पूनम, रानी के मांग काढ़ के केस में नरियर तेल लगइली आउर कस के एगो चोटी गूंथ देहली. रबर बैंड लगावही जात रहस कि ऊ माथा छोड़ा के आपन सहेली आउर भाई-बहिन संगे खेले बहिरा भाग गइली. पूनम देवी रात के भोजन बनावे घरिया लइकन सभे के हरकत पर कहे लगली, “दोस्त सभ के आहट मिलते, ई सभे संझा के खेले लेल घर से भाग जाई (संझा के सहेली सभ के आबिते, इनकर गोड़ घर में ना टिके, खेले खातिर भाग जइहन).” रानी उनकर 8 बरिस के दोसर बेटी हई.

पूनम के तीन गो लइकी आउर एगो लइका बाड़ें. बाकिर चारो लरिकन में से सिरिफ बेटा के जन्म के कागज (प्रमाणपत्र) बनल बा. ऊ बतावत बाड़ी, “हमरा लग में इत्ते पाई रहिते त बनवाइए लेतिए सबके (हमरा लगे एतना पाई रहित, त सभे खातिर बनवा लेतीं).”

उनकर काच घर बांस के बाड़ा से घेरल बा. अइसन बाड़ा जादे करके बिहार के गांव-देहात में देखे के मिल जाला. उनकर घरवाला, 48 बरिस, दिहाड़ी मजूर हवें. ऊ लोग बिहार के मधुबनी जिला के एकतारा गांव में रहेला. ई गांव बेनीपट्टी ब्लॉक में पड़ेला. मनोज मिहनत-मजूरी करके महीना में 6,000 रुपइया के आस-पास कमा लेवेलन.

पूनम (नाम बदलल बा) बतावत बाड़ी, “हम अबही 25 बरिस आउर कुछ महीना के होखेम. हमर आधार कार्ड घरवाला लगे बा. ऊ अबही घरे नइखन. हमार बियाह केतना उमिर में भइल रहे, ठीक-ठीक इयाद नइखे.” बलुक उनकर उमिर अबही 25 बा, त बियाह जरूर 14 में भइल होई.

पूनम के लइका लोग घरे में पैदा भइल बा. मनोज के चाची, 57 बरिस के शांति देवी कहेली, “हरमेसा दाई (परंपरागत जन्म परिचारिका) आके संभार लेत रहस. अस्पताल के तबे ख्याल आवत रहे, जब लागे कि स्थिति एकदम बिगड़ गइल बा.” शांति देवी उनका (मनोज आ पूनम के) घर से सटले उहे मोहल्ला में रहेली.

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पूनम के तीन गो लइकी आउर एगो लइका बा. बाकिर जन्म प्रमाणपत्र उनकर चारो लरिकन में से खाली सबसे छोट बेटा के ही बनल बा

शांति देवी के कहनाम बा “हमनी जेका, पूनम के भी जन्म प्रमाणपत्र बनवावे ना आवे. एकरा खातिर जिला अस्पताल जाए के पड़ेला. उहंवा कुछो पइसा भी देवे के पड़ेला. हमरा एह बारे में जादे नइखे पता.”

जन्म प्रमाणपत्र खातिर पइसा?

पूनम जबाब देली, “तख्खन की (आउर का)! ऊ लोग मुफ्त में कागज थोड़े बना के दीही. कहूं आउर मिलेला का?” इहंवा ‘ऊ लोग’ के मतलब अस्पताल के कर्मचारी आउर आशा दीदी लोग से बा. ऊ इहो कहली, “पाई लेई छे, ओहि दुआरे नाई बनबाए छियई (ऊ लोग पइसा लेवेला, एहि से हम आपन लइकी लोग के जन्म प्रमाणपत्र ना बनवा सकनी).”

पूनम आ शांति देवी, आउर एह मोहल्ला में रहे वाला सभे कोई मैथिली बोलेला. देस भर में 13 लाख से जादे लोग मैथिली भाषी हवे. बिहार के मधुबनी, दरभंगा आ सहरसा जिला के लोग जादेकर के इहे भाषा बोलेला. पड़ोसी देश नेपाल में भी मैथिली दोसर सबसे जादे बोले वाला भाषा हवे.

एगो दिलचस्प बात ई हवे कि एकतारा गांव के प्राथमिक केंद्र, पूनम के घर से मुस्किल से 100 मीटर दूर पड़ेला. इहंवा के लोग के हिसाब से ई अस्पताल जादे बखत बंदे रहेला. हां, कुछ गिनल-चुनल दिन कंपाउडर लउक जालन. पूनम के पड़ोसी राजलक्ष्मी महतो (जिनकर उमिर 50 से जादे बा) कंपाउडर के बारे में बतइली, “ऊ आखिरी बेरा 3 दिन पहिले आइल रहस. इहंवा हफ्ता में दूइए बेर अस्पताल के ताला खुलेला. बाकिर डॉक्टर के दर्शन त दुर्लभ बा. महीनन से डॉक्टर लोग के हमनी नइखी देखले. दुलार चंद्र के घरवाली एह अस्पताल में दाई के काम करेली. कवनो इमरजेंसी होखेला, त हमनी उनकरे बुलाइले. ऊ लगे के टोला में रहेली. हमनी के उनकरा पर बहुते भरोसा बा.”

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पूनम के घर के लगे के पीएचसी, जे जादे करके बंदे रहेला

रिसर्च रिव्यू इंटरनेशनल नाम के एगो पत्रिका में 2019 में एगो रिपोर्ट छपल. एह में बहुत जरूरी चीज के ओरी इशारा कइल गइल हवे: “नीति आयोग के हिसाब से भारत में 6 लाख डॉक्टर, 20 लाख नर्स, आउर 2 लाख डेंटल सर्जन के कमी बा. अइसे त, विश्व स्वास्थ्य संगठन डॉक्टर-मरीज़ अनुपात के 1:1000 यानी 1000 मरीज़ पर एगो डॉक्टर रखे के सलाह देवेला. फेरु भारत के गांव-देहात में ई अनुपात 1:11,082 बा. जबकि, बिहार आ उत्तर प्रदेश जइसन कुछ राज्य में क्रम से 1:28,391 आउर 1:19,962 हवे.”

एह रिपोर्ट में कहल गइल बा, “भारत में 1.14 मिलियन मान्यता मिलल डॉक्टर बा. एह में से 80 प्रतिशत डॉक्टर अइसन शहर में उपलब्ध बाड़ें, जहंवा देस के बस 31 प्रतिशत लोग रहेला.” अभाव के इहे कहानी भौतिक सुविधा से जुड़ल मूलभूत ढांचा, जइसे कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, ज़िला अस्पताल, चाहे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आ दोसर अस्पताल के मामला में जाहिर बा. अइसन हाल में पूनम के घर लगे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के मौजूदगी ‘पानी बिच मीन पियासी’ जइसन कहावत के सच करेला.”

हमनी सभे कोई पूनम के दालान में खड़ा होके बतियावत बानी. बिहार में दालान बड़-बजुर्ग, चाहे घर के मरद लोग खातिर होखेला. थोड़िका देर बाद पड़ोस के आउर मेहरारू लोग उहंवा आके हमनी से बतियावे लागल. एक बेर त अइसन लागल, ऊ लोग चाहत बा कि हमनी अंदर जाके कवनो कमरा में बइठ के बतियाईं. बाकिर हमनी दालान में ही बतकही जारी रखनी.

राजलक्ष्मी कहतारी, “हमार बेटी के लइका होखे वाला रहे, त हम उनका के हाली-हाली बेनीपट्टी अस्पताल ले गइनी. उहंवा पहिले से डिलीवरी के बात भइल रहे. बाकिर अंतिम बखत में पता चलल दाई जरूरी काम से बहिरा चल गइल बाड़ी. हम आउर हमार बेटा जल्दी से उनकरा ऑटोरिक्सा में लेके दोसर अस्पताल पहुंचनी. उहंवा डिलीवरी भइल. बाकिर डिलीवरी के तुरंते बाद नर्स लोग 500 रुपइया मांगे लागल. हमनी बतइनी अबही पइसा देवे के स्थिति में नइखी. त ऊ लोग खिसिया गइल. लइका के जन्म के कागज अबले ना मिलल. जन्म प्रमाणपत्र बनावे खातिर हमनी के भारी मुसीबत झेले के पड़त बा.”

स्वास्थ्य सुविधा से जुड़ल बेवस्था के सबसे निचला पायदान पर अइसन कहानी भइल. एह कहानी में अइसने दुख, कष्ट आउर लाचारी झेल रहल गरीब मेहरारूवन के कहानी भी शामिल बा.

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पूनम के चचिया सास, शांति देवी कहेली, ‘ऊ लोग कागज बनावे खातिर पइसा मांगेला, एहि से हम अबले आपन लइकियन के जन्म प्रमाणपत्र ना बना सकनी’

इहंवा स्वास्थ्य सेवा के जरूरी ढांचा के अभाव, स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर के गैरमौजूदगी, पहुंच से बाहिर प्राइवेट मेडिकल सर्विस, झोला छाप डॉक्टर जइसन परेसानी हरमेसा रहेला. एहि से इहंवा के गरीब मेहरारू लोग के, जादे करके आशा दीदी लोग पर निर्भर रहे के पड़ेला. आशा दीदी लोग ई लोग के जान हवे. कोविड बखत भी अगर कोई जी-जान से जमीनी लड़ाई लड़ले रहे, त ऊ इहंवा के आशा दीदी लोग ही रहे.

अइसन बखत जब सभे लोग अपना के बचावे बदे घर में रहे, आशा दीदी लोग आपन जान जोखिम में डाल के सभे के सेवा में लागल गइल. ओह लोग के जे भी जिम्मेदारी सौंपल गइल, ऊ लोग ईमानदारी से निभइलक. दुआरिए दुआरिए जाके वैक्सीन लगावे के मुहिम चलावे से लेके दवाई बांटे, जचगी से पहिले आउर बाद के देखभाल जइसन काम करे तक, ऊ लोग लागल रहल.

अस्पताल में सहायक नर्स (एएनएम) के स्तर पर जब छोट पैमाना पर भ्रष्टाचार सामने आवेला, त आशी दीदी, आंगनवाड़ी वर्कर, आउर पूनम आ राजलक्ष्मी जइसन मेहरारू लोग असहाय आउर ठगल महसूस करेला. घूस में चाहे थोड़िके पइसा काहे ना मांगल गइल होखे, बाकिर इहंवा के गरीब मेहरारू खातिर उहो सामर्थ्य से जादे होखेला.

आशा दीदी लोग सहित हालात के आगू समझौता करे वाला सभे मेहरारू लोग पर बहुते दबाव रहेला. देस भर में 10 लाख से भी जादे आशा कार्यकर्ता लोग हवे. ई लोग गांव-देहात के लोग आउर सरकारी स्वास्थ्य सेवा के बीच पुल के काम करेला. खतरा से भरल स्थिति में भी ऊ लोग हर तरह के काम में जी-जान से जुटल रहेला. देस के बहुते इलाका में आशा दीदी लोग खातिर पछिला बरिस अप्रैल से रोज 25 घर के मुआयना कइल जरूरी कर देहल गइल रहे. ऊ लोग के सभे घर में महीना में कम से कम चार बेर कोविड के सर्वे करे जाए के होखत रहे. ओह लोग के ई सभे कुछ सुरक्षा के बहुत कम इंतज़ाम के साथ करे के होखत रहे.

महामारी के बहुत पहिले, 2018 में बिहार में 93,687 आशा दीदी लोग आपन पगार बढ़ावे खातिर बड़ पैमाना पर हड़ताल कइले रहे. केंद्र आ राज्य सरकार ओरी से केतना तरह के भरोसा दिहल गइल. एकरा बाद हड़ताल त वापिस ले लेहल गइल, बाकिर बाद में कुछो कदम ना उठावल गइल.

दरभंगा के आशा दीदी, मीना देवी कहत बाड़ी, ‘सभे के मालूम बा हमनी के केतना कम पगार मिलेला. लरिका भइला पर लोग खुसी-खुसी जेतना दे देवेला, हमनी ना लीहीं, त बताईं गुजारा कइसे होई’

एह बरिस मार्च में आशा संयुक्त संघर्ष मंच के अगुआई में हड़ताल भइल रहे. नारा रहे, “एक हजार में दम नहीं, इक्कीस हजार मासिक बेतन से कम नहीं (एक हजार से काम ना चली, एकइस हजार पगार से कम ना चली).” हड़ताल में आशा दीदी लोग के सरकारी कर्मचारी के दरजा देवे के भी मांग कइल गइल. अबही, बिहार में आशा दीदी लोग के एक महीना के औसत कमाई 3000 रुपइया बा.

आशा दीदी लोग जेतना बेरा हड़ताल पर जाएला, सरकार ओह लोग के भरोसा दिलावेला. बाकिर बाद में सरकार आपन बात से मुकर जाला. आजो ओह लोग के दोसर सरकारी नौकरी जेका पगार, पेंंशन चाहे रोजगार भत्ता कुछो नइखे मिलत. अइसन स्थिति में आशा कार्यकर्ता, चाहे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम आउर गुजर-बसर कइल बहुते मुस्किल हो गइल बा.

दरभंगा से आवे वाली आशा दीदी, मीना देवी के कहनाम बा, “सभे के मालूम बा हमनी के केतना कम पगार मिलेला. लरिका भइला पर लोग खुसी खुसी जे पइसा देवेला, उहो हमनी ना लीहीं, त बताईं कइसे गुजारा होई? हमनी कबो पइसा खातिर जबरदस्ती ना करिले आउर ना ही ई कहिले, एतने देवे के पड़ी, ओतने देवे के पड़ी. ऊ लोग जे भी खुसी खुसी देवेला, हमनी खातिर उहे बहुत बा. ई बात लइका पैदा होखला पर होखे, चाहे जन्म प्रमाणपत्र बनवावे के बदला में होखे.”

उनकरा आउर दोसर लोग के मामला में अइसन बात, सही हो सकत बा. बाकिर देस भर में अइसन लाखन के गिनती में आशा कार्यकर्ता लोग बा जे ई सभ से दूर रहेला. बाकिर मधुबनी आ बिहार के कुछ आउर इलाका के बात कइल जाव, त स्थिति उलटा बा. उहंवा के मेहरारू लोग से मिले पर जबरदस्ती पइसा मांगे के बात पता चलेला.

सुरु सुरु में मनोज के माई-बाबूजी, उनकर घरवाली पूनम आउर तीन गो लरिका- 10 बरिस के अंजली, 8 के रानी आउर 5 बरिस के सोनाक्षी, साथे रहत रहे. माई-बाबूजी के गुजरला के बाद चउथा आउर इकलौता बेटा, राजा के जनम भइल. राजा अबही ढाई बरिस के बाड़ें. पूनम बतइली, “हमार सास के कैंसर रहे. अइसे त, हमरा नइखे मालूम कवन तरह के कैंसर रहे. बाकिर ऊ चार-पांच बरिस पहिले खतम हो गइली. एकरा बाद तीन बरिस पहिले हमार ससुर भी ना रहलें. अबही घर में बस हमहीं छव लोग बानी. ससुर के पोता के बड़ा इच्छा रहे. कास ऊ एकरा देख पइतन.”

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‘तीसर लरिका भइला के बाद जब ‘आशा’ हमरा से पइसा मंगली, तब पता चलल जन्म प्रमाणपत्र जइसन भी कवनो चीज होखेला’

पूनम के पढ़ाई छठमां तक भइल हवे. उनकर घरवाला दसमां तक पढ़ल बाड़ें. पूनम बतावत बाड़ी, “देखीं, सुरु सुरु में त हमरा जन्म पत्री (जन्म प्रमाण पत्र) के बारे में कुछो ना मालूम रहे. जब हमार तीसर लइकी पैदा भइली, तब ‘आशा’ हमरा से पइसा मंगली. तब पता चलल जन्म प्रमाणपत्र जइसन कवनो कागज होखेला. जहंवा तक इयाद बा, ऊ हमरा से 300 रुपइया मांगले रहस. हमरा लागल ई फीस हवे. बाकिर घरवाला चेतवलन कि प्रमाणपत्र जइसन कवनो कागज खातिर पइसा देवे के जरूरत नइखे. अस्पताल से फ्री में लेहल, हमनी के हक हवे.”

पूनम इहो बतइली, “कहलकई अढ़ाई सौ रुपया दियाउ तौ हम जनम पत्री बनवा देब (कहली हमरा 250 रुपइया दियाव, तब हम जन्मपत्री बनवा के देहम). आपन बेटा खातिर हमनी बनवा लेनी, काहे कि ऊ लोग एकरा खातिर 50 रुपइया आउर कम कर देले रहे. बाकिर 750 रुपइया के खरचा हमनी ना उठा सकत बानी. ऊ लोग हमार लइकी खातिर जन्मपत्री बनावेला एतने मांगत बा.”

पूनम जन्म प्रमाणपत्र बनावे के तरीका पर बात करत बाड़ी, “अगर हम अपने से बनवावे के कोसिस करीं, त बेनीपट्टी अस्पताल (ब्लॉक हेडक्वार्टर) जाए के पड़ी. उहंवा सफाई करे वाली के कुछो पइसा देवे के पड़ी. दूनो तरह से पइसा जब खरचा होहिंके बा, त हम इहंई आशा के ना दे दीहीं. एहि ले हमनी बात के जाए देनी. भविस्य में कबो ओह प्रमाणपत्र के जरूरत पड़ी, तब देखल जाई. हमार घरवाला 200 रुपइया खातिर केतना खटेलन. एकरा बनवावे में हम उनकर चार दिन के कमाई कइसे खरचा कर दीहीं.”

शांति एह में आपन बात जोड़त कहतारी, “एक बेर त हमार ‘आशा’ से बहस भी हो गइल रहे. हम त उनकरा साफ-साफ कह देनी पइसा लागी, त हम कागज ना बनवाएम.”

एह घरिया तक पूनम के पड़ोसी लोग गांव में हर हफ्ता लगे वाला हाट खातिर निकले लागल रहे, अन्हार होखे से पहिले उहंवा पहुंचे के रहे. हाट जाए के सवाल पर पूनम बतइली, “हम सोनाक्षी के पापा (पूनम, मनोज के नाम ना धरेली) के इंतजार करत बानी. साथे जाके जाके तनी तरकारी, चाहे मछरी ले आईं. तीन से रोज दाले-भात पकावत बानी. सोनाक्षी के रोहू मछरी बहुत नीमन लागेला.”

लउटे घरिया हमनी के इहे बूझाएल कि उहंवा के लोग के बेटी के जन्म पत्री बनावे से जादे जरूरी काम बा.

पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट 'पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.

रउआ ई लेख के छापल चाहत कइल चाहत बानी? बिनती बा [email protected] पर मेल करीं आ एकर एगो कॉपी [email protected] पर भेज दीहीं .

जिज्ञासा मिश्रा ठाकुर फैमिली फाउंडेशन के स्वतंत्र पत्रकारिता अनुदान के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य आउर नागरिक स्वतंत्रता पर लिखेनी . एह रिपोर्ताज के सामग्री पर ठाकुर फैमिली फाउंडेशन के कवनो संपादकीय नियंत्रण ना हवे .

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Jigyasa Mishra

जिज्ञासा मिश्रा, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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Illustration : Jigyasa Mishra

जिज्ञासा मिश्रा, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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Editor : P. Sainath

पी. साईनाथ, पीपल्स ऑर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया के संस्थापक संपादक हैं. वह दशकों से ग्रामीण भारत की समस्याओं की रिपोर्टिंग करते रहे हैं और उन्होंने ‘एवरीबडी लव्स अ गुड ड्रॉट’ तथा 'द लास्ट हीरोज़: फ़ुट सोल्ज़र्स ऑफ़ इंडियन फ़्रीडम' नामक किताबें भी लिखी हैं.

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Series Editor : Sharmila Joshi

शर्मिला जोशी, पूर्व में पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया के लिए बतौर कार्यकारी संपादक काम कर चुकी हैं. वह एक लेखक व रिसर्चर हैं और कई दफ़ा शिक्षक की भूमिका में भी होती हैं.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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