देश भर में बजाए जाने वाले वाद्ययंत्र उतने ही विविध हैं जितना कि खुद ग्रामीण भारत — हिमाचल प्रदेश के रुबाब और डफ जैसी खंजरी, पश्चिम बंगाल का बानम और गबगुबी, महाराष्ट्र के विशाल सींग जैसे तारपा, छत्तीसगढ़ की घुमाने वाली बांसुरी और बांस बाजा, विभिन्न राज्यों की धुम्सी, ढोल, ढोलक, ढाप और डोलू। अक्सर, ये और कई अन्य वाद्ययंत्र पीढ़ियों की विरासत को आगे बढ़ाने वाले कुशल कारीगरों द्वारा हस्तनिर्मित होते हैं — जैसे नरसिंगपेट्टई में नादस्वरम बनाने वाले, मायलापुर में मृदंगम, कासरगोड में बांस के ढोल और पेरुवेम्बा में चमड़े के वाद्दयंत्र बनाने वाले। हालांकि संगीत की इन परंपराओं में से कई का पतन हो रहा है, लेकिन कई की आवाज़ें तेज़ और स्पष्ट रूप से सुनाई देती हैं, जैसा कि पारी की ये स्टोरीज़ दिखाती हैं — जिनकी धुन अभी भी वैसी ही है और ग्रामीण परिदृश्य में गूंज रही है