১৪ই এপ্রিল ডঃ আম্বেদকরের জন্মবার্ষিকী উপলক্ষে সারা মাস জুড়ে বাবাসাহেব ও বর্ণাবাদের সমস্যা ঘিরে একের পর এক দোহা প্রকাশ করে চলেছে পারির জাঁতাপেষাইয়ের গানের প্রকল্প। বীড জেলার মুক্তাবাই জাধবের ওভিগুলি দিয়ে সমাপ্ত হচ্ছে এই সিরিজটি

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শেষ হয়ে আসছে এপ্রিল, তাই বাবাসাহেব আম্বেদকরকে ঘিরে লেখা দোহা-সিরিজের অন্তিম কিস্তিটি প্রকাশ করছি আমরা। এখানে প্রকাশিত দুটি ওভির রচয়িতা ভীম নগরের মুক্তাবাই জাধব। মাজালগাঁও তালুক-গ্রামের এই জনপদটি দলিত অধ্যুষিত। জাঁতাপেষাইয়ের গানের নিরিখে আম্বেদকরের উপর রচিত ওভির একটি রত্নখনি হয়ে উঠে এসেছে এই জনপদটি।

তাঁর সোনার ঝুমকো জোড়া কখন বানিয়েছেন রমাবাই? প্রথম ওভিতে সে কথাই জিজ্ঞেস করছেন গায়িকা। তারই সঙ্গে উত্তরটিও দিচ্ছেন তিনি, গহনাটি উড়োজাহাজ মারফত তাঁর সহধর্মিনীকে পাঠিয়েছেন খোদ ডঃ আম্বেদকর। সোনার গয়না এবং এরোপ্লেন, দুটিই সমৃদ্ধি ও আর্থিক উন্নতির রূপক।

ব্রাহ্মণ পরিবারের মেয়েরা কেন উঠোনে জল ছড়াচ্ছে (প্রভাতী লোকাচার বিশেষ), দ্বিতীয় দোহায় এই সওয়ালটি করছেন মুক্তাবাই, অর্থাৎ শুধু এটাই নয়, অন্যান্য কাজও করা উচিত তাদের। পরের পংক্তিতে তিনি জানাচ্ছেন যে দলিত মানুষেরা শিকল ভেঙে মুক্ত হয়ে বুদ্ধের অট্টালিকায় (বৌদ্ধধর্মের দরবারে) পৌঁছে গেছেন। মৃত পশুর শবদেহ টেনে নিয়ে যাওয়ার মতো অমানুষিক কাজ তাঁরা আর করবেন না, অর্থাৎ জাতপাতের কারাগারে শতাব্দীর পর শতাব্দীর ধরে যে পেশায় তাঁদের আটকে রাখা হয়েছিল, অবশেষে ঘুচেছে সে বন্দিদশা। এবার থেকে তার বদলে ব্রাহ্মণ বাড়ির মহিলারাই যেন এসব কাজ করেন – অর্থাৎ প্রতীকী হলেও এ যেন বর্ণভিত্তিক বৈষম্য ভেঙে চুরমার করে দেওয়ার এক উপমা।

বল্ দেখি রমাবাই, কানপাশা জোড়া তাই গড়ালি কখন সখি খাঁটি সোনা দিয়ে?
উড়ো সে জাহাজে করে ভীমরাজা স্বামী তোরে পাঠাইল ঝুমকো সে পিরিতি সাজায়ে।

শোন্ রে বামনি মেয়ে, আঁজলা উঠান ছেয়ে, ছিড়িক ছিড়িক পানি কেন রে ছড়াস?
বুদ্ধ ডাকিছে মোরে তাঁহার প্রাসাদ তরে, আজ থেকে মড়া টেনে তুই নিয়ে যাস।

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পরিবেশক/গায়ক : মুক্তা জাধব

গ্রাম : মাজালগাঁও

জনপদ : ভীম নগর

তালুক : মাজালগাঁও

জেলা : বীড

জাতি : নব-বৌদ্ধ

তারিখ : ১৯৯৬ সালের ২রা এপ্রিল এই গানগুলি রেকর্ড করা হয়েছিল

পোস্টার: শ্রেয়া কাত্যায়নি

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অনুবাদ: জশুয়া বোধিনেত্র (শুভঙ্কর দাস)

नमिता वाईकर लेखक, अनुवादक आणि पारीच्या व्यवस्थापकीय संपादक आहेत. त्यांची ‘द लाँग मार्च’ ही कादंबरी २०१८ मध्ये प्रकाशित झाली आहे.

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पारी-जात्यावरच्या ओव्या गटः आशा ओगले (अनुवाद), बर्नार्ड बेल (डिजिटायझेशन, डेटाबेस डिझाइन, विकास, व्यवस्थापन), जितेंद्र मैड (अनुलेखन, अनुवाद सहाय्य), नमिता वाईकर (प्रकल्प प्रमुख, क्युरेशन), रजनी खळदकर (डेटा एन्ट्री)

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संयुक्ता शास्त्री पारीची मजकूर समन्वयक आहे. तिने सिम्बायोसिस सेंटर फॉर मिडिया अँड कम्युनिकेशन, पुणे इथून मिडिया स्टडिज या विषयात पदवी घेतली आहे तसंच एसएनडीटी महिला विद्यापीठातून इंग्रजी साहित्य या विषयात एम ए केलं आहे.

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शर्मिला जोशी पारीच्या प्रमुख संपादक आहेत, लेखिका आहेत आणि त्या अधून मधून शिक्षिकेची भूमिकाही निभावतात.

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जोशुआ बोधिनेत्र यांनी जादवपूर विद्यापीठातून तुलनात्मक साहित्य या विषयात एमफिल केले आहे. एक कवी, कलांविषयीचे लेखक व समीक्षक आणि सामाजिक कार्यकर्ते असणारे जोशुआ पारीसाठी अनुवादही करतात.

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