फट-फट के आवाज करत अऊ धुर्रा उड़ावत, अड़ेकेलसेल्वी नीला लुगरा, बड़े अकन नथनी पहिने, जोर ले मुचमुचावत अपन फटफटी मं बइठे आवत हवय. कुछेक बखत पहिली वो ह अपन मिर्चा के खेत ले हमन ला अपन बंद के बहिर अगोरे ला कहे रहिस. मार्च के महिना आय अऊ मंझनिया के बेरा फेर रामनाथपुरम मं भारी घाम हवय. हमर छांव छोटे होगे हवय, भारी पियास लागत रहय. जाम रुख के छांव मं अपन फटफटी ला राखत, लहुआ-लहुआ अड़ेकेलसेल्वी ह आगू के फेरका ला खोलथे अऊ हमन ला भीतर आय बर बलाथे. चर्च के घंटी बाजथे. वो ह हमर बर पानी लाथे अऊ हमन गोठ बात करे ला बईठ जाथन.
हमन गोठ बात ओकर फटफटी ले सुरु करेन. ये छोट अकन गाँव मं, ये उमर का माइलोगन का फटफटी चलाय ह आम बात नो हे. 51 बछर के वो हा हांसथे, “फेर ये ह बनेच काम के हवय.” वो हा बनेच जल्दी एला चलाय ला सीख गे रहिस. “जब मंय कच्छा आठवीं मं रहेंव तब मोर भाई मोला सिखाय रहिस. मंय सइकिल चलाय जानत रहेंय, तेकरे सेती ये ह कठिन नई रहिस.”
वो ह कहिथे, फेर ये फटफटी नई होतीस त मोर जिनगी गरु हो गे रतिस. मोर घरवाला कतके बछर ले घर ले दुरिहा रहिस. वो हा पहिले सिंगापुर फेर दुबई अऊ कतर मं प्लंबर के बूता करय. मंय अपन बेटी मन ला पालें पोसें अऊ खेती करेंय, अकेल्ला के दम मं.
सुरूच ले जे. अड़ेकेलसेल्वी किसानी करत हवय. वो ह तरी मं सीधा पीठ पालथी मार के बइठ जाथे, चूड़ी ले सजे ओकर दूनो हाथ आराम ले ओकर दूनो गोड़ मं रखाय रहय. ओकर जनम शिवगंगई जिला के कालयारकोइल मं एक किसान परिवार मं होय रहिस. जेन ह मुदुकुलथुर ब्लॉक के ओकर गांव पी. मुथुविजयपुरम ले आधा कोस दुरिहा मं हवय. “मोर भाई शिवगंगई मं रहिथे.उहाँ ओकर करा कतको बोरवेल हवंय. अऊ इहाँ, मं पलोय बर घंटा पाछू 50 रुपिया के हिसाब से पानी बिसोथों.” रामनाथपुरम मं पानी के बड़े कारोबार हवय.
जब ओकर बेटी मन छोटे रहिन त वो मन ला एक ठन छात्रावास मन रखिस. वो अपन खेत के बूता सिरोय सात वो मन ला देखे ला जाय अऊ लहुंट आय, अऊ अपन घर चलावय. अब वो हा छे एकड़ जमीन मन खेती करथे, एक के मालिक आय अऊ दीगर पांच थन ला पट्टा मन दे देय हवय. “धान, मिर्चा, कपसा बजार सेती आय. धनिया, भेड़ी, भाटा, लऊकी, छोटे गोंदली, ये ह घर बर...”
वो ह बइठकी खोली मं बने मचान डहर इसारा करथे. मंय धान के बोरी मन ला उहिंचे राख देंव मुसुवा मन ले बचे सेती. अऊ मिर्चा रंधनी खोली के मचान मं. अइसने, वो हा कहिथे, घर के ये चलत फिरत खोली मन आंय. वो ह मुच मुचावत सरमाय कस कहिथे, जम्मो सुविधा के नक्सा खुदेच बनाईस हवय, 20 बछर पहिली जब घर बनाय गे रहिस. आगू के फेरका मं मदर मैरी तरसे के बिचार रहिस. ये हा एक ठन सुंदर लकरी के नक्कासी आय, जे मं मैरी ह एक ठन फूल ऊ पर ठाढ़े हवय. बइठकी खोली के भीतरी पिस्ता सुवा रंग के दिवार मन ला फूल मन ले सजाय गे हवय, ओकर परिवार के फोटू मन अऊ जीसस अऊ मैरी के फोटू मन हवंय.
सुग्घर घर ले छोड़ के ओकर घर मं फसल रखे के भरपूर जगा हवय जेकर ले वो हा जियादा दाम ला अगोरत रहे सकथे. जेकर ले बढिया पइसा मिलथे. सरकार ह किलो पाछू 19.40.रुपिया मं धान लेगथे.
इहाँ के कोचिया ह किलो पाछू सिरिफ 13 रुपिया मांगिस. “मंय सरकार ला 2 कुंटल धान बेंचेंय. वो हा पूछथे, “सरकार हा मिर्चा ला काबर नई बिसोय?”
ओकर तर्क आय के हरेक मिचा किसान ह तय अऊ बढ़िया दाम के कदर करथे. धान के उलट मिर्चा ह जियादा पानी झेल नई सकेय. ये बछर बेसमे पानी गिरगे – जब मिर्चा ह जामे ला धरे रहिस. अऊ जेन बखत पानी के जरूरत रहिस (फुलाय ले पहिली) नई गिरिस. वो हा 'जलवायु परिवर्तन' नई कहिस फेर बरसात के बदलत समे कोती आरो करथे-बनेच अकन, बनेच जल्दी,गलत मऊसम मं, बेसमे. सुकर हे, ओकर ऊपज ओकर अनुमान ले आने दिन के उपज ले पांचवां हिस्सा रहिस. “जम्मो कुछु बरबाद हो जाही” अऊ वो हा तब जब वो ह 300 रुपिया किलो दाम के उन्नत किसिम के मिर्चा 'रामनाथ मुंड' ला बिसोय रहिस.
वोला सुरता हवय जब मिर्चा एक धन दू रुपिया किलो नपाय जावत रहिस. अऊ भाटा ह चार आना किलो बिकावेव. “काबर, तीन बछर पहिली कपसा के दाम सिरिफ तीन धन चार रुपिया किलो रहिस. अऊ तंय पांच रुपिया रोजी मं मजूर रखे सकत रहेय. अब? ये हा बढ़के 250 रुपिया हो गे हवय. फेर कपसा सिरिफ 80 रुपिया किलो मिलथे. कहे के मतलब, मजूरी 50 गुना बाढ़ गे हवय. बिक्री के दाम सिरिफ 20 गुना. एक किसान का करे? कलेचुप रहेय अऊ अपन बूता करत रहय.
अड़ेकेलसेल्वी घलो वइसने करथे. जेन बखत बोलते त ओकर इरादा सफ्फा उजर परथे. “मिर्चा के खेत येती हवय,” वो हा जउनि डहर इसारा करथे. “अऊ मंय वो डहर के जमीन मं घलो खेती करथों,” हाथ ला घुमावत वो ह बताथे. “फेर मोर करा फटफटी हवय, मंय खाय ला घलो आ जाथों. अऊ मंय बोरी मन ला लाय – ले जाय मं कऊनो मइनखे ऊपर आसरित नई यों, मंय वोला कैरियर मं रख के घर ले आथों.” तमिल मं बोलत अड़ेकेलसेल्वी मुचमुचावत रहिथे, जेन ह ओकर इलाका के जाना पहचाना अऊ खास आय.
“2005 तक ले जब मंय फटफटी नई बिसोय रहेंव, तब तक ले गाँव के मइनखे मन ले मांग के चलावत रहेंव.” वो अपन टीवीएस मोपेड ला बड़े काम के चीज मानथे. अब वो हा गाँव के जवान टुरी मन ला फटफटी चलाय सीखे बर कहिथे. “कतको पहिले ले चलावत हवंय” वो हँसत, अपन खेत जाय सेती फटफटी मं बइठ जाथे. हम अपन गाड़ी मं दुरिहा तक ले ओकर पाछू पाछू चलत रहेन. घाम मं सूखत मिर्चा के खेत ह रामनाथपुरम मं एक ठन बिछे लाल कालीन जइसने बिछे रहिस. जेन ह देस दुनिया के लोगन मन बर मसाला बनही, अऊ एकेच गुंडमिलगई (मोट मिर्चा) खाय ला चुरपुर कर दिही.
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“मंय तोला हरियर देखेंव,फिर तंय जइसने-जइसने पाके, लाल होत गय,
देखन मं सुंदर अऊ खाय मं
मजेदार...”
संत-संगीतकार पुरंदरदास के एक गीत ले
ये सरल अऊ मनभावन पांत के कतको अकन टीका करे जा सकत हवय. फेर के. टी. अच्चया के किताब इंडियन फूड, अ हिस्टोरिकल कम्पैनियन के मुताबिक मिर्चा के सबले पहिली साहित्यिक दरज इहींचे मिलथे. आज भारत के सब्बो पकवान मं जम्मो बखत मिर्चा जरूरी बनके हाजिर रहिथे, अऊ “ये बेस्वास करे ला मुस्किल होथे के ये ह सदा ले हमर संग नई रहिस.” फेर ये बखत मं गीत ले हमन मिर्चा के जन्म के एक ठन समे तय करे के हालत मन हवन. ये गीत के रचना “दक्षिण भारत के महान संतकवि पुरंदरदास ह 1480-1564 मं करे रहिस.”
गीत आगू कहिथे:
“गरीब मन के उद्धार करेइय्या, रांधे ला सुग्घरकरेईय्या, खाय मं चुरपुर अतके के देवता पांडुरंग विट्टल ला घलो कइनचा खाय मन मुस्किल होय.”
सुनीता गोगटे अऊ सुनील जलिहाल ह अपन किताब 'रोमांसिंग द चिली' मं लिखे हवय के शिमला मिर्चा ला मिर्चा के रूप मं कहे जाथे, ‘जेन हा पुर्तगाली मन के संग भारत पहुंचे रहिस, जेन मन अपन दक्षिण अमेरिका ला जीत के भारत के पार मं लेके आय रहिन.”
अऊ एक पईत हबरे के बाद ये जल्दी ले काली मरीच ला मात दे दिस – तब तक ले इहीच ह अकेल्ला मसाला रहिस जेन ह खाय ला चुरपुर राखत रहिस - काबर ये ह देस भर मं उपजाय जा सकत रहिस... काली मरीच के बनिस्बत बऊरे मं सबले जियादा, अच्चया बताथे. हो सकत हवय एक ठन संकेत के रूप मं मिर्चा (कतको भासा मं) काली मरीच के नांव ले रखे गे रहिस. तमिल मं जइसने, काली मरीच मिलागु आय; मिर्चा ह मिलाग, अब दू अवाज मिलके महाद्वीप मन अऊ कतको सदी ला मिलवावत रहिस.
नवा मसला हमर होगे. अऊ आज, भारत ह सुख्खा लाल मिर्चा उपज मं दुनिया के सबले बड़े उपजेईय्या मन ले एक आय. अऊ एशिया-प्रशांत इलाका मं 2020 मं 1.7 मिलियन टन के संग आगू हवय. ये ह थाईलैंड अऊ चीन के बनिस्बत करीबन पांच गुना जियादा हवय, जेन मन दूसर अऊ तीसर जगा मं हवंय. भारत मं आंध्र प्रदेश सबले आगू हवय जिहां 2021मं 8,36,000 टन के उपज होय रहिस. इही बछर तमिलनाडु ह सिरिफ 25,648 टन उपजाय रहिस. राज के भीतर मं ये रामनाथपुरम ह सबले आगू हवय. तमिलनाडु के ये जिला मं हरेक चार हेक्टेयर मन ले एक हेक्टेयर मं (54,231 ले 15,939 टन) मिर्चा के उपज होथे.
मंय पहिली पईत रामनाथपुरम के मिर्चा अऊ किसान मन के बारे मं पत्रकार पी. साईनाथ के किताब क्लासिक: एवरीबडी लव्स ए गुड ड्राउट मं "तारागर के अतियाचार" नांव के अध्याय मं पढ़े रहेंव. जेम मन कहिनी सुरु होथे: “तारागर (दलाल) एक ठन छोटे किसान के रखाय दू बोरा मन ले एक ठन मं हाथ डाल के किलो भर मिर्चा निकाल लेथे. येला वो ह लापरवाही ले कोती उछाल देथे-परसाद जइसने.”
साईनाथ एकर बाद हमन ला हकबकाय रामास्वामी ले भेंट कराईन, “मिर्चा किसान जेन ह एक एकड़ के तीन-चौथाई हिस्सा मं खाथे कमाथे” जेन ह अपन उपज कऊनो दूसर ला बेचे नई सकय, काबर दलाल हा “बोय ले पहिलेच बिसो ले रहिस.” 1990 के दसक के सुरु मं, जब साईनाथ ह अपन किताब लिखे सेती देस के दस सबले गरीब जिला घूमे रहिस, त किसान मन के ऊपर तारागर के अइसन दबदबा रहिस.
अऊ, 2022 मं, मंय अपन सीरिज 'लेट देम ईट राइस' सेती रामनाथपुरम लहुंट गेंय, ये जाने बर के अब मिर्चा किसान मन के प्रदर्शन कइसे हवय.
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"कम उपज के कारण: मयिल, मुयाल, माडू, मान, (तमिल मं - मोर, खरहा, गाय अऊ हिरन). अऊ फिर बनेच जियादा धन बनेच कम बरसात होथे."
वी. गोविंदराजन, मिर्चा किसान, मुमुदीसथान, रामनाथपुरम
रामनाथपुरम सहर मं मिर्चा बेपारी के दुकान के भीतरी माईलोगन अऊ मरद मन नीलामी सुरु होय ला अगोरत हवंय. ये सब्बो किसान आंय जेन मन टेम्पो धन बस मं ये बाजार आय हवंय, अऊ वो मन अपन मवेसी के चारा के बोरा उपर बइठे अपन अंचरा धन फरिया ले अपन ला धुकत हवंय. ये ह बनेच गरम हवय फेर कम से कम छैंय्या घलो हवय. ओ मन के खेत मं छैंय्या नई ये. मिर्चा ह छैंय्या मं नई बढ़े, छैंय्या देख लेव.
69 बछर के वी. गोविंदराजन हरेक मं 20 किलो भराय तीन बोरी लाल मिर्चा लाय हवय. “ये बछर फसल खराब हवय” जब वो ह मगसूल , फसल के बारे मं बात करथे त अपन मुड़ी ल हलाथे. “फेर दीगर लागत मन ले कुछु घलो कमती नई होवत हवय.” वो हा कहिथे, ये फसल अपन आप मं भारी कड़ा आय. मल्लिगाई (मोंगरा) जइसन झमेला वाला फसल के बनिस्बत, मिलागई ला दवई (कीटनाशक) छिंचे के जरूरत नई होय.
एकर बाद, गोविंदराजन खेती के तरीका उपर बात करे ला धरिस. वो हा मोला सात जोतई-फंदई ला बताथे, जेन मन दू बेर गहरा जोत अऊ घाम मं पांच बेर जोतई. फेर खातू आथे. हप्ता भर हरेक रतिहा 100 छेरी ला छोड़े ला परथे, ओकर लेडी ले माटी ह उपजाऊ होथे. एकर बार वोला हरेक रत के 200 रुपिया खरचा करे ला परथे. ओकर बाद बिजहा के दाम अऊ 4-5 घाओ निंदई के लागथे. “मोर बेटा करा ट्रैक्टर हवय, एकरे सेती वो ह मोर खेत फोकट मं तियार करथे” वो हा मुचमुचावत रहय. “दीगर लोगन मन घंटा पाछू 900 ले 1500 रुपिया भाड़ा देथें.”
जिहां हमन गोठीयावत हवन तिहां अऊ कुछेक किसान मन संकलागे. धोती अऊ लुंगी पहिरे मरद मन चारों कोति ठाढ़ होगेंय. अपन खंड मं फरिया धरे रहिन धन पगड़ी बंधे रहिन. माइलोगन मन नायलोन के चमकत फूलवाला लुगरा पहिरे हवंय. जुड़ा मं भगवा अबोली अऊ महकत मोगरा के गजरा हवय. गोविंदराजन हमर बर चाहा बिसोथे. झरोखा ले आवत घाम के उजेरा, टाइल वाले छत मं बगर जाथे. लाल मिर्चा के लगे ढेरी ला छुवत रहिस. अऊ वो ह बड़े मोठ मानिक जइसने चमकत रहिस.
रामनाथपुरम ब्लॉक के कोनेरी गांव के 35 बछर के किसान वासुकी ह अपन बात ला बताथे. उहाँ मऊजूद दीगर माइलोगन मन जइसने ओकर दिन घलो मरद मन ले पहिले सुरु हो जाथे. वो ह बिहनिया 7 बजे ले बनेच पहिली सुत उठके, बजार जाय के पहिली वो हा रांधथे अऊ लइका मन के मंझनिया खाय के ला बना के राख देथे. जियादा काम के बखत मं जब वो लहुंटथे त 12 घंटा बीत गे रथे.
वो ह कहिथे के ये बछर के फसल बरबाद हो गे रहिस. “कुछु गड़बड़ रहिस जेकरे सेती मिर्चा बिल्कुले नई बढ़ीस. सबू झर गे (अंबुट्टुमकोटिडुचु)”. वो अपन संग 40 किलो मिर्चा लाय हवय - ओकर आधा फसल - अऊ वो ह सीजन मं अऊ 40 के आस धरे हवय. वो हा कुछु कमई सेती नरेगा ले आस रखे हवय.
59 बछर के पी. पूमायिल बर ओकर गाँव ले – मुमुदीसथान – ले 7 कोस दुरिहा आय ह, ये दिन के ख़ास आय. बिहनिया वोला मुफत मं बस मं बइठे ला मिलिस. मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के अगुवई वाले द्रमुक सरकार ह 2021 मं सरकार बनाय के बाद एक ठन योजना के घोसना करे रहिस, जेन मं माईलोगन मन ला टाउन बस मं मुफत मं सवारी दे गे रहिस.
पूमायिल मोला अपन टिकट देखाते जेन मं लिखाय हवय माईलोगन (मगलिर), अऊ बिना पइसा के टिकिट. हमन ओकर बहंचाय ऊपर गोठियाय ला धरथन - 40 रुपिया - अऊ कुछेक मरद मन फुस फुसावत रहेंय के वो मन ला घलो मुफत के सवारी मिलना चाही. हरेक कोई हांसे लागथें, खास करके खुस हो के माईलोगन मन.
जब गोविंदराजन कमती उपज के कारन मन ला गने ला सुरु करथे त ओकर चेहरा फक पर जाथे. वो हा तमिल मं बताथे मयिल, मुयाल, मादु, मान, मतलब मोर, खरहा, गाय अऊ हिरन. “अऊ या तो बनेच जियादा धन बनेच कम बरसात होथे” जब एक बने पानी के दरकार रहिस – फूले-फले सेती - नई बरसिस. “पहिले अतेक मिर्चा होवत रहय”, अपन छत के ऊँच डहर इसारा करथे, “उहाँ तक एक झिन मइनखे ऊपर ठाढ़ होके वोला चरों डहर कुढोत रहय, जब तक ले डोंगरी जइसने नई हो जाय.”
अब तो ये ह छोट अकन हवय अऊ हमर माड़ी तक ले आथे, अऊ किसिम किसिम के आय – कुछु बरहम लाल हवंय, कुछु चमकत हवंय. फेर सब्बो चुरपुर होथें,बखत बखत मं कऊनो छींकत कऊनो खांसत रहिथे. कोरोनावायरस अभू तक ले दुनिया मन खतरा बने हवय, फेर इहाँ बेपारी के दूकान के भीतरी, ये मिर्चा हा दोसदार आय.
जब नीलाम करेइय्या एस. जोसेफ सेंगोल भीतरी आथे, तब तक ले सब्बो बेचैन हो जाथें. फेर तुरते मन बदल जाथे. लोगन मन मिर्चा के ढेरी के तीर जमा हो जाथें, जोसेफ के संग आय मंडली उपज ऊपर चलथे, ओकर ऊपर ठाढ़ हो जाथे अऊ बारीकी ले जाँच करथे. ओकर बाद वो हा अपन ज उ नि हाथ मं फरिया लपेट लेथे. एक झिन अऊ मइनखे - सब्बो लेवाल मरद - एक थन गुपत नीलामी मं अपन उंगरी मन ला दबाथें.
बहिर ले आय कऊनो मइनखे बर ये गुपत भासा ह हैरान कर देथे. हथेली ला छू के, उंगरी धरके धन तरी ले एक ठन ला सहलाके, ये मइनखे मन संख्या ला बताथें. मतलब जेन ढेरी बर दाम तय करत हवंय. फेर वो मन ‘बोली नई’ कहना चाहथें त हथेली के मंझा मं सुन्य खिंचथें. नीलाम करेइय्या ला ओकर काम बर कमीसन मिलथे - बोरी पाछु तीन रुपिया. अऊ बेपारी ह बिक्री के 8 फीसद नीलामी सुविधा सेती किसान ले ले लेथे.
जब एक लेवाल के काम हो जाथे त दूसर नीलाम करेइय्या के आगू ओकर जगा आ जाथे, अऊ अपन उंगरी फरिया के तरी रख देथे. दीगर लेवाल मन घलो जब तक ले सब्बो अपन बोली नई लगाईंन, सबले जियादा दाम के घोसना नई करे जाय. वो दिन लाल मिर्चा 310 से 389 रुपिया किलो के हिसाब ले बिकिस. ओकर गुणवत्ता ह अकार अऊ रंग के आधार ले तय होथे.
फेर किसान खुस नई यें. बढिया छोटे उपज के संग बढ़िया दाम वो मन ला सिरिफ नुकसान के दिखथे. गोविंदराजन कहिथे, “फेर हमन जियादा दाम चाहत हवन त एला अऊ बढिया राखे ला कहे जावत हवय. वो ह सवाल करथे. फेर मोला बतावव, समे कहाँ हवय? का हमन मिर्चा पिसके पाकिट मं बेचथन, धन हमर फारम हवय?
जब ओकर ढेरी के नीलामी के बखत आथे त ओकर रीस तनाव मं बदल जाथे. वो हा मोला बलाथे, “इहाँ आवव, तुमन बहुत बढिया ढंग ले देख सकत हो.” अपन मुंह मं फरिया रखत, ओकर देह के तनाव अऊ गुपत हाथ मिलाय ला धियं ले देखत वो हा कहिथे, “ये हा परिच्छा के नतीजा अगोरे जइसने आय. “मोला 335 रुपिया किलो मिलिस” जब दाम के घोसना करे गीस त वो ह मुचमुचावत रहिस. ओकर बेटा के मिर्चा – थोकन बड़े अकन - 30 रुपिया जियादा किलो पाछू मिलिस. वासुकी के 359 रुपिया मं गीस. किसान सुस्ताहीं. फेर ओकर मन के बूता खतम नई होय हवय. एकर बाद मिर्चा के तऊल होही, पइसा जमा करहीं, खाय ला हवय, कुछु खरीददारी करना हवय अऊ आखिर मं, घर लहूँटे बस ला धरना हवय...
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“हमन सिनेमा देखे ला जावन. फेर मोर आखिरी फिलिम जेन ला 18 बछर पहिली सिनेमा हाल
मन जेक देखे रहेंव वो ह रहिस: एक दिल जेन हा खुस नई होय तेन ह खुस हो जाही (थुलाथा
मनमम थुल्लम)”
एस. अंबिका, मिर्चा किसान, मेलयकुडी, रामनाथपुरम
“खेत ह सिरिफ आधा घंटा के पैडगरी रद्दा हवय, छोटे रद्दा “एस अंबिका हमन ला बताथे. “फेर सड़क मं जियादा बखत लागथे.” एक कोस ले जियादा कतके मोड़ ऊपर मोड़ के बाद हमन परमकुडी ब्लॉक के मेलायाकुडी गाँव मं ओकर मिर्चा के खेत मन तक पहुँचथन. दुरिहा ले दिखत हरा भरा मिर्चा के खेत, हरियर पान अऊ हरेक डारा मन किसिम किसिम के रंग ले लदाय. बरहम लाल, हरदी पिंयर, रेशमी लुगरा के सुग्घर मेरून (अरक्कू). एती-वोती, उड़त नारंगी तितली मन, मानो कइनचा मिर्चा मं पांख आगे हवय.
दस मिनट तक ले हमन एकर सुन्दरता मं रम गेन. अभी बिहनिया के 10 नई बजे हवय, फेर घाम तेज हवय, माटी सुक्खा हवय अऊ पसीना ले हमर आंखी जरत हवय. जिला के हरेक जगा के भूईंय्या मं दरार परे हवय, मानो रामनाथपुरम के धरती बरसात के पिआसी हो. अम्बिका के मिर्चा के खेत एकर ले अलगे नई ये, भूईंय्या मं दरार ले भरे हवय. फेर वो ह नई सोचय के अतके सुक्खा हवय. ओकर गोढ़ के उंगरी मन मं चांदी के बिछिया हवय. वो हा माटी कोड़त पूछथे, “उहाँ, का माटी ओद्दा नई ये?”
अम्बिका के परिवार ह कतको पीढ़ी ले खेती ले कमावत खात आवत हवय. वो हा 38 बछर के अऊ ओकर भाभी एस रानी 33 बछर के, जेन ह ओकर संग हवय. ओकर परिवार के हरेक करा एक एकड़ जमीन हवय. मिर्चा के संग वो मन अगाती एक किसिम के पालक लगाथें जेन ह छेरी मन के बढ़िया चारा होथे. कभू कभू, वो मन भेंडी अऊ भाटा लगाथें. वो हा कहिथे एकर ले बूता बाढ़ जाथे. फेर का वो मन ला का कऊनो कमई के जरूरत नई ये ?
माईलोगन मन रोज के बिहनिया 8 बजे खेत मं हबर जाथें अऊ साँझा 5 बजे तक ले रखवारी करत रहिथें. “नई त छेरी मन रुख मन ला खा जाहीं!” हरेक बिहनिया 4 बजे ले उठ के, घर के साफ सफई, पानी भरे, रांधे, लइका मन ला उठाय, बरतन बासन धोय, खाय ला रखे, मवेसी अऊ मुर्गा ला चारा दाना देवत, खेत चल देथें, बूता करतें, कभू कभू मंझनिया घर लहूँट आथें, मवेसी मन ला पानी पियाय बर. ओकर बाद फिर मिर्चा के खेत डहर, ओकर रखवारी करत अऊ ‘पैडगरी” ले आधा घंटा चलत, जिहां एक ठन माई कुकुर ओकर पिल्ला संग पाछु पाछु चलत रहिथे. कम से कम ये महतारी ह अपन लइका मन ले फुरसतहा रहिस...
अंबिका के बेटा वोला फोन करथे. "एननाडा," तीसर बेर जब फोन बजे ला धरथे त उठाके कहिथे, “तोला का चाही?” अपन तेवर दिखावत वो ला डांटे के बाद सुस्त हो जाथे. माइलोगन मन बताथें लइका मन घलो घर ले मांगत हवंय. “हमन जेन ला रांधथन, वो मन अंडा अऊ आलू मांगथें. त हमन एकर ले थोकन तल लेथन. रविवार के हमन जेन गोस चाहथन तेन ला बिसोथन.”
जइसने के हमन बतावत रहेन, माईलोगन मन तीर तखार के खेत मन मं मिर्चा तोड़त रहेंय. वो मन तेज हवंय, डंगाल ला बढ़िया धरथें अऊ मिर्चा टोरथें. एक बेर मं जब मुठ्ठा भर जाथे, त वो मन वोला बाल्टी मं राख देथें. अम्बिका कहिथे, पहिले ताड़ के बने टूकना बऊरत रहिन. फेर अब ये ह प्लास्टिक के मजबूत बाल्टी आय जेन ह कतके मऊसम तक ले चलत रहिथे.
अब हमन फेर अम्बिका के घर लहूँट के छत मन आ जाथन, जिहां मिर्चा तेज घाम मं परे हवय. धियान देके वो ह लाल मिर्चा ला फइलावत वोला घेरी-बेरी घुमावत रहिथे जेकर ले वो ह बरोबर ढंग ले सूख सके. वोया हा वोला धरके हिला देथे. “जब ये ह तियार हो जाही त ये ह गदा-गड़ा के अवाज करही.” मतलब मिर्चा के बीजा के अवाज. वो बखत मिर्चा मन ला संकेल के बोरी मन मं भरके तऊले के बाद गांव के दलाल तीर ले जाथें धन थोकन बने दाम पाय सेती परमकुडी धन रामनाथपुरम के बाजार मं ले जाथें.
“का तंय ठंडा पिये ला पसंद करबे,” अम्बिका ह मोला अपन रंधनी खोली मन पूछिस.
ओकर बाद वो हा मोला तीर के खेत मं छेरी मन ला देखाय ले जाथे. किसान के रखवाला कुकुर तार वाले खटिया के तरी सुतत रहिस - जाग जाथें अऊ हमन ला तीर झन आय के चेतावनी देथेंय. “जब मोर घरवाला कऊनो नेवता-बिहाव मं प्रोसे ला जाथे त कुकुर ह मोर घला रखवाली करत रहिथे. नहीं त वो ह किसान घलो आय ,मजूर घलो,जब वोला बूता मिल जाथे.”
जब वो हा अपन बिहाव के सुरु के दिन बात करते त लजा जाथे. “हमन सिनेमा देखे ला जावन. फेर मोर आखिरी फिलिम जेन ला 18 बछर पहिली सिनेमा हाल मन जेक देखे रहेंव वो ह रहिस: थुलाथा मनमम थुल्लम.” शीर्षक के बारे मं कुछ अइसने - एक दिल जेन हा खुस नई होय तेन ह खुस हो जाही - हम दुनो ला मुस्कुराय बर मजबूर कर देथे.
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"छोटे किसान मन अपन मिर्चा
के उपज बेचे के कोसिस मं कमई के 18 फीसद गंवा देथें”
के. गांधीरासु, निदेशक, मुंडू मिर्चा उत्पादक संघ, रामनाथपुरम
गांधीरासु कहिथे, “किसान मन ला ले लेवव – जेकर करा पांच धन दस बोरी मिर्चा हवय. सबले पहिली वोला अपन गाँव ले मंडी तक ले टेम्पो/दीगर जरिया ले खरचा करे ला परथे.” “ऊहां,बेपारी आहीं अऊ दाम तय करहीं अऊ कमीशन मं आठ फीसदी लेगहीं. तीसर, तऊल मं फेरफार हो सकत हवय, आमतौर ले बेपारी के फायदा सेती. गर वो मन आधा किलो हरेक बोरी पाछू कमती करथें त ये हा नुकसान आय. एकर सिकायत कतको किसान मन करथें.”
येला छोड़, एक झिन मनखे ला खेत जाय बिन सारा दिन बजार मं बिताय ला परथे. गर बेपारी करा पइसा हवय त तुरते दे दिही. फेर नई ये त वोला दूसर दिन आय ला कहीं. अऊ आखिर मं जेन मनखे बजार जाथे वो ह मझनिया खाय ला धर के नई जावय. वो हा होटल मन खाही. हमन ये जम्मो चीज ला जोड़ें त पायेन के ये सब्बो मन मं ओकर आमदनी के 18 फीसद हिस्सा सिरा जाथे.
गांधीरासु एक किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) चलाथें. 2015 ले रामनादमुंडू मिर्च प्रोडक्शन कंपनी लिमिटेड ह किसान मन का आमदनी बढ़ाय सेती काम करे हवय. वो हा अध्यक्ष अऊ निदेशक हवंय, ओकर ले मुदुकुलथुर सहर मं ओकर दफ्तर मं हमर भेंट होथे.
“तुमन आमदनी कइसने बढ़ाहू? सबले पहिली तंय अपन फसल के लागत ला कमती करव. दूसर, तुमन अपन उपज उपज बढ़ावव अऊ तीसर, बजार तक ले प हूँ चे ला सुभीता बनावव, “फेर अभी हमन बजार ऊपर धियान देवत हवन." रामनाथपुरम जिला मं, वो मन ला दखल दे के तुरते जरूरत लागिस. वो ह बताथे, “इहाँ पलायन बहुते जियादा हवय.”
सरकार ओकर बयान के समर्थन करथे. रामनाथपुरम जिला सेती तमिलनाडु ग्रामीण परिवर्तन परियोजना के डायग्नोस्टिक रिपोर्ट (नैदानिक पड़ताल) रिपोर्ट के अनुमान आय के हरेक बछर 3000 ले 5000 किसान पलायन करथें. ये ह उपज के बाधा के रूप मं दलाल, खराब जल संसाधन, सुक्खा अऊ सीत भंडारन के कमी के कारन घलो आय.
गांधीरासु कहिथें, पानी सब्बो के खेल खिलेइय्या हवय. “कावेरी डेल्टा इलाका धन बूड़ती तमिलनाडु के खेत के इलाका मन मं जाव. उहाँ का देखहू?” अपन बात ला जोर देय सेती रुक जाथे. “बिजली के खम्भा काबर उहाँ हरेक जगा बोरवेल हवय. वो हा कहिथे, रामनाथपुरम मं बहुतेच कम हावे. बरसात के पानी ले खेती के अपन सीमा होते जेन हा मऊसम उपर आसरित होथे.
एक घाओ फिर, सरकारी आंकड़ा – ये पईंत जिला सांख्यिकीय पुस्तिका ले – ओकर बयान के सबूत बनथे. रामनाथपुरम बिजली वितरण सर्कल के आंकड़ा मन के मुताबिक, जिला मं 2018-19 मन सिरिफ 9,248 पंपसेट रहिस. ये य राज के 18 लाख पंपसेट मन के छोट अकन हिस्सा आय.
हो सकत हवय रामनाथपुरम के समस्या मन नवा होवेंय. इन एवरीबडी लव्स ए गुड ड्राउट (प्रकाशित: 1996) मं पत्रकार पी. साईनाथ ह प्रसिद्ध लेखक (स्वर्गीय) मेलनमाई पोन्नुस्वामी के साक्षात्कार ले रहिस. "आम धारना के उलट ये जिला मं बढ़िया खेती के ताकत हवय. फेर ये ला सोच विचार ला धियान मं राख के कऊन काम करे हवय? आगू वो ह कहिथे, "रामनाद मं 80 फीसद ले जियादा जोत दू एकड़ ले कमती के हवय अऊ कतको कारन ले फायदा के नई हवय, सूची मन सबले ऊपर अपासी के कमी हवय.
पोन्नुस्वामी एकर क्षमता ले वाकिफ रहिस. 2018-19 मं , रामनाथपुरम जिला मं 4,426.64 मीट्रिक टन कीमत के मिर्चा के कारोबार होईस, जेकर कीमत 33.6 करोड़ रुपिया रहिस (धान की बनेच अपासी जमीन ले सिरिफ 15.8 करोड़ रुपिया के उपज होईस).
खुदेच एक किसान के बेटा अऊ अपन मास्टर के डिग्री पढ़त खेती करत गांधीरासु ह मिर्चा के मिजाज ला जानथे. वो ह जल्दी एकर गनित लगाय ला धरथे. आमतौर ले एक छोटे किसान एक एकड़ मं एकर खेती करथे. फसल के टोरई तक ले मजूर कर लेथे अऊ बाकि बूता परिवार हा सम्भाल लेथे. वो ह बताथे “एक एकड़ मं मुंडू मिर्चा के खेती मं 25,000 रुपिया ले 28,000 रुपये रुपिया के खरच आथे. फसल के लागत मं 20,000 रुपिया अऊ जुर जाथे. मतलब 10 से 15 लोगन मन चार पईंत टोरथें." एक झिन मजूर एक दिन मन एक बोरी मिर्चा टोर सकथे. मिर्चा जब घन रहिथे त टोरे कठिन हो जाथे.
मिर्चा छे महिना के फसल आय. ये ह अक्टूबर मं लगाय जाथे. अऊ दू पईंत फरथे (बोगम). पहिली फसल थाई मं (तमिल महिना जनवरी के मंझा ले सुरू होथे). दूसर चिथिरई (अप्रैल के मंझा ले सुरू) मं खतम होथे. 2022 मं बेमऊसम बरसात ह दुनो पईंत अडंगा डाल दिस. लगाय के बाद पहिली पईंत मर गे, फूलाय ह ढेरियागे अऊ फल खराब हो गे.
भारी मांग अऊ कमती आवक ले दीगर बछर मन ले दाम बढिया मिलिस. रामनाथपुरम अऊ परमकुडी के बजार मन मं किसान मन मार्च महिना के सुरु के दिन मन मिर्चा के भारी बढ़े दाम के चर्चा करत रहिन जब पहिली बोरी 450 रुपिया किलो रहिस. लोगन मन के अनुमान रहिस के एकर दाम 500 रुपिया तक ले हबर जाही.
गंधिरासु ये आंकड़ा मन ला ‘सुनामी’ कहिथे. वो ह ये मनके चलथे के गर मुंडु मिर्चा के फायदा के दाम 120 रुपिया प्रति किलो आय, अऊ एक एकड़ में 1,000 किलो मिर्चा के उपज होही तभेच ये खेती किसान ला 50,000 रुपिया के फायदा दिही. “दू बछर पहिली मिर्चा सिरिफ 90 धन 100 रुपिया किलो बिकाय रहिस. आज मिर्चा के दाम पहिली के बनिस्बत बनेच बढ़िया हवय. येकर बाद घलो हमन ये मान के नई चल सकन के ये ह 350 रुपिया किलो के भाव ले बेचाही, ये हा एक ठन भरम आय .”
वो हा बताथे, मुंडू मिर्चा जिला के मनपसन्द फसल आय. वो ह कहिथे, ये ह एक ठन गजब किसम आय, ये छोटे पताल के बरनना करत कहिथे. “रामनाद मुंडू ला चेन्नई मं सांभर मिर्चा कहे जाथे. काबर येकर छिलका घलो मोठ होथे, अमली संग पिसे ले येकर झोर पुलिकोझाम्बु ह (चुरपुर अमली के झोर) गाढ़ा बनथे अऊ सुवाद जोरदार होथे.”
देस-बिदेस मं मुंडू मिर्चा के बहुत बड़े बजार हवय. ऑनलाइन, एक ठन तुरते खोज के रूप मं पता चलिस. मंझा मई तक अमेजन मं मुंडू मिर्चा सानदार 799 रुपिया किलो बेचावत रहिस. ये दाम ह 20 फीसद छूट के बाद रहिस.
गांधीरासु गौर करथे के, “हमन ला ये नई पता के येला कइसने बढ़ावा देय जाय. बजार एक ठन बड़े समस्या आय.” एकर अलावा, एफपीओ के सब्बो सदस्य - 1,000 ले जियादा किसान - अपन उपज अपन संगठन ला नई बेचेंय. “हमन ओकर मन के जम्मो फसल बिसोय सेती वइसने रकम के बन्दोबस नई कर सकन, न तो हमन येला जमा करके रखे सकन.”
फसल के रख रखाव – खासकर के गर एफपीओ ह बढ़िया दाम ला अगोरे ला चाहे – कठिन हो जाथे काबर मिर्चा जियादा दिन तक ले रखे ले करिया हो जाथे अऊ पिसे ला किरा धर सकत हवय. सरकारी कोल्ड स्टोरेज के सुविधा रामनाथपुरम शहर ले करीबन 5 कोस दुरिहा हवय. हमन इहाँ के गोदाम ला देखेन जिहां बीते बछर के मिर्चा बोरा मन राखे गे रहिस. जब प्रशासन बेपारी अऊ उपजेइय्या दूनो ला एके जगा लाय के कोसिस करत रहिस. किसान हिचकिचावत रहिस. वो सुविधा सेती अऊ उपज ला लाय के साधन बर अचिंता नई रहिन.
एफपीओ अपन भूमिका निभावत किसान मन ला कीरा मन ला काबू करे बर पारंपरिक तरीका मन ला आजमाय के सलाह देवत हवय. “आमतौर ले ये इलाका मं, जाड़ा (आमनक्कू) ह मिर्चा के खेत मन के आसपास उगाय जावत रहिस, काबर ये ह मिलागई ऊपर हमला करेइय्या कऊनो कीरा ला अपन डहर लुभाथे. संगे संग, जाड़ा एक ठन बड़े पौधा आय जेन ह नान चिरई-चिरगिन मन ला लुभाथे. वो मन कीरा ला घलो खाहीं. ये ह एक ठन जींयत रुन्धनी (इरवेली) बरोबर आय "
आमनक्कू अऊ अगाती (पालक भाजी के एक ठन किसम जेन ला अगस्त ट्री कहे जाथे) लगावत वो ह अपन दाई ला सुरता करथे. “जब वो हा मिर्चा बेचे ला जावत रहिस, त ओकर पाछू छेरी मन दउड़ परेंय. वो मन ला एक कोती बांधय अऊ वो मन ला अगाती अऊ आमनुक्कू के पान खवायेव. जइसे मिलागई हमर पहिली फ़सल रहिस वइसने अगती के घलो हमर बर दुसर जगा रहिस. मोर ददा ला मिर्चा के फसल ले पइय. अऊ जाड़ा ले जेन पइसा मिलय मोर दाई राखत रहिस.”
गांधीरासु ह अतीत ले सबक अऊ भविस सेती विग्यान के मदद के रद्दा देखत हवय. वो ह कहिथे, "हमन ला रामनाथपुरम मं, खास करके मुदुकुलतुर मं एक ठन मिर्चा अनुसंधान केंद्र के जरूरत हवय." "धान, केरा, इलायची, हरदी - सब्बो के शोध केंद्र हवंय. गर तुम्हर तीर कऊनो इस्कूल अऊ कालेज होही तभेच लइका मन ला पढ़े बर भेजे सकहू. गर कऊनो केंद्र होही त तुम्हर समस्या मन के समाधान खोजहीं अऊ समाधान करहीं. एकर बाद मिर्चा के उपज मं बहुतेच बदलाव आ जाही.”
ये बखत, एफपी मुंडू किसम सेती भौगोलिक संकेत टैग ऊपर काम करत हवय. “ये मिर्चा के खास गुन के बारे मं बात करे ला होही. सायद हमन ला एकर बारे मं किताब लिखना चाही.”
गांधीरासु कहिथे, खेती के सब्बो समस्या मन के सबले बढिया समाधान दाम बढ़ाय ह मिर्चा सेती काम नई करत हवय. देखव हरेक मनखे करा 50 धन 60 बोरी मिर्चा हवय. वो मन एकर ले का करे सकहिं? इहाँ तक ले एफपीओ मिलके घलो मसाला कम्पनी के संग बरोबरी नई कर सकय अऊ वो मन ले सस्ता पिसे मिर्चा नई बेच सकय. संगे संग वो मन के बजार के बजट कतको करोड़ तक ले हवय.
गांधीरासु कहिथे, अवईय्या बखत मं मऊसम मं बदलाव सबले बड़े समस्या होही.
वो ह कहिथे, “हमन येकर ले निपटे बर का करत हवन?” “तीन दिन पहिली, एक ठन तूफान के खतरा रहिस. मंय मार्च महिना मं एकर बारे मं कभू नई सुने रहेंव. बहुते जियादा पानी बरसे ले मिर्चा के रुख मन मर जाहीं. किसान ला अपन मुताबिक तरीका खोजे ला परही.”
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“माईलोगन मन ओतके उधार लेगथें
- धन कमती - जतके वो मन के जरूरत रथे. पढ़ई, बिहाव, जचकी – येकर बर हमन कभू करजा बर नई,
नई कहन. ओकर बाद खेती आथे.”
जे. अड़ेकेलचेल्वी, मिर्चा किसान अऊ एसएचजी नेता पी. मुथुविजयपुरम, रामनाथपुरम
वो ह अपन परोसी के खेत मन मोला काम मं रखे हवय. “तोला डर हवय के मिर्चा के रुख ह उसक जाही, हय ना?” अड़ेकेलचेल्वी ह हंसथे. ओकर परोसी बताय रहिस के मजूर नई मिलत हवंय. फेर मंय ओकर भरोसा ला पूरा करे नई सकंय अऊ रिसावत मोला आभार जताथे. येती अड़ेकेल सेल्वी हा एक ठन बाल्टी धरके मिर्चा टोरे मं लाग जाथे अऊ मिर्चा के तीसर रुख मन हाथ चलत हवय. मंय थक हार के पहिलीच रुख के तीर बइठ जाथों अऊ एक ठन बड़े मिर्चा रुख ले टोरे जइसने करथों, फेर जेन डंगार मं रहिस तेन ह मोठ अऊ बरकस रहिस. वो ह मोर घर के अंजलपेटी (मसाला डब्बा) जइसने बरकस नई ये. मोला चिंता हो गे के मिर्चा टोरे के कोसिस मन ये रुख के डंगार झन टूट जाय.
तीर तखार के कुछेक माई लोगन मन देखे बर संकला जाथें. परोसी मुड़ी हलावत रहय. अड़ेकेलसेल्वी उछाह ले नरियाय लगिस. ओकर बाल्टी भरत हवय. मोर हाथ मं आठ ठन लाल फल हवय. “तुमन ला सेल्वी ला अपन संग चेन्नई ले जाना चाही,” परोसी हा कहिथे. “वो ह सारा खेत संभाल लेथे दफ्तर ला घलो संभाल लिही.” वोकर मोला काम देय मं कऊनो लगाव नई रहिस. ये साफ रहिस के मंय ओकर भरोसा मं मात खा गे रहेंय.
अड़ेकेलसेल्वी अपन घर मं एक ठन दफ्तर संभालथे. ये ह एफपीओ के आय, जेन मं कंप्यूटर अऊ फोटो कापी मसीन सामिल हवय. ओकर काम कागजात मन के फोटोकॉपी करे अऊ लोगन मन के जमीन के पट्टा के बारे मं जानकारी देय मं मदद करना आय. “मोर करा अऊ कुछु करे के समे नई ये. देखभाल बर छेरी अऊ कुकरी मन घलो हवंय.”
ओकर जिम्मेदारी मन मं मगलीरमंड्रम धन महिला स्वयं सहायता समूह चला य घलो सामिल हवय. गाँव मं तीन कोरी सदस्य हवंय, जेन मन पांच मंडली मं बने हवंय अऊ हरेक मं दू थलाइवी (नेता) हवंय. अड़ेकेलसेल्वी ह दस ठन ले एक ठन आय. वो मन के काम धाम मं नेता मन पइसा संकेलथें अऊ बाँटथें. लोगन मन बहुत जियदा ब्याज मन करजा लेथें - रेंदुवट्टी, अंजुवट्टी (24 ले 60 फीसदी सलाना). हमर मगलीरमंड्रम ऋण ओरुवट्टी - लाख पाछू 1,000 रुपिया. मतलब करीबन 12 फीसदी सलाना. “फेर हमन संकेले गे जम्मो रकम सिरिफ एक झिन ला नई देवन. इहाँ हरेक एक छोट अकन किसान आय. ये सब्बो मन ला अपन काम चलाय सेती पइसा के जरूरत हवय, सही हय ना?”
“माईलोगन मन ओतके उधार लेगथें - धन कमती - जतके वो मन के जरूरत रथे. अऊ जियादा करके तीन चीज ला सबले जियादा धियान दे जाथे. पढ़ई, बिहाव, जचकी – येकर बर हमन कभू करजा बर नई, नई कहन. ओकर बाद खेती आथे.”
अड़ेकेलचेल्वी ह घलो एक ठन बड़े बदलाव लईस - करजा पटाय मं. “पहिले अइसन होवत रहिस के महिना पाछू करजा के तय रकम पटाय ला परत रहिस. मंय वोमन ले कहेंय, हम सब्बो मन किसान आन. कुछेक महिना मं हमर करा पइसा नई होय, फसल बेचे का बाद हाथ मं नगदी आही. लोगन मन ला जब सहूलियत हो पटाय के मऊका देवव. येकर ले जम्मो ला फायदा होना चाही, हय ना?” ये ह समावेशी बैंकिंग प्रथा मन के एक सबक जइसने आय. जेन हा करजा देय के अइसने बेवस्था आय जेन ह इहाँ के बाशिंदा मन बर सबले जियादा सुभीता के हवय.
30 बछर पहिली अपन बिहाव ले पहिली ले गाँव मं मगलीरमंड्रम रहिस, जेन ह गाँव मं कतको कार्यक्रम करथे. मार्च महिना मं हमर आय के हफ्ता के आखिर मं वो मन महिला दिवस मनाय के योजना बनाईन. वो हा मुचमुचावत कहिथे, “चर्च मं रविवार के कार्यक्रम के बाद हमन केक बाँटबो”. वो मन बरसात सेती प्रार्थना करथें, पोंगल मनाथें अऊ सब्बो के सेवा करथें.
काबर के वोहा ककरो ले नई डेरावेय अऊ सफ्फा सफ्फा गोठियाथे, अड़ेकेलसेल्वी गाँव के मरद मन ला चेथाथे गर वो ह मंद पीके अपन घरवाली ला मारथे धन गाली देथे के आदत वाला आय.वो ह दीगर माईलोगन मन के प्रेरना आय ,वो ह फटफटी चलाथे अऊ कतको बछर ले अपन खेती बाड़ी खुदेच करत हवय. जवान माई लोगन मन सब्बो स्मार्ट हवंय, वो मन फटफटी चलाथें वो मन बने पढ़े लिखे आंय. फेर वो ह तुरते पुछथे, नऊकरी केन मेर हवय?”
अब जब ओकर घरवाला लहूँट के आगे हवय,त वो ह खेती मं मदद करथे. अऊ वो अपन खाली बेरा मन दीगर बूता करथे .जइसे कपसा के ,जेन ला वो का कमाथे. “बीते दस बछर ले मंय कपसा के बीजा निकाल के बेचत हवंव.100 रुपिया किलो. बनेच अकन लोगन मन मोर ले बिसोथें –काबर मोर बीजा बढिया जामथे. मोला लागथे पाछू बछर मंय 150 किलो बीजा बेचे रहंय.” वो ह एक ठन प्लास्टिक के थैली खोलथे, एक ठन जादूगर अऊ ओकर खरहा जइसने तीन ठन कवर निकालथे अऊ मोला कतको किसिम के बीजा देखाथे. अपन कतको बूता के मंझा मं बीजा एक ठन बीजा बचेय्या के ये रूप ह हमन ला अचरज मं डार देथे.
मई के आखिरी तक ले ओकर मिर्चा के फसल हो जाथे, अऊ हमन फोन मं मऊसम के बारे मन गोठियावत रहेन. वो मोला कहिथे “दाम ह 300 रुपिया ले गिर के 120 रुपिया किलो गिर गे. ये ह सरलग गिरिस. एकड़ पाछू ओकर उपज सिरिफ 200 किलो मिर्चा आय. बेचे बखत 8 फीसदी कमीशन मं कट जाथे. संगे संग बेपारी ह हरेक 20 किलो पाछु 1 किलो काटे गीस.बोरा के 800 ग्राम फेर वो हा 200 ले जियादा नई रहिस. बेपारी ह 800 ग्राम मार दीस. फेर ये बछर वो ह टूट गे काबर दाम बहुतेच खराब नई रहिस. वो हा कहिथे, फेर बरसात. मिर्चा संग खिलवाड़ हो गे अऊ उपज कमतिया गे.
फेर कऊनो चीज किसान के बूता ला कम नई करय. इहाँ तक ले खराब मिर्चा ला घलो टोरे ला परथे. अऊ अड़ेकेलचेल्वी अऊ ओकर संगी मन के मिहनत सांबर के हरेक चम्मच के सुवाद ला बढ़ा देथे...
ये रपट सेती रिपोर्टर ह , रामनाद मुंडु चिली प्रोडक्शन कंपनी के के. शिवकुमार अऊ बी. सुगन्या के सहयोग बर अ भार जतावत हवय.
ये शोध अध्ययन ला बेंगलुरु के अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम 2020 के तहत अनुदान हासिल होय हवय.
जिल्द फ़ोटो: एम. पलानी कुमार
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू