“एक दिन हमहू भारत खातिर ओलंपिक मेडल जीत के लाएम,” खेल अकादमी के सोझे जाए वाला अलकतरा के सड़क पर बहुते देर दउड़ लगइला के बाद आपन उखड़त सांस के काबू करत ऊ कहली. खालिए गोड़े दउड़े से उनकर पांव में जगहे-जगहे चोट लाग गइल बा. चार घंटा के कठिन मिहनत से थक के चूर भइला के बाद ऊ भूइंया पर बइठ जात बाड़ी.

लंबा दूरी के ई 13 बरिस के धाविका कवनो नयका जमाना के फितूर चलते खाली गोड़े नइखी दउड़त. “हम अइसे एह से दउड़िला हमार माई-बाऊजी दउड़े खातिर महंग-महंग जूता ना खरीद सकस.”

वर्षा कदम, परभणी के खेतिहर मजूर विष्णु आउर देवशाला के सुपुत्री हई. ई इलाका सूखा से जूझ रहल मराठवाड़ा में सूबा के सबले गरीब जिला मानल जाला. उनकर परिवार महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति के रूप में सूचीबद्ध मातंग समुदाय से आवेला.

“हमरा दउड़ल पसंद बा,” कहत उनकर आंख चमके लागल. किशोर उमिर के ई लइकी के इरादा बहुते मजबूत बा. “पहिल बेर हम 2021 में पांच किलोमीटर के बुलढाणा अर्बन फॉरेस्ट मैराथन में दउड़ लगइले रहीं. हम ओह मुकाबला में दोसरा नंबर पर अइनी. हमरा पहिल मेडल भी मिलल. एतना खुसी भइल कि का कहीं. अब त हम जादे से जादे मुकाबला जीते के चाहत बानी.”

माई-बाऊजी लोग आठे बरिस में दउड़े खातिर उनकर जुनून आउर जिद पहचान लेले रहे. “हमार मामा पाराजी गायकवाड़ राज्य स्तर के एथलीट रहस. अब ऊ सेना में नौकरी करेलन. उनकरा देख के हमरो दउड़े के सुर सवार भइली आउर हम दउड़े लगनी.” साल 2019 में राज्य स्तरीय अंतर्विद्यालय मुकाबला में चार किलोमीट लंबा क्रॉस-कंट्री दउड़ में ऊ दोसर स्थान पर अइली. “एह में जीते से हमरा आगू दउड़े खातिर आत्मविश्वास आइल.”

arsha Kadam practicing on the tar road outside her village. This road used was her regular practice track before she joined the academy.
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Right: Varsha and her younger brother Shivam along with their parents Vishnu and Devshala
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बावां: वर्षा कदम आपन गांव के बाहिर अलकतरा वाला रस्ता पर अभ्यास कर रहल बाड़ी. एकेडमी के हिस्सा बने के पहिले इहे सड़क अभ्यास खातिर उनकर ट्रैक बनल रहे. दहिना: आपन माई-बाऊजी, विष्णु आ देवशाला, आउर छोट भाई शिवम संगे

महामारी चलते मार्च 2020 में स्कूल बंद हो गइल रहे. वर्षा बतइली, “ऑनलाइन क्लास करे खातिर घर में फोन (स्मार्टफोन) ना रहे.” बखत के सदुपयोग करे खातिर ऊ दू घंटा भोर आउर दू घंटा सांझ में दउड़े के अभ्यास करे लगली.

साल 2020 के अक्टूबर में, 13 बरिस के उमिर में ऊ श्री समर्थ एथलेटिक्स रेसिडेंशियल स्पोर्ट्स एकेडमी आ गइली. एकेडमी महाराष्ट्र के परभणी जिला के पिम्पलगांव ठोंबरे के बाहरी हिस्सा में बसल बा.

एकेडमी में वंचित समुदाय से आवे वाला 13 गो आउर दोसर बच्चा सभ भी बा. एह में आठ गो लइका आउर पांच गो लइकी लोग शामिल बा. इहंवा के कुछ एथलीट त वंचित जनजातीय समूह (पीवीटीजी) से बाड़न. ऊ लोग के माई-बाऊजी में से केहू किसान बा, केहू ऊंख काटे वाला मजूर, त केहू खेतिहर मजूर आउर सूखा से जूझ रहल मराठवाड़ा से आइल विस्थापित दिहाड़ी मजूर बा.

इहंवा के किशोर उमिर के एथलीट लोग राज्य आउर राष्ट्रीय स्तर के मुकाबला में जोरदार प्रदर्शन कइले बा. इहे ना, एह में से कइएक लोग त अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के अगुआई कइले बा.

जोरदार प्रदर्शन करे वाला एथलीट लोग साल भर एकेडमी में रहेला आउर उहंई से परभणी के स्कूल-कॉलेज पढ़े जाला. परभणी इहंवा से कोई 39 किमी दूर होई. ई लोग खाली छुट्टी में माई-बाऊजी लगे घर जाला. एकेडमी सुरु करे वाला रवि रासकाटला के हिसाब से, “कुछ लइका लोग भोरका स्कूल में जाला, त कुछ दुपहरिया वाला में.”

“एह इलाका के लइका लोग में खेलकूद के क्षेत्र में कुछ करे के बहुते संभावना बा. बाकिर आगू चलके एकरे आपन करियर बनावे में बहुते समस्या बा. काहे कि ई लोग जवन तरह के परिवार से आवेला, उहंवा दू जून के रोटी खातिर भी कड़ा संघर्ष करे के पड़ेला.” रवि कहले. एकेडमी सुरु करे के पहिले ऊ जिला परिषद स्कूल में खेल सिखावत रहस. “हम गांव से आवे वाला छोट-छोट उमिर के होनहार लइका लोग के चुननी आउर बिना कवनो पइसा लेले सबले नीमन प्रशिक्षण देवे के फइसला कइनी,” 49 बरिस के ई कोच बतइलन. रवि के एथलीट सभ के प्रशिक्षित करे, खान-पान आउर जूता खातिर अच्छा प्रायोजक के तलाश रहेला.

Left: Five female athletes share a small tin room with three beds in the Shri Samarth Athletics Sports Residential Academy.
PHOTO • Jyoti Shinoli
Right: Eight male athletes share another room
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बावां: श्री समर्थ एथलेटिक्स स्पोर्टस रेसिडेंशियल एकेडमी के पांच गो एथलीट लइकी लोग. पांचो लइकी लोग संगे इहंवा के तीन ठो बिछौना वाला छोट टीन के कमरा में रहेला

The tin structure of the academy stands in the middle of fields, adjacent to the Beed bypass road. Athletes from marginalised communities reside, study, and train here
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बुल्लू रंग में रंगल एकेडमी के, टीन के अस्थायी आवास. आवास मैदान के बीच में बनल बा. इहंवा लगे से बीड बाईपास गुजरेला. वंचित समदाय के एथलीट लोग के इहंवा मुफत में सिखावल जाला. इहंवा ऊ लोग के रहे आउर पढ़े के भी ब्यवस्था रहेला

एकेडमी मैदान के बीच में बनल बुल्लू रंग के टीन के एगो अस्थायी ढांचा बा. लगही बीड बाईपास पड़ेला. एकेडमी डेढ़ एकड़ के जमीन पर बनल बा. जमीन परभणी के एगो एथलीट ज्योति गवते के बाऊजी शंकरराव के बा. ज्योति के बाऊजी राज्य परिवहन विभाग में चपरासी रहस आउर माई रसोइया के काम करेली.

ज्योति बतइली, “हमनी टीन के छत वाला घर में रहत रहीं. कुछ पइसा जुड़ल, त केहूंगे एगो-एगो तल्ला करके घर बनल. भाई महाराष्ट्र पुलिस में कांस्टेबल बाड़न. उनकर कमाई पहिले से नीमन हो गइल बा.” ज्योति आपन जिनगी दउड़ खातिर समर्पित कर देले बाड़ी. एक दिन उनकरा विचार आइल कि काहे ना आपन खेती वाला जमीन ‘रवि सर’ के स्पोर्ट्स एकेडमी खातिर दे देवल जाव. ज्योति के एह विचार से उनकर माई-बाऊजी आउर भाई भी सहमत रहस. “हमनी मिलजुल के फइसला लेनी.”

एकेडमी में टीन के दु गो कमरा बा. कमरा 15 x 20 फीट के होई. दुनो कमरा के बीच के देवाल भी टीने के बा. एगो कमरा में एकेडमी के दान में मिलल तीन गो बिछौना बा, जहंवा पांच गो लइकी लोग मिल के रहेला. दोसर कमरा लइका लोग के बा. इहंवा ऊ लोग कंक्रीट के जमीन पर चद्दर बिछा के सुतेला.

दुनो कमरा में एगो-एगो ट्यूबलाइट आउर पंखा लागल बा. बिजली रहला पर ई चलेला, ना त बंदे रहेला. एह इलाका में बिजली के स्थिति बहुत अच्छा नइखे. गरमी में तापमान 42 डिग्री हो जाला आउर जाड़ा में 14 डिग्री नीचे गिर जाला.

महाराष्ट्र खेल-कूद नीति, 2012 के हिसाब से, खिलाड़ी लोग के प्रदर्शन में सुधार खातिर स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स, एकेडमी, प्रशिक्षण शिविर तइयार करे आउर खेलकूद के उपकरण मुहैया करावल राज्य सरकार के अनिवार्य जिम्मेदारी बा.

बाकिर रवि के हिसाब से, “ई सभ खाली कागजी बात बा. आज दस साल बादो एह दिशा में कवनो कदम नइखे उठावल गइल. सरकार अइसन प्रतिभा के पहचान करे तक में नाकाम रहल. एकरा से जुड़ल कार्यक्रम के प्रति खेलकूद विभाग के अधिकारी लोग के घोर उदासीन रवैया बा.”

साल 2017 में भारत के नियंत्रक आ महालेखापरीक्षक एगो ऑडिट रिपोर्ट पेश कइलन. एह रिपोर्ट में मानल गइल कि तालुका स्तर से लेके राज्य स्तर के खेलकूद खातिर जे भी जरूरी बुनियादी ढांचा बा, ओकर बिकास करे के सरकार के खेल नीति आपन मकसद हासिल करे से बहुते दूर बा.

Left: Boys showing the only strength training equipments that are available to them at the academy.
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Right: Many athletes cannot afford shoes and run the races barefoot. 'I bought my first pair in 2019. When I started, I had no shoes, but when I earned some prize money by winning marathons, I got these,' says Chhagan
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बावां: एकेडमी के लइका लोग स्ट्रेथ ट्रेनिंग खातिर इहंवा उपलब्ध एकमात्र उपकरण देखावत बा. दहिना: जादे करके एथलीट लोग जूता खरीदे में लाचार बा. ऊ लोग मुकाबला में खालिए गोड़ दउड़ेला. छगन कहत बाड़ी, ‘हम अपना खातिर पहिल जोड़ी जूता 2019 में खरीदनी. जब दउड़े के सुरु कइले रहीं त हमरा लगे जूता ना रहे. बाकिर बाद में जब मैराथन में जीतला पर पुरस्कार में कुछ पइसा भेटाइल, तब जाके नया जूता खरीदाइल’

Athletes practicing on the Beed bypass road. 'This road is not that busy but while running we still have to be careful of vehicles passing by,' says coach Ravi
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बीड बाईपास पर अभ्यास करत एथलीट. ‘ई सड़क जादे व्यस्त ना रहे. बाकिर हमनी के दउड़े घरिया लगे से आवत-जात गाड़ी से बच के रहे के पड़ेला,’ कोच रवि बतइले

रवि एकेडमी के रोज के खरचा निकाले खातिर ऊ प्राइवेट कोचिंग करेलन. “हमार बहुते छात्र लोग अब सफल आउर नामी मैराथन धावक बा. ऊ लोग पुरस्कार में मिलल पइसा से एकेडमी के मदद करेला.”

एतना सीमित संसाधन आउर सुविधा के कमी के बादो एकेडमी एह बात के खास ध्यान रखेला कि एथलीट के पौष्टिक आहार मिले. ऊ लोग के हफ्ता में तीन से चार बेरा चिकन चाहे मछरी देवल जाला. बाकी के दिन में अंडा, हरियर तरकारी, केला, ज्वार-बाजरा भाकरी के अलावा अंकुरित मूंग, चना, मटकी आउर अंडा भी खियावल जाला.

अलकतरा वाला सड़क पर दउड़े के अभ्यास भोरे छव बजे से सुरु हो जाला, जे 10 बजे ले चलेला. सांझ के एथलीट लोग उहे सड़क पर पांच बजे के बाद ‘स्पीड वर्क’ अभ्यास करेला. “ई रस्ता अइसे त बहुते ब्यस्त ना रहे, तबो अभ्यास करे घरिया हमनी के आवत-जात गाड़ी के ध्यान रखे के पड़ेला. हम ओह लोग के सुरक्षा के खास ख्याल रखिला,” कोच कहले. “स्पीड वर्क से हमनी के मतलब जादे से जादे दूरी के कम से कम बखत में पूरा करे से बा. जइसे कि एक किमी दूरी तय करे में 2 मिनट 30 सेकेंड से जादे के समय ना लागे के चाहीं.”

वर्षा के माई-बाबूजी के ओह दिन के बेसब्री से इंतजार बा, जब उनकर बेटी के राष्ट्रीय स्तर के एथलीट बने के सपना पूरा होई. साल 2021 से ऊ महाराष्ट्र में होखे वाला अलग अलग मैराथन मुकाबला में हिस्सा लेवत आवत बाड़ी. “हमनी के इहे दुआ करिले कि ऊ दउड़े में सबले आगू रहस. उनकर मनोबल बढ़ावे में हमनी कवनो कसर नइखी छोड़ले. मालूम बा कि एक दिन ऊ हमनी आउर आपन देस के नाम जरूर चमकइहन.”

दुनो मरद-मेहरारू लोग के 2009 में बियाह भइल. ओकरा बाद से ऊ लोग के कमाई खातिर लगातार भटके के पड़ल. जब उनकर सबले बड़ संतान, वर्षा, तीन बरिस के रहस, ऊ लोग दिहाड़ी पर ऊंख काटे के काम खोजे खातिर गांव से बाहिर चल जात रहे. परिवार के कबो टेंट में दिन-रात गुजारे के पड़ल. ऊ लोग कबो एक जगह टिक के ना रह पावत रहे. “ट्रक से लगातार इहंवा से उंहवा आवे-जाए से वर्षा के तबियत बिगड़े के सुरु हो गइल. हमनी बाहिर गइल बंद कर देनी,” देवशाला इयाद करत बाड़ी. ऊ लोग गांवे में काम खोजे लागल. विष्णु बतावत बाड़े, “गांव में मेहरारू लोग के एक दिन के 100 आउर मरद लोग के 200 रुपइया मिलत रहे.” ऊ साल में छव महीना प्रवासी मजूर के रूप में शहर जाके काम करेलन. “हम नासिक चाहे पुणे चल जाइले. उहंवा सुरक्षा गार्ड चाहे कवनो निर्माण स्थल में मजूर, या नर्सरी में माली के काम मिल जाला.” विष्णु 5 से 6 महीना बाहिर रहेलन आउर एतना दिन में 20 से 30 हजार रुपइया कमा लेवेलन. देवशाला अब घरही रहेली. ऊ दू गो दोसर लरिकन- एगो लइकी आ एगो लइका, के देखभाल करेली, ओह लोग के स्कूल ना छूटे देवेली.

एड़ी-चोटी के जोर लगवला के बादो, वर्षा के माई-बाबूजी लोग उनकरा खातिर एक जोड़ी जूता ना कीन सकल. बाकिर उनकर एथलीट बेटी के एकर कवनो गम नइखे, “हम तेज गति से दउड़े के अभ्यास करत बानी आउर एकर तकनीक पर ध्यान देवे के कोसिस करत बानी.”

Devshala’s eyes fills with tears as her daughter Varsha is ready to go back to the academy after her holidays.
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Varsha with her father. 'We would really like to see her running in competitions. I wonder how she does it,' he says
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बावां: आपन छुट्टी बितइला के बाद एकेडमी लउटे खातिर तइयार वर्षा के विदा करत देवशाला के आंख भर जात बा. दहिना: वर्षा आपन बाऊजी संगे. ऊ कहले, ‘हमनी सांचो उनकरा मुकाबला में दउड़त  देखे के चाहत बानी. हमरा देखे के बा कि ऊ कइसन करत बाड़ी’

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छगन बोंबले मैराथन धावक बाड़न. अइसन धावक जेकरा आपन पहिल जोड़ी जूता खरीदे खातिर दउड़ प्रतियोगिता में जीते के इंतिजारी करे के पड़ल. “हम आपन पहिल जूता 2019 में खरीदले रहीं. जब दउड़े के सुरु कइनी, त लगे जूता ना रहे. बाकिर जब मैराथन जीतनी त पुरस्कार में कुछ धनराशि भेंटाइल. ओकरे से पहिले जूता खरीदनी,” ऊ आपन जूता देखावत कहे लगले. उनकर पांव के जूता बहुते घिस गइल रहे.

इहे कोई 22 बरिस के ई एथलीट अंध जनजाति से आवेलन. ऊ एगो खेतिहर मजूर के बेटा हवन जिनकर परिवार के लोग हिंगोली जिला के खंबाला गांव में बसल बा.

उनकरा पांव में जूता त आ गइल, बाकिर दउड़त दउड़त ओकर तलवा घिस गइल बा. बिना मोजा के जब ऊ अलकतरा के खुरदरा रस्ता पर दउड़ेलन त पांव के नीचे के कठोर जमीन महसूस होखेला. “एह जूता से बहुते तकलीफ होखेला. कवनो शक नइखे कि सिंथेटिक ट्रैक आउर नीमन ब्रांड के जूता पैर में चोट ना लागे दीहि.” ऊ रिपोर्टर के परिस्थिति समझावे लगलन. “हमनी के माई-बाबूजी संगे पैदल चले, दउड़े-भागे, खेले-कूदे, पहाड़ पर चढ़े आउर बिना चप्पल के खेत में काम करे के आदत बा. एहि से खाली गोड़े चलल चाहे दउड़ल हमनी खातिर कवनो बड़ बात नइखे.” उनकरा हिसाब से गोड़ में रोज-रोज चोट लगे आउर कटे-फटे के मामला कोई बड़ मामला नइखे.

छगन के माई-बाऊजी, मारुति आ भागीरता लगे आपन जमीन नइखे. ऊ लोग खेतिहर मजूरी पर निर्भर बा. “कबो हमनी खेत में काम करिले, आउर कबो किसानन के बइल के घास चरावे ले जाइले. हमनी से जे काम कहल जाला, करिला,” मारुति बतइले. दुनो प्राणी लोग मिलके 250 रुपइया के दिहाड़ी कमा लेवेला. बाकिर मुस्किल ई हवे कि महीना में ई काम सिरिफ 15 से 20 दिन ही मिलेला.

उनकर धावक बेटा, छगन परिवार के मदद करे खातिर शहर, तालुका, राज्य आउर राष्ट्रीय स्तर के छोट-बड़ मैराथन में हिस्सा लेवत रहेले. “पहिल तीन विजेता के पुरस्कार में धनराशियो मिलेला. ई धनराशि कबो 10,000, त कबो 15,000 होखेला,” ऊ कहले. “हमरा हर साल 8 से 10 मैराथन में हिस्सा लेवे के मौका मिल जाला. हां, एह में से सभे के जीतल मुस्किल होखेला. साल 2022 में हम दु गो मुकाबला जीतले रहीं आउर तीन गो में उपविजेता रहीं. तब मोटा-मोटी 42,000 रुपइया के धनराशि मिलल रहे.”

Left: 22-year-old marathon runner Chhagan Bomble from Andh tribe in Maharashra
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Right: Chhagan’s house in Khambala village in Hingoli district. His parents depend on their earnings from agriculture labour to survive
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बावां: महाराष्ट्र के अंध जनजातीय समुदाय के 22 साल के मैराथन धावक छगन बोंबले. दहिना: हिंगोली जिला के खंबाला गांव में छगन के डेरा. उनकर माई-बाउजी परिवार के खरचा पूरा करे खातिर खेतिहर मजूरी के आसरे बा

खंबाला गांव के उनकर डेरा मेडल आउर ट्राफी से भरल बा. उनकर माई-बाऊजी के ई सभ देखके बहुते गर्व होखेला. “हमनी अनाड़ी (अनपढ़) बानी. हमार बेटा दउड़के आपन जिनगी में जरूर कुछ बड़ा करिहन,” 60 बरिस के मारुति कहले. “हमनी खातिर ई सभ सोना से जादे कीमती बा,” छगन के 57 बरिस के माई भागीरता माटी के घर में सजा के रखल मेडल आउर सर्टिफिकेट देखावत कहली.

छगन कहले, “हम कुछ बड़ा करे के चाहत बानी. हमरा ओलंपिक जाए के बा.” उनकर आवाज में मजबूत इरादा के टंकार साफ सुनाई देत बा. बाकिर उनका पता बा, का मुस्किल बा. “हमनी के कम से कम बुनियादी सुविधा त चाहीं. एगो अच्छा धावक उहे बा जे कम से कम समय में जादे लंबा दूरी तय करे. बाकिर सिंथेटिक ट्रैक आउर माटी चाहे अलकतरा के सड़क पर अलग-अलग समय लागेला. परिणाम ई होखेला कि राष्ट्रीय, चाहे अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला में हमनी के सलेक्शन ना हो आवेला,” ऊ विस्तार से समझइलन.

परभणी के प्रतिभासंपन्न एथलीट सभ के शक्ति प्रशिक्षण खातिर दू गो डंबल आउर चार गो पीवीसी जिम प्लेट से काम चलावे के पड़त बा. रवि बतइले,“परभणी ही काहे, पूरा मराठवाड़ा में एगो सरकारी एकेडमी नइखे.”

सरकारी नीति आउर वादा के कवनो कमी नइखे. साल 2012 में बनल राज्य के खेलकूद नीति के आज दस बरिस से जादे हो चुकल बा. इहे नीति में खेलकूद के बढ़ावा देवे खातिर तालुका स्तर पर बुनियादी सुविधा मुहैया करावे के वादा कइल गइल रहे. सरकार जब खेलो इंडिया सुरु कइलक त बहुते असरा बंधल रहे. एह में महाराष्ट्र सरकार के पूरा राज्य में 36 (हर जिला में एगो) खेलो इंडिया सेंटर सुरु करे के रहे. बाकिर आजो स्थिति जस के तस बनल रहल.

Left: Chhagan participates in big and small marathons at city, taluka, state and country level. His prize money supports the family. Pointing at his trophies his mother Bhagirata says, 'this is more precious than any gold.'
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Right: Chhagan with his elder brother Balu (pink shirt) on the left and Chhagan's mother Bhagirata and father Maruti on the right
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बावां: छगन शहर, तालुका, राज्य आउर राष्ट्रीय स्तर के छोट-बड़ मैराथन में लगातार हिस्सा लेवत बाड़न. उनकरा पुरस्कार में जे धनराशि मिलेला, ओकरा से परिवार के मदद हो जाला. उनकरा जे ट्रॉफी मिलल, ओकरा देखावत माई भागीरता कहली, ‘हमनी खातिर ई सभ सोना से जादे कीमती बा.’ दहिना: छगन आउर उनकर बड़ भाई बालू, बावां ओरी माई भागीरता आउर बाऊजी मारुति बाड़न

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री अंतरराष्ट्रीय स्तर के 122 नया स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स खोले के ऐलान कइले बाड़न. उनकर एह ऐलान पर सबके नजर बा. स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के भारत के ‘स्पोर्टिंग पावरहाउस’ (खेल के महाशक्ति) कहल जाए वाला ग्रामीण महाराष्ट्र में खोले के योजना बा. मुख्यमंत्री ई बात जनवरी 2023 में महाराष्ट्र स्टेट ओलंपिक गेम सुरु करे के मौका पर कहले रहस.

परभणी के जिला खेल अधिकारी नरेंद्र पवार टेलीफोन पर बतवले, “हम एकेडमी सुरु करे खातिर एगो सही जगह खोजत बानी. एकरा अलावे, तालुका स्तर पर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनावे के काम भी चल रहल बा.”

एकेडमी के एथलीट लोग हैरान बा कवना बात पर बिस्वास कइल जाव. “दुख के बात बा कि राजनेता, इहंवा तकले कि आम नागरिक के भी हमनी तबे देखाई दीहिला जब ओलंपिक में मेडल जीत के लाइला. ना त, हमनी के औकात कुछो नइखे. खेलकूद खातिर बुनियादी ढांचा बहुते जरूरी बा. एह खातिर हमनी के कोसिस हरमेसा अनदेखा कर देहल जाला. ई बात तब आउर महसूस होखेला जब ओलंपिक में हिस्सा लेवे वाला हमनी के पहलवान लोग के न्याय खातिर लड़त देखिला. ऊ लोग के मदद करे के जगहा खराब बरताव कइल जाला.”

आखिर में ऊ मुस्कात कहले, “बाकिर हमनी जन्मजात लड़ाका हईं. चाहे सिंथेटिक रनिंग ट्रैक के बात होखे, चाहे कवनो अन्याय के खिलाफ आवाज उठावे के, हमनी अंतिम सांस ले लड़म.”

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Jyoti Shinoli

ज्योति शिनोली, पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया की एक रिपोर्टर हैं; वह पहले ‘मी मराठी’ और ‘महाराष्ट्र1’ जैसे न्यूज़ चैनलों के साथ काम कर चुकी हैं.

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Editor : Pratishtha Pandya

प्रतिष्ठा पांड्या, पारी में बतौर वरिष्ठ संपादक कार्यरत हैं, और पारी के रचनात्मक लेखन अनुभाग का नेतृत्व करती हैं. वह पारी’भाषा टीम की सदस्य हैं और गुजराती में कहानियों का अनुवाद व संपादन करती हैं. प्रतिष्ठा गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा की कवि भी हैं.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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