'ग्राइंड सॉन्ग्स प्रोजेक्ट' में इस हफ़्ते, हम लेकर आए हैं पुणे के कोलवड़े गांव की मुक्ताबाई उभे और सीताबाई उभे के गाए 5 दोहे. ये दोहे महाराष्ट्र के पंढरपुर में होने वाली वारकरी संप्रदाय की तीर्थयात्रा के बारे में हैं.

'ग्राइंड सॉन्ग्स प्रोजेक्ट' की इस कड़ी में हम पंढरपुर में होने वाली तीर्थयात्रा 'वारी' का बखान करने वाले 5 दोहे लेकर आए हैं. 'वारी' साल में दो बार होने वाली तीर्थयात्रा है, जिसमें भगवान विट्ठल (जिन्हें विठोबा या पांडुरंग के नाम से भी जाना जाता है) के भक्त पंढरपुर से महाराष्ट्र के ही सोलापुर जिले की यात्रा करते हैं और माउली (माता) के मंदिर जाते हैं. इन तीर्थयात्रियों के लिए विट्ठल ऐसे भगवान हैं जो उनकी सुनते हैं और सबका ख़याल रखते हैं. भक्तों की आस्था में उनकी छवि मां जैसी है. वारकरी उस संप्रदाय के व्यक्ति को कहते हैं जो पैदल ही 21 दिन की इस यात्रा को पूरा करता है.

हिन्दू पंचांग (कैलेंडर) के अनुसार 'वारी' आषाढ़ (जून/जुलाई) और कार्तिक (अक्टूबर/नवंबर) के महीनों में होती है. हालांकि, जून/जुलाई में होने वाली यात्रा अधिक लोकप्रिय है, क्योंकि यह फसलों की बुवाई के बाद शुरू होती है. महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाक़ों से आने वाले किसान, गड़ेरिए, चरवाहे और अन्य लोग इस तीर्थयात्रा में शामिल होते हैं. अपने गांव से शहरों में कमाने गए कई वारकरी भी तीर्थयात्रा के लिए आते है.

13वीं शताब्दी में, ज्ञानेश्वरी (भगवद गीता पर मराठी में छंदबद्ध टिप्पणी) लिखने वाले संत ज्ञानेश्वर, नियमित रूप से इस यात्रा पर जाते थे. संत तुकाराम, जिनकी कविताएं तुकाराम गाथा में संग्रहित हैं, वे भी 17वीं शताब्दी में 'वारी' में शामिल होते थे. 13वीं शताब्दी की संत कवयित्री जनाबाई, मुक्ताबाई और नामदेव जैसे अन्य संत कवियों को भी नियमित तीर्थयात्रियों के रूप में जाना जाता था.

ये सभी महाराष्ट्र के संत कवि थे और भगवान विट्ठल को मानते थे. ये सभी भक्ति काव्य परंपरा से जुड़े थे, जो 7वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में शुरू हुई थी और 12वीं से 18वीं शताब्दी के बीच उत्तर की ओर फैल गई. भक्ति काव्य परंपरा प्रगतिशील आंदोलन का हिस्सा थी, जिसमें सामाजिक सुधार की बात की गई थी.

PHOTO • Namita Waikar

आलंदी से शुरू हुआ 'वारी' का जुलूस, ज्ञानेश्वर का सम्मान करते हुए. एक और जुलूस, तुकाराम की याद में देहू से निकला. पुणे में जुटा तीर्थयात्रियों का जत्था पंढरपुर के रास्ते पर बढ़ता हुआ.

आज के वारी की शुरुआत पुणे जिले के दो कस्बों से होती है. एक जुलूस ज्ञानेश्वर के सम्मान में आलंदी से शुरू होता है, और दूसरा तुकाराम के सम्मान में देहू से. पंढरपुर के लिए चले ये दो भव्य जुलूस पुणे शहर में मिलते हैं और दो दिनों के लिए वहीं रुकते है. इसके बाद, पुणे के हड़पसर तक एक साथ चलते हैं. फिर, सोलापुर जिले के पंढरपुर तालुका के वखरी में मिलते हुए, वे फिर से अलग-अलग जुलूसों में बंट जाते हैं और एक बार फिर पंढरपुर पहुंचने से पहले इकट्ठे हो जाते हैं.

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के विभिन्न क़स्बों और और गांवों से चलकर आए भक्त, भक्ति परंपरा के अन्य कवियों के सम्मान में छोटे-छोटे जुलूस निकालते हुए आते हैं और पंढरपुर जाने वाले मुख्य जुलूस में अलग-अलग जगहों पर शामिल होते रहते हैं.

PHOTO • Namita Waikar

चौथे ओवी में, गायक-कलाकार सीताबाई उभे, अपने भाई को कहती हैं कि वह उसके साथ पंढरपुर जाना चाहती हैं

पुणे जिले के मुलशी तालुका के कोलवड़े गांव की खडकवाड़ी बस्ती की रहने वाली मुक्ताबाई उभे और सीताबाई उभे, पांच दोहे (ओवी) गाती हैं. 'ग्राइंडमिल सॉन्ग्स प्रोजेक्ट' की मूल टीम ने 6 जनवरी, 1996 को इन दोहों को रिकॉर्ड किया था. हमने 30 अप्रैल, 2017 को कोलवड़े  का दौरा किया था और दोनों गायकों से मुलाकात की थी. यह तस्वीरें इस यात्रा के दौरान ली गई थीं.

मुक्ताबाई ने गाते हुए दोहे में बताया कि वह इस साल पंढरपुर जाने के बारे में नहीं सोच रही थीं, लेकिन मंदिर में विराजने वाले देवता विठ्ठल से उन्हें दो संदेश मिले. वारकरियों का मानना ​​है कि विठ्ठल हर साल अपने भक्तों का बेसब्री से इंतजार करते हैं.

दूसरे दोहे में, गायिका कहती हैं कि वह कल से पंढरपुर जाने के लिए तैयार हैं और भगवान विठ्ठल उन्हें लेने आए हैं. उनकी घोड़ी नदी किनारे खेतों में घास चर रही है.

अगले दोहे में इस बात का ज़िक्र है कि महिला ने यात्रा के लिए खाने-पीने के सामान इकट्ठे किए हैं और कल से उन्हें तैयार रखा है; वह बेटे से अपने बैल हवशा की पीठ पर सामान की बोरी रखने के लिए कहती है.

चौथे दोहे (ओवी) में, सीताबाई अपने भाई से कहती हैं कि वह उसके साथ पंढरपुर जाने के लिए तैयार है और वे दोनों चंद्रभागा में स्नान करेंगे.

तीर्थयात्री अपने प्रिय विठ्ठल से मिलने से पहले इस नदी में स्नान करते हैं और उसके बाद मंदिर जाते हैं.

अंतिम दोहे में, गायिका कहती हैं कि उन्हें महसूस होता है कि उनके बाल चंद्रभागा नदी में स्नान करने से साफ़ और हल्के हो गए हैं. हालांकि, उन्हें अब भी यह महसूस नहीं होता है कि वह कभी पंढरपुर गई हैं - और वह अब वहां जाएंगी.

इस साल नहीं आया ख़याल कि पंढरी जाना है
विठ्ठल ने दो संदेश दिए मुझको कि आना है

पंढरी जाने की ख़ातिर, मैं कल से हूं तैयार खड़ी
विठ्ठल आए, नदी किनारे घोड़ी चरती घास खड़ी

पंढरी जाने की ख़ातिर, कल से खाने का सामान जुटाया
बेटे से कहकर सबकुछ, हवशा बैल की पीठ पर रखवाया

पंढरी जाने की ख़ातिर, भैया मैं तुम्हारे साथ चलूंगी
चंद्रभागा में लेने डुबकी, नदी के अंदर मैं चलूंगी

मेरे बाल गए हल्के-हल्के, चंद्रभागा में नहाकर
पंढरी चलो कि ऐसा लगता, पहले कभी न देखा आकर

नोट: *भीमा नदी को चंद्रभागा भी कहा जाता है, जो पंढरपुर से होकर बहती है.

The pilgrims’ progress
PHOTO • Samyukta Shastri

"गायिका और कलाकार, मुक्ताबाई उभे, बेहद पढ़ाकू भी हैं"


परफ़ॉर्मर/गायिका: मुक्ताबाई उभे, सीताबाई उभे

गांव: कोलवड़े

बस्ती: खडकवाड़ी

तालुका: मुलशी

जिला: पुणे

जाति: मराठा

तारीख़: ये गीत और अन्य कुछ जानकारियां 6 जनवरी, 1996 को रिकॉर्ड की गई थीं. तस्वीरें 30 अप्रैल, 2017 को दर्ज़ की गईं.

तस्वीरें: नमिता वाईकर और संयुक्ता शास्त्री

पोस्टर: संयुक्ता शास्त्री और सिंचिता माजी

अनुवाद: देवेश

PARI GSP Team

पारी-जात्यावरच्या ओव्या गटः आशा ओगले (अनुवाद), बर्नार्ड बेल (डिजिटायझेशन, डेटाबेस डिझाइन, विकास, व्यवस्थापन), जितेंद्र मैड (अनुलेखन, अनुवाद सहाय्य), नमिता वाईकर (प्रकल्प प्रमुख, क्युरेशन), रजनी खळदकर (डेटा एन्ट्री)

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Translator : Devesh

देवेश एक कवी, पत्रकार, चित्रकर्ते आणि अनुवादक आहेत. ते पारीमध्ये हिंदी मजकूर आणि अनुवादांचं संपादन करतात.

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