“ইতিহাস, সে কোনও দেশের হোক বা ভাষার কিংবা মজহবের, কেবলই রাজাগজা, দলপতি আর নেতামন্ত্রীর কাণ্ডকারখানায় ঠাসা। ইতিহাসে আমজনতার ঠাঁই নেই, যদিও তাদের ছাড়া ইতিহাস যে নেহাতই অর্থহীন। জনসাধারণই তো মুলুক গড়ে, ভাষা বানায়, তাদের ঘামরক্তেই তো জনপ্রিয় হয়ে ওঠে ধর্ম। অথচ সময়ের সঙ্গে সঙ্গে এসবের মালিকানা চলে যায় ক্ষমতাবান অভিজাত শ্রেণির হাতে,” বলছিলেন কুনো জাতীয় উদ্যানের একপ্রান্তে বসবাসকারী মেরাজুদ্দিন সাহেব। এই অভয়ারণ্যের ভিতর ও আশপাশে থাকা জনগোষ্ঠীর সঙ্গে নিবিড় ভাবে কাজ করার সুবাদে তিনি দেখেছেন, অরণ্যবাসী ইনসান কেমন করে অধিকারচ্যুত হয়। বুকের ভিতর সাধারণ মানুষের জ্বালাযন্ত্রণা অনুভব করেন বলেই তাঁর নাজমের আখরে আখরে দর্দ ফুটে ওঠে...

মেরাজুদ্দিন সৈয়দের কণ্ঠে মূল উর্দু কবিতাটি শুনুন

প্রতিষ্ঠা পান্ডিয়ার কণ্ঠে কবিতাটির ইংরেজি অনুবাদ শুনুন

হুঁশিয়ার, আমি আজও বেঁচে আছি হেথা

শোন্!
মন্দির মসজিদ বানাইলি যারা!
শোন্!
মুলুক ভাষার সব রাজা মহারাজা!
শোন্ তবে কান খুলে,
আমি আজও বেঁচে আছি হেথা।

মাথায় মুকুট তোর, হাতে দাঁড়িপাল্লা,
অথচ গেছিস ভুলে ইনসাফ, রক্ষা,
কাগজের নোটে তোরা সংখ্যা বসিয়ে
মানুষের দামটুকু দিতে ভুলে যাস।

হুঁশিয়ার, আমি আজও বেঁচে আছি হেথা।

জানি আমি দুর্বল, বড্ড অসুস্থ।
খিদের রাজ্যে মোর দেহ ছারখার।
শিরায় শিরায় শুখা দাবানল শুধু
একফোঁটা পানিও তো ধমনীতে নেই।
তবুও তুফান বহে ফুসফুসে আজও
তিষ্ঠ তিষ্ঠ, আমি আজও মরি নাই।

শোন্ তবে, আমি আজও বেঁচে আছি হেথা।

আইন বানানেওয়ালা, ঠিক-ভুল সবই তোর হাতে,
আঁতেল বুদ্ধিজীবী, কলম শানাস তোরা শুধু,
“জানি জানি, সব জানি,” লম্ফঝম্পটাকে থামা!
মগজে পয়সা বিনে আর কিছু নাই তোর,
বেকার মাতম ছেড়ে চুপ করে বোস!
ছাড় ছাড়, আমি আজও টিকে আছি ঠিক।

শোন্ তবে, আমি আজও বেঁচে আছি হেথা।

অর্থনীতির প্যাঁচ বানিয়েছে কারা?
রাজনীতি লেখা কার ন্যাংটা কলমে?
যে দেশের নেতা তুই, শোন্ মহারাজা,
সে দেশে কাহার লেখা মুসিবতনামা?
লেখ্ দেখি, আজও আমি বেঁচে আছি হেথা।

শোন্ তবে, আমি আজও বেঁচে আছি হেথা।

হতেই পারিস তোরা মজহবী নেতা,
কিন্তু রসূল নবী, কা’বা সে আমার,
দেউল আমার জানি, ভগবানও মোর,
গির্জা গুরুদ্বারা, আমার সে সবই,
ভাগ্ দেখি তবে, আমি আজও বেঁচে আছি!

শোন্ তবে, আমি আজও বেঁচে আছি হেথা।

ভাগ্ ভাগ্, গিয়ে বল্ যত রাজা-গজা,
আছে যত জমিদার, আছে যত মন্ত্রী,
সভ্যতা ভরে যারা দ্বেষে বিদ্বেষে,
বেশরম নেতাদের গিয়ে বল্ দেখি,
হুঁশিয়ার, আমরা তো আজও বেঁচে আছি।

শোন্ তবে, আমি আজও বেঁচে আছি হেথা।

(original)  سن لو کہ ابھی میں زندہ ہوں

اے دیر و حرم کے مختارو
اے ملک و زباں کے سردارو
سن لو کہ ابھی میں زندہ ہوں

اے تاج بسر میزان بکف
تم عدل و حمایت بھول گئے
کاغذ کی رسیدوں میں لکھ کر
انسان کی قیمت بھول گئے
لکھو کہ ابھی میں زندہ ہوں

سن لو کہ ابھی میں زندہ ہوں

مانا کہ طبیعت بھاری ہے
اور بھوک بدن پر طاری ہے
پانی بھی نہیں شریانوں میں
پر سانس ابھی تک جاری ہے
سنبھلو کہ ابھی میں زندہ ہوں

سن لو کہ ابھی میں زندہ ہوں

اے شاہ سخن فرزانہ قلم
یہ شورش دانم بند کرو
روتے بھی ہو تم پیسوں کے لیے
رہنے دو یہ ماتم بند کرو
بخشو کہ ابھی میں زندہ ہوں

سن لو کہ ابھی میں زندہ ہوں

آئین معیشت کس نے لکھے
آداب سیاست کس نے لکھے
ہے جن میں تمہاری آغائی
وہ باب شریعت کس نے لکھے
لکھو کہ ابھی میں زندہ ہوں

سن لو کہ ابھی میں زندہ ہوں

اے پند گران دین و دھرم
پیغمبر و کعبہ میرے ہیں
مندر بھی مرے بھگوان مرے
گرودوارے کلیسا میرے ہیں
نکلو کہ ابھی میں زندہ ہوں

سن لو کہ ابھی میں زندہ ہوں

کہہ دو جا کر سلطانوں سے
زرداروں سے ایوانوں سے
پیکار تمدّن کے حامی
بے ننگ سیاست دانوں سے
کہہ دو کہ ابھی میں زندہ ہوں

سن لو کہ ابھی میں زندہ ہوں


অনুবাদ: জশুয়া বোধিনেত্র

Poem and Text : Syed Merajuddin

सैयद मेराजुद्दीन कवि और शिक्षक हैं. वह मध्य प्रदेश के आगरा में रहते हैं, और आधारशिला शिक्षा समिति के सह-संस्थापक और सचिव हैं. यह संगठन विस्थापन से जूझते और अब कूनो नेशनल पार्क के बाहरी इलाक़े में रहते आदिवासी व दलित समुदायों के बच्चों के लिए उच्च माध्यमिक विद्यालय चलाता है.

की अन्य स्टोरी Syed Merajuddin
Illustration : Labani Jangi

लाबनी जंगी साल 2020 की पारी फ़ेलो हैं. वह पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले की एक कुशल पेंटर हैं, और उन्होंने इसकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हासिल की है. लाबनी, कोलकाता के 'सेंटर फ़ॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज़' से मज़दूरों के पलायन के मुद्दे पर पीएचडी लिख रही हैं.

की अन्य स्टोरी Labani Jangi
Editor : PARI Desk

पारी डेस्क हमारे संपादकीय कामकाज की धुरी है. यह टीम देश भर में सक्रिय पत्रकारों, शोधकर्ताओं, फ़ोटोग्राफ़रों, फ़िल्म निर्माताओं और अनुवादकों के साथ काम करती है. पारी पर प्रकाशित किए जाने वाले लेख, वीडियो, ऑडियो और शोध रपटों के उत्पादन और प्रकाशन का काम पारी डेस्क ही संभालता है.

की अन्य स्टोरी PARI Desk
Translator : Joshua Bodhinetra

जोशुआ बोधिनेत्र ने कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी से तुलनात्मक साहित्य में एमफ़िल किया है. वह एक कवि, कला-समीक्षक व लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता हैं और पारी के लिए बतौर अनुवादक काम करते हैं.

की अन्य स्टोरी Joshua Bodhinetra