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Sep 09, 2025

अक्षमताओं से जूझते ग्रामीण

ग्रामीण भारत के तमाम लोग अक्षमताओं से जूझते हुए जीवन व्यतीत कर रहे हैं. ये अक्षमताएं जन्म से ही उनके साथ पैदा होती हैं, या फिर समाज या सरकार की हरकतों या उपेक्षा की देन होती हैं. मसलन, झारखंड में यूरेनियम की खदानों के पास रहने या भयावह सूखे की मार झेलते मराठवाड़ा में फ्लोराइड युक्त पानी पीने के चलते पैदा हुई अक्षमताएं. कभी-कभार, किसी बीमारी या चिकित्सा में लापरवाही के कारण भी लोग अक्षमता का शिकार होते हैं – लखनऊ में कचरा बीनने वाली श्रमिक पार्वती देवी के हाथों की उंगलियां कुष्ठ रोग के चलते ख़राब हो गईं, वहीं मिज़ोरम के देबहाल चकमा के आंखों की रोशनी चेचक ने छीन ली, और पालघर में गैंग्रीन के कारण प्रतिभा हिलीम के दोनों हाथ-पांव काटने पड़े. दूसरी तरफ़, बहुत से लोग बौद्धिक अक्षमताओं से जूझते हैं – श्रीनगर के मोहसिन को सेरेब्रल पाल्सी है, वहीं, महाराष्ट्र में प्रतीक डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है. ऐसी स्थितियों में, ग़रीबी, ग़ैर-बराबरी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और सामाजिक भेदभाव उनकी मुश्किलें और बढ़ा देते हैं. अलग-अलग राज्यों में दर्ज की गईं पारी की ये कहानियां शारीरिक व बौद्धिक अक्षमताओं से जूझते लोगों की कहानी कहती हैं

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