लकरी कटेइय्या टांगी ला अपन मुड़ तक ले ऊपर उठाथे अऊ जोर ले – लट्ठा ऊपर मारथे. दस फीट दूरिहा मं मंय झझकत हंव. ओकर पीठ ले पछिना बोहावत, ओकर कनिहा मं बंधाय फरिया अऊ सूती कमीज लथपथ होगे हवय. खच! वो ह फिर लकरी ला बोंगथे. वो ह अलग हो जाथे...छींटा उड़ जाथे. लकरी कटेइय्या के नांव एम. कामाची आय. बनेच बखत पहिली वो ह बनिहारी करत रहिस. बिन मुड़ी उठाये मोर ले गोठियाथे. ओकर नजर टांगी के धार मं लगे हवय.
बीते 30 बछर ले कामाची के काम के जगा तंजावुर के एक ठन बड़े जुन्ना बगीचा शिवगंगईपूंगा के तीर एक ठन टपरा आय. वो ह 67 बछर के हवय. डेढ़ सौ बछर के बगीचा उमर ओकर ले दुगुना हवय. लकठा के मंदिर- नामी बृहदेश्वर कोविल– 1,100 बछर जुन्ना हवय. अऊ वो ह जऊन बाजा ला वो ह हाथ ले बनावत हवय, पोथी-पुरान मन मं ओकर जिकर के इतिहास ये सब्बो ले जुन्ना हवय. कामाची कटहर के लकरी के चार फुट के एक ठन लट्ठा ले वीणई बनावत हवय,जेन ला वीणा के नांव ले जाने जाथे.
लकरी ला थिर रखे सेती, वो ह अपन जउनि गोड़ ला खंचवा भीतरी मं रखथे, जेन ह एक दिन वीणा के कुडम (बजेइय्या खोल) बन जाही. छांव मं घलो ओकर टपरा धुर्रा ले भराय अऊ तिपत हवय अऊ कामाची के बूता कठिन अऊ भारी हवय. वोला रोजी मं 600 रूपिया मिलथे. अऊ ये ओकर हुनर आय. हरेक बेर टांगी मारत अवाज निकारथे, बखत-बखत मं वो ह अपन चेहरा ला फरिया ले पोंछत रहिथे.
कुछेक घंटा मं वो ह 30 किलो के लठ्ठा ला छिलके 20 किलो कर देथे, अऊ ये ह पट्टरई (बढ़ईशाल/कारखाना) मं जाय बर तियार हो जाही जहाँ कारीगर मन येला अऊ तरासहीं अऊ पालिस करे जाही. महिना भर मं बने ये बाजा ह बजेइय्या के कोरा मं बइठे, सुग्घर संगीत निकारही.
वीणई के जनम तंजावुर मं होय हवय. सरस्वती वीणा - तंजावुर वीणा के जुन्ना संस्करण - भारत के राष्ट्रीय बाजा आय. अऊ “वैदिक जुग” ले येला तीन ठन मृदंगम अऊ बांसुरी के संग, ‘ देंवता मन के बाजा’ ले एक ठन माने जावत हे .
कतको दीगर ताल बाजा - मृदंगम, कंजीरा, तविल, उडुक्कई- जइसने वीणाई घलो अपन गुरतुर अऊ गदराय वाले कटहर सेती नामी कुड्डालोर जिला के नानकन शहर पनरुती के तीर के रुख मन ला अपन जिनगी सुरु करथे. भारत के कुछु सबले जियादा मान वाले बाजा के संग कटहर के रिस्ता कम लोगन मन जानत हवंय.
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“वो ह रुके बर तियार होगे मोर बोली सुनके,
तऊन हाथी जइसने जेन ला अंकुश ले नई
फेर याल के
अवाज ले काबू करे जा सकथे .”
तंजावुर के वीणा ला भौगोलिक संकेत- जेन ह येला साल 2013 मं मिले रहिस- ओकर ‘देय गेय अरजी’ मं ये तार बाजा के इतिहास के कतको जानकारी देखे जा सकथे, जेन येला संगम काल (करीबन 2,000 बछर पहिली) तक ले जाथे. वो बखत के जेन वीणा रहिस वोला ‘याल’ कहे जावत रहिस.
जऊन भटियार मोला कहे रहिस
के गर तंय दीगर अऊरत करा गेय, त वो ह मोर ले
कुछु घलो नई लुकावय
अऊ वो ह कतको बेर अपन याल के कसम खाय रहिस,
काय वो ह आही अऊ तोर घेंच मं तऊन अऊरत के
चुरी ले परे
चिन्हा ला देखही, जेन ह तोर लबारी मं भरोसा
करत
तोर संग रहे ला राजी होइस?”
कलितोकई 71 , संगम कविता मं रखैल ह हीरो ले सिकायत करिस.
भौगोलिक संकेत दस्तावेज मं कटहर के लकरी ला बनाय के समान के रूप मं बताय गे हवय अऊ येकर बनाय के जानकारी घलो फोर के बताय गे हवय. ये मं लिखाय हवय, चार फुट लंबा वीणाई, “एक ठन मोठ, चाकर घेंच के संग एक ठन बड़े गोल देह आय, जेकर मुड़ी मं एक ठन सांप के मुड़ी बने हवय.”
वीणा अपन आप मं अपन बखान ले कहूँ जियादा सुग्घर आय. ये मं जगा-जगा नक्काशी करे गे हे. सांप के मुड़ी जेन ला याली घलो कहिथें, लुभावन अऊ रंगीन हवय. लकरी के घेंच मं 24 ठन कुंडी अऊ चार ठन बजेइय्या तार होथे, जऊन ह सब्बो राग ला निकारथे. ‘खास’ वीणा मं कुडम (बजेइय्या खोल) ह जटिल डिज़ाइन के होथे, अऊ ओकर दाम समान्य वीणा के बनिस्बत कम से कम दुगुना होथे.
मइनखे के हाथ ले एक ठन बाजा बने के पहिली करीबन 30 ले 50 बछर तक, पलामरम (कटहर के रुख) तमिलनाडु के कडलूर जिले में पनरुति के तीर-तखार के गांव मं उगत हवंय. मवेसी मन के जइसने रुख घलो एक ठन संपति आय. गाँव के लोगन मन वोला शेयर के पूंजी जइसने मानथें- दाम बढ़िया मिलथे अऊ वोला बने फायदा मं बेंचे जा सकथे. पनरुती शहर के कटहत बेपारी, 40 बछर के आर. विजयकुमार बताथें के “जब रुख ह आठ हाथ घेर अऊ 7 धन 9 फीट लाम हो जाथे, त सिरिफ लकरी लेच 50,000 रूपिया मिलथे.”
जिहां तक ले होथे किसान रुख ला नई काटेंव. 47 बछर के कटहर किसान के. पट्टूसामी बताथें, फेर जब पइसा के जरूरत होथे – इलाज पानी करे धन बिहाव सेती- हमन कुछेक बड़े रुख ला छांटथन अऊ वोला लकरी सेती बेंचथन. येकर ले लाख दू लाख मिल जाथे. बिपत मं काम आय, धन कल्याणम (बिहाव) के खरचा सेती भरपूर हो जाथे ...”
तंजावुर जाय के पहिली लकरी के सार हिस्सा मन ला मृदंगम, एक ठन थाप बाजा सेती अलग रखे जाथे. सेबस्टियन एंड संस मं: मृदंगम* बनेइय्या मन के इतिहास, मं टी. एम. कृष्णा (लेखक, वक्ता अऊ मैग्सेसे पुरस्कार विजेता) तऊन गुमनाम करीगर मन के बारे मं बताथें जऊन मन ये बाजा ला बनाथें.
फेर सबले पहिली के बाजा “मृदंगम 101” जइसने के कृष्णा येला कहिथे. मृदंगम बेलना आकार के दो मुख वाले बाजा आय, जेन ह कर्नाटिक* संगीत प्रदर्सन अऊ भरतनाट्यम गायन मं बऊरेइय्या जरूरी थाप बाजा आय. ये ह कटहर के रुख के लकरी ले बने पोंडा खोल आय. दूनों मुड़ी मं चमड़ा के तीन-तीन परत छवाय रहिथे.
कृष्णा लिखथें, कटहर के लकरी मृदंगम बनाय के "पवित्र जिनिस” माने जाथे. “गर कटहर के रुख कऊनो मन्दिर तीर मं जामथे त येला अऊ पवित्र माने जाथे. ओकर बाद लकरी ला मन्दिर के घंटी अऊ वैदिक मंत्र के तीर मं लाय जाथे, वो ह कहिथे, अऊ अइसने लकरी ले बने बाजा के गूंज बेजोड़ होथे.” मणि अय्यर जइसने कलाकार ये किसिम के रुख ले लकरी हासिल करे सेती अपन जम्मो जोर लगा देथें.
अपन परिवार के तीसर पीढ़ी के बाजा बनेइय्या कुप्पुसामी असारी, कृष्णा ला बताथें के, “अइसने माने जाथे के चर्च धन मन्दिर के तीर के रुख, धन रद्दा के जिहां लोगन मन के अवई-जवई लगे रहिथे अऊ गोठियावत रहिथें, धन जिहां घंटी बजथे, कंपन ला सोंख लेथे अऊ बढ़िया आवाज निकरथे.”
वइसे, कृष्णा के मानना आय के “ जिहां मृदंगम कलाकार मानथें के मन्दिर के घंटी अऊ मंत्र जादू के काम करथे, उहिंचे लकरी कारीगर मन अइसने माने सेती बढ़िया आवाज निकरे के बात करथें.
अप्रैल 2022 मं, मंय कटहर किसान अऊ बेपारी मन ले भेंट करे सेती पनरुती शहर गेय रहेंव. मंझनिया मं, मंय कुप्पुसामी असारी के कारखाना मं जाथों. ये ह नवा जमाना ((खराद अऊ मसीन मन के संग) अऊ पारंपरिक (जुन्ना जमाना के अऊजार अऊ देवी-देंवता मन के फोटू के संग) हवय,ये ह मृदंगम बनाय के कुप्पुसामी के नजरिया ले मेल करत रहय.
कुप्पुसामी, “चलव, जल्दी पूछव काय सवाल आय.” वो ह जल्दी मं हवय; वो ह भारी व्यस्त मनखे आय. “तुमन काय जाने ला चाहत हव?” मंय पूछेंव, कटहर लकरी काबर? वो ह कहिथे, “काबर के पलामरम एकदम सही आय. येकर वजन हल्का हवय अऊ नादम [सुर] भारी बढ़िया आय. इहाँ हमन सब्बो थाप बाजा बनाथन, वीणा ला छोड़के बाकी सब्बो कुछु.” कुप्पुसामी नामी विशेषज्ञ आंय ओकर भारी मान हवय. तुमन हमर बारे मं टी.एम. कृष्ण के किताब मं पढ़ सकथो. वो ह गरब ले कहिथे, “इहाँ तक के लेथ मसीन के संग मोर एक ठन फोटू घलो हवय.”
कुप्पुसामी ह चेन्नई के उपनगर माधवरम मं प्रसिच्छन ले हवय अऊ ओकर करा “करीबन 50 बछर के तजुरबा हवय”. जब वो ह 10 बछर के रहिस, तब ले वो ह सीखे ला सुरु करिस, वो ह जियादा पढ़े-लिखे नई ये अऊ वोला लकरी के संग काम करे के भारी रूचि रहिस. वो बखत, जम्मो काम हाथ ले करे जावत रहिस. मोर ददा ह पलामरम ला वंडि सक्करम (गाड़ी के चक्का) ऊपर चढ़ाके – भीतरी ले खोदे के कम करत रहिस. दू झिन लोगन पन चक्का घुमायेंव, अऊ अप्पा ह भीतरी के हिस्सा ला खोदेव. फेर परिवार ह जल्दी नवा तकनीक ला अपना लीस. “हमन बखत के संग बदल गे हवन.”
कतको कारीगर मन के उलट, वो ह नवा जमाना के मसीन ला लेके भारी उछाह मं हवंय. देखव, तुमन ला मृदंगम ला बीच के भाग खोले मं जम्मो दिन लग जावय. अब खराद के संग, ये ह तुरते, सटीक अऊ सफई होथे, अऊ बने घलो बढ़िया हवय. वो ह पुनरुती मं लेथ बऊरे मं आगू रहिस, अऊ वो ह 25 बछर पहिली मसीन लगाय रहिस. कतको लोगन मन येला देखे के अपन शहर मं घलो करे लगे हवंय.
वो ह कहिथे, “येकर छोड़, मंय चार, पांच लोगन मन ला थाप बाजा बजाय ला सिखाय हवं. जब वो मन सीख गीन त अपन दुकान खोल ले हवंय अऊ येला चिल्लर बेपारी मन ला बेंचथें जेन ला मंय मायलापुर, चेन्नई मं भेजथों. वो मन लोगन ला अपन ला मोर चेला बताथें. अऊ वो दुकान मालिक ह मोला फोन करथे अऊ मोर ले पूछथें, “तंय कतक लोगन मन ला सिखाय हस?” मोला अपन कहिनी सुनावत कुप्पुसामी हंस परथे.
ओकर बेटा सबरीनातन ह इंजीनियरिंग करे हवय. “मंय ओकर ले नाप लेगे अऊ बाजा बनाय के तरीका सीखे ला कहेंव. इहाँ तक ले गर वो ह नऊकरी करही, त ले घलो वो ह मजूर राख के येला चले सकत हवय. है ना?”
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“असारी विश्वकर्मा समाज ले हवंय. ये लोगन मन लोहा-लक्कड़, पथरा अऊ लकरी के काम करथें. अपन कारीगरी के कला ले दूरिहा, समाज के कतक लोगन मन मिहनत मजूरी करत हवंय जेन ह वो मन के पारंपरिक काम ले जुरे हवंय. नवा पीढ़ी के लोगन मन नऊकरी डहर जावत हवंय,” टी.एम. कृष्णा ह अपन किताब सेबेस्टियन एंड संस मं लिखथें.
“जब हमन पीढ़ी दर पीढ़ी चले आवत अऊ जात-अधार के कारोबार के बारे मं गोठियाथन, त हमन ला भारी चेत रहे ला होही के येला गियान के मुताबिक काम मं फेरफार अऊ पीढ़ी दर पीढ़ी चले आवत के रूप मं जोर के झन देखन, काबर के हमर समाज के तराजू मं सब्बो लोगन अऊ कारोबार समान नई यें,” कृष्णा बताथें. “जऊन बूता-काम ख़ास जात वाले परिवार मन ला देय जाथे अऊ अइसने जात तक ले सीमित काम ला जम्मो दिन के सेती बचे गियान माने जाथे. ये करोबार मं लोगन मन के कभू शोषण नई होईस. वो पेशा अऊ काम जेन ला दलित अऊ कोनहा मं परे समाज के लोगन मं कतको पीढ़ी ले करत आवत हवंय, वोला ग्यान नई माने जावय, अऊ न ये पेशा ले जुरे लोगन मन के ग्यान ला बनाय के काम समझे जाथे. वो मन ला नीचा नजर ले देखे जाथे, वो मन के मोल नई समझे जाय, अऊ ओकर काम ला सिरिफ मिहनत के काम मं रखे जाथे. सबले महत्तम बात ये आय के जऊन लोगन मन ये बूता करथें वो मन ला जात-पात अऊ अतियाचार ला झेले ला परथे. बनेच अकन मामला मं समाजिक हालत सेती लोगन मन के आगू कऊनो रद्दा नई बांचय अऊ मजबूर होक अपन परिवार के जात आधारित पेशा ला अपना लेथें.”
ये देस मं सब्बो बाजा बनेइय्या मन के बारे मं बात करे जाथे, तकनीकी शब्दावली बऊरे जाथे. कृष्णा कहिथे , “वो मन ला एक मिस्त्री (बढ़ई) जइसने देखे जाथे, जइसने के कऊनो सड़क इमारत के काम करेइय्या. सब्बो कर्ताधर्ता बाजा बजेइय्या ला माने जाथे, अऊ उहिच ला आर्किटेक्ट कहे जाथे. श्रेय देय ले इंकार धन कंजूसी ह जात बेबस्था के कारन आय.”
कुप्पुसामी कहिथें, मृदंगम बनाय के काम मरद मन के आय. “कुछेक माईलोगन मन हवंय जेन मन चमड़ा के काम करथें. फेर लकरी के काम सिरिफ मरद लोगन मन करथें. जऊन लकरी होथे वो ह अक्सर कटहर के रूख ले होथे जेन मं फर धरे बंद होगे रहिथे. कुप्पुसामी कहिथें, वो मन जुन्ना अऊ बिन फर वाले रुख मन ला ‘खतम’ कर देथें. अऊ दस ठन काटे ले वो मं 30 ठन रुख लगाथें.”
कुप्पसामी ह लकरी सेती कतको खासियत ला देखथें. वो ह अइसने रुख मन ला पसंद करथें जेन ह करीबन 9 धन 10 फुट ऊंच, घेर के अऊ मजबूत होंय, अऊ बारी के तीर धन सड़क के तीर मं लगाय गे हो. सबले बढ़िया जरी के उपर के हिस्सा आय, जेकर रंग गाढ़ा होथे अऊ बढ़िया बाजा बनथे.
दिन भर मं वो ह करीबन 6 मृदंगम सेती काट के आकर देय सकथे. फेर फिनिशिंग मं अभू दू दिन अऊ लगही. ओकर मुनाफा बनेच कम आय – वो ह कहिथे, गर वो ह एक ठन मृदंगम मं 1,000 रूपिया कमा सके त वो ह खुस हो जाही. येकर काम के सेती मजूर मन ला 1,000 रूपिया देय के बाद. ये ह भारी काम आय, न ई त वो मन काम करे नई आहीं, तुमन जनत हव.
बछर भर लकरी नई मिलय. वो ह बताथे के जब रुख मन फरत हों त वोला कउनो घलो नई काटय. येकरे सेती “मोला लकरी जमा करके रखे ला परथे,” वो ह कहिथे. वो ह 20 ठन लकरी बिसोय सेती पांच लाख लगाय रहिस, जेकर हरेक के कीमत 25,000 रूपिया रहिस. अऊ इहींचे वो ह सरकार ले दखल देय के मांग करथे. “गर वो ह हमन ला लकरी बिसोय सेती सब्सिडी धन करजा देतिस... त ये ह बनेच बढ़िया होतिस!”
कुप्पुसामी कहिथे, मृदंगम के मांग बढ़िया हवय अऊ ये ह देस अऊ बिदेस दूनों के बजार ले हवय. “महिना भर मं, मंय 50 मृदंगम अऊ 25 तवील बेंचथों.” दिक्कत सही लकरी मिले के अऊ वोला करीबन चार महिना तक ले सुखाय मं हवय. कुप्पुसामी कहिथे, अऊ काबर के पनरुती कटहर के लकरी “सबले बढ़िया” आय, येकर भारी मांग हवय. अऊ ये गुन के हाथ सेती इहाँ के इलाका के लाल माटी ला देथे.
“दस फुट लंबा एक ठन लट्ठा ले -जेकर दाम करीबन 25,000 रूपिया आय- सिरिफ तीन ठन बढ़िया मृदंगम बनाय जाय सकथे. अऊ हरेक चीज लिले जुले आय. कुछेक लकरी ला बाजा बनाय सेती काटे नई जाय. कुप्पुसामी वो मन ले सबले बढ़िया बाजा बनाय सकथे वो आय एक ठन नान कन उडुक्कई (जेन ला थाप देके बजाय जाथे).
कुप्पुसामी बताथें के एक ठन बढ़िया “कट्टई” के दाम “एट्टु रूबा” होथे. वो ह मृदंगम के खोल ला बताय बर कट्टई (लकरी) शब्द बऊरथे. फेर “एट्टु रूबा” शब्द के मायना आठ रूपिया के मतलब 8,000 आय. वो ह कहिथे, ये ह "ओणम नंबर" (सबले ऊँच किसम के) आय. नई त, “गर लकरी मं दरार पर जाथे, गर नादम [सुर] बने नईं ये, त तय आय के ग्राहेक मन येला पटक जाहीं!”
अक्सर, मृदंगम 22 धन 24 इंच लंबा होथे. ओकर कहना आय के ये बाजा अक्सर माइक मं बजाय जाथें. कुथु [थिएटर] सेती, जहाँ येला बिन माइक के बजाय जाथे, मृदंगम 28 इंच लंबा होथे. अऊ एक डहर के मुंह सांकर अऊ दूसर डहर के चाकर होथे. आवाज ला लंबा दूरिहा तक ले सुने जा सकथे काबर के आवाज ह बनेच दूरिहा तक ले बढ़िया ढंग ले जाथे.
कुप्पुसामी चेन्नई मं बाजा बनेइय्या कंपनी मन ला लकरी के खोल बेंचथें. वो मन महिना मं 20 ले 30 आडर देथें. खोल मिले के बाद वो मन येला चमड़ा लगेइय्या मन ला दे देथें जऊन मन मृदंगम बनाथें. ये काम के दाम 4,5000 रूपिया अऊ जुड़ जाथे. “ओकर बाद चेन वाले बैग आय,” कुप्पुसामी बताथे, ओकर हाथ ह एक ठन मृदंगम ला सोच के खोले जइसने करथे.
बढ़िया किसम के मृदंगम के दाम करीबन 15,000 रूपिया आय. कुप्पुसामी ला सुरता हवय जब वो ह 50 अऊ 75 रूपिया मं बेचे जावत रहिस. मोर ददा मोला गुरु मन ला बेंचे सेती मायलापुर, मद्रास (अब चेन्नई) ले जावत रहिस. “ वो मन हमन ला नवा नोट देवत रहिन! मंय तब नान कन लइका रहेंव,” वो ह मुचमुचावत रहय.
कारईकुडी मणि, उमयालपुरम शिवरामन जइसने कर्नाटिक संगीत जगत के कुछेक महान मृदंगम कलाकार मन अपन बाजा कुप्पुसामी ले लेगे हवंय. कतको अकन विद्वान (विद्वान गुरु अऊ ओकर चेला मन) इहाँ आथें अऊ बिसोथें, ओकर बोली मं गरब झलकत रहय. “ये नामी दुकान आय, पुरखौती के दुकान...”
कुप्पुसामी हमन ला थाप देके बजेइय्या कतको बाजा ले जुरे कतको कहिनी सुनाथें. ओकर कहिनी मन मं जुन्ना अऊ नवा बखत के फेरफार देखे ला मिलथे. “काय तुमन गुजरे पालघाट मणि अय्यर ला जानथस? ओकर बाजा अतक गरु होवत रहिस के वोला ला धरे सेती एक झिन लोगन ला रखे ला परत रहिस!” भारी-भरकम मृदंगम बजा के बनेच मांग रहत रहिस, काबर के ओकर अवाज ह बनेच गनीर, गनीर (जोर अऊ साफ) रहिस. आज के पीढ़ी येला उठाय ला नई चाहय, कुप्पुसामी बताथे.
“जब देश ले बहिर जाय ला होथे त लोगन मन ला हरू बाजा चाहथें. वो वो मं ला धर के आथें के मंय ओकर वजन 12 ले 6 किलो तक ले कम कर देथों.” मंय पूछथों ये ह कइसने करके होथे. वो ह बताथे, “हमन मृदंगम के पोंडा पेट ले लकरी ला खुरच के बहिर निकाल देथन. हमन मंझा-मंझा मं वजन करत रहिथन, जब तक ले वो ह छै किलो कम नई हो जावय.”
तुमन कहि सकथो के मृदंगम के पेट ला काट लेय जाथे...
फेर वो ह मृदंगम के संगे संग थाप देके बजेइय्या दीगर बाजा घलो दुनिया भर मं भेजथे. मंय बीते 20 बछर ले उरुमि मेलम (दू मुंह वाले ड्रम) मलेशिया भेजत हवं. सिरिफ कोविड बखत हमन भेजे नई सकेन...”
कुप्पुसामी बताथें के कटहर के लकरी मृदंगम, तविल, तबेला, वीणा, कंजीरा, उडुक्कई, पम्बई...जइसने बाजा बनाय सेती सबले बढ़िया होथे. “मंय थाप ले बजेइय्या करीबन 15 ठन बाजा बनाय सकथों.”
वो ह दीगर बाजा बनेइय्या कारीगर के नांव घलो जानत हवंय. वो मन ले कुछु के नांव पता घलो जानत हवंय. “ओहो, तुमन नारायणन ले भेंट कर चुके हव, जेन ह वीणा बनाथे? वो ह तंजावुर के साउथ मेन स्ट्रीट मं रहिथे. उहिच ना? वो ह हमन ला जानथे. वीणा बनाय ह भारी सफई के काम आय, कुप्पुसामी बताथे, “एक बेर मंय एक ठन वीणा ला बनत देखे रहेंव, आसारी घुमावदार तना बनावत रहिस. मंय कलेचुप बइठ गेंय अऊ वो मन ला दू घंटा तक ले देखत रहंय. कभू वो ह लकरी ला काटत रहय, कभू वोला तरासत रहय, कभू वोला नापत रहय, फिर ले काटके नवा बनावत रहय ...अऊ वो ह घंटों इहीच करत रहय. ये देखे ह अचरज के रहिस...अऊ मजा के घलो...”
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मंय वीणा बनेइय्या कारीगर मन ले साल 2015 मं तंजावुर मं एम. नारायणन के कारखाना मं पहली बेर मिले रहेंव. अगस्त 2023 मं वो मन मोला फिर ले बलाइन. काय तोला ये घर सुरता हवय? ये उहिच घर आय जेकर बहिर मं एक ठन रुख लगे हवय.” वो ह कहिथे. ओकर अइसने कहे ह थोकन अजीब लाग सकथे, फेर पुन्गई (करंज) के ये रुख साउथ मेन स्ट्रीट के अकेल्ला रुख रहिस. घर के पहिली मंजिल सीमेंट के बने वीणा ले सजे रहिस. ओकर घर के पाछू के हिस्सा मं बने ओकर कारखाना कमोबेश उहिच हालत मं रहिस जइसने मंय पहिली बखत देखे रहेंव. सीमेंट के बने पठोरा मंन मं अऊजार रखे रहिस अऊ भिथि मं फोटू अऊ कैलेंडर टंगाय रहिस. कारखाना के भूंइय्या मं वीणा परे रहिस जेकर ऊपर काम चलत रहिस.
जब वीणा शिवगंगा पोंग ले इहाँ आथे., त वो ह मोठ अऊ बेडोल आकार के कऊनो लकरी के टुकड़ा जइसने दिखथे. फेर कारखाना मं आय के बाद अऊजार बदल जाथे, काम के दिन बदल जाथे अऊ असल चीज बदल जाथे. तोंद कस 16 इंच घेर के लकरी के टुकड़ा ले, नारायणन अऊ ओकर टीम ह अक ठन पातर कटोरा बनाय हवंय जेन ह 14.5 इंच घेर के हवय, अऊ आधा इंच मोठ हवय. ये घेरा ला बनाय सेती कंपास के मदद लेथे, जेकर ले घेर बनाय के बाद वोला एक ठन उल्ली (बिंधना) के मदद ले उपरह लकरी ला हेरे जा सकय.
ओकर ले संगीत निकरे येकरे सेती लकरी ला थोर-थोर छिले ला परथे. ये ह येकर सेती जरूरी आय काबर के येकर ले लकरी ला सूखे अऊ बने मं मदद मिलथे. बहिर-भीतर बढ़िया ढंग ले सूख जाय के बाद लकरी के वजन घलो कम हो जाथे. ओकर बाद शिवगंगई पूंगा ले आय लकरी के आकर ला 30 इंच ले काट के तंजावुर मं 20 इंच कर देय जाथे. वीणई पट्टरई मं लकरी ला तक तक ले छिले जाथे जब तक ले वो ह धरे के लायक आठ किलो वजन के न हो जाय.
अपन कारखाना के ठीक आगू अपन घर मं बइठे नारायणन मोर हाथ मं एक ठन वीणा रखथे. वो ह कहिथे, “ये ला धरव,” ये सुग्घर अऊ ठीक वजन के हवय. येकर हरेक हिस्सा का बने करके चिक्कन करके पलिस करे गे हवय. “ये सब्बो काम हाथेच ले करे गे हवय,” नारायणन कहिथे, ओकर बोली मं गरब झलकत हवय.
“वीणा सिरिफ तंजावुरेच मं बनाय जाथे, अऊ इहाँ ले वो मन ल दुनिया भर मं भेजे जाथे. हमर करा भौगोलिक संकेतक [जीआई] हवय, जेकर बर हमन अरजी दे रहेन. वकील संजय गांधी के मदद ले वो ह हमन ला मिलिस,” नारायणन बताथें.
ये बाजा सिरिफ कटहर के लकरी ले बनथे. “ये लकरी येकरे सेती लेगे जाथे काबर के पलामरम सब्बो मऊसम के मुताबिक अपन आपन ला ढाल लेथे. तंजावुर मं आज के तापमान 39 डिग्री सेल्सियस हवय. अऊ जब येला इहाँ ले लेके अमरीका ले जाहू जिहां तापमान शून्य डिग्री घलो हो सकथे, तब ले घलो ये ह बढ़िया बाजथे. अऊ जब तुमन येला जियादा गरम वाले इलाका मं ले जाहू – जइसने के पच्छिम एशिया – तब ले घलो ये ह बढ़िया बाजही. ये सब्बो जगा बढ़िया बाजथे. ये एक ठन दुब्भर गुन आय जेकर सेती हमन कटहर के लकरी काम मा लाथन.”
“ये काम आमा के लकरी करे नई सकय.आमा के लकरी के बने फेरका जेन ह घाम मं आराम ले बंद हो जाथे. फेर बरसात के बखत मं? वोला जोर ले तीरे ला परथे... अऊ वोला कतको सफई ले बना लेव, वो ह ओतका नई सुन्दराय जेन ह तुमन ला कटहर के लकरी मं मिलही.” येकर संगे संग पलामरम भारी बारीक़ छेदा होथे, नारायणन बताथे. “ये छेदा ह चुंदी ले घलो पातर होथे. “येकर ले लकरी ह साँस लेगथे.”
कटहर के रुख भारी पैमाना मं लगाय जाय सकत हे. “फेर जइसने के मंय जनत हवं, पट्टूकोट्टाई [तंजावुर जिला] के तीर-तखार के इलाका मं अऊ गंधर्वकोट्टाई [पडूकोट्टाई जिला] के लोगन मं बनेच अकन रुख ला काट डारे हवंय अऊ ओकर बनिस्बत कम रुख लगाय गे हवय. बगीचा मालिक मन अपन जमीन घर बनाय सेती बेंच डरे हवंय, अऊ पइसा बैंक मं जमा कर देय हवंय, नारायणन कहिथें, “बिन रुख के छाँव के सेती जगा बचे नई ये. संगीत ला भुला जावव, मोरेच गली ला देखव. सिरिफ एके ठन मोर रुख बांचे हवय... बाकि जम्मो रुख काट डारे गे हवंय.”
कटहर के नवा लकरी के रंग पिंयर होथे अऊ सूखत जाथे त ये ला ललियाय जाथे. अइसने लकरी ले निकरेइय्या अवाज सबले बढ़िया होथे. येकरे सेती नारायणन के मुताबिक जुन्ना वीणाई के मांग भारी जियादा हवय. “अऊ येकरेच सेती वो ह बजार मं नई बिकावय,” वो ह हंसत कहिथे, “काबर के जेकर तीर हवय वो ह सुधरवा के अपन तीर रखे ला पसंद करथे. अपन परिवार ले बहिर के कऊनो ला देय ला नई चाहय.”
अपन बनाय वीणा मं नारायणन थोकन नवा जमाना के रंग घलो डारे हवंय. “ये कुंडी मन ला देखव, अक्सर ये ह गिटार मं लगथे, फेर हमन येला ये मं येकरे सेती लगाय हवन के तार ला ट्यून करे अऊ कसे मं सुभीता होवय.” वइसे, वो ह येला सिखाय मं आय बदलाव ला लेके भारी उछाह मं नई यें, अऊ येला शार्टकट तरीका मानथें, काबर के गुरु मन चेला मन ला धुन के पिच ला सुधारे ला नई सिखायेंव. वो ह वीणा ला ट्यून करके येला फोर के समझाय ला चाहथे. कटहर के लकरी अऊ धातु के तार के मेल ले भारी सुग्घर संगीत निकरथे, अऊ हमर गोठ बात के सेती बेकग्राउंड म्यूजिक के काम करथे.
दीगर बनेच अकन कारीगर मन के जइसने नारायणन अपन बनाय बाजा ला बजाय ला घलो जानथे. ”थोर बहुत बजा लेथों,” अपन जउनि हाथ ले तार ले खेलत हवय. ओकर डेरी हाथ के ऊँगली मन ऊपर-तरी घूमत हवय, “मंय बस अतकेच जानथों के ये पता कर सकंव के ग्राहेक ला काय चाही.”
ओकर कोरा मं एक ठन एकांत वीणा रखे हवय, जेन ला एकेच लकरी के टुकड़ा ले बनाय गे हवय. वो ह वोला चेत धरके उठाथे, जइसने महतारी ह अपन सुते लइका ला धरे रहिथे. ”कऊनो जमाना मं हमन सजाय सेती हिरन के सींग लगावत रहेन. अब हमन बाम्बे ले मंगाय गेय प्लास्टिक के हाथी दांत लगाथन...”
गर कऊनो मइनखे पूरा वीणा ला बनाही, त वोला कम से कम 25 दिन लाग जाही. “येकरे सेती हमन अलग-अलग लोगन ले अलग-अलग काम करवाथन अऊ बाद मं वोला एक संग जोड़ देथन. अइसने करके हमन महिना भर मं दू ले तीन ठन वीणा बना लेथन. ओकर दाम 25,000 ले लेके 75,000 रूपिया के बीच मं कुछु घलो हो सकत हे.”
दीगर कारीगर मन के जइसने नारायणन घलो पनरुती ले अपन बर लकरी मंगाथे. वो ह कहिथे, “लकरी बिसोय ला हमन खुदेच जाथन धन बेंचेइय्या मन हमन ला इहाँ लाके देथें. करीबन 40 ले 50 बछर के रुख हमर बर सबले जियादा काम के होथे. वो ह जम्मो डहर ले पाके होथे. बेपारी हमन ला 10 फुट ऊंच रुख ला करीबन 20,000 रूपिया मं बेंचथें, जेकर ले हमन एकांत वीणा बनाय सकथन. वइसे, कुछु मोलभाव के घलो गुंजाइश रहिथे. लकरी बिसोय के बाद हमन शिवगंगई पूंगा मं वोला सुधारे अऊ रूप देवाथन.” वइसे, लकरी के धंधा जोखिम वाले कारोबार आय, नारायणन बताथे. “कतको बारीक़ छेदा ले होके पानी रुख के भीतरी मं समा जाथे अऊ जम्मो लकरी ला बरबाद कर देथे. हमन ला ये बात रुख काटे जाय के बादेच मालूम परथे!”
नारायणन के अंदाजा के मुताबिक, तंजावुर मं करीबन दस झिन वीणा बनेइय्या हवंय, जेन मन के सब्बो दिन के काम आय. येकर छोड़ कतको कारीगर घलो हवंय जेन मन ये काम ला बखत बखत मं करथें. सब्बो कारीगर मिलके महिना मं करीबन 30 ठन वीणा बना लेथें. जब लकरी का लट्ठा तंजावुर आ जाथे, त वोला बाजा बनाय मं करीबन 30 दिन लाग जाथे. “ये तय आय के ये बाजा मन के बनेच लेवाली हवय,” नारायणन कहिथे.
“चिट्टीबाबू अऊ शिवनंदम जइसने कतको बड़े कलाकार मन मोर ददा ले बाजा बिसोय हवंय. नवा पीढ़ी के सिखेईय्या कलाकार मन घलो भारी रूचि दिखावत हवंय. फेर वो मन ले जियादा करके जवान लइका मन चेन्नई के बाजा दुकान मन ले अपन चीज बिसोथें. कुछेक सीधा इहाँ आथें अऊ कऊनो खास डिज़ाइन धन गुन वाले बाजा मन के मांग करथें,” नारायणन ला ये ह भारी सुहाथे.
वो ह चाहत हवय के ओकर कारोबार आगू बढ़य. “मंय ये काम 45 बछर तक ले करेंव. मोर दूनों बेटा ये कारोबार करे ला नई चाहत हवंय. वो मन पढ़े लिखे हें अऊ नऊकरी करत हंय. पता हे काबर?” वो ह दुखी होवत थोकन रुक जाथे. “मोर घर मं काम करेइय्या राजमिस्त्री रोज के 1,200 रूपिया कमाथे, अऊ मंय दिन मं दू बेर ओकर बर दू तब बरा अऊ एक कप चाहा घलो मंगाथों. फेर हमर अतक मिहनत के बाद घलो हमन ला आधाच पइसा मिलथे. हमन भाग मं सुस्ताय नई ये, हमर काम के बखत घलो तय नई ये. ये बढ़िया काम आय, फेर सिरिफ दलाल मन येकर ले बढ़िया कमई करत हवंय. मंय दस गुना दस फुट के कारखाना मं काम करथों. हमन ला सब्बो कुछु हाथ ले करे ला परथे. येकर बाद घलो हमन ला बिजली बिल कारोबारी के दाम ले पटाय ला परथे. हमन अफसर मन ला ये समझे के बनेच कोसिस करे हवन के ये ह एक ठन कुटीर उदिम आय –फेर हमन वो मन ला कऊनो मांग पत्र देय नई सकें, जेकर ले कऊनो निदान निकर सके...”
नारायणन लंबा सांस लेथे. ओकर घर के पाछू बने कारखाना मं एक झिन डोकरा सियान कारीगर रगड़ के कुडम ला चिकनाय मं लगे हवय. छेनी, बिंधना अऊ आरी के मदद ले वो ह कटहर के लकरी मं संगीत डारत हवय...
ये शोध अध्ययन ला बेंगलुरु के अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम 2020 के तहत अनुदान हासिल होय हवय.
गोड* - महावत के एक ठन अऊजार (अंकुश) ये ह हाथी ला काबू करे के काम करथे
म्रदंगम*- जेन ला मृदंगम घलो कहे जाथे
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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू