“हमरा अभी-अभी ओरिएंटल शामा के बोली सुनाई पड़ल ह.”

मीका राय एकदम जोश में आ गइलें. उनकरा हिसाब से ई मीठ बोली बोले वाला प्रजाति में से बा.

बाकिर ई छोट करिया, उज्जर आउर पियर पंख वाला चिरई के बारे में कुछ सोचते उनकर जोश ठंडा हो गइल. “ई चिरई अइसे त कम ऊंचाई (900 मीटर) पर उड़ेला. बाकिर आजकल हमरा एकर आवाज इहंवा ऊपर (2,000 मीटर) सुनाई पड़ेला,” फील्ड में काम करे वाला एगो 30 बरिस के स्टाफ कहले. ऊ ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य में पछिला एक दशक से चिरई के बारे में तरह-तरह के जानकारी जुटावत बाड़न.

लगे के गांव में रहे वाला मीका, वैज्ञानिक, शोधकर्ता आउर फील्ड स्टाफ के टीम के हिस्सा बाड़न. टीम अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी कमेंग जिला के उष्णकटिबंधीय पर्वतीय जंगल में पाए जाए वाला चिरई सभ के प्रजाति से जुड़ल अध्ययन करे में लागल बा.

डॉ. उमेश श्रीनिवासन अपना हाथ में बुल्लू आउर करियर चिरई, जेकर पोंछ पर उज्जर धारी बनल बा, के पकड़ले कहत बाड़े, “ई उज्जर-पोंछ वाला रॉबिन (व्हाइट-टेल्ड रॉबिन) ह. ई 1,800 मीटर ऊंचाई तक उड़ सकेला. बाकिर पछिला तीन-चार बरिस एकरा 2,000 मीटर के ऊंचाई पर उड़त देखल गइल ह.”

चिरई विज्ञानी, श्रीनिवासन बेंगुलरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में प्रोफेसर बानी. उहां के अरुणाचल प्रदेश में काम करे वाला टीम के लीडर बानी. श्रीनिवासन के हिसाब से, “पछिला 12 बरिस में पूरबी हिमालय में बसे वाला तरह-तरह के प्रजाति वाला चिरई के ऊंचाई के दायरा बदल गइल बा.”

Left: The White-tailed Robin’s upper limit used to be 1,800 metres, but over the last three to four years, it has been found at 2,000 metres.
PHOTO • Binaifer Bharucha
Right: A Large Niltava being released by a team member after it has been ringed and vital data has been recorded
PHOTO • Binaifer Bharucha

बावां: व्हाइट-टेल्ड रॉबिन के अधिकतम 1,800 मीटर के ऊंचाई पर उड़े के आदत बा, बाकिर पछिला तीन-चार बरिस में एकरा 2,000 मीटर के ऊंचाई पर देखल गइल बा. दहिना: टीम के लोग लॉर्ज नीलतावा से जरूरी जानकारी जुटइला के बाद ओकरा के उड़ावत बा

Left: The team is trying to understand how habitat degradation and rising temperatures alter the behaviour of birds and their survival rates.
PHOTO • Binaifer Bharucha
Left: Dr. Umesh Srinivasan is a Professor at the Indian Institute of Science (IISc) in Bangalore and heads the team working in Arunachal Pradesh
PHOTO • Binaifer Bharucha

बावां: टीम समझावे के कोसिस करत बा कि चिरई सभ के रहे वाला जगह के दुर्दशा होखे आउर इहंवा के तापमान बढ़े से चिरई के ब्यवहार आउर ओकर जीवन दर बदल गइल बा. दहिना: मीका राय ‘फोटोग्राफर्स ग्रिप’ कहे जाए वाला तरीका से एगो ग्रे-थ्रोटेड बैबलर चिरई के हाथ में पकड़ले बाड़न

टीम में स्थानीय लोग के मौजूदगी से उहंवा के समुदाय भी जोश में बा. ऊ लोग तापमान में बदलाव से चिंतित बा आउर एह बदलाव के कम करे के तरीका खोजें में लागल बा.

पश्चिमी कमेंग के टीम में छव लोग बा. टीम में मौजूद स्थानीय आउर वैज्ञानिक लोग जाने-समझे के कोसिस करत बा कि तापमान बढ़ला आउर चिरई लोग के कुदरती ठिकाना के दुर्दशा से चिरई सभ के ब्यवहार में कइसन बदलाव आवत बा. आउर एह चलते ऊ लोग पहिले के मुकाबले आपन दायरा बदल के जादे ऊंचाई पर जाए के कइसे मजबूर हो गइल बा. कम ऊंचाई पर उड़े वाला दोसर चिरई, जे अधिक ऊंचाई वाला इलाका ओरी जात बा, ओह में कॉमन ग्रीन-मैगपाई, लॉन्ग-टेल्ड ब्रॉडबिल आउर सुलतान टीट जइसन चिरई के प्रजाति शामिल बा. एकरा से ऊ लोग के जिनगी आउर मौत पर भी असर पड़ी.

चिरई विज्ञानी चेतावत बाड़न, “ई पलायन ना हवे. एह इलाका के तापमान बढ़ला के चलते चिरई सभ मजबूरी में आउर ऊंचाई पर जात बा.” एकरा अलावे इहंवा खाली पंख वाला जीव के ही मेघ वन (क्लाउड फॉरेस्ट, मतलब शीष्ण उष्णकटिबंधीय पहाड़ के जगंल जे धुंध में डूबल रहेला) में गरमी नइके महसूस होखत. आइती थापा कहली, “पछिला तीन-चार बरिस में पहाड़ी पर गरमी बहुते जादे बढ़ गइल बा.”

टीम के सबले नयका सदस्य, 20 बरिस के आइती थापा पश्चिम कमेंग जिला के सिंगचुंग तहसील के गांव, रामलिंगम से बाड़ी. उनकर परिवार रामलिंगम में टमाटर, पत्तगोभी आउर मटर के खेती करेला.

हिमालय में औसत तापमान में सलाना डेढ़ डिग्री सेल्सियस के इजाफा हो रहल बा. हिमालय में व्यापक जलवायु परिवर्तन आउर स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में संबंधित बदलाव से जुड़ल एह पत्र में इहे कहल गइल बा. “हिमालय में तापमान बढ़े के दर वैश्विक रूप से तापमान बढ़े के औसत दर से जादे बा. एकरा से ई बात पक्का हो जाला कि जलवायु परिवर्तन के खतरा के हिसाब से हिमालय जादे नाजुक आउर संवेदनशील इलाका बा.”

स्थानीय आउर वैज्ञानिक दुनो लोग मिल के समझे के कोसिस कर रहल बा कि कुदरती आवास के दुर्दशा आउर बढ़ रहल तापमान चलते चिरई सभ के ब्यवहार कइसे बदल रहल बा. चिरई सभ एहि चलते आपन स्थान बदल के आउर ऊंचाई ओरी विस्थापित हो रहल बा

वीडियो देखीं: पूरबी हिमालय के तापमान बढ़े से चिरई आउर उंचाई ओर विस्थापित हो रहल बा

उमेश कहले, “समूचा दुनिया के मुकाबले हिमालय पर्वत के जैव विविधता पर एकर असर जादे बा.” उमेश के प्रयोगशाला ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य के भीतरी बोंगपू ब्लांग्सा के एगो शिविर में बा. ई राष्ट्रीय पार्क अरुणाचल प्रदेश के 218 वर्ग किमी में फइलल बा.

अभयारण्य के ऊंचाई 500 से 3,250 मीटर ले दर्ज कइल गइल बा. एह ग्रह पर ई इकलौता जगह होई, जहंवा एतना ऊंचाई पर हाथी मिलेला. इंहवा मिले वाला दोसर जनावर सभ में चित्ती (क्लाउडेड) वाला तेंदुआ, मार्बल्ड बिल्ली, एशियाई सुनहरा बिल्ली आउर तेंदुआ बिल्ली बा. एकरा अलावा कैप्ड लंगूर, लाल पांडा, एशियाई करियर भालू आउर कमजोर अरुणाचल मकाक (बंदर) आ गउर (जंगली बैल) के ठिकाना भी इहे जंगल बा.

आइती आउर देमा तमांग आपन गांव के पहिल मेहरारू लोग होई, जे चिरई के अध्ययन करे आउर एकर डॉक्यूमेंटेशन करत बा. बलुक ऊ लोग गांवे ना, आपन राज्य के भी पहिल मेहरारू होई. दुनो प्राणी के घर के बुजुर्ग लोग पहिले-पहिले संकोच में पड़ गइल, जब लइकी लोग के ई नौकरी मिलल. ऊ लोग टोना कसलक, “रउआ एह लोग के जंगल काहे ले जाए के चाहत बानी? ई सभ काम लइकी लोग के शोभा ना देवे.”

मीका कहलन, “हम ऊ लोग के कहनी अब दुनिया बहुत आगे निकल गइल बा.” उहो रामलिंगम गांव से बाड़न. मीका के खाली एहिजे ना, बलुक हिमाचल प्रदेश आ उत्तराखंड के जंगल में भी चिरई सभ के जानकारी दर्ज करे के अनुभव बा. “जे काम लइका लोग कर सकेला, ऊ काम लइकियो कर सकेली.”

आइती जइसन फील्ड स्टाफ के 18,000 रुपइया दरमाहा मिलेला. ऊ लोग अब आपन परिवार के भरण-पोषण करे में सक्षम बाड़ी. परिवार के जादे लोग काश्तकारी (किराया पर खेती) करेला.

आइती जे काम करेली ऊ बहुते मिहनत आउर बखत मांगे वाला काम बा. एकरा बादो ऊ मस्त मिजाज में खिखियात कहे लगली, “चिरई सभ के अंगरेजी नाम इयाद करे में हमरा छट्ठी के दूध इयाद आ जाला.”

Left: Dr. Umesh Srinivasan is a Professor at the Indian Institute of Science (IISc) in Bangalore and heads the team working in Arunachal Pradesh
PHOTO • Binaifer Bharucha
Right: Left to Right: The team members, Rahul Gejje, Kaling Dangen, Umesh Srinivasan, Dambar Pradhan and Aiti Thapa at work
PHOTO • Binaifer Bharucha

बावां: डॉ. उमेश श्रीनिवासन बेंगलुरू के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में प्रोफेसर आउर अरुणाचल प्रदेश में काम करत टीम के मुखिया भी बानी. दहिना: बावां से दहिना: टीम के सदस्य- राहुल गज्जे, कलिंग डंगेन, उमेश श्रीनिवासन, दम्बर प्रधान आउर आइती थापा लोग काम में लागल बा

Aiti Thapa (left) and Dema Tamang (right), in their early twenties, are the first women from their village Ramalingam, and in fact from Arunachal Pradesh, to document and study birds via mist-netting
PHOTO • Binaifer Bharucha
Aiti Thapa (left) and Dema Tamang (right), in their early twenties, are the first women from their village Ramalingam, and in fact from Arunachal Pradesh, to document and study birds via mist-netting
PHOTO • Binaifer Bharucha

आइती थापा (बावां) आउर देमा तमांग (दहिना) बीस-बाइस बरिस के आस-पास के होइहन. ऊ लोग आपन गांव रामलिंगमे ना, पूरा अरुणाचल प्रदेश में, चिरई सभ के दस्तावेजीकरण आउर अध्ययन करे वाला पहिल मेहरारू लोग बा

*****

उन्नीसवीं सदी के बात बा. अरुणाचल प्रदेश के एह इलाका में, खान मजूर लोग खदान में काम करे घरिया कवनो तरह के गंभीर जोखिम भांपे खातिर कैनरी नाम के चिरई के इस्तेमाल करत रहे. कैनरी चिरई दुनिया भर में मीठ गीत गावे खातिर जानल जाला. ई तनबुटकी चिरई कार्बन मोनोऑक्साइड के प्रति खास करके संवेदनशील होखेला, आउर खदान में होखे वाला कवनो तरह के दुर्घटना के पहिले से संकेत दे देवेला. ई चिरई कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में अइला पर मर जाला. ‘कोयला खदान में एगो कैनरी’ आवे वाला खतरा के प्रति सावधान करे के एगो लोकप्रिय मुहावरा बन गइल बा.

चिरई, दोसरा के मुकाबले गतिशील जीव होखेला. जलवायु परिवर्तन चलते दोसर उष्णकटिबंधीय पर्वतीय जैव बिबिधता वाला इलाका सभ पर कइसन प्रभाव पड़ी, चिरई एह बात के संकेत देवेला. एहि से बोंगपू टीम के काम बहुते नाजुक काम बा.

ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य चिरई के 600 प्रजाति के बसेरा बा. उमेश बतइले, “इहंवा, रउआ सैंकड़न के तादाद में अइसन छोट-छोट इंद्रधनुषी रंग के चिरई सभ मिली, जेकर वजन 10 ग्राम चाहे एक चम्मच चीनियो से कम होई.” एकरा अलावे, पंख वाला भी कुछ बहुते दुलर्भ जीव एह मेघ वन के आपन ठिकाना बनवले बा. लाल रंग के पेट वाला वार्डस ट्रोगन, ब्लाइथ्स ट्रैगोपन नियर बड़हन फिजेंट, रेसमी बुल्लू-ग्रे रंग के सुन्दर नथैच आउर शायद सबले जादे लोकप्रिय, मायावी बुगुन लियोसिचला के इहंवा आपन बसेरा बा.

एह वन्यजीव अभयारण्य में पावल जाए वाला चिरई सभ के प्रजाति दुनिया भर के चिरई प्रेमी के अपना ओरी खींचेला. मुस्किल आउर चुनौती से भरल जीवन स्थिति, कठोर मौसम आउर उबड़-खाबड़ इलाका के बावजूद इहंवा हर बरिस पर्यटक लोग के तांता लागल रहेला.

Some of the rarest birds call these cloud forests their home, like the elusive Bugun Liocichla (left) and the large pheasant-like Blyth's Tragopan (right)
PHOTO • Micah Rai
PHOTO • Micah Rai

कुछ सबले दुर्लभ चिरई सभ एह मेघ वन में आपन बसेरा बनवले बा, जइसे कि मायावी बुगुन लियोसीचला (बावां) आउर बड़हन फिजेंट नियर (दहिना) ब्लाइथ्स ट्रागोपन

The scarlet-bellied Ward's trogon (left) and a Bluethroat (right) photographed by field staff, Micah Rai
PHOTO • Micah Rai
Some of the rarest birds call these cloud forests their home, like the elusive Bugun Liocichla (left) and the large pheasant-like Blyth's Tragopan (right)
PHOTO • Micah Rai

लाल पेट वाला वार्ड्स ट्रोगन (बावां) आउर एगो ब्लूथ्रोट (दहिना). एह सभ के फोटो फील्ड स्टाफ मीका राय खींचले बाड़न

शोध करे वाला टीम जंगल के बहुते भीतरी जाके काम करेला. ऊ लोग बोंगपू ब्लांग्सा में एगो कमरा के बहुते साधारण घर में रहेला. एह घर में ना त कवनो बिजली बा, ना पानी के कवनो स्थायी जरिया. तरीका के छत भी नइखे. बोंगपू ब्लांग्सा में आपन कैंप के देख रेख करे के जिम्मेवारी टीम के हर सदस्य के बीच बांटल बा. खाना पकावे, बरतन धोवे, लगे के नदी से पानी ढो के लावे के काम सभे कोई मिलजुल के करेला. टीम में शामिल स्थानीय लोग कोई दू घंटा दूर स्थित रामलिंगम से रोज आन-जान करेला. जबकि उमेश आउर दोसर शोधकर्ता लोग देस के दोसर हिस्सा के रहे वाला बा.

आज खाना बनावे के बारी आइती के बा. ऊ लकड़ी के चूल्हा पर बड़हन डेगची में दाल पकावत बाड़ी. दाल चलावत ऊ कहे लगली, “हमार काम से लोग के एह जीव-जंतु के नीमन तरीका से समझे में मदद मिलेला. हम आपन काम से खुस बानी.” उनकरा ई काम करत दू बरिस हो गइल.

टीम के लोग हर रात मन लगावे खातिर कवनो ना कवनो खेल खेलेला. ऊ लोग ओह चिरई पर दावं लगावेला जवना के ऊ लोग अबले पकड़त आइल बा. सभे केहू एह खेला में हिस्सा लेवेला. तिरपाल के छत पर जब बरखा के बुन्नी हथौड़ा जइसन पड़ेला त रोशनी खातिर ऊपर टांगल लैंप हवा में जोर-जोर से डोले लागेला.

“काल्ह सबेरे सबले पहिले कवन चिरई जाल में फंसी?” आइती सभे से पूछली.

“हमरा त लागत बा गोल्डन-ब्रेस्टेड फुलवेटा पकड़ाई,” ऊ पूरा आत्मबिश्वास से कहली.

मीका चिल्लइलन, “व्हाइट-स्पेकटैकल्ड वारब्लर.” दम्बर उनकर बात कटलन, “ना…” ऊ कहले, “येलो-थ्रोटेड फुलवेटा.”

मीका आउर दम्बर, दुनो प्राणी जादे अनुभवी बा. उमेश ओह लोग के सबले पहिले टीम में शामिल कइले रहस. ऊ लोग बोंगपू के कैंप के हिस्सा बीस-बाइस उमिर में ही बन गइल रहे. दुनु जाना रामलिंगम के सरकारी स्कूल से पढ़ल बाड़न. दम्बर जहंवा ग्यारहवां क्लास तक पढ़ल बाड़न, उहंई मीका पंचवा के बाद स्कूल छोड़ देलन. ऊ आजू एह बात खातिर पछतावा करेलन, “ओह घरिया हमरा पढ़ाई में जादे मन ना लागत रहे.”

The team on their way back (left) from field work
PHOTO • Binaifer Bharucha
In the camp in Bongpu Blangsa, Umesh, Dorjee Bachung, Micah and Dambar having their evening tea (right)
PHOTO • Vishaka George

समूचा टीम फील्ड वर्क के बाद (बावां) लउट रहल बा. बोंगपू ब्लांग्सा कैंप में उमेश, दोर्जी बचुंग, मीका आउर दम्बर आपन सांझ के चाय (दहिना) पियत बाड़न

Left: From left to right, Dema, Aiti, Dambar and Micah outside their camp in Bongpu Blangsa.
PHOTO • Vishaka George
Right: Kaling Dangen holding a Whistler’s Warbler
PHOTO • Binaifer Bharucha

बावां: बावां से दहिना, देमा, एती, दम्बर आउर मीका बोंगपू ब्लांग्सा के आपन कैंप के बाहिर. दहिना: कलिंग डंगेन हाथ में व्हिस्लर्स वार्बलर पकड़ले बाड़न

टीम के सभे लोग रात होखते जल्दिए बिछौना पर चल जाला. काहे कि चिरई पकड़े आउर जरूरी जानकारी जुटावे के काम भोर में नीमन से होखेला. कलिंग डंगेन कहले, “चिरई पकड़े केतना दूर जाए के बा, हमनी ओहि हिसाब से भोर में उठिले. कबो त अन्हारे मुंह 3.30 में उठ जाइले.” कलिंग डंगेन आईआईएससी से पीएचडी कइले बाड़न. 27 बरिस के एह नवयुवक चिरई में होखे वाला तनाव (स्ट्रेस फिजियोलॉजी) के अध्ययन करेले. ऊ जल्दिए आपन टीम के संगे भोर के हल्का-हल्का उजाला में सैम्पल जुटावे निकल जइहन.

*****

पूरबी हिमालय के एह हिस्सा के ऊंचाई पर आउर जंगल में बहुत भीतरी स्थित होखे के बावजूद, इहंवा के मेघ वन ठिकाना के गड़बड़ाए, खास करके गाछ के कटाई चलते दबाव में बा. अइसे त, सुप्रीम कोर्ट इहंवा तीन दशक पहिलहीं जंगल काटे पर पाबंदी लगा देले रहे. बाकिर वैज्ञानिक लोग के हिसाब से तबले पर्यावरण के बहुते नुकसान हो चुकल रहे.

शोधकर्ता कलिंग बतवले, “जंगल कटला से जलवायु परिवर्तन के असर गंभीर हो जाला. काहेकि सूरज के रोशनी जादे तेज पड़ेला. जब जंगल कट जाला, तब मैदानो में बदलाव आ जाला.” जे जंगल में कटाई होखेला, उहंवा के तामपान आम जंगल से 6 डिग्री जादे हो सकेला.

“चूंकि इहंवा बहुते गरमी बा, चिरई आपन जादे बखत छाया में सुस्तात गुजारेला. ओकरा खाए खातिर कम समय मिलेला. एकर परिणाम होखेला कि चिरई के देह के दशा, जिंदा रहे के स्थिति आउर जीवन कम होखत चल जाला. केतना बार इहो होखेला कि पेड़ कटला से चिरई के आपन मनपंसद भोजन कम मिलेला,” कलिंग कहले. कलिंग चिरई के वजन आउर पंख के फैलाव से जुड़ल जानकारी जुटावेलन. जलवायु परिवर्तन चलते चिरई सभ में होखे वाला तनाव के समझे खातिर चिरई के खून आउर मल इकट्ठा करके ओकर जांच करेलन.

“व्हाइट-टेल्ड रॉबिन्स कीड़ा आउर ‘ट्रू बग्स’, हेमिप्टेरन खा के जिंदा रहेला. एह तरह के जीव कटाई वाला जंगल में बहुते कम पाइल जाला,” उमेश बतावत बाड़न. उनकर कहनाम बा जंगल के कटाई से व्हाइट-टेल्ड रॉबिन्स के गिनती कम होखे के बीच संबंध जोड़ल जा सकेला. “एकरा से चिरई के सीधा शारीरिक तनाव हो सकेला काहे कि एकरा से गरमी बढ़ जाला.”

Despite the elevation and remoteness of this part of the eastern Himalayas, cloud forests here in West Kameng are under pressure from habitat degradation, in particular, logging
PHOTO • Vishaka George
Despite the elevation and remoteness of this part of the eastern Himalayas, cloud forests here in West Kameng are under pressure from habitat degradation, in particular, logging
PHOTO • Binaifer Bharucha

पूरबी हिमालय के एह हिस्सा के ऊंचाई पर आउर जंगल में बहुत भीतरी होखे के बावजूद, इहंवा के मेघ वन ठिकाना के गड़बड़ाए, खास करके गाछ के कटाई चलते दबाव में बा.

Eaglenest Wildlife Sanctuary covers 218 square kilometres in Arunachal Pradesh’s West Kameng district
PHOTO • Binaifer Bharucha
Eaglenest Wildlife Sanctuary covers 218 square kilometres in Arunachal Pradesh’s West Kameng district
PHOTO • Binaifer Bharucha

ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कमेंग जिला में 218 वर्ग किमी में फइलल बा

तामपान बढ़ला से हिमालय में उगे वाला गाछ सभ ढलान में ऊपर ओरी बढ़े लागल बा. मानल जात बा कि चिरई भी एकर अनुसरण कर रहल बा. “जिंदा रहे खातिर, जे जीव जंतु सभ पहिले 1,000 से 2,000 मीटर के ऊंचाई पर पावल जात रहे, अब 1,200 से 2,200 मीटर के दायरा पर बा,” उमेश कहले. पापुआ न्यू गिनी आउर एंडीज जइसन उष्णकटिबंधीय इलाका में भी चिरई सभ के ऊंचाई ओर विस्थापित होखे के बात दर्ज कइल गइल बा.

वैज्ञानिक लोग के चिंता बा कि चिरई सभ के प्रजाति जइसे-जइसे ऊपर ओरी बढ़त बा, एह बात के खतरा भी बढ़त बा कि ऊ लोग पहाड़ के चोटी पर पहुंच जाई. जे दिन अइसन भइल, ओह दिन एकरा बाद आगू जाए के कवनो रस्ता ना बची. ई स्थिति आ गइल त स्थानीय चिरई सभ के बिलुप्त होखे के खतरा बढ़ जाई काहे कि अब आगू जाए के कवनो जगह नइखे बचल.

ईगलनेस्ट के निचला हिस्सा में उष्णकटिबंधीय सदाबहार जंगल बा, मध्य ऊंचाई पर समशीतोष्ण चौड़ा पत्ता वाला जंगल आउर सभ से ऊंचाई, चोटी पर शंकुधारी गाछ आ बुरांस के जंगल बा. आउर एह सभ के बीच, “हमनी के जे करे के जरूरत बा, ऊ बा जलवायु कनेक्टिविटी, ताकि चिरई सभ के प्रजाति एक जगह से दोसर जगह जाए-आवे में सक्षम होखे,” उमेश कहलन. उमेश एगो प्रशिक्षित डॉक्टर भी बाड़न. चिरई के प्रति प्रेम चलते ऊ डॉक्टरी छोड़ देले रहस.

ऊ कहले, “जदि पहाड़ के बीच में खेती कइल जात बा, चाहे शहर बसल बा, त ई (जलवायु कनेक्टिविटी) ना होई. हमनी के एह प्रजाति सभ के बचावे खातिर एगो अइसन गलियारा तइयार करे के जरूरत बा, जे जादे ऊंचाई के दायरा में फइलल होखे.”

*****

मीका राय, दम्बर प्रधान, आइती थापा आउर दमा तमांग जइसन स्थानीय फील्ड स्टॉफ अइसन अध्ययन खातिर बहुते जरूरी बा. ऊ लोग जरूरी जानकारी जुटावेला आउर कइएक गो अध्ययन में ओह लोग के सह-लेखक के रूप में जिकिर होखेला.

फील्ड स्टाफ के चिरई पकड़े खातिर जाल देहल जाला. ऊ लोग मिस्ट-नेटिंग तकनीक के मदद से चिरई पकड़ेला. घना वनस्पति के इलाका में खंभा से बांध के महीन जाल लगावल जाला. चिरई एह जाल के देख ना पावे. ऊ लोग उड़त उड़त एह जाल में फंस जाला.

Left: Dema gently untangling a White-gorgeted Flycatcher from the mist-nets. These are fine nets set up in areas of dense foliage. Birds cannot see them and hence, fly into them, getting caught.
PHOTO • Binaifer Bharucha
Right: Dambar holding a White-browed Piculet that he delicately released from the mist-net
PHOTO • Vishaka George

बावां: देमा धीरे से मिस्ट-नेट से व्हाइट-गॉर्जेटेड फ्लाईकैचर के निकालत बाड़न. घना पत्ता वाला इलाका में खूब महीन जाल लगावल जाला. चिरई एकरा देख ना पावे आउर एह में फंस जाला. दहिना: दम्बर हाथ में एगो व्हाइट-ब्रोव्ड पिकुलेट पकड़ले बाड़न. एकरा के ऊ बहुत प्यार से मिस्ट-नेट से निकालत बाड़न

Left: Micah adjusting and checking the nets
PHOTO • Vishaka George
Right: Aiti gently releasing a Rufous-capped Babbler from the nets
PHOTO • Binaifer Bharucha

बावां: मीका जाल के जांच करके एकरा ठीक करत बाड़ी. दहिना: आइती जाल से बहुत प्यार से एगो रूफस-कैप्ड बैबलर के छोड़ावत बाड़ी

“हमनी के 8 से 10 गो नेट मिलेला,” 28 बरिस के दम्बर बतइले. आपन लगावल एगो जाल तक पहुंचे खातिर रस्ता में कीचड़ वाला ढलान पर ऊ लगभग सरक गइलन. उहंवा पहुंच के, ऊ जाल में फंसल ओह छोट जीव के जल्दी आउर बहुत प्यार से बाहिर निकललन. बाहिर निकाल के ओह चिरई के सूती के हरियर झोला में रख लेलन.

चिरई सभ के जाल में 15 मिनट से जादे पकड़ के ना रखल जाला. जदि बरसात होखे के तनिको संभावना होखेला त टीम के लोग तुरंत प्लॉट पर पहुंच के चिरई सभ के फटाफट छोड़ देवेला ताकि चिरई के कम से कम तनाव चाहे परेसानी होखे.

एगो रिंगर के पकड़- चिरई के छाती के कोमलता से घेर लेवेला- फेरु झोला से चिरई के निकालल जाला. एह काम में बहुते सावधान रहे के जरूरत रहेला काहे कि तनिको दबाव से ओह छोट जीव के जान खतरा में आ सकेला. एकरा बाद चिरई सभ के तउलल, नापल आउर रिंग लगावल जाला.

देमा कहले,”हम एह काम के हल्का में ना लिहिला. हमरा चिरई संगे काम करे में बहुते नीमन लागेला. दुनिया भर से लोग इहंवा आवेला. ऊ लोग बहुत से बहुत, दूर से दूरबीन से एह चिरई सभ के देख सकेला. हम त चिरई के पकड़ लीहिला.”

एती, जे दसमा के बाद पढ़ाई छोड़ देली, के कहनाम बा, “हम जदि 2021 में एह काम खातिर टीम में ना अइतीं, त आपन परिवार संगे किराया पर लेहल खेत पर काम करत रहतीं.” देमा आउर आइती जइसन नया उमिर के मेहरारू लोग मीका के काम से प्रेरित बा. जवान लइका लोग अब एह जंगल में शिकार के परंपरा के चुनौती दे रहल बा.

Umesh measuring the tarsus of a White-throated-fantail (left) and the wing of a Chestnut-crowned laughingthrush (right)
PHOTO • Binaifer Bharucha
Umesh measuring the tarsus of a White-throated-fantail (left) and the wing of a Chestnut-crowned laughing thrush (right)
PHOTO • Binaifer Bharucha

उमेश एगो उज्जर गला वाला फैन्टेल के टारसस (बावां) आउर चेस्टनट-क्राउन्ड लाफिंगथ्रस्ट (दहिना) के पांख के नापत बाड़न

Micah holding up a photo of a Rufous-necked Hornbill he shot on his camera.
PHOTO • Binaifer Bharucha
Right: Dema says she doesn’t take this work for granted. 'People come here from all over the world and, at best, can only see them from a distance with binoculars. I get to hold them'
PHOTO • Vishaka George

मीका आपन कैमरा से खींचल एगो रूफस-नेक्ड हॉर्नबिल के फोटो पकड़े बाड़न. दहिना: देमा के कहनाम बा कि ऊ एह काम के हल्का में ना लेवस. ऊ कहेली, ‘दुनिया भर से लोग इहंवा चिरई देखे आवेला. ऊ लोग दूर ठाड़ होके दूरबीन से देख सकेला. आउर हम त चिरई के पकड़ भी सकेनी’

“लइका लोग आपन गुलेल से चिरई पर निशाना लगाई आउर मार गिरावे के कोसिस करी. ऊ लोग स्कूल के बाद जंगल में जाई आउर टाइमपास करे खातिर ई सभ करी.” मीका, जब उमेश खातिर चिरई सभ से जुड़ल तरह-तरह के जानकारी जुटावे आउर दर्ज करे के काम करे लगलन. त एकरा बाद ऊ रामलिंगम में लइका लोग के जंगल आउर जंगली जीवन के फोटो भी देखावे में सक्षम भइलन. ऊ कहले, “हमार छोट चचेरा भाई आउर संगी साथी लोग अब शिकार आउर कुदरत के सुरक्षा के अलग नजरिया से देखे लागल बा.”

मीका के ईगलनेस्ट चप्पा-चप्पा छानल बा. इहे काबलियत चलते साथे काम करे वाला लोग उनका इंसानी जीपीएस पुकारेला. ऊ बतइले, “हम जब छोट रहीं, हरमेसा शहर में रहे के सपना देखीं. हमार हालत अइसन रहे जइसन एगो चिरई प्रेमी के चिरई के एगो नया प्रजाति देखे खातिर होखेला. बाकिर भारत के दोसर इलाका सभ में घूमला के बाद, हम अब बस आपन अरुणाचल प्रदेश के जंगल लउट के आवे के चाहत बानी.”

ऊ एगो जाल लगे पहुंचले. उहंवा से ओह पार घाटी आउर हरियर-हरियर पहाड़ी जंगल के नजारा देखाइत देत बा. उहंवा पहुंचक के ऊ कहले, “जेतना बार इहंवा लउट के आइला, एह जंगल के जादू में गुम हो जाइला.”

कहानी के दोसर हिस्सा में पढ़ीं, कइसे स्थानीय समुदाय के लोग जलवायु में बदलाव के कम करे के प्रयास में जुटल बा

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Vishaka George

Vishaka George is Senior Editor at PARI. She reports on livelihoods and environmental issues. Vishaka heads PARI's Social Media functions and works in the Education team to take PARI's stories into the classroom and get students to document issues around them.

Other stories by Vishaka George
Photographs : Binaifer Bharucha

Binaifer Bharucha is a freelance photographer based in Mumbai, and Photo Editor at the People's Archive of Rural India.

Other stories by Binaifer Bharucha
Photographs : Vishaka George

Vishaka George is Senior Editor at PARI. She reports on livelihoods and environmental issues. Vishaka heads PARI's Social Media functions and works in the Education team to take PARI's stories into the classroom and get students to document issues around them.

Other stories by Vishaka George
Editor : Priti David

Priti David is the Executive Editor of PARI. She writes on forests, Adivasis and livelihoods. Priti also leads the Education section of PARI and works with schools and colleges to bring rural issues into the classroom and curriculum.

Other stories by Priti David
Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

Other stories by Swarn Kanta