28 फरवरी 2023 संझा के 6 बजे. जइसनेच सुग्घर गांव खोलदोड़ा मं सुरुज ह बूड़थे, 35 बछर के रामचंद्र दोड़के अवेइय्या बड़े रात सेती तैय्यारी करे लगथे. वो ह अपन भारी दूरिहा तक ले, भारी ताकत वाले ‘कमांडर’ टार्च के जाँच करथे अऊ अपन सुपेती ला तियार करथे.

ओकर साधारन घर के भीतरी, ओकर घरवाली जयश्री रतिहा मं खाय सेती दार अऊ मेंझरा साग के झोर बनावत हवंय. दूसर फेरका मं ओकर 70 बछर के कका दादाजी डोडके घलो रतिहा के तैय्यारी मं लगे हवंय. ओकर घरवाली, शकुबाई सुगंध वाले भात रांधत हवंय जेन ला अपन खेत मं कमाय रहिन, अऊ रोटी बनावत हवंय.

35 बछर के रामचंद्र कहिथें, “हमन तियार बइठे हवन.जब हमर खाय के बन जाही, हमन चले जाबो.” वो ह कहिथे के जयश्री अऊ शकुबाई हमर बर रतिहा के खाय ला जोर दिहीं.

दादाजी अऊ रामचंद्र, दोड़के  के दू पीढ़ी जेन मन माना समाज (राज मं अनुसूचित जनजाति के रूप मं सूचीबद्ध) ले हवंय. आज मोर पहुनई करत हवंय. एक झिन किसान कीर्तनकार आय, बाबासाहेब अम्बेडकर के भक्त अनुयायी आय; दूसर परिवार के पांच एकड़ के खेत के देखेरेख करते काबर ओकर ददा भीकाजी (दादाजी के बड़े भाई) अब बीमार होय के सेती खेती करे के काबिल नई यें. भिकाजी कभू  गांव के ‘पुलिस पाटिल’ रहिस, एक ठन माई चौकी जेन ह गांव अऊ पुलिस के बीच मं जोरे के काम करथे.

हमन नागपुर जिला के भिवापुर तहसील के गांव ले कुछेक मील दूरिहा रामचन्द्र के खेत मं जाय मं लगे हवन, जऊन ला वो ह जंगली जानवर ले अपन खेत के फसल ला बंचाय सेती जगली धन रतजगा कहिथें. रामचन्द्र के बड़े बेटा 9 बछर के आशुतोष हमर सात झिन के मंडली मं हवय.

Left to right: Dadaji, Jayashree, Ramchandra, his aunt Shashikala and mother Anjanabai outside their home in Kholdoda village
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डेरी ले जउनि : दादाजी, जयश्री, रामचंद्र, ओकर मौसी शशिकला अऊ दाई अंजनाबाई खोलदोड़ा गांव मं अपन घर के बहिर

शहर के लोगन मन के सेती साहस ले भरे काम आय, फेर मोर पहुनई करेइय्या मन के सेती, ये ह करीबन बछर भर के रोज के जिनगी आय. वो मन उन्हारी के फसल मिर्चा, राहेर, गहूँ, अऊ करिया चना लुये के बखत मं हवंय जऊन ला बचाय ला जरूरी आय.

दादाजी के खेत वो कोती हवय, फेर हमन रामचन्द्र के खेत मं रतिहा बिताबो; हमन रतिहा मं उहींचे खाबो, हो सकत हे अलाव के तीर. जड़कल्ला के जाड़ सिरोय ला धरे हवय अऊ आज रात तापमान 14 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहे के अंदेशा हवय. रामचंद्र कहिथे के दिसंबर 2022 अऊ जनवरी 2023 भारी मं भारी जाड़ रहिस, रतिहा मं तापमान 6-7 डिग्री सेल्सियस तक ले हबर गे रहिस.

रतिहा मं फसल ऊपर नजर रखे ला कम से कम परिवार के एक झिन ल खेत मन होय ला चाही. येकरे सेती चौबीसों घंटा बूता करे अऊ रतिहा मं जाड़ खाय सेती गाँव के कतको लोगन मन बीमार पर गें. नई सुते, तनाव अऊ जाड़ ले जर धरथे धन मुड़ पिराथे, रामचन्द्र ह वो मन के दिक्कत ला गिनावत कहिथें.

जइसनेच हमन रेंगे ला धरे रहेन, दादाजी ह अपन घरवाली ला अपन सर्वाइकल बेल्ट मांगथे. वो ह बताथे, “डॉक्टर ह मोला हर घड़ी पहिरे ला कहे हवय.”

मंय ओकर ले पूछेंव, काबर वोला घेंच के सहारा सेती सर्वाइकल बेल्ट के जरूरत हवय?

“येकर बारे मं गोठियाय सेती जम्मो रतिहा हवय, अपन सवाल ला सुरता रखे रहिबे.”

फेर रामचंद्र हंसत कहिथे, “कुछु महिना पहिली ये डोकरा सियान मइनखे अपन खेत के 8 फुट ऊंच मचान ले गिर गे रहिस. वो ह किस्मतवाला आय, नई त आज ये दुनिया मं नई रतिस.”

Dadaji Dodake, 70, wears a cervical support after he fell from the perch of his farm while keeping a night vigil
PHOTO • Jaideep Hardikar

70 बछर के दादाजी डोडाके, रतिहा मं चऊकसी करे बखत मचान ले गिरे के बाद ले घेंच मं बेल्ट लगाथें

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खोलदोड़ा, नागपुर ले करीबन 40 कोस (120 किलोमीटर) दूरिहा, भिवापुर तहसील मं अलेसुर ग्राम पंचइत के हिस्सा आय. येकर सरहद चंद्रपुर जिला के चिमूर तहसील के जंगल आंय. ये ह ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व (टीएटीआर) के उत्तर-पश्चिम कोनहा आय.

महाराष्ट्र के उदती दिग मं, विदर्भ के जंगल इलाका के सैकड़ों गांव जइसने, खोलदोड़ा जंगली जानवर ले हलकान हवय – गांव के लोगन मन ला अपन फसल अऊ मवेसी के नुकसान झेले ला परथे. अधिकतर खेत मं बाड़ा लगे हवय फेर रतिहा जागरन इहाँ के जिनगी बन गे हवय.

दिन मं लोगन मन रोज के खेती के बूता करत अपन फसल के देखरेख करत रहिथें. फेर रतिहा मं, माई फसल के बखत, जंगली जानवर ले अपन खेत के खड़े फसल ला बंचाय सेती हरेक घर अपन खेत मं आ जाथे. ये ह अगस्त ले मार्च तक होथे जब खेती किसानी लगे रहिथे, अऊ दीगर बखत मं घलो चलत रहिथे.

येकर पहिली दिन मं, जब मंय खोलदोड़ा पहुंचेंव, त इहाँ अजीब किसिम के सुन्ना रहिस, कऊनो घलो खेत मं कऊनो नई रहिन, हरेक खेत नायलोन के लुगरा ले घिरे रहिस. संझा के 4 बजे रहिस. अऊ इहाँ तक ले के गांव के गली-खोर घलो सुन्ना परे रहिस, येती-वोती कुछेक कुकुर ला छोड़के.

“मंझनिया 2 बजे ले साढ़े चार बजे तक ले, सब्बो सुत जाथें काबर के हमन ला भरोसा नई रहय के हमन रतिहा मं सुते सकबो धन नई,” दादाजी कहिथें जब मंय ओकर घर पहुंचेंव अऊ पूछ्थों के गाँव मं अतका सुन्ना काबर पसरे हवय.

वो ह मजाक के भाखा मं कहिथे, “वो (किसान) मन सरा दिन खेत के चक्कर लगावत रहिथें. ये ह चौबिसों घंटा के ड्यूटी जइसने आय.”

Monkeys frequent the forest patch that connects Kholdoda village, which is a part of Alesur gram panchayat
PHOTO • Jaideep Hardikar
Monkeys frequent the forest patch that connects Kholdoda village, which is a part of Alesur gram panchayat
PHOTO • Jaideep Hardikar

खोलदोड़ा गांव ले लगे जंगल के ये हिस्सा मं अक्सर बेंदरा आथें , जेन ह अलेसूर ग्राम पंचइत के हिस्सा आय

Left : Villagers in Kholdoda get ready for a vigil at the fall of dusk.
PHOTO • Jaideep Hardikar
Right: A farmer walks to his farm as night falls, ready to stay on guard
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डेरी:  खोलदोड़ा गांव के लोगन मन संझा ढरे सात रखवारी सेती जुट जाथें. जउनि:  किसान रतिहा होते सात अपन खेत डहर निकर परथें, पहरेदारी सेती

जइसनेच संझा ढर जाथे, गांव मं रौनक आ जाथे – माइलोगन मन रांधे मं लाग जाथें, मरद मन रतिहा के पहरेदारी सेती तियार होय ला लगथें. गाय अपन चरवाहा मन के संग जंगल ले घर लहुंट आथे.

सागोन अऊ दीगर रुख मन के घन जंगल ले घिरे खोलदोड़ा, ताडोबा के एक ठन नजारा भर आय, जेन ह करीबन 108 घर के एक ठन गांव आय (जनगणना 2011). इहाँ अधिकतर दू ठन माई समाज, माना आदिवासी अऊ महार दलित ले जुरे छोटे अऊ सीमांत किसान हवंय, दीगर जात के कुछेक परिवार घलो हवंय.

इहाँ 110 हेक्टेयर लमीन मं खेती करे जाथे, ये धनहा माटी अधिकतर अकास भरोसा आय. फसल मं धान, दलहन अऊ कुछेक मं गहूँ, बाजरा अऊ साग-भाजी लगाय जाथें. इहाँ के किसान अपन खेत मं बूता करथें, फेर वनोपज अऊ रोजी मजूरी करके घलो गुजारा करथें. कुछेक जवान लइका मन कमाय खाय सेती दीगर शहर मं चले गे हवंय काबर खेती ले अब वो मन के गुजारा नई होवय. दादाजी के बेटा नागपुर मं पुलिस सिपाही हवय. गांव के कुछेक लोगन मन मजूरी करे भिवापुर जाथें.

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अब जब हमर रतिहा के खाय ह बन गे हवय, हमन गांव के लोगन मन के थाह लेगे गांव के एक चक्कर मार लेन.

हमर तीन झिन माईलोगन मन ले भेंट होईस -शकुंतला गोपीचंद नन्नावारे, शोभा इंद्रपाल पेंदम अऊ परबता तुलसीराम पेंदम, सब्बो के उमर 50 बछर के. वो मन हरबरावत अपन खेत डहर जावत हवंय. संग मं वो मन के एक ठन कुकुर हवय. “हमन डेर्राय हवन, फेर हमन काय करबो?” जब मंय पूछ्थों त शकुंतला कहिथे के घर के बूता, बनिहारी अऊ रतिहा मं जागे घलो कतक मुश्किल आय. रतिहा मं एक-दूसर के तीर मं रहिके एक-दूसर के संग अपन-अपन खेत मं किंदरत रहिबो.

हमन गुणवंत गायकवाड़ ला दादाजी के घर के आगू गाँव के माई रद्दा मं अपन संगवारी मन के संग गोठियावत देखथन. ओकर मन ले एक झिन मजाक करत कहिस, “गर तोर किस्मत होही त तोला बघवा दिखही.” गायकवाड़ कहिथे, “हमन अक्सर बघवा मन ला हमर खेत मन मं आवत-जावत देखत रहिथन.”

Gunwanta Gaikwad (second from right) and other villagers from Kholdoda prepare to leave for their farms for a night vigil
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गुणवंत गायकवाड़ (डेरी ले दूसर) अऊ खोलदोड़ा के दीगर लोगन मन रतिहा मं पहरेदारी सेती अपन खेत डहर जाय के तैयारी करत हवंय

Left: Sushma Ghutke, the woman ‘police patil’ of Kholdoda, with Mahendra, her husband.
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Right: Shakuntala Gopichand Nannaware, Shobha Indrapal Pendam, and Parbata Tulshiram Pendam, all in their 50s, heading for their farms for night vigil (right to left)
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डेरी:  खोलदोड़ा के एक झिन महतारी ' पुलिस पाटिल ' सुषमा घुटके , अपन घरवाला महेंद्र के संग. जउनि : शकुंतला गोपीचंद नन्नावारे , शोभा इंद्रपाल पेंदम, अऊ परबता तुलशीराम पेंदम , सब्बो 50 के उमर के, रतिहा मं पहरेदारी सेती अपन खेत डहर जावत हवंय (जउनि ले डेरी)

गांव के उप सरपंच राजहंस बांकर ले ओकर घर मं हमर भेंट होईस, वो ह खावत हवय येकर बाद वो ह अपन खेत डहर निकर जाही. वो ह दिन भर के बूता ले भारी थक गे हवय. येकर बाद बांकर ला  पंचइत के काम मं घलो लगे ला परही.

येकर बाद, हमन सुषमा घुटके ले भेंट करथन, जऊन ह महतारी ‘पुलिस पाटिल’ आंय, वो ह अपन घरवाला महेंद्र के संग अपन खेत डहर जावत हवंय. वो ह रतिहा मं खाय के, दू ठन कंबल, डंडा अऊ दूरिहा तक ले देखे सके बाले टार्च धरे हवंय. हमन दूसर मन ला घलो अपन खेत डहर, टार्च. डंडा अऊ कंबल धरे जावत देखथन.

“चला आमच्या बरोबर,” सुषमा मुचमुचावत हमन ला वो मन के संग खेत जाय के नेवता देवत कहिथे. वो ह कहिथे, तुमन रतिहा मं बनेच अकन आवाज सुनहू. अवाज सुने ला कम से कम रतिहा के 2.30 बजे तक ले जागे ला परही.”

बरहा, नीलगाय, हिरन, सांभर, मयूर, खरहा- ये  सब्बो रतिहा मं चरे सेती आथें. वो ह कहिथे, “कभू कभू वोला बघवा अऊ बूंदी बघवा घलो देखे ला मिलथे.”  “ये हमर मवेसी फार्म आय,” हंसी-ठिठोली के भाखा मं वो ह कहिथे.

कुछेक घर के दूरिहा मं, 55 बछर के आत्माराम सावले, इहाँ के एक ठन राजनीतिक नेता आंय. ओकर करा पुरखौती के 23 एकड़ खेत हवय, वो घलो पहरेदारी के तैय्यारी करत हवंय. ओकर कहना हवय के अब तक ले ओकर खेत मं बूता करेइय्या मन ला पहिलीच ले होय ला चाही. वो ह कहिथें, “काबर के मोर खेत बड़े हवय, येकर रखवारी करे मुस्किल आय.” ओकर खेत मं कम से कम छे धन सात मचान हवंय, जेकर ले फसल के बड़े अकन हिस्सा मं नजर रखे जा सकत हवय जेन मं गहूँ अऊ चना लगे हवय.

रतिहा के 8.30 बजे तक ले खोलदोड़ा के परिवार रतिहा गुजरे सेती अपन दूसर घर खेत मं चले जाथें.

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रामचंद्र ह अपन खेत मं कतको ठन मचान बनवाय हवंय जिहां ले तंय एक दूसर ला सुने सकत हव फेर देखे नई सकव. इहां तंय एक झपकी ले सकत हस. लकरी ले बने मचान ह सात धन आठ फीट ऊंच होथे, ऊपर पैरा  धन तिरपाल छवाय रहिथे. कुछेल मचान मं दू झिन बइठे सकथे, फेर अधिकतर मं एके झिन के बइठे के रहिथे.

Ramchandra has built several machans (right) all over his farm. Machans are raised platforms made of wood with canopies of dry hay or a tarpaulin sheet
PHOTO • Jaideep Hardikar
Ramchandra has built several machans (right) all over his farm. Machans are raised platforms made of wood with canopies of dry hay or a tarpaulin sheet
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रामचंद्र ह अपन खेत मं कतको ठन मचान (जउनि) बनवाय हवंय. मचान ह लकरी ले बने होथे जेकर ऊपर पैरा धन तिरपाल छवाय रहिथे

असल मं, भिवापुर के ये हिस्सा मं, जेन ह जंगल ले लगे हवय, तुमन अचरज ले भरे ये बसेरा ला देखे सकत हव –जऊन ह रतिहा  गुजारे सेती किसान मन के स्थापत्य कला के नमूना कहे जा सकथे.

वो ह मोला कहिथे, “तंय कऊनो मचान मं बइठ सकथस.” मंय खेत के बिंचोंबीच मं तिरपाल वाले मचान मं जाथों जिहां ये बखत चना लगे हवय अऊ लुये जवेइय्या हवय. मोला संदेहा हवय के खदर-पैरा छवाय मचान मं कुतरेइय्या जीव हलकान कर सकत हवंय. जब मंय चढ़थों त मचान डोले ला लगथे. रतिहा के 9.30 बजे हवय. हमन ला खाय ला हवय. हमन सीमेंट के खलिहान मं अलाव के तीर मं बइठथन, जाड़ बढ़त जावत हवय. इहाँ बीट अंधियार हवय फेर अकास साफ हवय.

दादाजी खावत गोठियाय ला सुरु करथें:

“चार महिना पहिली,आधा रतिहा मं मोर मचान भसक गे, अऊ मंय सात फीट ऊंच ले मुड़ के भार गिरेंव, मोर घेंच अऊ पीठ मं भारी जखम पहुंचिस.”

रतिहा के अढाई बजे के घटना आय. किस्मत ले जिहा गिरेंव वो ह ओतका सखत नई रहिस. वो ह कहिथे के वो ह कम से कम दू घंटा सदमा अऊ दरद ले छट पटावत रहय. लकरी के बदे अकन लट्ठा, जेन मं मचान ला खड़े करे गे रहिस, धंस गे काबर जेन भूईन्य्या मं टिके रहिस, वो ह ओद्दा होगे रहिस.

“मंय हिले डुले नई सकत रहेंव अऊ मोर मदद करे सेती सेती उहाँ कऊनो नई रहिन.” रतिहा के बखत खेत मं अकेल्लाच रहिथे, भले तीर-तखार के लोगन मन अपन खेत मं रखवाली करत होवंय. वो ह कहिथे, “मंय सोचेंव, तब त मंय मर जाहूं.”

Dadaji (left) and Ramchandra lit a bonfire to keep warm on a cold winter night during a night vigil
PHOTO • Jaideep Hardikar
Dadaji (left) and Ramchandra lit a bonfire to keep warm on a cold winter night during a night vigil
PHOTO • Jaideep Hardikar

दादाजी (डेरी) अऊ रामचंद्र ह जाड़ के रतिहा मं जागे बखत अलाव बारिस

सुत बिहनिया कइसनो करके आखिर मं ठाढ़ होय सकिस, घेंच अऊ पीठ मं भारी दरद के बाद घलो, वो ह करीबन कोस भर दूरिहा चलके अपन घर गीस. घर हबरे के बाद, मोर सरा परिवार अऊ परोसी मं मदद सेती आ गीन. दादाजी के घरवाली शकुबाई घबरा गे.

रामचंद्र वोला भिवापुर तहसील सहर के एक ठन डॉक्टर तीर ले गीस, जिहां ले वोला एम्बुलेंस ले नागपुर के एक ठन निजी अस्पताल मं ले जाय गीस. ओकर बेटा ह अस्पताल मं भर्ती करे के बेवस्था करिस.

एक्सरे अऊ एमआरआई ले चोट के पता चलगे, फेर किस्मत ले कऊनो फ्रैक्चर नई रहिस. फेर गिरे के बाद ले ये ऊँच ठाठ अऊ दूबर-पातर काया वाले मइनखे ला बइठे धन बनेच बेर तक ठाढ़ होय ले चक्कर आथे येकरे सेती वो ह सुत जाथे. अऊ भजन गाय ला धरथे.

वो ह मोला कहिथे, “रतिहा के रखवारी सेती मंय ये दाम भरे हवं, काबर” काबर के गर मंय अपन फसल के रखवारी नई करेंय, त ये जंगली जानवर मन मोला मोर खेत ले कुछु लुये ला घलो नई दिहीं.”

दादाजी कहिथें के जब वो ह नान कन रहिस त रतिहा मं जागे के जरूरत नई रहिस. बीते 20 बछर मं जानवर मन के हमला बढ़े हवय. वो ह कहिथे, न सिरिफ जंगल कमतिया गे हवंय, फेर जंगली जानवर मन ला घलो भरपूर दाना पानी मिलत नई ये अऊ ओकर अबादी घलो बढ़े हवय. येकरे सेती हजारों किसान मन अपन रतिहा खेत मन मं गुजारथें, पहरेदारी करथें, रतिहा मं हमला करेइय्या मन ले अपन फसल ला बचाय के कोशिश करथें, खड़े फसल ला चरेइय्या जंगली जानवर मन ला अगोरत रहिथें.

अलहन, गिरे, जंगली जानवर मन के संग अमना-सामना, नींद के कमी सेती दिमागी बीमारी के दिक्कत, अऊ अमान्य बीमारी – ये ह खोलदोड़ा अऊ विदर्भ के बड़े इलाका के किसान मन सेती आम बात हो गे हवय, जेन ह बिपत मं परे किसान मन के दिक्कत ला अऊ बढ़ा देथे.

Machans , or perches, can be found across farms in and around Kholdoda village. Some of these perches accommodate two persons, but most can take only one
PHOTO • Jaideep Hardikar
Machans , or perches, can be found across farms in and around Kholdoda village. Some of these perches accommodate two persons, but most can take only one
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मचान , धन बसेरा , खोलदोड़ा गांव अऊ ओकर तीर-तखार के खेत मन मं देखे ला मिलथें. कुछेक मं दू झिन बइठ सकथें, फेर अधिकतर मं सिरिफ एकेच झिन बइठे सकथे

Farmers house themselves in these perches during the night vigil. They store their torches, wooden sticks, blankets and more inside
PHOTO • Jaideep Hardikar
Farmers house themselves in these perches during the night vigil. They store their torches, wooden sticks, blankets and more inside
PHOTO • Jaideep Hardikar

रतिहा मं जागे बखत किसान ये मचान मन मं रहिथें. वो अपन टार्च, डंडा, कंबल अऊ बनेच कुछु येकरे भीतरी मं रखथें

बीते कुछेक बछर मं गांव-देहात इलाका मं जब मंय गे रहेंव. मंय तऊन किसान मन ले मिलेंव, जेन मन नींद नई आय के बीमारी स्लीप एपनिया सेती तनाव मं रहिन. ये अइसने बीमारी आय जेन मं साँस अपन आप रुक जाथे अऊ सुते बखत फिर ले सुरु हो जाथे.

“ये ह देह ला भारी नुकसान करथे- हमन दिन मं बूता करत रहिथन अऊ रतिहा मं घलो बिना जियादा सुते.” रामचन्द्र दुखी होवत कहिथे. “ कतको बखत अइसने होथे जब हमन अपन खेत ला एक दिन सेती घलो छोड़े नई सकन.”

वो ह कहिथे, गर तुमन इहाँ भात दार धन करिया चना खावत हस, त  हो सकत हवे के ये जंगली जानवर मन ले बच गे काबर कऊनो ह रतिहा के अपन नींद ला मार के अपन फसल बचा ले हवय.

रामचंद्र कहिथें, “हमन अलारम बजाथन, आगि बारथन,खेत मना बड़ा लगाथन, फेर गर तंय रतिहा मं खेत मं नई अस, त बनेच अंदेशा हवय के तंय वो सब्बो कुछु गंवा देबे जऊन ला तंय लगाय हस.”

*****

रतिहा मं खाय के बाद हमन रामचन्द्र के पाछू पाछू कतार मं चले लगथन. अंधियार मं खेत के भूलभुलैया ले निकरत हमन ला रद्दा देखाय सेती बीच बीच मं टार्च जले लगथे.

रतिहा के 11 बज गे हवय अऊ लोगन मन नरियावत हवंय, ओ ...ओ ...ई -जानवर मं डेर्राय सेती अऊ अपन होय के आरो देवत, मंझा मंझा मं नरियावत रहिथें.

दीगर दिन मं जब वो ह अकेल्ला होते, त रामचन्द्र ह एक ठन भारी लाम डंडा धरे हरेक घंटा खेत के चक्कर लगाथे. वो ह खास करके 2 ले 4 के मंझा मं चेत धरे रहिथे, काबर के जानवर के इही बखत मं जियादा आथें. मंझा-मंझा मं झपकी लेगे के कोशिश करते फेर चेत धरे रहिथे.

करीबन आधा रतिहा मं एक झिन अपन फटफटी मं खेत मं आथे अऊ हमन ला बताथे के अलेसूर मं रतिहा भर चलेइय्या कबड्डी मैच होवत हवय. हमन खेल ला देखे के फइसला करथन. दादाजी रामचंद्र अपन बेटा के संग खेतेच मं रुक जाथे, बाकि हमन खेत ले 10 मिनट के दूरिहा अलेसूर चले जाथन.

Villages play a game of kabaddi during a night-tournament
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गाँव मं रतिहा पहाय कबड्डी मैच चलत हवय

किसान मन रतजगा करत अलेसूर ग्राम पंचइत मं चलत कबड्डी देखे सेती जुरे हवंय

रद्दा मं, हमन बरहा गोहड़ी ला सड़क पार करत देखें, जेकर पाछू दू ठन सियार रहिन. थोकन बीते जंगल के भीतरी मं हिरन के गोहड़ी देखे ला मिलिस. अब तक ले बघवा के अत पता नई चले रहिस.

अलेसुर मं तीर-तखार के गाँव के लोगन मन दू ठन नामी टीम के बीच मं चलत कबड्डी मैच ला देखे भारी भीड़ जुटे रहिस. लोगन के उछाह देखे लइक रहिस. टूर्नामेंट मं एक कोरी ले जियादा टीम हिस्सा लेवत हवंय अऊ ये ह बिहनिया तक ले चलही; फाइनल बिहनिया 10 बजे होही. गाँव के लोगन मन सरी रत अपन खेत अऊ खेल वाले जगा मं किंदरत रिहीं.

वो मन चरों डहर एक ठन बघवा के होय के जानकारी एक दूसर ला देथें. एक झिन रामचन्द्र ले कहिथे, “तंय चेत धरे रहिबे.” संझा मं अलेसूर के एक झिन मइनखे ह वोला देखे हे.

बघवा के दिखे ह अपन आप मं रहस्य आय.

कुछु बखत बीते हमन रामचन्द्र के खेत मं लहुंट के आ गेन. रतिहा के 2 बजट हवय अऊ लइका आशुतोष बयारा के तीर खटिया मं सुत गे हवय; दादाजी कलेचुप बइठे वोला देखत हवंय अऊ अलव जलावत हवंय. हमन थके हवन , फेर अब तक ले नींद नई आय हे. हमन खेत के एक बेर अऊ चक्कर लगाथन.

Ramchandra Dodake (right) at the break of the dawn, on his farm after the night vigil
PHOTO • Jaideep Hardikar
Ramchandra Dodake (right) at the break of the dawn, on his farm after the night vigil
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रामचंद्र दोड़के (जउनि) भोर मं, रतिहा जगे के बाद अपन खेत मं

Left: Ramchandra Dodake's elder son Ashutosh, on the night vigil.
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Right: Dadaji plucking oranges from the lone tree on Ramchandra’s farm
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रामचंद्र दोड़के के बड़े बेटा आशुतोष रतिहा मं पहरेदारी करत, जउनि: दादाजी रामचंद्र, खेत के एकेच संतरा रुख ले फल टोरत

रामचंद्र ह 10 वीं के बाद पढ़ई छोड़ दे रहिस अऊ कहिथें के गर दूसर काम होतिस त वो हा खेतीच नई करतिस. वो हा अपन दूनो लइका ला नागपुर के एक ठन बोर्डिंग स्कूल मं भर्ती करा दे हवय काबर के वो ह नई चाहे के वो मं खेती करंय. आशुतोष छुट्टी मनाय घर आय हवय.

अचानक, सब्बो दिग ले भारी आवाज आय लगिस. ये थारी बजेइय्या किसान आंय, जेन मन जोर-जोर ले नरियावत हवंय. जानवर मन ला डेर्राय सेती वो मन घेरी-बेरी अइसने करहीं.

मोर अकचकाय हाव-भाव ला देखत दादाजी हंस परथे. रामचंद्र घलो. वो ह कहिथे, तोला ये अजीब लगत होही. फेर रतिहा भर इहीच होथे. किसान जानवर आय के आरो देय सेती नरियाथे काबर के जानवर दूसर के खेत मं जाय सकत हवंय. 15 मिनट बीते हो-हल्ला खतम अऊ फिर ले सब्बो सुन्ना हो गे.

करीबन साढ़े 3 बजे तारा ले जगमगावत अकास तरी अपन अपन मचान मं चले जाथन, मोर चरों  डहर कीरा मन के अवाज जोर ले आय सुरु हो जाथे. अपन अपन पीठ के भार सुत जाथों, मचान मं भरपूर जगा हवय. छवाय फटे तिरपाल ह हवा ले आवाज करत हवय. मंय तारा मन ला गिने सुरु करथों अऊ थोकन बखत सुत जाथों. आखिर मं रतिहा पहाय अऊ बिहान होय लोगन मन के रुक रुक के नरियाय ला सुनथों. मचान ले अपन सहूलियत के हिसाब ले, अपन चरों डहर दूधिया सफेद ओस ले भरे हरा -भरा खेत ला देखथों.

रामचंद्र अऊ दादाजी घलो जाग गे हवंय. दादाजी खेत के एकेच मंदारिन रुख ले कुछु फल टोरथें अऊ वोला घर ले जाय सेती मोला देथें.

Ramchandra Dodake (left), Dadaji and his wife Shakubai (right) bang thalis ( metal plates), shouting at the top of their voices during their night vigils. They will repeat this through the night to frighten away animals
PHOTO • Jaideep Hardikar
Ramchandra Dodake (left), Dadaji and his wife Shakubai (right) bang thalis ( metal plates), shouting at the top of their voices during their night vigils. They will repeat this through the night to frighten away animals
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रामचंद्र दोडके (डेरी), दादाजी अऊ ओकर घरवाली शकुबाई (जउनि) रतिहा जगे बखत थारी ला बजाथें. वो मन जानवर मन ला खदेड़े सेती सरी रतिहा अइसने करहीं

मंय रामचंद्र के पाछू पाछू हो लेथों काबर के वो ह खेत के जल्दी ले एक चक्कर लगाय हवय, चेत धरे अपन फसल के जाँच करत के का वो ला नुकसान करे गे हवय.

हमन बिहनिया 7 बजे गांव लहुंटथन. वो ह कहिथे के वो ह किस्मत वाला रहिस के रतिहा मं कऊनो घलो नुकसान नई पहुंचाइस.

बाद मं दिन मं रामचंद्र ला पता चल जाही के बीते रतिहा जंगली जानवर कऊनो दीगर के खेत मं खुसरे त नई रहिन.

मंय अपन पहूनई करेइय्या मन ले बिदा लेथों, जऊन ह मोला अपन खेत के धान के अभिचे कुटाय चऊर के एक ठन पाकिट देथे. ये ह खुश्बू वाले किसम आय. ये ला हासिल करे सेती रामचंद्र कतको रतिहा ये फसल के खेत मं गुजारे हवंय.

जइसनेच हमन खोलदोड़ा ले तेजी ले जावत खेत मन ले गुजरत रहिथन, मंय मरद अऊ मईलोगन मन ला कलेचुप खेत ले घर डहर लहुंटत देखथों. मोर रोमांचक यात्रा सिरा गे हवय. ओकर मन के हाड़तोड़ मिहनत के दिन अभी सुरु होय हवे.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Jaideep Hardikar

Jaideep Hardikar is a Nagpur-based journalist and writer, and a PARI core team member.

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Editor : Priti David

Priti David is the Executive Editor of PARI. She writes on forests, Adivasis and livelihoods. Priti also leads the Education section of PARI and works with schools and colleges to bring rural issues into the classroom and curriculum.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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