हम-पहले-ही-तंगी-में-थे-अब-कुछ-भी-नहीं-बचा

Jammu, Jammu and Kashmir

Sep 09, 2020

‘हम पहले ही तंगी में थे, अब कुछ भी नहीं बचा’

छत्तीसगढ़ से आए चंद्रा परिवार की तरह ही जम्मू में रहने वाले अन्य प्रवासी मज़दूरों के पास भी लॉकडाउन में कोई काम नहीं बचा था। वे लोग आसपास की इमारतों से आ रहे राशन की मदद से अपना घर चला रहे थे, और अब उन्हें धीरे-धीरे फिर से काम मिलने लगा है

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Author

Rounak Bhat

रौनक भट साल 2019 में पारी के साथ इंटर्नशिप कर चुके हैं. वह पुणे की सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की पढ़ाई कर चुके हैं. वह कवि और चित्रकार भी हैं, और डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में दिलचस्पी रखते हैं.

Translator

Neha Kulshreshtha

नेहा कुलश्रेष्ठ, जर्मनी के गॉटिंगन विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स) में पीएचडी कर रही हैं. उनके शोध का विषय है भारतीय सांकेतिक भाषा, जो भारत के बधिर समुदाय की भाषा है. उन्होंने साल 2016-2017 में पीपल्स लिंग्विस्टिक्स सर्वे ऑफ़ इंडिया के द्वारा निकाली गई किताबों की शृंखला में से एक, भारत की सांकेतिक भाषा(एं) का अंग्रेज़ी से हिंदी में सह-अनुवाद भी किया है.