उत्तर प्रदेश के इस औद्योगिक शहर में पीतल की ढलाई करने वाले लोग ख़तरनाक परिस्थितियों में रोज़ाना लगभग 12 घंटे भट्टियों में काम करते हुए बिताते हैं. इस शिल्प को 2014 में जीआई (भौगोलिक संकेतक) टैग दिया गया था, लेकिन 'पीतलनगरी’ के शिल्पकारों का कहना है कि इससे उनकी परिस्थितियों में कोई सुधार नहीं हुआ
मोहम्मद शहवाज़ ख़ान, दिल्ली में रहकर पत्रकारिता करते हैं. उन्हें फ़ीचर लेखन के लिए साल 2023 के लाडली मीडिया अवार्ड से नवाज़ा गया था. वह 2023 के पारी-एमएमएफ़ फेलो हैं.
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Author
Shivangi Pandey
शिवांगी पांडेय, नई दिल्ली में रहकर पत्रकारिता करती हैं और अनुवादक भी हैं. वह इस विषय में काफ़ी दिलचस्पी रखती हैं कि सामाजिक स्मृतियों पर भाषा के खोने का क्या असर पड़ता है. शिवांगी साल 2023 की पारी-एमएमएफ़ फेलो हैं. उन्हें आर्मरी स्क्वायर वेंचर्स प्राइज़ फ़ॉर साउथ एशियन लिटरेचर इन ट्रांसलेशन 2024 की संक्षिप्त सूची में शामिल किया गया था.
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Photographer
Aishwarya Diwakar
ऐश्वर्या दिवाकर, उत्तर प्रदेश के रामपुर की लेखक और अनुवादक हैं. उन्होंने रोहिलखंड के वाचिक और सांस्कृतिक इतिहास पर काम किया है और फ़िलहाल आईआईटी मद्रास के साथ उर्दू भाषा के एआई प्रोग्राम पर काम कर रही हैं.
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Editor
Sarbajaya Bhattacharya
सर्वजया भट्टाचार्य, पारी के लिए बतौर सीनियर असिस्टेंट एडिटर काम करती हैं. वह एक अनुभवी बांग्ला अनुवादक हैं. कोलकाता की रहने वाली सर्वजया शहर के इतिहास और यात्रा साहित्य में दिलचस्पी रखती हैं.
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Translator
Pratima
प्रतिमा एक काउन्सलर हैं और बतौर फ़्रीलांस अनुवादक भी काम करती हैं.