“आदमी अब ना झगड़ा से मरी ना रगड़ा से
मरी त भूख आ पियास से मरी”
जलवायु परिवर्तन से होखे वाला तबाही के बारे में आगाह करे वाला अकेल्ला बिज्ञाने नइखे. दिल्ली के 75 बरीस के खेतिहर शिवशंकर दावा करेलन कि भारत के साहित्यिक महाकाव्य कुल में सैकड़न बरीस पहिले एकरा ओरी इशारा कइल गइल रहे. उ 16वां सताब्दी के ग्रंथ रामचरितमानस ( वीडियो देखीं ) के पंक्ति के बारे में बतावतारन. शंकर सायद इ ग्रंथ के लेके ढेर खुस बुझातारन, काहे से कि तुलसीदास के मूल कबिता में इ पंक्ति के पता लगावल रउआ खातिर मस्किल हो सकेला. बाकिर जमुना के डुबाव क्षेत्र में ये खेतिहर के बात हमनी के इ जग ला एकदम सही बा.
शंकर, उनकर परिवार, आ कई गो दोसर काश्तकार लोग तापमान, मौसम, जलवायु में होखे वाला नाना प्रकार के बदलाव के बारे में पूरा बिस्तार से बतावता लोग. ई बदलाव सब कवनो सहरी क्षेत्र के तुलना में एह डूब क्षेत्र के परभावित कर रहल बा. कुल 1,376 किलोमीटर लमहर जमुना नदी के खाली 22 किलोमीटर हिस्सा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से होके बहेला, औरी एकर 97 बर्ग किलोमीटर के डूब क्षेत्र दिल्ली के कुल क्षेत्र के मस्किल से 6.5 फीसदी ह. बाकिर ई छोट बुझाये वाला हिस्सो के जलवायु संतुलित राखे, औरी साथेही राजधानी के तापमान के इस्थिर बनवले राखे के प्राकृतिक प्रणाली के बरकरार राखे में बड़का हाथ बा.
इंहां के खेतिहर एबेरा के होखत बदलाव के खुद अपना मुहाविरा में कहता लोग. शिव शंकर के बेटा विजेंद सिंह कहेलन कि 25 साल पहिले इंहां के लोग सितम्बरे से हलुक कमरी ओढ़े लगे लोग. पैंतीस बरीस के विजेंद्र कहेलन, “अब, जाड़ दिसंबर ले ना सुरु होला. पहिले मार्च में होली के सबसे गरम दिन कहल जाए. अब इ जाड़ में तेओहार मनावे जइसन बा.”
शंकर के परिवार के जिनगी के अनुभव इंहा के दूसर खेतिहरो लोग के हालत बता देता. अलगे-अलगे आकलन के हिसाब से दिल्ली में जमुना (गंगा के सबसे लमहर सहायक नदी आ खूब पसरल, फरकित के मामला में, घाघरा के बाद दुसर सबसे बड़का नदी) के अरिया 5,000 से 7,000 खेतिहर रहेलन कुल. उ बतावेलें कि इंहा के खेतिहर 24,000 एकड़ में खेती करेलें, जौन कि कुछ साल पहिले के तुलना में बहुत कम हो गईल बा. इ एगो बड़का सहर के खेतिहर हवें कुल, कवनो दूर के गांव के ना. उ संका में जिएला लोग, काहे से कि ‘बिकास’ के खतरा हर हमेसा ओ लोग के मूड़ी प मडरात रहेला. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीबीटी) डूबांव जघे प गैरमजरुआ निरमान के बिरोध करे वाला याचिका से भरल बा. औरी इ कुली चिंता खाली खेतिहरे के नईखे.
सेवानिवृत्त भारतीय वन सेवा अधिकारी, मनोज मिसिर कहेलन, ‘जो डूबांव जघे प कंक्रीट वाला कर कईल जाई, जइसन कि हो रहल बा, त दिल्ली के लोग के सहर छोड़ के भागे के पारी. अइसन एह से कि गरमी आ जाड़, दुनु में तापमान चरम प पहुंचला के संघही बर्दास्त से फाजिल हो जाई.” मिश्रा यमुना जिए अभियान (वाइजेए) के अध्यक्ष हंवे, जेकरा 2007 में बनावल गईल रहे. वाइजेए, दिल्ली के सात गो परमुख पर्यावरण संगठन आ संबंधित नागरिक लोग के एक संघे ले आईल, औरी नदी आ ओकर परिस्थिकी तंत्र बचावे ला काम करेला. “सहर अब अइसन बनत जा रहल बा कि इंहा प जीयल मस्किल हो जाई औरी बहुत भारी गिनती में लोग के भागे के कारन बनी. अगर हवा के गुणवत्ता ठीक ना रही त, (इंहां ले कि) दूतावासों कुल बहरा चल जाई.”
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वापिस डूबांव जघे में, पछिला कुछ साल में होखे वाला अनियमित बरखा खेतिहर आ मलाहन के एक्के जइसन हरान क देले बा.
जमुना नदी के आसरे रहे वाला समुदाय अब्बो हर साल बरखा के अगवानी करेला. मलाह लोग अइसन एसे करेला, काहे से कि बेसी पानी नदी के साफ़ क देला. एकरा चलते मछरी कुल के आपन गिनती बढावे में मदद हो जाला, औरी खेतिहर लोग ला इ बरखा टटका उपजाऊ माटी ले आवेला. संकर बतावेलन, “जमीन नया हो जाला, जमीन पलट जाला. साल 2000 ले अइसन हर साल होखे. अब कम बरखा होला. पहिले मानसून जूने में सुरु हो जात रहे. अबरी त जून आ जुलाई में सूखल रहे. बरखा देर से भईल, जेकरा से हमनी के फसल परभावित भईल.”
संकर आपन खेत देखावे बेर हमनी से कहले रहलन, “बरखा जब कम होला त माटी में नून के मातरा बढ़े लागेला. “दिल्ली के जलोढ़ माटी, नदी के डूबांव में गोट्टा करे के नतीजा ह. उ माटी लमहर बेर ले ऊंख, चाउर, गेहूं, औरी कई गो दूसर फसल आ तरकारी उगावे में सहायक बनल रहे. दिल्ली के गजट के मानी त ऊंख के तीन गो किसिम, लालरी, मीराती, सोरठा, 19 वा सदी के अंत तक सहर के गौरव रहे.
'जमीन नया बन जाला, जमीन पलट जाला (बरखा से माटी के कायाकल्प हो जाला),' संकर समझइलन
ऊंख के काम कोल्हू में पेर के मिट्ठा बनावे ला कईल जाय. दसन साल पहिले ले, ताजा ऊंख के रस बेचे वाला छोटका दोकान आ ठेला, दिल्ली के हर सड़क, आ हर कोना में लउके. संकर कहेलन, “फेर सरकार कुल हमनी के ऊंख के रस बेचे से रोक दहल, एसे एकर खेती भईल बंद हो गईल.” ऊंख के रस बेचे वालन प 1990 में सफ्फा रोक लगा दहल गईल, साथही, एकरा के चुनौती देवे वाला मामला भी तब्बे से अदालतन में दाखिल बा. उ दावा करेलन, “सब केहू जानता कि ऊंख के रस से बेमारी से लड़े के कारे आवेला. इ हमनी के देह के ठंडा क के गरमी के हरा देला. सॉफ्ट ड्रिंक बनावे वाला कंपनी कुल हमनी ऊपर पाबन्दी लगवा दहलस. ओ लोग मंत्री लोग के साथे गठजोड़ कईल आ हमनी के बैपार से बहरी क दियायिल.”
औरी कब्बो-कब्बो, राजनीतिक-प्रसासनिक निर्णय के साथे- साथे मौसम के मारो कहर क देला. येह साल जमुना के बाढ़ (जब हरियाणा हथिनी कुंद बैराज से पानी छोडलस, आ तब्बे दिल्ली में बरखा होखे लागल) कई गो फसल के नास क दहलस. बिजेंद्र हमनी के सूखल, ममोराइल मारीचा, सुखाल भंटा, आ मुरई के कमजोर पौधा देखावलन, जून बेला एस्टेट, (जवन राजघाट आ शांतिवन के राष्ट्रीय स्मारक के ठीक पीछे बा) में उनकर पंच बीघा (एक एकड़) के खेत में इ मौसम में ना बढ़ी.
राजधानी में बहुत पहिले से अध सूखल जलवायु रहे. साल 1911 में अंग्रेजन के राजधानी बाने से पहिले इ पंजाब के कृषि राज्य के दक्खिन-पुरुब मंडल रहे, औरी पछिम में राजस्थान के रेगिस्तान, उत्तर के ओर हिमालय के पहाड़ आ पुरुब में गंगा के मैदान कुल से घेराइल बा. (इ सब जघ़े आज जलवायु परिवर्तन से जूझता). एकर मतलब हवे कि ठंडा जाड़ आ बेतरह गरमी, जवना में मानसून 3 से 4 महीना ले राहत देत रहे.
अब इ बेसी बिना नियम के हो गईल बा. भारत के मौसम बिभाग के अनुसार, एह साल जून-अगस्त में दिल्ली में बरखा के कमी 38 परतिसत कम देखल गईल, जब सामान्य तौर प 648.9 मिमी के मुकाबले 404.1 मिमी बरखा भईल. सीधा बात कहल जाव त, दिल्ली पांच बरीस में सबसे खराब मानसून देखलस.
साऊथ एशिया नेटवर्क औन डैम्स, रिवर्स एंड प्यूपल के समन्वयक, हिमांशु थककर कहेलन कि मानसून के सुभाव बदल रहल बा आ बरखा के गिनती कम हो रहल बा. “बरखा के दिन के गिनती घट रहल बा, ऐतरे बरखा के मातरा सायद कम ना होखे. बरखा के दिन में एकर तेजी बेसी होला. दिल्ली बदल रहल बा औरी एकर असर जमुना आ ओकर डूबांव जघे प पड़ी. पलायन, सड़क प गाडीन के गिनती, आ हवा के खराबी, सब बढ़ गईल बा. एकरा चलते एकरा लगे के जघे यूपी आ पंजाबो के जघे में बदलाव होखे लागल बा. (एगो छोट जघे) के में ही जलवायु लगे के जलवायु प असर डालता.”
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तरकारी बेचे वालन के तेज बोली- ‘जमुना पार के छिम्मी ले ला’- कवनो जमाना में दिल्ली के गलियन में हमेसा सुनाये, बाकिर 1980 के बाद से कहीं भुला गईल. इन्डियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज से परकासित, नारेटीव्ज औफ़ द एन्वायरमेंट औफ़ डेल्ही (दिल्ली के पर्यावरण के कथा) नाम के पुस्तक में, पुरनका लोग मन पारेला कि सहर में मिले वाला तरबूजा ‘लखनौ के खरबूजा’ के तरे होखत रहे. नदी के बलुई माटी प उगावल फल के रस ओ बेरा के हवा के आसरे होत रहे. पहिले के तरबूजा कुल सादा हरिहर आ भारी होत रहे (जवन बेसी मीठ होखे के इसारा ह) आ मौसम में खाली एक्के बेर लउकत रहे. किसानी के तरीका में बदलाव से नया तरह के बीया अब आईल बा. खरबूजा अब छोट आ रेघारी वाला होला- नवका बीया बेसी पैदावार देला, बाकिर अब ओकर आकार छोट हो गईल.
टटका सिंघाड़ा, जवन बीस बरीस पहिले हर घर के किननीहार के घरे पहुंचात रहे, अब एकदम बिला गईल बा. इ नाफज्गढ़ झील के लगे-लगे उगावल जात रहे. आज नाफजगढ़ आ दिल्ली गेट के नाला कुल के जमुना के गन्दा करे में 63 परतिसत के भागीदारी बा, जइसन कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीबीटी) के बेवसाइट दावा करता. दिल्ली के खेतिहर कुल के बहुउद्देसीय सहकारी समीति के महासचिव, 80 बरीस के बलजीत सिंह कहेलन, “सिंघाड़ा छोट पोखरा कुल में उगावल जाला. लोग दिल्ली में एकर खेती कईल बंद क दहलस काहे से कि एकरा ठीक-ठाक पानी आ बेसी धीरज जरूरत होला.” राजधानी से आज दुनु चीज, पानी आ धीरज, भुलाईल जाता.
बलजीत सिंह कहेलन कि खेतिहरो अपना जमीन से जल्दी उपज चाहेला लोग. एहीसे, उ अइसन फसल कर्ता लोग जवना के तैयार होखे में 2-3 महीना लागेला आ जवना के साल में 3-4 बेर कईल जा सकेला, जैसे भिन्डी, बीन्स, भंटा, मुरई, फूलगोभी. विजेंदर कहेलन, “बीस बरिस पहिले मुरई के नया किसिम निकलल गईल रहे.” संकर बतावेलन, “बिज्ञान पैदावार बढावे में मदद कईले बा. पहिले हमनी के (प्रति एकड़) 45-50 कुंटल मुरई मिल जात रहे, अब एकरा से चार गुना बेसी मिल सकता. आ हमनी एकरा के साल में तीन बेर उगा सकतानी.”
एह बीचे, दिल्ली में कंक्रीट से होखे वाला विकास कार्य तेजी से आगे बढ़ रहल बा, डूबांवों जघे में एकर कवनो कमी नईखे. दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, साल 2000 आ 2018 के बीच में हर साल के फसल के जघे में लमसम 2 परतिसत के गिरावट आई. एहबेरा, सहर के आबादी के 2.5 परतिसत आ ओकर कुल रकबा के लमसम 25 परतिसत (1991 के 50 परतिसत से नीचे) गांव के जघे में आवेला. दिल्ली सहरी बिकास प्राधिकरण (डीडीए) राजधानी के मास्टर प्लान 2021 में पूरा तरे से सहरीकरण के योजना तइयार कइलस.
संयुक्त राष्ट्र के अकनला से, दिल्ली में तेजी से होखे वाला सहरीकरण -मुख्य रूप से, तेजी से कार करे के चाल, कानूनी आ गैरकानूनी – के मतलब बा कि साल 2030 ले इ दुनिया के सबसे ढेर आबादी वाला सहर बन सकेला. राजधानी दिल्ली, जेकर एबेरा के आबादी 20 मिलियन बा, तब तक ले टोकियो (अभी 37 मिलियन) से आगे निकाल जाई. नीति आयोग के कहनाम बाकी अगिला साल ले इ ओ 21 भारतीय सहरन में से एगो होई, जहां के जमीन के पानी ख़तम हो गईल रही.
मनोज मिसिर कहेलन, “कंक्रीट के काम के मतलब का जमीन के औरी पक्का कईल, पानी के कम सरवल, कम हरिहरी... पक्का जगह गरमी के सोख के छोड़ेला.”
न्यूयार्क टाइम्स के जलवायु आ ग्लोबल वार्मिंग प एगो पढाई के अकान से, साल 1960 में जब शंकर 16 बरीस के रहलन, दिल्ली में 32 सेल्सियस तापमान वाला औसत 178 दिन होत रहे. अब 2019 में, बेसी गरम दिन के गिनती 205 ले पहुंच गईल बा. ए सदी के अंत ले, भारत के राजधानी हरेक साल 32 डिग्री वाला छह महीना से कम, से ले के, आठ महीना से बेसी तक ले अनुभव क सकेला. एमे आदमी के करनी के बेसी हाथ बा.
मिसिर बतावेलन कि दक्खिन-पछिम दिल्ली के पालम आ एकरा पुरुब में डुबाव जघ़े के बीच तापमान में लमसम 4 डिग्री सेल्सियस के अंतर बा. “जे पालम में इ 45 सेल्सियस बा, त “इ डूब जघ़े नेग जइसन बा.”
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अब चूंकि जमुना के लमसम 80 फीसद गन्दा राजधानइए से आवेला, जइसन कि एनजीटी के मानता बा, अइसन में इ (नदी) जदी दिल्ली के ‘छोड़’ देता तब का होईत-जौन कि एगो माहुर रिश्ता के मारल के पक्ष में मानल बात रहीत. मिसिर कहेला, “दिल्ली के भईल जमुने से बा, ना कि एकरा से उलटा बा. दिल्ली में 60 परतिसत से बेसी पीये वाला पानी नदी के उपरला हिस्सा के बराबर बहे वाला नहर के पानी से आवेला. मानसून, नदी के बचावेला. पहिला धार चाहे पहिला बाढ़, नदी के परदूसन से दूर ले के जाला, दूसर आ तीसर बाढ़, सहर के जमीन के जल के दोबारा भरे के काम करेला. इ काम नदी से 5-10 बरीस के आधार प कईल जाला, कवनो दूसर एजेंसी ए काम के नईखे क सकत. हमनी जब साल 2008, 2010 औरी 2013 में बाढ़ जइसन स्थिति देखनी, त अगिला पांच बरीस ले पानी दुबारा भर दहल रहे. दिल्ली के बहुत लोग ए बात के बड़ाई ना करेला.”
नीमन डूब जघ़े कुंजी ह- उ पानी के पसरे आ धीर होखे ला जगह देला. उ बाढ़ के बेरा बेसी पानी जमा करेला, एकरा के धीरे-धीरे जमीन के जल में गोट्टा करेला. आखिर में ई नदी के जिनगी देवे में मददगार होला. दिल्ली 1978 में आपन अंतिम बिनास्कारी बाढ़ के तबाही देखलस, जब जमुना आपन सुरक्षित जघ़े लकीर से छह फुट ऊपर ले चल गईल रहे, जेकरा से सैकड़न लोग मू गईल रहे, लखन लोग परभावित भईल, बेसी लोग बेघर भईल रहे- फसल आ दूसर पानी के जर के जौन नोकसान भईल ओकर त बाते हटा द. इ पछिला बेर आपन खतरा के निसान के 2013 में पार कईले रहे. ‘यमुना नदी परियोजना, नई दिल्ली के सहरी पारिस्थितिकी’ (वर्जिनिया विश्वविद्यालय के अगुआई में) के अनुसार, डूब जघे प धीर गति से अतिक्रमण के गहीर नतीजा होखे वाला बा. “तटबंध 100 साल के बीच में आवे वाला बाढ़ से टूट जय कुल, जेसे डूब जघे के निचला इलाका में बनल कुल निरमान ढह जाई आ पुरबी दिल्ली पानी से भर जाई.”
खेतिहर, डूब जघ़े में निरमान के कार के आगे बधावे के खेलाफ सचेत करत रहल बा लोग. शिव शंकर कहेलन, “इ जलस्तर के भयंकर रूप से परभावित करी. हर माकन में पार्किंग ला उ लोग तहखान बनाई. लकड़ी ला उ लोग आपन पसंद के गाछ लगाई. जदी उ उ फल के गाछ लगावें, रुन्नी, आम, अनार, पपीता, त इ कम से कम लोग के खाए आ कमाए में सहायक होई. औरी चिरई आ मवेसीयनो के खाए के मिली.”
आधिकारिक आंकड़ा बतावेला कि 1993 से ले के अब ले, जमुना के सफाई प 3,100 करोड़ रोपया खर्चा हो गईला बा. बलजीत सिंह सवाल करेलन कि तब्बो, “जमुना आजो साफ़ काहे नईखे?”
दिल्ली में इ सब एक साथे होता, गलत तरीका से, सहर में के एक-एक इंच जमीन प बिना सोचले कंक्रीट के काम, जमुना के डूब जघ़े प बेपरमान निरमान के काम, आ एकर दुरुपयोग, बीसाइन गन्दा कुल से हेतना नीमन नदी के सांस फूलल, जमीन के उपयोग आ नया बीया, कार करे के तरीका आ काम धंधा में भारी बदलाव के परभाव जेकरा के सायद उपयोग करे वाला लोग ना देख पावे, प्रकृति के तापमान के स्थायी बनवले रहे के तरीका के नास, अनियमित मानसून, हवा के गन्दगी के भयंकर स्तर. इ बहुत घातक बा.
शंकर आ उनकर साथी खेतिहर इ बात के बूझेला लोग. उ लोग पूछेला, “रउआ केतना सड़क बनायेम? रउआ जेतने कंक्रीट बिछाएम, जमीन ओतने गरमी सोखी. प्राकृतिक पहाड़ो बरखा के बेरा में धरती के ताजा होखे देला कुल. मानुस जात कंक्रीट से जौन पहाड़ के बनवले बा ओकरा से धरती के सांस लहल चाहे ताजा होखे चाहे बरखा में भींजे आ ओकरा पानी के उपयोग करे के मोके नईखे मिलत. जदी पानी ना होई, त रउआ खाए के सामान कहां उगायेम?”
पारी के जलवायु परिवर्तन प केन्द्रित राष्ट्रव्यापी रिपोर्टिंग के प्रोजेक्ट, यूएनडीपी समर्थित ओ पहला के एगो हिस्सा ह जेकरा में आम आदमी के जिनगी आ ओकर जीवन के अनुभव से पर्यावरण में हो रहल बदलाव के दर्ज कईला जाला.
इ लेख के परकासित करवावे के चाहतानी? त किरपा क के कॉपी [email protected] लिखीं आ ओकर एगो कॉपी [email protected] के भेज दीं.
अनुवाद: स्मिता वाजपेयी