अंतर्राष्ट्रीय मूल निवासी दिवस के मौक़े पर, पश्चिम बंगाल में रहने वाली सबर आदिवासी समुदाय की ज़िंदगी के स्याह पहलुओं को पेश करती रपट. विमुक्त होने के 70 साल बाद भी समुदाय के लोगों का संघर्ष जारी है, और वे हाशिए पर बसर करते हुए भूखमरी से भरा जीवन जीने को अभिशप्त हैं. वे अपनी आजीविका व भोजन के लिए पूरी तरह से रोज़-ब-रोज़ तंग पड़ते जंगलों पर निर्भर हैं
रितायन मुखर्जी, कोलकाता के फ़ोटोग्राफर हैं और पारी के सीनियर फेलो हैं. वह भारत में चरवाहों और ख़ानाबदोश समुदायों के जीवन के दस्तावेज़ीकरण के लिए एक दीर्घकालिक परियोजना पर कार्य कर रहे हैं.
Editor
Priti David
प्रीति डेविड, पारी की कार्यकारी संपादक हैं. वह मुख्यतः जंगलों, आदिवासियों और आजीविकाओं पर लिखती हैं. वह पारी के एजुकेशन सेक्शन का नेतृत्व भी करती हैं. वह स्कूलों और कॉलेजों के साथ जुड़कर, ग्रामीण इलाक़ों के मुद्दों को कक्षाओं और पाठ्यक्रम में जगह दिलाने की दिशा में काम करती हैं.
Translator
Prabhat Milind
प्रभात मिलिंद, शिक्षा: दिल्ली विश्विद्यालय से एम.ए. (इतिहास) की अधूरी पढाई, स्वतंत्र लेखक, अनुवादक और स्तंभकार, विभिन्न विधाओं पर अनुवाद की आठ पुस्तकें प्रकाशित और एक कविता संग्रह प्रकाशनाधीन.