भैसों-के-घर-लौटने-तक-अटकी-रहती-हैं-जबर्रा-के-मरकाम-की-सांसें

Dhamtari, Chhattisgarh

Jan 20, 2022

भैसों के घर लौटने तक अटकी रहती हैं जबर्रा के मरकाम की सांसें

विशालराम मरकाम की प्यारी भैंसें, छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले के घने जंगलों में चरने के लिए ख़ुद ही भटकती फिरती हैं. शाम तक वे घर लौट आती हैं, लेकिन भूखे हिंसक जानवरों का ख़तरा हमेशा बना रहता है

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Author

Purusottam Thakur

पुरुषोत्तम ठाकुर, साल 2015 के पारी फ़ेलो रह चुके हैं. वह एक पत्रकार व डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर हैं और फ़िलहाल अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन के लिए काम करते हैं और सामाजिक बदलावों से जुड़ी स्टोरी लिखते हैं.

Author

Priti David

प्रीति डेविड, पारी की कार्यकारी संपादक हैं. वह मुख्यतः जंगलों, आदिवासियों और आजीविकाओं पर लिखती हैं. वह पारी के एजुकेशन सेक्शन का नेतृत्व भी करती हैं. वह स्कूलों और कॉलेजों के साथ जुड़कर, ग्रामीण इलाक़ों के मुद्दों को कक्षाओं और पाठ्यक्रम में जगह दिलाने की दिशा में काम करती हैं.

Translator

Amit Kumar Jha

अमित कुमार झा एक अनुवादक हैं, और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है.