"जइसहीं राजधानी जी-20 शिखर सम्मेलन में दुनिया भर से आवे वाला नेता लोग के स्वागत खातिर जगमगाए लागल, दिल्ली में हाशिया पर रहे वाला लोग के दुनिया अन्हार हो गइल. पहिले विस्थापित किसान, आउर अब यमुना बाढ़ शरणार्थी लोग के त पहिलहीं इलाका से दूर रहे के कहल गइल रहे. अब ओह लोग के गीता कॉलोन फ्लाईओवर के नीचे के झुग्गी से हटा के नदी किनारे के जंगली इलाका में भेज देहल गइल बा. ऊ लोग के प्रशासन अगिला तीन दिन ले उहंई लुकाए के सख्त आदेश देले बा.

हीरालाल पारी से बतइले, "हमनी में से कुछ लोग के पुलिस जबरिया हटा देले बा. चेतावल गइल कि 15 मिनट में इहंवा से फुट ल, ना त पुलिस आउर ताकत से हटावल जाई."

जंगली इलाका में ऊंच-ऊंच घास में सांप, बिच्छू जइसन बहुते खतरनाक जीव-जंतु सभ लुकाइल बा. एक समय के संपन्न किसान इशारा से कहले, "हमार परिवार के बिना बिजला आउर पानी के रहे के पड़त बा. कहूं केहू के सांप चाहे बिच्छू काट लेलक, त इहंवा इलाजो के कवनो सुविधा नइखे."

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हीरालाल रसोई गैस के सिलिंडर लावे घर के भीतरी भगलन. दिल्ली के राजघाट लगे बेला एस्टेट में जब उनकर घर में करियर-करियर पानी घुसे लागल त ऊ कवनो जोखिम उठावे के ना चहलन.

ऊ 12 जुलाई, 2023 के रात रहे. बहुते दिन से मूसलाधार बरखा पड़े से यमुना नदी में उफान आ गइल रहे. दिल्ली में नदी किनारे रहे वाला हीरालाल जइसन लोग के सोचे के भी बखत ना मिलल.

मयूर विहार के यमुना पुश्ता इलाका के रहे वाली 60 बरिस के चमेली (जे गीता के नाम से जानल जाली) बाढ़ के पानी घर में घुसत देखली, त जल्दी से पड़ोसी के एक महीना के छोट लइकी रिंकी के गोदी में उठा के भगली. एह बीच लोग डरल बकरी आउर घबराइल कुकुर के कान्हा पर उठवले उहंवा से निकलत रहे. ओह में से केतना त रस्ते में बह गइल. एह से पहिले कि ऊ लोग घर के बरतन आउर कपड़ा बटोर के निकले, पानी सभ कुछ लील गइल.

“भोरे ले पूरा इलाका पानी में डूब गइल. उहंवा से निकले खातिर प्रशासन ओरी से नाव के भी इंतजाम ना रहे.” बेला एस्टेट में हीरालाल के पड़ोस में रहे वाली 55 बरिस के शांति देवी बतइली, लोग फ्लाईओवर ओरी, सूखल जमीन ओरी भागल. “गंदा पानी में सांप चाहे दोसर जनावर हो सकत बा, जे अन्हार में देखाई ना देवे. एहि से हमनी के सबले पहिले आपन बच्चा लोग के जान बचावे के चिंता रहे.”

शांति देवी पानी में बच्चा लोग के स्कूल के किताब आउर घर के राशन बहत असहाय देखत रह गइली. “हमनी के 25 किलो गेहूं आउर कपड़ा-लत्ता सभ दहा (बह) गइल…”

कुछ हफ्ता बाद, गीता कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे बनावल झोंपड़ी (अस्थायी आवास) में रहे वाला विस्थापित लोग से पारी बात कइलक. “प्रशासन ने समय से पहले जगह खाली करने की चेतावनी नहीं दी थी. कपड़े पहले से बांध के रखे थे, गोद में उठा-उठा के बकरियां निकालीं… हमने नाव भी मांगी जानवरों को बचाने के लिए. पर कुछ नहीं मिला (प्रशासन बखत से पहिले उहंवा से निकले के कवनो चेतावनी ना देलक. कपड़ा-लत्ता सभ पहिले से बांध के रखल रहे. बकरियन के गोदी में उठा-उठे के निकाले के पड़ल… हमनी जनावर सभ के बचावे खातिर नाव भी मांगले रहीं, बाकिर कुछुओ मदद ना मिलल),” अगस्त के सुरु में हीरालाल हमनी से बतवे रहस.

Hiralal is a resident of Bela Estate who has been displaced by the recent flooding of the Yamuna in Delhi. He had to rush with his family when flood waters entered their home in July 2023. They are currently living under the Geeta Colony flyover near Raj Ghat (right) with whatever belongings they could save from their flooded homes
PHOTO • Shalini Singh
Hiralal is a resident of Bela Estate who has been displaced by the recent flooding of the Yamuna in Delhi. He had to rush with his family when flood waters entered their home in July 2023. They are currently living under the Geeta Colony flyover near Raj Ghat (right) with whatever belongings they could save from their flooded homes
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हीरालाल बेला एस्टेट के रहे वाला बाड़न. दिल्ली में हाले में यमुना में आइल बाढ़ से ऊ बेघर हो गइलन. जुलाई 2023 में जब बाढ़ के पानी उनकर घर में घुसल त आपन परिवार के लेके उहंवा से भागे के पड़ल. फिलहाल ऊ लोग राजघाट (दहिना) लगे गीता कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे, बाढ़ में घरे से जेतना कुछ सामान बचा सकत रहे,ओकरा साथे रहत बा

Geeta (left), holding her neighbour’s one month old baby, Rinky, who she ran to rescue first when the Yamuna water rushed into their homes near Mayur Vihar metro station in July this year.
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Shanti Devi (right) taking care of her grandsons while the family is away looking for daily work.
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गीता (बावां), आपन पड़ोसी के एक महीना के लइकी, रिकीं के गोदी में उठइले बाड़ी. एह बरिस जुलाई में मयूर विहार मेट्रो स्टेशन लगे घर में जब यमुना के पानी घुसे लागल त ऊ सबले पहिले एह लइकी के बचावे खातिर दउड़ली. परिवार जब दिहाड़ी खोजे बाहिर गइल बा, शांति देवी (दहिना) आपन पोता के देखभाल कर रहल बाड़ी

हीरालाल आउर शांति देवी के परिवार के गीता कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे रहत अब कोई दू महीना हो जाई. फ्लाईओवर के नीचे रात में एगो बल्ब जरावे खातिर ऊ लोग स्ट्रीटलाइट से बिजली लेवे के मजबूर बा. हीरालाल दिन में दू बेरा 4 से 5 किमी दूर दरियागंज में कवनो सरकारी नल से पिए के पानी लावेलन. उनका 20 लीटर पानी के बोतल साइकिल पर ढो के लावे के पड़ेला.

जिनगी फेरु से सुरु करे खातिर ओह लोग के सरकार ओरी से कवनो मुआवजा ना मिलल हवे. यमुना के किनारे कबो गर्व से खेती करे वाला किसान, हीरालाल अब इमारत, सड़क बनावे के काम करेलन. उनकर पड़ोसी, शांति देवी के घरवाला, 58 बरिस के रमेश निषाद पहिले किसान रहस. अब ऊ भीड़-भाड़ वाला रोड पर कचउड़ी बेचे के लमहर कतार में ठाड़ काम करेलन.

बाकिर कमाई के इहो जरिया, जे उनकरा केतना मुस्किल से मिलल रहे, जी20 शिखर सम्मेलन के मेजबानी में लागल सरकार आउर दिल्ली चलते घोर संकट में आ गइल बा. खोमचा वाला, ठेला वाला के अगिला दू महीना ले ओह जगह खाली करे के फरमान मिलल बा. “इहंवा देखाई मत दीह,” अधिकारी लोग इहे कहेला. “हमनी खाएम कहंवा से?” शांति पूछतारी. “दुनिया के देखावे खातिर रउआ आपन लोग के रोजी-रोटी आउर घर छीन रहल रहल बानी.”

दिल्ली सरकार 16 जुलाई के, बाढ़ से प्रभावित परिवार के 10,000 रुपइया के देवे के ऐलान कइले रहे. एतना छोट रकम सुनके, हारीलाल तनी देर खातिर सन्न रह गइले. “ई कइसन मुआवजा बा? ई पइसा कवना आधार पर तय कइल गइल बा? का हमनी के जिनगी के कीमत दसे हजार रुपइया बा? हमनी के त एगो बकरिए के दाम 8,000-10,000 रुपइया होखी. आउर झोंपड़ी बनावे खातिर त 20,000 से 25,000 रुपइया खरचा होखेला.”

इहंवा रहे वाला जे लोग बाढ़ में आपन खेत से हाथ धो बइठल, अब मजदूरी (दिहाड़ी मजूरी) कर रहल बा. केहू रिक्शा खींच रहल बा, त केहू घरेलू सहायक के काम खोज रहल बा. ऊ लोग के सवाल बा, “केकरा केतना नुकसान भइल, जाने खातिर जांच-पड़ताल कइल गइल रहे?”

Several families in Bela Estate, including Hiralal and Kamal Lal (third from right), have been protesting since April 2022 against their eviction from the land they cultivated and which local authorities are eyeing for a biodiversity park.
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हीरालाल आउर कमल लाल (दहिना से तेसर) सहित बेला एस्टेट के कुछ आउर परिवार अ्प्रिल 2023 से आपन खेती के जमीन से बेदखल कइल जाए के खिलाफ बिरोध प्रदर्शन कर रहल बा. ओह लोग के जमीन पर, जैब बिबिधता पार्क बनावे खातिर स्थानीय अधिकारी लोग आंख गड़वले बा

Most children lost their books (left) and important school papers in the Yamuna flood. This will be an added cost as families try to rebuild their lives. The solar panels (right) cost around Rs. 6,000 and nearly every flood-affected family has had to purchase them if they want to light a bulb at night or charge their phones
PHOTO • Shalini Singh
Most children lost their books (left) and important school papers in the Yamuna flood. This will be an added cost as families try to rebuild their lives. The solar panels (right) cost around Rs. 6,000 and nearly every flood-affected family has had to purchase them if they want to light a bulb at night or charge their phones.
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जादेतर लरिका लोग के किताब (बावां) आउर स्कूल के जरूरी कागज यमुना के बाढ़ में दहा गइल. जिनगी नया सिरा से सुरु करे वाला परिवार खातिर ई एगो अलग खरचा बा. सोलर पैनल (दहिना) लगावे खातिर करीब 6,000 के खरचा आवेला. बाढ़ से जूझ रहल करीब सभे परिवार के रात में बल्ब जरावे, चाहे मोबाइल चार्ज करे खातिर एकरा खरीदे के पड़ेला

छव हफ्ता बाद पानी त उतर गइल बाकिर अबले मुआवजा केहू के ना मिलल. इहंवा रहे वाला लोग के शिकायत बा कि मुआवजा खातिर जरूरत से जादे कागजी कार्रवाई कइल जाला आउर एकर प्रक्रिया भी जटिल बा. “पहिले त ऊ लोग आधार कार्ड, बैंक के कागज, फोटो मांगी, फेरु राशन कार्ड लावे के कही…,” कमल लाल कहले. उनकरा इहो नइखे पता कि एह मानव निर्मित आपदा के शिकार 150 परिवार के मुआवजा मिली भी कि ना, जेकरा टालल जा सकत रहे.

सरकारी योजना सभ चलते जे 700 परिवार के खेती के जमीन ले लेहल गइल, ऊ लोग राहत खातिर जे भी प्रयास कइलक, कवनो मंजिल तक ना पहुंचल. ओह लोग के बेदखल कर देवे के मंशा रखे वाला अधिकारी लोग संगे ओह लोग के खींचतान चलिए रहल बा.  विकास होखे, विस्थापन होखे, आपदा चाहे कुछुओ आउर, एकरा से प्रभावित किसाने लोग होखेला. कमल बेला एस्टेट मजदूर बस्ती समिति समूह में बाड़न, जे राहत खातिर अपील कर रहल बा. पसीना पोछत, 37 बरिस के कमल कहले, बाकिर, “बाढ़ आवे से हमनी के विरोध प्रदर्शन रुक गइल.”

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दिल्ली 45 बरिस बाद फेरु से डूबल बा. साल 1978 में यमुना के पानी आपन आधिकारिक सुरक्षा स्तर से 1.8 मीटर जादे, यानी 207.5 मीटर हो गइल रहे. आउर अबकी एह जुलाई में अभी तक के सबले ऊंच स्तर, 208.5 मीटर के सीमा पार कर गइल. हरियाणा आउर उत्तर प्रदेश के बैराज समय पर ना खोलल गइल, एहि से पानी बढ़त चल गइल आउर दिल्ली में नदी में उफान आ गइल. नतीजा, लोग के जान, घर आउर रोजी-रोटी दांव पर लाग गइल. फसल आउर दोसर जल निकाय के भी बहुते नुकसान झेले के पड़ल.

साल 1978 में जे बाढ़ आइल रहे, अनुमान बा कि ओह में दिल्ली सरकार के सिंचाई आ बाढ़ नियंत्रण विभाग के हिसाब से, ‘10 करोड़ रुपइया के नुकसान, 18 मौत आउर हजारों लोग बेघर हो गइल रहे, ’

Homes that were flooded near Pusta Road, Delhi in July 2023
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दिल्ली में जुलाई 2023 में पुस्ता रोड लगे पानी में डूबल घर

Flood waters entered homes under the flyover near Mayur Vihar metro station in New Delhi
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नई दिल्ली के मयूर विहार मेट्रो स्टेशन लगे बाढ़ के पानी फ्लाईओवर के नीचे के घर सभ में घुस रहल बा

एगो जनहित याचिका में दावा कइल गइल कि एह बरिस जुलाई में कइएक दिन बरखा होखे से आइल बाढ़ से 25,000 लोग सीधा चाहे अप्रत्यक्ष तरीका से प्रभावित भइल. यमुना नदी परियोजना : नई दिल्ली शहरी पारिस्थितिकी के हिसाब से, बाढ़ वाला इलाका में लगातार अतिक्रमण के गंभीर नतीजा हो सकेला,“... बाढ़ क्षेत्र के निचला इलाका में बनल इमारत, घर सभ खत्म हो जाई आउर पूर्वी दिल्ली पानी में डूब जाई.”

यमुना किनारे लगभग 24,000 एकड़ के क्षेत्र में खेती कइल जाला. इहंवा किसान लोग एक सदी से भी जादे समय से खेती करत आइल बा. बाकिर डूब क्षेत्र में मंदिर, मेट्रो स्टेशन, राष्ट्रमंडल खेल गांव (सीडब्ल्यूजी) बने से बाढ़ के पानी खातिर जमीन बहुते कम पड़त चल गइल बा. पढ़ीं: बड़ शहर, छोट किसान, आउर मरत नदी

“हमनी चाहे कुछो करीं, कुदरत आपन रस्ता खोज लेवेला. पहिले बरसात आउर बाढ़ में पानी फइल जात रहे. आउर अब जगह (बाढ़ के मैदान) में कमी होखे से पानी के स्तर ऊंच हो जात बा. एकरे चलते हमनी बरबाद हो गइनी,” बेला एस्टेट के कमल कहले. बेला एस्टेट के लोग 2023 के बाढ़ के कीमत चुका रहल बा. “साफ करनी थी यमुना, लेकिन हमें ही साफ कर दिया (ऊ लोग के यमुना नदी के सफाई करे के रहे बाकिर एकरा बदले हमनिए के साफ कर देहल गइल)!”

“यमुना के किनारे विकास नहीं करना चाहिए. ये डूब क्षेत्र घोषित है. सीडब्ल्यूजी, अक्षरधाम, मेट्रो- ये सब प्रकृति के साथ खिलवाड़ है. प्रकृति को जितनी जगह चाहिए, वो तो लेगी. पहले पानी फैल के जाता था, आउर अब क्योंकि जगह कम हे, तो उठ के जा रहा है, जिसकी वजह से नुकसान हमें हुआ है (यमुना किनारे बिकास ना होखे के चाहीं. एकरा डूब क्षेत्र घोषित कइल गइल बा. सीडब्ल्यूजी, अक्षरधाम, मेट्रो ई सभ कुदरत संगे खिलवाड़ बा. कुदरत के जेतना जगह चाहीं, ऊ त लेबे करी. पहिले पानी फइल के जात रहे, आउर अब चूंकि जगह कम हो गइल बा, त उठ के जा रहल बा. एकर वजह से नुकसान हमनी के भइल ह).” कमल कहले.

“दिल्ली को किसने डुबाया (दिल्ली के के डुबइलक)? दिल्ली सरकार के सिंचाई आ बाढ़ नियंत्रण विभाग के हर बरिस 15-25 जून के बीच कवनो परिस्थिति के सामना करे खातिर तइयार रहे के होखेला. ऊ लोग अबकी समय पर बैरक गेट खोलले रहित त पानी एह तरीका से ना बढ़ल रहित. पानी न्याय मांगने सुप्रीम कोर्ट गया (पानी न्याय मांगे उच्च न्यायालय पहुंचल),” राजेंदर सिंह कहले. ऊ मजाक ना करत रहस.

Small time cultivators, domestic help, daily wage earners and others had to move to government relief camps like this one near Mayur Vihar, close to the banks of Yamuna in Delhi.
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छोट किसान, घरेलू सहायक, दिहाड़ी मजूर आउर दोसर तरीका से रोटी कमाए वाला लोग के दिल्ली में एहि तरह के बनल, यमुना किनारे मयूर विहार लगे सरकारी राहत शिविर में जाए के पड़ल

Left: Relief camp in Delhi for flood affected families.
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Right: Experts including Professor A.K. Gosain (at podium), Rajendra Singh (‘Waterman of India’) slammed the authorities for the Yamuna flood and the ensuing destruction, at a discussion organised by Yamuna Sansad.
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बावां: बाढ़ पीड़ित लोग खातिर दिल्ली में बनल राहत शिविर. दहिना: प्रोफेसर ए.के गोसाईं (मंच पर), राजेंद्र सिंह (‘भारत के जलपुरुष’) सहित कई अनुभवी आ जानकार लोग यमुना बाढ़ खातिर अधिकारी लोग के निंदा कइलक. यमुना संसद ओरी से चलावल गइल एगो चरचा में यमुना के बाढ़ आउर एकरा से होखे वाला विनाश पर बातचीत भइल

अलवर के पर्यावरणविद बतइलन कि, “ई कवनो कुदरती आपदा ना रहे. अनियमित बरसात पहिले भी भइल बा.” ऊ ई बात 24 जुलाई 2023 के आयोजित एगो सार्वजनिक चर्चा, ‘दिल्ली के बाढ़: अतिक्रमण कि अधिकार?’ में बोलत रहस. एकर आयोजन दिल्ली में यमुना संसद कइले रहे. यमुना संसद, यमुना के प्रदूषण से बचावे के एगो पहल बा.

चरचा के दौरान डॉ. अश्वनी के. गोसाईं कहले, “एह बरिस यमुना संगे जे भइल, ओह खातिर जिम्मेदार लोग के कड़ा से कड़ा सजा देवे के चाहीं.” उहां के साल 2018 के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गठित यमुना निगरानी समिति के खास सदस्य रहनी.

“पानी में वेग भी होखेला. बिना तटबंध के पानी कहंवा जाई?” गोसाईं पूछले. उहां के बैराज के बजाय जलाशय बनावे के वकालत करेनी. भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग के एगो सेवामुक्त प्रोफेसर के हिसाब से 1,500 अनाधिकृत कॉलोनी के संगे-संगे सड़क पर पानी के निकास खातिर बनल नाला नदारद होखे के चलते पानी अंदर आ जाएला आउर “इहे तबाही के कारण बनेला.”

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बेला स्टेट के किसान लोग के जिनगी पहिलहीं से जलवायु में बदलाव आवे से अधर में लटकल बा. एह चलते ओह लोग के खेती-बारी चौपट हो रहल बा, पुनर्वास के सुविधा नइखे आउर ओह लोग पर बेदखल होखे के आशंका भी मंडरात रहेला. पढ़ीं: ‘राजधानी में किसान लोग संगे अइसन सलूक होखेला’ . हाल में आइल बाढ़ एगो आउर आफत बा.

आपन मेहरारू आउर 17 आ 15 बरिस के दु गो लरिकन संगे झोंपड़ी में रहे वाला हीरालाल बतावत बाड़न, “चार से पांच लोग के परिवार खातिर जदि 10 x 10 के झुग्गी बनावल जाव त 20,000 से 25,000 रुपइया के खरचा बइठी. पानी से बचावे वाला पिलास्टिक के चद्दरे खाली 2,000 के आवेला. घर बनावे खातिर जदि मजदूर बोलावल जाव, त हमनी के रोज के 500-700 रुपइया देवे के पड़ी. जदि ई काम खुद करीं त दिहाड़ी के नुकसान होखी.” एगो बांस के खंभा के दाम भी 300 रुपइया पड़ेला. उनकरा हिसाब से एगो घर बनावे में अइसन 20 गो बांस लागेला. विस्थापित परिवार के इहो ठीक से नइखे पता कि ओह लोग के नुकसान के भरपाई के करी.

Hiralal says the flood relief paperwork doesn’t end and moreover the relief sum of Rs. 10,000 for each affected family is paltry, given their losses of over Rs. 50,000.
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Right: Shanti Devi recalls watching helplessly as 25 kilos of wheat, clothes and children’s school books were taken away by the Yamuna flood.
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हीरालाल के कहनाम बा कि बाढ़ राहत से जुड़ल कागजी कार्रवाई खत्म होखे के नामे ना लेवेला. इहे ना, 50,000 रुपइया से भी जादे के नुकसान झेल रहल, विस्थापित परिवार खातिर दस हजार रुपइया के रकम बहुते मामूली बा. दहिना: शांति देवी इयाद करतारी कि कइसे बाढ़ में 25 किलो के गेहूं, कपड़ा-लत्ता आउर लरिकन सभ के स्कूल के किताब यमुना के बाढ़ में बह गइल आउर ऊ कुछुओ ना कर सकली

The makeshift homes of the Bela Esate residents under the Geeta Colony flyover. Families keep goats for their domestic consumption and many were lost in the flood.
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गीता कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे बनल झुग्गी-झोंपड़ी में बेला स्टेट के रहे वाला लोग. परिवार घरेलू इस्तेमाल खातिर बकरी पालेला. अबकी बाढ़ में एह में से बहुते बकरी लापता हो गइल बिया

अब ऊ लोग के नया सिरा से पशुधन जोड़े में पइसा खरचा होई. ओह में से बहुते जनावर बाढ़ में बह गइल. ऊ बतइले, “एगो भइंस के दाम 70,000 से जादे पड़ेला. खूब नीमन से खियावे-पियावे के पड़ेला तब जाके ऊ दूध देवेला. बकरी के दूध से घर में रोज चाय बनेला आउर बच्चा लोग के पियावल जाला. एकरो खरीदे में 8,000 से 10,000 रुपइया लाग जाला.”

उनकर पड़ोसन, शांति देवी पारी से बात कइली. ऊ बतइली कि उनकर घरवाला यमुना के किनारे एगो किसान आउर खेतमालिक के पहचान के जे लड़ाई लड़त, हार गइलन. अब ऊ साइकिल पर कचौड़ी बेचेलन. बाकिर एकरा से उनकरा मुस्किल से रोज के 200-300 रुपइया के कमाई होखेला. “पुलिस हर साइकिल वाला से महीना के 1,500 रुपइया वसूल करेला. अब चाहे रउआ उहंवा तीन दिन खातिर ठाड़ रहीं, चाहे 30 दिन खातिर,” ऊ कहली.

बाढ़ के पानी त कम हो गइल, बाकिर दोसर खतरा मंडराए लागल बा. मलेरिया, डेंगू, हैजा, टाइफाइड जइसन प्रदूषित पानी से होखे वाला बेमारी तेजी से फइल रहल बा. राहत शिविर बनला के बाद से आई फ्लू के रोज के 100 ठो मामला देखे में आवत बा. हालांकि ओकरा बाद से शिविर हटा देहल गइल. हमनी जब हीरालाल से भेंट कइनी, उनकर आंख लाल होखत रहे. ऊ कइसनो करके धूप के एक जोड़ी महंग चश्मा के इंतजाम कर लेले रहस. “एकर दाम 50 रुपइया बा, बाकिर जादे मांग चलते 200 रुपइया के बिकात बा.”

मुआवजा के बाट जोहत परिवार के ओरी से बोलत ऊ तनी व्यंग्य से मुस्कइले आउर कहले, “कहानी नया नइखे. दोसर के मुसीबत के दुनिया हरमेसा फायदा उठावेला.”

कहानी 9 सितंबर, 2023 के अपडेट भइल बा.

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Shalini Singh

शालिनी सिंह, काउंटरमीडिया ट्रस्ट की एक संस्थापक ट्रस्टी हैं, जो पारी को संचालन करती है. वह दिल्ली में रहने वाली पत्रकार हैं और पर्यावरण, जेंडर और संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर लिखती हैं. उन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय की ओर से पत्रकारिता के लिए साल 2017-2018 की नीमन फ़ेलोशिप भी मिल चुकी है.

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Editor : Priti David

प्रीति डेविड, पारी की कार्यकारी संपादक हैं. वह मुख्यतः जंगलों, आदिवासियों और आजीविकाओं पर लिखती हैं. वह पारी के एजुकेशन सेक्शन का नेतृत्व भी करती हैं. वह स्कूलों और कॉलेजों के साथ जुड़कर, ग्रामीण इलाक़ों के मुद्दों को कक्षाओं और पाठ्यक्रम में जगह दिलाने की दिशा में काम करती हैं.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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