ये सब कागज के एक ठन टुकड़ा अऊ एक झिन अनजान मइनखे के सवाल ले सुरु होइस.

12 बछर के कमलेश दंडोलिया राठेड़ गाँव मं अपन घर के लकठा मं बने सैलानी मन बर बने गेस्ट हाउस तीर घूमत रहिस, तभेच ओकर भेंट एक झिन परदेसी (अनजान) ले होइस. वो ह पूछिस के काय मंय भरिया भाखा ला जानथों.” कमलेश के जुवाब देय के पहिली, “वो मइनखे ह मोला एक ठन कागज दीस अऊ पढ़े ला कहिस.”

अनजान मइनखे ह मउका खोजत रहय – इहाँ तामिया ब्लॉक के पातालकोट घाटी मं, भरिया समाज के कतको लोगन मन हवंय,जऊन ह मध्य प्रदेश मं एक ठन विशेष रूप ले कमजोर आदिवासी समूह (पीवीटीजी )आय. कमलेश भरिया आय अऊ वो ह अपन समाज के भाखा-भरियाटी- ला बिना रुके बोले सकत रहिस.

नान चिक लइका ह भारी आत्म विश्वास के संग कागज ला पढ़ीस. ये मं ओकर समाज के बारे मं समान्य जानकारी रहिस. काबर के ये ह देवनागरी लिपि (हिंदी मं) लिखाय रहिस, “येकरे सेती आसान लगिस”. दूसर भाग मं, जेन मं जिनिस मन के नांव रहिस, कमलेश अटके लगिस. “शब्द तो भरियाटी मं रहिस,” वो ह सुरता करथे, “वो अवाज जाने चिन्हे रहिस, फेर वो शब्द मन अनजान रहिन.”

वो ह कुछु सुरता करत मिनट भर बर ठहर जाथे. “एक ठन खास शब्द रहिस. ये ह एक किसम के जंगली जड़ीबूटी (ओसध) रहिस. हाय, मंय येला लिख लेय रहितेंय,” वो ह टूटे मन ले मुड़ी हलावत कहिथे. “अब मोला वो शब्द घन ओकर मतलब घलो सुरता नइ ये.”

कमलेश के दिक्कत ह वो ला सोचे बर मजबूर कर दीस: “मोला अचरज हवय के भरियाटी मं अऊ कतका शब्द हवंय जऊन ला मंय नइ जनत हवं.” वो मन ला मालूम रहिस के वो ह बिना अटके हिंदी बोलथे- वो अपन बबा- डोकरी दाई ले भरियाटी बोलत बड़े होय हवय जेन मन वोला पाले पोसे रहिन. “ये अकेल्ला भाखा रहिस जेन ला मंय अपन किसोर उमर तक ले बोलत रहेंव. मंय अभू घलो बिन अटके हिंदी बोले बर जूझत हवं,” वो ह हंसत कहिथे.

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डेरी: कमलेश डंडोलिया 29 बछर के किसान अऊ भरिया समाज ले भाषा संग्रहकर्ता आय, जऊन ह एक ठन विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी)आय.जउनि: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिला के राठेड़ गांव मं ओकर घर

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डेरी: तामिया ब्लॉक साइन बोर्ड पातालकोट घाटी भीतर जाय ला बताथे, जेन ह सतपुड़ा के डोंगरी मन मं 12 ठन गाँव मं बगरे भरिया समाज के लोगन मन के घर आय. ये जगा इहाँ के लोगन मन बर गुड़ी-बइठका के ठीहा आय, जिहां ले घर लहूटे बर टेक्सी करके जाथें. जउनि: कमलेश के घर के बहिर के सड़क मध्य प्रदेश के कतको लोकप्रिय घूमे के जगा मन मं जाथे

मध्य प्रदेश मं भरिया समाज के आबादी करीबन दू लाख हवय (स्टेटिकल प्रोफाइल ऑफ़ शेड्यूल ट्राईब्स, 2013 ), फेर सिरिफ 381 लोगन मन भरियाटी ला अपन महतारी भाखा बताय हवंय. वइसे ये जानकारी भारतीय भाषा जनगणना डहर ले छपे 2001 के मिले जुले आंकड़ा ले हवय, फेर ये मं कोनो नवा जानकारी सुधारे नइ गे हवय काबर के साल 2011 के जनगणना मं भरियाटी ला अलग ले सूचीबद्ध करे नइ गे हवय. ये ह अनाम महतारी भाखा के बरग मं छिपे हवय जऊन ह 10 हजार ले कम बोलेइय्या भाखा मन ला नजरअंदाज कर देथे.

सरकार डहर ले जारी वीडियो मं बताय गे हवय के ये समाज कभू महाराष्ट्र के राजा मन के कुली रहिन. नागपुर के मुधोजी द्वितीय (जऊन ला अप्पा साहेब के नांव ले घलो जाने जावत रहिस) ला तीसर एंग्लो-मराठा लड़ई बखत साल 1818 के लड़ई मं हार गीस अऊ वोला भागे ला परिस, जेकर बाद कतको भरिया लोगन मं ओकर पाछू-पाछू चले गीन अऊ मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा, बैतूल अऊ पचमढ़ी के जंगल मन मं बस गीन.

आज ये समाज अपन आप ला भारिया (धन भारती) के नांव ले जानथे. वो मन के पारंपरिक कारोबार झूम खेती रहिस. वो मन ला ओसध रुख अऊ जड़ी-बूटी मन के घलो भारी गियान रहिस – येकरे सेती लोगन मन बछर भर गाँव मं आवत रहिथें. कमलेश कहिथे, “वो मन हमन ले जड़ी-बूटी बिसोय बर इहाँ आथें. कतको सियान मन करा अब लाइसेंस हवय अऊ वो मन ये ओसध रुख मन ला बेचे बर कहूँ घलो जाय सकथें.”

फेर भाखा के जइसनेच, ये रुख मन के जानकारी घलो अब “सिरिफ गाँव के सियान मन ला हवय,” वो ह बताथे.

नवा पीढ़ी, जऊन ला पारंपरिक गियान नइ सीखे हवंय, वो मन बर भुरटा (भरियाटी मं जोंधरा) के खेती अऊ सीजन के वन उपज जइसे चारक (भरियाटी मं चिरौंजी / कुडप्पा बादाम), महू (मऊहा, मधुका लोंगिफोलिया), आंवला अऊ जलावन लकरी, वो मन के बछर भर गुजारा करे मं मदद करथे.

समाज तक ले जाय के रोड के हालत अभू घलो भारी खराब हवय, भलेच महादेव मंदिर अऊ राजा खोह गुफा जइसने घूमे के लोकप्रिय जगा ओकर मन के घाटी मं हवय. वो मन खास करके  पातालकोट इलाका मं रहिथें, जऊन ह सतपुड़ा के डोंगरी मन के तलहटी मं बगरे 12 ठन गाँव मं बसे हवंय. समाज के लइका मन अपन पढ़ई-लिखई करे बर इंदौर जइसने तीर-तखार के हास्टल वाले स्कूल मन मं रहिथें.

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डेरी: कमलेश (सबले डेरी) अपन घर के बहिर अपन परिवार के संग. ओकर भाई के सुवारी अऊ ओकर बेटा मन, संदीप (नारंगी बनियान मं) अऊ अमीत, कमलेश के दाई, फुलेबाई (सबले जउनि); अऊ डोकरी दाई, सुक्तिबाई (गुलाबी ब्लाउज मं ). जउनि: समाज के पारंपरिक जीविका मं झूम खेती शामिल रहिस, आज, नवा पीढ़ी जोंधरा के खेती अऊ जलावन लकरी समेत सीजन मं जंगल के उपज ला संकेले मं लगे हवय

*****

दस बछर बीते. सियान कमलेश मध्य भारत के डोंगरी मन मं अपन गाय अऊ छेरी मन ला चरावत रहिस, जब एक पईंत अऊ ओकर भेंट एक अनजान ले होइस. जब वो ह वो बखत ला सुरता करथे, त वो खुसी ओकर गाल मं झलक परथे. जब अनजान मइनखे ह कमलेश ले पूछे बर अपन कार रोकिस, त वो ह मने मन सोचिस, हो सकथे वो ह घलो मोर पढ़े बर कोनों कागत [कागज] निकारही!”

कमलेश ह घर के खेती करे बर 12 वीं के पढ़ई छोड़ दे रहिस: ओकर अऊ ओकर सात भाई- बहिनी मन बर कालेज अऊ स्कूल के फीस बर बनेच कम पइसा रहिस. गांव मं 5 वीं क्लास तक के प्रायमरी स्कूल रहिस. ओकर बाद, टूरा मन तामिया अऊ तीर-तखार के शहर मन मं हास्टल वाले स्कूल मं चले गीन, फेर नोनी मन पढ़ई छोड़ दीन.

अनजान मइनखे ह अब 22 बछर के कमलेश ले पूछिस के काय वो ह अपन महतारी भाखा ला बचाय के काम करे ला चाही जेकर ले अवेइय्या पीढ़ी सुरता रख सके के भरियाटी कइसने बोले जावत रहिस. बात ह ओकर मन ला भा गीस अऊ वो ह तुरते राजी होगे.

ये अनजान मइनखे देहरादून के भाषा अऊ भाषा विज्ञान संस्थान के भाषा शोधकर्ता पवन कुमार रहिस, जऊन ह भरियाटी के दस्तावेजीकरन करे बर गाँव आय रहिस. वो ह पहिली घलो कतको आन गाँव जाय चुके रहिस, जिहां वोला कोनो बिन अटके बोलेइय्या नइ मिले रहिस. पवन कुमार तीन चार बछर तक ले ये इलाका मं रहिस अऊ “ हमन भरियाटी मं कतको कहिनी अऊ इहाँ तक ले एक ठन डिजिटल किताब घलो छापे रहेन,” कमलेश सुरता करत कहिथे.

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डेरी: कमलेश किसान आय.घर के खेती सेती वो ह 12 वीं के पढ़ई ला छोड़ दे रहिस. जउनि: कमलेश के डोकरी दाई, करीबन 80 बछर के सुक्तिबाई दंडोलिया, सिरिफ भरियाटी भाखा कहिथे अऊ वो ह येला ये भाखा सिखाय हवय

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डेरी: कमलेश अऊ भाषा विकास टीम के बनाय भरियाटी मं वर्णमाला चार्ट. जउनि: वो ह भरियाटी मं वर्तनी गाइड समेत कतको किताब घलो लिखे हवय

कमलेश के राजी होय के बाद, सबले पहिला काम एक ठन अइसने जगा खोजे रहिस जिहां बगैर कोनो बिघन के काम करे जाय सके. “यहां बहुत शोर-शराबा होता था क्योंकि टूरिस्टों का आना-जाना लगा रहता था (इहाँ भारी कलर-कलर होवत रहिस काबर के सैलानी मन के आना जाना लगे रहय.)” वो मन भरियाटी भाषा विकास दल बनाय बर दूसर गाँव मं जाय के फइसला करिन.

महिना भर के भीतर कमलेश अऊ ओकर टीम ह भरियाटी वर्णमाला चार्ट बना लीन, “मंय हरेक अच्छर के आगू चित्र बनायेंव.” सियान मन शब्द छांटे मं मदद करिन. फेर वो ह इहींचे नइ रुकिस. शोधकरेइय्या के मदद ले, ओकर टीम ह वर्णमाला चार्ट के 500 ले जियादा डिजिटल रूप ले छापे मं सफल होगे. दू ठन मंडली बना के, वो ह नरसिंहपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा अऊ होशंगाबाद (जऊन ला अब नर्मदापुरम के नांव ले घलो जाने जाथे) समेत कतको शहर के प्रायमरी स्कूल अऊ आंगनबाड़ी मं ये चार्ट मन ला बांटे बर फटफटी ले जावत रहिस. कमलेश ह पारी ला बताइस, “मंय अकेल्लाच तामिया,हरई अऊ इहाँ तक के जुन्नारदेव के 250 ले जियादा प्रायमरी स्कूल अऊ आंगनबाड़ी मं जाय रहे होहूँ.”

वइसे दूरिहा बनेच रहिस, कभू-कभू तो 27-28 ओस तक, “हमन तीन चार दिन तक ले घर नइ आवत रहेन. हमन ककरो घर मं रतिहा मं रुक जावत रहें अऊ बिहनिया चार्ट बांटे लगत रहेंव.”

कमलेश कहिथे के जेन प्रायमरी स्कूल के गुरूजी मन ले वो मन भेंट करिन, वो मन ले अधिकतर अपन समाज के बारे मं जियादा नइ जानत रहिन, “फेर वो मन हमर काम ला भारी सराहेंव, जेकर ले हमन ला वो गाँव मन मं जाय मं मदद मिलिस जिहां अब भरियाटी भाखा बोले नइ जावय.”

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अरेया (जऊन ला मधेछी घलो कहिथें) एक ठन नान कन पठेरा होथे जिहां रोज के काम के जिनिस मन ला रखे जाथे. कमलेश ह  भरियाटी वर्णमाला चार्ट मं येला लइका मन बर वो मन के तीर-तखार के जाने-चिन्हे जिनिस मन ला जाने-समझे मं मदद सेती बनाइस

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डेरी: कमलेश भारतीय भाषा ला लिखे बर बउरे कुछु बचे चार्ट पेपर ला दिखावत हवय, जेन ह एक ठन संदूख मं परे हवय. महामारी बखत बाकी के अधिकतर चार्ट पेपर गंवा गे रहिस. जउनि: चार्ट पेपर मंडली मं चर्चा के बाद बनाए गे रहिस, अऊ ये मं सहर अऊ सफाई ले जुड़े संदेश हवय

बछर भर के भीतर कमलेश अऊ ओकर भाषा विकास टीम ह भरियाटी मं कतको किताब लिखिस, जउन मं एक भाषा वर्तनी गाइड , तीन ठन सेहत के कहिनी अऊ तीन ठन नैतिक कहिनी हवंय. ये घर के एक ठन संदूख मं दबे कुछु रंगीन चार्ट पेपर निकारत वो ह कहिथे, “हमन पहिली सब्बो कुछु कागज मं लिखे रहेन.” समाज के कोसिस ले भरियाटी मं एक ठन वेबसाइट बनाय गीस.

राठेड़ मं अपन घर मं हमर ले गोठ-बात करत वो ह कहिथे, “हमन वेबसाइट के दूसर चरन के काम बर आतुर रहेन, मंय पॉकेट बुक्स, लोकगीत, पहेली (जनऊला), लइका मन के शब्द खेल अऊ बनेच कुछु डिजिटल ला बताय बर तियार रहेन... फेर महामारी के पांव परगे.” टीम के सब्बो कोसिस ठप होगे. येकर ले घलो जियादा अहित होइस: कमलेश के फोन रीसेट हो जाय सेती रातों-रात ओकर डेटा उड़ गे. वो ह दुखी होवत कहिथे, “सब्बो खतम हो गे. हमन हाथ ले लिखे नकल ला घलो संभाल के नइ रखे सकेन.” ओकर करा स्मार्टफोन नइ रहिस: ये बछर वो ह ई मेल करे सीखे हवय.

जऊन थोर बहुत बांचे रहिस, वोला वो ह आन गाँव के अपन संगवारी मन ला दे दे रहिस. वो ह कहिथे के अब वो मन ओकर ले संपर्क मं नइ यें, “मोला नइ पता के वो मन करा अभू घलो हवय धन नइ.”

फेर ये ह सिरिफ महामारी भर नइ रहिस जेन ह कमलेश ला अपन दस्तावेजीकरन रोके ला मजबूर करिस. ओकर कहना आय के ओकर समाज मं लइका अऊ सियान दूनों डहर ले रूचि के कमी भरियाटी के दस्तावेजीकरन करे मं सबले बड़े बिघन मन ले एक ठन आय. वो ह कहिथे, “सियान मन ला लिखना नइ ये अऊ लइका मन ला बोलना नइ ये. धीरे-धीरे मोर आस खतम होय लगिस अऊ ओकर बाद मंय येला बंद कर देंय.”

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कमलेश अऊ ओकर भारतीय भाषा विकास टीम के कोसिस ले भरियाटी अऊ अंगरेजी मं एक ठन बहुभाषी वेबसाइट बनाय गीस

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वेबसाइट बनाय के पहिली चरण मं, कमलेश अऊ ओकर टीम ह अपन समाज, भाखा, जीविका के संग-संग ओकर मन के लिखे कतको किताब के बारे मं जानकारी डारिन, जउन मं भाषा वर्तनी गाइड, सेहत ले जुरे कहिनी अऊ नैतिक कहिनी रहिन

कमलेश के टीम मं अइसने संगवारी किसान मन रहिन जउन मन जम्मो दिन अपन खेत मं बूता करेंव. वो ह बताथे के दिन भर थके के बाद वो मन जब घर लहूट आवत रहिन, जल्दी खाके सुत जावत रहिन. फेर एक बखत के बाद वो मन घलो काम करे बंद कर दीन.

कमलेश कहिथे, “मंय ये काम अकेल्ला करे नइ सकंव. ये कोनो एकेच मइनखे के काम नो हे.”

*****

गाँव ले गुजरत कमलेश एक ठन घर के बहिर मं ठहर जाथे. वो ह कहिथे, “जब मंय अपन संगवारी मन ले मिलथों, त हमन अक्सर  दिव्लू भैया के बारे मं गोठियाथन.

दिव्लू बागदरिया 48 बछर के लोक नर्तक अऊ गायक आय अऊ अक्सर मध्य प्रदेश सरकार डहर ले बलाय गे सांस्कृतिक कार्यक्रम मन मं भरिया समाज के अगुवई करथे. कमलेश कहिथे, “वो ह अकेल्ला मइनखे आय जऊन ह असल मं समझथे के हमर भाखा हमर संस्कृति बर कतक महत्तम हवय.”

पारी ह राथेड़ मं ओकर घर के बहिर दिवलू ले भेंट करिस. वो ह अपन पोता–पोती मन ला भरियाटी मं एक ठन गाना सुनावत रहिस, जेन मन जंगल ले अपन महतारी के लहूटे ला अगोरत रहिन, वो ह जलावन लकरी संकेले बर गेय रहिस.

कमलेश डहर होवत दिव्लू कहिथे, “लिखे अऊ बोले दूनोच महत्तम आय. जइसने अंगरेजी अऊ हिंदी ला एक ठन विषय के रूप मं पढ़ाय जाथे, वइसनेच भरियाटी अऊ दीगर आदिवासी महतारी भाखा ला वैकल्पिक [विषय] के रूप मं पढ़ाय जा सकथे?” वो ह कमलेश के वर्णमाला चार्ट ला अपन सबले छोटे चावा (पोता) ला दिखाय सुरु करथे.

ओकर पोता ह चार्ट में ढढूस (बेंदरा) डहर आरो करत कहिथे, वो ह जल्दीच भरिया सीख जाही, दिव्लू कहिथे.

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डेरी: कमलेश के टीम के एक झिन सदस्य दिव्लू बागदरिया (डेरी) 48 बछर के लोक नर्तक अऊ गायक आय, जेन ह अक्सर मध्य प्रदेश सरकार डहर ले बलाय गे सांस्कृतिक कार्यक्रम मन मं भरिया समाज के अगुवई करथे. जउनि: दिव्लू अपन पोता अमृत के संग भरियाटी वर्णमाला चार्ट ला देखत

कमलेश के ये बात के कोनो जल्दी नइ पतियाय, काबर के वो ह अपन समाज के संग काम करत कतको दिक्कत ला झेले हवय. भाषा संग्रहकर्ता कहिथे, “गर वो ह हास्टल वाले स्कूल मं जाही, त वो ह कभू घलो भरियाटी बोले नइ सकही. गर वो ह हमर संग (इहाँ) रइही, तभेच बोले सकही.”

कमलेश कहिथे, “वैसे तो 100 में से 75 प्रतिशत तो विलुप्त ही हो चुकी है मेरी भाषा [मोर भाखा के करीबन 75 फीसदी हिस्सा नंदा चुके हवय]. हमन भरियाटी मं जिनिस मन के मूल नांव ला भूला गे हवन. धीरे-धीरे सब्बो कुछु हिंदी मं मिल गे हे.”

जइसने- जइसने लोगन मन बहिर जगा मन मं बनेच जाय लगिन अऊ लइका मन स्कूल जाय लगिन, वो मन हिंदी के शब्द अऊ भाव अपन संग लेके आइन अऊ अपन दाई-ददा ला सिखाइन. इहाँ तक के जुन्ना पीढ़ी घलो अपन लइका मन के जइसने बोले लगिन अऊ भरियाटी के चलन कम होय लगिस.

कमलेश कहिथे, “स्कूल सुरु होय के बाद मंय घलो भरियाटी कम बोले सुरु कर देंय अऊ हिंदी बोलेइय्या अपन संगवारी मन के संग जियादा बखत गुजारे लगेंव. ये ह मोर घलो आदत बन गे.” वो ह हिंदी अऊ भरियाटी दूनो मं गोठियाथे, फेर मजा के बात ये आय के वो ह कभू घलो दूनो ला मिलाके नइ बोलय. “मंय वोला ला दीगर मन के जइसने आसानी ले नइ मिलाअंव काबर के मंय अपन भरियाटी बोलेइय्या डोकरी दाई के संग बड़े होय हवं.”

कमलेश के डोकरी दाई सुक्तिबाई करीबन 80 बछर के हे, ओकर बाद घलो वोला हिंदी नइ आवय. ओकर कहना आय के अब वो ह हिंदी ला समझ लेथे, फेर येकर जुवाब नइ देय सकय. ओकर भाई-बहिनी मन जियादा नइ बोलंय काबर के “वो मन ला लाज लगथे. वो मन हिंदी बोले ला जियादा पसंद करथें.” ओकर घरवाली अनीता घलो अपन महतारी भाखा नइ बोलय, फेर वो ह वोला प्रोत्साहित करथे.

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कमलेश कहिथे जइसने- जइसने लोगन मन बहिर जगा मन मं बनेच जाय लगिन अऊ  दीगर भाखा मन ला सीखत चले गीन, भरियाटी मं जिनिस मन के नांव नंदागे

“भरियाटी के काय काम हवय? काय ये ह हमन ला रोजगार देथे? अपन भाखा बोले ले सिरिफ घर चलथे?” ये ह एक ठन अइसने सवाल आय जेन ह दूनो भाखा के चाहने वाला मन ला हलाकान करथे.

व्यवहारिक दिव्लू कहिथे, “हमन हिंदी ले बचे नइ सकन. फेर हमन ला अपन भाखा ला बचा के रखे ला परही.”

कमलेश ह जुवाब देथे, “आज के जमाना मं अपन आधार धन ड्राइविंग लाइसेंस ले अपन पहिचान साबित कर सकथो.”

दिव्लू अकेल्ला झन पर जाय, एकरे सेती वो ह ओकर डहर होथे अऊ पूछथे, “गर कोनो तुमन ला ये दस्तावेज के बगैर अपन पहिचान साबित करे ला कइही, त तंय येला कइसने साबित करबे?”

कमलेश हंसत जुवाब देथे, “मंय भरियाटी मं बोलहूँ.”

ठऊका कहेव. “भाखा घलो तोर पहिचान आय,” दिव्लू ह हामी भरथे.

भरियाटी के भाषाई वर्गीकरन, येकर जटिल इतिहास सेती तय नइ होय सके हवय. हो सकत हे, एक बखत ये ह द्रविड़ियन भाषा रहे होय, अब मजबूत इंडो-आर्यन विशेषता ला बताथे, खास करके शब्दावली अऊ ध्वन्यात्मकता मं, जऊन ह येकर मध्य भारत के जगा अऊ दूनो भाखा परिवार के नाता ला बताथे. येकर वर्गीकरन मं ये साफ नइ होय ह, बखत के संग इंडिक अऊ द्रविड़ असर के जटिल रूप ले मिले ला उजागर करथे, जेकर सेती भाषाविद् मन बर फोर के वर्गीकरन करे मुस्किल हो जाथे.

रिपोर्टर पारार्थ समिति के मंजरी चांदे, रामदास नागरे अऊ पल्लवी चतुर्वेदी के आभार जतावत हवय. खालसा कॉलेज के शोधकर्ता अऊ व्याख्याता अनघा मेनन अऊ आईआईटी कानपुर के मानविकी अऊ सामाजिक विज्ञान विभाग मं भाषाविद् अऊ सहायक प्रोफेसर डॉ. चिन्मय धारुरकर ह अपन जानकारी मन ला उदार मन ले बताइस

पारी के नंदावत जावत भाखा परियोजना (ईएलपी), अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ले मिले मदद के हिस्सा आय. येकर मकसद भारत के खतरा मं परे भाखा मन ला, ओकर बोलेइय्या मन के बात ला अऊ अनुभव के दस्तावेजीकरन करे आय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Ritu Sharma

ರಿತು ಶರ್ಮಾ ಅವರು, ಪರಿಯ ಅಳಿವಿನಂಚಿನಲ್ಲಿರುವ ಭಾಷೆಗಳ ಕಂಟೆಂಟ್ ಎಡಿಟರ್. ಭಾಷಾಶಾಸ್ತ್ರದಲ್ಲಿ ಎಂಎ ಪದವಿ ಪಡೆದಿರುವ ಇವರು, ಭಾರತೀಯ ಭಾಷೆಗಳನ್ನು ಉಳಿಸುವ ಮತ್ತು ಮರುಜೀವ ನೀಡುವ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ.

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Editor : Priti David

ಪ್ರೀತಿ ಡೇವಿಡ್ ಅವರು ಪರಿಯ ಕಾರ್ಯನಿರ್ವಾಹಕ ಸಂಪಾದಕರು. ಪತ್ರಕರ್ತರು ಮತ್ತು ಶಿಕ್ಷಕರಾದ ಅವರು ಪರಿ ಎಜುಕೇಷನ್ ವಿಭಾಗದ ಮುಖ್ಯಸ್ಥರೂ ಹೌದು. ಅಲ್ಲದೆ ಅವರು ಗ್ರಾಮೀಣ ಸಮಸ್ಯೆಗಳನ್ನು ತರಗತಿ ಮತ್ತು ಪಠ್ಯಕ್ರಮದಲ್ಲಿ ಆಳವಡಿಸಲು ಶಾಲೆಗಳು ಮತ್ತು ಕಾಲೇಜುಗಳೊಂದಿಗೆ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಕಾಲದ ಸಮಸ್ಯೆಗಳನ್ನು ದಾಖಲಿಸುವ ಸಲುವಾಗಿ ಯುವಜನರೊಂದಿಗೆ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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