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Kozhikode, Kerala

Oct 12, 2025

बंदूक न हैं गोलियां, बस प्रतिरोध की छतरियां

कभी एक उग्र नक्सलवादी रहे और सशस्त्र विद्रोह के लिए वर्षों जेल काट चुके आईनूर (ग्रो) वासु आज छतरियां बनाते और बेचते हैं. उनके लिए छतरियां सिर्फ़ रोज़गार नहीं, बल्कि गरिमा और स्वतंत्रता का प्रतीक हैं. उन्होंने बंदूकें छोड़ दी हैं और क्रांति के बदले प्रतिबद्धता और धैर्य का रास्ता चुन लिया है

Photographer

Praveen K

Photo Editor

Binaifer Bharucha

Video Editor

Shreya Katyayini

Translator

Prabhat Milind

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Author

K.A. Shaji

के.ए. शाजी, केरल में रहने वाले पत्रकार हैं. वह मानवाधिकार, पर्यावरण, जाति, हाशिए पर पड़े समुदायों और आजीविका से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं.

Photographer

Praveen K

प्रवीण के., केरल के कोड़िकोड में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्यरत हैं.

Editor

Priti David

प्रीति डेविड, पारी की कार्यकारी संपादक हैं. वह मुख्यतः जंगलों, आदिवासियों और आजीविकाओं पर लिखती हैं. वह पारी के एजुकेशन सेक्शन का नेतृत्व भी करती हैं. वह स्कूलों और कॉलेजों के साथ जुड़कर, ग्रामीण इलाक़ों के मुद्दों को कक्षाओं और पाठ्यक्रम में जगह दिलाने की दिशा में काम करती हैं.

Photo Editor

Binaifer Bharucha

बिनाइफ़र भरूचा, मुंबई की फ़्रीलांस फ़ोटोग्राफ़र हैं, और पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया में बतौर फ़ोटो एडिटर काम करती हैं.

Video Editor

Shreya Katyayini

श्रेया कात्यायिनी एक फ़िल्ममेकर हैं और पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया के लिए बतौर सीनियर वीडियो एडिटर काम करती हैं. इसके अलावा, वह पारी के लिए इलस्ट्रेशन भी करती हैं.

Translator

Prabhat Milind

प्रभात मिलिंद, शिक्षा: दिल्ली विश्विद्यालय से एम.ए. (इतिहास) की अधूरी पढाई, स्वतंत्र लेखक, अनुवादक और स्तंभकार, विभिन्न विधाओं पर अनुवाद की आठ पुस्तकें प्रकाशित और एक कविता संग्रह प्रकाशनाधीन.