पल्लवी गवित तीन घंटा से जादे से खटिया पर पड़ल दरद से मछरी जइसन छटपटात रहस. उनकरा पेट में पांच महीना के लइका रहे. भौजाई, 45 बरिस के सपना गरेल, साथे रहली जे घरिया पल्लवी के बच्चादानी निकल के बाहिर आ गइल रहे. ओह में पांच महीना के मरल लइका रहे. बेसंभार दरद आ खून निकलला से ऊ बेहोश होके गिर गइली.
ओह घरिया भोरे के नौ बाजत रहे, आ दिन 25 जुलाई 2019 रहे. सतपुड़ा पहाड़ी में बसल हेंगलापानी बस्ती में 55 गो भील परिवार रहेले. एहि में एगो 23 बरिस के पल्लवी के भी घर बा. ओह दिन उनकर फूस के झोपड़ी पर हथौड़ा जइसन बरखा पड़त रहे. उत्तर-पश्चिम महाराष्ट्र के नन्दुरबार जिला के एह दुर्गम इलाका में ना त पक्का सड़क बा, ना मोबाइल नेटवर्क रहेला. पल्लवी के घरवाला, गिरीश (एह स्टोरी में सबके नाम बदलल बा) कहले, “इमरजेंसी कहियो बता के ना आवे. नेटवर्क के बिना हमनी एम्बुलेंस, चाहे डॉक्टर के भी कइसे फोन क सकेनी जा?”
गिरीश, 30 बरिस, ओह दिन के बारे में बतावे लगलन, “हम त बहुते डेरा गइल रहनी. कवनो कीमत पर उनका खोए के ना चाहत रहनी.” मुंह अन्हारे, चार बजल रहे. बरखा में गिरीश आ एगो पड़ोसी पल्लवी के अस्पताल ले जाए के इंतजाम में लग गइलन. बांस आ चद्दर से एगो स्ट्रेचर बनावल गइल. उहे पर पल्लवी के लाद के दुनो प्राणी चल पड़ल. पहाड़ी के कीचड़ भरल रस्ता से 15 किलोमीटर पइदल चलके धड़गांव पहुंचल. रस्ता भर पल्लवी दरद से चिचियात रहली.
हेंगलापानी बस्ती, अकरानी तालुका के तोरणमाल ग्राम पंचायत में पड़ेला. तोरणमाल के अस्पताल त अउरी नजदीक रहित, बाकिर ऊ रस्ता से जाएल ठीक ना रहे. गिरीश आ उनकर पड़ोसी के खाली गोरे (कादो के चलते चप्पल पहिरे में दिक्कत होला) कादो वाला रस्ता पर चले में ढेरे परेसानी होत रहे. गोर कादो में बेर-बेर फिसल जाए. पल्लवी, प्लास्टिक के चद्दर ओढले रस्ता भर कराहत रहली.
ऊ लोग के पहाड़ी के चढ़ाई वाला रस्ता पार करके ऊपर तोरणमाल घाट रोड पहुंचे में तीन घंटा लाग गइल. गिरीश बतवले, “करीब 30 किलोमीटर के चढ़ाई रहे.” ऊपर रोड पर ऊ लोग के जीप मिलल. जीपवाला 1000 रुपया में धड़गांव पहुंचा देलक. धड़गांव के प्राइवेट नर्सिंग होम आवे में पांच घंटा लाग गइल. उहंवा उनका जल्दी जल्दी भरती कइल गइल. सरकारी अस्पताल इहंवा से अउरी 10 किलोमीटर पड़ रहे. गिरीश कहले, “ओह दिन हमरा, सबसे पहिले जे दवाखाना मिलल, हम उहंई भगनी. ई महंगा त रहे, बाकिर हमार पल्लवी के त बच गइली.” इलाज में इहंवा 3,000 रुपइया के खरचा लागल. पल्लवी के अगिले दिन छुट्टी मिल गइल. गिरीश याद करत बारन, “ऊ लोग कहलक कि ढेरे खून बहला से पल्लवी के जान भी जा सकत रहे.”
एह बात के महीना हो गइल, बाकिर पल्लवी अभियो दरद से छटपटाए लागेली. उनकरा रोज बेचैनी रहेला. ऊ कहत बारी, “हम कवनो भारी बरतन उठावेनी, चाहे झुकेनी, त हमार बच्चादानी बाहर निकले लागेला.” पल्लवी के एक बरिस के लइकी हई, नाम खुशी बा. खुशी के पैदाइश हेंगलापानी बस्ती के एगो मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा दीदी) के मदद से घरे पर भइल रहे. बाकिर बच्चादानी के इलाज ना होए से, उनकरा आपन लइकी के संभारे में दिक्कत होला.
पल्लवी हमरा से कहतारी, “खुशी के नहाए, खियावे के होखेला, बेर-बेर गोदी में उठावे आ संगे खेले के पड़ेला. एतना जादे काम करे से हमार पेट में जलन, छाती में दरद आ उठे-बइठे में परेशानी होखेला.”
गिरीश अइसे त आपन दुनो गाय के चरावे खातिर बहरी ले जालन. बाकिर घर खातिर पानी ढोके लावे के काम पल्लवी के ही करे के पड़ेला. ऊ रोज पहाड़ी के नीचे झड़ना से पानी ढो के लावेली. ऊ कहेली, “झड़ना 2 किलोमीटर नीचे ढलान पर बा. रोज एतना दूर उतरे आउर चढ़े के पड़ेला. बाकिर हमनी सभे खातिर पानी के इहे एगो साधन बा.” अप्रैल-मई तक झरना भी सूख जाला. एहि से पल्लवी आ बस्ती के दोसर मेहरारू लोग के पानी खोजे खातिर आउर नीचे उतरे के पड़ेला.
पल्लवी आ गिरीश बरखा में खेती भी करेला. मानसून में दू एकड़ के जमीन पर ऊ लोग मकई आ जवार उगावेला. गिरीश बतावत बारन कि इहंवा के खड़ा ढलान पर फसल खराब हो जाला. ऊ कहले, “हमनी के चार-पांच क्विंटल [400-500 किलोग्राम] के मकई आ जवार हो जाला. एह में से 1-2 क्विंटल 15 रुपए किलो के भाव से तोरणमाल के किराना दोकान में बेचा आइले.” जब बरस भर के कटाई हो जाला, त गिरीश गन्ना के खेत में काम खोजे खातिर पड़ोस में गुजरात के नवसारी जिला चल जालन. उहंवा उनका 150 दिन तक 250 रुपइया दिहाड़ी के इंतजाम हो जाला.
पल्लवी के घर आ खेत में काम के गिनती नइखे. दिन भर कोल्हू के बैल जइसन जोताएल रहला के बाद उनकरा में एतना ताकत ना बचेला कि ऊ लगे के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) तक भी जा सकस. पीएचसी उनकरा घर से 35 किलोमीटर दूर जापी गांव में पड़ेला. ऊ आपन बच्चादानी खिसके के परेशानी के अनदेखा करत रहेली. एहि से पल्लवी के अक्सरहा बुखार, आउर चक्कर आवत रहेला. कबहियो कबहियो ऊ बेहोश भी हो जाएली. ऊ बतइली कि आशा दीदी उनका कुछ दवाई दे के जाली. ऊ कहत बारी, “हम डॉक्टर लगे जाए के चाहिला, बाकिर कइसे का करीं, समझ ना पाइला. हमरा बहुत कमजोरी रहेला.” बच्चादानी के परेशानी के चलते पहाड़ी पर पैदल चढ़ल आफते बोलावल ह.
तोरणमाल ग्राम पंचायत के आबादी 20,000 (जइसन कि एगो ग्राम पंचायत सदस्य के अनुमान बा) बा. एह में 14 गांव आ 60 गो बस्ती होई. इहंवा रहे वाला लोग के मदद खातिर जापी में एगो पीएचसी, छह गो उपकेंद्र के बेवस्था कइल बा. एकरा अलावा तोरणमाल जून (पुरान) गांव में एगो 30 बेड वाला ग्रामीण अस्पताल भी बा. अस्पताल में कंडोम, गरभ रोके वाला गोली, नसबंदी आउर आईयूडी लगावे जइसन सुविधा के अलावे, डिलीवरी के पहिले आउर बाद के देखभाल के सुविधा भी बा. बाकिर एह दुर्गम इलाका में बस्ती सब दूर-दूर कबा, एहि से जादे मेहरारू लोग के घरे में लइका पैदा होखेला.
जापी पीएचसी के एगो डॉक्टर आपन नाम ना बतावे के शर्त पर कहलन, “तोरणमाल में बाधित प्रसव (ऑब्सट्रक्टेड लेबर) के मामला जादे बा. काहेकि इहंवा के आदिवासी लोग पहाड़ी के ऊपर रहेला. मेहरारू लोग के भी दिन भर केतना बेर पानी खाती ऊपर-नीचे चढ़े-उतरे के पड़ेला, इहंवा तक कि पेट में लइका रहेला ओह घरिया भी. ई सभ से लइका होखे में परेशानी आवेला, आ समय से पहिले जचगी होखेला.'' एह पीएचसी के नींव 2016 में रखल गइल रहे. एह में दु गो डॉक्टर, दु गो नर्स आउर एगो वार्ड सहायक रहेलें. इहंवा रोज चार से पांच मरीज लोग भरती कइल जाला. ऊ बतावत बारन, “इहंवा लोग तबे आवेला जब केस एकदम बिगड़ जाला, चाहे जब हकीम के दवाई काम ना आवे.”
अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच इहंवा डॉक्टर लोग के पास बच्चादानी खिसके के पांच गो मामला आइल. ऊ बतावत बारन, “एह सब मामला में ऑपरेशन के जरूरत रहे. एहि से हमनी उनकरा नंदुरबार सिविल अस्पताल भेज देनी. एह तरह के जचगी के संभाले खातिर इहंवा कवनो सुविधा नइखे.”
बच्चादानी खिसकला के का मतलब बा? पेट के निचला हिस्सा (पेड़ू) के मांसपेशी ढीला होखे, चाहे इहंवा के लिगामेंट खिंचइला से बच्चादानी के सहारा ना मिल पावेला. मुंबई फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनोकोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. कोमल चवन एह बारे में बढ़िया से बतइली. उनकर कहनाम बा, “बच्चादानी, मांसपेशी से बनल एगो खांचा है. ई पेल्विक के भीतर तरह तरह के मांसपेशी, ऊतक आउर लिगामेंट के साथे टिकल रहेला. गरभ ठहरला, कइएक लइका के जनम देहला, लंबा बखत तक डिलीवरी चले, चाहे डिलीवरी के खराब ढंग से हैंडल कइला से कुछ मेहरारू लोग में इहंवा के मांसपेशी कमजोर पड़ जाला. कमजोर पड़ला से बच्चादानी आपन जगह से खिसके लागेला.” गंभीर मामिला में कमजोर पेल्विक फ्लोर के ऊतक के दुबारा ठीक करे खातिर ऑपरेशन, चाहे बच्चादानी निकाले के पड़ेला.
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में, 2015 में एगो रिपोर्ट छपल. रिपोर्ट में बतावल गइल कि महाराष्ट्र के नासिक जिला के गांव-देहात के मेहरारू लोग में कोख से जुड़ल परेशानी (सीओएम) के बारे में 2006-07 में एगो जांच भइल. पता चलल कि सीओएम के परेशानी वाला 136 मेहरारू लोग में प्रोलैप्स (गर्भाशय/बच्चादानी के आपन जगहा से खिसके, जननांग के फइले) सबसे जादे (62 प्रतिशत) रहे. बढ़त उमिर आउर मोटापा के इलावा, रिपोर्ट से पता चलल, “हमेशा बच्चा पैदा करे आउर गांव के दाई लोग से डिलीवरी करवावे से प्रोलैप्स के परेशानी शुरू हो जाला.”
नंदूरबर सिविल अस्पताल में पल्लवी के बच्चादानी के प्रोलैप्स (खिसकला से) के फ्री में ऑपरेशन हो सकत रहे. बाकिर ई अस्पताल उनकर बस्ती हेंगलापाणी से 15 किलोमीटर दूर बा. उहंवा जाए के मतलब, तीन घंटा के चढ़ाई आउर फिर सड़क पर पहुंचला के बाद चार घंटा के बस यात्रा. पल्लवी बतावत बारी, “हम बइठेनी त हमरा लागेला, कवनो चीज प बइठ गइल बानी. फेरू बहुते दर्द होखे लागेला. हम एके जगहा पर जादे देर ना बइठ पाइला.” एह रूट पर तोरणमाल से सरकारी बस दुपहरिया 1 बजे आवेला. ऊ पूछेली, “का डाक्टर इहंवा ना आ सकस?”
डॉक्टर के कहनाम बा कि सड़क ना होखे से, तोरणमाल के मरीज लोग ऊ मोबाइल मेडिकल यूनिट तक भी ना पहुंच पावेला जे दूरदराज के इलाका में लोग के सेवा देवेला. अकराणी ब्लॉक में में 31 गांव आ एकरा अलावा कइएक गो आउर बस्ती बा. ई सब सड़क से नइखे जुड़ल. एह इलाका खातिर महाराष्ट्र सरकार नवसंजीवनी योजना के तहत मोबाइल मेडिकल यूनिट के बंदोबस्त कइले बा. ई यूनिट में एगो मेडिकल ऑफिसर आउर एगो प्रशिक्षित नर्स होली. महाराष्ट्र आदिवासी विकास विभाग के सलाना ट्राइबल कंपोनेन्ट स्कीम 2018-19 के रिपोर्ट बा कि अकराणी तालुका में अइसन दु गो यूनिट चलत बा. बाकिर ई यूनिट पल्लवी के बस्ती जइसन जादे भीतरिया इलाका तक ना पहुंच पावेला.
जापी के डॉक्टर खुदे बतावत बारन, “इहंवा के पीएचसी में ना तो बिजली के बेवस्था बा, ना पानी के. इहे ना, कर्मचारी सभे खातिर रहे के भी कवनो जगह नइखे. हम एह बारे में स्वास्थ्य विभाग के बहुते चिट्ठी लिखनी, बाकिर कवनो फायदा ना भइल.” डॉक्टर, नर्स लोग के रोज नंदुरबार से जापी जाएल भारी लागेला. डॉक्टर के भी कहनाम बा, “एहि से हमनी एतवार छोड़ के हफ्ता के बाकी दिन इहंवा काम करिले. रात के हमनी आशा दीदी के घर ठहर जाइले. फेरू एतवार के नंदुबार आपन घर लवट जाइले.”
एहि से ई इलाका के आशा कार्यकर्ता लोग के काम अउरी जरूरी हो जाला. बाकिर ऊहो लोग दवाई आ किट के स्टॉक कम रहे से आजिज आ गइल बा. हेंगलापाणी के आशा दीदी, विद्या नाइक (नाम बदलल बा) कहली, 'हमनी के गर्भवती मेहरारू लोग खातिर आयरन आउर फोलिक एसिड के गोली नियम से ना मिलेला. मास्क, दस्ताना आ कैंची संगे डिस्पोजेबल डिलीवरी किट भी समय से ना देवल जाला.” विद्या 10 गो बस्ती में काम करे वाली 10 गो आशा वर्कर पर नजर रखेली.
कइएक आशा दीदी लोग के जचगी करावे के त ट्रेनिंग मिलल बा. बाकिर मुश्किल डिलीवरी करावे खातिर तैयार नइखे कइल गइल. ठीक से डिलीवरी न होखला से हर महीना दू से तीन गो बच्चा, आ एक से दू गो जच्चा के जान ना बचावल जा सकेला. विद्या सब रिकॉर्ड रखेली. ऊ बतावत बारी, “हमनी के जादे कुछ सुविधा ना चाहीं. बस अस्पताल तक पहुंचे खातिर ठीक सड़क होखे, जे से हमनी अच्छा से डिलीवरी करा सकीं.”
डॉ. चव्हाण आगे कहली, “इहंवा के इलाका भौगोलिक रूप से दुर्गम ह. मेहरारू लोग के त रोज के काम भारी पड़ेला, डिलीवरी के बारे में का कहल जाव. डिलीवरी से पहिले के देखभाल के साथे-साथे अच्छा स्त्री रोग विशेषज्ञ के अइसन जगहा बहुते जरूरत बा.”
अइसे त, भारत सरकार के ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2018-19 के मानल जाव त महाराष्ट्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 1,456 विशेषज्ञ लोग के जरूरत ह. हर केंद्र में चार विशेषज्ञ, जवना में एगो सर्जन, स्त्री रोग विशेषज्ञ, चिकित्सक आउरी बाल रोग विशेषज्ञ शामिल होए के चाहीं. बाकिर देखे में आइल कि 31 मार्च 2019 तक खाली 485 विशेषज्ञ ही नियुक्त कइल गइलन. मतलब 971 यानी 67 प्रतिशत विशेषज्ञ के कमी बनल रहल.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 ( NFHS-4 , 2015-16) में कहल गइल बा कि नंदूरबार के गांव-देहात में बसल 26.5 प्रतिशत मेहरारू लोग के ही जचगी से पहिले के देखभाल मिलल, खाली 52.5 प्रतिशत मेहरारू के डिलीवरी अस्पताल में भइल, आउर आपन घर में बच्चा पैदा करे वाली खाली 10.4 प्रतिशत मेहरारू के ही कुशल डॉक्टर आउर दाई के सेवा मिलल.
नन्दुरबर जिला में आदिवासी लोग इहंवा के आबादी के बड़हन हिस्सा हवन. महाराष्ट्र मानव विकास सूचकांक 2012 में ई लोग सबसे निचला स्थान पर बारन. इहंवा मुख्य रूप से रहेवाला भील आउर पावरा समुदाय के आदिवासी कुपोषण आउर जच्चा-बच्चा के खराब सेहत के समस्या से जूझत बारें.
पल्लवी के घर से लगभग 40 किलोमीटर दूर, तोरणमाल जंगल के भीतर एगो दोसर पहाड़ी पर लेगापाणी बस्ती बसल बा. उहंवा, आपन फूस के झोंपड़ी के भीतर सारिका वसावे (उनकर असली नाम ना) पानी में पलाश के फूल उबालत हई. सारिका, 30 बरिस, कहतारी, “हमार लइकी के बुखार बा. हम इनका के एहि पानी से नहाएम. उनका अच्छा लागी.'' ऊ भील समुदाय से आवेली. उनकरा पेट में लरिका बा. अभी उनका छव महीना लागल बा. पत्थर के चूल्हा के सामने जादे बखत तक बइठे में उनका मुश्किल होखेला. ऊ कहतारी, “हमार आंख जले लागेला. आ ओहिजा (पेट आउर जांघ के बीच, पेड़ू ओरी इशारा करके) दर्द होखेला. पीठ में भी दर्द बा.''
सारिका बहुते थाकल आउर कमजोर देखाई देत बारी. उहो बच्चादानी खिसके के समस्या से परेशान बारी. एकरा बादो उनकरा रोज के काम करे के पड़ेला. पेशाब आ पैखाना करे बेरा जोर लगावे से उनकर बच्चादानी नीचे आ जाला आउर बाहर आवे लागेला. ऊ जोर-जोर से सांस लेवत आ आपन चेहरा के पसीना पोछत कहतारी, “हम एकरा अंचरा के कोर से पीछे धकेल दिहिला. अइसन करे में हमरा बहुत दरद होला.” चूल्हा से धुंआ उठत बा, एहि से ऊ आपन चेहरा दोसर तरफ क लेत बारी.
उनकरा बच्चादानी खिसके के समस्या तीन बरिस से बा. जब 2015 में उनकरा अठंवा महीना लागल, अचानक भोरे-भोरे जचगी के दरद उठ इगल. सास अपने से उनकर डिलीवरी करवइली. छव घंटा के जचगी के बेसंभार दरद के बाद, सारिका के बच्चादानी खिसक के बाहर आवे लागल रहे. ऊ इयाद करत बारी, “अइसन लागल जइसे केहू हमार देह के एगो हिस्सा बहरी खींचत होखे.”
डॉक्टर चव्हाण कहतारी, “बच्चादानी के प्रोलैप्स के परेशानी के इलाज ना होखला से दोसर आउरो परेशानी शुरू हो जाला. जइसे कि मूत्राशय में इंफेक्शन, सेक्स बखत खून आएल, इंफेक्शन आउर बहुते दरद. एह सभ से चले-फिरे में भी परेशानी हो जाला.” ऊ कहत बारी कि उमिर बढला पर हालत आउर बिगड़ सकेला.
बच्चादानी के प्रोलैप्स से जूझ रहल मेहरारू लोग के भारी वजन उठावल मना बा. ओह लोग के कब्ज से बचे खातिर जादे से जादे पानी पिए आउर हाई फाइबर पौष्टिक आहार लेवे के कहल जाला. बाकिर, सारिका के त दु का, एको बेर मुश्किल खाए के मिलेला. पानी पिए खातिर भी उनका बहुते परेशानी उठाए के पड़ेला. अनदिना में त परेशानी होखबे करेला, जब ऊ पेट से होखेली त उनकर परेशानी के अंदाजा लगाएल जा सकेला. पानी लावे खातिर रोज पहाड़ी से नीचे हैंडपंप तक आठ किलोमीटर पैदल जाए के पड़ेला. वापसी में चढ़ाई धीमा आ जादे मुश्किल होखेला. ऊ कहे लगली, “चलत-चलत हमार बच्चादानी बाहर आवे लागेला आ ऊ जांघ से रगड़ाए लागेला. एह से उहंवा बहुते जलन होखेला. कबो कबो खून भी आवे लागेला.” घरे पहुंचते ऊ पहिले बच्चादानी के भीतर धकेले के काम करेली.
देह के तकलीफ के अलावा एह बीमारी के सामाजिक आ आर्थिक परिणाम भी झेले के पड़ेला. बच्चादानी के खिसकला से बियाह लोग के संबंध खराब होखे लागेला. मरद छोड़ देवेला, जइसन कि सारिका के साथे भइल.
प्रोलैप्स से परेशान सारिका के घरवाला संजय (नाम बदलल बा) दोसर बियाह कर लेलन. ऊ धड़गांव के होटल में काम करेले. महीना में चार से पांच दिन काम करेले, 300 रुपया दिहाड़ी मिलेला. सारिका बतावत बारी, “ऊ आपन सब पइसा दोसर मेहरारू आ लइका पर खरचा कर देवेलन.” खेत के काम भी ऊ मुश्किल से ही कबहूं करेले. एहि से सारिका 2019 के मानसून में दु एकड़ के जमीन पर अकेले खेती कइली आउर एक क्विंटल मकई उगइली. “हमार घरवाला आपन दोसर मेहरारू आ लइका खातिर एह में से 50 किलो मकई ले गइलन. जे बचल, ओकरा के हम भाखरी खातिर पीस लेलीं."
कमाई के कवनो जरिया ना होखला से सारिका के चाउर आ दाल खातिर भी आशा दीदी आ गांव के लोग के आसरे रहे के पड़ेला. कबो-कबो पइसा उधार लेवे के पड़ेला. ऊ कहतारी, “हम एगो गांव वाला से 800 रुपइया पइंचा लेले बानी. ई पइसा हम राशन आ बीज खरीदे खातिर जून, 2019 में लेले रहनी.”
सारिका के खाली इहे मुसीबत नइखे, उनका कबो-कबो घरवाला के पिटाई भी सहे के पड़ेला. इहे ना, घरवाला उनका से जबरदस्ती भी करेले. ऊ बतावत बारी, “हमार घरवाला के हमार ई परेशानी (बच्चादानी के प्रोलैप्स के समस्या) से कवनो मतलब नइख. एहि से ऊ दोसर बियाह कर लेलन. बाकिर जब पियले रहेलें, त हमरा लगे आवेले. हम (सेक्स घरिया) दरद से रोए लागिला. तबहियो ऊ हमरा पिटेलें.”
जवना दिन हम उनकरा से मिले गइनी, चूल्हा के बगल में भात के एगो तसली राखल रहे. उनकरा आ लइकी के भूख लगला पर खाए खातिर बस इहे एक तसली भात बा. ऊ बतावत बारी, “घर में खाली एक किलो चाउर बचल बा.” उनकरा आपन बीपीएल राशन कार्ड पर तीन किलो चाउर आ आठ किलो गेहूं मिलल रहे. ओह में से बस एतने बचल बा. एकरा अलावा उनका लगे तीन गो बकरी बा. एह से उनका अलग से कुछ कमाई हो जाला. ऊ बतावत बारी, “एगो बकरी से हमरा रोज के एक गिलास दूध मिल जाला.” एह दूध के ऊ आपन लइकी आउर चार साल के सौतला लइका, सुधीर के बराबर-बरारब देवेली. सुधीर आपन माई के साथे इहंवा से दु किलोमीटर दूर रहेला.
तोरणमाल के ग्रामीण अस्पताल सारिका के घर से 15 किलोमीटर दूर बा. जहंवा तक उपस्वास्थ्य केंद्र के बात बा, ऊ इहंवा से पांच किलोमीटर दूर बा. उहंवा जाए खातिर खड़ी चढ़ाई चढ़े के पड़ेला. साझा सवारी वाला जीप नियम से ना आवेला. एहि से उनकरा एतना दूर पैदल जाए के पड़ेला. ऊ बतावत बारी, “हम जादे चल ना पाइला. सांस फूले लागेला.” आपन डिलीवरी से पहिले उप-केंद्र के चक्कर लगावे बखत, उनकरा सिकल सेल बेमारी भी हो गइल रहे. ई माई-बाप से मिलल खून के विकार ह. एकरा से हिमोग्लोबिन पर असर पड़ेला आउर एनीमिया भी हो जाला.”
मेडिकल ऑफिसर डॉ सुहास पाटिल के कहनाम बा, 2016 में बनल तोरणमाल ग्रामीण अस्पताल में 30 गो बेड बा. ओपीडी में रोज 30 से 50 गो रोगी आवेला. ऊ लोग के बुखार, सरदी, चोट लगला जइसन छोट-मोट परेशानी रहेला. आसपास के कुछ 25 गांव से हर महीना खाली एक से दु गो मेहरारू जचगी खातिर आवेली. अस्पताल में दु गो मेडिकल ऑफिसर, सात गो नर्स, एगो लैब (लेकिन कवनो टेकनीशियन ना), आ एगो लैब असिस्टेंट बारें. सारिका जइसन गंभीर बीमारी के इलाज करे खातिर इहंवा कवनो प्रसूति आ स्त्री रोग विशेषज्ञ, भा कवनो दोसर विशेषज्ञ लोग मौजूद नइखे.
डॉ. पाटिल बतावत बारें, “हमनी लगे अइसन कवनो मेहरारू लोग ना आवे जिनका बच्चादानी खिसके के समस्या बा. जादे मामला पेल्विक ब्लीडिंग आ सिकल सेल एनीमिया के आवेला. बलुक कभियो अइसन मामला आवेला भी, त हमनी के पास एकरा से निपटे के कवनो सुविधा या विशेषज्ञता नइखे.” पाटिल एह अस्पताल में 2016 से काम करत बारन.
उहंवा ई मामला से निपटे के सुविधा चाहे जानकारी होखित भी, तबो सारिका डॉक्टर से आपन बच्चादानी खिसके के तकलीफ के बारे में ना बतवती. ऊ पूछत बारी, ‘ऊ मरद डॉक्टर हवें. हम उनकरा कइसे बता सकिलें कि हमार बच्चादानी बाहर निकलत रहेला?”
फोटोग्राफ : जिशान ए लतीफ मुंबई में रहे वाला एगो स्वतंत्र फोटोग्राफर आ फिल्ममेकर हवें. उनकर काम दुनिया भर में कलेक्शन, प्रदर्शनी आ प्रकाशन सभ में देखावल गइल बा: https://zishaanalatif.com/
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अनुवाद: स्वर्ण कांता