मुदुमलाई टाइगर रिजर्व में आंख त स्थिर रहेला, बाकिर कान के चैन नइखे. चिरई-चुरुंग आ जनावर सभ आपस में अइसे बतियावेला, रउआ जादे समझ में ना आई. एहि सभ के बीच तमिलनाडु के नीलगिरी पर्वत पर रहे वाला अलग-अलग जनजाति के लोग के बोली-बाणी भी गूंजत रहेला

नलैयावोदुतु ( का समाचार बा ) ? बेट्टाकुरुंबा लोग पूछेला. त इरुलर लोग कहेला , संधाकितैया ?”

हाल समाचार जाने खातिर सवाल, बाकिर दोसर अंदाज में.

Left: A Hoopoe bird after gathering some food.
PHOTO • K. Ravikumar
Right: After a dry spell in the forests, there is no grass for deer to graze
PHOTO • K. Ravikumar

बावां : चोंच में तनी-मनी दाना धइले एगो हूपू चिरई. दहिना : बरखा ना होखे से जंगल में हरिन के खाए खातिर तनिको हरियर घास नइखे लउकत

पस्चिमी घाट के दक्खिनी इलाका के जीव-जंतु आउर लोग के आवाज कहूं दोसर जगहा के गाड़ी आ मसीन के चिल्ल-पों से एकदम अलग लागेला.  इहंवा के आवाज सुनाई देवेला, त लागेला आदमी घर पहुंच गइल.

हम पोक्कापुरम (आधिकारिक तौर पर बोक्कापुरम) गांव में मुदुमलाई टाइगर रिजर्व में कुरुंबर पाड़ी नाम के एगो छोट गली में रहिला. फरवरी के आखिर से मार्च के सुरु होखे के बीच ई शांत इलाका तूंगा नगरम (कबो ना सुते वाला शहर) जइसन चहल-पहल वाला शहर बन जाला. ई नाम मदुरै जइसन बड़ शहर खातिर भी इस्तेमाल होखेला. देवी पोक्कापुरम मरियम्मन के नाम से होखे वाला मंदिर उत्सव चलते इहंवा बहुते हलचल रहेला. छव दिन ले ई इलाका में खूब भीड़-भाड़ रहेला, मस्ती, आउर गीत-संगीत गूंजत रहेला. तबो जब हम आपन ऊर (गांव) के बारे में सोचिला, ई कहानी के एगो अंश भर लागेला.

आज के कहानी मुदुमलाई टाइगर रिजर्व के नइखे, हमार गांवो के नइखे. आज के कहानी हमार जिनगी बनावे वाला एगो किरदार के बा. ई कहानी अइसन मेहरारू के बा जे घरवाला के त्याग देला बादो अकेले आपन पांच लरिकन के पललक-पोसलक. आज के कहानी हमार माई (अम्मा) के बारे में बा.

Left: Amma stops to look up at the blue sky in the forest. She was collecting cow dung a few seconds before this.
PHOTO • K. Ravikumar
Right: Bokkapuram is green after the monsoons, while the hills take on a blue hue
PHOTO • K. Ravikumar

बावां : जंगल में तनी देर ठहर के माई बुल्लू आसमान निहारत बाड़ी. दुइए घड़ी पहिले ऊ गोइंठा चुने में लागल रहस. दहिना : मानसून के बाद बोक्कापुरम हरियर आउर पहाड़ी सभ नीला हो जाला

*****

दुनिया हमरा के. रविकुमार नाम से जानेला. बाकिर आपन लोग हमरा मारन पुकारेला. हमार समाज भी अपना के पेट्टाकुरुंबर कहेला, अइसे कागज पर ई बेट्टाकुरुंबा नाम से दरज बा.

आज के कहानी के नायिका, हमार माई के दुनिया आउर समाज ‘मेती’ पुकारेला. हमार अप्पा (बाऊजी) कृष्णा के समाज के लोग केतन के नाम से जानेला. हमनी पांच भाई-बहिन बानी: बड़की दीदी चित्रा (हमनी के समाज में किरकाली), बड़का भइया, रविचंद्रन (मदन), मंझली दीदी, ससिकला (केतती), आउर हमार छोट बहिन, कुमारी (किनमारी). भइया आ दीदी के बियाह हो गइल बा. ऊ लोग आपन परिवार संगे पालावाड़ी में रहेला. पालावाड़ी तमिलनाडु के कडलूर जिला में पड़े वाला एगो गांव बा.

लरिकाई में अम्मा, चाहे अप्पा लोग हमरा सरकारी बालसेवा केंद्र, आंगनवाड़ी ले जात रहे. उहंवा हंसी, खुसी, गोस्सा, दुख जइसन तरह-तरह के भावना से हमार भेंट भइल. माई-बाऊजी लोग घरे ले जाए खातिर सांझ के 3 बजे हमरा लेवे आ जात रहे.

दारू में आपन जिनगी बरबाद करे से पहिले, अप्पा बहुते स्नेही इंसान रहस. पिए के लत लागल त मारपीट करे लगलन, घर के प्रति लापरवाह होखत चल गइलन. माई कहस, “गलत संगत उनका बरबाद कर देलक.”

Left: My amma, known by everyone as Methi.
PHOTO • K. Ravikumar
Right: Amma is seated outside our home with my sister Kumari and my niece, Ramya
PHOTO • K. Ravikumar

बावां : हमार माई के सभे कोई मेती नाम से जानेला. दहिना : माई बहिन कुमारी आउर भगिनी रमया संगे दुआरी पर बइठल बाड़ी

एक दिन अप्पा दारू पी के घर अइलन आउर अम्मा पर चिल्लाए लगलन. घर में कलेस (क्लेश) के ई सुरुआत रहे. ऊ माई संगे मारोपीट कइलन. हमार नाना-नानी आउर मामा-मौसी लोग- जे ओह घरिया साथहीं रहत रहे- के बहुते उलटा-सीधा कहे लगलन. बात सुने के मजबूरी के बादो ऊ लोग उनका अनदेखा करे के कोसिस कइलक. एह तरह के झगड़ा-झंझट रोज होखे लागल.

हमरा साफ-साफ इयाद बा. ओह घरिया हम दोसरा में पढ़त रहीं. रोज दिन जेका अप्पा पीके अइलन आउर गोस्सा में माई पर हाथ उठा देलन. ओकरा बाद ऊ हमनियो भाई-बहिन के ना छोड़लन. सभे के सामान आ कपड़ा बाहिर गली में फेंक देलन. हमनी के घर से निकल जाए के कहलन. ठंडा में जइसे जनावर के बच्चा सभ आपन माई के छाती से चिपक जाला, वइसहीं हमनी के ऊ रात गली में माई के छाती से चिपकल बीतल.

आदिवासी सरकारी संस्थान जीटीआर मिडिल स्कूल, जहंवा हमनी गइनी, में रहे आउर खाए के सुविधा रहे. एहि से हमार बड़ भाई आउर बहिन लोग उहंई रहे के फैसला कइलक. उहो का दिन रहे. आंख से दिन-रात लोर बहे. हमनी आपन घर में रह गइनी, आउर अप्पा उहंवा से चल गइलन.

हमनी के जान सांसत में रहत रहे, कब झगड़ा हो जाव कुछो पता ना चले. एक रात नसा में धुत्त अप्पा के गोस्सा एतना बढ़ल ऊ मामा से हाथापाई करे लगलन. छूरा से मामा के हाथ काटे उठलन. गनीमत रहे छूरी भोथर रहे एह से उनका कवनो गंभीर चोट ना लागल. घर के बाकी लोग बीच-बचाव कइलक आउर अप्पा के रोकलक. एह झगड़ा में हमरा छोट बहिन, जेकरा अम्मा पकड़ले रहस, गिर गइली आउर उनकर माथा फूट गइल. हम उहंई ठाड़ रहीं, लाचार. माथा सुन्न हो गइल रहे, कुछुओ समझ ना आवत रहे का हो रहल बा.

अगिला दिन मामा आउर अप्पा के खून के करियर-करियर धब्बा से आंगन पटल रहे. अधिया रात के बाऊजी डगमगात घरे अइलन आउर हमरा आ हमार बहिन के दादाजी के ओह पुस्तैनी घर से घसीट के बाहर खेत में आपन छोट कमरा में ले जाए लगलन. कुछ महीना बाद, अच्छा भइल माई-बाऊजी लोग अलग हो गइल.

Left: My mother cutting dry wood with an axe. This is used as firewood for cooking.
PHOTO • K. Ravikumar
Right : The soft glow of the kerosene lamp helps my sister Kumari and my niece Ramya study, while our amma makes rice
PHOTO • K. Ravikumar

बावां : कुल्हाड़ी से सूखल लकड़ी काटत माई. एकरे चूल्हा में जरा के खाना पकावल जाई. दहिना : माटी के तेल से जरे वाला ढिबरी के हलका रोसनी में बहिन कुमारी आउर भगिनी रमया पढ़त आउर माई सूप में चाउर बीनत बाड़ी

गुडलूर फैमिली कोर्ट में हमनी पांचों भाई-बहिन माइए संगे रहे के इच्छा जतइनी. एकरा बाद ननिहाल में कुछ दिन आनंद में बीतल. नाना-नानी के घर हमनिए के गली में कुछ दूर पर पड़त रहे.

बाकिर ई आनंद जादे दिन ना टिकल. एतना बड़ा परिवार के पेट भरल मुस्किल होखत रहे. नाना-नानी के रासन में जे 40 किलो अनाज मिले ऊ हमनी खातिर पूरा ना पड़े. हमनी कहीं भुखासल ना रह जाईं, एह खातिर नानाजी खालिए पेट सुत जास. केतना बेरा नानाजी लाचारी में, नाती-नतिनी के पेट भरे खातिर मंदिर से प्रसादी ले आवस. अइसन हालत देख के अम्मा काम खातिर घर से निकले के फैसला कइली.

*****

माई के लरिकाईं में परिवार के नाजुक आर्थिक स्थिति चलते तेसरा कक्षा में स्कूल छोड़े के पड़ल रहे. उऩकर बचपन आपन छोट भाई-बहिन के देखभाल करत गुजरल. अठरा (18) के भइली त बाऊजी से लगन हो गइल.

अप्पा पहिले पोक्कापुरम से 10 किमी दूर नीलगिरी के गुडलूर ब्लॉक में पड़े वाला सिंगारा गांव स्थित बड़ कॉफी स्टेट के कैंटीन में काम करत रहस. ऊ इहंवा कैंटीन खातिर जलावन के लड़की इक्ट्ठा करस.

इहंवा हमनी के इलाका के हर घर से केहू ना केहू काम कर चुकल रहे. बियाह के बाद माई हमनी के देखभाल खातिर घरहीं रहे लगली. बाद में अलग भइला पर ऊ सिंगारा कॉफी स्टेट में 150 रुपइया पर दिहाड़ी पर काम करे लगली.

Left: After quitting her work in the coffee estate, amma started working in her friends' vegetable garden.
PHOTO • K. Ravikumar
Right: Here, amma can be seen picking gourds
PHOTO • K. Ravikumar

बावां : कॉफी एस्टेट के काम छोड़ला के बाद अम्मा आपन सहेली के तरकारी के खेत में काम करे लगली. दहिना : इहंवा माई के लउकी तुड़त देखल जा सकेला

रोज भोरे ऊ 7 बजे मजूरी करे निकल जास. घाम होखे, बरखा पड़त होखे उनकर गोड़ ना रुकत रहे. उनकरा संगे काम करे वाला मजूर कहत रहे, ”ऊ दुपहरिया में खाहूं घरिया (लंच ब्रेक) कबो ना बइठस.” एह कमाई से ऊ कोई आठ बरिस ले घर के खरचा चलइली. रात के 7.30 बजे थक-हार के लउटस. लुगा (साड़ी) पूरा भीजल रहत रहे, देह कांपत रहत रहे. देह ढके खातिर खाली एगो गील गमछी लपेटले रहत रहस. एह तरह के बरखा के दिन में हमनी के छतो जगह-जगह से चूए लागे. माई के धउड़-धउड़ के एह कोना से ओह कोना बरतन रखे के पड़े.

हम अक्सरहा अलाव जरावे में उनकर मदद करीं. आउर फेरु पूरा परिवार आग लगे बइठे. रात के 11 बजे ले हमनी के बतकही चलत रहत रहे.

कवनो दिन रात में बिछौना में रहीं, त सुते से पहिले ऊ हमनी से बतियावस. केतना बेरा आपन परेसानी हमनी के बतावस. कबो पहिलका दिन इयाद करके रोवे लागस. हमनियो उनकर बात सुनके रोवे लागीं, त ऊ फौरन कवनो मजाकिया बात कहके हमनी के हंसा देस. एह संसार में अइसन कवन महतारी होई जे आपन लरिकन के रोवत देख सकी?

Before entering the forest, amma likes to stand quietly for a few moments to observe everything around her
PHOTO • K. Ravikumar

जंगल में घुसे से पहिले माई तनी ठहर के चुपचाप चारों ओरी निहारेली

आखिर में हमार नाम मसिनागुड़ी के श्री शांति विजया हाईस्कूल में लिखा गइल. स्कूल माई के मालिक के रहे. इहंवा मजूर के लरिका सभ पढ़े. हमरा ऊ स्कूल जेल जइसन लागत रहे. केतनो मिन्नत करीं, माई हमरा उहंवा जाए पर जोर देवत रहली. जिद करीं, त पिटाइयो जाईं. धीरे-धीरे हमनी नाना-नानी के घर से आपन दीदी चित्रा के घर चल गइनी. ई दू कमरा वाला छोट झोंपड़ी रहे. छोट बहिन कुमारी के पढ़ाई जीटीआर मिड्ल स्कूल में जारी रहल.

हमार बहिन ससिकला जब दसमां के परीक्षा में घेरा गइली, त ऊ घर के काम-धंधा संभारे खातिर स्कूल छोड़ देली. माई के बहुते राहत मिलल. एक बरिस बाद ससिकला के तिरुपुर टेक्स्टाइल कंपनी में काम मिल गइल. ऊ छुट्टी में साल में एक, चाहे दू बेर घरे आवस. उनकर 6,000 रुपइया के तनखा से हमनी के पांच बरिस घर चलल. हम माई संगे उनका से हर तीन महीना पर भेंट करे चल जाईं. ऊ हमनी के आपन बचावल सभे पइसा दे देस. बहिन के काम सुरु कइला के एक बरिस बाद, माई कॉफी स्टेट के काम छोड़ देली. उनकर समय घर पर हमार दीदी चित्रा, उनकर लरिकन आउर घर के देखभाल आ इंतजाम-बात में बीते लागल.

हम श्री शांति वियजा हाईस्कूल से दसमां पास कइनी आउर आगू के पढ़ाई खातिर कोटागिरी सरकारी बोर्डिंग स्कूल चल गइनी. माई हमार पढ़ाई के खरचा उठावे खातिर गोइंठा (सूखल गोबर) बेचे लगली. ऊ पूरा प्रयास कइली हमरा जिनगी में आगू जाए के पूरा अवसर मिले. चाहे एकरा खातिर उनका केतनो परिश्रम करे के पड़े.

अप्पा गइलन त हमनी के घर तबाह कर देलन, बिजली कटवा देलन. बिना बिजली हमनी माटी के तेल (किरासन तेल) से जरे वाला ढिबरी में पढ़ीं. दारू के बोतल से लैंप बनाईं. बाद में ओकरा जगह दू ठो सेंबू (तांबा) के लैंप आ गइल. दस बरिस ले हमनी के जिनगी इहे ढिबरी से अंजोर रहल. आखिर में बारहवीं में रहीं, तब जाके घर में बिजली आइल.

माई घर में बिजली लावे खातिर बहुत कुछ सहली, सरकारी बाबू लोग से भिड़ली, बिजली के आपन डर से लड़ली. अकेले रहला पर ऊ सभ लाइट बंद करके खाली ढिबरी जरावस. बिजली से डरे के कारण पूछला पर ऊ एगो घटना के बारे में बतइली जब सिंगारा में एगो मेहरारू करंट लगला से मर गइल रही.

Left: Our old house twinkling under the stars.
PHOTO • K. Ravikumar
Right: Even after three years of having an electricity connection, there is only one light bulb inside our house
PHOTO • K. Ravikumar

बावां : सितारा से भरल आसमान के नीचे टिमटिमात हमनी के पुरान घर. दहिना : घर में बिजली अइला के तीन बरिस बादो बिजली के एके गो बलब जरेला

बढ़िया पढ़ाई करे खातिर हम जिला मुख्यालय उधगमंडलम (ऊटी) के आर्ट्स कॉलेज में दाखिला ले लेनी. माई हमार फीस भरे खातिर करजा उठइली आउर किताब आ कपड़ो-लत्ता कीन के देली. करजा चुकावे खातिर उनका तरकारी के खेत में काम करे आउर गोइंठा चुने के काम फेरु से करे पड़ल. सुरु-सुरु में त ऊ हमरा पइसा भेजत रहली. बाकिर जल्दिए हम केटरिंग सर्विस में पार्ट-टाइम काम करे लगनी. हमरा जल्दी से जल्दी माई के करजा चुकावे आउर घर पर पइसा भेजे के रहे. माई 50 पार कर चुकल बाड़ी. ऊ कबो हमनी से पइसा ना मंगली. हरमेसा काम खातिर तइयार रहली, चाहे जवना तरह के काम होखे.

बड़ बहिन के लरिका लोग तनी होसगर (होशमंद) भइल, त माई ओह लोग के आंगनवाड़ी में छोड़ के जंगल से गोइठा चुने चल जास. पूरा हफ्ता घूम-घूम के गोइंठा लावस. एक टोकरी गोइंठा 80 रुपइया में बेचस. 9 बजे भोर से 4 बजे सांझ ले ऊ भटकत रहत रहस. दिन में खाली कदालीपजम (कैक्टस में लगे वाला फल) खाके गुजारा करत रहस.

हम पूछीं चिरई जेतना खाके एतना एनर्जी कहंवा से लावेलू, त ऊ कहस, “लरिकाईं में जंगल आउर जंगली खेत में उगे वाला पत्तावाला तरकारी, साग, कंद आउर मीट हम खूब खइले बानी. ओह घरिया के खाएल आज काम आवत बा.” उनका जंगल में उगे वाला साग-तरकारी बहुते नीमन लागेला. हम त माई के चाउर के दलिया पर गुजारा करत देखले बानी, ओह में बस गरम पानी आउर नीमक डालके खात रहस.

ताज्जुब होखेला, हम सायदे कबो माई के कहत सुनले होखम, “हमरा भूख लागल बा.” उनका हम हरमेसा आपन लरिकन सभ के खात देख, संतोष करत देखले बानी.

घरे हमनी लगे तीन ठो कुकुर बा- दिया, दियो आउर रसती. आउर बकरी सभ भी बा. नाम ओह लोग के बाल के रंग पर बा. ई लोग हमनिए जेका परिवार के सदस्य बा. अम्मा आपन लरिका जइसन ओह लोग के भी रखेली, दुलार करेली. बदला में उहो लोग माई पर प्रेम लुटावेला. रोज भोरे ऊ एह लोग के दाना-पानी देवेली. बकरी के त हरियर-हरियर साग आउर भात खाए के मिलेला.

Left: Amma collects and sells dry cow dung to the villagers. This helped fund my education.
PHOTO • K. Ravikumar
Right: The dogs and chickens are my mother's companions while she works in the house
PHOTO • K. Ravikumar

बावां : माई गोइंठा चुनके गांवे-गांवे बेचेली. इहे काम से हमर पढ़ाई के खरचा पूरा होखेला. दहिना : कुकुर आ मुरगी सभ घर में काम करे घरिया माई के संगे-संगे घूमेला

Left: Amma taking the goats into the forest to graze.
PHOTO • K. Ravikumar
Right: Amma looks after her animals as if they are her own children.
PHOTO • K. Ravikumar

बावां : माई बकरी चरावे जंगल जात बाड़ी. दहिना : आपन पालतू जनावर सभ के माई आपन लइका जइसन रखेली

माई बहुते धारमिक बाड़ी. उनकर आपन पारंपरिक देवी-देवता से जादे जेदासामी आ अय्यप्पन में बिस्वास बा. हफ्ता में एक बेरा ऊ घर के कोना-कोना रगड़ के साफ करेली, फेरु जेदासामी मंदिर जाएली. उहंवा के देवी-देवता से आपन मन के बात, दुख बांटेली.

हम माई के अपना खातिर एगो लुगो कीनत नइखी देखले. उनका लगे जेतना भी गिनल-गुथल साड़ी बा, कुल आठ ठो होई, ऊ सभ या त हमार चाची देले बाड़ी, चाहे बड़की दीदी. ऊ एकरे बदल-बदल के पहिनत रहेली. एह बात से  ना त उनका कवनो शिकायत रहेला, ना ऊ केहू से जादे अपेक्षा रखेली.

गांव में पहिले लोग हमनी के परिवार में रोज झगड़ा होखे के चरचा करत रहे. ऊ दिन बा आउर आज के दिन बा. संघर्ष से हमनी भाई-बहिन के आउर मजबूत होके निकलला पर लोग अचरज करेला. गांव के लोग माई के बड़ाई करेला. कहेला ऊ हमनी के कवनो कमी महसूस ना होके देली आउर अपना दम पर हमनी के पाल-पोस के काबिल बनइली.

पाछू मुड़ के देखिला त बुझाला कि जब हम अपना के ना भेजे देवे के मिन्नत करत रहीं, त ऊ काहे हमरा जबरदस्ती स्कूल भेज देत रहस. आज सोचिला त लागेला कि अच्छा भइल हम श्री शांति विजिया हाईस्कूल पढ़े गइनी. इहंई हमरा अंगरेजी सीखे के मिलल. माई जदि कड़ा ना होखती आउर हम ओह स्कूल ना जइतीं त हमार ऊंच पढ़ाई के सपना अधूरा रह जाइत. हमरा ना लागे हम माई के कइल काम के बदला चुका पाएम, हम त पूरा जिनगी उनकर करजदारे रहम.

रोज पूरा दिन खटला के बाद जब सांझ में माई गोड़ सीधा करके तनी सुस्ताए लागेली, त हम उनकर गोड़ के देखिला. ई उहे गोड़ बा जे आपन बच्चा सभ के जिनगी आ भविष्य बनावे खातिर हर हाल में चलत रहल. केतना बेरा उनका घंटों पानी में ठाड़ रहे के पड़ल, अक्सरहा. तबो उनकर गोड़ कवनो सूखल, दरार से भरल धरती लागेला. माई के गोड़ के इहे दरार हमनी के जिनगी के अभाव भरलक, हमनी के संवरलक.

No matter how much my mother works in the water, her cracked feet look like dry, barren land
PHOTO • K. Ravikumar

माई चाहे पानी में केतनो काम कइले होखे, ओकर जगहे-जगहे से फाटल गोड़ सूखल बंजर जमीन जेका लउकेला

अनुवाद: स्वर्ण कांता

K. Ravikumar

के. रविकुमार के एक उभरते फ़ोटोग्राफ़र और डाक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर हैं, और तमिलनाडु के मुदुमलई टाइगर रिज़र्व में स्थित गांव बोक्कापुरम में रहते हैं. रवि ने पलनी स्टूडियो से फ़ोटोग्राफ़ी सीखी है, जिसे पारी के फ़ोटोग्राफ़र पलनी कुमार चलाते हैं. रवि अपने बेट्टकुरुम्ब आदिवासी समुदाय के जीवन और आजीविकाओं का दस्तावेज़ीकरण करना चाहते हैं.

की अन्य स्टोरी K. Ravikumar
Editor : Vishaka George

विशाखा जॉर्ज, पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया की सीनियर एडिटर हैं. वह आजीविका और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लिखती हैं. इसके अलावा, विशाखा पारी की सोशल मीडिया हेड हैं और पारी एजुकेशन टीम के साथ मिलकर पारी की कहानियों को कक्षाओं में पढ़ाई का हिस्सा बनाने और छात्रों को तमाम मुद्दों पर लिखने में मदद करती है.

की अन्य स्टोरी विशाखा जॉर्ज
Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

की अन्य स्टोरी Swarn Kanta