“ऊ लोग हमरा मार देले रहित…” 28 बरिस के अरुणा सदमा में बाड़ी. ऊ लगे खेलत आपन छव बरिस के लइकी के देखके बोलली. इहंवा ‘ऊ लोग’ मतलब अरुणा के घर के लोग. आउर उनकर घर के लोग भी समझ नइखे पावत उनकरा का भइल बा, ऊ काहे अइसन बेव्यवहार करत बाड़ी. “हम सभे सामान फेंक देहम. घर में ना रहम. हमनी के घर लगे केहू ना आई…”

ऊ अक्सरहा आपन घर लगे, पहाड़िए पहाड़िए भटकत रहेली. ई इलाका तमिलनाडु के कांचीपुरम जिला में पड़ेला. कबो केहू उनकरा से डेरा के भागेला, कहीं ऊ मार ना देस, त कबो केहू उनकरा पर पत्थर चलावेला. बाबूजी के उनकरा पकड़के घरे लावे के पड़ेला. आउर आउर केतना बेरा त बाहिर जाए से रोके खातिर उनकरा के कुरसी से बांधे के भी पड़ जाला.

अरुणा (नाम बदलल बा) जब 18 बरिस के रहस त पता चलल उनकरा सिजोफ्रेनिया (एगो मनोरोग) बा. एह बेमारी से उनकर सोचे, समझे आउर बेवहार करे के तरीका पर असर पड़ेला.

कांचीपुरम के चेंगलपट्टू तालुका में, कोंडांगी गांव के एगो दलित कॉलोनी में अरुणा के घर बा. घर के बाहिर दुआरी पर बइठल अरुणा आपन कठिन दिन के बारे में बात ना करे के चाहत रहस. अचानक ऊ उठली आउर भीतर चल गइली. गुलाबी नाइटी पहिनले, छोट-छोट आउर बेतरीका काटल बाल, लम्हर आउर सांवर एगो मेहरारू. ऊ तनी झुक के चलेली. आपन एगो कमरा के फूस के झोंपड़ी में निकलली, त हाथ में दवाई के दू गो पत्ता आउर डॉक्टर के परचा रहे. दवाई के एगो पत्ता देखावत बतइली, “एकरा से हमरा नींद आवेला. दोसर वाला नर्वस ब्रेकडाउन रोके खातिर बा. अब हमरा नीमन नींद आवेला. दवाई लावे हम हर महीना सेम्बक्कम (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) जाइले.”

शांति शेष दीदी ना रहती, त अरुणा के बेमारी के पता कबो न चलित.

Aruna and her little daughter in their home in the Dalit colony in Kondangi village, Kancheepuram district.
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Shanthi Sesha, who was the first to spot Aruna's mental illness. Her three decades as a health worker with an NGO helped many like Aruna, even in the remotest areas of Chengalpattu taluk, get treatment and medicines
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बावां: अरुणा आपन छोट लइकी संगे कोंडांगी गांव में दलित टोला के आपन घर में . दहिना: अरुणा के मनोरोग के पहिल बेर भांपे वाली शांति शेष, तीन दशकन से एगो एनजीओ खातिर स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप मेंअरुणा जइसन बहुते मेहरारू के मदद कइली. चेंगलपट्टू के भीतरी इलाका सभ में इलाज आउर दवाई पहुंचइली

शांति, 61 बरिस, के समझ में आवत रहे का चलत बा. सिजोफ्रेनिया से निपटे में ऊ अरुणा जइसन सैंकड़न मनोरोगी के मदद कइले बाड़ी. साल 2017-2022 के बीच, खाली पांच बरिस में ऊ चेंगलपट्टू के 98 देमागी मरीज के पहचान कइली आउर ओह लोग तक दवाई आउर दोसर सुविधा पहुंचावे में जरूरी भूमिका निभइली. शांति सिजोफ्रेनिया रिसर्च फाउंडेशन (एससीएआरएफ) संगे ठेका पर काम करे वाला एगो सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता रहल बाड़ी. कोंडांगी गांव में लोग उनकरा मनोरोगी के सेवा करे वाला के रूप में पहचानेला.

कोई एक दशक पहिले शांति के भेंट अरुणा से भइल रहे, “ओह घरिया ऊ एगो जवान आउर दुबर पातर लइकी रहस. बियाह ना भइल रहे. खाए-पिए में कोताही करत रहस, आउर खाली एने-ओने घूमे में मन लागत रहे. हम घर के लोग से  उनकरा तिरुकालुकुंद्रम में लागल चिकित्सा शिविर में लेके आवे के कहनी.” ई कैम्प एससीएआरएफ ओरी से हर महीना लगावत जात रहे. इहंवा सिजोफ्रनिया के मरीज के पहचाने आउर उनकर इलाज के काम कइल जात रहे.

अरुणा के परिवार जब उनकरा कोडांगी से 30 किमी दूर तिरुकालुकुंद्रम के चिकित्सा शिविर ले जाए के कोसिस कइलक, त ऊ हिंसक हो गइली. एतना गोस्सा में आ गइल रहस कि केहू के अपना लगे आवे ना देस. का कइल जाइत, मजबूरी में उनकर हाथ-गोड़ बांध के कैम्प लावे के पड़ल. शांति कहत बाड़ी, “हमरा (मनोचिकित्सक ओरी से) 15 दिन में एक बेर उनकरा सूइया देवे के कहल गइल.”

सूइया आउर दवाई के अलावा, अरुणा के कैम्प में हर पंद्रह दिन पर काउंसलिंग कइल जात रहे. शांति बतइली, “उहंवा कुछ बरिस ले उनकर इलाज भइल. एकरा बाद हम उनकरा सेम्बक्कम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेके अइनी.” एह पीएचसी में एगो दोसर एनजीओ (बनयान) मानसिक स्वास्थ्य क्लिनिक चलावत रहे. शांति बतावत बाड़ी, “अरुणा अब नीमन बाड़ी. ऊ अच्छा से बात कर लेवेली.”

कोंडांगी गांव के स्वास्थ्य केंद्र, अरुणा के घर से कुछे गज के दूरी पर बा. इहंवा नायडू आउर नायकर जइसन ऊंच जाति के लोग रहेला. शांति भी एगो नायडू हई. उहो इहंई रहेली. शांति मानेली, “चूंकि अरुणा ओहि लोग के जात (अनुसूचित जाति) से आवेली, एहि से ऊ लोग उनकरा (दलित बस्ती में) बरदास्त कर लेवेला.” दलित बस्ती के लोग पड़ोस के नायडू-नायकर इहंवा आन-जान ना करेला. ऊ बतइली. “जदि अरुणा इहंवा कदम रखले रहती, त बवाल हो जाइत.”

इलाज के चार बरिस भइल रहे, अरुणा के बियाह कर देहल गइल. बाद में जब ऊ पेट से भइली, मरद उनकरा छोड़ देहलन. ऊ आपन नइहर लउट अइली. इहंवा ऊ बाबूजी आउर बड़ भाई संगे रहेली. उनकर एगो बड़ बहिनो बाड़ी, जे चेन्नई में रहेली. बड़ बहिने अरुणा के दवाई आ इलाज के ख्याल रखेली आउर उनकर लइकी के सम्भारेली.

ऊ कहेली, शांति दीदी (अक्का) चलते हम पहिले से नीमन हो गइल बानी.

Shanthi akka sitting outside her home in Kondangi. With her earnings from doing health work in the community, she was able to build a small one-room house. She was the only person in her family with a steady income until recently
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शांति दीदी कोंडांगी के आपन घर के बाहिर बइठल बाड़ी. गांव में स्वास्थ्य कर्मचारी के रूप में जे कमाई होखेला, ओकरा से ऊ अपना खातिर एगो कमरा के छोट घर बना लेले बाड़ी. हाल-हाल तक आपन परिवार खातिर ऊ अकेला कमावे वाला रहस

A list of villages in Tamil Nadu's Chengalpattu taluk that Shanthi would visit to identify people suffering from schizophrenia
PHOTO • M. Palani Kumar
A list of villages in Tamil Nadu's Chengalpattu taluk that Shanthi would visit to identify people suffering from schizophrenia
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तमिलनाडु के चेंगलपट्टू तालुका के गांव सभ के लिस्ट, इहंवा शांति सिजोफ्रेनिया के मरीज के पता लगावे जाएली

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हाथ में टिफिन पकड़ले, शांति भोरे 8 बजे घर से निकल जाएली. निकले घरिया उनकर हाथ में चेंगलपट्टू के अइसन गांव आउर बस्ती के लिस्ट भी रहेला जहंवा ऊ सर्वे करे पहुंचेली. ई सभ चेंगलपट्टू के भीतरी इलाका में आवेला. उहंवा पहुंचे खातिर पहिले त उनकरा एक घंटा पइदल चले के पड़ेला. पइदल 15 किमी चलला के बाद ऊ मदुरंतकम बस स्टैंड पहुंचेली. ऊ कहली, “इहंवा से गांव जाए के सवारी मिलेला.”

उनकर काम सभे तालुका में घूमे आउर मानसिक बेमारी से परेसान लोग के पता लगावे के रहत रहे. एकरा बाद ऊ ओह लोग तक इलाज आउर दवाई पहुंचावे में मदद भी करत रहस.

शांति के इयाद आवत बा, “हमनी पहिले नजदीक पड़े वाला गांव जाइले. एकरा बाद भीतर के इलाका पहुंचिले. दूर दराज के इलाका में पहुंचे खातिर एगो खास बखत पर ही कवनो सवारी, चाहे बस मिलेला. कबो कबो त अइसन होला कि भोर के 8 बजे से बस स्टैंड पर इंतजार करत-करत दुपहरिया हो जाला,”

शांति के खाली एतवार के छुट्टी रहत रहे. तीन दशक तक ऊ स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में दूर दराज के गांव-देहात में जाके काम कइली, एह बीच उनकर रूटीन कबो ना बदलल. उनकर मिहनत, लगन, भले केहू ना देखले होखे, पर बहुते जरूरी रहे.  काहे कि भारत के मोटा-मोटी 10.6 प्रतिशत वयस्क आबादी मानसिक विकार से जूझ रहल बा. इहे ना 13.7 प्रतिशत लोग आपन जिनगी में कबो ना कबो मानसिक बेमारी से गुजरेला. बाकिर दुख के बात बा कि जब इलाज करवावे के बेरा आवेला त 83 में से कोई एगो आदमी डॉक्टर लगे जाएला.  एकरा अलावे, सिजोफ्रेनिया से जूझ रहल अंदाजन 60 प्रतिशत अइसन लोग बा, जेकरा जरूरी इलाज नइखे मिलत.

शांति साल 1986 से सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में काम करे के सुरु कइली. ओह घरिया भारत के जादे राज्य में मानसिक सेहत खातिर पर्याप्त पेशेवर लोग ना रहे. शहर में त थोड़ा बहुत लोग के एह खातिर प्रशिक्षित कइल गइल रहे, बाकिर गांव में तो एकदम्मे खराब हालत रहे. एह समस्या से निपटे खातिर, 1982 में राष्ट्रीय मानसिक सेहत कार्यक्रम (एनएचएमपी) सुरु कइल गइल. एह कार्यक्रम के मकसद सभे, खास करके वंचित आउर कमजोर तबका तक ‘न्यूनतम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल’ पहुंचावल बा.

1986 में शांति सोशल वर्कर के रूप में रेड क्रॉस में काम करे के सुरु कइली. ऊ चेंगलपट्टू के दूर दराज इलाका में जाए लगली. उहंवा पहिले पहिले ऊ देह से अक्षम लोग के पहचाने आउर ओह लोग के तत्काल जरूरत के जानकारी संगठन के देवे के काम करत रहस.

A photograph from of a young Shanthi akka (wearing a white saree) performing Villu Paatu, a traditional form of musical storytelling, organised by Schizophrenia Research Foundation. She worked with SCARF for 30 years.
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In the late 1980s in Chengalpattu , SCARF hosted performances to create awareness about mental health
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बावांः शांति दीदी (उज्जर साड़ी पहिनले) के नया उमिर के फोटो, एह में ऊ सिजोफ्रेनिया रिसर्च फाउंडेशन ओरी से आयोजित संगीतमय कहानी के एगो पारंपरिक रूप विल्लू पातु में भाग लेत बाड़ी. एससीएआरएफ खातिर ऊ 30 बरिस ले काम कइली. दहिना: 1980 के दशक के आखिर में चेंगलपट्टू में दिमागी सेहत के बारे में लोग के जागरुक करे बदे एससीएआरएफ अइसन आयोजन करत रहे

एससीएआरएफ 1987 में शांति से संपर्क कइलक. एह घरिया ई संगठन कांचीपुरम जिला के तिरुपुरुर ब्लॉक में मानसिक रूप से बेमार लोग के पुनर्वास खातिर एनएमएचपी के तहत तरह-तरह के कार्यक्रम करत रहे. संगठन तमिलनाडु के गांव-देहात में समुदाय आधारित स्वंयसेवक तइयार करे खातिर प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन करत आइल रहे. एससीएआरएफ के निदेशन, डॉ. आर. पद्मावती के कहनाम बा, “समुदाय के जे लोग स्कूली पढ़ाई पूरा कइले रहे, ओह लोग के काम पर रखल गइल. मानसिक रूप से गड़बड़ी से जूझ रहल लोग के पहचान करे आउर ओह लोग के अस्पताल भेजे खातिर अइसन लोग के प्रशिक्षण देहल गइल.” पद्मावती एह संगठन से 1987 में जुड़ल रहस.

अइसन सभे प्रशिक्षण शिविर में शांति के अलग-अलग तरह के देमागी बेमारी आउर ओकरा कइसे पहचानल जाव, एह बारे में सिखे के मिलल. शिविर में ऊ अइसन मानसिक बेमारी से जूझ रहल लोग के अस्पताल में इलाज करावे खातिर प्रेरित करे के गुर भी सीखली. सुरु सुरु में एह काम खातिर उनकरा 25 रुपइया महीना के पगार मिलत रहे. उनकर काम मानसिक रूप से बेमार लोग के पता लगावे आउर ओह लोग के मेडिकल कैंप तक लेके आवे के रहे. ऊ बतावत बाड़ी, “हम आउर एगो आउर कार्यकर्ता के तीन गो पंचायत- हर पंचायत में 4 से 5 गो गांव, के जिम्मेदारी देहल गइल रहे.” आगू आवे वाला साल में उनकर पगार में धीरे धीरे इजाफा होखत गइल. साल 2022 में जब ऊ एससीएआरएफ से रिटायर कइली, त उनकर पगार 10,000 रुपइया महीना (भविष्य निधि आउर बीमा के पइसा कटला के बाद) रहे.

ई काम उनकरा बदे एगो स्थायी कमाई के जरिया बन गइल रहे. जिनगी के उतार-चढ़ाव के बीच इहे कमाई सहारा बनल. उनकर मरद के पिए के लत रहे, ऊ परिवार के भरण-पोषण बहुत मुस्किल से करत रहस. शांति के 37 बरिस के लइका बिजली मिस्त्री के काम करेले. उनकरा रोज के 700 रुपइया दिहाड़ी मिलेला. बाकिर उनकर आमदनी के कवनो ठिकाना ना रहे. काहे कि केतना बेरा महीना के दस दिन से जादे काम ना मिलेला. उनकर घरवाली आउर लइकी के जरूरत एकरा से पूरा ना पड़ेला. शांति के माई भी ओह लोग संगे रहेली. बाद में 2022 में एससीएआरएफ के सिजोफ्रेनिया कार्यक्रम बंद हो गइल. एकरा बाद घर चलावे खातिर शांति के तंजावुर गुड़िया बनावे के काम सुरु करे के पड़ल. अब उनकरा 50 गो गुड़िया बनावे खातिर 3,000 रुपइया मिलेला.

गांव देहात में काम करे में बितल, उतार-चढ़ाव से भरल ई 30 बरिस शांति के थका ना पाइल. एह एनजीओ के आखिर पांच बरिस में ऊ चेंगलट्टू के, कमो ना त 180 गांव आउर बस्ती के चक्कर लगइले होखिहन. ऊ कहे लगली, “उमिर हो गइल, बाकिर ई काम ना छूटल. अइसे त हमरा जादे पइसा ना मिलत रहे, बाकिर जे भी मिलत रहे ओकरे में गुजारा कर लेत रहनी. आज हमरा पूरा संतोष बा. एह काम में हमरा बहुते मान सम्मान मिलल.”

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शांति जब चेंगलपट्टू में चक्कर काटत रहस, त उनकरा संगे सेल्वी ई., 29 बरिस, भी रहस. सेल्वी भी दूर दराज के गांव में घूम-घूम के सिजोफ्रेनिया से जूझ रहल लोग के पता लगाव रहस. साल 2017 से 2022 के बीच, सेल्वी 117 गांव, तीन गो ब्लॉक पंचायत- उतिरामेरुर, कट्टनकोलट्टूर आउर मदुरंतकम घूमल. इहंवा के 500 से भी जेदा मेहरारू लोग के इलाज करावे में मदद कइली. शांति जका सेल्वी भी एससीएआरएफ खातिर, 25 बरिस ले काम कइली. अबही ऊ एगो दोसरा तरह के प्रोजेक्ट में लागल बाड़ी. एह प्रोजेक्ट के काम डिमेंशिया (भूले के बेमारी) के मरीजन के पहचान कइल बा.

सेल्वी के जनम चेंगलपट्टू के सेम्बक्कम गांव में भइल. स्कूल खतम करते ऊ स्वास्थ्य कार्यकर्ता के काम करे लगली. अइसे उनकर पारिवारिक पेशा, बुनाई हवे. ओह लोग के तमिलनाडु में अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में पहचानल जाला. उनकर कहनाम बा, “हम दसमा के बाद ना पढ़ पइनी. कॉलेज जाए खातिर तिरुपुरूर जाए के पड़त रहे. ई हमनी के घर से आठ किमी दूर रहे. हमरा पढ़े के त मन रहे, बाकिर माई बाबूजी लोग एतना दूर पढ़े जाए बदे भेजे के तइयार ना भइल.”

Selvi E. in her half-constructed house in Sembakkam village. She has travelled all over Chengalpattu taluk for more than 25 years, often with Shanthi, to help mentally ill people
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सेल्वी ई. सेम्बक्कम गांव के आपन आधा-अधूरा बनल घर में बइठल बाड़ी. उनकरा चेंगलपट्टू में घूमत 25 बरिस से जादे हो गइल. देमागी रूप से बेमार लोग के मदद खातिर ऊ इहंवा अक्सरहा शांति संगे आवत रहस

सेल्वी के बियाह भइल, त ऊ 26 बरिस के रहस. बियाह के बाद अइसन परिस्थिति भइल कि ऊ आपन परिवार खातिर अकेला कमावे वाला बन गइली. उनकर घरवाला बिजली मिस्त्री के काम करत रहस. बाकिर ओह में आमदनी के कवनो ठिकाना ना रहत रहे. सेल्वी के मामूली आमदनी से घर के खरचा चले लागल. उनकरा आपन दुनो लरिका लोग के पढ़ाई भी देखे के पड़त रहे. उनकर बड़ लइका, 22 बरिस, छव महीना पहिले कंप्यूटर साइंस में एमएससी पूरा कइलन ह. छोट लइका, 20 बरिस, चेंगलपट्टू के एगो सरकारी कॉलेज में पढ़त बाड़ें.

गांवे गांवे जाके सिजोफ्रेनिया के मरीज के इलाज करावे खातिर प्रेरित करे के पहिले, सेल्वी मरीज लोग के काउंसलिंग करत रहस. ऊ 10 गो मरीज के, तीन बरिस तकले काउंसलिंग कइली. ऊ बतावत बाड़ी, “हम ओह लोग से हफ्ता में एक बेरा मिले जात रहनी. एह सेशन में हमनी मरीज आउर मरीज के परिवार से इलाज, फॉलो-अप, खानपान आउर साफ सफाई के महत्व के बारे में बतावत रहनी.”

पहिले पहिल, सेल्वी के बिरादरी के बहुत विरोध झेले के पड़ल. ऊ बतइली, “ऊ लोग ई बात के माने के तइयारे ना होखे कि कवनो मानसिक समस्या बा. हमनी ओह लोग के समझाईं कि ई एगो बेमारी बा आउर एकर इलाज हो सकेला. मरीज के परिवार लोग हमनी से खिसिया जाए. कुछ लोग मरीज के अस्पताल ले जाए के बजाय मंदिर लेके चल जात रहे. मेडिकल कैम्प तक ओह लोग के आवे खातिर राजी करे में बहुते मिहनत लागल. केतना बेरा घरे जा-जाके एक एक ब्यक्ति से बतियावे के पड़ल. जब कवनो मरीज के अस्पताल जाए में दिक्कत होखे, डॉक्टर खुद घरे आके उनकरा देखत रहस.”

एह सभ से निपटे खातिर सेल्वी आपन देमाग लगइली. ऊ गांव में सभे के घर जाए लगली. चाय के ठेला जहंवा लगे, उहंवा पहुंचे लगली. चाय के ठेला लगे बहुते लोग मिल जात रहे. स्कूल मास्टर आउर पंचायत के नेता लोग से बात करे लगली. एह तरह से सभे से मिले-जुले लगली. सिजोफ्रेनिया के लक्षण का हवे, एकरा में इलाज कइसे मदद करेला, एकरा बारे में धीरे-धीरे लोग के समझावे लगली. कबो-कबो उनकरा गांव में मानसिक रूप से बेमार लोग के बारे में बतावे के निहोरा करे के पड़े. सेल्व बतइली, “कुछ लोग त संकोच करे, बाकिर कुछ लोग हमनी के सभ जानकारी देवे, मरीज के घर के पहचान बतावे. केतना लोग के खास समस्या के बारे में पता ना रहत रहे. ऊ लोग बतावे कि कइसे कवनो आदमी बहुते शक करेला, चाहे केहू के लंबा बखत से नींद नइखे आवत. ओह लोग के बतावल ई सभ लक्षण से हमनी मरीज के पहचान करत रहीं.”

सेल्वी एगो अइस समुदाय में पोसाइल बाड़ी जहंवा अंतर्बियाह (एके गोत्र में बियाह) के सख्त नियम रहे आउर सजातीय बियाह आम बात रहे. सेल्वी पइली कि अइसन समाज में कइएक लरिका लोग में जनम से बौद्धिक अक्षमता रहे. ऊ कहली कि एकरा से उनकरा मानसिक बेमारी के लक्षण आउर बौद्धिक अक्षमता के बीच अंतर करे में आसानी भइल. आउर ई, उनकरा काम खातिर एगो जरूरी गुण रहे.

सेल्वी के सबसे बड़ जिम्मेवारी ई सुनिश्चित करे के रहत रहे कि दवाई मरीज के दुआरी तक पहुंच जाव. भारत में देमागी बेमारी वाला जादे करके लोग दवाई आउर अस्पताल के खरचा में बरबाद हो जाला. राष्ट्रीय मानसिक सेहत कार्यक्रम  के तहत 40 प्रतिशत मरीज लोग के इलाज खातिर 10 किमी से जादे दूर जाए के पड़ेला.

Selvi with a 28-year-old schizophrenia patient in Sembakkam whom she had counselled for treatment. Due to fear of ostracisation, this patient’s family had refused to continue medical care for her.
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Another patient whom Selvi helped
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बावां: सेल्वी, सेम्बक्कम में एगो 28 बरिस के सिजोफ्रेनिया के मरीज संगे, एह मरीज के ऊ इलाज खातिर काउंसलिंग कइले रहस. बहिष्कार के डर से एह मरीज के घरवाला लोग आगे आउर इलाज करावे से मना कर देलक. दहिना: एगो आउर मरीज जेकर मदद सेल्वी कइले रहस

सेल्वी के कहनाम बा, “आजकल टीवी देखला से एह तरह के चीज में कुछो सुधार त आइल बा. लोग अब पहिले जेका ना डेराला. बीपी, शुगर (डायबिटीज आउर रक्तचाप) के इलाज करावल अब आसान हो गइल बा. बाकिर एकरा बादो, जब हमनी देमागी बेमारी से परेशान मरीजन के घर पहुंचिले, त घरवाला लोग खिसिया जाएला आउर हमनी से लड़े आवेला. ऊ लोग पूछेला, ‘रउआ लोगनी इहंवा काहे अइनी… रउआ के के बतइलक इहंवा कवनो पागल आदमी बा?’”

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डी. लिली पुष्पम, 44 बरिस, चेंगलपट्टू के मनमती गांव में स्वास्थ्य कार्यकर्ता बाड़ें. उहो सेल्वी के बात से ऊ राजी बाड़ें कि गांव देहात में देमागी बेमारी के लेके बहुते गलत धारणा बा. लिली कहली, “लोग के मन में बहुते शक रहेला. ऊ लोग के लागेला कि डॉक्टर (मनोचिकित्सक) मरीज के अगवा कर लिही, चाहे ओकरा टॉर्चर करी. इलाज बदे सामने अइला के बादो, ऊ लोग डेराएल रहेला.” लिली के हिसाब से, “हमनी ओह लोग के आपन पहचान पत्र देखाइले, समझाइले कि हमनी अस्पताल से आइल बानी. बाकिर ऊ लोग हमनी के संदेह से देखेला. हमनी के बहुते लड़े के पड़ेला.”

लिली, मनमति के दलित कॉलोनी में बड़ भइली. एह इलाका में इलाज में जवन भेदभाव कइल जाला, एकरा बारे में उनकरा नीमन से जानकारी बा. केतना बेरा उनकरा आपन जाति के चलते बहुते नाजुक स्थिति के सामना करे के पड़ल. एहि से जब उनकरा से पूछल जाला, त ऊ आपन घर के पता ना बतावेली. ऊ बतइली, “पता बता देहम, त ऊ लोग हमार जात जान जाई. फेरु ई लोग हमरा संगे खराब बेवहार करे लागी.” अइसे त ऊ दलित ईसाई बाड़ी, बाकिर अपना के ईसाई बतावेली.

अलग-अलग गांव में स्वास्थ्य कार्यकर्ता संगे अलग अलग तरीका से बेवहार होखेला. लिली बतावत बाड़ी, “अमीर आउर ऊंच जाति के लोग पानी तक ना पूछे. कबो हमनी चलत-चलत एतना थाक जाइले कि लागेला कहूं आराम से बइठीं, आउर चुपचाप खाना खाईं. बाकिर ऊ लोग हमनी के आपन इलाका में अइसन करे ना देवे. हमनी के खराब लागेला, बहुते खराब. फेरु हमनी के उहंवा से कमो ना त 3 से 4 किमी दूर जाए के पड़ेला, तब जाके खाए के नसीब होखेला. बाकिर कहूं कहूं अइसनो लोग बा, जे हमनी के पियास लगला पानी पिलावेला. एकरा अलावा हमनी जब खाए बइठिला त हमनी से पूछेला, कुछुओ आउर चाहीं का…”

लिली के 12 बरिस उमिर में उनकर फुफेरा भाई से बियाह कर देहल गइल रहे. दूनो प्राणी में 16 बरिस के बड़ाई-छोटाई बा. ऊ बतइली, “घर में हमनी चार गो लइकी रहनी. ओह में हम सबसे बड़.” उनकर परिवार लगे 3 सेंट (1306.8 वर्ग फीट) जमीन रहे, जेकरा पर ऊ लोग माटी के घर बनइलक. “बाबूजी के अइसन दामाद चाहत रहे जे हमनी के जमीन जायदाद के रखवाली करस, खेती करे में भी मदद करस. एहि से ऊ आपन बड़ बहिन के लइका से हमार बियाह करा देलन.” ई बियाह जादे दिन ना चलल. घरवाला उनकरा प्रति इमानदार ना रहले. महीनन घरे ना आवस, आउर जब आवस, त उनकरा संगे मारपीट करस. साल 2014 में गुरदा के कैंसर से उनकर मौत हो गइल. ऊ अपना पाछू लिली के कांधा पर 18 आउर 14 बरिस के दू गो लरिकन के जिम्मेदारी छोड़ के चल गइलन.

साल 2006 में एससीएआरएफ में स्वास्थ्य कार्यकर्ता के नौकरी भेटाए से पहिले,  लिली सिलाई के काम करत रहस. एकरा से उनकरा हफ्ता के 450 से 500 रुपइया के कमाई हो जात रहे. बाकिर बाद में ऊ स्वास्थ्य कार्यकर्ता के काम पकड़ लेहली, काहे कि एह में पगार ठीक रहे. कोविड अइला से उनकर महीना के 10,000 के पगार पर असर पड़ल. महामारी के पहिले, बस भाड़ा आउर फोन के बिल भरे के पइसा वापस मिल जात रहे. ऊ बतावत बाड़ी, “बाकिर कोरोना चलते, दू बरिस ले हमरा 10,000 के कमाई में फोन बिल आउर भा़ड़ा के खरचा भी उठावे के पड़ल.”

Lili Pushpam in her rented house in the Dalit colony in Manamathy village. A health worker, she says it is a difficult task to allay misconceptions about mental health care in rural areas. Lili is herself struggling to get the widow pension she is entitled to receive
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मनमती गांव के दलित टोला में लिली पुष्पम आपन किराया के घर में. स्वास्थ्य कार्यकर्ता, लिली के कहनाम बा गांव-देहात में देमागी बेमारी के लेके जे वहम बा ओकरा दूर कइल बहुते मुस्किल बा. लिली भी, जे विधवा पेंशन के हकदार बाड़ी, ओकरा हासिल करे खातिर लड़त बाड़ी

एनएमएचपी के तहत चले वाला एससीएआरएफ के मौजूदा प्रोजेक्ट खत्म हो गइल बा. एहि से लिली अब डिमेंशिया (भूले के बेमारी) से पीड़ित लोग खातिर बनल संगठन के दोसर प्रोजेक्ट में काम कर रहल बाड़ी. काम मार्च में सुरु हो गइल बा. उनकरा हफ्ता में एक बेर जाए के होखेला. बाकिर सिजोफ्रेनिया के मरीज के सही इलाज मिलत रहे, एह खातिर ऊ ओह लोग के चेंगलपट्टू, कोवलम आउर सेम्बक्कम के सरकारी अस्पताल ले जाएल जारी रखले बाड़ी.

शांति, सेल्वी आउर लिली जइसन दीदी लोग समाज के भीतर लोग के मानसिक आउर शारीरिक स्वास्थ्य सही रखे में जरूरी भूमिका निभावेला. बाकिर एतना महत्वपूर्ण काम करे वाला लोग 4 से 5 साल के करार (अनुबंध) पर काम करे के मजबूर बा. एससीएआरएफ के निश्चित समय के हिसाब से चले वाला परियोजना बदे धन मिलेला. एहि से अइसन एनजीओ दीदी जइसन स्वास्थ्य कार्यकर्ता लोग के अपना इहंवा रख सकत बा. एससीएआरएफ के पद्मावती के कहनाम बा, “राज्य स्तर पर एगो बेवस्था बनावे खातिर हमनी सरकार से बात करत बानी.” पद्मावती के भरोसा बा कि एकरा से खास गांव-समाज में काम करे वाला स्वास्थ्य कार्यकर्ता के काम के सरल आउर कारगर बनावे में मदद मिली.

भारत में मानसिक सेहत के देखभाल खातिर बजट में बहुते कम राशि आबंटित कइल गइल बा, जइसे ऊंट के मुंह में जीरा के फोड़न. साल 2023-24 में भारत के स्वास्थ्य आउर परिवार कल्याण मंत्रालय के बात कइल जाव, त एकरा ओरी से मानसिक स्वास्थ्य खातिर 919 करोड़ रुपइया के ऐलान कइल गइल. केंद्र सरकार के स्वास्थ्य से जुड़ल कुल बजट के ई खाली 1 फीसदी बा. एह राशि के बड़ हिस्सा, 721 करोड़ बेंगलुरू के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज (निमहंस) खातिर रखल गइल बा. बाकि के पइसा लोकप्रिया गोपीनाथ क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, तेजपुर (68 करोड़ रुपइया) आउर राष्ट्रीय टेली-मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (134 करोड़ रुपइया) के जाई. एकरा अलावे, भारत सरकार के स्वास्थ्य आउर परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, जे बुनियादी ढांचा आउर कार्मिक विकास पर नजर रखेला, के एह बरिस राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के ‘तृतीय श्रेणी के गतिविधि’ के तहत रखल गइल बा. एकरा से एह स्तर पर मानसिक सेहत के देखभाल खातिर राशि के आबंटन तय ना कइल जा सकत बा.

एहि बीच, मनमती में लिली पुष्पम अबहियो सामाजिक सुरक्षा लाभ, जेकर ऊ हकदार हई, पावे खातिर संघर्ष करत बाड़ी. ऊ कहली, “विधवा पेंशन खातिर आवेदन देवे के बा, त हमरा घूस देवे के होई. हमार अंटी (जेब) में त अबही 500 चाहे 1000 रुपइया तक नइखे, घूस कहंवा से देहम. हम मरीज के इंजेक्शन, गोली, काउंसिलिंग, फॉलो-अप दे सकिला. बाकिर हमार एह अनुभव, एससीएआरएफ के सिवाय कहूं पूछ नइखे. हमार आंख से रोज लोर बहेला. हमार साथ देवे वाला केहू नइखे.”

फीचर फोटो: शांति शेष

अनुवाद: स्वर्ण कांता

S. Senthalir

एस. सेंतलिर, पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया में बतौर सहायक संपादक कार्यरत हैं, और साल 2020 में पारी फ़ेलो रह चुकी हैं. वह लैंगिक, जातीय और श्रम से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर लिखती रही हैं. इसके अलावा, सेंतलिर यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टमिंस्टर में शेवनिंग साउथ एशिया जर्नलिज्म प्रोग्राम के तहत साल 2023 की फ़ेलो हैं.

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एम. पलनी कुमार पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया के स्टाफ़ फोटोग्राफर हैं. वह अपनी फ़ोटोग्राफ़ी के माध्यम से मेहनतकश महिलाओं और शोषित समुदायों के जीवन को रेखांकित करने में दिलचस्पी रखते हैं. पलनी को साल 2021 का एम्प्लीफ़ाई ग्रांट और 2020 का सम्यक दृष्टि तथा फ़ोटो साउथ एशिया ग्रांट मिल चुका है. साल 2022 में उन्हें पहले दयानिता सिंह-पारी डॉक्यूमेंट्री फ़ोटोग्राफी पुरस्कार से नवाज़ा गया था. पलनी फ़िल्म-निर्माता दिव्य भारती की तमिल डॉक्यूमेंट्री ‘ककूस (शौचालय)' के सिनेमेटोग्राफ़र भी थे. यह डॉक्यूमेंट्री तमिलनाडु में हाथ से मैला साफ़ करने की प्रथा को उजागर करने के उद्देश्य से बनाई गई थी.

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विनुता माल्या पेशे से पत्रकार और संपादक हैं. वह पूर्व में पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया की एडिटोरियल चीफ़ रह चुकी हैं.

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रिया बहल, मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट हैं और जेंडर व शिक्षा के मसले पर लिखती हैं. वह पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया (पारी) के लिए बतौर सीनियर असिस्टेंट एडिटर काम कर चुकी हैं और पारी की कहानियों को स्कूली पाठ्क्रम का हिस्सा बनाने के लिए, छात्रों और शिक्षकों के साथ काम करती हैं.

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Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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