पुणे जिले के मलठण गांव की चिमाबाई दिंडले कहती हैं कि उन्हें चक्की पीसते वक़्त गाए गीत ठीक से याद नहीं. हालांकि, पारी जीएसपी टीम के कई बार अनुरोध करने पर, वह प्यार करने वाले पतियों, भटकते हुए संन्यासियों और 'चक्की के देवता' के बारे में गीत सुनाने लगती हैं
चिमाबाई दिंडले पूछती हैं, “गाँव में अब कौन शादी करता है? इन दिनों हल्दी कौन पीसता है?" और फिर कहने लगती हैं कि उन्हें अब वे गीत याद नहीं हैं जो चक्की पीसते वक़्त गाती थीं, क्योंकि वह अब उन्हें नहीं गाती हैं.
साल 1994 में, चिमाबाई और मुलशी तालुका के वडवली गांव के बहुत से लोगों को, मोसे नदी पर वरसगांव बांध के निर्माण के कारण दौंड तालुका में जाकर बसना पड़ा था. 24 जुलाई, 2017 को, हम उनसे और अन्य गायकों से मिलने के लिए दौंड गए थे, जिन्होंने 'ग्राइंडमिल सॉन्ग्स' के डेटाबेस में योगदान दिया था.
हमारा पहला पड़ाव दापोड़ी गांव था, जहां हम सरुबाई कडु से मिले. सरुबाई के गाए गीत पारी पर दो लेखों में अपनी जगह बना चुके हैं. सरुबाई ने ही हमें बताया कि हम चिमाबाई से कहां मिल सकते हैं. 1990 के दशक में जीएसपी की मूल टीम के लिए सरुबाई ने 500 दोहे (ओवी) गाए थे. इसके बाद, हम मलठण गांव की येवले बस्ती तक पहुंचे. वहां पहुंचकर हमें मालूम चला कि चिमाबाई और सरुबाई के बीच ननद और भाभी का रिश्ता है.
जब हम टिन की चादरों से बने, चिमाबाई के तीन कमरों वाले घर में पहुंचे, तो हमने उन्हें एक कोने में बैठे पाया, और उन्होंने दीवार के किनारे को सहारे के लिए पकड़ रखा था. मालूम चला कि वह पिछले कुछ अरसे से पीठ और गर्दन में दर्द से परेशान चल रही हैं. वह कहती हैं, “अब मैं कहीं नहीं जाती, घर से बाहर ही नहीं निकलती. मैं बस बच्चों का ध्यान रखती हूं.” बच्चों से उनका आशय अपने दो नाती-पोतों से था, जो दोपहर की नींद ले रहे थे. उनके घर में एक चक्की भी रखी हुई थी. उन्होंने बताया कि “हम इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. शायद कभी-कभार हरभरा [चना] पीसने के लिए ही इस्तेमाल होता है."
चिमाबाई घर से ठीक बाहर मंडराती मुर्गियों पर भी नज़र रखती हैं. जब उनमें से कोई दहलीज़ पार करने की कोशिश करता है, तो वह दूर भगाने के लिए तेज़ सीटी बजाती हैं. कुछ बिल्ली के बच्चे भागदौड़ करते हैं, तो वह अपनी पोती को चेतावनी देती हैं जब बिल्ली का कोई बच्चा रसोई में घुसने लगता है.
चिमाबाई का बेटा पुणे में रहता है, जबकि उनकी बहू और पोता मलठण में अपने छह एकड़ के खेत में काम करते हैं. वे गन्ना उगाते हैं और उन्होंने बोरवेल की खुदाई के लिए कर्ज ले रखा है. वह बताती हैं, “हम अपने कर्जे में हैं, और ब्याज चढ़ता जा रहा है. हमारे पास एक भेड़ है, और एक गाय भी है जो दुधारू नहीं है. चाय के लिए दूध नहीं होता है.” इसके बाद, वह धीरे से अपनी पोती को पानी गर्म करने के लिए कहती हैं, और हमें मीठी काली चाय पिलाती हैं.
चीमाबाई ने बताती हैं, "वडवली में, हमने मानसून के समय चार महीनों तक खेतों में काम किया और जो उगाया उसी से अगले चार महीनों तक ख़ुद को पाला. हमें बहुत सारी चढ़ाई करनी पड़ती थी और ख़ूब चलना पड़ता था, लेकिन जीवन अच्छा गुज़र रहा था. यहां पूरे वर्ष काम होता है - हर समय निराई और गुड़ाई. लेकिन अब मैं कुछ नहीं करती. कुछ साल पहले मेरे पति की मृत्यु हो गई. मेरी दुनिया ख़त्म हो गई है.”
चिमाबाई दिंडले के दोहे (ओवी )
चिमाबाई के गाए दोहे (ओवी) 1990 के दशक में जीएसपी मूल की टीम ने दर्ज़ कर लिए थे. जब हमने उनमें से कुछ को पढ़कर सुनाया, तो उनकी पोती ने पूछा, "आपने ये सब गाने कब गाए थे अज्जी [दादी]?" चिमाबाई ने ज़ोर देकर कहा कि उन्हें इनमें से कोई गाना याद नहीं है. लेकिन जब हमने विनती की, तो वह थोड़ा पिघलीं और कुछ दोहे गाकर सुनाए, जिसे हमने कैमरे पर रिकॉर्ड कर लिया.
लंकापति रावण आया, साधु जैसे वस्त्र पहनकर
राम की सीता साथ ले गया, अलख बोलकर
सिर्फ़ मेरे वह पति नहीं हैं, पिछले जनम का राजा है
मां की तरह से सारी ख़्वाहिश, इच्छाओं को साजा है
पति मेरे तो मेरे लिए हैं, मीठे आम के पेड़ की तरह
उसकी छांव में सूरज मद्धम, गरम हवा भी ठंड की तरह
सिर्फ़ मेरे वह पति नहीं हैं, जैसे मीठे आम के पेड़ की छाया
सुनो मेरी, ओ रे सखी! बहुत दूर खड़ी मेरी मां की काया
जब मैं गई थी पंढरपुर, रहने को वहां कोई जगह नहीं है
विट्ठल ने तुलसी बोई खेत-खेत, बची हो ऐसी जगह नहीं है
पंढरपुर में तो बस भीड़-भड़क्का, कहां रहूं मैं खड़ी?
विठ्ठल ने बोए तुलसी के द्वीप, न छोड़ी कोई गली
रुक्मिणी गई हैं रूठ कि जाकर बैठीं पुराने बंगले पर
खुश करने को विट्ठल बोए जाते, अड़हुल सारे गमले पर
चक्की के भगवान मेरे, तुम पर सुपारी बांध रही हूं
अपने दूल्हे बेटे को, जमकर हल्दी लगा रही हूं
चक्की के भगवान मेरे, चावल है तुमको अर्पण
छोटा बेटा, मेरा दूल्हा बेटा, मोती का जैसे दर्पण
सुबह-सुबह एक साधु आया, आश्रम से अपना ज्ञान लिया
उनको मेरी प्यारी बिटिया ने, घर का आटा दान दिया
सुबह-सवेरे चलकर आए, थोड़े पगले, साधु एक भोले से
उनको मेरी प्यारी बिटिया ने, दान दिया चावल हौले से
नोट: अलख - साधुओं द्वारा बोला जाने वाला शब्द, जब वे खाना मांगने के लिए दरवाज़े पर आते हैं. यह संस्कृत के शब्द अलक्ष से बना है, जिसका अर्थ होता है "जिसे देखा न जा सके."
परफ़ॉर्मर/गायिका : चिमा दिंडले
गांव : मलठण
बस्ती : येवले बस्ती
तालुका : दौंड
जिला : पुणे
जाति : मराठा
उम्र : 70
बच्चे : एक बेटी और एक बेटा
आजीविका : भूतपूर्व किसान और खेतिहर मज़दूर
तारीख़ : सभी गीत और जानकारी 24 जुलाई, 2017 को रिकॉर्ड की गई थी.
पोस्टर: सिंचिता माजी
अनुवाद: देवेश