गीता मृधा के पति एक मछुआरे थे, और फरवरी 2012 में उन्हें एक बाघ ने मार डाला था. वे कहती हैं, "सरकार को सुंदरबन के जंगल तो नज़र आते हैं, लेकिन उनमें रहने वाले इंसान नहीं." मुआवजे का पात्र होने के बावजूद, गीता का कहना है कि उन्हें कुछ नहीं मिला. उनके गांव की कई अन्य महिलाओं के मछुआरे पतियों की भी बाघों के हमले में मृत्यु हुई, लेकिन किसी को मुआवजा नहीं मिला.

वह आगे बताती हैं, “बावजूद इसके वे आपसे वोट मांगना नहीं भूलते.'' गीता ने चुनाव में वोट डाला था. वह कहती हैं, “मैंने नागरिक के रूप में अपना कर्तव्य निभाया.'' गीता सुंदरबन के रजत जुबिली गांव की रहने वाली हैं.

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रजत जुबिली गांव की गीता मृधा कहती हैं, मैंने नागरिक के रूप में अपना कर्तव्य निभाया’

रजत जुबिली, दक्षिण 24 परगना ज़िले के गोसाबा ब्लॉक में स्थित लाहिरीपुर ग्राम पंचायत के 22 गांवों में से एक है. यहां की आबादी मुख्यतः अनुसूचित जाति (एससी) से ताल्लुक़ रखती है.

गोसाबा के गांवों के लोगों ने 30 अप्रैल को पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में मतदान किया. उनमें से कई रजत जुबिली से नज़दीकी इलाक़ों में रहते हैं, जो मतदान केंद्र से लगभग 1.5-2 किलोमीटर दूर स्थित हैं. इस दूरी को उन्होंने पैदल तय किया. कुछ लोग लंबी दूरी तय करके कोलकाता और राज्य के अन्य हिस्सों से ट्रेन, नाव या वैन के ज़रिए पहुंचे.

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लाहिरीपुर ग्राम पंचायत में स्थित 22 गांवों के लोग ट्रेनों, नावों और ट्रैक्टरों के ज़रिए मतदान स्थल तक पहुंचे थे

मतदान सुबह 7 बजे शुरू हुआ और शाम 6 बजे तक जारी रहा. फूल बाशी (95) और उनकी बहू कल्पना मंडल सहित कुछ लोगों ने दोपहर की गर्मी से बचने के लिए सुबह जल्दी मतदान किया.

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फूल बाशी (दाएं) और उनकी बहू कल्पना मंडल ने दोपहर की गर्मी से बचने के लिए सुबह के वक़्त ही मतदान कर किया

रजत जुबिली की निवासी बीना मृधा ने अपने गांव की समस्याओं को संक्षेप में बताया: “यहां कोई अस्पताल नहीं है, केवल गोसाबा में एक बड़ा अस्पताल है. वहां पहुंचने के लिए आपको दो नावें और वैन बदलकर जाना होता है. बाघों और मगरमच्छों का ख़तरा रहता है, जो अक्सर हमारे लोगों और मवेशियों को मार देते हैं. हमें अपने चावल की भी सही क़ीमत नहीं मिल रही है. मात्र 650 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास क़ीमत मिलती है, जबकि बाज़ार का भाव 800 रुपए प्रति क्विंटल है. सरकार को हमसे अनाज ख़रीदना था, लेकिन वह भी रुक हो गया है. खाद्य सुरक्षा कार्ड त्रुटियों से भरे हुए हैं, इसलिए हममें से कई लोगों को अपने हक़ का राशन भी नहीं मिल पाता है. हमारी सड़कों को चौड़ा करने और नदी के स्तर से ऊंचा बनाने की ज़रूरत है.”

बीना गांव में उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी पर भी अफ़सोस जताती हैं. “मेरी बेटी कोलकाता में पढ़ती है, जहां हमने बहुत ख़र्च करके उसका दाख़िला कराया है. मछली पकड़ने या शहद इकट्ठा करने के अलावा यहां कोई काम ही नहीं है.”

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गांव के हाईस्कूल में मतदान जारी है; कुछ ने वोट डाल दिया है, कुछ अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं

मतदान रजत जुबिली हाई स्कूल में हुआ. स्कूल के अंदर, गोसाबा अस्पताल की स्वास्थ्य कर्मचारी लोकी हाउली मंडल और इला सरकार मंडल मेडिकल टीम के रूप में चुनावी ड्यूटी पर तैनात थीं. लोखी कहती हैं, “हम सभी मतदाताओं को ओआरएस [ग्लूकोज़-आधारित नमक का घोल] देते हैं और जो अस्वस्थ महसूस करते हैं उन्हें दवाई देते हैं. कुछ लोग अपने बीमार परिजनों के लिए भी दवाई ले जाते हैं.”

दोनों महिलाएं सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक बूथ पर मौजूद थीं. क्या उन्हें इस काम के लिए भुगतान मिल रहा था? लोकी ने कहा, “हमें अभी तक नहीं पता [कितना मिलेगा]. ड्यूटी ख़त्म होने पर हमें पता चल जाएगा.”

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सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक मेडिकल टीम के रूप में चुनावी ड्यूटी पर तैनात गोसाबा अस्पताल की लोखी मंडल और इला मंडल को नहीं पता कि उन्हें इस काम के लिए कितना भुगतान मिलेगा

विनोद और सविता सरदार नामक जोड़ा भी चुनावी ड्यूटी पर था. इनका काम मतदान अधिकारियों की ज़रूरतों का ख़याल रखना था. विनोद कहते हैं, “अधिकारियों को भोजन और अल्पाहार की ज़रूरत होती है. हम उनके लिए चाय, कॉफ़ी और सिगरेट लाते हैं. विनोद और सविता अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय से हैं और उनके पास कोई ज़मीन नहीं है. अजीब बात है कि चुनावी ड्यूटी में उनकी तैनाती ‘आकस्मिक परिचारक' के रूप में की गई थी.

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विनोद और सविता सरदार ने मतदान अधिकारियों की ज़रूरतों का ख़याल रखा; दोनों अनुसूचित जनजाति से हैं और चुनावी ड्यूटी में 'आकस्मिक परिचारक' के रूप में तैनात किए गए थे

उमस और नमी भरे मौसम में सुंदरबन में वोट देने के लिए आना कोई आसान काम नहीं है. गर्मी से राहत के लिए स्थानीय लोगों ने, जिनमें से कुछ विभिन्न पार्टियों से जुड़े थे, मतदाताओं को गन्ने से बना बताशा पेय पिलाया, उन्हें चना वगैरह खिलाया. उन्हें पान और बीड़ी भी पिलाया जा रहा था.

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गर्मी से राहत के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं को शीतल पेय पिलाया; वोट डालने के बाद रंजीत बर्मन (दाएं) रस पी रहे हैं

चुनावी मैदान में उतरे राजनीतिक दलों - जैसे कि रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी - ने छोटे टेंट लगाए हुए थे, जहां पार्टी कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं को उनकी मतदाता पहचान संख्या मिलान करने में मदद की, और पहली बार मतदान करने वालों को मतदान करने के तरीक़े के बारे में मार्गदर्शन भी किया. टेंट को मतदान केंद्र से कम से कम 200 मीटर की दूरी पर लगाया जाना था.

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राजनीतिक दलों ने छोटे टेंट लगाए हुए थे. वे मतदाताओं को पहचान संख्या से मिलान करने में मदद कर रहे थे और पहली बार मतदान करने वालों को बता रहे थे कि कैसे मतदान करना है

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवान हर जगह मौजूद थे, गांव में गश्त लगा रहे थे और मतदान केंद्र पर भी तैनात थे. उन्होंने अपने चेहरों की तस्वीर खींचने की अनुमति देने से इंकार कर दिया. उनमें से एक ने कहा: “हम बस चाय के लिए बाहर आए हैं. अगर आप किसी पेड़ के नीचे बैठे और आराम करते हुए हमारी तस्वीर लेंगी, तो लोग सोचेंगे कि हम अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हैं.”

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सीआरपीएफ के जवान गांव में गश्त पर थे और मतदान स्थल पर तैनात थे

यह लेख पारी फ़ेलोशिप के तहत लिखा गया था.

अनुवाद: जयेश जोशी

Urvashi Sarkar

उर्वशी सरकार, स्वतंत्र पत्रकार हैं और साल 2016 की पारी फ़ेलो हैं.

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Editor : Sharmila Joshi

शर्मिला जोशी, पूर्व में पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया के लिए बतौर कार्यकारी संपादक काम कर चुकी हैं. वह एक लेखक व रिसर्चर हैं और कई दफ़ा शिक्षक की भूमिका में भी होती हैं.

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Translator : Jayesh Joshi

जयेश जोशी, पुणे के कवि, लेखक और हिंदी व मराठी अनुवादक हैं. जयेश ज़मीनी स्तर पर बाल विकास के क्षेत्र में कार्यरत शैक्षणिक संस्थानों के लिए वैज्ञानिक व मस्तिष्क आधारित शिक्षण प्रणाली बनाने की दिशा में योगदान देते रहे हैं. वह एनरिच फ़ाउंडेशन, लर्निंग होम और वर्ल्ड फोरम फ़ाउंडेशन जैसे संगठनों से सक्रियता से जुड़े हुए हैं और अलग-अलग ज़िम्मेदारियां निभा रहे हैं.

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