मेरे-हाथों-में-अब-भी-जान-बाक़ी-है

Kolhapur, Maharashtra

Aug 01, 2022

‘मेरे हाथों में अब भी जान बाक़ी है’

महाराष्ट्र के रेंडल गांव में लकड़ी का हथकरघा बनाने वाले आख़िरी कारीगर बापू सुतार, इस हस्तकला के उन स्वर्णिम दिनों को याद करते हैं जिनका अवसान उनके गांव में लगभग छह दशक पहले हो चुका है

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Author

Sanket Jain

संकेत जैन, महाराष्ट्र के कोल्हापुर में रहने वाले पत्रकार हैं. वह पारी के साल 2022 के सीनियर फेलो हैं, और पूर्व में साल 2019 के फेलो रह चुके हैं.

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संगीता मेनन, मुंबई स्थित लेखक, संपादक और कम्युनिकेशन कंसल्टेंट हैं.

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बिनाइफ़र भरूचा, मुंबई की फ़्रीलांस फ़ोटोग्राफ़र हैं, और पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया में बतौर फ़ोटो एडिटर काम करती हैं.

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Prabhat Milind

प्रभात मिलिंद, शिक्षा: दिल्ली विश्विद्यालय से एम.ए. (इतिहास) की अधूरी पढाई, स्वतंत्र लेखक, अनुवादक और स्तंभकार, विभिन्न विधाओं पर अनुवाद की आठ पुस्तकें प्रकाशित और एक कविता संग्रह प्रकाशनाधीन.