क्या परदेस में खटते मज़दूरों को अपनी मिट्टी व बोली की याद आती है?
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर पारी ने भारत के अलग-अलग इलाक़ों में काम कर रहे प्रवासी मज़दूरों से बात की, और उनके जीवन में ज़मीन, भाषा और आजीविकाओं के आपसी रिश्ते और प्रभाव को समझने की कोशिश की