कपास किसान संदीप यादव चिंतित होके कहत बाड़न, “घरे धइल-धइल कपास के रंग उड़ल जात बा, आउर वजन भी कम होखत बा. रंग जेतना मद्धम होत जाई, दाम ओतने कम मिली.” मध्य प्रदेश के खरगोन जिला में गोगावां तहसील के किसान संदीप साल 2002 के अक्टूबर में कपास के कटाई के बाद से एकर भाव बढ़े के असरा लगइले बइठल बाड़े.

खरगोन में कपास 2.15 लाख हेक्टेयर जमीन पर उगावल जाला. लोग एकरा मध्य प्रदेश के सबले जादे कपास उगावे वाला जिला कहेला. हर साल मई में कपास के बुआई होई आउर अक्टूबर से दिसंबर के दोसरा हफ्ता आवत-आवत कटाई सुरु हो जाई. एह आठ महीना (अक्टूबर-मई) में खरगोन के कपास मंडी में रोज कोई 6 करोड़ रुपइया के कपास खरीदल जाला. संदीप मध्य प्रदेश के बहरामपुरा गांव में आपन 18 एकड़ के खेत में से 10 एकड़ पर कपास के खेती करेले.

साल 2022 में अक्टूबर महीना संदीप खातिर बहुते खुसी लेके आइल रहे. उनकर खेत में मोटा-मोटी 30 क्विंटल कपास कटाई भइल. हाल के कपास के मौसम में ई पहिल कटाई रहे. ओह घरिया उनकरा एतने कपास दोसरो बेर उगे के अनुमान रहे. बाकिर अइसन ना भइल, उनकरा खाली 26 क्विंटल कपास मिलल.

कुछे दिन बाद, अइसन भइल कि संदीप आपन 30 क्विंटल कपास भी खरगोन मंडी में बेचे ना ले जा सकले. बात ई रहे, मध्य प्रदेश के सभे कपास मंडी 11 अक्टूबर, 2022 से ब्यापारी लोग के हड़ताल के चलते बंद हो गइल रहे. ब्यापारी लोग मंडी टैक्स कम करे के मांग करत रहे. रउआ जान लीहीं, कि कपास किसान से हर 100 रुपइया के खरीद पर 1.7 रुपइया के टैक्स वसूलल जाला. ई देश के दोसर जादेतर राज्य में लागे वाला टैक्स के तुलना में अधिक बा. इहे टैक्स कम करे के मांग लेके कपास ब्यापारी लोग आठ दिन ले हड़ताल पर बइठल रहल.

हड़ताल सुरु होखे के एक दिन पहिले, यानी 10 अक्टूबर तक खरगोन कपास मंडी में कपास के भाव 8,740 प्रति क्विंटल रहे. हड़ताल खत्म भइला के बाद एकर भाव 890 रुपइया गिर के 7,850 रुपइया प्रति क्विंटल पहुंच गइल. 19 अक्टूबर के जब मंडी दोबारा खुलल, संदीप यादव भाव गिरल होखे के चलते आपन कपास ना बेचलन. अक्टूबर, 2022 में पारी से भइल बातचीत में 34 बरिस के किसान के कहनाम रहे, “अबही माल बेच देहम, त कुछुओ हाथ ना आई.”

Sanjay Yadav (left) is a cotton farmer in Navalpura village in Khargone district.
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About Rs. 6 crore of cotton is purchased daily from Khargone's cotton mandi (right) from October-May
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संजय यादव (बाबां) खरगोन जिला के नवलपुरा गांव से बाड़न आउर कपास के खेती करेलन. खरगोन कपास मंडी (दहिना) में अक्टूबर से मई के बीच रोज कोई 6 करोड़ रुपइया के कपास खरीदल जाला

अइसन पहिल बेर ना रहे कि संदीप के आपन कपास घरे पर रखे के पड़ल होखे. ऊ बतावत बाड़े कि कोविड बखत भी मंडी बंद हो गइल रहे, आउर “(साल 2021 में) कपास के फसल में कीड़ा लाग गइल. एहि से आधा से जादे उपज बरबाद हो गइल.”

उनका उम्मीद रहे कि अबही जे भी घाटा लागल ह, ओकर साल 2022 में होखे वाला उपज से भरपाई हो जाई. आउर ऊ आपन 15 लाख के करजा चुका सकिहे. बाकिर ऊ कहे लगले, “लागत बा एह बरिस (2022) करजा के किस्त चुकवला के बाद कुछुओ ना बची.”

किसान पोर्टल के आंकड़ा के हिसाब से, केंद्र सरकार साल 2022-23 में कपास खातिर 6,380 रुपइया के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय कइले रहे. देखल जाव त ई भाव साल 2021-22 के तुलना में 355 रुपइया जादे बा. बाकिर भारतीय किसान संघ के इंदौर संभाग के अध्यक्ष श्याम सिंह पंवार के कहनाम बा, “एमएसपी कमो ना त, 8,500 रुपइया त जरूरे होखे के चाहीं. सरकार के एह खातिर कानून लावे के चाहीं जे से ब्यापारी लोग एकरा से कम में ना खरीद सके.”

बड़वाह तहसील के नवलपुरा गांव में रहे वाला किसान संजय यादव के आपन उपज खातिर 7,405 रुपइया प्रति क्विवंटल के भाव मिलल. ई भाव उनका हिसाब से बहुते कम बा. ऊ खरगोन मंडी में आपन खाली 12 क्विंटल कपास ही बेचलन. बीस बरिस के संजय के कहनाम बा कि भाव कमो ना, त 10,000 रुपइया होखे के चाहीं. यानि अबही के भाव से कोई 2,595 रुपइया जादे.

संदीप कहे लगले, “हमनी एकरा (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बारे में कुछो बोलिए ना सकिले. आपन फसल के लागत भी हमनी के हाथ में नइखे.”

“बिया जइसन जरूरी खरचा के अलावा, एक एकड़ खेत पर 1,400 रुपइया के डीएपी (डाईअमोनियम फास्फेट) खाद लागेला. कोई 1,500 रुपइया एक दिन के मजूरी लगा लीहीं. एकरा अलावे इल्ली मारे खातिर 1,000 रुपइया के तीन ठो स्प्रे चाहीं. एह तरह से देखल जाव, त एक एकड़ में 15,000 ले खरचा पड़ जालला,” संदीप कहले.

Left: Farmer Radheshyam Patel from Sabda village says that cultivating cotton is costly
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Right: The farmers at the mandi are disappointed with the low price of cotton after the trader's strike ended
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बावां: सबदा गांव के किसान राधेश्याम पटेल कपास के महंग उपज बतावेले. दहिना: ब्यापारी लोग के हड़ताल खत्म भइला के बाद, मंडी में कपास के गिरल भाव चलते किसान लोग उदास लउकत बा

Left: Sandeep Yadav (sitting on a bullock cart) is a cotton farmer in Behrampura village.
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Right: He has taken a loan of Rs. 9 lakh to build a new home which is under construction
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बावां: बहरामपुरा गांव के किसान संदीप यादव (बैलगाड़ीपर बइठल) कपास के खेती करेले. दहिना: ऊ नौ लाख रुपइया करजा लेके एगो नया मकान बनावत बाड़े, जेकर काम अभी पूरा नइखे भइल

अक्टूबर, 2022 में कपास कटाई खातिर मजूरी देवे में संदीप के मोटा-मोटी 30,000 रुपइया करजा लेवे पड़ल. उनकर कहनाम रहे, “दिवाली घरिया सभे के नया नया कपड़ा कीने (खरीदे) के होखेला. हमनी मजूर के पइसा ना देहम, त ऊ लोग त्योहार खातिर खरचा कहंवा से लाई.”

बहरामपुरा गांव में संदीप आपन नया घर बनवावत बाड़े. एह खातिर उनका महाजन से नौ लाख रुपइया उधार लेवे के पड़ल बा. उनकर इलाका में सरकारी स्कूल ना होखे से, कोविड के पहिले आपन लरिकन के नाम लगे के एगो प्राइवेट स्कूलो में लिखवा देले रहस. आउर एकरा खातिर मोट फीस में ऊ आपन जमापूंजी लगा देलन. एह चलते भी उनकर माली हालत ठीक नइखे.

कसरावद तहसील के सबदा गांव के किसान राधेश्याम पटेल के भी कपास महंग फसल लागेला. कोई 47 बरिस के राधेश्याम के कहनाम बा, “जदि हमनी अबही रबी के फसल बोएम, त उहो में खरचा लागी. सूद पर पइसा उधार लेवे के पड़ी. एकरा बाद, जदि अगला फसल भी बरबाद भइल, त घाटा खाली किसान के झोली में जाई. एहि से, किसान या त जहर पी लेवेला, चाहे सूद के जंजाल में फंस के जमीन बेचे खातिर मजबूर हो जाला.”

एमएसपी के सवाल पर खेती-किसानी के जानकार देवेंद्र शर्मा कहेले, “किसान के उपज के सही दाम खाली किसाने बता सकेला. बाकिर सरकार के कम से कम एतना त जरूर करे के चाहीं कि किसान के आपन उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल सके.”

जनवरी 2023 आवत-आवत संदीप के माली हालत बगड़े लागेला. फरवरी के पहिल हफ्ता में उनकर छोट भाई के लगन रहे. ऊ पारी के बतइले कि पइसा के जरूरत जादे होखे से, मजबूरी में ऊ जनवरी में 30 क्विंटल कपास 8,900 रुपइया प्रति क्विंटल के भाव से बेच देले.

अइसे उनकरा हिसाब से ई भाव पहिले से नीमन बा, बाकिर खरचा निकाले के बाद हाथ में कुछो ना आई.

उपज के दाम पर आपन लाचारी जतावत ऊ कहे लगले, “किसानन के कंहू सुनवाई नइखे.”

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Shishir Agrawal

Shishir Agrawal is a reporter. He graduated in Journalism from Jamia Millia Islamia, Delhi.

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Devesh is a poet, journalist, filmmaker and translator. He is the Translations Editor, Hindi, at the People’s Archive of Rural India.

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