कवनो फिलिम में हीरो के एंट्री एतना जोरदार ना होई, जेतना लक्ष्मी के भइल. तनिए देर पहिले दोकान में बइठल छव ठो किसान लोग बतियावत रहे- कटहर (कटहल) के धंधा अइसन बा, कटहर के धंधा वइसन बा, कवनो मेहरारू से ई सभ ना हो सके. सच्चाइयो इहे बा कि भारी-भारी कटहर एक जगह से दोसरा जगह लेके जाएल बहुत कठिन आउर बेसंभार होखेला. लोग टोंट करते रहे कि लक्ष्मी दोकान में घुसली. पियर लुगा पहिनले, पाकल बाल के जूड़ा बनवले. नाक आउर कान में सोना के जेवर दमकवले. सभे के बोलती बंद हो गइल. ओहि में से एगो किसान तनी आदर से बतावे लगलन, “कटहर के धंधा में ई सबले दमदार आदमी बाड़ी.”

“उहे हमनी के उगावल माल के दाम तय करेली.”

ए. लक्ष्मी, 65 बरिस, पनरुती में कटहर के कारोबार करे वाला अकेला मेहरारू बाड़ी. खेती-बारी से जुड़ल काम में लागल मुट्ठी भर उमिरगर मेहरारू में उनकर गिनती कइल जाला.

तमिलनाडु के कडलूर जिला के पनरुती टाउन कटहर खातिर नामी बा. सीजन में इहंवा सैंकड़न टन कटहर रोज लावल आउर बेचल जाला. हर बरिस लक्ष्मिए हजारो-हजार किलो कटहर के दाम तय करेली. ई कटहर सभ शहर के मंडी के 22 दोकान सभ में बेचल जाला. कटहर कीने वाला ब्यापारी लोग बदला में उनका हर 1,000 रुपइया पर 50 रुपया कमीशन देवेला. किसान लोग के मन होखेला, त ऊ लोग अलगो से तनी उपरवारी पइसा दे सकेला. उनकरा हिसाब से, सीजन में ऊ रोज 1,000 से 2,000 रुपइया कमा लेवेली.

एतना कमाए खातिर उनका 12 घंटा खटे के पड़ेला. उनकर काम रोज मुंह अन्हारे 1 बजे सुरु हो जाला. “जदि सरक्कु (माल) जादे होखेला, त कारोबारी लोग हमरा लेवे जल्दी आ जाला,” लक्ष्मी समझइली. ऊ ऑटो रिक्शा से भोर के 3 बजत-बजत मंडी पहुंच जाली. ओकरा बाद उनकर काम खतम होखत-होखत दुपहरिया के 1 बाज जाला. तब जाके उनकरा मुंह में कुछ डाले आउर देह सोझा करे के मौका मिलेला. बाकिर कुछे घंटा बाद फेरु से बजार जाए के टाइम हो जाला.

“कटहर उगावे के बारे में हमरा जादे कुछ नइखे पता,” ऊ हमरा बतइली. घंटन बतियाए आउर चिचियाए से उनकर बोली तनी कड़ा लागत रहे. बाकिर लक्ष्मी के स्वभाव नरम बा. “बाकिर एकरा मंडी में बेचे के तौर-तरीका हम तनी-मनी जानिला.” आखिर ऊ पछिला तीस बरिस से कटहर के ब्योपार करत बाड़ी. ओकरा पहिले के बीस बरिस ऊ ट्रेन में घूम-घूमके कटहर बेचत रहस.

Lakshmi engaged in business at a jackfruit mandi in Panruti. She is the only woman trading the fruit in this town in Tamil Nadu's Cuddalore district
PHOTO • M. Palani Kumar

लक्ष्मी पनरुती के एगो कटहर मंडी में खरीद-बिक्री के काम करेली. तमिलनाडु के कडलूर जिला के एह कस्बा में ऊ एकर ब्यापार करे वाला अकेला मेहरारू बाड़ी

बारह बरिस के रहस, त कटहर उनकर जिनगी में आइल. तब छोट लक्ष्मी साड़ी पहिनले, आउर कुछ पाला पड़म (तमिल में कटहर के इहे पुकारल जाला) लेले करी वंडी (पैसेंजर ट्रेन) में घूम-घूम के बेचस. ओह घरिया ट्रेन में भाप वाला इंजन रहत रहे. आज 65 बरिस के लक्ष्मी आपन बनावल मकान में रहेली. उनकर मकान में सामने लक्ष्मी विलास लिखल बा.

ई उहे मकान बा, जेकरा लक्ष्मी संसार के सबले बड़ मानल जाए वाला फल- कटहर के ब्योपार से खड़ा कइली.

*****

कटहर के सीजन जनवरी, चाहे फरवरी में सुरु हो जाला. खास बात त ई बा कि एकर सीजन पूरा छव महीना चलेला. सन् 2021 में उत्तर-पूर्वी मानसून आइल, त बेमौसम धुआंधार बरखा होखे से कटहर के फूल आ फल आठ हफ्ता देरी से आइल. पनरुती के मंडी तक कटहर आवत-आवत अप्रिल सुरु हो गइल. नतीजा ई भइल कि अगस्त ले एकर सीजन खतम हो गइल.

आम बोलचाल में ‘जैक’ कहल जाए वाला ई फल मूल रूप से दक्खिनी भारत के पस्चिमी घाट के उपज बा. एकर नाम मलयाली शब्द चक्का से उपजल मानल जाला. कटहर के वैज्ञानिक नाम बहुते कठिन आउर टेढ़ बा- आर्टोकार्पस हेटरोफिलस.

पारी टीम पहिल बेर एह किसान आउर ब्यापारी लोग से भेंट करे अप्रिल 2022 में गइल रहे. चालीस बरिस के किसान आउर कमीशन एजेंट आर. विजयकुमार आपन दोकान में हमनी के स्वागत कइलन.  माटी के भूइंया, गारा के देवाल आउर फूस के छत वाला ई एगो आम दोकान रहे. एकरा खातिर सलाना 50,000 रुपइया किराया लागेला. ग्राहक लोग के बइठे खातिर उहंवा एगो बेंच आउर कुछ कुरसी रखल बा.

कुछ दिन पहिले भइल कवनो आयोजन के पुरान झंडा अबहियो उहंवा पड़ल रहे. देवाल पर लक्ष्मी के बाऊजी के माला डालल फोटो बा. एगो टेबुल बा आउर जगहे-जगहे कटहर के ढेर लागल बा. दोकान के दरवाजा लगे लागल 100 ठो कटहर के ढेर कवनो हरियर-हरियर पहाड़ी जेका लउकत बा.

विजय कुमार बतावत बाड़न, “एकर दाम 25,000 रुपइया बा.” सबले आखिर में जवन दू ठो ढेर बा, ऊ बिक चुकल बा. ओह में कुल 60 ठो कटहर बा. ई सभ चेन्नई के अड्यार जाई आउर मोटा-मोटी 18,000 रुपइया के होई.

R. Vijaykumar, a farmer and commission agent, in his shop in Panruti, where heaps of jackfruit await buyers
PHOTO • M. Palani Kumar

पनरुती के आपन दोकान में किसान आ कमीशन एजेंट आर. विजय कुमार. कटहर के ढेर आपन खरीददार के आवे के रस्ता ताक रहल बा

कटहर सभ के इहंवा से 185 किमी दूर, अखबार ढोवे वाला गाड़ी में चेन्नई ले जावल जाई. विजय कुमार कहेलन, “जदि माल उत्तर ओरी आउर आगू भेजे के होखेला, त हमनी टाटा एस ट्रक से भेजिला. हमनी के पूरा-पूरा दिन काम करे के पड़ेला. मिहनत करे के पड़ेला. कटहर के सीजन में हमनी इहंवा 3 से 4 बजे भोर में पहुंचिला आउर रात के 10 बजे से पहिले फुरसत ना होखेला. कटहर के मांग हरमेसा बनल रहेला. घरे-घरे एकरा लोग चाव से खाला. इहंवा ले कि डायबिटीज के रोगी भी एकर चार ठो सोलई (कोवा/फली) खा सकत बा. खाली हमनिए,” ऊ हंसत कहलन, “एकरा खात-खात पक गइल बानी.”

विजय कुमार से पता चलल पनरुती में कटहर के कुल 22 ठो थोक ब्यापारी लोग बा. उनकर दोकान उनकर बाऊजी कोई 25 बरिस पहिले सुरु कइले रहस. बाऊजी के परलोक सिधरला के बाद पछिला 15 बरिस से ऊ एकरा चला रहल बाड़न. एक दोकान में रोज कोई 10 टन कटहर बिकाला. ऊ बतइलन, “सउंसे तमिलनाडु में पनरुती कटहर उगावे में सबले आगू बा.” लगहीं बेंच पर बइठल दोसर ब्यापारी लोग उनकर बात से सहमत होके आपन-आपन मुंडी हिलावे लागल. धीरे-धीरे बातचीत में उहो लोग शामिल हो गइल.

कटहर ब्योपार करे वाला मरद लोग वेस्टी, चाहे लुंगी आउर बुश्शर्ट पहिनले रहे. एके धंधा में होखे चलते सभे कोई एक-दोसरा के जानत रहे. ऊ लोग ऊंच आवाज में बतियावत रहे. बीच-बीच में मोबाइल के रिंगटोन जोर से सुनाई देवे. बाकिर सबले जादे आवाज बीच-बीच में लगे के रस्ता से जा रहल लॉरी सभ से आवत रहे.

के. पट्टुस्वामी (47 बरिस) कटहर उगावे के आपन अनुभव बतावे लगलन. ऊ पनरुती तालुका कटंटंदिकुप्पम गांव के रहे वाला बाड़न आउर उनका लगे कटहर के 50 ठो गाछ बा. इहे ना उनका लगे पट्टा पर लेवल 600 आउरो गाछ सभ बा. पट्टा के भाव 1.25 लाख प्रति सैंकड़ा गाछ बा. ऊ बतइलन, “हम एह धंधा में 25 बरिस से बानी. बाकिर सांच कहीं त एकरा में बहुते जोखिम बा.”

पट्टुस्वामी के हिसाब से, जदि पैदावार नीमन भइल तबो, “दस ठो कटहर त सड़िए जाला, आउर ओतने फाट जाला, दस ठो भुइंया पर गिर जाला आउर दस ठो के जनावर सभ चट कर जाला.”

कटहर जदि जादे पाक गइल, त ऊ ना बिकाए. एहि से एकरा जनावर के खिया देवल जाला. एह तरहा, औसतन 5 से 10 फीसदी कटहर त जियाने हो जाला. दोकान सभ पर नजर डालीं, त एक दोकान के औसतन आधा से एक टन माल हर सीजन में खराब हो जाला. खराब हो चुकल कटहर खाली मवेशी सभ के खाए के काम आवेला.

Buying, selling, fetching and carrying of jackfruits at a mandi in Panruti
PHOTO • M. Palani Kumar

पनरुती के एगो मंडी में कटहर कीनात, बेचात, लावल आ ले जावल जात बा

मवेसी सभ जेका गाछो एक तरह के निवेश बा. गांव-देहात में ई एगो पूंजी जेका बा, एगो मूल्यवान धरोधर. एकरा मुनाफा खातिर, चाहे जरूरत पड़ला पर बेचल जा सकेला. विजय कुमार आउर उनकर संगे के दोसर व्यापारी लोग बतावेला जब कटहर के गाछ के धड़ 8 हाथ चौड़ा आउर 7-9 फीट लमहर हो जाला, त “ओकर लकड़ी 50,000 रुपइया में बिकाए लायक हो जाला.”

किसान लोग आपन गाछ ना काटे के चाहे. पट्टुस्वामी कहेलन, “बलुक हमनी के कोसिस रहेला जादे से जादे गाछ होखे. बाकिर अचके बेमारी आवे, चाहे परिवार में बियाह-सादी आवे घरिया नकदी के जरूरत पड़ेला. तब मजबूरी में कुछ बड़ गाछ सभ के लकड़ी बेचे पड़ेला.” एकरा से दू-तीन लाख रुपइया त आइए जाला. बेमारी के संकट से निपटे, चाहे कल्याणम (बियाह-सादी) जइसन मंगल काम खातिर एतना पइसा पर्याप्त होखेला.

“इहंवा आईं,” पट्टुस्वामी हमरा के लेके दोकान के पाछू जमीन ओरी बढ़ गइलन. इहंवा कबो कटहर के सैंकड़न बड़-बड़ गाछ लागल रहत रहे, ऊ हमनी के बतावत जात बाड़न. अब उहंवा खाली पाला कन्नू मतलब छोट गाछ देखाई पड़ रहल बा. जेतना बड़ गाछ रहे, ओकरा जमीन के मालिक जरूरत पड़ला पर बेच देलन. अइसे त, बाद में ऊ बहुते नया गाछो लगइलन. छोट आउर नरम गाछ सभ देखावत पट्टुस्वामी बतावत बाड़न, “ई गाछ अबही सिरिफ दू बरिस के भइल बा. एह में जे कटहर आई ऊ आपन पेड़ से उमिर में तनिए छोट होई.”

हर बरिस मौसम के पहिल फसल जनावर सभ खा जाला. “बानर एकरा आपन तेज दांत से फाड़ के एकर पाकल फल खा जाला. गिलहरी सभ के भी एकरा में बहुते स्वाद मिलेला.”

पट्टुस्वामी के हिसाब से पट्टा पर गाछ लेवल जादे फायदा वाला सौदा बा. “गाछ के असली मालिक के हर साल बंधल-बंधावल रकम मिल जाला. ओह लोग के एको कटहर अपने से काटे ना पड़े. सभ कटहर एक संगे आउर समय पर हाट पहुंच जाला. दोसरा ओरी हमरा जइसन बड़ तादाद में पेड़ के देखभाल करे वाला कवनो बड़ पट्टादार एक्के बार में 100, चाहे 200 कटहर काटके मंडी ले जा सकेला.” गाछ जादे होखे, हवा-पानी बदले, आउर नीमन पैदावार होखे पर पट्टादार के भारी मुनाफा होखेला.

बाकिर अफसोस एतना बात अपना पक्ष में रहला आउर जनला के बादो दाम तय करे में किसान के कवनो भूमिका ना होखे. जदि दाम ओह लोग के मरजी से तय होई, त ओह में तीन गुना इजाफा से बचल जा सकेला. जइसे सन् 2022 ले लीहीं. एक टन कटहर के दाम 10,000 से 30,000 के बीच में रखल गइल रहे.

Vijaykumar (extreme left ) at his shop with farmers who have come to sell their jackfruits
PHOTO • M. Palani Kumar

कटहर बेचे आइल किसानन संगे आपन दोकान पर विजय कुमार (सबले बावां)

“दाम जब चढ़े लागेला, त भ्रम होखेला कि बजार में बहुते जादे पइसा बा,” विजय कुमार आपन टेबुल के दराज ओरी इसारा करत कहलन. बेचे आ कीने वाला दुनो ब्यापारी लोग के अलग-अलग 5 फीसदी कमीशन मिलेला. ऊ कान्हा उचकावत दराज थपथपावे लागत बाड़न. “बाकिर दुनो में से केहू बेइमानी कइलक, त रउआ भारी झटका लाग सकेला. रउआ ई नुकसान आपन जेबी से भरे के पड़ी. किसान लोग के प्रति हमनी के नैतिक जिम्मेवारी बा. अइसन होखे के चाहीं कि ना?”

अप्रिल 2022 के सुरु में कटहर किसान आउर ब्यापारी लोग मिल के एगो संगम (समिति) बनइलक. विजयु कमार ओकर सचिव बानी. ऊ बतावत बानी, “एकरा बनल अबही मात्र दसे दिन भइल बा. एकर रजिस्ट्रेशनो नइखे भइल.” एह समिति से उनका बहुते उम्मीद बा. “हमनी अपने दाम तय करे के चाहत बानी. कलक्टर से भेंट करके उनका से किसान आउर एह काम में मदद करे के भी निहोरा करेम. हमनी कटहर उगावे वाला खातिर कुछ सुविधा आउर भत्ता भी चाहत बानी. खास करके कटहर के खराब होखे से बचावे खातिर हम ब्यापारी लोग के बड़ संख्या में कोल्ड स्टोरेज (शीतगृह) के जरूरत बा. बाकिर एह सभ मांग मनवावे खातिर पहिले एकजुट होखे के पड़ी. रउआ अपने बताईं, पड़ी कि ना?”

अबही त ऊ लोग कटहर पांच दिन से जादे ना रख सके. उम्मीद से भरल लक्ष्मी कहेली, “हमनी के एकरो से जादे दिन ले कटहर बचा के रखे के जरूरत बा.” उनका हिसाब से छव महीना ले फल के बचा के रखे वाला ब्यवस्था पर्याप्त होखी. विजय कुमार कमो ना, त आधा अर्थात तीन महीना के समय त चाहते बाड़न. अबही त ब्यापारी लोग के बचल कटहर फेंक देवे पड़ेला, चाहे खुदरा बिक्रेता के मंगनी में दे देवे पड़ेला. ऊ लोग सड़क किनारे रेहड़ी, ठेला लगाके कटहर काट-काट के बेचे के भी कोसिस करेला.

*****

“कटहर खातिर कोल्ड स्टोरेज के विचार त अबही ख्याली पुलाव बा. आलू, चाहे सेब के लंबा बखत ले बचा कर रखल जा सकेला. बाकिर कटहर पर अबही एकरा आजमावल जाए के बाकी बा. सीजन बीतला के बाद दू महीना ले बजार में कटहर के चिप्स मिलेला,” श्री पाद्रे कहत बाड़न. पाद्रे पत्रकार आउर कन्नड़ के अनूठा कृषि-पत्रिका आदिके पत्रिके (सुपारी पत्रिका) के संपादक बानी.

ऊ कहत बाड़न, “एकरा से बहुते फरक पड़ी. तनी कल्पना करीं कि कटहर के कोई दरजन भर सामान सालों भर बजार में मिले लागे, त एह धंधा से जुड़ल लोग के केतना भला होखी!”

Lakshmi (on the chair) with a few women jackfruit sellers at a mandi ; she has been a jackfruit trader since 30 years
PHOTO • M. Palani Kumar

लक्ष्मी (कुरसी पर बइठल) एगो मंडी में मेहरारू कटहर बिक्रेता लोग संगे; 30 बरिस से ऊ कटहर के बिजनेस कर रहल बाड़ी

पारी संगे टेलीफोन पर भइल बतकही में पाद्रे कहटरव के पैदावार से जुड़ल बहुते जरूर आउर खास बिंदु पर बिस्तार से आपन बात रखलन. सबले पहिले ऊ कटहर के उपज से जुड़ल आंकड़ा ना होखे के बात उठवलन. ऊ कहले, “कटहर के गिनती बतावल मुस्किल बा. मोटा-मोटी जे जानकारी उपलब्ध बा, ऊ दुविधा से भरल होखेला. कोई 10 बरिस पहिले एकरा उगावे के बारे में केहू ना सोचत रहे. उगतो रहे त एक जगह ना, बिखरल रूप में रहे. एह मामला में पनरुती अपवाद बा, बहुत नीमन अपवाद.”

पाद्रे बतइलन भारत कटहर उगावे में दुनिया में नंबर वन बा. “कटहर के गाछ हर जगह मिल जाला, बाकिर दुनिया के वैल्यू एडिशन मैप (मूल्य संवर्धन नक्शा) में हमनी के कवनो जगह नइखे.” देस के भीतरी केरल, कर्नाटक आउर महाराष्ट्र जइसन कुछ राज्य एह क्षेत्र में तनी-मनी योगदान देवे के स्थिति में बा, जबकि तमिलनाडु में त ई अबही जनमतुआ स्थिति में बा.

पाद्रे के एकरा बहुते दुर्भाग्यपूर्ण मानेलन, काहे कि ई बहुते उपयोगी फल बा. “कटहर के बारे में जेतना रिसर्च होखे के चाहीं, अफसोस ओतना ना भइल. कहटल के एगो बड़ गाछ में एक से लेके तीन टन तक कटहर फर सकत बा.” इहे ना, हर गाछ में अइसन पांच तत्व जरूर पाइल जाला जेकरा संभावित कच्चा माल जेका इस्तेमाल में लावल जा सके. सबले पहिले एकदम नन्हा-नन्हा कटहर होखेला, ओकरा बाद ओकरा से बड़, जेकर तरकारी बनावल जाला. एकरा बाद पाकल कटहर, जेकरा कोवा बहुते चाव से लोग खाला. आउर आखिर में एकर बिया.

कटहर खातिर काम करे वाला के रूप में पाद्रे एह कमी सभ के दूर करे के भरसक जतन करेलन. “हम लेख लिखिला, जानकारी जुटाइला. पछिला 15 बरिस से लोग के कटहर के प्रति जागरुक करे के काम करत बानी. हमनी के पत्रिका आदिके पत्रिके 34 बरिस से छप रहल बा. कटहर पर हमनी अबले 34 से भी जादे ‘कवर स्टोरी’ छाप चुकल बानी!”

With their distinctive shape, smell and structure, jackfruits are a sight to behold but not very easy to fetch, carry and transport
PHOTO • M. Palani Kumar

आपन खास बनावट आउर महक चलते कटहर सबके आंख के तारा त बा, बाकिर एकरा ढोवल आसान काम नइखे

Jackfruit trading involves uncertainties. Even if the harvest is big, some fruits will rot, crack open, fall down and even get eaten by  animals
PHOTO • M. Palani Kumar

कटहर ब्यापारी लोग असमंजस में बा. जादे उपज होखला पर अइसन होखेला, काहेकि केतना कटहर सड़ जाला, त कुछ फाट जाला, कुछ गिर जाला, आउर कुछ के जनावर चट कर जाला

पाद्रे कटहर के खासियत गिनावत बाड़न. ई लिस्ट लमहर बा. एह में भारत में बने वाला लजीज जैकफ्रूट आइसक्रीमो शामिल बा. बाकिर एकर खासियत बतावे घरिया ऊ एकर संकट के बारे में नइखन छिपावत. “एह मामला में सफलता तबे मिली जब कोल्ड स्टोरेज के बंदोबस्त कइल जाई. हमनी के पहिल प्राथमिकता पाकल कटहर के फ्रोजेन (बरफ में जमावे) करके सुरक्षित रखे के बा, ताकि ऊ सालो भर बजार में मिलो. अइसे त ई काम रॉकेट विज्ञान जेका तेज गति से होखल संभव नइखे. बाकिर हमनी अबले एह दिसा में एगो छोट कदम भी नइखी उठवले.”

एह फल संगे एगो खास दिक्कतो बा. बाहिर से देख के रउआ एकर स्वाद के अंदाजा ना लगा सकीं. पनरुती जइसन जगह के छोड़ दीहीं, जहंवा कटहर उगावे पर बहुते ध्यान देवल जाला आउर जहंवा एकरा बेचे के ठीक-ठाक ब्यवस्था बा, दोसरा जगह पर एह फल खातिर कवनो संगठित बजार नइखे. कटहर सभ के बड़ पैमाना पर हो रहल बरबादी के पाछू इहे कारण बा.

जियान होखे वाला कटहर खातिर हमनी का करिला, पाद्रे सवाल करेलन. “का ई खाए लाइक नइखे? हमनी खाली चाउरे आ गेहूं के काहे एतना महत्व दीहिला?”

विजय कुमार कहेलन कि एह ब्यापार के उन्नित खातिर जरूरी बा कि पनरुती के कटहर सभे जगह भेजल जाव- हर सूबा, आउर हर देस. उनकर इहो कहनाम बा, “एकर ब्यापार दूर-दूर ले फइले के चाहीं, तबे  कटहर के नीमन दाम मिली.”

चेन्नई में कोयंबेडु के थोक बजार के अहाता में अन्ना फ्रूट मार्केट के ब्यापारी लोग के भी इहे मांग बा: कोल्ड स्टोरेज आउर खुला में भंडारण के बेहतर सुविधा. इहंवा ब्यापारी लोग के अगुआई करे वाला सी. आर. कुमारावेल कहेलन कीमत में भारी उतार-चढ़ाव होखेला, कबो 100, त कबो 400 रुपइया में बिकाला.

“कोयंबेडु में कटहर के नीलामी हमहीं करिला. जब कटहर के पैदावार नीमन होखेला, त स्वाभाविक बा एकर दाम घट जाई. अइसन में कटहर बहुते जियान होखेला- कुल फसल के कोई 5 से 10 प्रतिशत ले. जदि हमनी फल बचा के रखीं आउर ओकरा बेच दीहीं, त किसानो के नीमन दाम मिली आउर फायदा होखी.” कुमारावेल हिसाब लगइलन कि फल बाजार के 10 दोकान में रोज कोई 50,000 रुपइया के औसत दर से कटहर बिकाला. “बाकिर बजार में एतना नीमन स्थिति खाली कटहर के सीजने में होखेला. माने साल के कोई पांच महीना ले.”

Jackfruits from Panruti are sent all over Tamil Nadu, and some go all the way to Mumbai
PHOTO • M. Palani Kumar

पनरुती से कटहर सउंसे तमिलनाडु में भेजल जाला, आउर कुछ त मुंबइयो जाला

Absence of farmer-friendly supply chains and proper cold storage facilities lead to plenty of wastage
PHOTO • M. Palani Kumar

किसान के फायदा पहुंचावे वाला आपूर्ति शृंखला आउर कोल्ड स्टोरेज के सुविधा ना होखे से बहुते कटहर जियान हो जाला

तमिलनाडु के कृषि आउर कृषक कल्याण विभाग के साल 2022-23 के पॉलिसी नोट में कटहर उगावे वाला किसान आउर ब्यापारी लोग के हित के रक्षा खातिर कुछ संकल्प लेवल गइल. पॉलिसी नोट में साफ बतावल गइल बा, “कटहर उगावे आउर ओकरा प्रोसेस करे के क्षेत्र में मौजूद व्यापक अवसर के उपयोग करे खातिर राज्य सरकार कडलूर जिला के पनरुती ब्लॉक के पनिकंकुप्पम गांव में पांच करोड़ रुपइया के लागत से कटहर खातिर एगो खास केंद्र लगाई.”

नोट में एकरो जिकिर बा कि पनरुती के कटहर के भौगोलिक संकेत (जीआई टैग) देवे के दिसा में फैसला लेवे के योजना बनावल जा रहल बा. एकरा से “दुनिया के बाजार में एकर गुणवत्ता आ दाम तय करे में सुविधा होखी.”

लक्ष्मी त अलबत्ता हैरान बाड़ी कि “जादे करके लोग के इहे नइखे पता पनरुती बा कहंवा.” ऊ बतावत बाड़ी कि साल 2002 में तमिल फिलिम सोल्ल मरंधा कढ़ाई (एगो भुलाइल कहानी) चलते ई शहर के नाम भइल. ऊ तनी गर्व से कहेली, “फिल्म निर्देशक थंगर बचन इहे इलाका से बाड़न. एह फिलिम में रउआ लोगनी हमरो देख सिकला. जब शूटिंग भइल, त प्रचंड गरमी पड़त रहे, बाकिर हमरा त खूब मजा आइल.”

*****

कटहर के मौसम में लक्ष्मी के खूब पूछ रहेला. कटहर प्रेमी लगे उनकर फोन नंबर स्पीड डायल में डालल रहेला. उनका मालूम बा कि लक्ष्मी से ओह लोग के नीमन कटहर मिली.

आउर लक्ष्मी अइसन करबो करेली. ऊ ना सिरिफ पनरुती के बीस से भी जादे मंडी से सीधा जुड़ल बाड़ी, बलुक केतना किसान लोग के भी जानेली जे लोग उहंवा आपन कटहर बेचे आवेला. ऊ इहो जानेली कि केकर फसल कब तइयार होखी.

एतना सभ ऊ अकेले कइसे करेली? लक्ष्मी एह सवाल के कवनो जवाब ना देली. साफ बा ऊ एह धंधा में मोटा-मोटी एक दसक से बाड़ी, ई सभ जानल उनकर काम बा, आउर ऊ जानकारी रखेली.

एह तरह के मरदाना धंधा में ऊ कइसे आ गइली? अबकी ऊ जवाब देली. “रउआ जइसन लोग हमरा कटहर लाके देवे के कहेला. आउर हम नीमन भाव में ले के आइला.” ऊ सही ब्यापारी खोजे में किसान लोग के मददो करेली. उनका देखियो के एह बात के अंदाजा आसानी से लगावल जा सकेला कि ब्यापारी आ किसान दुनो उनकर फैसला के केतना मान देवेला. दुनो लोग खातिर लक्ष्मी खाली आदरे के पात्र नइखी, बलुक ऊ लोग पीठ पाछू भी लक्ष्मी के बड़ाई करे में ना हिचके.

Lakshmi sets the price for thousands of kilos of jackfruit every year. She is one of the very few senior women traders in any agribusiness
PHOTO • M. Palani Kumar

लक्ष्मी हर साल हजार-हजार किलो कटहर के भाव तय करेली. एह तरह के बिजनेस में लागल मुट्ठी भर अनुभवी मेहरारू लोग में से ऊ बाड़ी

ऊ जहंवा रहेली, ओह मोहल्ला के कोई भी बता दीही कि उनकर मकान कवन बा. ऊ कहेली, “बाकिर हमार त कटहर के छोट-मोट बिजनेस (सिल्लरई) बा. हमार त बस इहे कोसिस रहेला किसान आउर ब्यापारी लोग के सही दाम दिला सकीं.”

मंडी में कटहर के नयका खेप आवेला, त लक्ष्मी दाम तय करे के पहिले एकर क्वालिटी देखेली. एह खातिर उनका बस चाकू चाहीं. कटहर में दू-चार बेरा चाकू घोंपला के बाद ऊ बता सकेली कटहर पाकल बा, कि खिच्चा (काच) बा, कि अगिला दिन खाए खातिर तइयार बा. जब एह तरीका से पता करे में ना बने, त ऊ दोसर जुगत लगावेली. कटहर के एक जगह से चीरा लगाके एगो फली निकाल लेवेली. कटहर जांचे के ई तरीका काफी ठोस होखेला, बाकिर अइसन तरीका बहुत कम इस्तेमाल कइल जाला, काहेकि अइसन करे से कटहर में छेद हो जाला.

“पछिला बरिस, एहि साइज के पाला जेकर दाम 120 रुपइया रहे, अबकी 250 में बिकात बा. दाम बढ़ गइल काहेकि पानी बरसे से कटहर के नुकसान भइल.” उनकर अनुमान बा, दुइए महीना (जून) में मंडी में हर दोकान पर 15 टन कटहर आ जाई. आउर फेरु एकर दाम तुरंते गिर जाई.

लक्ष्मी के कहनाम बा एह बिजनेस में अइला के बाद, कटहर के धंधा बढ़ गइल बा. अब जादे गाछ बा, जादे कटहर बा आउर बजार भी जादे बा. एकरा बावजूद किसान लोग आपन माल एगो खास कमीशन एजेंट लगे लेके जाला. ईमानदारी त बड़ले बा, बाकिर खास कमीशन एजेंट ब्यापारी लोग के जे करजा दिलावे में मदद करेला, उहो बड़ कारण बा. लक्ष्मी बतावेली, ब्यापारी लोग आपन सलाना माल के एवज में 10,000 से 1 लाख रुपइया ले करजा उठा सकत बा. एह करजा के ‘वसूली’ माल के होखे वाला बिक्री से कइल जाला.

उनकर लइका रघुनाथ त दोसरे कारण बतावत बाड़न. “जेकरा लगे पला मरम (कटहर के गाछ) के बड़ बगइचा बा, ऊ लोग सिरिफ कटहले ना बेचे, कटहर के दोसर चीज बेच के भी कमाई बढ़ावेला.” ऊ लोग कटहर के चिप्स आउर जैम भी बनाके बेचेला. एकरा अलावे, खिच्चा कटहर के पका के मीट जेका खाइल जाला.

रघुनाथ बतावेलन, “खिच्चा कटहर के सुखा के पाउडर बनावे वाला बहुते करखाना सभ बा.” एह पाउडर के खउला के दलिया, चाहे खिचड़ी बना के खाइल जाला. फल के बनिस्पत एह तरह के खाद्य उत्पाद अभी जादे लोकप्रिय ना हो पाइल बा. बाकिर करखाना मालिक लोग मानेला समय के साथे एकरो लोग पसंद करी.

Lakshmi is in great demand during the season because people know she sources the best fruit
PHOTO • M. Palani Kumar

कटहर के सीजन में लक्ष्मी के बहुते पूछ रहेला. काहेकि लोग जानेला ऊ खूब नीमन-नीमन कटहर चुनके बतावेली

लक्ष्मी कटहर के बिजनेस के आपन कमाई से आपन मकान बनइली.

“हम एह मकान के कोई 20 बरिस पहिले बनइले रहीं,” लक्ष्मी अंगुरी से घर के भूइंया टोअत कहली. बाकिर दुर्भाग्य, मकान पूरा तइयार होखे के पहिलहीं उनकर घरवाला परलोक सिधार गइलन. बियाह के पहिले घरवाला से ट्रेन में कटहर बेचे घरिया भेंट भइल रहे. लक्ष्मी तब कडलूर से पनरुती लउटत रहस. उहंवा के प्लेटफार्म पर उनकर स्वर्गवासी घरवाला के एगो चाय के दोकानो रहे.

दुनो प्राणी के प्रेम बियाह भइल रहे. ओह लोग के बीच के प्रेम फोटो से झलकत बा. फोटो पनरुती के एगो पेंटर बनइले बाड़न. घरवाला संगे आपन फोटो बनावे खातिर पेंटर 7,000 रुपइया लेलक. साथे के दुनो फोटो में से एगो खातिर ऊ 6,000 देली. ऊ हमरा अइसन कइएक कहानी सुनइली. उनकर आवाज तनी फाटल बा, बाकिर भरपूर उत्साह से भरल. हमरा सबले नीमन उनकर कुकुर वाला कहानी लागल: “केतना वफादार, केतना होशियार! हमनी के ओकर बहुते इयाद आवेला.”

दुपहरिया के 2 बाजे वाला बा, बाकिर लक्ष्मी अबले खाना नइखी खइले. खा लेहम, जल्दिए खा लेहम, कहत कहत ऊ बतियावत चल जात बाड़ी. सीजन में उनका लगे घर के काम करे खातिर तनिको समय ना होखे. उनकर पतोहे, कयाल्विडी घर के सभे काम-काज संभारेली.

सास-पतोह दुनो लोग हमरा बतइलक कि ऊ लोग कटहर के कथी-कथी बनावेला. “एकर बिया से हमनी एक तरह के उपमा बनाइला, काच कटहर के फली हरदी में उबाल के, पीस के गाढ़ घोल बनावल जाला. फेरु उलुतम परुप्पू (करियर बूंट) संगे पका के पिसल नरियर संगे खाइल जाला. जदि कहटल के फली फूल जइसन हो गइल बा, त ओकरा गरम तेल में पका के मरिचाई के पाउडर संगे खाइल जाला.” कटहर के बिया सांभर में मिलावल जाला. आउर एकर काच फली के बिरयानी भी बनेला. पला (कटहर) से बने वाला व्यंजन सभ के लक्ष्मी “अरुमई” माने आउर स्वादिष्ट कहेली.

लक्ष्मी के खाना-पिए के कवनो खास शौक नइखे. ऊ चाय पिएली, आउर जे चीज आराम से मिल जाला, खा-पी के आपन दिन काट लेवेली. उनका “बीपी आ शुगर” (ब्लड प्रेशर आउर डायबिटीज) बा. “हमरा टाइम पर खाए के पड़ेला, ना त माथा घूमे लागेला.” ओह दिन भोर में भी उनका चक्कर जइसन लागत रहे. सायद एहि से ऊ विजय कुमार के दोकान से अचके निकल गइली. अइसे, त उनकर काम देर रात ले चलेला. उनका बहुत-बहुत देर ले काम करे के पड़ेला. एह सब के बावजूद लक्ष्मी के आपन तबियत के जादे ध्यान ना रखेली. “चिंता के कवनो बात नइखे.”

Lakshmi standing in Lakshmi Vilas, the house she built by selling and trading jackfruits. On the wall is the painting of her and her husband that she had commissioned
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In a rare moment during the high season, Lakshmi sits on her sofa to rest after a long day at the mandi
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बावां: कटहर के बिजनेस से होखे वाला कमाई से बनावल लक्ष्मी विलास में ठाड़ लक्ष्मी. देवाल पर टांगल घरवाला संगे उनकर पेंटिंग, जेकरा ऊ बनवइले रहस. दहिना: कटहर के सीजन में, एक दिन मंडी में बहुते देर काम कइला के बाद लक्ष्मी आराम से सोफा पर बइठल बाड़ी. अइसन मौका बहुते कम मिलेला

कोई तीस बरिस पहिले, लक्ष्मी जब ट्रेन में फेरी लगावत रहस. ओह घरिया एगो कटहर के दाम 10 रुपइया पड़त रहे. अबही कटहर के जे दाम बा, ऊ तब से 20 से 30 गुना बढ़ गइल बा. लक्ष्मी के इयाद बा कि ट्रेन के डिब्बा तब बक्सा जइसन होखत रहे. बीच से निकले के कवनो रस्ता ना रहत रहे. फेरी लगावे वाला के बीच जइसे कवनो समझौता होखत रहे. एक बेरा में एके फेरी वाली डिब्बा में घुसे. ओकरा उतरले पर कवनो दोसर फेरी वाला घुसत रहे. “ओह जमाना में टिकट चेक करे वाला भाड़ा, चाहे टिकट खातिर चिकचिक ना करत रहे. एहि से हमनियो कहूं बेफिकिर घूमत रहीं. बाकिर,” हमरा से बतियावते-बतियावते अचानक उनकर आवाज मद्धिम हो गइल, “...हमनी ओह लोग के घूस, चाहे तोहफा के तौर पर कुछ कटहर दे देत रहीं...”

ऊ सभ बहुते सुस्त चले वाला पैसेंजर ट्रेन रहत रहे. आउर हर छोट-मोट स्टेसन पर रुकत रहे. पैसेंजर लोग कटहर खरीदत रहे. अइसे, एकरा से लक्ष्मी के कमाई जादे ना होखत रहे. उनका अब त ठीक से इयाद नइखे कि ओह घरिया एक दिन में ऊ केतना कमा लेत रहस. बाकिर ऊ कहेली, “ओह जमाना में 100 रुपइया बड़ रकम मानल जात रहे.”

“हम कबो स्कूल नइखी गइल. बहुते छोट रहीं त माई बाऊजी लोग परलोक सिधार गइल.” रोजी-रोटी खातिर ऊ बहुते ट्रेन लाइन में यात्रा कइली: चिदंबरम, कडलूर, चेंगलपट्टू, विल्लुपुरम. ऊ घूम-घूम के फल बेचस. “भूख लागे, त हम स्टेशन के कैंटीन से टैमरिंड राइस (हरदी वाला भात), चाहे कर्ड राइस (दही वाला भात) कीन के खाईं. जरूरत पड़ला पर हम सामान रखे वाला जगह पर कटहर रख के रेलगाड़ी में बनल शौचालय में चल जाईं. बहुते कठिन दिन सब रहे. बाकिर हमरा लगे आउर का उपाय रहे?”

अब त उनका लगे सुविधा के कमी नइखे. कटहर के सीजन खतम हो जाला त ऊ घरहीं रहेली आउर आराम करेली. ऊ कहेली, “हम चेन्नई चल जाइला आउर उहंवा आपन नात-रिस्तेदार लोग संगे दू-तीन हफ्ता रहिला. बाकी समय इहंवा आपन पोता सर्वेश संगे बिताइली.” पासे खेलत ओह छोट लइका के देखके उनकर चेहरा पर चैन वाला हंसी पसर जात बा.

बचल-खुचल जानकारी हमनी के कयाल्विडी से मिलेला. “ऊ आपन सभे सगा-संबंधी के मदद करेली. इहंवा ले कि गहनो बनवा देवेली. मदद मंगला पर, ऊ कबो मना ना करस...”

लक्ष्मी आपन धंधा में, सुरु में पता ना केतना बार ‘ना’ सुनले होखिहन. बाकिर सामने जे मेहरारू ठाड़ बाड़ी ऊ “सोंद उड़ैप्पु” (मिहनत के बल पर) आपन जिनगी संवार लेली. उनकर कहानी सुनल, पाकल कटहर के मीठ कोवा चीखे जइसन होखेला- अइसन नीमन स्वाद जे रउआ सायदे कहूं मिली. आउर जब रउआ एह कहानी के रस में डूब जाइला, त ई राउर जिनगी के बेहतरीन अनुभव बन जाला.

प्रस्तुत शोध अध्ययन के बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विस्वविद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्राम 2020 के तहत अनुदान मिलल बा.

कवर फोटो: एम. पलानी कुमार

अनुवाद : स्वर्ण कांता

Aparna Karthikeyan

Aparna Karthikeyan is an independent journalist, author and Senior Fellow, PARI. Her non-fiction book 'Nine Rupees an Hour' documents the disappearing livelihoods of Tamil Nadu. She has written five books for children. Aparna lives in Chennai with her family and dogs.

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Photographs : M. Palani Kumar

M. Palani Kumar is Staff Photographer at People's Archive of Rural India. He is interested in documenting the lives of working-class women and marginalised people. Palani has received the Amplify grant in 2021, and Samyak Drishti and Photo South Asia Grant in 2020. He received the first Dayanita Singh-PARI Documentary Photography Award in 2022. Palani was also the cinematographer of ‘Kakoos' (Toilet), a Tamil-language documentary exposing the practice of manual scavenging in Tamil Nadu.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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