स्टोरी जलवायु परिवर्तन पर पारी के ओह शृंखला के हिस्सा बा, जे पर्यावरण रिपोर्टिंग के श्रेणी में साल 2019 के रामनाथ गोयनका पुरस्कार जीतले रहे.
लाग रहल बा, सोझे परदा पर कवनो फिलिम के, रेगिस्तान के कवनो लड़ाई के सीन चल रहल बा. पाछू रेत के टीला बा, जेकरा पर कहूं-कहूं छोट-छोट घास उगल बा. अब हीरो, विलेन के धूल चटावे खातिर रेत में से निकल के आवत बा. रेगिस्तान में पहिलहीं से बरस रहल गरमी आउर धूल के आउर बढ़ावत हीरो फिलिम के सुखद अंत (विलेन खातिर ना) तक ले आवत बाड़न. असइन सीन वाला ना मालूम केतना फिलिम बनल होई, जे राजस्थान के रेतीला इलाका, चाहे मध्यप्रदेस के चंबल घाटी के बीहड़ में फिल्मावल गइल होई.
बता दीहीं कि इहंवा बीहड़ आउर उजड़ल सीन (वीडियो क्लिप देखल जाव) जे देखाई देवत बा, ऊ ना त राजस्थान के ह, आउर ना चंबल के. एकरा दक्षिणी प्रायद्वीप के बहुते अंदर, आंध्र प्रदेस के रायलसीमा में फिल्मावल गइल रहे. ई खास इलाका अनंतपुर जिला के कोई 1,000 एकड़ में फइलल बा. इहंवा कबो बाजरा के खेत लहलहात रहे. बाकिर कइएक विरोधाभासी स्थिति चलते ई इलाका आज केतना बरिस से रेगिस्तान में बदल गइल बा. उहे इलाका, जेकरा बारे में पता लगावे खातिर फिलिमकार लोग आपन टीम के रेकी पर भेजेला.
दरगाह होन्नूर गांव में इलाका के बड़ जमींदार लोग रहेला. हमनी इहंवा पहुंचनी त लोग के लागल हमनी कवनो फिलिम के शूटिंग खातिर आइल बानी. ऊ लोग पूछलक, “रउआ लोगनी कवना फिलिम खातिर आइल बानी? ई फिलिम कब आवे वाला बा?” बाकिर जब ऊ लोग के मालूम भइल कि हमनी पत्रकार हईं, त हमनी में ओह लोग के दिलचस्पी फौरन खत्म हो गइल.
तेलुगु फिलिम- जयम मनाडे रा (हमनिए जीतम) के कुछ लड़ाई वाला सीन के शूटिंग इहंई भइल रहे. ई बात कुछ साल 1998 से 2000 के बीच के बा. एह फिलिम चलते ई इलाका के बहुते नाम भइल. कवनो कमर्शियल फिलिमकार के तरहा, एह फिलिम के निर्माता के भी, रेगिस्तान जइसन सीन देखावे खातिर ‘सेट’ संगे छेड़छाड़ करे के पड़ल. लड़ाई के शूटिंग जवन 34 एकड़ जमीन में भइल, ओकर 45 बरिस के मालिक पुजारी लिंगन्ना के कहनाम बा, “हमनी के आपन फसल खेत से उखाड़ के हटावे (जेकरा खातिर मुआवजा देहल गइल रहे) के पड़ल. कुछ दोसर पेड़-पौधा आउर छोट गाछ सभ के भी हटावे के पड़ल, ताकि ई जगह असली लागे.” बाकी के काम कैमरा आउर फिल्टर संभाल लेलक.
आज 20 बरिस बाद, जदि जयम मनाडे रा निर्माता एकर शूटिंग करतन, त जादे मिहनत ना लागित. काहे कि समय के साथे-साथे इहंवा के हरियाली खत्म हो गइल, इंसान के अंधाधुंध दखलअंदाजी चलते रेगिस्तान एतना दूर-दूर तक फैल गइल जेतना कि शूटिंग खातिर जरूरत पड़ सकत रहे.
एतना बीहड़, उजड़ल सीन (वीडियो क्लिप देखीं) राजस्थान, चाहे चंबल के नइखे. एकर शूटिंग आंध्र प्रदेस के रायलसीमा, दक्षिणी प्रायद्वीप के बहुते भीतर कइल गइल रहे
बाकिर ई एकदम अचंभित कर देवे वाल रेगिस्तानी इलाका बा. काहेकि भूजल के सतह के लगे होखे के चलते इहंवा खेती त अबहियो होखेला. लिंगन्ना के लइका, पी हेन्नूरेड्डी कहतारे, “इहंवा पानी सिरिफ 15 फीट नीचे मिल जाला.” अनंतपुर के जादेतर हिस्सा में बोरवेल सभ में 500-600 फीट के ऊपर पानी गायब बा. जिला के कुछ हिस्सा में त 1,000 फुट के सीमा भी पार हो गइल बा. बाकिर इहंवा फिलहाल, चार इंच के बोरवेल में भरपूर पानी बा. एतना पानी, सतह के एतना लगे, उहो एतना गरम आउर रेत से भरल इलाका में? अचरज के बात त बड़ले बा.
लगही के गांव में रहे वाला किसान पलथुरु मुकन्ना के हिसाब से, “पूरा इलाका लंबा-चौड़ा नदी तल में स्थित बा.” कवन नदी? हमनी के त कुछो देखाई नइखे पड़त. “कोई पांच दशक पहिले, हुन्नूर से 25-30 किलोमीटर दूर, इहंवा से गुजरे वाली वेदवती नदी पर एगो बांध बनावल गइल रहे. बाकिर, हमनी के इलाका में वेदवती (तुंगभद्रा के सहायक नदी, जेकरा अघारी भी कहल जाला) सूख गइली.”
‘सांचो में, अइसने भइल रहे,’ अनंतपुर के ग्रामीण विकास ट्र्स्ट के पारिस्थितिकी केंद्र के मल्ला रेड़डी बतइलन. एह इलाका के जानकार कुछ मुट्ठी भर लोग में मल्ला भी बाड़न. “हो सकेला कि नदी सूख गइल होखे. बाकिर सदियन तक बहत-बहत एकरा से पानी के एगो भूमिगत जलाशय बन गइल, जेकरा अब लगातार खोदके निकालल जा रहल बा. ई काम एतना तेजी से हो रहल बा कि लागत बा कवनो आपदा जल्दिए आवे वाला बा.”
एह आपदा के आवे में जादे दिन ना लागी, ई बात त तय बा. एह उजड़ल इलाका में 12.5 एकड़ खेत के मालिक, 46 बरिस के किसान वी.एल. हिमाचल कहले, “बीस बरिस पहिले भी इहंवा सायदे कवनो कुंआ होई. बरखा के पानी से खेती होखत रहे. बाकिर अब त कोई 1,000 एकड़ में 300-400 बोरवेल खोदा गइल बा. एह में 30-35 फीट के गहराई पर पानी मिलत बा, कबो-कबो त एकरो से ऊपर.” मतलब हर तीन एकड़, चाहे ओकरा से कम में एगो बोरवेल मौजूद बा.
अनंतपुर खातिर ई गिनती बहुते बड़ा बा. मल्ला रेड्डी के हिसाब से, “इहंवा कोई 270,000 बोरवेल बा, जबकि जिला के ताकत 70,000 के बा. एह बरिस ओह में से आधा बोरवेल सूख गइल.”
एह बंजर इलाका में बोरवेल के का काम बा? कथी उगावल जात बा? हमनी जवन इलाका में घूमत बानी, उहंवा चारों ओरी खाली बाजरा के खेत नजर आवत बा, एह इलाका के मशहूर मूंगफली के खेत कहूं नइखे. बाजरा के खेती इहंवा खाए, चाहे बेचे खातिर ना, बलुक बिया खातिर कइल जाला. ई काम बिया कंपनी खातिर कइल जाला, जे लोग एह काम खातिर किसान लोग के ठेका देवेला. रउआ लगे के एक लाइन से लगावल गइल नर आ मादा पौधा के देख सकत बानी. कंपनी सभ बाजरा के दु गो अलग-अलग प्रजाति से एगो हाइब्रिड बिया बनवा रहल बा. एह काम में अफरात पानी लागेला. बिया निकलला के बाद पौधा के चारा के रूप में इस्तेमाल कइल जाला.
पुजारी लिंगन्ना कहले, “एह काम खातिर हमनी के एक क्विंटल पर 3,800 रुपइया मिलेला.” एकरा में लगे वाला मिहनत आउर देख-रेख के जरूरत पर नजर डालल जाव, त एतना पइसा बहुते कम बा. दोसरा ओरी कंपनी सभ बिया के, इहे वर्ग के किसान सभ के बहुते जादे दाम पर बेची. इहे इलाका के एगो आउर किसान वाई.एस शांतम्मा बतइली कि उनकर परिवार के 3,700 रुपइया प्रति क्विंटल के हिसाब से मेहनताना मिलेला.
शांतम्मा आउर उनकर लइकी वंदक्षी के कहनाम बा कि इहंवा खेती खातिर पानी के समस्या नइखे. “हमनी के गांव में भी पानी मिल जाला. अइसे, हमनी के घर में पाइप वाला कनेक्शन नइखे.” समस्या त रेत के बा, जे पहिले से जादे मात्रा में बा आउर बहुते तेजी से बढ़त जा रहल बा. कई-कई फीट गहिर रेत पर तनिए दूर चलला के बाद आदमी थक जाला.
“रेत राउर मिहनत के पानी में मिला सकत बा,” माई-बेटी के कहनाम बा. पी. होन्नूरेड्डी भी ओह लोग के हां में हां मिलावत बाड़न. ऊ हमनी के रेत के टीला के नीचे एगो जगह देखइलन. उहंवा ऊ बहुते मिहनत से, चाहे दिन पहिले एक क्यारी में पौधा लगइले रहस. अब उहंवा सभ कुछ रेत में दब गइल रहे. ई पूरा इलाका तेजी से रेगिस्तान में बदलल जात बा. इहंवा धूल भरल आंधी चलेला, आउर गांव तक पहुंच जाला.
एगो दोसर किसान, एम. बाशा कहले, “साल के तीन महीना एह गांव में रेत बरसेला. रेत हमनी के घर के भीतरी आ जाला. खाना में पड़ जाला. हवा से रेत उड़के ओह घर सभ तक भी पहुंच जाला, जे रेत के टीला से दूर पड़ेला. एह मुसीबत में जाली वाला कवनो दरवाजो काम ना देवे. इसिक्का वरशम (रेत के बरखा) अब हमनी के नसीब बा, हमनी के एकरे संगे रहे के बा.”
डी. होन्नूर गांव खातिर रेत कवनो नया चीज नइखे. हिमाचल कहले, “बाकिर एकर तेजी जरूर बढ़ गइल बा.” हवा के रोके के क्षमता रखे वाला बहुते झाड़ीदार पौधा आउर छोट गाछ सभ अब खत्म हो गइल बा. हिमाचल के भूमंडलीकरण आउर बाजार के अर्थशास्त्र के पूरा जानकारी बा. 55 बरिस के एम. तिप्पैय्याह कहले, “आज हालत ई बा कि हमनी हर चीज पइसा में तौलिला. लोग अब आपन जमीन के एक-एक इंच के इस्तेमाल व्यवसायिक खेती खातिर करेला. एहि से धीरे-धीरे झाड़, पेड़-पौधा आउर वनस्पति सभ खतम होखत चल गइल. आउर जब जमीन में बिया अंकुरित हो रहल होखे, तभिए रेत गिरे लागे त सभ कुछ बरबाद हो जाला.” पानी होखे के बादो पैदावार कम बा. 32 बरिस के किसान के.सी होन्नूर स्वामी कहले, “इहंवा एक एकड़ के खेत में तीन क्विंटल मूंगफली उगेला, जादे से जादे चार क्विंटल.” जिला के औसत उपज कोई पांच क्विंटल होई.
हवा के कुदरती रूप से रोके वाला पेड़-पौधा के अब कवनो कीमत नइखे रह गइल? जवाब में हिमाचल कहले, “अब खाली वइसने पेड़ पर ध्यान देवल जाला जे बाजार के हिसाब से कीमती बा.” वइसन पेड़ इहंवा के स्थिति के हिसाब से ठीक ना होखे, आउर एकदम उगावल ना जा सके. “वइसे, बाबू लोग कहत त रहेला कि ऊ लोग गाछ लगावे में मदद करी, बाकिर कबो करे ना.”
पलथुरु मुकन्ना बतावत बाड़न, “कुछ बरिस पहिले, कुछ सरकारी बाबू लोग रेत के टीला वाला इलाका में जांच करे आइल.” ऊ लोग के यात्रा एह रेगिस्तानी इलाका में आफत वाला साबित भइल. ओह लोग के एसयूवी गाड़ी रेत में धंस गइल. गांव के लोग के ओकरा ट्रैक्टर से खींच के निकाले के पड़ल. मुकन्ना कहले, “घटना के बाद, ओह में से केहू इहंवा, फेरु नजर ना आइल.” एगो दोसर किसान मोखा राकेश के कहनाम बा कि रेत के चलते कइएक बेरा अइसनो भइल, “बस गांव के ओह पार तक ना जा सकल.”
झाड़-झंखार आउर जंगल खत्म होनाई रायलसीमा के समस्या बा. अकेले अनंतपुर जिला में, 11 प्रतिशत जमीन ‘जंगल’ के रूप में चिन्हित कइल गइल बा. बाकिर जंगल वाला इलाका अब घटके 2 प्रतिशत से भी कम रह गइल. इहंवा के हवा, माटी, पानी आउर आबोहवा पर बहुत खराब असर पड़ल बा. अनंतपुर में बस एके गो बड़ जंगल देखाई देवेला, आउर ऊ हवे पवनचक्की के जंगल. हजारन के गिनती में पवनचक्की, जे चारों ओरी से नजर आवेला. इहंवा तक कि एह छोट रेगिस्तान के सीमा पार से भी देखाई पड़ेला. पवनचक्की सभ कंपनी के खरीदल, चाहे पट्टा पर देहल जमीन पर लगावल बा.
डी. होन्नूर गांव के रेगिस्तानी हिस्सा में खेती करे वाला किसान लोग के एगो टोली से बात भइल. पता चलल अइसन हाल इहंवा हरमेसा से रहल बा. एकरा बाद ऊ लोग लगभग उलटा बात कहे लागल. जइसे कि, रेत इहंवा हरमेसा से रहल बा, बाकिर रेत के तूफान उठावे के ताकत अब बढ़ गइल बा. पहिले जादे झाड़ आउर जंगल रहे. बाकिर, अब बहुते कम रह गइल बा. इंहवा पानी हरमेसा होखत रहे. बाकिर बाद में पता चलल कि नदी सूख गइल. दू दशक पहिले बहुते कम बोरवेल होखत रहे, बाकिर अब सैंकड़न के गिनती में बा. टोली के सभे किसान लोग पछिला दू दशक में खराब मौसम से जुड़ल बात आउर घटना के इयाद करे लागल.
बरखा के चाल-ढाल बदल गइल बा. हिमाचल कहले, “हमनी के जेतना बरखा चाहीं, जदि ओह हिसाब से देखल जाव, कहल जा सकेला कि एकरा में 60 प्रतिशत के कमी आइल बा. पछिला कुछ बरिस में उगादी (तेलुगु नयका बरिस के आस पास, जादे करके अप्रिल में) में कम बरखा भइल.” अनंतपुर के दक्षिण-पश्चिम आउर उत्तर-पूर्व दुनो मानसून छू के गुजरेला, बाकिर एकर भरपूर लाभ ना मिले.
अऩंतपुर में जवन साल 535 मिमी बरखा होखत रहे, ओह घरिया भी एकर समय निश्चित ना रहत रहे, एकरा अलावे बरखा एक समान भी ना बरसत रहे. पछिला कुछ बरिस में बरखा, फसल के मौसम में होखे के बजाय, गैर-फसली मौसम में होखे लागल बा. कबो-कबो, त सुरु के 24 से 48 घंटा मूसलाधार पानी बरसी आउर ओकरा बाद केतना दिन ले मौसम सूखले रह जाई. पछिला साल, कुछ मंडल सभ में फसल के मौसम (जून से अक्टूबर) के बीच भी 75 दिन तक सूखा रहल. अनंतपुर के 75 प्रतिशत आबादी गांव में रहेला आउर कुल श्रमिक में 80 प्रतिशत लोग खेती (किसान, चाहे मजूर) करेला. अइसन लोग खातिर बेमौसम बरखा बिनासकारी साबित हो रहल बा.
इकोलॉजी सेंटर के मल्ला रेड्डी कहले, “पछिला दू दशक में, अनंतपुर में हर दस बरिस में बस दू बरिस ‘सामान्य’ रहल. बाकी के 16 बरिस, हर साल जिला के दु-तिहाई से तीन-चौथाई हिस्सा सूखा से ग्रस्त रहल. एकरा से पहिले के 20 बरिस में, हर दस साल पर तीन बेर सूखा पड़त रहे. 1980 के दशक तक आवत-आवत समय बदलल आउर हर साल सूखा पड़े लागल.”
कवनो जमाना में बाजरा के नाम से जानल जाए वाला ई जिला तेजी से मूंगफली जइसन व्यावसायिक खेती ओर बढ़ गइल. नतीजा ई भइल कि भारी गिनती में बोरवेल के खुदाई होखे लागल. (नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी के एगो रिपोर्ट के हिसाब से अब इहंवा “कुछ इलाका अइसन बा जहंवा भूमिगत पानी के दोहन 100 प्रतिशत से भी जादे हो गइल बा”)
“चालीस बरिस पहिले, इहंवा एगो साफ हिसाब देखाई पड़त रहे- हर दस बरिस में तीन बेर सूखा पड़े. तब किसान लोग जानत रहे कि कब, का रोपे के बा. अलग-अलग तरह के 9 से 12 गो फसल चक्र, यानी एगो स्थिर कृषि चक्र होखत रहे,” सी.के ‘बबलू’ गांगुली कहले. गांगुली टिंबकटू कलेक्टिव नाम के एगो एनजीओ के अध्यक्ष बाड़न. एनजीओ तीन दशक से एह क्षेत्र में गांव-देहात के गरीबन के आर्थिक दशा बेहतर करे खातिर काम करत बा. खुद गांगुली इहंवा चार दशक से काम करत बाड़न. एहि से उनका एह इलाका के खेती के बारे में नीमन जानकारी बा.
“मूंगफली (अब अनंतपुर में एकर खेती 69 प्रतिशत जमीन पर होखेला) हमनी संगे उहे कइलक, जे काम अफ्रीका में साहेल संगे कइलक. हमनी के एक फसल के नीति से खाली पानी पर ही असर ना पड़ल. एक त, मूंगफली हमनी के छाया ना दे सके, दोसर, लोग पेड़ काट रहल बा. अनंतपुर के माटी नष्ट कर देहल गइल. बाजरा खतम हो गइल. माटी के नमी गायब हो गइल. नताजी बरखा वाला खेती फेरु से कइल मुस्किल हो गइल बा.” फसल बदले से खेती में मेहरारू लोग के भूमिका भी बदल गइल. पहिले ऊ लोग बरसा आधारित तरह-तरह के फसल के बिया जोगा के रखत रहे. किसान लोग जइसहीं हाइब्रिड नकदी फसल (जे अनंतपुर में मूंगफली संगे जगह बना लेले बा) खातिर हाट से बिया खरीदे के सुरु कइलक, मेहरारू लोग के भूमिका बस मजूर तक सीमित रह गइल. संगही, एके खेत में तरह-तरह के फसल उगावे के गुण भी किसान लोग के दू पीढ़ी आवत-आवत खतम हो गइल.
चारा वाला फसल, अब खेती लायक जमीन के 3 प्रतिशत से भी कम में उगावल जा रहल बा. गांगुली बतइलन, “एक बखत रहे, अनंतपुर में जुगाली करे वाला छोट जनावर के गिनती देस भर में सबले जादे रहे. जुगाली करे वाला छोट जनावर सभ कुरुबा जइसन पारंपरिक चरवाहा लोग खातिर सबले कीमती धन रहे, ओह लोग संगे भटके वाला संपत्ति. चरवाहा के झुंड फसल कटाई के बाद किसानन के खेत के गोबर आउर मूत्र के रूप में खाद प्रदान करत रहे. अइसन पारंपरिक चक्र अब फसल के पैटर्न बदले आउर रसायनिक खेती करे के चलते बाधित हो गइल बा. एह इलाका में लागू कइल गइल योजना गरीबन खातिर बेकार साबित भइल.”
होन्नूर में हिमाचल के अपना लगे के खेती से जुड़ल जैव विविधता में लगातार आ रहल गिरावट के नतीजा समझ में आवेला. ऊ बतावे लगलन, “कवनो जमाना में एहि गांव में बाजरा, लोबिया, कबूतरी मटर, रागी, कांगनी, बूंट, सिम होखत रहे… बरखा वाला खेती में फसल उगावल आसान बा, बाकिर ओकरा से ब्यापार ना हो सके.” हां, मूंगफली कुछ समय खातिर ई काम जरूर कइलक.
मूंगफली के फसल चक्र कोई 110 दिन के होखेला. खेत में जब एकर पौधा लागल रहेला, तब ई माटी के ढंकले रहेला आउर 60 से 70 दिन ले माटी के कटाव से बचावेला. ओह जुग में जब नौ गो अलग-अलग तरह के बाजरा आउर दाल रोपल जात रहे, ऊ हर बरिस जून से फरवरी, माटी के सतह के रक्षा करत रहे. तब कवनो ना कवनो फसल जमीन पर हरमेसा लागल रहत रहे.
होन्नूर गांव के रहे वाला हिमाचल सोचे-समझे वाला इंसान बाड़न. उनकरा पता बा कि बोरवेल आउर नकदी फसल से किसान के बहुते लाभ भइल बा. उनकरा अब एह में गिरावट नजर आ रहल बा, आउर रोजी-रोटी के साधन खत्म होखे के चलते पलायन भी बढ़ रहल बा. हिमाचल कहले, “हरमेसा अइसन 200 से जादे परिवार रहेला, जे बाहिर जाके कमाई करे के चाहेला.” यानी साल 2022 के जनगणना के मुताबिक, अऩंतपुर के बोम्मनहल मंडल के एह गांव के 1,227 घर में से छठमा हिस्सा. ऊ कहले, “एह में से 70 से 80 प्रतिशत परिवार करजा में डूबल बा.” पछिला दू दशक से अनंतपुर में खेती के हाल खस्ता बा. ई आंध्र प्रदेस के ऊ जिला बा, जहंवा किसान आत्महत्या के घटना सबले जादे बा.
मल्ला रेड्डी कहले, “बोरवेल के दिन गइल. इहे हाल नकदी फसल आउर एकल कृषि के बा.” अइसे त, उपभोग खातिर उत्पादन के बजाय, “अनदेखल बाजार खातिर उत्पादन” से प्रेरित होके, तीनों में अबहियो इजाफा हो रहल बा.
जलवायु में बदलाव के मतलब जदि खाली एतने बा कि कुदरत रीसेट बटन दबा रहल बा, त ऊ का रहे जे हमनी होन्नूर आउर अनंतपुर में देखनी? आउर जइसन कि वैज्ञानिक लोग बतावत बा, “जलवायु परिवर्तन विशाल कुदरती क्षेत्र में होखेला. होन्नूर आउर अनंतपुर त बहुत छोट इलाका बा. का ई संभव बा कि जादे बड़ इलाका में एतना जादे बदलाव आ जाव कि कबो-कबो ओकरा भीतरी आवे वाला छोट इलाका में भी अजीब-अजीब किसिम के बदलाव देखे के मिलो?”
बात ई बा कि बदलाव के पाछू इंसानी दखलअंदाजी सबले बड़ कारण बा. “बोरवेल के महामारी, ब्यावसायिक फसल आउर भारी पैमाना पर एकल कृषि, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अनंतपुर के सबले जादे सुरक्षा प्रदान करे वाला जैव विविधता के समाप्ति; भूमिगत जल के लगातार दोहन, एह अर्द्ध-शुष्क इलाका में जेतना भी वन्य क्षेत्र रहे ओकरा नाश, घास के मैदान के पारिस्थितिकी के नुकसान आउर माटी के गंभीर क्षरण; रसायनिक कृषि के बढ़ावा देवे वाला उद्योग; खेत आउर जंगल, चरवाहा आउर किसान के बीच के सहजीविता के संबध के खात्मा- आउर आजीविका के नुकसान; नदियन सभ के पूरा तरीका से सूखनाई. एह सभ चलते इहंवा के तापमान, मौसम आउर जलवायु बहुत गहिर रूप से प्रभावित भइल बा, जेकरा चलते एह इलाका के लोग के मुसीबत बढ़त चल गइल.
जदि मुनाफा के अर्थशास्त्र आउर विकास के मॉडल के पीछे पागल हो चुकल इंसान चलते ही एह इलाका के अइसन हाल भइल बा, त एह इलाका आउर अइसन बहुते दोसर इलाका से आज सीख लेवे के जरूरत बा.
हिमाचल के कहनाम बा, “हमनी के बोरवेल बंद क देवे के चाहीं आउर बरखा पर आधारित खेती-किसानी फेरु से सुरु करे के चाहीं. बाकिर ई बहुते मुस्किल काम नजर आवत बा.”
पी. साईनाथ, पीपल्स ऑर्काइव ऑफ रूरल इंडिया के संस्थापक संपादक बानी. उहां के दशकन से गांव-देहात के समस्या के रिपोर्टिंग करत आइल बानी. उहां के ‘एवरीबडी लब्स ए गुड ड्रॉट’ नाम के किताबो लिखले बानी.
पारी के जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित राष्ट्रव्यापी रिपोर्टिंग के प्रोजेक्ट, यूएनडीपी समर्थित ओह पहल के एगो हिस्सा बा जेकरा तरह आम लोग आउर उनकर जिनगी के अनुभव के मदद से पर्यावरण में हो रहल बदलाव के रिकॉर्ड कइल जाला.
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अनुवाद: स्वर्ण कांता