यह हनले नदी घाटी में मनाया जाने वाला तिब्बती बौद्धों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. ढोल-नगाड़ों की थाप और तुरही के संगीत के बीच, महामारी के बाद पहली बार छह बस्तियों के लोग एक साथ मिलकर इस उत्सव को मना रहे हैं
रितायन मुखर्जी, कोलकाता के फ़ोटोग्राफर हैं और पारी के सीनियर फेलो हैं. वह भारत में चरवाहों और ख़ानाबदोश समुदायों के जीवन के दस्तावेज़ीकरण के लिए एक दीर्घकालिक परियोजना पर कार्य कर रहे हैं.
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Editor
Urvashi Sarkar
उर्वशी सरकार, स्वतंत्र पत्रकार हैं और साल 2016 की पारी फ़ेलो हैं.
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Binaifer Bharucha
बिनाइफ़र भरूचा, मुंबई की फ़्रीलांस फ़ोटोग्राफ़र हैं, और पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया में बतौर फ़ोटो एडिटर काम करती हैं.
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Translator
Prabhat Milind
प्रभात मिलिंद, शिक्षा: दिल्ली विश्विद्यालय से एम.ए. (इतिहास) की अधूरी पढाई, स्वतंत्र लेखक, अनुवादक और स्तंभकार, विभिन्न विधाओं पर अनुवाद की आठ पुस्तकें प्रकाशित और एक कविता संग्रह प्रकाशनाधीन.