अभाव के शोर में खोने लगी है कोम्बू की आवाज़
तमिलनाडु के कोम्बू कलाकार, कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान मंदिर के त्योहारों और सार्वजनिक कार्यक्रमों पर पाबंदी लगने की वजह से बिना किसी कमाई के संघर्ष कर रहे हैं. इसके बावजूद, उनकी चिंता के केंद्र में कला की गिरावट ज़्यादा है
29 जून, 2021 | एम. पलानी कुमार
बीडः स्वास्थ्य कर्मचारियों और सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे अस्पताल
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के चरम पर पहुंचने के बाद से ही, महाराष्ट्र के बीड जिले के सरकारी अस्पतालों में मरीज़ बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं
26 जून, 2021 | पार्थ एमएन
मराठवाड़ाः ‘अस्पताल का बिल भरने में लुट गई सारी कमाई’
मराठवाड़ा में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के ख़राब हालात, महंगे निजी अस्पताल, और राज्य की बीमा योजना तक सीमित पहुंच ने कोरोना मरीजों और उनके परिवारों को कर्ज़ के दलदल में डुबो दिया है, जिससे वे लंबे समय तक जूझते रहेंगे.
23 जून, 2021 | पार्थ एमएन
हमें सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं है
झारखंड के असर्हिया गांव के कपड़ा विक्रेता अजय कुमार साव ने एक निजी क्लीनिक में कोविड-19 के इलाज में 1.5 लाख रुपए ख़र्च किए और अब क़र्ज़ में डूबे हैं. एक वीडियो एडिटर के साथ मिलकर लिखी गई स्टोरी जो उसी गांव में रहते हैं.
21 जून, 2021 | सुबूही जीवानी
मुझ तवायफ़ से कौन शादी करेगा!
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर जिले के चतुर्भुज स्थान की सेक्स वर्कर्स (यौनकर्मी), अक्सर अपने 'परमानेंट' ग्राहकों को ख़ुश करने चक्कर में कम उम्र में गर्भवती हो जाती हैं; कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण उनके हालात बेहद ख़राब हैं.
15 जून, 2021 | जिज्ञासा मिश्रा
बीडः कोरोना के डर और वैक्सीन के इंतज़ार में उलझी जिंदगी
महाराष्ट्र के बीड जिले में वैक्सीन की कमी और उसके असमान वितरण की वजह से, बहुत से लोग कोविड -19 की तीसरी लहर आने से पहले टीका नहीं लगवा पा रहे.
7 जून, 2021 | पार्थ एमएन
“हर नफ़्स को मौत का मज़ा चखना है”
दिल्ली के सबसे बड़े क़ब्रिस्तानों में से एक, 'जदीद अहल-ए-इस्लाम' में क़ब्र के पत्थरों पर ख़ूबसूरत लिखावट में आख़िरी शब्द उकेरने और तराशने वालों का दिल इस बात से टूट जाता है कि यह व्यवसाय बूम कर रहा है इन दिनों
5 जून, 2021 | आमिर मलिक
लाश पर सर रख के रोना भी अब नसीब नहीं
महामारी की वजह से हमने इस बीच एक और त्रासदी देखी. इंसान के शरीर से लेकर अन्य सामाजिक पहलुओं तक, अंतिम संस्कार ऐसे-ऐसे तरीक़ों से होते हुए दिखे जिनकी पहले हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी. अंतिम विदाई के वक़्त शोक की जगह अब खानापूर्ति ने ली है और सारा वक़्त संसाधन जुटाने की प्रक्रिया व प्रोटोकॉल का पालन करने में निकल जाता है. महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले से पारी की रिपोर्ट
29 मई, 2021 | पार्थ एमएन
उत्तर प्रदेशः ‘कुछ नहीं हो सकता, ड्यूटी करनी पड़ेगी’
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में अनिवार्य रूप से ड्यूटी के कारण कोविड-19 से मरने वाले शिक्षकों की संख्या तो बढ़ ही रही है, इसने शोषक ‘शिक्षा मित्र’ प्रणाली की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है। पारी ने अपनी जान गंवाने वाले ऐसे तीन ‘मित्रों’ का पता लगाया है
27 मई, 2021 | जिज्ञासा मिश्रा
अवाम की लाश पर तामीर हुआ एक राजमहल
महामारी से जूझते वक़्त में अवाम की नाराज़गी को नज़रअंदाज़ करके, मोदी सरकार का आलीशान सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट बिना किसी रुकावट के जारी है. इस क्रूर दृश्य को देखते हुए, एक कवि एक पुरानी कहानी सुना रहा है
12 मई, 2021 | सयानी रक्षित
तमिलनाडुः कोविड के समय तपेदिक के ख़िलाफ़ अभियान
दशकों से भारत की सबसे घातक संक्रामक बीमारी — तपेदिक से लड़ना कभी आसान नहीं रहा, और अब कोविड महामारी के दौरान यह और भी मुश्किल हो गया है, जैसा कि तमिलनाडु की तीन महिला ‘टीबी योद्धाओं’ की कहानी हमें बताती है
11 मई, 2021 | कविता मुरलीधरन
यूपी पंचायत चुनाव में शिक्षकों की बलि
उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में मतदान अधिकारियों के रूप में कार्यरत 700 से अधिक स्कूली शिक्षकों की कोविड-19 से मौत हो गई है और कई गंभीर स्थिति में हैं, चुनावों के आसपास केवल 30 दिनों में 8 लाख नए मामले सामने आए हैं
10 मई, 2021 | जिज्ञासा मिश्रा
बिहारः कोरोना काल में भी नहीं रुका बाल विवाह का सिलसिला
बिहार के ग्रामीण इलाक़ों में पिछले साल लॉकडाउन के दौरान, गांव लौटे प्रवासी मज़दूर युवकों से बहुत सी किशोरियों की शादी कर दी गई थी. उनमें से कई अब गर्भवती हैं और अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं
7 मई, 2021 | कविता अय्यर
जला वह उनमें जो अजनबी थे
इंसानी जानें हज़ारों चिताओं पर जल रही हैं और उनकी लपटों में पूरा देश घिर गया है. महामारी की इस त्रासदी को दर्ज करती एक कविता
3 मई, 2021 | गोकुल जीके
फूल उस क़ब्र पे जा कर मैं चढ़ाऊं कैसे
यह वह कविता है जो शूल सी चुभती है, पेंटिंग है ऐसी जो भीतर धंस जाती है - और महामारी की मार झेलती ज़िंदगी की एक कहानी है जिस पर मौत के साए मंडरा रहे हैं
29 अप्रैल, 2021 | जोशुआ बोधिनेत्र
‘मैं गांव में वीडियो एडिटिंग नहीं कर सकता’
हैय्युल रहमान अंसारी ग्रामीण झारखंड से 10 साल पहले वीडियो एडिटर के रूप में काम करने के लिए मुंबई आए थे। लेकिन पिछले साल उन्हें कोविड-19 लॉकडाउन में नौकरी गंवाने के बाद दो बार बोरिया-बिस्तर बांधकर घर लौटना पड़ा
23 अप्रैल, 2021 | सुबूही जीवानी
मालदाः ‘कोई भी ख़ुशी से परदेश नहीं जाता’
मालदा जिले के भगबानपुर में कोई औद्योगिक गतिविधि न होने और कृषि कार्यों में कम मज़दूरी के कारण, यहां के पुरुष ख़ुद को जीवित रखने और कमाकर पैसे घर भेजने के लिए उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे दूरदराज़ स्थानों पर काम करने निकल जाते हैं
19 अप्रैल, 2021 | पार्थ एमएन
आख़िरी लंबी क़तार में फिर से इंतज़ार
जीवन भर क़तारों में खड़ा रहा — फिर सबसे अंत में एक और क़तार। कोविड-19 संकट पर एक कविता
19 अप्रैल, 2021 | प्रतिष्ठा पांडे
उस ट्रेन पर किसी तरह सवार होने की कोशिश
मोहम्मद शमीम, दूसरे लोगों की तरह प्रवासियों की इस दूसरी लहर में — महामारी वर्ष में दूसरी बार नौकरी खोने के कारण, अपने यूपी के गांव लौट रहे हैं। उनके साथ उत्तरी मुंबई की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बहुत से लोग पहले ही जा चुके हैं
17 अप्रैल, 2021 | कविता अय्यर
‘कैसे कमाना और क्या खाना?’
मराठवाड़ा में, अजूबी लदाफ और जाहेदाबी सैयद की तरह अपने दम पर जीवन व्यतीत करने वाली महिलाएं आय अर्जित करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। सामाजिक बहिष्कार के साथ-साथ, महामारी और भेदभाव उनके लिए और कठिनाइयां पैदा कर रहे हैं
15 अप्रैल, 2021 | ईरा देउलगांवकर
नंदुरबार की पहाड़ी बस्तियों में: टीका पहुंच से दूर
महाराष्ट्र के धड़गांव इलाक़े की दूरदराज़ बस्तियों में आदिवासियों के लिए कोविड टीकाकरण केंद्र सड़कों की ख़राब कनेक्टिविटी और महंगे किराया के कारण दुर्गम हैं, यहां तक कि गंभीर बीमारियों वाले बुज़ुर्ग टीके का अभी भी इंतज़ार कर रहे हैं
5 अप्रैल, 2021 | ज्योति शिनोली
‘हमारे लिए लॉकडाउन — और काम हमेशा रहता है’
महामारी के दौरान नर्सों को बदनामी, कम वेतन, भेदभाव, घंटों तक जीवन बचाने वाले कार्य करने जैसे जोखिम का सामना करना पड़ा। पारी ने चेन्नई में पहली पंक्ति की इन असली योद्धाओं में से कुछ के साथ बात की
4 मार्च, 2021 | कविता मुरलीधरन
पेरुवेम्बाः अपनी लय को बनाए रखने के लिए संघर्ष
कोविड-19 लॉकडाउन में बिक्री नहीं होने, और अपने तबलों के लिए कच्चा चमड़ा ख़रीदने में कठिनाई के कारण, केरल के पेरुवेम्बा गांव के कड़ची कोल्लन वाद्ययंत्र निर्माताओं को स्थिर आय नहीं मिल पा रही है
19 जनवरी, 2021 | केए शाजी
‘मैं केवल जीवित रह सकता हूं: अपनी ज़िंदगी नहीं जी सकता’
मुंबई में रहने वाले बिहार के एक 27 वर्षीय प्रवासी श्रमिक बता रहे हैं कि लॉकडाउन के दौरान घर तक की यात्रा करना कितना कठिन था, और उनके वर्तमान और भविष्य पर इस शहर की पकड़ कितनी मज़बूत है
7 जनवरी, 2021 | चैत्रा यादवर
बीदर के खेतों में काम कर रहे डिग्री होल्डर
मेहनत की कमाई और ऋण के पैसे से बीटेक, बीएड, एमबीए, एलएलबी आदि डिग्रियां प्राप्त करने वाले, जिन्होंने लॉकडाउन से पहले की अपनी नौकरियां खो दीं, अब पूर्वोत्तर कर्नाटक के बीदर जिले में मनरेगा का काम कर रहे हैं
24 नवंबर, 2020 | तमन्ना नसीर
स्कूल 2020: लॉकडाउन में भविष्य की माप
ओडिशा और झारखंड के कुछ हिस्सों में, महामारी के दौरान शिक्षा हर एक के लिए आश्चर्यजनक पाठ है
14 नवंबर, 2020 | पारी एजुकेशन टीम
‘हर कोई जानता है कि यहां लड़कियों के साथ क्या होता है’
सोनी को घर लौटने पर पता चला कि उसकी पांच साल की बच्ची का यौन शोषण किया गया था, हालांकि मुंबई के कमाठीपुरा में उन्होंने और अन्य यौनकर्मियों ने लॉकडाउन से प्रभावित होने वाली आय का सामना करते हुए अपने बच्चों को सुरक्षित रखने की कोशिश की है
8 नवंबर, 2020 | आकांक्षा
कश्मीर में धान काटने के लिए कोई प्रवासी मज़दूर नहीं
मध्य कश्मीर में धान की कटाई का यह मुश्किल समय है। कुशल प्रवासी मज़दूर, जो स्थानीय मज़दूरों की तुलना में कम पैसे लेते हैं, लॉकडाउन के कारण यहां से चले गए थे, और अब यहां के किसान फ़सल को छोड़ने के बारे में सोच रहे हैं
29 अक्टूबर, 2020 | मुज़म्मिल भट
दुर्गा पूजा से ढाकी अभी गायब नहीं हुए
ग्रामीण बंगाल के पारंपरिक ढोलकियों को इस मौसम में कोलकाता में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है
26 अक्टूबर, 2020 | रितायन मुखर्जी
प्रवासी मज़दूर के रूप में मार्च करतीं मां दुर्गा
कोलकाता के बेहला में दुर्गा पूजा के एक पंडाल में देवी का एक अनोखा अवतार देखने को मिला
26 अक्टूबर, 2020 | रितायन मुखर्जी
ढेरों पूर्वाग्रह के बीच 1,100 शवों को दफ़नाना
कोविड-19 से मरने वालों की अंत्येष्टि को लेकर पूर्वाग्रह और शत्रुता के बीच, तमिलनाडु के एक स्वैच्छिक समूह ने धर्म या जाति की परवाह किए बिना अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने में सैकड़ों परिवारों की मदद की है
22 अक्टूबर, 2020 | कविता मुरलीधरन
एक राष्ट्र, कोई राशन कार्ड नहीं
दिल्ली में घरेलू सेविका के रूप में काम करने वाली रुख़साना ख़ातून ने, बिहार में अपने पति के गांव से राशन कार्ड बनवाने की कई वर्षों तक कोशिश की — और अब उन्हें इसकी काफी ज़रूरत महसूस हो रही है क्योंकि लॉकडाउन के कारण उनके परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है
20 अक्टूबर, 2020 | संस्कृति तलवार
लॉकडाउन से कालू दास का कबाड़ का काम प्रभावित
कालू दास — जो रीसाइक्लिंग के लिए सामग्री इकट्ठा करने अपने गांव से कोलकाता जाते हैं — ने कुछ हफ़्ता पहले फिर से चक्कर लगाना शुरू किया। लेकिन व्यवसाय निराशजनक है, मुनाफ़ा कम है, उनकी पत्नी ने अपनी नौकरी खो दी है, और परिवार संघर्ष कर रहा है
7 अक्टूबर, 2020 | पूजा भट्टाचार्जी
श्रीनगर की डल झील में नाव की गति
डल झील की अर्थव्यवस्था के लिए, पर्यटन सीज़न के दौरान कोविड-19 लॉकडाउन पिछले साल की अनुच्छेद 370 की तालबंदी के ठीक बाद आया, और इसके कारण शिकारा वालों, हाउसबोट मालिकों और दुकानदारों का भारी नुक़सान हुआ है और उनके पास कोई काम नहीं है
3 अक्टूबर, 2020 | आदिल रशीद
बेंगलुरु के दर्ज़ियों के लिए समय पर कोई सिलाई नहीं
लॉकडाउन में कोई आय नहीं होने के कारण, अब्दुल सत्तार और बेंगलुरु में कढ़ाई का काम करने वाले अन्य लोग पश्चिम बंगाल के अपने गांव लौटने के लिए बेताब थे। अब, चूंकि गांव में भी कोई काम नहीं है, इसलिए सत्तार शहर वापस आने के लिए बेताब हैं
30 सितंबर, 2020 | स्मिता तुमुलुरु
अशोक तारेः छुट्टी नहीं मिली, दुनिया को कहा अलविदा
कोविड-19 लक्षणों के बावजूद, मुंबई के एक सफ़ाईकर्मी अशोक तारे को बिना किसी सुरक्षात्मक उपकरण के काम करने पर मजबूर किया गया और छुट्टी देने से मना कर दिया गया। उनका परिवार मदद के लिए इधर-उधर भागता रहा, और 30 मई को उनकी मृत्यु के महीनों बाद मुआवज़े का इंतज़ार कर रहा है
29 सितंबर, 2020 | ज्योति शिनोली
‘घड़ी की मरम्मत समय को ठीक करने जैसा है’
विशाखापट्टनम के जगदम्बा जंक्शन के घड़ीसाज़ों ने, डिजिटल टाइमपीस और उपयोग के बाद पुर्ज़ों को फेंक देने के कारण काम में कमी होते देखी है। और अब, लॉकडाउन के प्रतिबंधों के बाद, वे अपने नुक़सान की भरपाई करने की कोशिश कर रहे हैं
24 सितंबर, 2020 | अमृता कोसुरु
यूपीः कोविड-19 को मात देने वाले समाज से कलंकित
यूपी में वापस लौटने वाले प्रवासियों सहित, कोविड-19 को मात देने वाले लोग महंगे इलाज, गंदे क्वारंटाइन केंद्रों, सामाजिक कलंक, और यहां तक कि धार्मिक भेदभाव से भी जूझ रहे हैं। बहुत से लोग अभी तक अपने गांव/शहर नहीं लौट पाए हैं
1 सितंबर, 2020 | जिज्ञासा मिश्रा
‘हमारे पास घर पर रहने के लिए घर नहीं है’
महाराष्ट्र के ख़ानाबदोश पशुपालक धनगर परिवारों के इस समूह के लिए, लॉकडाउन कई समस्याएं लेकर आया – भेड़ की बिक्री कम हो गई, गांव के खेतों पर जाना सीमित कर दिया गया, और उनके राशन कम होने लगे – लेकिन वे अपना गुज़ारा चलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं
28 अगस्त, 2020 | श्रद्धा अग्रवाल
विजाग के कुम्हारः मिट्टी की मूर्तियां, क़र्ज़ में विसर्जन
आंध्र प्रदेश के इस शहर के कारीगर त्योहार के मौसम – इस सप्ताह गणेश चतुर्थी से शुरू हो रहे — में सबसे अधिक कमाते हैं। लेकिन उन्हें इस साल अब तक गणेश की मूर्तियों और अन्य उत्पादों के लिए एक भी थोक ऑर्डर नहीं मिला है
22 अगस्त, 2020 | अमृता कोसुरु
‘हमारे मास्क बह गए’: मुंबई के बेघर
फुटपाथ पर रहने वाली मीना और उनका परिवार, शहर के कई बेघर लोगों में से हैं, जिनकी कोई आमदनी नहीं है और स्वास्थ्य सेवा या राज्य की योजनाओं तक उनकी पहुंच बहुत कम है – और अब वे मानसून तथा महामारी से जूझ रहे हैं
21 अगस्त, 2020 | आकांक्षा
कोलकाता के बच्चों के अस्पताल पर लॉकडाउन की मार
लॉकडाउन में अशक्तता, सामाजिक कलंक से स्वास्थ्यकर्मियों के प्रभावित होने के कारण केवल 40 प्रतिशत स्टाफ़ की उपस्थिति, और वित्तीय समस्याओं के बावजूद, इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के सिपाही अपना काम जारी रखे हुए हैं
18 अगस्त, 2020 | रितायन मुखर्जी
लॉकडाउन में कुम्हारों का नुक़सान
इस सप्ताह शुरू होने वाला गणपति उत्सव, फिर दुर्गा पूजा और दिवाली, दिल्ली के उत्तम नगर के कुम्हारों के लिए सबसे ज़्यादा कमाई वाले मौसम थे। लेकिन अब, वे कच्छ और पश्चिम बंगाल के कुम्हारों की तरह ही बिक्री का सबसे ख़राब समय देख रहे हैं
17 अगस्त, 2020 | सृष्टि वर्मा
आशा कार्यकर्ताओं की लॉकडाउन में कड़ी मेहनत
महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में आशा कार्यकर्ता, अग्रिम पंक्ति की स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में अपने पहले के काम के बोझ के साथ-साथ, ख़राब सुरक्षा उपकरण और मानदेय मिलने में देरी के बावजूद, कोविड-19 के प्रसार की निगरानी के लिए ओवरटाइम काम कर रही हैं
13 अगस्त, 2020 | ईरा देउलगांवकर
यूपी में: ‘आधा कर्नाटक और आधा आंध्र’
आंध्र प्रदेश में पानी-पुरी की दुकान चलाने वाले बीरेंद्र सिंह और रामदेकली लॉकडाउन के दौरान उत्तर प्रदेश लौट आए। वे अब क़र्ज़ में डूबे हुए हैं, अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंतित हैं, और उन्हें समझ में नहीं आ रहा है आगे कैसे गुज़ारा होगा
12 अगस्त, 2020 | रिया बहल
‘हमने उसका ख़ून ज़्यादा नहीं बहाया’
कोविड के इस संकट में बड़ी समस्या यह नहीं है कि हम कितनी जल्दी सामान्य हो सकते हैं। करोड़ों ग़रीब भारतीयों के लिए, ‘सामान्य’ समस्या थी। और नया सामान्य अक्सर स्टेरॉयड पर पुराना सामान्य है
10 अगस्त, 2020 | पी साईनाथ
घातक — और सामाजिक — वायरस से निपटना
विभिन्न समुदायों से संबंध रखने वाले कोविड-19 के रोगियों के लिए घर-अस्पताल-क्वारंटाइन-घर की यात्रा हमेशा समान नहीं होती है। पारी ने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में ऐसे दो परिवारों का पता लगाया
8 अगस्त, 2020 | पार्थ एमएन
‘अगर हम काम नहीं करेंगे, तो फ़सल कौन उगाएगा?’
ख़रीफ़ का मौसम है और धान की रोपाई शुरू हो चुकी है, इसलिए छत्तीसगढ़ में धमतरी के खेतों पर मज़दूर लौट आए हैं। वे कोविड-19 की सावधानियों के बारे में जानते हैं, लेकिन कहते हैं कि बिना काम किए उनका गुज़ारा नहीं चल सकता
8 अगस्त, 2020 | पुरुषोत्तम ठाकुर
पलायन और दुख से भरा मज़दूरों का जीवन
तो वह प्रवासी कौन है, जिसे मीडिया ने 25 मार्च को खोजा था? मुंबई में बिताए गए बचपन और जीवन के अनुभव के माध्यम से इस सवाल पर एक पीड़ादायक नज़र
27 जुलाई, 2020 | ज्योति शिनोली
‘मेरा परिवार क्या करे?’
बोरांडा गांव के आदिवासी मोहल्ले में, वनिता भोईर और उनका परिवार, जो महाराष्ट्र के ईंट भट्टों पर काम करने के लिए पलायन करते हैं, लॉकडाउन के कारण उनका काम, भोजन और पैसा सब कुछ ख़त्म हो चुका है – और अब वे उम्मीद भी खोते जा रहे हैं
21 जुलाई, 2020 | ममता पारेद
पालघर में: ‘भरने के लिए दो पेट कम’
लॉकडाउन के दौरान महाराष्ट्र के पालघर जिले में विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह, कातकरियों को काम मिलना बंद हो गया। शायद इसी वजह से मंगल वाघ ने ख़ुद की और अपनी बेटी की हत्या कर दी हो
20 जुलाई, 2020 | पार्थ एमएन
महामारी में ‘स्पर्श के माध्यम’ से दुनिया को देखना
विमल और नरेश ठाकरे, दोनों दृष्टिहीन, मुंबई की लोकल ट्रेन में रूमाल बेचते थे। लॉकडाउन ने उनकी, और कई अन्य की आय छीन ली। उन्हें सरकार से मामूली सहायता मिल रही है और भविष्य अनिश्चितताओं से भरा हुआ है
10 जुलाई, 2020 | ज्योति शिनोली
प्रवासियों के लिए रैप गीत — अर्थ और तर्क के साथ
कालाहांडी जिले में, दुलेश्वर टांडी – ‘रैपर दुले रॉकर’ – जो ट्यूशन पढ़ाते हैं, निर्माण स्थलों पर काम करते हैं और सामयिक प्रवासी हैं, लॉकडाउन में प्रवासियों की दुर्दशा पर इस गीत के माध्यम से अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं
4 जुलाई, 2020 | पुरुषोत्तम ठाकुर
लॉकडाउन से परेशान आंध्र के किसान
इस साल रबी के मौसम में केले की फ़सल अच्छी होने के बाद अनंतपुर जिले के किसानों को बेहतर क़ीमत मिलने की उम्मीद थी। लेकिन, कुछ ख़राब मौसम और फिर लॉकडाउन के कारण उन्हें भारी नुक़सान उठाना पड़ा और वे क़र्ज़ में डूबे हुए हैं
1 जुलाई, 2020 | जी राम मोहन
स्कूली बच्चेः डिजिटल असमानता से डिजिटल विभाजन तक
‘ऑनलाइन शिक्षा’ की होड़ ज़मीनी स्तर पर महाराष्ट्र के पालघर जिले के तलासरी जैसे ग़रीब आदिवासी क्षेत्र में कैसी दिखती है? पारी ने पड़ताल की कि यह पहले से ही गंभीर असमानताओं को कैसे आगे बढ़ा रही है
29 जून, 2020 | पार्थ एमएन
घर से दूर गए प्रवासी के लिए प्यार के गीत
पुणे के मुल्शी तालुका में स्थित खडकवाडी बस्ती की मुक्ताबाई उभे, नौ ओवी गा रही हैं, जो एक पत्नी द्वारा काम की तलाश में घर से दूर गए अपने पति के प्यार और बेक़रारी के बारे में है
26 जून, 2020 | नमिता वाईकर और पारी जीएसपी टीम
तमिलनाडु में चेचक, प्लेग और महामारी की यादें
तमिल लेखक चो धर्मन, गांवों के द्वारा सदियों से विभिन्न प्रकार के वायरस, प्लेग और महामारियों से जूझने का अमूल्य मौखिक इतिहास, और वर्तमान कोविड-19 महामारी तथा लॉकडाउन के तहत आज के जीवन से उसका क्या संबंध है, इस बारे में बता रहे हैं
25 जून, 2020 | अपर्णा कार्तिकेयन
लॉकडाउन में सबसे अधिक पीड़ित यूपी की महिलाएं
देश में घरेलू हिंसा वैसे तो एक आम बात है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान इसमें कुछ ज़्यादा ही वृद्धि देखने को मिली है। उत्तर प्रदेश के महोबा, लखनऊ और चित्रकूट जिले की महिलाओं ने पारी को अपनी दुख भरी कहानी सुनाई
23 जून, 2020 | जिज्ञासा मिश्रा
लॉकडाउन में ताड़ पर दुबारा चढ़ने को मजबूर ईश्वर
लॉकडाउन के कारण गर्मियों के लोकप्रिय फल, तारकून के ग्राहकों में कमी और केवल 10-15 दिनों तक बिक्री होने के कारण विशाखापत्तनम में इसके विक्रेताओं को काफ़ी नुक़सान हो रहा है
22 जून, 2020 | अमृता कोसुरु
कर्नाटक का रेशम मार्गः संकट में कोकून के किसान
कर्नाटक का रामनगर एशिया में कोकून का सबसे बड़े बाज़ार है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान क़ीमतों में भारी गिरावट और मांग-आपूर्ति श्रृंखला टूटने के कारण बुनाई, कताई करने वाले और विशेष रूप से रेशम के कीड़े पालने वाले किसान बुरी तरह प्रभावित हुए हैं
21 जून, 2020 | तमन्ना नसीर
चक्रवात और कोरोना के समय हाथ ख़ाली
लॉकडाउन के कारण आय ख़त्म होने और कोविड के डर से सबिता सरदार ने, अंफ़न चक्रवात के बावजूद, पुलिस और आश्रय गृह की ख़राब हालत से बचना पसंद किया, और कोलकाता के गरियाहाट फ्लाईओवर के नीचे अपने स्थान पर लौट आईं
18 जून, 2020 | पूजा भट्टाचार्जी
हार्मोनियम ठीक करने वाले, लॉकडाउन से परेशान
हारमोनियम की मरम्मत करने वाले जबलुपर, मध्य प्रदेश के कई लोग लॉकडाउन के कारण दो महीने से महाराष्ट्र के रेनापुर में फंसे हुए थे। उन्होंने पारी को अपनी परेशानियों के बारे में बताया
15 जून, 2020 | ईरा देउलगांवकर
लॉकडाउन से बेहालः छत्तीसगढ़ के कुम्हार
धमतरी शहर में, कुम्हारों ने गर्मियों में सबसे ज़्यादा बिक्री के अपने सीज़न को खो दिया, क्योंकि लॉकडाउन के कारण बर्तन बनाना और बेचना मुश्किल हो गया था। छत्तीसगढ़ में बाज़ार अब खुलने लगे हैं, लेकिन अगले वर्ष को लेकर उनकी अनिश्चितता बनी हुई है
15 जून, 2020 | पुरुषोत्तम ठाकुर
मज़दूर हूं मैं, मजबूर नहीं
25 मार्च के लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासी मज़दूरों का सामूहिक पलायन कवियों और चित्रकारों की कल्पना को साकार करता है। यह कविता श्रमिकों से निपटने में हमारे कई पाखंडों का खंडन करती है
15 जून, 2020 | अंजुम इस्माईल
लॉकडाउन के कारण आंध्र में फंसे नेपाली प्रवासी
लॉकडाउन के दौरान कोई आमदनी न होने के कारण आंध्र प्रदेश के भीमावरम में फंसे सिक्योरिटी गार्ड, सुरेश बहादुर खाद्य आपूर्ति की कमी, बीमारी और सीमा पार नेपाल में स्थित अपने घर लौटने की अनिश्चितता से जूझते रहे
11 जून, 2020 | रिया बहल
तिलंगाना के एक और ईंट भट्टे में बंद मज़दूर
तेलंगाना के संगारेड्डी जिले में कुनी तामलिया और ईंट भट्टों पर काम करने वाले अन्य मज़दूरों ने लॉकडाउन के दौरान अपने काम को जारी रखा। लेकिन बच्चों की देखभाल और कोविड की आशंका के कारण, वे श्रमिक स्पेशल ट्रेन पकड़ कर ओडिशा जाने के लिए बेक़रार थे
11 जून, 2020 | वर्षा भार्गवी
प्रवासी, और अभिजात वर्ग की नैतिक अर्थव्यवस्था
लॉकडाउन ने भारत में पुराने ज़माने से होती आ रही प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों की क्रूर अवहेलना को उजागर किया है – इन लाखों लोगों को हमारी दिखावटी चिंता की नहीं, बल्कि संपूर्ण न्याय की ज़रूरत है, यही बता रहा है इंडिया टुडे में प्रकाशित हो चुका यह लेख
8 जून, 2020 | पी साईनाथ
‘यहीं रुकें और कुछ न करें या वहां जाकर ख़ाली बैठें?’
निर्माण स्थलों पर काम करने वाले प्रवासी मज़दूर, अमोदा और राजेश जैसे ही बेंगलुरु में अपने नए कार्यस्थल पर पहुंचे लॉकडाउन शुरू हो गया, जिसकी वजह से न तो उन्हें कोई काम मिल सका और न ही रहने के लिए कोई जगह। हाई स्कूल के छात्रों द्वारा पारी की एक रिपोर्ट
8 जून, 2020 | अस्बा ज़ैनब शरीफ़ और सिद्धकवेडिया
नक़दी फ़सलें, कोविड और न बिकने वाली कपास की क़ीमत
देश भर में नक़दी फ़सलें बिक नहीं रही हैं, जिससे वे भारी मात्रा में बेकार पड़ी हुई हैं – जैसे कि महाराष्ट्र में कपास। भुखमरी का संकट मंडरा रहा है, फिर भी विदर्भ के किसान ख़रीफ़ के इस मौसम में खाद्य फ़सलों की बजाय एक बार फिर कपास की बुवाई करने की योजना बना रहे हैं
5 जून, 2020 | जयदीप हर्डीकर
पटाख़े से नहीं, शराब से बढ़ता वायरस
तमिलनाडु के विरुधुनगर में कई अरुंथथियार महिलाओं की तरह, देवी कनकराज शिवकाशी की पटाख़ा फ़ैक्ट्री में काम करती हैं। लॉकडाउन के कारण उनकी आय छिन गई, राशन घटने लगा, क़र्ज़ बढ़ रहा है और घर में केवल शराबी पति है
4 जून, 2020 | एस. सेंथालिर
जब पानी ने पागल सांड की तरह लोगों का पीछा किया
अंफ़न चक्रवात, पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान आया। पारी ने उस इलाक़े का दौरा किया और पाया कि वृक्षों, घरों और अन्य सामग्रियों का काफ़ी नुक़सान हुआ है – जिसमें लोगों की पहले से ही प्रभावित आजीविका भी शामिल है
3 जून, 2020 | रितायन मुखर्जी
प्रवासियों का फ़ौलादी जिगर
महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास, 8 मई को एक ट्रेन द्वारा कुचल कर मार दिए गए 16 प्रवासी मज़दूरों की त्रासदी हमें आज भी परेशान करती है। यह मार्मिक कविता और सम्मोहक पेंटिंग हमें उस भयानक घटना की याद दिलाती है
31 मई, 2020 | गोकुल जीके
उड़ती धूल, त्वचा में खुजली, पसीने से भीगा मास्क
सामाजिक दूरी के नियम का पालन आप कैसे कर सकते हैं यदि आप किसी अनाज ख़रीद केंद्र पर मज़दूरी कर रहे हैं – जैसे कि तेलंगाना के नलगोंडा जिले के ये पुरुष – जिन्हें एक मिनट में 213 किलोग्राम धान संभालने के लिए टीम के साथ काम करने की ज़रूरत पड़ती है?
30 मई, 2020 | हरिनाथ राव नागुलवंचा
‘ये महिलाएं किसी को भी भूखा नहीं जाने देंगी’
केरल के 400 से भी अधिक ‘कुडुंबश्री होटल’ लॉकडाउन के समय कम आय वाले लोगों — विद्यार्थियों, चिकित्सा परिचरों, सुरक्षा गार्डों, एंबुलेंस चालकों इत्यादि — को सस्ता लेकिन पौष्टिक भोजन प्रदान कर रहे हैं
28 मई, 2020 | गोकुल जीके
मध्य भारत से गुज़रते हुए घर के लिए प्रस्थान
लॉकडाउन के दौरान हाइवे पर निकले लाखों लोग उत्तरी और पूर्वी राज्यों में स्थित हज़ारों गावों में वापस जा रहे हैं। उनमें से बहुत से लोग भारत के मध्य में स्थित नागपुर शहर से गुज़र रहे हैं
27 मई, 2020 | सुदर्शन सखरकर
अब अमीरों की पालकियां कौन उठाएगा?
कई राज्य सरकारों ने श्रम क़ानूनों को निलंबित कर दिया है और काम के घंटे बढ़ा दिए हैं, और प्रवासी मज़दूरों की स्थिति और भी ख़राब हो गई है। पारी के संस्थापक संपादक पी. साईनाथ के साथ एक साक्षात्कार, फ़र्स्टपोस्ट के सौजन्य से
27 मई, 2020 | पार्थ एमएन
‘हम पहले ही तंगी में थे, अब कुछ भी नहीं बचा’
छत्तीसगढ़ से आए चंद्रा परिवार की तरह ही जम्मू में रहने वाले अन्य प्रवासी मज़दूरों के पास भी लॉकडाउन में कोई काम नहीं बचा था। वे लोग आसपास की इमारतों से आ रहे राशन की मदद से अपना घर चला रहे थे, और अब उन्हें धीरे-धीरे फिर से काम मिलने लगा है
26 मई, 2020 | रौनक भट
संघर्षरत कोलकाता में लॉकडाउन के समय अंफ़न
20 मई को पश्चिम बंगाल में आए विनाशकारी चक्रवाती तूफ़ान के कारण कोलकाता दोबारा सामान्य स्थिति में आने के लिए संघर्ष कर रहा है – क्योंकि जिन मज़दूरों को यह काम करना था वे लॉकडाउन की वजह से बहुत पहले ही शहर छोड़कर अपने गांव जा चुके थे
25 मई, 2020 | पारी टीम
कैंसर, कोविड-19 से पीड़ित और आश्रय के बिना
गीता और सतेंद्र सिंह महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले से गीता के कैंसर का इलाज कराने मुंबई आए थे। टाटा मेमोरियल अस्पताल के पास फुटपाथ पर रहते हुए पता चला कि दोनों कोविड-19 पॉज़िटिव हैं
25 मई, 2020 | आकांक्षा
फ़ोटोग्राफ़र लिखता है — अच्छाई के लिए या कविता के लिए
इस फ़ोटोग्राफ़र का कहना है कि जब लॉकडाउन मनुष्यों की पीड़ा को बढ़ा रहा है, जिसे दशकों से जानते हुए और उसकी परवाह करते हुए आप बड़े हुए हैं, तो यह आपको लेंस से परे जाकर, ख़ुद को कविता के रूप में व्यक्त करने पर मजबूर करता है
24 मई, 2020 | पुरुषोत्तम ठाकुर
पंवेल से एमपीः स्कूटर पर चार दिन और चार रातें
कुछ साल पहले एक दुर्घटना में अपना एक पैर गंवा चुके बिमलेश जायसवाल ने लॉकडाउन के दौरान अपनी पत्नी और तीन साल की बेटी के साथ, महाराष्ट्र के पंवेल से मध्य प्रदेश के रीवा तक, 1,200 किलोमीटर की यात्रा बिना गियर वाले स्कूटर से पूरी की
23 मई, 2020 | पार्थ एमएन
लॉकडाउन के कारण तेहट्टा में अस्थायी बाज़ार
‘हॉटस्पॉट’ में रहने वाले लोग जिन बाज़ारों पर निर्भर रहा करते थे, अब लॉकडाउन के कारण उन बाज़ारों को बंद किए जाने की उन्हें आदत पड़ गई है। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में, विक्रेताओं ने सब्ज़ियां और अन्य ताज़ी उपज बेचने के लिए एक अस्थायी बाज़ार बना लिया है
22 मई, 2020 | सौम्यब्रत रॉय
‘अब हम कोरोना वायरस या गर्मी से नहीं डरते’
उनकी मज़दूरी जब बंद हो गई और फिर खाना ख़त्म हो गया, तो वाराणसी के रेस्तरां में काम करने वाले गया, बिहार के श्रमिकों ने धीरे-धीरे अपने घरों की ओर चलना शुरू किया – जबकि ज़िले के अन्य लोग दूर, तमिलनाडु में फंसे हुए हैं
22 मई, 2020 | ऋतुपर्णा पलित
‘इस राशन कार्ड का क्या फ़ायदा है?’
पुणे की गयाबाई चव्हाण और अन्य के लिए अप्रैल का महीना सबसे कठिन गुज़रा, जब कोविड-19 लॉकडाउन के कारण उनकी मामूली आय बंद हो गई, और पीडीएस की दुकानों पर उनके बीपीएल राशन कार्ड को भी ख़ारिज कर दिया गया
19 मई, 2020 | जितेंद्र मैड
आप इस हंसमुख मां को तालाबंद नहीं कर सकते
महाराष्ट्र में मुंबई-नाशिक राजमार्ग पर दृढ़तापूर्वक चल रहे प्रवासी मज़दूरों की उस लंबी क़तार में, इस असाधारण मां की तस्वीर ने कलाकार की कल्पना को जगा दिया
18 मई, 2020 | लबनी जंगी
लॉकडाउन में प्रवासियों का लंबा मार्च
हैदराबाद के संगीतकार, लेखक और गायक आदेश रवि का यह गीत, निश्चित रूप से लॉकडाउन के कारण पूरे भारत में होने वाले पलायन पर लिखे जाने वाले सबसे ताक़तवर गीतों में से एक है
16 मई, 2020 | आदेश रवि
वाडा में लॉकडाउन ने छीनी इस्त्री करने वालों की आय
पालघर जिले के वाडा शहर में जो परिवार कपड़े की इस्त्री करके अपना जीवनयापन करते हैं, कोविड-19 लॉकडाउन ने उनकी दैनिक आय को कम कर दिया है। कई लोग राशन ख़रीदने और अन्य काम की तलाश में संघर्ष कर रहे हैं
15 मई, 2020 | श्रद्धा अग्रवाल
लॉकडाउन सड़क पर जमलो की अंतिम यात्रा
तेलंगाना के मिर्ची के खेतों में काम करने वाली छत्तीसगढ़ की एक 12 वर्षीय आदिवासी लड़की की 18 अप्रैल को, अन्य मज़दूरों के साथ घर लौटने की कोशिश के दौरान तीन दिनों तक पैदल चलने के बाद मृत्यु हो गई। पारी ने उसके गांव का दौरा किया
14 मई, 2020 | पुरुषोत्तम ठाकुर और कमलेश पेनक्रा
तेलंगाना के टोकरी बनाने वाले — लॉकडाउन में बंद
कोविड-19 लॉकडाउन ने तेलंगाना के कांगल गांव में टोकरी के व्यापार को बंद कर दिया है। टोकरी बनाने वाले येरुकुला एसटी समुदाय के लोग, फिलहाल कृषि कार्यों, और पीडीएस से मिलने वाले चावल तथा राहत पैकेजों पर निर्भर हैं
13 मई, 2020 | हरिनाथ राव नागुलवंचा
घरों में बंद छात्राएं: कोई बुनियादी ज़रूरत, पीरियड नहीं
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में स्कूल बंद हो जाने के कारण ग़रीब परिवारों की लड़कियों को मुफ़्त सैनिटरी नैपकिन नहीं मिल पा रहा है, इसलिए अब वे जोखिम भरा विकल्प अपनाने लगी हैं। अकेले यूपी में ऐसी लड़कियों की संख्या लाखों में है
12 मई, 2020 | जिज्ञासा मिश्रा
लॉकडाउन हाईवे पर बूढ़ी महिला और उसका भतीजा
कार्यस्थलों से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित अपने घरों तक पहुंचने के लिए पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों के दृश्य हमें आज भी परेशान कर रहे हैं। एक तस्वीर में, हालांकि, इस कलाकार को आशा और मानवता की भावना ज़रूर दिखाई दी
11 मई, 2020 | लबनी जंगी
लॉकडाउन में ख़ून से लथपथ रेल पटरियां
महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिले के पास 8 मई को जिन 16 मज़दूरों – उनमें से 8 गोंड आदिवासी थे – को मालगाड़ी द्वारा कुचल दिया गया था उन सभी की उम्र 20 या 30 साल की थी, और वे मध्य प्रदेश के उमरिया और शहडोल जिले के रहने वाले थे
10 मई, 2020 | प्रतिष्ठा पांडेय
रचेनाहल्ली में लॉकडाउन के दौरान राहत की तलाश
उत्तरी बेंगलुरु की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले प्रवासी दिहाड़ी मज़दूरों का काम बंद है, बचत के पैसे ख़त्म हो चुके हैं, भोजन की कमी है – लेकिन उन्हें मकान का किराया चुकाने, बच्चों का पेट पालने, और भूख से लड़ने का काम अभी भी करना पड़ रहा है
9 मई, 2020 | श्वेता डागा
चंदेरी धागे से लटके मध्य प्रदेश के बुनकर
कोविड-19 लॉकडाउन ने मध्य प्रदेश के चंदेरी शहर के सदियों पुराने चंदेरी कपड़े के व्यापार पर ब्रेक लगा दिया है। सुरेश कोली जैसे कई बुनकर मांग न होने, पिछले बकाया का भुगतान न किए जाने और घटते संसाधनों के कारण परेशान हैं
7 मई, 2020 | मोहित एम राव
लॉकडाउन में लाल चींटियों का प्रवासी मार्च
जिस व्यक्ति के घर पर चाइनीज़-थाई डिनर तैयार हो रहा हो, वह कब तक अपने गांवों लौट रहे भूखे प्रवासी मज़दूरों को आधे रास्ते में फंसा हुआ देख सकता है? उदासीनता और असमानता के मुद्दे पर दिल को छू लेने वाली एक कविता
6 मई, 2020 | प्रतिष्ठा पांडेय
एमएफआई ऋणः लॉकडाउन के समय भय और अपमान
कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण ग़रीबों ने कमाई में तेज़ी से गिरावट देखी है। लेकिन संकट चाहे जितना भी बड़ा हो, मराठवाड़ा में छोटे वित्तीय संस्थान ऋण की किस्तों के लिए अपने असहाय ग्राहकों को परेशान करना जारी रखे हुए हैं
4 मई, 2020 | पार्थ एमएन
लॉकडाउन में, बुज़ुर्गों के लिए कोई जगह नहीं
कर्नाटक के बेलगावी और महाराष्ट्र के कोल्हापुर में मशीनों की मरम्मत करने वाले एक मुस्लिम, एक आदिवासी बुनकर और रस्सी बनाने वाले एक दलित – सभी बुज़ुर्ग और अत्यधिक कुशल कारीगर हैं, लेकिन लॉकडाउन में उनके पास कोई काम नहीं है
4 मई, 2020 | संकेत जैन
मज़दूर दिवस पर घरों में बंदः काम नहीं, तो वेतन नहीं
एक नई डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म, जिसमें बेंगलुरु की मेट्रो रेल परियोजना पर काम करने वाले अधिकांश प्रवासी मज़दूर कोविड-19 लॉकडाउन के समय में पैदा होने वाली अपनी स्थिति के बारे में बता रहे हैं
1 मई, 2020 | यशस्विनी और एकता
डोला राम की घर जाने वाली लंबी और तालाबंद सड़क
निर्माण स्थलों पर काम करने वाले डोला राम जैसे ही राजस्थान में अपने गांव पहुंचे, उसके कुछ दिनों बाद ही उनके बेटे की मृत्यु हो गई – क्योंकि लॉकडाउन की इस अवधि में उसका ठीक से इलाज नहीं हो पाया था। अब, अन्य प्रवासी मजदूरों की तरह, वह भी क़र्ज़ और अनिश्चितता से जूझ रहे हैं
30 अप्रैल, 2020 | दृष्टि अग्रवाल और प्रीमा धुर्वे
कच्छ के ऊंट चरवाहेः लॉकडाउन में आख़िरी सहारा?
यदि आप ख़ानाबदोश पशुपालक हैं और जानवरों के विशाल झुंडों के साथ अपने घर से काफ़ी दूर हैं, तभी कोविड-19 लॉकडाउन की घोषणा हो जाती है, तब क्या होगा? गुजरात के कच्छ जिले में रहने वाले फ़क़ीरानी जाट अपनी कहानी बयान कर रहे हैं
28 अप्रैल, 2020 | रितायन मुखर्जी
भट्ठों में बंद, ईंट दर ईंट
ओडिशा के हज़ारों प्रवासी श्रमिक तेलंगाना के ईंट-भट्ठों में फंसे हुए हैं – लॉकडाउन ने शोषक कार्यस्थलों को और भी मुश्किल बना दिया – और उनके राशन ख़त्म हो रहे हैं और वे घर लौटने के लिए बेताब हैं
27 अप्रैल, 2020 | वर्षा भार्गवी
लॉकडाउन और गहरे समुद्र के बीच फंसे आंध्र के मछुआरे
विशाखापट्टनम के मछुआरे वार्षिक 15 अप्रैल से 14 जून तक की अवधि, जब प्रजनन के मौसम के दौरान मछली पकड़ने पर प्रतिबंध होता है, से दो सप्ताह पहले अपना सर्वश्रेष्ठ मुनाफ़ा कमाते हैं। इस वर्ष, वह महत्वपूर्ण अवधि लॉकडाउन के दौरान आई है
26 अप्रैल, 2020 | अमृता कोसुरु
वानविलः लॉकडाउन के तूफ़ान भरे जीवन में इंद्रधनुष
नागपट्टिनम का एक छोटा सा स्कूल तमिलनाडु के उस जिले की आदिवासी बस्तियों के 1,000 से अधिक ग़रीब परिवारों के बच्चों के लिए पोषण का केंद्र बन गया है। और इसके प्रयास सिर्फ छात्रों तक ही सीमित नहीं हैं
23 अप्रैल, 2020 | कविता मुरलीधरन
महामारी की क़ीमत चुका रहे विदर्भ के पशुपालक
पूर्वी महाराष्ट्र में नंद गवलियों और डेयरी के अन्य किसानों को पशुओं की स्वास्थ्य समस्याओं और चारे की कमी से जूझने के अलावा दूध की मांग में कमी और आपूर्ति श्रृंखलाओं के टूट जाने के कारण नुक़सान झेलना पड़ रहा है
22 अप्रैल, 2020 | जयदीप हर्डीकर और चेतना बोरकर
‘नावों को भी अपने खेवैयों की याद आ रही होगी’
कोविड-19 लॉकडाउन के कारण मध्य प्रदेश के चित्रकूट में रहने वाले निषाद नाविकों की आजीविका भी प्रभावित हुई है। इस समुदाय के बहुत से लोगों के पास राशन कार्ड तक नहीं है। सुषमा देवी, एक गर्भवती मां और विधवा, भी उन्हीं में से एक हैं
20 अप्रैल, 2020 | जिज्ञासा मिश्रा
महामारी से बिना सुरक्षा लड़ने को मजबूर — आशा कार्यकर्ता
हरियाणा के सोनीपत जिले में आशा कार्यकर्ताओं को, आख़िरी मिनट में महामारी को नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में, कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई के मोर्चे पर धकेल दिया गया है – बिना किसी सुरक्षात्मक उपकरण और बहुत कम प्रशिक्षण के साथ
18 अप्रैल, 2020 | पल्लवी प्रसाद
बिना रुके 104 किलोमीटर पैदल चलना
पालघर और ठाणे में ईंट भट्टे पर काम करने वाले मज़दूर, जिनमें से ज़्यादातर आदिवासी खेतिहर मज़दूर हैं, कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से बिना किसी कमाई के मानसून तक अपने-अपने घर लौटने को मजबूर हैं
17 अप्रैल, 2020 | ज्योति शिनोली
सिटिज़न नगर के लोग उम्मीद से हाथ धो बैठे हैं
कोविड-19 लॉकडाउन, अहमदाबाद के सिटिज़न नगर के पहले से ही पीड़ित समुदाय के लिए कहावती आख़िरी चोट जैसा साबित हो रहा है, भुखमरी को बढ़ाता हुआ और पहले से ही मौजूद स्वास्थ्य संकट को गहराता हुआ
16 अप्रैल, 2020 | प्रतिष्ठा पांडेय
सिर पर थैले, दिलों में डर
कोविड-19 लॉकडाउन संकट के कारण होने वाले पलायन ने कवियों और कलाकारों को समान रूप से प्रभावित किया है। एक ऐसी ही प्रतिक्रिया यहां पेश की जा रही है
16 अप्रैल, 2020 | गोकुल जीके
मुरझाते हुए महुआ, बर्बाद होती टोकरियां और ख़ामोश हाट
कोविड-19 लॉकडाउन ने छत्तीसगढ़ में रहने वाले कामर समूह, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह, जो टोकरियां बुनकर और महुआ के फूल बेचकर चंद रूपए कमाता है, की नाज़ुक अर्थव्यवस्था को तार-तार कर दिया है
15 अप्रैल, 2020 | पुरुषोत्तम ठाकुर
लातूर में छोटे कंधों पर लॉकडाउन का भार
माता-पिता को चूंकि कोई काम नहीं मिल रहा है या उनकी मज़दूरी काफ़ी घट गई है, इसलिए मराठवाड़ा के लातूर में ऐसे परिवारों के स्कूली छात्र कोविड-19 लॉकडाउन के ख़तरनाक परिदृश्य के बावजूद गलियों में सब्ज़ियां बेच रहे हैं
12 अप्रैल, 2020 | ईरा देउलगांवकर
‘अब तरबूज़ भी सड़ने वाले हैं’
कोविड-19 के कारण लॉकडाउन ने तमिलनाडु के चेंगलपट्टू जिले में तरबूज़ के किसानों को परेशानी में डाल दिया है। ख़रीदारों तथा ट्रांसपोर्टरों की संख्या में भारी गिरावट के कारण, कई किसान या तो अपने फलों को बहुत ही कम क़ीमतों पर बेचने के लिए मजबूर हैं या फिर उन्हें यूंही सड़ने के लिए छोड़ने पर
11 अप्रैल, 2020 | सिबी अरासू
‘कुछ लोग तो अब दिन में केवल एक बार ही खा रहे हैं’
कोविड-19 लॉकडाउन ने बेंगलुरु के कई दिहाड़ी मज़दूरों की आय छीन ली है या उन्हें बेकार कर दिया है
10 अप्रैल, 2020 | श्वेता डागा
लॉकडाउन में नाइयों का हाल
मराठवाड़ा के लातूर जिले में, नाइयों को लॉकडाउन ने बुरी तरह प्रभावित किया है – वे पूरी तरह से दैनिक आय पर आश्रित होते हैं, और उनके लिए अपने ग्राहकों से शारीरिक दूरी बनाने का विचार अकल्पनीय है
8 अप्रैल, 2020 | ईरा देउलगांवकर
सुंदरबनः मौसुनी में लॉकडाउन से खाने की कोई कमी नहीं
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन का एक छोटा, सुदूर द्वीप, जिसने कई आपदाओं का सामना किया है, अब कोविड-19 के संकट और लॉकडाउन का सामना अपने स्वयं के संसाधनों से कर रहा है
5 अप्रैल, 2020 | अभिजीत चक्रबोर्ती
लॉकडाउन के दौरान तमिलनाडु में परई वादन, लाइव!
परई कलाकार मणिमारन और मागिझिनी इस लॅाकडाउन के दौरान सोशल मीडिया के संसाधनों का उपयोग करते हुए कला प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं और बातचीत तथा रिकॉर्ड किए गए वीडियो के माध्यम से कोविड-19 के बारे में जागरुकता फैला रहे हैं
4 अप्रैल, 2020 | कविता मुरलीधरन
कोविड-19 के कारण ईरान में फंसे लद्दाखी उपेक्षा के शिकार
ईरान के क़ुम शहर में लद्दाख़ के रहने वाले 254 भारतीय तीर्थयात्रियों, जिनमें से अधिकांश बुज़ुर्ग हैं, के एक महीने से ज़्यादा समय से फंसे होने के कारण अब यहां उनके घरों में तनाव पैदा होने लगा है
2 अप्रैल, 2020 | स्टैंज़िन सैल्डॉन
अभी मीलों चलना है, इससे पहले कि सोने या खाने को मिले
कोविड-19 लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र के पालघर जिले में ईंट भट्ठे पर काम करने वाले प्रवासी आदिवासियों के पास बहुत कम पैसा और खाना बचा है – और लौटने को लेकर गांव से अल्टीमेटम भी मिल रहा है, ऐसे में उनके सामने केवल अनिश्चितता बची है
1 अप्रैल, 2020 | ममता पारेद
लॉकडाउन में भीख से वंचित पारधी
ग्रामीण महाराष्ट्र के कुछ फांसे पारधी आदिवासियों — विशेष रूप से जिनकी आयु लगभग 80 साल है — को अपना पेट भरने के लिए भीख मांगनी पड़ती है। अब क्या होगा, जब वे उन गांवों में प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं जो उनका भरण-पोषण करते थे?
1 अप्रैल, 2020 | ज्योति शिनोली
रास्ता, जो आपको घर नहीं पहुंचाता
कोविड-19 से लॉकडाउन के कारण, महीनों से सड़कों पर चल रहे चेनाकोंडा बालासामी और तेलंगाना के अन्य पशुपालकों के लिए भोजन और नए चरागाहों तक पहुंचना — या अपने गांवों वापस लौटना मुश्किल हो रहा है
31 मार्च, 2020 | हरिनाथ राव नागुलवंचा
कोरोना और कर्फ़्यू के बीच गन्ने की कटाई
पश्चिमी महाराष्ट्र के चीनी कारख़ानों में काम पर रखे गए लाखों मज़दूरों के लिए सामाजिक दूरी बनाकर रखना एक दूर का सपना है। कोविड-19 के डर के बावजूद सांगली जिले के कई लोग अस्वस्थता की स्थिति में अब भी गन्नों की कटाई कर रहे हैं
30 मार्च, 2020 | पार्थए मएन
लॉकडाउन में मुंबई के फ़ुटपाथ पर फंसे कैंसर पीड़ित
ख़त्म होते पैसे और थोड़े से खाने और पानी के साथ, टाटा मेमोरीयल अस्पताल के पास फ़ुटपाथ पर रह रहे कैंसर से पीड़ित मरीज़ लॉकडाउन में फंसे हुए हैं, घर जाने का कोई रास्ता नहीं है
30 मार्च, 2020 | आकांक्षा
कोरोना शरणार्थी — 538 किलोमीटर की यात्रा पर
ग्रामीण छत्तीसगढ़ में कुछ पत्रकार, संकट के कारण पलायन कर रहे लोगों को कवर करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं
30 मार्च, 2020 | पुरुषोत्तम ठाकुर
छत्तीसगढ़ में: सामाजिक दूरी बनाने के लिए मोर्चाबंदी
बस्तर क्षेत्र के कई हिस्सों में, ‘बाहरवालों’ को अंदर प्रवेश करने से रोकने के लिए लोग मोर्चाबंदी कर रहे हैं – और उन प्रवासियों को भी अंदर आने से रोक रहे हैं जो अपने ही गांव वापस लौट कर आए हैं
30 मार्च, 2020 | पुरुषोत्तम ठाकुर
सफ़ाई कर्मचारी — अकृतज्ञता का मेहनताना
लॉकडाउन के दौरान काम पर जाने के लिए चेन्नई के सफ़ाई कर्मचारी पैदल ही लंबी दूरी तय कर रहे हैं या कचरे की लारियों में सफ़र कर रहे हैं। इस दौरान एक दिन की भी छुट्टी लेने पर जुर्माना देना पड़ सकता है, बर्खास्त भी किया जा सकता है
29 मार्च, 2020 | एम. पलानी कुमार
‘भूख से मरने पर, साबुन हमें नहीं बचा पाएंगे’
पालघर जिले के कवटेपाड़ा में रहने वाले अधिकांश आदिवासी परिवार निर्माण स्थलों पर दैनिक मज़दूरी करके जीवनयापन करते हैं। कोविड-19 लॉकडाउन के कारण यह काम बंद हो गया है, और अब उनके पैसे और राशन तेज़ी से ख़त्म होने लगे हैं
28 मार्च, 2020 | श्रद्धा अग्रवाल
कोविड-19 के बारे में हमें क्या करना चाहिए
संकट की इस घड़ी में सरकार द्वारा ‘पैकेज’ की घोषणा निर्दयता और अनभिज्ञता का मिश्रण है
27 मार्च, 2020 | पी साईनाथ
वायरल मोड में जाती तुलजापुर के मंदिर से जुड़ी अर्थव्यवस्था
मराठवाड़ा के तुलजापुर में दुकानदार, विक्रेता और अन्य लोग जिनकी आजीविका शहर के प्रसिद्ध मंदिर पर निर्भर है, कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए 17 मार्च से लागू लॉकडाउन के कारण कोई बिक्री न होने से संघर्ष कर रहे हैं
24 मार्च, 2020 | मेधा काले
आवश्यक सेवाएं, अनावश्यक जीव
यह मुंबई के सफ़ाई कर्मचारियों की कहानी है, जो कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में सबसे आगे खड़े हैं। देर से मज़दूरी मिलने, और सुरक्षात्मक वस्त्र की कमी के बावजूद वे माहुल क्षेत्र की ज़हरीली हवा में अभी भी कचरा साफ़ कर रहे हैं
23 मार्च, 2020 | ज्योति शिनोली
हिंदी अनुवाद: मोहम्मद क़मर तबरेज़