारे में, बलुक लमहर बेरा ले रहे वाला ओही गरमी के बात बतियावेला लोग जवन दूसर मौसम के घोंट जाता.
चुरू के निवासी आ पड़ोस के सीकर जिला के एसके गवर्मेंट कालेज के पहिलका प्रधानाचार्य, पोरफेसर एचआर इसरान (इनका के कई लोग उस्ताद मानेला.) कहेलन, “पहिले में तवत गरमी खाली एक आ दुइये दिन ले रहत रहे. अब अइसन गरमी कई दिन ले परता. गरमी के बेरा अब लमहर पसर गईल बा.”
अमृता चौधरी इयाद करेली, जून 2019 में, “हमनी दुपहरिया में सड़क प चल ना पायीं जान, हमनी के चप्पल अलकतरा से सटे लागे.” तब्बो दोसर लोग जइसन चौधरियो, जे सुजानगढ़ में बंधनी के कपड़ा बनावे वाली एगो संस्था दिशा शेखावटी चलावेली, गरमी के बेरा के बढ़ गायीला से फिकिर में बाड़ी. उ बतावेली, “इ गरमो जघे में गरमी बढ़ता आ बेरा से पहिलहिये सुरू हो जाता.”
गुदाबड़ी गांव में भगवानी देवी के अंदाज बा, “गरमी के बेरा डेढ़ महीना बढ़ गईल बा. ”उनहिये जइसन चुरू जिला के कई गांव के लोग बतावेला कि बेरा के तरे आगे- पीछे होता-गरमी के पसरत दिन सुरुआती जाड के कुछ हफ्ता खतम क देले बा आ बीच के मानसून के महीना कुली के छोट क देले बा- आ कइसे 12 महीना के पतरा घोरा गईल बा.
लोग 51 डिग्री सेल्सियस गरमी वाला एक सप्ताह आ पछीला महीना 50 डिग्री वाला कुछ दिन ना, बलुक पानी बयार में होत ई फेर बदल से फिकिर में बा.
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चुरू में साल 2019 में, 1 जून से 30 सितम्बर के बीच 369 मिमी बरखा भईल. इ मानसून के ओ महीनन में बरखा के सामान्य औसत 314 मिमी से तनियक ऊपर रहे. पूरा राजस्थान- भारत के सबसे बड़का औरी सूखल राज्य, जे देस के कुल क्षेत्रफल के 10.4 परतिसत हिस्सा ह-एगो सूखल आ आधा सूखल क्षेत्र ह, जहां सलीना लमसम 574 मिमी औसत बरखा (सरकारी हिसाब से) होला.
राजस्थान के गंवई जघ़े में रहे वाला लमसम 70 मिलियन (7 करोड़) के आबादी में से 75 परतिसत लो ला खेती आ मवेसी पोसल ही पहिलका बैपार ह. चुरू जिला में, लमसम 2.5 मिलियन (25 लाख) के आबादी में से 72 परतिसत लोग गांवे में रहेला- जहां प बेसी बरखा के भरोसे खेती कईल जाला.
समय के साथे, बहुत लोग बरखा के आसरा के कम करे के परयास कईले बा लोग. पोरफेसर इसरान बतावलन, “1990 के बाद से, ईंहां बोरवेल (500 -600 फीट गहीर) खोदे के पर्यास भईल बा, बाकिर इ परयास भूजल के लवणता के कारन बहुत सफल ना रहल. जिला के छह गो तहसील के 899 गांवन में, तनियक समय ले, कुछ खेतिहर बोरवेल के पानी के उपयोग से मम्फल्ली जइसन फसल उगा लहल लोग. लेकिन ओकरा बाद जमीन बेसी सूख गईल आ कुछ गांवन के छोड़ के बाकी गांव के बेसी बोरवेल बंद हो गईल.”
राजस्थान स्टेट एक्शन प्लान फॉर क्लाइमेट चेंज ( आरएसएपीसीसी , 2010) के मसौदा बतावता कि राजस्थान के कुल बाई क्षेत्र के 38 परतिसत (चाहे 62,94,000 हेक्टेयर) हिस्सा पटावल क्षेत्र में आवेला. चुरू में, इ आंकड़ा मस्किल से 8 परतिसत बा. ऐतरे, अधबनल, चौधरी कुम्भाराम नहर लिफ्ट परियोजना के चलते जिला के कुछ गांव आ ओकर खेत के पानी दहल जाला, तब्बो चुरू के खेती आ एकर चार गो मुख्य फसल – बजरा, मूंग, मोठ आ ग्वारफली – बेसी कर के बरखे के आसरे रहेला.
लेकिन पछीला 20 बरीस में बरखा के ढंग बदल गईल बा. चुरू में लोग दू गो बड़का बदलाव के बारे में बतियावेला, मानसून के महीना कुल आगे खसक गईल बा, आ बरखा अनियमित होत जा रहल बा – कुछ जघे प बहुत तेज होता, त कुछ जघे प बहुते कम.
पुरनिया खेतिहर लोग आपन पहिले के बरखा के इयाद करेला लोग. जाट जात से संबंध राखे वाला 59 बरीस के खेतिहर, गोबर्धन सहारण बतावेलें, “असाढ़ (जून- जुलाई) के महीना में, हमनी देखीं कि बिजुरी चमकता, आ जान जाएम कि बरखा आवे वाला बा. और एहि से आपन झोपड़ी के भीतर जाये से पहिले, हाली से खेतवे में रोटी पकावे लागी जान.” गोबर्धन के बडका परिवार के लगे गाजुवास गांव में 180 बिगहा (लमसम 120 एकड़) जमीन बा. चुरू के खेतिहर कुल में जाट आ चौधरी, दुनु ओबीसी समुदाय, सबसे बेसी बा लोग. सहारण कहेलें, “अब अक्सर बिजुरी त चमकेला, लेकिन इ उंहें रुक जाला - बरखा ना होला.”
पड़ोसी जिला के सीकर के सदिंसर गांव के 80 बरीस के नारायन परसाद कहेलन, “हम जब इस्कूल में रहनी, त उत्तर में करिया घट्टा देख के, हम बता सकत रहनी बरखा होखे वाला बा – आ आधा घंटा में बरखा होखे लागे” उ अपना खेत में बिछावल खटिया प बईठल कहलन, “अब, अगर बादर आवतो बा, त कहीं औरी चल जाता.” परसाद बरखा के पानी गोट्टा करे ला अपना 13 बिगहा खेत (लमसम 8 एकड़) पर कंक्रीट के एगो बडका टंकी बनवावले बाने. (इ टंकी साल 2019 के नवंबर महीना में खाली रहे, जब हम उनकर से भेंट कईनी.)
इंहां के खेतिहर कुल कहेलें कि अब, जून के अंत में जब बजरा बोअल जाला, पहिलका बरखा ना होला आ नियमित रूप से होखे वाला बरखा कई हफ्ता बाद सुरु होला. आ कई बेर त एक महीना पहिलही, अगस्त के अंत ले, बरखा बंद हो जाला.
एकरा से बोआई के खांचा तईयार करे में मस्किल होला. अमृता चौधरी बतावेली, “हमार नाना के बेरा में, लोग बयार से, तारा के इस्थिति से, चिरई के गीत के बारे में जानत रहे लोग – आ ओही से अकान के खेती के निर्णय ले लोग.”
लेखक – किसान दुलाराम सहारण कहेलन, “अब इ पूरा बेवस्था नास हो गईल बा.” सहारण के बड़का परिवार तारानगर तहसील के भारंग गांव में लमसम 200 बिगहा में खेती करेला.
मानसून देरी से आवे आ जल्दी चल जाए के अलावा, बरखा के तेजी में कमी हो गईल बा, भले सालाना औसत स्थिर होखे. गाजुवास में 12 बिगहा जमीन प खेती करे वाला धर्मपाल सहारण कहेलन, “अब बरखा के तेजी कम हो गईल बा. इ होई, ना होई, केहू नईखे जानत.” आ बरखा के पसरल अब अनिस्चित बा. अमृता बतावेली, “हो सकेला कि खेत के एगो हिस्सा में बरखा होखे, बाकिर दूसर हिस्सा में ना होखे.”
आरएसपीसीसी में भी साल 1951 से 2007 तक ले बेसी बरखा के उदहारण के बखान बा. बाकी, पढ़ाई के हवाला देत, इ मसौदा इ बतावता कि राज्य में समूचा बरखा में कमी होखे के अकानल बा आ “जलवायु परिवर्तन के चलते वाष्पोत्सर्जन में बढ़ोतरी भईल बा.”
चुरू के खेतिहर लोग लमहर बेरा ले मानसून के बरखा के आसरे प रहल बा, जे अक्तूबर में आ कुछ हद ले जनवरी-फरवरी के लगे होत रहे, आ मम्फल्ली आ जौ जइसन रबी के फसल कुल के पानी पटावत रहे. हरदयाल जी बतवलें कि इ झकास (बूंदाबांदी)– “चक्रवात बरखा, जवन यूरोप आ अमरीका के बीच के महासागर से होत, सीमा पार के देस पकिस्तान से आवत रहे.” अब ओमे से बेसी त गायबे हो गईल बा.
दुलाराम कहेलें कि उ बरखा त रहिलो के फसल के पानी देत रहे – तारानगर के देस के ‘राहिला के कटोरा’ कहल जाय, जौन इंहां के खेतिहर लोग खातिर गरब के बात रहे. “फसल एतना नीमन होखल करे कि हमनी अंगना में रहिला के ढेर लगा देत रहनी.” उ कटोरा अब लमसम खालिया गईल बा. धरमपाल कहेलन, “साल 2007 के बाद, हम रहिला नईखीं बोअत, काहे से कि सितम्बर के बाद इंहां बरखा ना होला.”
नवंबर में तापमान गिरला के साथही, चुरू में फसल नीमन से अंकुराये लागे. बाकिर बाद के साल में, इंहां के जाड़ो में बदलाव आईल बा.
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आरएसपीसीसी के रिपोर्ट में कहल गईल बा कि जम्मू–कश्मीर के बाद, भारत में सीतलहर के सबसे बेसी संख्या राजस्थान में रहल बा- जौन कि 1901 से 1999 के बीच लमसम एक सताब्दी में 195 रहल. (1999 के बाद कवनो डेटा नईखे.) एमे बतावल बा कि जहां राजस्थान में बेसी तापमान ला गरमी के रुझान देखावता, उंहें इंहां नीचे के तापमान ला ठंडा के रुझान भी देखल गईल– जइसे कि चुरू के सबसे कम तापमान फ़रवरी 2020 में, भारत के मैदानी इलाका में सबसे कम, 4.1 डिग्री रहे.
तब्बो, चुरू में कई लोग ला, जाड़ अब ओइसन नईखे रह गईल जइसन पहिले रहत रहे. गाजुवास गांव में गोवर्धन सहारण कहेलन, “हम जब लईका रहनी (लमसम 50 साल पहिले), त नवंबर सुरुआत में हमनी के रजाई के रजाई ओढ़े के परे. हम भोरे 4 बजे जब खेत प जाई, त अपना के कमरी में लपेट लेत रहनी.” उ खेजरी के गाछन के बीचे, बजरा के कटिया के बाद खाली खेत में बइठल कहतारन, “हम गंजी पहिनातानी– 11वां महीना में हेतना गरमी परता.”
अमृता चौधरी कहेली, “पाछे, जब हमार संस्था, मार्च में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के कार्यक्रम करत रहे, तब हमनी के सुइटर के जरुरत लागे. अब हमनी के पंखा के जरुरत होला. बाकिर इ सब साले साल बहुत अचक्के हो गईल बा.”
सुजानगढ़ सहर में, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुशीला पुरोहित, 3-4 साल के लयिकन के झुण्ड के ओर इशारा क के कहली, “उ जाड़ के कपड़ा पहिरे लोग. बाकिर अब नवम्बरो में गरमी बा. हमनी के नईखे पता कि ओकनी के का पहिरे के कहल जाए.”
चुरू के मानल स्तंभकार आ लेखक, 83 बरीस के माधव शर्मा एकरा के संछेप में बयान कईलें, “कम्मर आ कोट के ज़माना चल गईल.”
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गरमी के पसराव कम्मर आ कोट के ओ दिनन के घोंट गईल बा. माधवजी कहेलन, “पाछे में, हमनी लगे अलगे -अलगे चार गो बेरा होत रहे (फागुन सहित). जौन अब खाली एगो मुख्य बेरा बा- गरमी के, जे आठ महीना ले रहता. इ बहुत लमहर समय ले भईल बदलाव बा.”
तारानगर के कृषि कार्यकर्ता निर्मल प्रजापति कहेलन, “पाछे में मार्चो के महीना ठंडा होखत रहे. अब त कब्बो-कब्बो फरवरी के अंतो में गरमी सुरु हो जाता. औरी इ अगस्त में खतम होखे के बजे अक्तूबर चाहे ओकरा बड़ो के महीना ले रहता.”
प्रजापति कहेलन कि पूरा चुरू के खेतान में, इ लमहर गरमी के करते काम के घंटा बदल गईल बा. खेतिहर आ मजूर बिहाने आ सांझ के ठंडा बेर में कार क के गरमी के हरावे के कोसिस करता लोग.
इ पसरल, लमहर गरमी बिस्वास करे लायेक नईखे. कुछ लोग इयाद क के बतावेला कि एगो समय रहे, जब लमसम हर हफ्ता गांवन में आन्ही चले, जौन अपना पाछे हर जघे बालू के एगो पपरी छोड़ दे. रेल के पटरी कुल बालू से तोपा जाय, बालू के डूह एक जघे से दोसरा जघे चल जाय, इंहा ले कि अंगना में सूतल खेतिहरो बालू से तोपा जाय. सेवानिवृत स्कूली सिक्षक हरदयाल जी इयाद करेलन, “पछुआ बयार से आन्ही आवे. बालू हमनी के चादरों भर दे. अब ओ तरे के आन्ही इंहां ना आवेला.”
निर्मल कहेलन कि ऐतरे इ धूरा वाला आन्ही बहुत गरमी वाला मई आ जून के महीना में अक्सरहां लू के साथे लड़ जात रहे, जौन घंटन चलत रहे. आन्ही आ लू, दुनू चुरू में 30 साल पहिले ले नियम से चलत रहे, आ तापमान के नीचे ले आवे में मदद करत रहे. निर्मल के मोताबिक, “आन्ही नीमन से धूरा गोट्टा क देत रहे, जेसे माटी के उपजाऊ होखे में मदद हो जात रहे.” अब गरमी बिलम गयिल बा, परो 40 डिग्री सेल्सिअस से बेसी बनल रहता. उ इयाद क के कहतारन, “ अप्रैल 2019 में, हमरा बुझाता कि लमसम 5-7 बरीस के बाद, आन्ही आइल रहे.”
इ बिलमल (रुकल) गरमी, गरमी के बेरा के बढ़ा देता, जेसे इ इलाका तवे लागता. तारानगर के कृषि कार्यकर्ता आ हरदयाल जी के बेटा उमराव सिंह कहेलन, “राजस्थान में, हमनीके तेज गरमी के आदत रहल बा. बाकिर पहिला बेर इंहा के खेतिहर गरमी से डेराये लागल बा.”
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जून 2019 में पहिला बेर अइसन ना रहे, जब राजस्थान में 50 डिग्री सेल्सियस के लगे तापमान देखल गईल. जयपुर के मौसम विज्ञानं केंद्र के रिकार्ड बतावेला कि जून, 1993 में चुरू में गरमी में तापमान 49.8 डिग्री सेल्सियस रहे. बाड़मेर साल 1995 के मई महीना में 0.1 डिग्री बढ़ा लह्लास आ 49.9 के आंकड़ा छू लह्लास. बहुत पहिले, गंगानगर में जून 1934 में तापमान 50 डिग्री ले चल गईल रहे, आ अलवर में मई 1956 में 50.6 के निसान छूअत रहे.
कुछ समाचार रिपोर्ट कुल में भले 2019 के सुरुआत में चुरू के इ ग्रह के सबसे गरम जगह कहल गईल होखे, बाकिर अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 2019 के एगो रिपोर्ट में सामने आईल कि दुनिया बाकी हिस्सा - कुछ अरब देस सहित – में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस आ ओकरा से बेसी दर्ज कईल गईल बा. ग्लोबल वार्मिंग के पैटर्न कैसे बढ़ेला, एकरे आधार प इ रिपोर्ट- गरम ग्रह पर काम कइल , भारत खातिर भाखेला कि इंहां 2025 से 2085 के बीच तापमान में 1.1 से ले के 3 डिग्री ले बढ़ोतरी होई.
जलवायु परिवर्तन के अंतर–सरकारी पैनल आ दूसर जरिया यानी जर पश्चिमी राजस्थान के पूरा रेगिस्तान क्षेत्र (19.61 मिलियन हेक्टेयर) ला, 21वीं सदी के अंत ले गरम दिन आ गरम रात औरी बरखा में कमी के अकनले बा.
चुरू सहर के डाक्टर सुनील जंडू कहेलन, “लमसम 48 डिग्री सेल्सियस तापमान के बाद, जे लोग के बहुत बेसी गरमी के बान बा, ओ लोग ला एक्को डिग्री से बेसी तापमान माने राखेला.” उ बतावेलन कि मानुस देह प 48 डिग्री से बेसी तापमान के परभाव बहुत बेसी होखेला- थकावट, निर्जलीकरण, गुर्दा के पथरी, (बेसी बेर ले निर्जलीकरन के कारन), औरी इंहा ले कि लूह लागल, मतली के अलावे, मूड़ी घूमल औरी दूसर परभाव बेसी होला. ऐतरे, जिला प्रजनन औरी शिशु स्वास्थ्य अधिकारी डाक्टर जंडू कहेलन कि उ 2019 के मई -जून में अइसन मामला में कवनो बढ़ोतरी ना देखलन. ना ओ बेरा चुरू में गरमी आ लूह लागे से केहू के मुअल लिखाईल.
आईएलओ के रिपोर्टवो में बेसी गरमी के खतरा प ध्यान दीवावल गईल बा, “जलवायु परिवर्तन के कारन दुनिया के तापमान में बढ़ोतरी. गरमी के चलते होखे वाला तनाव के औरी बेसी साधारन बनाई..गरमी बेसी परी, जेकरा के देह के कस्ट बिना सहल मस्किल होई ..बेसी गरमी के चलते दिल के दौरा भी पड़ सकेला, जौन कब्बो-कब्बो जानलेवो साबित हो सकेला.”
रिपोर्ट कहता कि समय के साथे दक्खिन एसिया एकर सबसे बेसी परभावित होखे वाला क्षेत्र में से एगो बा, आ गरमी के तनाव से सबसे बेसी परभावित देसन में गरीबी, कब्बो-काल वाला रोजगार, आ गुजारा करे ला खेती करे वाला लोग के गिनती बेसी देखल जाला.
बाकिर सब हानिकारक परभाव अइसने ना होला जे हेतना आसानी से, नाटकी ढंग से तुरंते लउके लागे, जेतरे कि अस्पतालन में भीड़ लउकेला.
औरी दूसर समस्या के साथे एकरा के मिलावत, आईएलओ के रिपोर्ट कहेला कि गरमी के तनाव एहूतरे कार कर सकेला कि उ “खेतिहर मजूरन के गांव से भागे के चढ़ावे... (औरी) 2005-15 के बेरा में, गरमी से होखे वाला तनाव के स्तर, बड़का पैमाना प बहरी जघहन के ओर भागहीं से जुड़ल रहे– पहिले के दस बरीस के बेरा में अइसन परविरति ना देखल रहे. इ एहू बात के संकेत हो सकेला कि इ परिवार भागे के आपन फैसला में जलवायु परिवर्तनो के ध्यान राखत होखे.”
चुरू में घटत पैदावार के कारन आय में गिरावट (तनियक अनियमित मानसूनो के कारन) भागे ला चढावे वाला बहुत कारन में से एगो ह. दुलाराम सहारण कहेलन, “पहिले, हमनी के खेत में 100 मन (लमसम 3,750 किलो)बजरा होखे. अब बेसी से बेसी 20-30 मन होखेला. हमरा गांव भारंग में, सायद 50 परतिसत लोग खेती करत, बाकी लोग खेती छोड़ दहल आ भाग गईल.”
गाजुवास गांव के धरमपाल सहारण बतावेलन कि उनका खेती में बहुत तेजी से गिरावट आइल बा. एहीसे, अब उ कुछ साल से टेम्पो चलावे खातिर, हर साल 3-4 महीना ला जयपुर आ गुजरात के सहर में जालन.
पोरफेसर इसरान इहो नोट कईलन कि चुरू में, गिरत खेती के आय के नोकसान के भरपाई ला, कई लोग खाड़ी देसन ओर चाहे कर्नाटक, महाराष्ट्र, आ पंजाब के सहरन में कारखाना में कार करे ला भागता. (सरकारी नीती के चलते मवेसियन के ब्यापार के तबाह भईल एगो बड़का कारन बा एकर– बाकिर इ एगो पूरा अलगे कथा बा.)
आईएलओ के रिपोर्ट में कहल गईल बा कि पूरा दुनिया में अगिला 10 साल में बढ़त तापमान के कारन 80 मिलियन (8 करोड़) दिनभरहा नोकरियन के बराबर उत्पादकता के हानि हो सकेला. मने, एबेरा के अकान से, दुनिया के तापमान में इक्कीसवीं सदी के अंत ले 1.5 डिग्री सेल्सियस के बढ़ोतरी हो सकेला.
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चुरू में जलवायु परिवर्तन कहे हो रहल बा?
सवाल के जवाब में पोरफेसर इसरान कहेलन कि पर्यावरण परदूसन के कारन, माधव शर्मा भी सहमत बाने. एकरा से वातावरण में गरमी रुक जाता, मौसम के मिजाज बदल जाता. तारानगर तहसील के भालेरी गांव के खेतिहर आ पहिले के इस्कूल के हेड मास्साब, रामस्वरूप सहारण कहेलन, “ग्लोबल वार्मिंग आ कंक्रीट के पसरत जाल के चलते गरमी बेसी परता. जंगल कम हो गईल, आ गाड़ी में बढ़ोतरी हो गईल बा.”
जयपुर के एगो उमरदराज पत्रकार नारायन बारेठ कहेलन, “उद्योग-धंधा बढ़ रहल बा, एयर-कंडिशनर के उपयोग बढ़ रहल बा, कार गाड़ी बढ़ता. पर्यावरण परदूसित बा. इ सब ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोतरी करता.”
चुरू, जेकरा के कुछ ग्रंथ में ‘थार रेगिस्तान के परवेस द्वार’ कहल गईल बा, निस्चित रूप से जलवायु परिवर्तन के दुनिया के एगो बहुत बड़का श्रृंखला के खाली एगो कड़ी ह. राजस्थान स्टेट एक्शन फॉर क्लाइमेट चेंज, साल 1970 के बाद दुनिया के स्तर प ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के बढ़ोतरी चर्चा करेला. इ खाली राजस्थाने के बारे में ना, बाकिर राष्ट्रव्यापी कारकन प केन्द्रित बा, जेकरा से बड़का पैमाना प ग्रीन हाउस गैस से चले वाला बदलाव हो रहल बा. एमे से कई गो करक उर्जा क्षेत्र में में बेसी गतिविधि, जीवाश्म इंधन के उपयोग मे बढ़ोतरी, कृषि क्षेत्र में उत्सर्जन, बढ़त औद्योगिक प्रक्रिया औरी ‘भूमि उपयोग, भूमि-उपयोग में परिवर्तन औरी वानिकी’ के कारन होखेला. इ सभी जलवायु परिवर्तन के गझिन होत जाल के बदलत कड़ी ह.
चुरू गांव के लोग हो सकता कि ग्रीन हाउस के के गैस के बात ना बतियावे लोग, बाकिर ओ लोग के जिनगी एकरा से परभावित हो रहल बा. हरदयाल जी कहेलन, ”पहिले हमनी पंखा औरी कूलरो के बिना गरमी सह सकी जान. बाकिर अब हमनी ओकरा बिना ना रह सकेनी.”
अमृता कहेली, “गरीब परिवार पंखा आ कूलर के खर्चा नईखे उठा सकत.बर्दास्त से फाजिल गरमी से (दूसर परभाव के अलावा) पेटझरी आ उल्टी होला. आ डाक्टर के लगे गईला से खर्चा बढ़ जाला.”
खेत में दिन भर रहला के बाद, सुजानगढ़ के अपना घर खातिर बस में बइठे से पहले, भगवानी देवी कहेली, “गरमी में कर कईल मस्किल बा. हमनी के उल्टी, चक्कर आवेला. फेर हमनी के गाछ के छांह में सुस्तानी, तनियक नेमू-पानी पियेनी- आ फेर कार प चल आयेनी.”
मदद आ राह देखावे खातिर जयपुर के नारायण बारेठ, तारानगर के निर्मल प्रजापति औरी उमराव सिंह, सुजानगढ़ के अमृता चौधरी, चुरू सहर के दलीप सरावग के मन से धन्यवाद,.
पारी के जलवायु परिवर्तन प केन्द्रित राष्ट्रव्यापी रिपोर्टिंग के प्रोजेक्ट,यूएनडीपी समर्थित ओ पहल के एगो हिस्सा ह जेकरा में साधारण मनइ आ ओ लोग के जिनगी के अनुभव से पर्यावरण में हो रहल इ सब बदलाव कुल के लिखल जाला.
इ लेख के परकासित करे के चाहतानी? [email protected] के लिखीं आ ओकर एगो कॉपी [email protected] के भेज दीं.
भोजपुरी अनुवाद: स्मिता वाजपेयी