“मैं लगभग 450 चिड़ियों की आवाज़ें पहचानता हूं.”

मीका राई के पास यह अद्भुत हुनर है. जंगलों में दुर्लभ पक्षियों और जानवरों की तस्वीर खींचने के लिए, किसी भी फ़ोटोग्राफ़र को उनके इंतज़ार में कैमरे के साथ काफ़ी भटकना पड़ता है, और ऐसे में आवाज़ों की पहचान कर पाने का हुनर बहुत काम आता है.

पिछले कुछ सालों में मीका ने पंख वाले जीवों से लेकर रोमदार स्तनपायियों तक, कोई 300 विभिन्न प्रजातियों की हैरतअंगेज़ तस्वीरें खींची हैं. उनकी सबसे मुश्किल शूट की गईं तस्वीरों में से एक उन्हें आज भी याद है. वह तस्वीर एक चिड़िया की थी – ब्लिथ्स ट्रेगोपैन (ट्रेगोपैन ब्लिथी), जो एक दुर्लभ पक्षी है और कभी-कभार ही दिखाई देता है.

यह अक्टूबर 2020 की बात है, जब मीका ने एक सिग्मा 150एमएम-600एमएम टेलीफ़ोटो ज़ूम लेंस लिया था. यह शक्तिशाली लेंस उन्होंने ख़ास तौर पर ट्रेगोपैन की तस्वीरें लेने के इरादे से ख़रीदा था. उन्होंने इस चिड़िया की आवाज़ सुन ली थी और उसकी तलाश में निकल पड़े थे. “काफ़ी दिन से आवाज़ तो सुनाई दे रहा था.” लेकिन, महीनों तक वह एक भी तस्वीर लेने में कामयाब नहीं हो पाए.

मई 2021 में मीका ने अरुणाचल प्रदेश के ईगलनेस्ट वाइल्डलाइफ सेंचुरी में एक बार फिर से ब्लिथ्स की आवाज़ का पीछा किया और आख़िरकार नज़रों से सामान्यतः ओझल रहने वाला यह पक्षी उनको दिख गया. वह भी सिग्मा 150एमएम-600एमएम टेलीफ़ोटो ज़ूम लेंस से लैस अपने डी7200 निकॉन के साथ मानो ताक में ही थे. लेकिन उनकी घबराहट उनपर भारी पड़ गई. “मैंने जो तस्वीर ली वह थोड़ी धुंधली आ गई,” वह याद करते हुए कहते हैं.

दो साल बाद वेस्ट कमेंग में बोम्पू कैंप के पास चमकीले गेरुआ रंग और पीठ पर सफ़ेद छोटी बिंदियों वाला यह दुर्लभ पक्षी दोबारा दिखा. वह पत्तों की ओट में था, लेकिन इस बार मीका नहीं चूके. उन्होंने उसी समय धड़ाधड़ 30-40 तस्वीरें ले लीं, जिनमें 1-2 काम की निकल आईं. ये तस्वीरें सबसे पहले पारी में प्रकाशित हुईं: आने वाले संकट की आहट सुनते अरुणाचल के पक्षी .

In Arunachal Pradesh’s Eaglenest Wildlife Sanctuary, Micah managed to photograph a rare sighting of Blyth’s tragopan (left) .
PHOTO • Micah Rai
Seen here (right) with his friend’s Canon 80D camera and 150-600mm Sigma lens in Triund, Himachal Pradesh
PHOTO • Dambar Kumar Pradhan

अरुणाचल प्रदेश के ईगलनेस्ट वाइल्डलाइफ सेंचुरी में मीका कभी-कभार नज़र आने वाले ब्लिथ्स ट्रेगोपैन (बाएं) की फ़ोटो लेने में सफल रहे. इस तस्वीर (दाएं) में वह अरुणाचल प्रदेश के त्रिउंड में अपने दोस्त के कैनन 80डी कैमरा और 150-600एमएम सिग्मा लेंस के साथ दिख रहे हैं

मीका स्थानीय लोगों की टीम का एक हिस्सा हैं, जो अरुणाचल प्रदेश के वेस्ट कमेंग ज़िले के पूर्वी हिमालय पर्वतों में पक्षियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने के उद्देश्य से भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु से आए वैज्ञानिकों की सहायता करती है.

“मीका जैसे लोग ईगलनेस्ट में हमारे द्वारा किए जा रहे कामों के लिए बेहद ज़रूरी हैं, वर्ना फ़ील्ड में काम करना और इस तरह के ज़रूरी आंकड़ों को इकठ्ठा करना असंभव था,” पक्षी वैज्ञानिक डॉ. उमेश श्रीनिवासन कहते हैं.

पक्षियों से मीका का लगाव विज्ञान से परे है. वह ब्लेसिंग बर्ड के बारे में एक नेपाली कहानी को फिर से सुनाते हैं. “अपनी सौतेली मां की क्रूरता से परेशान एक आदमी किसी जंगल में जंगली केलों के बीच शरण और सहारा पाता है और एक दिन एक चिड़िया के रूप में रूपांतरित हो जाता है. नेपाली जनश्रुतियों में यह चमकीला और सुंदर निशाचर जीव मनुष्य और प्रकृति के बीच स्थायी और रहस्यमयी बंधन का प्रतीक है.” मीका कहते हैं कि कोई और नहीं, बल्कि माउंटेन स्कॉप्स उल्लू है, जिसे बहुत से लोग ब्लेसिंग बर्ड का ही अवतार मानते हैं. इस कहानी का रहस्यमय सार इसकी दुर्लभता से जुड़ता है.

जंगल में पक्षियों का पीछा करने के दौरान मीका और उनके साथियों की क़रीबी मुठभेड़ कई बार चौपाये पशुओं, ख़ासकर दुनिया के सबसे विशाल, लंबे और भारी-भरकम गोजातीय पशु जंगली गौर (बोस गौरस), जिसे इंडियन बाइसन भी कहते हैं, से भी हुई.

मीका और उनके दो साथी रात की बरसात के बाद रास्ते से मलबे की सफ़ाई करने आए थे. तीनों की नज़र सिर्फ़ 20 मीटर दूर खड़े एक विशालकाय जंगली भैंसे पर पड़ी. “मैं उसे भगाने के लिए चिल्लाया, लेकिन मिथुन [गौर] हमारी तरफ़ पूरी तेज़ी से दौड़ा!” उस घटना को याद करते हुए मीका हंसने लगते हैं. गौर को अपने पीछे दौड़ते देख उनके एक दोस्त किसी तरह एक पेड़ पर चढ़ गए थे, जबकि अपने दूसरे दोस्त के साथ मीका किसी तरह जान बचा कर भागने में कामयाब रहे.

वह बताते कि ईगलनेस्ट के जंगलों में उनका पसंदीदा जानवर मध्यम-आकार वाली जंगली बिल्ली है, जिसे एशियन गोल्डन कैट (कैटोप्यूमा टेमिनकी) कहते हैं. यह ईगलनेस्ट के जंगलों में पाई जाती है. उन्होंने इस बिल्ली को बोम्पू कैंप लौटने के रास्ते में गोधूली के समय देखा था. “मेरे पास मेरा कैमरा [निकोन डी7200] था और मैंने तुरंत उसकी फ़ोटो ले ली,” वह चहकते हुए बताते हैं. “लेकिन उसके बाद मैंने उसे दोबारा नहीं देखा.”

From winged creatures to furry mammals, Micah has photographed roughly 300 different species over the years. His images of a Mountain Scops Owl (left) and the Asian Golden Cat (right)
PHOTO • Micah Rai
From winged creatures to furry mammals, Micah has photographed roughly 300 different species over the years. His images of a Mountain Scops Owl (left) and the Asian Golden Cat (right)
PHOTO • Micah Rai

पिछले सालों में मीका ने पंख वाले जीवों से लेकर रोमदार पशुओं की तक़रीबन 300 विभिन्न प्रजातियों की तस्वीरें ली हैं. उनके द्वारा खींची गई माउंटेन स्कॉप्स उल्लू (बाएं) और एशियन गोल्डन कैट (दाएं) की तस्वीर

The Indian Bison seen here in Kanha N ational P ark , Madhya Pradesh (pic for representational purposes) . Micah is part of a team of locals who assist scientists from the Indian Institute of Science (IISc) in Bengaluru , in their study of the impact of climate change on birds in the eastern Himalayan mountains of West Kameng district, Arunachal Pradesh. (From left to right) Dambar Kumar Pradhan , Micah Rai, Umesh Srinivasan and Aiti Thapa having a discussion during their tea break
PHOTO • Binaifer Bharucha
The Indian Bison seen here in Kanha N ational P ark , Madhya Pradesh (pic for representational purposes) . Micah is part of a team of locals who assist scientists from the Indian Institute of Science (IISc) in Bengaluru , in their study of the impact of climate change on birds in the eastern Himalayan mountains of West Kameng district, Arunachal Pradesh. (From left to right) Dambar Kumar Pradhan , Micah Rai, Umesh Srinivasan and Aiti Thapa having a discussion during their tea break
PHOTO • Binaifer Bharucha

मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क में भारतीय भैंसा या इंडियन बाइसन (यह तस्वीर यहां प्रतिरूपात्मक उद्देश्य से दी गई है). मीका भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु से अरुणाचल प्रदेश के वेस्ट कमेंग ज़िले के पूर्वी हिमालय के पहाड़ों में पक्षियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए आए वैज्ञानिकों की सहायता करने वाली एक टीम का हिस्सा हैं. (दाएं से बाएं) दंबर कुमार प्रधान, मीका राई, उमेश श्रीनिवासन और आइती थापा चाय-अवधि के दौरान बातचीत में संलग्न हैं

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मीका का जन्म वेस्ट कमेंग के दिरांग में हुआ था, जहां से वह अपने परिवार के साथ उसी ज़िले के रामलिंगम गांव में आ गए. “सब मुझे मीका राई के नाम से बुलाते हैं. इंस्टाग्राम और फेसबुक पर मेरा नाम मीका राई है, लेकिन दस्तावेज़ों में यह ‘शम्बू राई’ है,” 29 साल के मीका बताते हैं. उन्होंने पांचवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया, क्योंकि “पैसों की तंगी थी और मेरे छोटे भाई-बहनों को भी पढ़ाई करनी थी.”

उनके अगले कुछ साल सिर्फ़ पेट भरने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए गुज़रे. इस दौरान उन्होंने दिरांग में सड़क बनाने के काम में मज़दूरी की, और ईगलनेस्ट वाइल्डलाइफ सेंचुरी के बोम्पू कैंप के अलावा सिंगचुंग बुगुन विलेज कम्युनिटी रिज़र्व (एसबीवीसीआर) के लामा कैंप में बतौर किचन स्टाफ़ काम किया.

अपने कैशौर्य के बीच में मीका हमेशा के लिए रामलिंगम लौट आए. “मैं अपने मां-बाप के साथ घर में रहता था, खेती के कामों में उनका हाथ बंटाता था.” उनका परिवार नेपाली मूल का है और उनके पास बुगुन समुदाय से पट्टे पर ली गई 4-5 बीघा कृषियोग्य ज़मीन है, जिसपर वे पत्तागोभी और आलू पैदा करते हैं और पैदावार को असम के तेज़पुर में बेचा जाता है, जो सड़क मार्ग से चार घंटे की दूरी पर स्थित है.

जब पक्षी-वैज्ञानिक और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के सेंटर फ़ॉर इकोलॉजिकल साइंस में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉ. उमेश श्रीनिवासन पक्षियों पर जलवायु-परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए रामलिंगम आए, तो उन्होंने आसपास के 2-3 युवा लड़कों से फ़ील्ड स्टाफ़ के रूप में काम करने के लिए पूछा. मीका ने मौक़े को फ़ौरन लपक लिया, क्योंकि इससे उनके लिए स्थायी आमदनी का रास्ता खुल रहा था. जनवरी 2011 में 16 साल के मीका ने श्रीनिवासन की टीम में बतौर फ़ील्ड स्टाफ़ काम करना शुरू कर दिया.

Left: Micah's favourite bird is the Sikkim Wedge-billed-Babbler, rare and much sought-after. It is one of Eaglenest’s 'big six' species and was seen in 1873 and then not sighted for over a century.
PHOTO • Micah Rai
Right: White-rumped Shama
PHOTO • Micah Rai

बाएं: मीका का पसंदीदा पक्षी सिक्किम वेज-बिल्ड-बैबलर है, जो बहुत दुर्लभ है और हर कोई इसकी तलाश में रहता है. यह ईगलनेस्ट की ‘छह बड़ी’ प्रजातियों में एक है और इसे 1873 में देखे जाने के बाद तक़रीबन सौ से भी अधिक सालों तक नहीं देखा गया है. दाएं: सफ़ेद पूंछ वाली शामा चिड़िया

इस बात को स्वीकार करने में मीका को कोई संकोच नहीं होता है कि उनकी असली पढ़ाई-लिखाई अरुणाचल प्रदेश के जंगलों में हुई थी. “मैं वेस्ट कमेंग ज़िले के इलाक़े में पाए जाने वाले पक्षियों की आवाज़ को बहुत आसानी से पहचान लेता हूं,” वह कहते हैं. उनका पसंदीदा पक्षी सिक्किम का वेज-बिल्ड बैबलर है. यह दिखने में इतना सुंदर भले न हो, लेकिन मुझे उसका स्टाइल बहुत अच्छी लगता है. यह बहुत दुर्लभ चिड़िया है और यहां अरुणाचल प्रदेश, सुदूर पूर्वी नेपाल, सिक्किम और पूर्वी भूटान के बहुत कम जगहों में देखी जाती है.

“हाल ही में मैंने सफ़ेद पूंछ वाली शामा [कॉप्सीकस मालाबरिकस ] को कोई 2,000 मीटर की उंचाई पर शूट किया था. यह एक विचित्र बात थी, क्योंकि यह पक्षी अधिकतम 900 मीटर या उससे भी कम उंचाई पर पाया जाता है. लेकिन तापमान बढ़ने के कारण यह अपना इलाक़ा बदल रहा है,” मीका बताते हैं.

वैज्ञानिक श्रीनिवासन कहते हैं, “पूर्वी हिमालय पृथ्वी का दूसरा सबसे अधिक जैव विविधता वाला क्षेत्र है, और यहां मिलने वाले बहुत सारे जीव-जंतु तापमान के मामले में अत्यधिक संवेदनशील हैं. इसलिए यहां होने वाले जलवायु परिवर्तन में धरती की प्रजातियों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को प्रभावित करने की क्षमता है.” वह कहते हैं कि उनके अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यहां ख़ास ऊंचाइयों पर रहने वाले स्थानीय पक्षी अब धीरे-धीरे अधिक ऊंची जगहों पर स्थानांतरित हो रहे हैं. पढ़ें: आने वाले संकट की आहट सुनते अरुणाचल के पक्षी .

जलवायु परिवर्तन में रुचि रखने वाली फ़ोटोग्राफ़र के रूप में, मैं मीका के फ़ोन की तस्वीरों को मुग्ध भाव से देखती हूं. ये तस्वीरें उनकी कई सालों की मेहनत का हासिल हैं. वह इन्हें ऐसे दिखा रहे हैं, गोया इन्हें शूट करना उनके लिए बहुत आसान रहा होगा, लेकिन यहां मेरा अपना तजुर्बा यह बताता है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और असीम धैर्य की बदौलत ही उन्हें ये तस्वीरें मिली हैं.

The White-crested Laughingthrush (left) and Silver-breasted-Broadbill (right) are low-elevation species and likely to be disproportionately impacted by climate change
PHOTO • Micah Rai
The White-crested Laughingthrush (left) and Silver-breasted-Broadbill (right) are low-elevation species and likely to be disproportionately impacted by climate change
PHOTO • Micah Rai

सफ़ेद कलगी वाला लाफिंगथ्रश (बाएं) और सिल्वर छाती वाला ब्रॉडबिल (दाएं) चिड़ियों की ऐसी प्रजातियां हैं जो कम उचाईयों पर रहती हैं और मौसम में बदलाव से इनकी संख्या पर अप्रत्याशित असर पड़ सकता है

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ईगलनेस्ट में टीम का शिविर बोम्पू कैंप में लगाया हुआ है. दुनिया भर के पक्षी प्रेमियों के लिए यह एक पसंदीदा स्थल है. यह एक अस्थायी ठिकाना है, जिसे टूटे हुए कंक्रीट के ढांचे में लकड़ी के जाल और तिरपाल को लपेट कर बनाया गया है. रिसर्च टीम में वैज्ञानिकों के अलावा वेस्ट कमेंग ज़िले के एक इन्टर्न और फ़ील्ड स्टाफ़ शामिल हैं. मीका इस समूह का एक अभिन्न हिस्सा हैं, जिसकी अगुआई डॉ. उमेश श्रीनिवासन कर रहे हैं.

मैं और मीका रिसर्च कैंप के बाहर खड़े हैं और हवा हमें थपकियां दे रही है. बादलों की मोटी सी परत के नीचे से आसपास के पहाड़ों की चोटियां झांक रही हैं. मैं बदलते मौसम के बारे में उनके अनुभवों को उन्हीं की ज़ुबानी सुनने के लिए उत्सुक हूं.

“कम उंचाई पर अगर बहुत गर्मी पड़ रही हो, तो पहाड़ों का तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ता है. यहां भी पहाड़ों का तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ गया है. हम यह भी जानते हैं कि जलवायु के परिवर्तन के कारण ऊपरी इलाक़ों में मानसून में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है,” वह कहते हैं. “पहले लोग मौसम का पैटर्न समझते थे. बड़ी उम्र के लोग फ़रवरी को एक ठंडा और बदली से घिरा महीना मानते थे.” अब फ़रवरी में असमय बरसात के कारण किसानों और फ़सलों के लिए बड़ी समस्याएं पैदा होने लगी हैं.

चिड़ियों की चहचहाट से गूंजते, और भिदुर वृक्ष, चिनार और बलूत के ऊंचे पेड़ों से आच्छादित  ईगलनेस्ट सेंचुरी के घने-हरे जंगलों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले गंभीर परिणामों के बारे में सोच पाना भी कठिन है. भारत के पूर्वी भाग में सूर्योदय पहले ही हो जाता है और स्टाफ़ सुबह 3:30 बजे ही जाग चुका है. वे सवेरे से ही अपने-अपने कामों में लग जाते हैं. नीले आसमान में बादलों के सफ़ेद फाहे तैर रहे हैं.

श्रीनिवासन के निर्देश में मीका ने ‘मिस्ट नेटिंग’ की तरक़ीब सीख ली है - यह नाइलॉन या पोलिएस्टर की बहुत बारीक जाली को मिट्टी में धंसे दो बांसों के बीच फैलाकर चिड़ियों को पकड़ने की एक प्रक्रिया है. पकड़े जाने के बाद चिड़ियों को एक झोली में रख दिया जाता है. ऐसी ही हरे रंग की छोटी सी झोली से एक पक्षी को निकाल कर मीका, श्रीनिवासन के हवाले कर रहे हैं.

Fog envelopes the hills and forest at Sessni in Eaglenest . Micah (right) checking the mist-netting he has set up to catch birds
PHOTO • Binaifer Bharucha
Fog envelopes the hills and forest at Sessni in Eaglenest . Micah (right) checking the mist-netting he has set up to catch birds
PHOTO • Vishaka George

ईगलनेस्ट के सेसनी में कोहरे से ढंकी पहाड़ियां और जंगल. मीका (दाएं) उस मिस्ट नेटिंग की जांच करते हुए, जिसे उन्होंने चिड़ियों को पकड़ने के लिए लगाया है

Left: Srinivasan (left) and Kaling Dangen (right) sitting and tagging birds and noting data. Micah holds the green pouches, filled with birds he has collected from the mist netting. Micah i nspecting (right) an identification ring for the birds
PHOTO • Binaifer Bharucha
Left: Srinivasan (left) and Kaling Dangen (right) sitting and tagging birds and noting data. Micah holds the green pouches, filled with birds he has collected from the mist netting. Micah inspecting (right) an identification ring for the birds
PHOTO • Binaifer Bharucha

बाएं: श्रीनिवासन (बाएं) और कलिंग दांगेन (दाएं) बैठकर पक्षियों की टैगिंग कर रहे हैं और डेटा नोट कर रहे हैं. हरी झोलियों को लिए हुए मीका, जिनमें वे पक्षी हैं जिन्हें उन्होंने मिस्ट नेटिंग की तरक़ीब से पकड़ा है. मीका (दाएं) चिड़ियों को पहचान के लिए पहनाए जाने वाले छल्ले की जांच कर रहे हैं

तेज़ी से काम करते हुए पक्षियों का वज़न, पंखों की चौड़ाई और पैरों की लंबाई नापी जाती है. इसमें एक मिनट से कम का समय लगता है. पक्षियों के पैर में उनकी पहचान से संबंधित एक छल्ला टैग करने के बाद उन्हें आज़ाद छोड़ दिया जाता है. मिस्ट नेटिंग में पक्षियों को पकड़ने, उन्हें जांच-टेबल पर लाने, उनका आवश्यक माप करने और उन्हें मुक्त छोड़ देने की इस पूरी प्रक्रिया में अधिकतम 15 से 20 मिनट का ही समय लगता है. टीम हर आठ घंटे के बाद इस अभ्यास को मौसम के अनुसार 20 मिनट से लेकर आधे घंटे की अवधि के लिए करती है. इसे करते हुए मीका को लगभग 13 साल हो चुके है.

“जब हमने पक्षियों को पकड़ना शुरू किया, तो सफ़ेद आंखों वाली वार्बलर (सीसरकस अफीनिस) जैसे नामों का उच्चारण करना बहुत मुश्किल था. यह कह पाना इसलिए मुश्किल था, क्योंकि हमें अंग्रेज़ी बोलने का अभ्यास नहीं था.

ईगलनेस्ट सेंचुरी में चिड़ियों की आवाज़ पहचानने के कौशल ने मीका को पड़ोसी राज्य मेघालय की यात्रा करने का अवसर दिया, जहां के बारे में वह बताते हैं कि उन्होंने जंगल को मिलोंमील कटा हुआ देखा. “साल 2012 में हम 10 दिनों तक चेरापूंजी के आसपास के इलाक़े में भटकते रहे, लेकिन हमें वहां चिड़ियों की 20 प्रजातियां भी नहीं मिलीं. उसी समय मुझे यह महसूस हुआ कि मैं दरअसल ईगलवेस्ट में काम करना चाहता था, क्योंकि यहां बहुत सी प्रजातियां पाई जाती हैं. हमने बोम्पू में बहुत क़िस्मों के पक्षियों की चहल-पहल देखी है.”

“कैमरे का इंटरेस्ट [दिलचस्पी] 2012 से शुरू हुआ,” मीका कहते हैं. पहले वह वहां आईं अतिथि वैज्ञानिक नंदिनी वेल्हो का कैमरा मांगकर काम चलाते थे: “हर पूंछ वाला सनबर्ड [एथोपिगा निपलेंसिस-शकरखोरा] सामान्य तौर पर पाए जाने वाला पक्षी है. मैंने फ़ोटोग्राफी के अभ्यास के लिए उसे ही माध्यम बनाया.”

कोई दो साल बाद मीका अपने साथ कुछ पर्यटकों को चिड़ियों को दिखाने के अभियान पर ले जाने लगे. साल 2018 में मुंबई से एक टोली - बीएनएचएस (बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी) - आई. मीका से जब-जब कहा गया उन्होंने उनकी फ़ोटोग्राफ़ी की. तस्वीरें लेने के समय उनकी ख़ुशी को देखकर टोली के एक सदस्य ने उन्हें एक निकॉन पी9000 उपहार में देने की पेशकश की. “सर, मैं एक डीएसएलआर (डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स) मॉडल ख़रीदना चाहता हूं. मुझे यह कैमरा नहीं चाहिए,” वह अपना उत्तर याद करते हुए बताते हैं.

उसी टोली के चार सदस्यों के उदार सहयोग और फ़ील्ड वर्क व बर्ड गाइडिंग से जो पैसे बचाए थे, “मैंने 50,000 जोड़े. लेकिन कैमरे की क़ीमत 55,000 रुपए थी. मेरे बॉस [उमेश] ने कहा कि बाक़ी पैसों का सहयोग वे कर देंगे.” आख़िरकार 2018 में मीका ने अपने जीवन का पहला डीएसएलआर ख़रीद लिया. यह एक निकॉन डी7200 था, जिसमें 18-55एमएम ज़ूम लेंस था.

Left: Micah practiced his photography skills by often making images of the Green-tailed Sunbird .
PHOTO • Micah Rai
Right: A male Rufous-necked Hornbill is one of many images he has on his phone.
PHOTO • Binaifer Bharucha

बाएं: मीका अपनी फ़ोटोग्राफ़ी के अभ्यास के लिए अक्सर हरे पूंछ वाली सनबर्ड (शकरखोरा पक्षी) को माध्यम बनाते थे. दाएं: एक बादामी रंग की गर्दन वाली हॉर्नबिल (धनेश) की फ़ोटो उनके फ़ोन में सुरक्षित अनेक तस्वीरों में एक है

Micah with his camera in the jungle (left) and in the research hut (right)
PHOTO • Binaifer Bharucha
Micah with his camera in the jungle (left) and in the research hut (right)
PHOTO • Binaifer Bharucha

जंगल में अपने कैमरे के साथ मीका (बाएं) और रिसर्च के लिए बनाई गई झोपड़ी (दाएं)

“अगले 2-3 सालों तक मैं 18-55एमएम ज़ूम लेंस की मदद से घर के आसपास फूलों के फ़ोटो खींचता था.” बहुत दूर से पक्षियों का क्लोज-अप [एकदम पास का] शॉट लेने के लिए बहुत लंबे और शक्तिशाली टेलीफ़ोटो लेंस की ज़रूरत पड़ती है. “कुछ सालों के बाद मैंने 150-600 एमएम सिग्मा लेंस ख़रीदने के बारे में सोचा.” लेकिन उस लेंस का इस्तेमाल करना मीका के लिए एक नई चुनौती थी. कैमरा के अपर्चर, शटर स्पीड और आइएसओ के बीच तालमेल बिठाना उनके लिए आसान काम नहीं था. “मैंने बहुत बुरी तस्वीरें खींचीं,” वह याद करते हुए कहते हैं. उनके दोस्त और सिनेमेटोग्राफ़र राम अल्लूरी ने मीका को डीसीएलआर कैमरे को इस्तेमाल करने के तरीक़े सिखाए. “उन्होंने मुझे सेटिंग का उपयोग करने का तरीक़ा बताया, और अब मैं केवल मैन्युअल सेटिंग का ही उपयोग करता हूं,” वह बताते हैं.

हालांकि, पक्षियों की सिर्फ़ हैरतअंगेज़ तस्वीरें लेना नाकाफ़ी था. इसके बाद उन्हें उन तस्वीरों को फ़ोटोशॉप सॉफ्टवेयर में एडिट करना भी सीखना था. साल 2021 में वह मास्टर्स के छात्र सिद्धार्थ श्रीनिवासन के साथ बैठे, ताकि फ़ोटोशॉप में तस्वीरों को एडिट करना सीख सकें.

जल्द ही एक फ़ोटोग्राफ़र के रूप में उनके हुनर की ख़बर फ़ैल गई और उनसे एक आलेख - ‘लॉकडाउन ब्रिंग्स हार्डशिप टू बर्डर्स पैराडाइज़ इन इंडिया’ के लिए तस्वीरें देने का अनुरोध किया गया. यह आलेख हिमालय पर केंद्रित रपटों की वेबसाइट ‘द थर्ड पोल’ में छपने वाला था. वह बताते हैं, “उस अंक में उन्होंने मेरे सात फ़ोटो शामिल किए. मुझे हर तस्वीर के पैसे मिले और मैं अपनी इस उपलब्धि पर बहुत ख़ुश हुआ.” ज़मीनी काम में समर्पण ने मीका की आगे भी मदद और उन्होंने सह-लेखक के रूप में अनेक वैज्ञानिक शोधपत्र भी लिखे.

मीका में और भी कई प्रतिभाएं हैं. मेहनती फ़ील्ड स्टाफ़, जुनूनी फ़ोटोग्राफ़र, बर्ड गाइड होने के अलावा वह गिटारवादक हैं. मुझे चित्रे बस्ती (जिसे सेरिंग पम भी कहते हैं) के चर्च में जाने पर, उनके संगीतकार अवतार को देखने का भी अवसर मिला. तीन झूमती हुई महिलाओं से घिरे मीका गिटार पर कोई मद्धिम और प्यारी धुन बजा रहे थे. वह स्थानीय पादरी, जो उनके दोस्त भी थे, की बेटी की शादी-समारोह के लिए रिहर्सल कर रहे थे. उनकी उंगलियां जब गिटार के तारों से कोमलतापूर्वक खेल रही थीं, तो मैं उन उंगलियों की उस कुशलता को याद कर रही थी जो जंगल में मिस्ट नेटिंग से चिड़ियों को हौले से निकालने में इस्तेमाल हो रही थी.

जिन पक्षियों को पिछले चार दिनों में उन्होंने मापा और जांचा था, टैगिंग की थी और फिर छोड़ दिया था – जलवायु के संभावित ख़तरों का अग्रदूत बनकर लंबी उड़ान भर चुकी थीं.

अनुवाद: प्रभात मिलिंद

Binaifer Bharucha

Binaifer Bharucha is a freelance photographer based in Mumbai, and Photo Editor at the People's Archive of Rural India.

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Micah Rai is based in Arunachal Pradesh and works as a field coordinator with the Indian Institute of Science. He is a photographer and bird guide, and leads bird watching groups in the area.

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Editor : Priti David

Priti David is the Executive Editor of PARI. She writes on forests, Adivasis and livelihoods. Priti also leads the Education section of PARI and works with schools and colleges to bring rural issues into the classroom and curriculum.

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Translator : Prabhat Milind

Prabhat Milind, M.A. Pre in History (DU), Author, Translator and Columnist, Eight translated books published so far, One Collection of Poetry under publication.

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