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Kolhapur, Maharashtra

Jun 16, 2024

‘किसे पता था बारिश की कमी से मेरी कला भी मर जाएगी?’

महाराष्ट्र के पश्चिमी हिस्से में स्थित केरले गांव के किसान और शिल्पकार संजय कांबले हाथ से इरलं (बांस के रेनकोट) बनाते हैं. हाथ से इन्हें बनाने की प्रक्रिया काफ़ी पेंचीदा होती है. पिछले कुछ दशक से बारिश में गिरावट और बाज़ार में मिलने वाले प्लास्टिक के रेनकोट ने उनके लिए अपनी कला को ज़िंदा रखना मुश्किल कर दिया है

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Author

Sanket Jain

संकेत जैन, महाराष्ट्र के कोल्हापुर में रहने वाले पत्रकार हैं. वह पारी के साल 2022 के सीनियर फेलो हैं, और पूर्व में साल 2019 के फेलो रह चुके हैं.

Editor

Shaoni Sarkar

शावनी सरकार, कोलकाता की स्वतंत्र पत्रकार हैं.

Translator

Amit Kumar Jha

अमित कुमार झा एक अनुवादक हैं, और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है.