“गटर कोई 20 फीट गहिर रहे. पहिले परेश अंदर गइलन. ऊ दू, या तीन बाल्टी मैला फेंकलन. तनी देर खातिर ऊ बाहिर अइलन, सुस्तइलन आउर फेरु भीतर उतर गइलन. जइसहीं भीतरी गइलन, उनकर जोर से चिल्लाए के आवाज आइल…

हमनी के कुछुओ समझ ना आइल. गलसिंग भाई उनकरा देखे गटर में उतरलन.  बाकिर फेरु सन्नाटा. तब जाके अनीप भाई उतरले. ओकरा बादो, भीतरी से तीनों में से केहू के आवाज ना आइल. हमार कमर में रसड़ी बांध के उतारल गइल. हम भीतरी गइनी. हमार हाथ केहू पकड़ले रहे, पता ना, ऊ केकर हाथ रहे. बाकिर एक बेर जब हम हाथ पकड़नी, ऊ लोग हमरा ऊपर खींचे के कोसिस कइलक. ओकरा बाद का भइल, हमरा कुछो होश नइखे.” भावेश एक सांस में बोल गइलन.

भावेश से जब हमनी के भेंट भइल, ओकरा एक हफ्ता पहिलहीं उनकर भाई परेश, दू ठो आउरी मजूर उनकर आंख के सामने खत्म हो गइले. चेहरा से तकलीफ साफ झलकत रहे. ऊ ओह दिन के हादसा के बारे में बातवत रहस. आवाज एकदम मेहरा गइल रहे.

गुजरात के दाहोद जिला के खरसाना गांव के रहे वाला 20 बरिस के भावेश कटारा के भाग अच्छा रहे, कि ओह दिन के घटना में ऊ बच गइले. ओह दिन जहरीला सीवर साफ करे वाला पांच मजूर में से उनका अलावे एगो आउर मजूर बच गइल रहे. सभे मजूर लोग आदिवासी रहे. ऊ लोग भरूच के दहेज ग्राम पंचायत में एगो जहरीला सीवर साफ करत रहे. भावेश के अलावा, जे दोसर मजूर बचले, उनकर नाम जिग्नेश परमार बा. 18 बरिस के जिग्नेश दाहोद के बलेंदिया-पेठापुर से बाड़ें.

पांच गो मजूर में से जिग्नेश के गांव से आवे वाला 20 बरिस के अनीप परमार, दाहोद के दंतगढ़-चकलिया के, 25 बरिस के गलसिंग मुनिया आउर भावेश के भाई, 24 बरिस के परेश कटारा लोग रहे. एह में से तीन गो मजूर के मौत सीवर में दम घुटे से हो गइल. (इहंवा मजूर लोग के जे उमिर बतावल गइल बा, ऊ ओह लोग के आधार कार्ड के हिसाब से बा. एकरा बहुत सही ना मानल जा सके, काहेकि अइसन जानकारी अक्सरहा कम पढ़ल-लिखल आउर हड़बड़ाएल अधिकारी लोग मनमाना ढंग से कागज में भर देवेला.)

Bhavesh Katara was working in the same sewer chamber on the day when he watched his elder brother Paresh die in front of his eyes
PHOTO • Umesh Solanki

भावेश कटारा भी ओह दिन उहे सीवर चेंबर में काम करत रहस. उनकर आंख के सामने, देखते देखते भाई मौत के मुंह में समा गइले

Jignesh Parmar is the second lucky survivor, who was working in the adjoining chamber that day in Dahej. It was his first day at work
PHOTO • Umesh Solanki

जिग्नेश परमार दोसर भाग्यशाली मजूर बाड़े जे जिंदा बच गइले. ऊ ओह दिन दहेज में बगल के चेंबर में काम करत रहस. ऊ उनकर काम के पहिल दिन रहे

बाकिर अचरज के बात बा पांच गो आदिवासी लोग आपन गांव से 325-330 किमी दूर का करत रहे, का दहेज में सीवर साफ करत रहे? ओह में से दू गो मजूर कवनो दोसर ग्राम पंचायत खातिर महीनवारी पर काम करत रहे. बाकी के परिवार के लोग भी ना जानत रहे ऊ लोग कब, कहंवा आउर कवन काम कर रहल बा. ई लोग भील आदिवासी समूह के बहुते वंचित समुदाय से आवेला.

ऊ एगो मनहूस दिन रहे. जिग्नेश 4 अप्रिल, 2023 के दिन इयाद करत बाड़न, “एगो आदमी भीतरे रहे. ऊ जहरीला गैस के चपेट में आ गइल आउर बेबस हो गइल. जब दोसर आदमी (गलसिंह) ओकरा बचावे भीतर घुसल, त गैस से उनकरो दम घुटे लागल. ऊ भीतरिए गिर गइले. अब दूनो के बचावे खातिर अनीप दउड़ले. भीतर घुसते, भाप एतना कड़ा रहे, कि चक्कर खाके उहंई गिर पड़ले.”

जिग्नेश कहले, “हमनी उनका बचावे खातिर एक सांस में चिल्लात जात रहनी. आवाज सुनके गांव वाला लोग भागल आइल. ऊ लोग पुलिस आउर फायर ब्रिगेड के फोन कइलक. भावेश भीतर गइलन, त ऊहो गैस चलते बेहोश हो गइले. सभे के भीतर से निकाल गइल. भावेश के पहिले त पुलिस स्टेशन ले जाइल गइल. उहंवा जब ऊ होश में अइले, त पुलिस उनकरा अस्पताल ले गइल.”

उनकरा अस्पताल ले जाए खातिर, होश में आवे के इंतिजारी काहे कइल गइल? एह सवाल के केहू लगे जवाब ना रहे. वइसे, भावेश के बचा लेहल गइल रहे.

*****

अनीप बियाह भइला के पहिले से दहेज में काम करत रहस. उनकर घरवाली, रमिला बेन, साल 2019 में बियाह के तुरंते बाद ससुराल, उनकरा घरे आ गइली. रमिला बेन के कहनाम बा, “ऊ 11 बजे भोर में खाना खाके अकेले काम पर चल जात रहस. तलाटी साहेब, यानी सरपंच उनका जे काम कहस, उनकरा करे के होखे.” ऊ बतावत रहस कि जब अनीप के मौत भइल, ऊ उहंवा काहे ना रहस.

Ramila Ben Parmar, the wife of late Anip Bhai Parmar feels lost with a six months baby in the womb and no where to go
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मृतक अनीप भाई परमार के घरवाली, रमिला बेन परमार छव महीना के पेट लेले बदहवास बइठल बाड़ी. उनकर अब कवनो घर ना रहल

Anip's mother Vasali Ben Parmar.
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Anip's father Jhalu Bhai Parmar. None of the relatives of the workers had any idea about the nature of their work
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बावां: अनीप के महतारी वसाली बेन परमार. दहिना: परमार के बाबूजी झालू भाई परमार. सफाई मजूर लोग के कवनो नाता-रिस्तेदार के ई पता ना रहे, ऊ लोग कवन काम कर रहल बा

रमिला कहेली, “पहिले हमनी गटर साफ करे साथे जात रहनी. बियाह के बाद चार महीना गटर वाला काम कइनी. फेरु ऊ लोग ‘ट्रैक्टर वाला काम’ करे के कहलक. हमनी ट्रैक्टर से गांव जाईं. लोग ट्रॉली में आपन कूड़ा डाल देवे. हमरा कूड़ा बीन के अलग करे के होखत रहे. दहेज में, हमनी बड़हन गटर के सफाई के काम भी करत रहीं. रउआ देखले बानी न, ऊ प्राइवेट वाला खूब बड़हन चेंबर सभ? हम रसड़ी से बाल्टी के बांध दीहीं आउर गटर में डाल के मैला ऊपर खींच लीहीं.”

रमिला बेन के हिसाब से, “एह काम खातिर हमनी दुनो प्राणी के एक दिन के, अलग अलग 400 रुपइया मिलत रहे. इहे कोई चार महीना भइल होई, हमनी के महीना के पगार बांध देहल गइल. पहिले नौ हजार, फेरु बारह, ओकरा बाद आखिर में पंद्रह हजार रुपइया दरमाहा.” अनीप आउर गलसिंह दहेज ग्राम पंचायत में बहुते बरिस से महीनवारी काम करत रहस. ओह लोग के पंचायत रहे खातिर खोली भी देले रहे.

ऊ लोग काम खातिर कवनो लिखित अनुबंध, चाहे कागज पर हस्ताक्षर भी कइले रहे?

सफाई मजूर लोग के परिवार के एह बात के ठीक-ठीक जानकारी नइखे. केहू ई पक्का ना कह सके कि ऊ लोग के प्राइवेट ठिकेदार लोग काम पर लगइले रहे कि कोई आउर. परिवार के लोग के इहो नइखे पता, पंचायत संगे कवनो तरह के, चाहे ऊ स्थायी होखे, या अस्थायी, लिखित अनुबंध भइल रहे कि ना.

“लेटरहेड वाला, लिखा-पढ़ी के कवनो कागज त जरूर बनल होई. ऊ जरूर अनीप के जेबी में होई,” उनकर बाबूजी झालू भाई कहले. आउर दुर्घटना में जिंदा बच गइल ऊ दू गो मजूर, भावेश आ जिग्नेश लोग काम पर नया रहे? भावेश बतइलें, “हमनी के बीच कवनो तरह के लिखा-पढ़ी ना भइल रहे. बस ऊ लोग बुलवलक, आउर हमनी चल गइनी.”

Deceased Paresh's mother Sapna Ben Katara
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Jignesh and his mother Kali Ben Parmar
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बावां: मृतक परेश के माई सपना बेन कटारा. दहिना: जिग्नेश आउर उनकर माई कली बेन परमार

Weeping relatives of Anip.
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Deceased Anip's father Jhalu Bhai Parmar, 'Panchayat work means we have to lift a pig’s carcass if that is what they ask us to do'
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बावां: अनीप के परिवार के लोग रो रहल बा. दहिना: मृतक अनीप के बाबूजी झालू भाई परमार, ‘पंचायत के काम, मतलब ऊ लोग कहे मरल सूअर के उठाव, त उठावे के पड़ी’

जहंवा हादसा भइल, उहंवा भावेश दस दिन से काम करत रहले. बाकिर जिग्नेश आउर परेश के ऊहे दिन बोलावल गइल रहे. ऊ दिन, दुनो प्राणी के पहिल दिन रहे. ओह लोग के नाता-रिस्तेदार लोग के एह बात के कवनो अंदाजा ना रहे कि ऊ लोग का करत बा.

परेश के माई, 52 बरिस के सपना बेन बोले घरिया रोए लागत बाड़ी: “परेश घरे से निकले घरिया कह के गइले कि पंचायत में कुछ काम बा, ऊ लोग हमरा के बोला (दहेज) रहल बा. ओकर भाई दस दिन पहिले से उहंवा काम करत रहे. गलसिंह भाई उनकरा बुलइले रहस. तोहरा एक दिन के 500 रुपइया मिली, इहे भावेश आउर परेश दुनो गोटा कहले रहे. केहू ना बतइलक कि ऊ लोग सीवर साफ करे कहंवा जात बा. हमनी के कइसे पता चलित, ओह लोग के केतना दिन के काम बा? हमनी कइसे जनतीं ऊ लोग उहंवा कवन काम कर रहल बा?” ऊ बेचैन होके पूछली.

गलसिंह मुनिया के घर पर, उनकर 26 बरिस के घरवाली के भी अंदाजा ना रहे, घरवाला का काम करत रहस. ऊ कहली, “हम त घर से बाहिर निकलबे ना करिले. ऊ इहे हरमेसा कहस, ‘हम काम करे खातिर पंचायत जात बानी’ आउर निकल जास. ऊ हमरा कबो ना बतावत रहस कि का करेले. ई काम करत सात बरिस हो गइल. ऊ कबो हमरा एकरा बारे में ना बतइलन, घरो लवटला पर ना.”

पांचों परिवार के एगो सदस्य के भई भनक ना लागल उनकर बेटा, घरवाला, भाई, चाहे भतीजा लोग का काम करत बा, सिवाय एतना कि पंचायत के कवनो काम रहे. झालू भाई के त अनीप के मरला के एक दिन बाद पता चलल उनकर बेटा का करत रहस. उनकरा इहे लागत बा कि घनघोर गरीबी से मजबूर ऊ लोग के अइसन काम करे के पड़ल. झालू भाई कहले, “पंसायतनु कौम एटले भूंद ऊठावानु के त भूंद ऊठावू पड़ (पंचायत के काम मतलब ऊ लोग मरल सूअर उठावे के कही, त उहो उठावे के पड़ी).” झालू भाई इहो बतवले, “हमनी के गटर साफ करे के कहल जाई, त करे के पड़ी. ना त ऊ लोग हमनी के नौकरी से निकाल दीही. घरे जाए के कह दीही…”

जे मर गइल, चाहे जे काम पर पहिल दिन गइल रहे, का जानत रहे कवन काम खातिर बोलावल गइल बा? भावेश आउर जिग्नेश कहले कि ऊ लोग जानत रहे. भावेश के कहनाम बा, “गलसिंह भाई हमरा बतइले रहस कि 500 रुपइया दिहाड़ी मिली. गटर साफ करे के भी कुछ काम होई.” जिग्नेश भी एह बात के पुष्टि कइलें. कहलें, “अनीप हमरा बुलवले रहस. ओह दिन भोर में हम गइनी, त ऊ लोग हमनी के सीधा काम के जगहा ले गइल.”

Left: Kanita Ben, wife of Galsing Bhai Munia has five daughters to look after.
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Galsing's sisters sit, grief-stricken, after having sung songs of mourning
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कनिता बेन, गलसिंह भाई मुनिया के घरवाली के पांच गो लइकी बाड़ी. दहिना: गलसिंह के बहिन मातम के गीत गइला के बाद, सुन्न होके बइठल बाड़ी

Left: Galsing's father Varsing Bhai Munia.
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Galsing's mother Badudi Ben Munia
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गलसिंह के बाबूजी वरसिंह भाई मुनिया. दहिना: गलसिंह के माई बदुड़ी बेन मुनिया

जिग्नेश के छोड़ के, पांच में से कवनो मजूर लोग मिडिल स्कूल से आगे ना पढ़ल रहे. जिग्नेश बीए पहिल बरिस के, गुजराती प्रोग्राम में- बाहरी छात्र के रूप में, पढ़ाई करत बाड़ें. बाकिर हकीकत त ई बा कि ऊ लोग गरीबी से लड़े खातिर बीच-बीच में गटर में उतरे के पड़ेला. पेट पाले आउर लरिका लोग के पढ़ावे खातिर ई काम करे के मजबूर रहे.

*****

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के 2022-23 के सलाना रिपोर्ट के हिसाब से, गुजरात में 1993 से 2022 के बीच गटर सफाई के दौरान 153 लोग के मौत हो गइल. एहि घरिया तमिलनाडु में अइसन 220 मौत भइल रहे. एह तरह के मौत के मामला में देश में तमिलनाडु पहिल आउर गुजरात दोसर स्थान पर बा.

सेप्टिक टैंक आउर सीवर के सफाई के दौरान केतना लोग मरल, चाहे एह काम में केतना लोग लागल बा, एकर कवनो आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नइखे. हां, गुजरात के सामाजिक न्याय आउर अधिकारिता मंत्रालय, राज्य विधानमंडल के जानकारी देले बा कि 2021 से 2023 के बीच 11 गो- साल 2021 से 2022 के बीच 7 गो सफाई मजूर आउर, जनवरी 2022 से जनवरी 2023 के बीच अइसन 4 गो आउर, सफाई मजूर के मौत भइल.

पछिला दू महीना में राज्य में 8 गो सफाई मजूर के आपन जान गंवावे के पड़ल. जदि हमनी ई आंकड़ा भी जोड़ दीहीं त कुल गिनती आउर बढ़ जाई. एह में राजकोट में मार्च में दू गो, अप्रिल में दहेज में तीन गो (जेकरा बारे में ई स्टोरी बा) मौत शामिल बा. एकरा अलावा अप्रिले में ढोलका में दू गो, आउर थराद में एगो मौत भइल रहे.

ऊ लोग लगे सुरक्षा के कवनो इंतजाम ना रहे?

अनीप के 21 बरिस के दुलहिन रमिला बेन भरूज पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज  कइले बाड़ी. ऊ एह सवाल के जवाब में कहली, “सरपंच जयदीपसिंह राणा आउर उपसरपंच के घरवाला महेश भाई गोहिल के पता रहे कि हमार घरवाला आउर उनकर दोसर मजूर… जदि 20 फुट भीतर गंधात गटर में घुसी, उहो बिना सुरक्षा के कवनो इंतजाम के, त ऊ लोग मर सकत बा. एकरा बावजूद पांचों लोग के जान के खतरा से बचावे खातिर कवनो तरह के उपया ना कइल गइल.” (उपसरपंच मेहरारू हई. जइसन कि एगो रूढ़िवादी समाज में हरमेसा से होखत आइल बा, कुरसी आउर ताकत नाम के मेहरारू के होखेला, असल फायदा मरद उठावेला.)

Left: 'I have four brothers and six sisters. How do I go back to my parents?' asks Anip's wife, Ramila Ben Parmar.
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A photo of deceased Galsing Bhai
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बावां: ‘हमनी चार गो भाई आउर छव गो बहिन बानी. अब हम आपन नइहर कइसे जाईं?’ अनीप के मेहरारू, रमिला बेन परमार बेचैन होके पूछत बाड़ी. दहिना: मृतक गलसिंह भाई के फोटो

हाथ से सेप्टिक टैंक साफ करे आउर मैला ढोवे के प्रथा पर भारत में प्रतिबंध बा. एकर सुरुआत तब भइल जब मैला ढोवे वाला के रोजगार आउर पुनर्वास अधिनियम, 2013 पहिले के मैला ढोवे वाला के रोजगार आउर शुष्क शौचालय के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 के बढ़ा देले रहे. अइसे त, लागेला कि ई सब खाली कहे आउर नियम बनावे के बात बा, बाकिर अइसन काम अबहियो चालू बा. उहे कानून “खतरनाक सफाई,” में लागल लोग आउर सुरक्षा के सामान के बात करेला. जदि काम करवावे वाला मजूर के सुरक्षा के उपकरण आउर सफाई के दोसर औजार देवे के आपन दायित्व ना पूरा करे, त कानूनन ई गैरजमानती अपराध होई.

पुलिस, रमिला बेन के दर्ज कइल प्राथमिकी पर कार्रवाई करत दहेज ग्राम पंचायत के सरपंच आउर उपसरपंच के मरद, दूनो के गिरफ्तार कर लेलक. बाकिर दुनो लोग तुरंत जमानत अरजी दे देलक. मरे वाला के परिवार के कुछो होस नइखे कि ऊ लोग के आवेदन पर का सभ कार्रवाई कइल जात बा.

*****

“आगल पाछल कोई नथ. आ पांच सोकरा से. कोई नथ पाल पोस करना मारे,” बोलत बोलत गलसिंह के घरवाली के गला घुटे लागत बा. (“हम अनाथ हो गइनी. हमार पांच गो लरिकन बाड़ें. उहे हमनी के पेट पालत रहस, लरिकन के पढ़ावत रहस. अब का होई.”) मरद के मरला के बाद ऊ लइकी लोग संगे आपन ससुराल रहे लगली. उनकर पांच गो लइकी में सबले बड़, 9 बरिस के किनाल आउर सबले छोट, जे मुस्किल से एक बरिस के होई, सारा बाड़ी. गलसिंह के माई, 54 बरिस के बाबूदी बेन बतावे लगली, “हमार चार गो लइका. दू गो सूरत में. ऊ लोग कबो भेंट करे ना आवे. सबले बड़ लइका अलगे रहेला. ऊ हमनी के काहे खियाई? हमनी आपन सबले छोट लइका गलसिंह संगे रहत रहनी. अब ऊहो चल गइले. अब हमनी खातिर के बा?” ऊ पूछत बाड़ी.

रमिला बेन, 21 बरिस के विधवा, पेट से बाड़ी. उहो बदहवास बाड़ी. “अब हम कइसे जियम? हमार पेट के भरी? घर में त लोग बा, बाकिर केकरो पर कबले भार बनल रहम?” ऊ अनीप के माई-बाबूजी, पांच गो देवर आउर ननद के बारे में बात कर रहल बाड़ी.

“अब हम ई लरिका के का करब? हमनी के के देखी? अकेल्ला औरत हई गुजरात में कहंवा जाव?” ऊ राजस्थान के बाड़ी, बाकिर वापिस लउट ना सकेली. “हमार बाऊजी बहुते बूढ़ हवन. ऊ खेती तक ना कर सकस. परिवार बहुते बड़ बा. हमनी लगे बहुते कम जमीन बचल बा. घर पर हमनी पांच गो भाई आउर छव गो बहिन बानी. नइहर कइसे जाईं?” बोले घरिया उनकर आंख आपन पेट पर टिकल बा. अबही उनकरा छव महीना लागल होई.

“अनीप हमरा के किताब लाके देत रहस,” उनकर दस बरिस के बहिन जागृति बतावे लगली. बाकिर तनिए देर में बोलत बोलत उनकरा आंख से लोर गिरे लागल.

Left: Anip's photo outside his house.
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Right: Family members gathered at Anip's samadhi in the field for his funeral
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अनीप के घर के बाहिर के फोटो. दहिना: परिवार के लोग अनीप के अंतिम संस्कार खातिर जुटल बा

Left: Sapna Ben, Bhavesh's son Dhruvit, and Bhavesh and Paresh's sister Bhavna Ben.
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Right: Sapna Ben Katara lying in the courtyard near the photo of deceased Paresh
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बावां: सपना बेन, भावेश के लइका ध्रुव आउर भावेश आउर परेश के बहिन भावना बेन. दहिना: सपना बेन अंगना में मृतक परेश के फोटो लगे पड़ल बाड़ी

भावेश आउर परेश जब बहुते छोट रहले, तबे उनकरा लोग के सिर से बाप के साया उठ गइल रहे. परिवार में तीन गो दोसर भाई, दू गो ननद, माई आउर छोट बहिन बाड़ी. बहिन भावना, 16 बरिस, कहे लगली, “परेश भइया हमरा बहुते दुलार करत रहस. ऊ हमरा कहस कि जदि हम 12वां पास कर लेहम त अकेले पढ़े खातिर भेजिहन. ऊ हमरा खातिर एगो फोन भी खरीदे वाला रहस.” एह साल ऊ 12वी के बोर्ड देली ह.

गलसिंह, परेश आउर अनीप के परिवार के गुजरात सरकार ओरी से मुआवजा में 10 लाख रुपइया मिलल ह. बाकिर ऊ लोग के परिवार बहुते बड़ बा- ऊ लोग के त अकेला कमाई करे वाला चल गइल. इहे ना, मजूर लोग के विधवा के नाम पर चेक जरूर आइल बा, बाकिर घरवाली सभ के पइसा मिले के बारे में कुछो नइखे पता. खाली मरद लोग जानत बा.

आदिवासी समुदाय के लोग, कुदरत के नजदीक रहे वाला लोग अइसन काम कइसे कर सकेला? का ऊ लोग लगे जमीन नइखे? कमाए के कवनो दोसर साधन नइखे?

“हमनी के परिवार लगे जमीन के बहुते छोट टुकड़ा बा,” अनीप के मोटा बापा (बड़ चाचा) समझइले. “हमार परिवार में भले दस एकड़ जमीन होखे, बाकिर ओकरा से 300 लोग के पेट भरे के होखेला. काम कइसे चली? रउआ मजूरी के काम खोजहीं के पड़ी. हमनी के जमीन से जिए खातिर पर्याप्त मिलेला, बाकिर बेचे खातिर कुछो ना मिले.”

अइसन काम करे से बदनामी ना होखे?

परेश के मोटा बापा, बचूभाई कटारा कहले, “हमनी त अइसन कबो ना सोचनी. बाकिर अब जब अइसन कुछ घट गइल बा, त लागत बा कि हमनी के अइसन गंदा काम ना करे के चाहीं.”

“बाकिर जियल कइसे जाव…?”


ई कहानी मूल रूप से गुजराती में लिखल गइल रहे. प्रतिष्ठा पंड्या एकर अंग्रेजी में अनुवाद कइले बानी.

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Umesh Solanki

उमेश सोलंकी एक फोटोग्राफ़र, वृतचित्र निर्माता और लेखक हैं. उन्होंने पत्रकारिता में परास्नातक किया है और संप्रति अहमदाबाद में रहते हैं. उन्हें यात्रा करना पसंद है और उनके तीन कविता संग्रह, एक औपन्यासिक खंडकाव्य, एक उपन्यास और एक कथेतर आलेखों की पुस्तकें प्रकाशित हैं. उपरोक्त रपट भी उनके कथेतर आलेखों की पुस्तक माटी से ली गई है जो मूलतः गुजराती में लिखी गई है.

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Editor : Pratishtha Pandya

प्रतिष्ठा पांड्या, पारी में बतौर वरिष्ठ संपादक कार्यरत हैं, और पारी के रचनात्मक लेखन अनुभाग का नेतृत्व करती हैं. वह पारी’भाषा टीम की सदस्य हैं और गुजराती में कहानियों का अनुवाद व संपादन करती हैं. प्रतिष्ठा गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा की कवि भी हैं.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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