अबकी साल जून के तेसर सुक्कर (शुक्रवार) रहे. लेबर हेल्पलाइन (मजदूर लोग खातिर काम करे वाला) के फोन टनटनाइल.
“का रउआ मदद कर सकिले? हमनी के पइसा ना मिलल ह.”
बांसवाड़ा जिला के कुशलगढ़ में रहे वाला 80 गो मजूर लोग के टोली राजस्थान में पड़ोस के तहसील में साइट पर काम करे गइल रहे. दू महीना में टेलीकॉम फाइबर केबल बिछावे खातिर दू फीट चौड़ा आ छव फीट गहिर खाई खोदे के काम रहे. मजूरी खोदल गइल खाई के प्रति मीटर गहराई के हिसाब से तय कइल गइल.
दू महीना में काम पूरा भइल, त कुल मजूरी मांगल गइल. पहिले त ठिकेदार खराब काम के बहाना कइलक, तनी हिसाब-किताब में फंसइलक. फेर ई कहत टाले लागल, “देता हूं, देता हूं (देवत बानी, देवत बानी).” बाकिर ऊ पइसा ना देलक. एक हफ्ता आउर आपन 7-8 लाख रुपइया बकाया के इंतिजारी तकला के बाद मजूर लोग पुलिस में गइल. पुलिस लेबर हेल्पलाइन ‘आजीविका ब्यूरो’ के फोन करके मदद मांगे के सलाह देलक.
मजूर लोग हेल्पलाइन के फोन कइलक त, “हमनी पूछनी, कवनो प्रमाण बा. ठिकेदार के नाम, फोन नंबर, चाहे हाजिरी रजिस्टर के कवनो फोटो मिल सकत बा,” जिला मुख्यालय बांसवाड़ा के एगो सामाजिक कार्यकर्ता कमलेश शर्मा बतावत बाड़न.
भाग नीमन रहे, नयका उमिर के मोबाइल-प्रेमी मजूर लोग के फोन में ई सभ मिल गइल. मामला दरज करे खातिर ऊ लोग काम के जगह के कुछ फोटो भी भेज देलक.
विडंबना बा कि मजूर लोग के अच्छा से पता रहे जवन गड्ढ़ा खोनल गइल बा, ऊ देस के सबले बड़ दूरसंचार कंपनी में से एगो खातिर रहे. अइसन कंपनी जे ‘लोग के जोड़े’ के दावा करेला.
श्रम से जुड़ल मुद्दा पर काम करे वाला एगो गैर-लाभकारी संस्था, ‘आजीविका ब्यूरो’ के प्रोजेक्ट मैनेजर कमलेश आउर दोसर लोग मिलके केस दरज करे में मजूर लोग के मदद कइलक. एह संस्था तक पहुंचे खातिर आजीविका हेल्पाइन नंबर- 1800 1800 999 आउर ब्यूरो के अधिकारी लोग के फोन नंबर दूनो उपलब्ध करावल जाला.
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बांसवाड़ा के ई मजूर लोग सहित इहंवा से हर साल लाखन के तादाद में मजूर लोग काम खातिर दोसर राज्य में पलायन करेला. जिला के चुरादा गांव के सरपंच जोगा पिट्टा कहेलन, “कुशलगढ़ में बहुते प्रवासी लोग बा. सिरिफ खेती करके हमनी के गुजारा ना चले.”
खेत के छोट-छोट जोत, खेत पटावे खातिर पानी के कमी आ रोजगार के अभाव आउर एह सभ के ऊपर गरीबी चलते भील आदिवासी खातिर इहंवा के धरती पलायन के गढ़ बन गइल बा. इहंवा 90 प्रतिशत आबादी भील आदिवासी के बा. इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट वर्किंग पेपर के मुताबिक सूखा, बाढ़ आउर गरम थेपड़ा जइसन जलवायु बदले के चरम स्थिति चलते प्रवास में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रहल बा.
कुशलगढ़ के एगो व्यस्त बस स्टैंड पर मोटा-मोटी 40 सरकारी बस एक बेरा में 50-100 लोग के लेके जाला. एकरा अलावे लमसम एतने प्राइवेटो बस बा. सूरत के टिकट 500 रुपइया के बा आउर कंडक्टर कहेला लरिकन सभ के टिकट ना लागे.
सुरेश मैदा बस में जगह छेके खातिर हाली-हाली पहुंचलन. संगे घरवाली आउर तीन ठो छोट लरिकन सभ भी सूरत जाए वाला बस में बइठल. सामान चढ़ावे खातिर ऊ तनी देर ला उतरलन- पांच किलो के आटा वाला एगो बड़ बोरा, तनी-मनी बरतन आउर कपड़ा के मोटरी बस के पाछू सामान रखे वाला जगह पर चढ़इलन आउर फेर बस में चढ़ गइलन.
“हमरा रोज के कोई 350 (रुपइया) मजूरी मिलेला,” एगो भील आदिवासी दिहाड़ी मजूर पारी के बतइलन. उनकर औरत के 250-300 रुपइया मिलेला. सुरेश के उम्मीद बा ऊ लोग एक चाहे दू महीना काम करी. घरे आई त मोटा-मोटी 10 दिन रही आउर फेर निकल जाई. 28 बरिस के सुरेश कहेले, “दस बरिस से जादे बखत से इहे सब चल रहल बा.” सुरेश जइसन प्रवासी लोग जादे करके होली, देवाली आउर रक्षा बंधन जइसन बड़ त्योहार चाहे लगन में घर लउटेला.
राजस्थान एगो शुद्ध पलायन वाला राज्य बा. इहंवा काम खातिर बाहिर से आवे वाला लोग के बनिस्पत काम खातिर बाहिर जाए वाला लोग के गिनती जादे बा. पलायन के मामला में ई सिरिफ उत्तर प्रदेस आउर बिहार से पाछू बा. कुशलगढ़ तहसील कार्यालय के एगो अधिकारी, वी. एस राठौर कहेलन, “इहंवा खेती कमाई के एकमात्र साधन त बड़ले बा, बाकिर खेतियो साल भर में बस एक बेरा, बरखा के बादे कइल जा सकेला.”सभे मजदूर लोग कायम वाला काम के आस में रहेला. एह में पूरा काम एके ठिकेदार के निगरानी में होखेला. रोकड़ी, चाहे देहाड़ी (दिहाड़ी)- रोज भोरे मजूर मंडी में ठाड़ होखे, के बनिस्पत एकरा में जादे स्थिरता बा.
जोगाजी आपन कुल लरिकन के पढ़इलन-लिखइलन. बाकिर एकरा बावजूद “यहां बेरोजगारी ज्यादा है. पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी नौकरी नहीं (इहंवा बेरोजगारी जादे बा. पढ़ल-लिखल लोगवा के भी नौकरी नइखे मिलत).”
पलायने अंतिम सहारा बा.
राजस्थान एगो शुद्ध पलायन वाला राज्य बा- इहंवा प्रवासी के रूप में आवे वाला लोग के बनिस्पत जाए वाला लोग जादे बा. पलायन के मामला में सिरिफ उत्तर प्रदेस आ बिहारे एकरा से आगू बा
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मारिया पारू जब निकलेली, त मिट्टी के तावा (माटी के तवा) संगे ले जाली. एकरा बिना उनकर समान बांधे के काम पूरा ना होखे. माटी के तवा पर मकई के रोटी मस्त बनेला. उनकरा हिसाब से लकड़ी के चूल्हा पर जब माटी के तवा पर रोटी बनावल जाला, त ई जरे ना, गते-गते पाकेला. ऊ हमरा बना के देखइबो कइली.
मारिया आउर उनकर घरवाला पारू दामोर जइसन लाखन भील आदिवासी लोग राजस्थान के बांसवाड़ा जिला से दिहाड़ी खातिर पड़ोसी राज्य सहित सूरत, अहमदाबाद, वापी आउर गुजरात के दोसर शहरन में जाला. पारू कहेली, “मनरेगा में हाली काम ना मिले आउर मिलबो करेला त ओकरा से खरचा ना पूरा पड़े.” ऊ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के बात करत रहस. एह योजना में साल में 100 दिन काम के गारंटी मिलेला.
तीस बरिस के मारिया अपना संगे 10-15 किलो मकई के आटा भी ले जाली. ऊ कहेली, “हमनी के इहे खाए में नीमन लागेला.” उनकर परिवार साल में नौ महीना घर से दूर रहेला आउर इहे खाएल पसंद करेला. डुंगरा छोटा में आपन घर से दूर बाहिर आपन गांव-जंवार के खाना सुकून देवेला.
दूनो प्राणी के तीन से 12 बरिस के बीच छव ठो लरिका लोग बा. गांवे ओह लोग लगे दू एकड़ जमीनो बा. एकर पर ऊ लोग अपना खाए खातिर गेहूं, बूंट आउर मकई उगावेला. “काम करे खातिर घर छोड़ले बिना गुजारा नइखे. घरे माई-बाऊजी के पइसो भेजे के होखेला. कबो खेत में पानी पटावे के खरचा, कबो माल-मवेसी के चारा आउर घर पर खाए के खरचा...,” पारू पूरा हिसाब देवे लगलन. “एहि से हमनी के कमाए खातिर बाहिर जाहीं पड़ेला.”
पहिल बेर ऊ घर से निकललन, त आठ बरिस के रहस. परिवार के माथा पर अस्पताल के 80,000 रुपइया के करजा रहे. बड़ भाई-बहिन संगे उहो करजा सधावे खातिर कमाए निकल गइलन. उनका इयाद बा, “जाड़ा के दिन रहे. हमनी अहमदाबाद चल गइल रहीं. उहंवा रोज के 60 रुपइया मिलत रहे.” सभे भाई-बहिन लोग मिलके उहंवा चार महीना कमइलक आउर करजा सधा देलक. ऊ इहो बतइलन, “हमरा अच्छा लागल हम कुछ मदद कर पइनी.” दू महीना बाद ऊ फेरु गइलन. तीस पार कर चुकल पारू के प्रवासी जीवन के 25 बरिस पूरा हो चुकल बा.
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प्रवासी लोग सोचेला जदि सोना के खान मिल जाव, त एकरा से करजा चुक जाई, लरिकन सभ के स्कूल के खरचा पूरा हो जाई आउर पेट भर अनाजो मिली. आजीविका के सरकारी लेबर हेल्पलाइन में बकाया मजूरी ना मिले के समस्या से निपटे में कानूनी मदद मांगे खातिर हर महीना कोई 5000 कॉल आवेला.
“मजदूरी तय करे घरिया सभ बात मुंह जबानिए होखेला, कवनो लिखा-पढ़ी ना कइल जाए. मजूर लोग एक ठिकेदार से दोसर ठिकेदार लगे भेजल जाला,” कमलेश कहत बाड़न. उनकर अनुमान बा बांसवाड़ा जिला से बाहिर जाके काम करे वाला प्रवासी लोग के, मजूरी देवे में टालमटोल करे चलते, करोड़ों रुपइया के चूना लाग गइल होई.
“ओह लोग के सही-सही पता ना चले असली ठिकेदार के बा, ऊ लोग आखिर केकरा खातिर काम कर रहल बा. एहि से बकाया के रकम के हासिल कइल लमहर आउर ऊबाऊ प्रक्रिया हो जाला.”
20 जून, 2024 के 45 बरिस के भील आदिवासी राजेश दामोर आउर दू ठो आउर मजूर लोग बांसवाड़ा के उनकर कार्यालय में मदद मांगे आइल. गरमी अपना चरम पर रहे. बाकिर मजूर लोग गरमी चलते परेसान आउर बेचैन ना रहे. ठिकेदार के सामूहिक रूप से 226,000 रुपइया के बकाया मजूरी चुकाए में आनाकानी करे से ऊ लोग हलकान रहे. शिकायत करे खातिर जब कुशलगढ़ तहसील के पाटन पुलिस स्टेसन आइल, त पुलिस ओह लोग के इलाका के प्रवासी श्रमिकन खातिर बनल संसाधन केंद्र, आजीविका के श्रमिक सहायता आउर समाधान केंद्र भेज देलक.
मामला ई रहे कि अप्रिल में राजेश आउर सुखवाड़ा पंचायत के 55 मजूर लोग 600 किमी दूर गुजरात के मोरबी खातिर रवाना भइल. ऊ लोग उहंवा एगो टाइल फैक्टरी में निर्माण स्थल पर मजूरी आउर चिनाई के काम खातिर आइल रहे. दस ठो कुशल मजूर के रूप में ओह लोग के रोज के 700 रुपइया देवे आउर बाकी लोग के 400 रुपइया रोज के तय भइल.
एक महीना काम कइला के बाद, “हमनी ठिकेदार के बकाया मजूरी देवे के कहनी त ऊ टाले लगलन,” राजेश पारी के फोन पर बतइलन. राजेश भीली, वागड़ी, मेवाड़ी, हिंदी आ गुजराती पांच ठो भाषा जानेलन. एहि से बातचीत में ऊ सबले आगू रहस. असल में मजूर लोग अक्सरहा भाषा के दिक्कत चलते ठिकेदार से सीधे बात ना कर पावे. केतना बेरा मजूर लोग आपन बकाया मांगे जाला, त ठिकेदार लोग मारपीट पर उतर आवेला.
सभे 56 मजूर लोग के आपन लंबा-चौड़ा बकाया खातिर हफ्तन इंतिजारी ताके पड़ल. घर में खाए-पिए के लाला पड़ गइल. अंटी में जेतना बचल-खुचल पइसा रहे, हाट से सामान कीने में उड़ गइल.
“ठिकेदार टालत गइल- पहिले 20 मई के डेट देलक, फेरु 24 के, 4 जून...” राजेश इयाद करत बाड़न. “ओकरा से पूछनी ‘हमनी खाएम का? घर से एतना दूर बानी.’ आखिर में पछिला 10 दिन से काम बंद कर देनी. लागल एह से ठिकेदार पर दबाव पड़ी.” ओह लोग के 20 जून के पइसा देवे के अंतिम डेट देवल गइल.
शंका में सभे के मन डोलत रहे. जादे दिन रुक ना सकल, त 56 लोग के टोली बस पकड़ के 9 जून के कुशलगढ़, घर आ गइल. राजेश जब 20 जून के ठिकेदार के फोन कइलन, “ऊ उलटा-सीधा बोले, मोल-मोलई करे आउर गारी देवे लागल.” राजेश आ दोसर मजूर लोग के मजबूरन घर लगे थाना जाए के पड़ल.
राजेश के 10 बीघा जमीन बा. एकरा पर ऊ लोग सोयाबीन, कपास आउर अपना खाए खातिर गेहूं उगावेला. उनकर चारों लरिका लोग पढ़ाई करेला. केहू स्कूल में बा, त केहू कॉलेज में. अबकी गरमी ऊ लोग के माई-बाप संगे मजूरी में लागे के पड़ल. “गरमी छुट्टी के दिन रहे. हम कहनी चल सभे लोग मिल के काम कइल जाव, कुछ पइसा कमाइल जाव.” उनका उम्मीद बा कि अब परिवार कुछ पइसा के मुंह देख सकी. काहेकि ठिकेदार के लेबर कोर्ट (श्रम न्यायालय) में केस करे के चेतावनी देवल गइल बा.
लेबर कोर्ट में मामला ले जाए के बात से ठिकेदार पर आपन वादा पूरा करे के दबाव पड़ेला. बाकिर उहंवा तक पहुंचे खातिर, मामला दरज करे में मजूर लोग के मदद के जरूरत पड़ेला. पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के अलीराजपुर में सड़कन पर काम करे खातिर एह जिला से गइल 12 मजूर लोग के टोली से अइसहीं तीन महीना काम करवइला के बाद ठिकेदार पइसा देवे में आनाकानी करे लागल. ऊ खराब काम के ताना देलक आउर मजूरी के 4-5 लाख रुपइया देवे से मना कर देलक.
“फोन आइल कि हमनी मध्य प्रदेस में फंसल बानी आउर पूरा मजूरी ना मिलल ह,” टीना गरासिया के अक्सरहा आपन फोन पर अइसन कॉल आवत रहेला. “हमनी के नंबर मजूर लोग लगे रहेला.” बांसवाड़ा जिला में आजीविका ब्यूरो के प्रमुख बतावत बाड़ी.
अबकी मजूर लोग काम के जगहा के जानकारी, हाजिरी रजिस्टर के फोटो, ठिकेदार के नाम आउर मोबाइल नंबर सभे चीज लेके आइल रहे, ताकि मामला दरज कइल जा सके.
छव महीना बाद ठिकेदार के दू किस्त में पइसा देवे के पड़ल. “ओकरा इहंवा (कुशलगढ़) आके हमनी के मजूरी चुकता करे पड़ल,” एगो भुक्तभोगी मजूर बतइलन. उनका मजूरी त मिलल, बाकिर देरी खातिर हरजाना ना मिलल.
कमलेश शर्मा कहेलन, “पहिले बातचीत से मसला सुलझावे के कोसिस कइल जाला. बाकिर ई तबे संभव बा जब ठिकेदार के बारे में सभ तरह के जानकारी उपलब्ध होखे.”
कपड़ा करखाना में काम करे खातिर सूरत आइल 25 ठो मजूर लगे कवनो सबूत ना रहे. टीना कहेली, “ओह लोग के एक ठिकेदार से दोसर ठिकेदार लगे भेजल गइल रहे. एह चलते ठिकेदार के पहचाने खातिर कवनो फोन नंबर, चाहे नाम ना रहे. एक जइसन देखाई देवे वाला कारखाना के समंदर के बीच ऊ लोग आपन कारखानो पहचान ना पाइल.”
हैरान-परेशान आउर 6 लाख के आपन कुल मजूरी से वंचित सभे मजूर बांसवाड़ा के कुशलगढ़ आउर सज्जनगढ़ गांव लउट आइल.
सामाजिक कार्यकर्ता कमलेश एह तरह के मामला में कानूनी शिक्षा के बहुते जरूरत महसूस करेलन. बांसवाड़ा जिला राज्य के सीमा पर स्थित बा. इहंवा सबले जादे पलायन होखेला. कुशलगढ़, सज्जनगढ़, अंबापाड़ा, घाटोल आ गंगर तलाई के अस्सी प्रतिशत परिवार में कमो ना, त एगो सदस्य जरूर प्रवासी होई.
कमलेश के उम्मीद बा चूंकि “नयका पीढ़ी लगे फोन बा, ऊ लोग नंबर रख सकत बा, फोटो ले सकत बा. एह से भविष्य में कसूरवार ठिकेदार आसानी से पकड़ल जा सकी.”
उद्योग-धंधा से जुड़ल विवाद निपटावे खातिर केंद्र सरकार 17 सितंबर, 2020 के पूरा देस में आपन समाधान पोर्टल लॉन्च कइले रहे. सन् 2022 में श्रमिक लोग के मामला दर्ज करे के अनुमति देवे खातिर एकरा में बदलाव भी कइल गइल. बाकिर स्पष्ट विकल्प के तौर पर मौजूद होखे के बावजूद बांसवाड़ा में एकर कवनो कार्यालय नइखे.
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मजूरी तय करे में मेहरारू मजूर लोग के कवनो दखल ना होखे. ओह लोग लगे आपन फोनो ना रहेल. जे काम भेंटाला, ऊ परिचित चाहे परिवार के मरद लोग के जरिए भेंटाला. कांग्रेस के अशोक गहलोत वाला राज्य के पछिलका सरकार इहंवा के मेहरारू लोग के 13 करोड़ से जादे फोन मुफ्त में बांटे के कार्यक्रम सुरु कइले रहे. गहलोत सरकार जबले सत्ता में रहल, कोई 25 लाख फोन गरीब मेहरारू लोग के बांटल गइल. पहिलका चरण में फोन जादे करके प्रवासी परिवार से आवे वाला विधवा आउर 12वां में पढ़े वाला लइकी लोग के देवल गइल.
भारतीय जनता पार्टी के भजन लाल शर्मा के आवे वाला सरकार “योजन के लाभ के जांच भइला ले” एह कार्यक्रम पर रोक लगा देलक. पद के शपथ लेला के बाद के मुस्किल से एके महीना बाद लेवल गइल फैसला में से इहो एगो रहे. स्थानीय लोग के एह योजना के फेर चालू होखे के उम्मीद कम बा.
आपन कमाई पर आपन अख्तियार ना रहला चलते जादे करके मेहरारू लोग लिंग चाहे यौन शोषण, आउर बियाह के बाद मरद के छोड़ के चल जाए जइसन समस्या झेले के पड़ेला. पढ़ीं: बांसवाड़ा: बियाह के आड़ में तस्करी के खेला
“हम गेहूं साफ कइनी. ऊ तनिका मकई के आटा संगे ई 5-6 किलो ले गइलन. ऊ सामान उठइलन आउर चल गइलन,” संगीता इयाद करत बाड़ी. ऊ भील आदिवासी बाड़ी आउर आपन माई-बाऊजी संगे कुशलगढ़ ब्लॉक के चुरादा में मायका में रहेली. बियाह के बाद जब घरवाला कमाए खातिर सूरत जाए लगलन त उहो उनकरा संगे गइल रहस.
ऊ इयाद करत बाड़ी, “हम उहंवा निर्माण के काम में मदद करत रहीं. हमर कमावल पइसा हमार मरद के हाथ में दे देहल जात रहे. हमरा ई नीमन ना लागत रहे.” जब ऊ लोग के सात, पांच आउर चार बरिस के तीन ठो लइका हो गइल, त ऊ काम पर गइल बंद कर देली. “हम घर आउर लरिका सभ के संभारे लगनी.”
साल से जादे हो गइल, ऊ मरद के मुंह नइखी देखले, आउर ना उनका भरण-पोषण खातिर एको पइसा मिलल. “हम माई-बाऊजी लगे आ गइनी काहेकि लरिका लोग के खियावे खातिर उहंवा कुछुओ ना रहे...”
आखिर में ऊ एह बरिस (2024) जनवरी में कुशलगढ़ के पुलिस स्टेशन शिकायत लेके गइली. राजस्थान देस भर में मेहरारू लोग संगे होखे वाला क्रूरता (पति चाहे पुरुख रिस्तेदार के हाथन) के मामला में तेसर नंबर पर आवेला. नेशनल क्राइम्स रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2020 के रिपोर्ट में अइसन लिखल बा.
कुशलगढ़ थाना में अधिकारी लोग मानेला कि मेहरारू लोग संगे ज्यादती के मामला बढ़ रहल बा. बाकिर ऊ लोग इहो मानेला कि जादेतर मामला ओह लोग लगे ना पहुंचे. गांव के मरद लोग के टोली, बंजारिया एह तरह के मामला में फैसला करेला. ऊ लोग बिना पुलिस लगे गइले मामला सलटावल पसंद करेला. उहंवा रहे वाला एगो आदमी कहलक, “बंजारिया त दुनो ओरी से पइसा खाला. न्याय त आंख के धोखा बा, मेहरारू लोग के कबो आपन हक ना मिले.”
संगीता के दुख बढ़ल जा रहल बा. रिस्तेदार लोग बतावत बा कि उनकर घरवाला कवनो दोसरा मेहरारू संगे बा आउर ओकरा से बियाह करे के चाहत बा. “हमरा केतना खराब लागेला कि मरद हमार बच्चा सभ के दुख देलक, एक बरिस से ओह लोग से भेंट करे ना आइल. बच्चा सभ हमरा से पूछेला, ‘का ऊ मर गइलन?’ हमार बड़ लइकी आपन बाऊजी के गाली देवेली आउर कहेली, ‘माई पुलिस ओकरा पकड़ लीही त तुहो ओकरा खूब पीटिह!’” ऊ ई बात कहेली, त उनकर मुंह पर हंसी देखाई देवेला.
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शनिचर के दुपहरिया खेरपुर में एगो उजाड़ पंचायत के कार्यालय में 27 बरिस के सामाजिक कार्यकर्ता मेनका दामोर छोट लइकी लोग से बतियावत बाड़ी. लइका लोग कुशलगढ़ ब्लॉक के पांच ठो पंचायत से आइल बा.
“तू का सपना देखेलू?” ऊ चारों ओरी घेरा बना के बइठल लइकी लोग सभ से पूछे लगली. सभे लइकी लोग बेर-बेर पलायन करे वाला मजूर लोग के बच्चा बा. “ऊ लोग कहेला जदि हमनी स्कूल गइबो कइनी, त आखिर में त हमनी के इहंवा से जाहीं (पलायन करहीं) के पड़ी,” कन्या लोग खातिर किशोरी श्रमिक कार्यक्रम के प्रबंधन करे वाली मेनका कहली.
ऊ चाहेली लइकी लोग पलायन के पार आपन भविष्य देखो. कबो वागड़ी, त कबो हिंदी में बोलत ऊ अलग अलग काम, पेशा से जुड़ल लोग के आईकार्ड देखावत बाड़ी. जइसे कैमरामैन, ड्रेस डिजाइनर, स्केटबोर्डर, मास्टर, इंजीनियर, वेटलिफ्टर इत्यादि. लइकी लोग के मुंह चमके लागल जब ऊ बतइली, “तू लोग कुछो बन सकत बाड़ू, बस ओकरा खातिर मिहनत करे के होई.”
“पलायने अंतिम विकल्प नइखे.”
अनुवाद: स्वर्ण कांता