संझा के 4 बजत हवय, फरवरी महिना मं राजस्थान के जयपुर पोलो क्लब मं घाम बगरे हवय.

दूनो टीम के चार झिन खिलाड़ी अपना जगा मं तियार खड़े हवंय.

ये ह भारत मं खेलेइय्या पहिली अंतरराष्ट्रीय महिला पोलो मैच आय. ये प्रदर्शनी मैच मं पीडीकेएफ टीम के मईलोगन मन पोलोफैक्टरी इंटरनेशनल टीम के खिलाफ हवंय.

हरेक खिलाड़ी हाथ मं लकरी के एक ठन मैलेट धरे हवय, जऊन ह सुरु करे सेती तियार हवंय. ये सीजन के अशोक शर्मा के ये ह पहिली मैच हवय. फेर वो ह खेलेइय्या मन बर कऊनो नवा मनखे नो हे.

कऊनो घलो पोलो खिलाड़ी के किट (खेल के समान) सेती जरूरी बेंत ले बने लऊठी बनाय, तीसर पीढ़ी के कारीगर, अशोक करा मैलेट बनाय के 55 बछर के अनुभव हवय. अपन परिवार के 100 बछर के विरासत के बारे मं बतावत वो ह गरब ले कहिथे, “मंय मैलेट बनाय के कला के मंझा मं जनम लेय रहेंव.” हॉर्सबैक पोलो दुनिया के सबले जुन्ना घुड़सवारी खेल मन ले एक ठन आय.

Ashok Sharma outside the Jaipur Polo House where he and his family – his wife Meena and her nephew Jitendra Jangid craft different kinds of polo mallets
PHOTO • Shruti Sharma
Ashok Sharma outside the Jaipur Polo House where he and his family – his wife Meena and her nephew Jitendra Jangid craft different kinds of polo mallets
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जयपुर पोलो हाउस के बहिर अशोक शर्मा (डेरी) अऊ ओकर परिवार – ओकर घरवाली मीना अऊ ओकर भतीजा जितेंद्र जांगिड़ (जउनि) कतको किसिम के पोलो मैलेट बनाथें

वो ह जयपुर पोलो हाउस चलाथें, जऊन ह शहर के सबले जुन्ना अऊ सबले जियादा मांग वाला कारखाना आय. ये ह ओकर घर घलो आय, जिहां वो ह अपन घरवाली मीना अऊ 37 बछर के अपन भतीजा जितेंद्र जांगिड़, जेकर बलाय नांव ‘जीतू’ आय, के संग कतको किसिम के मैलेट बनाथें. वो ह राजस्थन मं अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप मं रखे गे जांगिड़ समाज ले आथें.

अंपायर ह के दूसर के आगू पांत मं ठाढ़े टीम के मंझा मं गेंद ला घूमाथे. अऊ जइसने मैच ह शुर होथे, 72 बछर के अशोक अपन बीते दिन ला सुरता करे लगथें. “मंय सइकिल ले मैदान मं जावत रहंय, ओकर बाद स्कूटर बिसोंय. “ फेर ये ह साल 2018 मं बंद होगे जब दिमागी झटका परे सेती ओकर आय-जाय ह कम होगे.

दू झिन मरद खिलाड़ी आथें अऊ नमस्ते “पोली जी” कहिथें, अशोक ला ओकर नानी ह ये नांव देय रहिस जऊन ह  जयपुर के पोलो के दुनिया मं ये नांव चले लगिस. वो ह कहिथे, “मंय ये बखत जियादा ले जियादा आय ला चाहत हवंव जेकर ले जियादा ले जियादा खिलाड़ी जान सकेंय के मंय अभू घलो बूता करत हवंव अऊ वो मन अपन लउठी ला सुधारे सेती भेजहीं.”

करीबन 20 बछर पहिली जब कऊनो अशोक के कारखाना मं आवत रहिस, त ओकर दीवार ह बनाके रखाय मैलेट ले भरे नजर आवत रहय, अऊ मुड़ी डहर ले छत मं बंधे लटकत रहय. वो ह बताथें के अतका मैलेट रखाय रहत रहिस के कारखाना के उघरे दीवार में नान कन हिस्सा घलो दिख्त नई रहिस. ओकर मुताबिक, “बड़े खिलाड़ी मन आवत रहिन, अऊ पसंद के लऊठी छांटत रहिन, चाहा पीके जावत रहिन.”

खेल सुरु होगे हवय, हमर सीट राजस्थान पोलो क्लब के पूर्व सचिव वेद आहूजा के बगल मं हवय. वो ह मुचमुचावत कहिथें, “सब्बो अपन मैलेट सिरिफ पोली ला बनवाय हवंय.” आहूजा सुरता करत कहिथें, “पोली ह क्लब ला बांस के जरी ले बने बॉल घलो पूर्ति कराय हवय.”

Ashok with international polo-players who would visit in the 1990s for fittings, repairs and purchase of sticks
PHOTO • Courtesy: Ashok Sharma
The glass showcases that were once filled with mallets are now empty.
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डेरी: अंतरराष्ट्रीय पोलो-खिलाड़ी मन के संग अशोक (मंझा मं) जऊन ह 1990 के दसक मं फिटिंग, मरम्मत अऊ  लऊठी बिसोय ला आय रहिन. जउनि: कांच के शो केस जऊन ह कभू मैलेट ले भरे रहय अब खाली हवय

अशोक बताथें, बनेच अमीर धन फौजी मन, पोलो खेले के खरचा उठाय सकथें. 2023 तक ले, सिरिफ 386 खिलाड़ी 1892 मं बने भारतीय पोलो एसोसिएशन (आईपीए) के संग पंजीकृत हवंय. “एक झिन खिलाड़ी करा कम से कम पांच घोड़ा होय ला चाही  एक ठन अपन खेती मिलके छे ठन.” वो ह कहिथे के मैच ला चार ले छे चक्कर मं बांटे जाथे, अऊ हरेक खिलाड़ी ला हरेक बेर एक ठन अलग घोड़ा मं चढ़े ला होथे.

खास करके राजस्थान मं पूर्व रॉयल्स खेल के संरक्षक रहिस. वो ह कहिथे, “मोर कका केशु राम ह 1920 के दशक मं जोधपुर अऊ जयपुर के राजा मन बर पोलो स्टिक बनाय रहिस.”

बीते 30 बछर मं, अर्जेंटीना ह खेल, बनाय अऊ बेंचे मं पोलो के दुनिया उपर राज करे हवय. अशोक कहिथें, ”ओकर पोलो घोड़ा भारत मं सुपरहिट हवंय, जइसने ओकर पोलो मैलेट अऊ फाइबर ग्लास बॉल हवंय. खिलाड़ी अर्जेंटीना सीखे ला घलो जाथें.”

वो ह कहिथें, “अर्जेंटीना के स्टिक सेती मोर काम नंदा जातिस, फेर भगवान के दया आय के मंय तीस-चालीस बछर पहिली सईकिल पोलो मैलेट बनाय शुरू कर देय रहेंव, एकरे सेती मोर करा अभू घलो बूता हवत.”

सइकिल पोलो कऊनो घलो बनावट अऊ अकार के सइकिल ले खेले जाथे. अशोक कहिथें, “घुड़सवार के उलट “ये खेल ह आम लोगन के सेती आय.” सइकिल पोलो स्टिक बनाय ले वो ला बछर भर मं 2.5 लाख रुपिया के आमदनी हो जाथे.

Ashok says that years of trial and error at the local timber market have made him rely on imported steam beech and maple wood for the mallet heads.
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Jeetu begins the process of turning this cane into a mallet. He marks one cane to between 50 to 53 inches for horseback polo and 32 to 36 inches for cycle polo
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डेरी: अशोक के कहना आय के कतको बछर ले इहाँ के लकरी बजार मं जांचे परखे अऊ खराबी सेती वो ह मैलेट हेड्स बर बहिर ले लाय स्टीम बीच अऊ मेपल के लकरी के भरोसा मं रहत हवय. जउनि: जीतू ये लऊठी ला मैलेट बनाय ला सुरु करथे. वो ह हॉर्सबैक पोलो सेती 50 ले लेके 53 इंच तक ले अऊ सइकिल पोलो सेती 32 ले 36 इंच तक के बेंत ला छांटथे

अशोक ला केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान अऊ उत्तर प्रदेश ले आमलोगन मन के अऊ सेना के हरेक टीम ले    100 ले जियादा सइकिल पोलो मैलेट बनाय बछर भर मं मिलथे. “अक्सर येकर खिलाड़ी गरीब होथे, येकरे सेती मोला येला बनाय ला परथे,” वो ह ये समझावत कहिथे के वो ह अपन स्टिक ला सिरिफ 100 रूपियाच मं काबर बेंचथे. वो ला ऊंट पोलो अऊ हाथी पोलो सेती मैलेट बनाय के ऑर्डर घलो मिलथे, जऊन ह बहुतेच कम होथे, अऊ भेंट देय सेती छोटे अकार के सजावटी सेट घलो.

“आज मुस्किल ले कऊनो देखेइय्या हवय,” मइदान ले बहिर निकरत अशोक कहिथें.

वो ला सुरता हवय, जब ये मइदान मं भारत अऊ पाकिस्तान के बीच मं मैच खेले गे रहिस, वो बखत 40,000 ले जियादा देखेइय्या आय रहिन अऊ कतको त जगा नई मिले का करन रुख मन मं घलो बइठे रहिन. अइसने सुरता मन ओकर भावना ला जगा के रखथें, अऊ मैलेट बनाय के ओकर परिवार के लंबा विरासत ला बना के रखथें.

*****

“लोगन मन मोला पूछथें, काय ये बूता मं कऊनो कारीगरी हवय? ये ह सिरिफ एक ठन बेंत आय.”

मैलेट बनावत, वो ह कहिथे, “खेल के भाव ला मसूस करे ह कतको कच्चा माल ला लेके एक संग बनाय के नतीजा आय. ये भाव एके संग संतुलन, लचकदार, ताकत अऊ हरू होय के संग हवय. ये ला झटकावाला घलो नई होय ला चाही.

हमन ओकर घर के तीसरा मंजिल मं बने कारखाना मं जावत कमती उज्जर मं एक एक पांव धरत संकेला सीढ़ि मन ला चढ़थन. वो ह कहिथें, झटका आय के बाद ले ओकर बर ये ह मुस्किल आय, फेर वो ह काम के प्रन ले हवंय. हॉर्सबैक पोलो मैलेट्स के मरम्मत के काम साल भर चलत रहिथे, फेर सइकिल पोलो मैलेट बनाय के मांग के चढ़ती सिरिफ सितंबर ले मार्च महिना के सीजन मं होथे.

Meena undertakes the most time consuming aspects of making mallets – strengthening the shaft and binding the grip
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in addition to doing the household work and taking care of Naina, their seven-year old granddaughter
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मीना (डेरी) घर के बूता करे अऊ अपन सात बछर के पोती नैना (जउनि) के देखभाल करे ला छोड़ के, मैलेट बनाय  मं सबले जियादा बखत लेवेइय्या काम -लऊठी ला मजबूत बनाय अऊ पकड़ ला बांध के रखे- के बूता करथें

अशोक कहिथे, “ऊपर मं जीतू कठिन बूता ला करथे. मैडम अऊ मंय बाकि काम ला तरी के अपन खोली मं करथन.”  वो अपन घरवाली के जिकर करत हवय जऊन ‘मैडम’ ह ओकर तीर बइठे हवय. साठ बछर के वो ह हंस परथे काबर के वो ह वोला ‘बॉस’ कहत रहिथे. हमर आधा बात सुनत वो ह अपन फोन मं कऊनो ग्राहेक ला नान मैलेट सेट के नमूना के फोटू भेजत रहिस.

भेजे के काम जब हो जाथे त वो ह हमर खाय सेती कचोरी तले सेती रंधनी खोली मं चले जाथें. मीना कहिथें, “मंय 15 बछर ले पोलो के काम करत हवंव.”

दीवार ले एक ठन जुन्ना मैलेट निकारत अशोक पोलो स्टिक के तीन माई जिनिस डहर आरो करथे: बेंत के लउठी, लकरी के मुड़ी अऊ सूती स्लिंग के संग रबर धन रेक्सिन ग्रिप हैंडल. हरेक जिनिस ला बनाय का काम ओकर घर के अलग अलग लोगन के हाथ ले होथे. ये बूता ह जीतू ले सुरु होथे, जऊन ह घर के तीसर मंजिल मं काम करत हवय. लऊठी काटे बर वो ह मशीन कटर बऊरथे जेन ला वो ह अपन खुद बनाय हवय. बेंत ला पातर करे, वो ह एक ठन रंडा (रेंदा) ले काम लेथे जेन ह लऊठी ला लचीला बनाथे अऊ खेले बखत येकर ले झटका नई लगय.

अशोक कहिथें, “हमन बेंत के तरी खीला ला नई लगावन, काबर येकर ले घोड़ा ला लग सकत हवय. मानो गर घोड़ा ह लोलवा-खोरवा होगे त तोर लाखों रूपिया बेकार.”

Jeetu tapers the cane into a shaft for it to arc when in play. He makes a small slit at the end of this shaft
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He makes a small slit at the end of this shaft and then places it through the mallet’s head.
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जीतू खेल के बखत लचक सेती बेंत ला घुमावदार अकार देथें वो ह येकर (डेरी) आखिर मं एक ठन छेदा करथे अऊ येला मैलेट के मुड़ी (जउनि) मं फंसा देथे

जीतू कहिथें, “मोर काम सुरु ले तकनीक के रहे हवय.” वो ह पहिली फर्नीचर बनावत रहिस, अऊ ये बखत राजस्थान सरकार के सवाई मान सिंह अस्पताल के ‘जयपुर फुट’ विभाग मं काम करत हवय, जिहां ओकर जइसने कारीगर मन नकली हाथ-पांव बनाथें.

जीतू मैलेट के मुड़ी ला दिखावत बताथे के कइसने वो ह ये मं मसीन ले छेदा करथे, जेकर ले ये मं बेंत के मूठ ला लगाय जाय सके. येकर बाद, वो ह येला मीना ला दे देथे.

रंधनी खोली तरी के तल्ला मं हवय, जेकर ले लगे सुते के दू ठन खोली हवय. मीना ये खोली मन मं जरूरत के हिसाब ले आवत जावत बूता करत रहिथे. वो ह कोसिस करथे के मैलेट के बूता मंझनिया बखत करे, खाय के बाद धन पहिली, मंझनिया 12 ले संझा 5 बजे के बीच, फेर अचानक ले ऑर्डर आ जाय ले, ओकर बूता थोकन बढ़ जाथे.

मीना के हिस्सा मं अइसने बूता आथे जऊन मं मैलेट बनाय मं सबले जियादा बखत लागथे –मूठ ला मजबूत बनाय अऊ पकड़ ला बांधे के बूता. ये मं मूठ के पातर छोर मं फेविकोल मं सनाय सूती पट्टी बांधे के बारीक बूता घलो हवय. एक बेर ये ह हो जाय ले वो ह मूठ ला सूखे सेती 24 घंटा तक ले सम भूंइय्या मं राख देथे, जेकर ले ओकर अकार ह बढ़िया बने रहिथे.

येकर बाद वो ह रबर धन रेगजीन के ग्रिप ला बांधथे, गोंद अऊ खिला ले मोठ हत्था ऊपर सुती के लटकन लगाथे. ये ग्रिप देखे मं साफ अऊ लटकन ला मजबूत होय ला चाही, जेकर ले ये ह खिलाड़ी के हाथ ले झन फिसलय.

Meena binds rubber or rexine grips and fastens cotton slings onto the thicker handles using glue and nails. This grip must be visibly neat, and the sling strong, so that the stick does not slip out of the player’s grasp
PHOTO • Shruti Sharma
Meena binds rubber or rexine grips and fastens cotton slings onto the thicker handles using glue and nails. This grip must be visibly neat, and the sling strong, so that the stick does not slip out of the player’s grasp
PHOTO • Shruti Sharma

मीना रबर धन रेगजीन के ग्रिप ला बांधथे, गोंद अऊ खिला ले मोठ हत्था ऊपर सुती के लटकन लगाथे. ये ग्रिप देखे मं साफ अऊ लटकन ला मजबूत होय ला चाही, जेकर ले ये ह खिलाड़ी के हाथ ले झन फिसलय

ये जोड़ा के 36 बच्छर के बेटा सत्यम पहिली ये काम मं हाथ बंटावत रहिस, फेर एक सड़क मं होय एक ठन अलहन मं ओकर गोड़ के तीन ठन आपरेसन होय हवय, वो ह भूंइय्या मं बइठे नई सकय. कतको बेर संझा के वो ह रात के खाय सेती सब्जी बना देथे धन दार मं ढाबा जइसने बघार लगा देथे.

ओकर घरवाली राखी हफ्ता के सातों दिन बिहनिया 9 बजे ले रात के 9 बजे तक ले, घर के तीर के पिज़्ज़ा हट मं काम करथे. खाली बखत मं वो ह अपन बेटी नैना के संग घर मं ब्लाउज अऊ कुर्ती जइसने माईलोगन मन के पहिरे के कपड़ा सिलथे. सात बछर के नैना अपन स्कूल के काम अक्सर अपन ददा सत्यम के मदद लेथे.

नैना 9 इंच अकार के सजावटी पोलो मैलेट ले खेले ला लगथे, जऊन ला जल्दी ओकर ले लेय जाथे, काबर के ये नाजुक हवय. दू मैलेट वाले ये जोड़ा का पेंदा लकरी ले बने हवय, जेकर ऊपर नकली मोती ला गेंद जइसने सजाय गे हवय. ये जोड़ा के दाम 600 रूपिया आय. मीना कहिथे के खेले के बड़े मैलेट के बनिस्बत, सजावटी ये नानकन मैलेट बनाय मं जियादा मिहनत लगथे. “ये मं लगेइय्या काम भारी झंझट वाले आय.”

मैलेट बनावत, दू अलग-अलग हिस्सा लऊठी के मुड़ी अऊ बेंत के मुठ ला जोड़े ह मुस्किल बूता आय. येकरे ले मैलेट के संतुलन बनथे. मीना कहिथें, “संतुलन ला बनाय हरेक कऊनो का बस के नो हे.”  ये औजार सेती एक ठन अइसने खासियत आय जेकर संग समझौता नई करे जाय सकय, अशोक सहज भाव ले कहिथे, “इही बूता त मंय करथों.”

भूंइय्या मं बिछाय लाल गद्दी ऊपर अपन डेरी गोड़ ला सीधा करके बइठे, वो ह लऊठी के मुड़ी मं छेदा के चरों डहर गोंद लगा देथे, फेर ओकर गोड़ के अंगूठा अऊ तर्जनी ऊँगली के मंझा मं बेत के मूठ मं फंसे हवय. जब ओकर ले पूछे जाथे के बेंत के मूठ ला बीते 55 बछर मं वो ह कतक बेर फंसाय होही, त अशोक ह हांस देथे अऊ कहिथे, “येकर कऊनो गिनती नो हे.”

This photo from 1985 shows Ashok setting the balance of the mallet, a job only he does. He must wedge a piece of cane onto the shaft to fix it onto the mallet’s head and hammer it delicately to prevent the shaft from splitting completely.
PHOTO • Courtesy: Ashok Sharma
Mo hammad Shafi does varnishing and calligraphy
PHOTO • Jitendra Jangid

साल 1985 के ये फोटू (डेरी) मं अशोक ह मैलेट ला सोझ करत दिख्त हवंय. परिवार मं ये बूता ला सिरिफ उहिच करथें. वो ह मूठ के संग बेंत के टुकड़ा ला फंसावत हवंय, जेकर ले येला मेलेट के मुड़ी मं जमा सकें, मूठ ला टूटे ले बचाय सेती वो ह येकर ऊपर हथोड़ा ले धीरे-धीरे ठोंकथें. मोहम्मद शफ़ी (जउनी) येकर रंग रीगन के काम करथें अऊ ये मं सुंदर ढंग ले (कैलीग्राफ़ी) लिखथें

जीतू कहिथे, “ये ह चूड़ी होके, जम जाही, फिर ये बहिर नई निकरय.” गेंद के सरलग मार ला देखत बेंत अऊ ये लकरी ला जमा के रखे जाथे.

महीना भर मं करीबन 100 मैलेट बनाय जाथे. बीते 40 बछर ले अशोक के संग बूता करत मोहम्मद शफ़ी वो ला रंग रोगन करथें. वार्निश करे ले वो ह चमके लगथे, जऊन ह वो ला ओद्दा अऊ धुर्रा ले घलो बचाथे. शफ़ी मैलेट ला लंबा धरके एक डहर ले पोते ला धरथे. येकर बाद, अशोक, मीना, अऊ जीतू मैलेट के हेंडल के तरी मं ‘जयपुर पोलो हाउस’ के लेबल ला चिपकाथें.

एक ठन मैलेट ला बनाय मं 1,000 रूपिया के लागत आथे, अशोक बताथें ये ला बेंचे मं येकर आधा दाम घलो हाथ मं नई आवय. वो ह एक ठन  मैलेट ला 1,600 रूपिया मं बेंचे के कोसिस करथें, फेर हमेसा नई बिकय. ओकर मुताबिक, “खिलाड़ी मन सही दाम नई देवंय, वो मन 1,000 ले 1,200 रूपिया मांगथें.”

मन छोटे करत के मैलेट ले होय कमई भारी कम हवय, वो ह बताथें के येकर हरेक हिस्सा बहरी चेत धरके छांटे जाथे. अशोक के मुताबिक, बेंत (सिरिफ) असम अऊ रंगून ले कोलकाता आथे.” ये मं ओद्दा के अनुपात, लचक, सघनता अऊ मोठ बरोबर होय ला चाही.

अशोक कहिथें, “कोलकाता मं बेंत बेंचेइय्या कारोबारी मन के बेंत मोठ होते, जऊन ह पुलिस वाला मन के डंडा अऊ डोकरा सियान के लऊठी बनाय के जियादा काम आथे. अइसने हजार बेंत ले सिरिफ सौ ठन मोर काम के लइक होथे.” कारोबारी मन जतका बेंत पठोथें, वो मन ले अधिकतर मैलेट बनाय के लिहाज ले जियादा मोठ होथें, येकरे सेती महामारी ले पहिली तक वो ह सही बेंत छांटे ला खुदेच हरेक बछर कोलकाता जावत रहिस. “अब मंय कोलकाता तभेच जाय सकहूँ जब मोर करा लाख रूपिया होय.”

Mallets for different polo sports vary in size and in the amount of wood required to make them. The wood for a horseback polo mallet head (on the far right) must weigh 200 grams for the length of 9.25 inches.
PHOTO • Shruti Sharma
The tools of the craft from left to right: nola , jamura (plier), chorsi (chisel), bhasola (chipping hammer), scissors, hammer, three hole cleaners, two rettis ( flat and round hand files) and two aaris (hand saws)
PHOTO • Shruti Sharma

डेरी : अलग-अलग पोलो खेल मं मैलेट के अकार अलग अलग होथे, अऊ ये ला बनाय मं लकरी घलो अलग अलग लगथे. घोड़ा मं बइठ के खेले जवेइय्या पोलो मं मैलेट के मुड़ी (सबले जउनि) के लकरी के वजन ओकर 9.25 के लंबाई के हिसाब ले 200 ग्रामं होय ला चाही. जउनि: मैलेट बनाय के अऊजार (डेरी ले जउनि): नोला, जमुरा (प्लायर) चोरसी (छेनी), भसोला (छिल हथौड़ा), कैंची, हथौड़ी, छेद के सफ़ाई करे के तीन अऊजार , दू ठन रेती (चपटा अऊ गोल हत्था वाले), अऊ दू ठन आरी

अशोक कहिथें के इहाँ के बजार के लकरी के बछरों तक ले बऊरे अऊ काम के लइक नई होय सेती वो ला मैलेट के मुड़ी बनाय सेती बहिर के स्टीम बीच लकरी अऊ मेपल के लकरी ऊपर आसरित होय ला मजबूर कर  दे हवय.

वो ह बताथें के वो ह कभू लकरी बेंचेइय्या मन ला ये नई बतायेव के वो ह बिसोय लकरी ले काय बनाथे. “वो मन ये कहत दाम ला बढ़ा दिहीं के तंय बड़े बूता करत हस!”

येकरे सेती वो ह वो मन ला बताथे के  वो ह टेबल के पाया बनाथे. वो ह हंसत कहिथे, “गर कऊनो पूछ थे के काय मंय बेलन घलो बनाथों, त मंय हव कहि देथों.”

ओकर कहना हवय, “गर मोर करा 15-20 लाख रूपिया होतिस, त मोला कऊनो रोके नई सकतिस.” ओकर मुताबिक, अर्जेंटीना मं होवेइय्या टिपुआना टिपु रुख के टिपा लकरी सबले बढ़िया होथे, जेकर ले अर्जेंटीना के पोलो मैलेट के मुड़ी ला बनाय जाथे. वो ह कहिथे, “ये ह बनेच हल्का होथे अऊ नई टूटय, बस परत निकरथे.”

अर्जेंटीना के मैलेट कम से कम 10,000 से ले 12,000  रूपिया मं बिकाथे. “बड़े खिलाड़ी मन अर्जेंटीना लेच मंगाथें.”

Ashok’s paternal uncle, Keshu Ram with the Jaipur team in England, standing ready with mallets for matches between the 1930s and 1950s
PHOTO • Courtesy: Ashok Sharma
PHOTO • Courtesy: Ashok Sharma

साल 1930 ले लेके 1950 के दसक मं होय मैच सेती, अशोक के कका केशू राम (डेरी) अऊ ददा कल्याण (जउनि) जयपुर टीम के संग इंग्लैंड मं रहिन, अऊ ये फोटू मं मैच मं बऊरे मैलेट के संग तियार होके ठाढ़े दिखत हवंय

अब अशोक आर्डर मिले ले घुड़सवारी पोलो के मैलेट बनाथें अऊ विदेसी मैलेट के मरम्मत करथें. भारत मं सबले  जियादा पोलो क्लब जयपुर जिला मं हवय, फेर येकर बाद घलो सहर के खेल कूद के समान के दूकान मन मैलेट ला बेंचे सेती नई रखंय.

लिबर्टी स्पोर्ट्स (1957) के अनिल छाबड़िया मोला अशोक के बिजनेस कार्ड ला धरावत कहिथें, “गर कऊनो पोलो मैलेट के बारे मं पूछथे, त हमन वोला हमेसा पोलो विक्ट्री के आगू बने जयपुर पोलो हाउस ला भेजथन.”

पोलो विक्ट्री सिनेमा (अब होटल) ला अशोक भाई के कका केशू राम ह 1933 मं इंग्लैंड के दौरा मं गे जयपुर टीम के ऐतिहासिक जीत के याद मं बनवाय रहिस. केशू राम पोलो मैलेट बनेइय्या अकेल्ला कारीगर रहिस,  जऊन ह टीम के संग वो दौरा मं गे रहिस.

ये बखत, जयपुर अऊ दिल्ली मं होवेइय्या सलाना पोलो खेल-प्रतियोगिता ह जयपुर के ऐतिहासिक टीम के तीन झिन सदस्य- मान सिंह द्वितीय, हनूट सिंह अऊ पृथी सिंह- के नांव मं आयोजित करे जाथे. वइसे, भारत के पोलो ले जुड़े इतिहास मं अशोक अऊ ओकर परिवार के योगदान ला कऊनो खास पहिचान नई मिले हवय.

वो ह कहिथें, “जब तक केन के स्टिक ले खेलहीं, तब तक ले खिलाड़ी मन ला मोर तीर आयेच ला परही.”

ये कहिनी मृणालिनी मुखर्जी फ़ाउंडेशन (एमएमएफ़) ले मिले फ़ेलोशिप के तहत लिखे गे हवय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Reporter : Shruti Sharma

श्रुति शर्मा, एमएमएफ़-पारी फ़ेलो (2022-23) हैं. वह कोलकाता के सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र से भारत में खेलकूद के सामान के विनिर्माण के सामाजिक इतिहास पर पीएचडी कर रही हैं.

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Editor : Riya Behl

रिया बहल, मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट हैं और जेंडर व शिक्षा के मसले पर लिखती हैं. वह पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया (पारी) के लिए बतौर सीनियर असिस्टेंट एडिटर काम कर चुकी हैं और पारी की कहानियों को स्कूली पाठ्क्रम का हिस्सा बनाने के लिए, छात्रों और शिक्षकों के साथ काम करती हैं.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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