सरकार बहादुर ह ओकर नांव अन्नदाता रखे रहिस अऊ अब वो ह ओकर नांव के फंदा मं फंसे हवय. जब सरकार बहादुर कहय, ‘बीजा बोव’ त वो मन वोला खेत मं बो देवंय. सरकार बहादुर जब कहय, खातू डारो त खातू छींच देवंय. जब फसल लुआ जावत रहिस, त वो ह वोला सरकार बहादुर के तय करे दाम मं बेंच देवत रहिस,जेन ह तब गरब ले दुनिया मं अपन माटी के उपज के ढिंढोरा पीटही, फेर अन्नदाता बजार ले उहिच अन्न ला बिसोही, जेन ला वो ह अपन पेट भरे सेती कमाय रहिस. बछर भर अइसने चलत रहय, अऊ ओकर करा अऊ कऊनो उपाय नई रहिस. एक दिन इही रद्दा मं चलत वो ला लगिस के वो ह करजा मं बूड़ गे हवय. ओकर पोटा कांप गे अऊ वो ह जऊन पिंजरा मं फंस गे रहिस, वो ह बड़े होवत गे. वो ह सोचे रहिस के ये धंधाय जगा ले निकरे के रद्दा निकार लिही. फेर ओकर आत्मा घलो सरकार बहादुर के गुलाम रहिस. अऊ सम्मान निधि योजना के तहत बांटे पइसा तरी ओकर अस्तित्व बनेच बखत पहिली दब गे रहिस.

सुनव देवेश ला हिंदी मं अपन कविता सुनावत

सुनव प्रतिष्ठा पंड्या ला अंगरेजी मं ये कविता सुनावत


मौत के बाद उन्हें कौन गिनता

ख़ुद के खेत में
ख़ुद का आलू
फिर भी सोचूं
क्या मैं खालूं

कौन सुनेगा
किसे मना लूं
फ़सल के बदले
नकदी पा लूं

अपने मन की
किसे बता लूं
अपना रोना
किधर को गा लूं

ज़मीन पट्टे पर थी
हज़ारों ख़र्च किए थे बीज पर
खाद जब मिला
बुआई का टाइम निकल गया था
लेकिन, खेती की.
खेती की और फ़सल काटी
फ़सल के बदले मिला चेक इतना हल्का था
कि साहूकार ने भरे बाज़ार गिरेबान थाम लिया.

इस गुंडई को रोकने
कोई बुलडोज़र नहीं आया
रपट में पुलिस ने आत्महत्या का कारण
बीवी से झगड़े को बताया.

उसका होना
खेतों में निराई का होना था
उसका होना
बैलों सी जुताई का होना था
उसके होने से
मिट्टी में बीज फूटते थे
कर्जे की रोटी में बच्चे पलते थे
उसका होना
खेतों में मेड़ का होना था
शहराती दुनिया में पेड़ का होना था

पर जब उसकी बारी आई
हैसियत इतनी नहीं थी
कि किसान कही जाती.

जिनकी गिनती न रैलियों में थी
न मुफ़्त की थैलियों में
न होर्डिंगों में
न बिल्डिंगों में
न विज्ञापनों के ठेलों में
न मॉल में लगी सेलों में
न संसद की सीढ़ियों पर
न गाड़ियों में
न काग़ज़ी पेड़ों में
न रुपए के ढेरों में
न आसमान के तारों में
न साहेब के कुमारों में

मौत के बाद
उन्हें कौन गिनता

हे नाथ!
श्लोक पढूं या निर्गुण सुनाऊं
सुंदरकांड का पाठ करूं
तुलसी की चौपाई गाऊं
या फिर मैं हठ योग करूं
गोरख के दर पर खिचड़ी चढ़ाऊं
हिन्दी बोलूं या भोजपुरी
कैसे कहूं
जो आपको सुनाई दे महाराज…

मैं इसी सूबे का किसान हूं
जिसके आप महंत हैं
और मेरे बाप ने फांसी लगाकर जान दे दी है.

मरे के बाद वो मन ला कऊन गिनतिस

अपन के खेत मं
अपन के आलू
येकर बाद घलो सोचेंव
काय मंय खावंव

कऊन सुनही
कऊन ला मनावंव
फसल के बदला मं
पइसा पावंव

अपन मन के
कऊन ला बतावंव
अपन पीरा
कऊन ला सुनावंव

खेत लेव रहेंव ठेका मं
खरचा करे रहेंव बीजहा मं हजारों
जब मिलिस खातू
चलेगे रहिस बोय के बखत
ओकर बाद घलो करेंव खेती
करेंव खेती अऊ लुयेंव फसल
फसल के बदला मं मिले चेक अतक कम रहिस
के महाजन ह भरे बजार धर लिस घेंच

ये दादागीरी ला रोके
नई आइस कऊनो बुलडोजर
रपट मं पुलिस ह आत्महत्या के कारन
सुवारी ले झगरा बताइस.

ओकर होय रहे ले
होय रतिस खेत मं निरई
ओकर होय रहे ले
होय रतिस बइला कस जुताई
ओकर होय रहे ले
जामे रतिस बीजहा
करजा के रोटी मं पलत रतिन लइका
ओकर होय ह
रहिस खेत के पार होय
सहर के मंझा मं हरियर रुख होय

फेर जब ओकर पारी आइस
अतक नई रहिस ओकर हैसियत
के किसान कहे जातिस

जेकर मन के नई रहिस कऊनो गिनती
न रैली मं
न रासन के मुफत थैली मं
न होर्डिंग मं
न बिल्डिंग मं
न विज्ञापन के ठेला मं
न माल में लगे बिक्री के रेला मं
न संसद के सीढ़िया मं
न गाड़ी-घोड़ा मं
न कागज के रुख मं
न रूपिया के ढेरी मं
न अकास के तारा मं
न साहेब के लइका मं
मरे के बाद
वो ला कऊन गिनतिस

हे भगवान!
श्लोक पढ़वं धन भजन सुनावंव
सुंदरकांड के पाठ करंव
तुलसी के दोहा सुनावंव
धन मंय हठयोग करंव
गोरख के मंदिर मं खिचड़ी चढ़ावंव
हिंदी बोलंव धन भोजपुरी
कइसने बोलंव
जऊन ला सुनबे महाराज...

मंय इही राज के किसान अंव
जेकर तंय हस महंत
अऊ मोर ददा ह फांसी लगाके दे दिस परान


गर आत्महत्या करे के बारे मं सोचत हवव धन कऊनो अइसने मुसीबत मं परे लोगन मन ला जानत हवव त किरिपा करके राष्ट्रीय हेल्पलाइन , किरण , 1800-599-0019 ( 24/7 टोल फ्री ) , धन ये मेर के कऊनो घलो हेल्पलाइन मं फोन करव. मानसिक सेहत के पेशा ले जुरे लोगन मन अऊ वो मन तीर पहुंचे सेती जानकरी बर, किरिपा करके एसपीआईएफ के मानसिक स्वास्थ्य निर्देशिका मं जावव.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Poem and Text : Devesh

देवेश एक कवी, पत्रकार, चित्रकर्ते आणि अनुवादक आहेत. ते पारीमध्ये हिंदी मजकूर आणि अनुवादांचं संपादन करतात.

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Editor : Pratishtha Pandya

प्रतिष्ठा पांड्या पारीमध्ये वरिष्ठ संपादक असून त्या पारीवरील सर्जक लेखन विभागाचं काम पाहतात. त्या पारीभाषासोबत गुजराती भाषेत अनुवाद आणि संपादनाचं कामही करतात. त्या गुजराती आणि इंग्रजी कवयीत्री असून त्यांचं बरंच साहित्य प्रकाशित झालं आहे.

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Illustration : Shreya Katyayini

श्रेया कात्यायनी एक छायाचित्रकार आहे आणि चित्रपटनिर्मिती करते. २०१६ मध्ये तिने, मुंबईच्या टाटा इन्स्टिट्यूट ऑफ सोशल सायन्सेस मधून मीडिया अँड कल्चरल स्टडीज मध्ये पदव्युत्तर शिक्षण पूर्ण केले. आता ती पीपल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडियासाठी पूर्ण वेळ काम करते.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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